Thursday, September 9, 2010

मेरा अनुभव.....

मै तो गुंतकल में रहता हूँ। कल यानि तारीख ०८ .०९.२०१०
को गरीब रथ से बंगलुरु गया था। सुबह ७ बजे यास्वन्तापुर उतरा,मौसम का तो कहना नहीं। काफी खुसनुमा था,धीमी गति से हवाएचल रही थी। हलका -हलका फुहारे के साथ बारिश हो रही थी।
           कहने को तो अजीब सा है ,पर बंगलुरु का मौसम हमेसुहावना ही होता है। प्रायः, महीने में चार -पञ्च बार जाना ,हो हीजाता है । मुझे बंगलुरु का मौसम हमेसा मोहक ही लगता है।जब से महारास्ट में राजठाकरे का उतर भारतीय लोगो के
प्रति जन अन्दोलाल उग्र हुआ है ,तब से उतर्भार्तियो का प्यार, इसबंगलुरु के प्रति ज्याद बढ़ गया है। इसे बंगलुरु की महानता
ही कहेंगे। जी, हाँ बंगलुरु अपने आप में बंगलुरु ही है। सभी इसे
दिल से प्यार करते है । कोई ऐसा नहीं होगा, जो बंगलुरु न जानाचाहेगा । मेरे गुंतकल से बंगलुरु की दुरी ३१० किलो मीटर है।
             गुंतकल से मद्रास, बंगलुरु, हैदराबाद, विजयवाडा होते हुएकोल्कता, हुबली होते हुए गोवा , वादी, सोलापुर होते हुए मुंबईनईदिल्ही ,वगैरह-वगैरह स्थानों को जाया जा सकता है।
मेरे यहाँ से तिरुपती भी ३१० किलो मीटर है जो अपने
आप में बालाजी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। तिरुपति
के बगल में ही आप को तमिलनाडु राज्य के वेल्लोरे में एक औरसोने का बना हुआ लक्ष्मी नारायणी मंदिर भी देखने योग्य है।यहाँ तिरुपति से बस या ट्रेन द्वारा जाया जा सकता है। अगर
आप कभी तिरुपति आए तो इस मंदिर को देखना न भूले.

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