Thursday, October 21, 2010

मदुरै की यात्रा.


 मदुरै की यात्रा.............. भी मेरे लिए यादगार बन गई.वैसे हमेशा से,मेरे जेहन में एक कमी खलती थी और सोंचता था की कब,मदुरै जाऊ. वैसे मै इतना दूर भी नहीं हूँ.लोगो से सुना था और पढ़ा भी था की मदुरै एक हिन्दुओ का पवन तीर्थ स्थान है जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है.फिर क्या था वह दिन भी आ गया ,मै अपने परिवार के साथ,दिनांक..०४.१०.२०१० को गाड़ी संख्य.६३३९,जो मुंबई से चल कर नागरकोइल को जाती है,से चल दिया.ट्रेन गुंतकल स्टेशन पर साढ़े चार बजे के करीब आई. मैंने चार बर्थ 2ac में reserve किया था.मेरा बड़ा बेटा ,परीक्षा के वजह से न आ सका था ,फिर भी बालाजी हमारे साथ  थे.मेरा बर्थ संखया .२१,३६,४२,और ४५ था.प्रातः  कल होने की वजह से हम सब अपने -अपने बर्थ पर सो गए.सबेरे करीब साढ़े आठ बजे के करीब हम उठे.उस समय ट्रेन बंगलुरु सिटी से पास हो रही थी.सुबह का नजारा कुछ और ही था ,चारो तरफ हरियाली की छटा दिखाई दे रही थी.हमारे सामने वाले बर्थ पर एक ६२ वर्ष के ब्यक्ति बैठे थे ,जिनका मोटर रिपेयर गैराज का व्यापार मुंबई में था .वे मुंबई में १९६२ से रह रहे थे फिलहाल अपने बेटे की शादी  में नागरकोइल जा रहे थे वे बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व वाले थे ,क्यों की किसी के न चाह कर भी बोलने के लिए मजबूर कर देते थे.यह भी एक मनुष्य की कला है.
एक और मध्य उम्र के लोग थे ,ये लोग भी किसी परताल के लिए मदुरै जा रहे थे.बाद में मालूम पड़ा की वे लोग भी रेलवे में काम करते है और सहायक सब - इंस्पेक्टर थे.एक चोरी के केस की जाँच के लिए यात्रा पर थे.हमारी यह यात्रा बड़े संतोष जनक रूप से  गुज़री क्यों की सभी ने अपने ढंग की , अपनी अनुभव सबके सामने रखी ! सबसे पहले हम ६२ वर्षीय  ब्यक्ति की बात करे.उनका कहना था की हम सभी को यात्रा के दौरान मिल जुल कर रहना चाहिए ,विशेष कर अकेले यात्रा के समय! क्यों की अगर कुछ हो गया तो आस-पास वाले कम  से कम ,हमारे बॉडी को हमारे पते पर भेंज देंगे.वैसे कब किसे क्या हो जायेगा,किसी को नहीं पता.कहने को वे तमिलियन थे पर काफी सुन्दर हिंदी बोल रहे थे.ऐसा मुंबई में रहने का असर  हो ,किन्तु ऐसा नहीं था. गैराज  में समय का पालन करना उनका मुख्य  धर्म था,ऐसा करने से ही ग्राहक आएंगे.उन्होंने यह भी बताया की जब सलमान खान छोटे थे तो उनके पिता जी भी मेरे गैराज  में उनको लेकर गाड़ी की मरमत करने आते थे.अभी भी आ जाते है हमें यह कोई नयापन नहीं लगा धंधे में यह सब कुछ होता है.किसके पास कौन आ जाये किसी को नहीं पता.खाने में भी काफी मस्त थे .वे घर से ही खाने के पैकेट लेकरके आए थे,वह भी अलग-अलग पैकेट  ,जिससे खाने में तकलीफ न हो.

 अब आए उन ,बाकि लोगो के अनुभव को जाने जो रेलवे में सुरक्षा से सम्बन्ध रखते है,यानि,वे सब - इंस्पेक्टर..,जी हाँ.उनकी भी ब्यथा कुछ काम नहीं......उनका कहना था हम हमेशा अपने परिवार से दूर और अलग सा महसूस करते है. हमारे लिए कोई त्यौहार नहीं है या हम अपने परिवर के साथ कोई त्यौहार मना ही नहीं सकते क्यों की उस दिन हमें सुरक्षा  को बनाये रखने के लिए स्पेशल तौर पर ड्यूटी करना पड़ता है...२)हम अपने बच्चो की परवरिस ठीक से नहीं कर पाते. यह काम बिशेस कर पत्नी के ऊपर आ जाता है.जिससे पत्नी भी उखड़ी सी रहती है...०३)बाहर की आदत घर में भी उखड जाती है जैसे घर में आते ही सबसे झगड़ जाना.बातो-बातो में गुस्सा आना..वगैरह-वगैरह...०४) हम पुलिस वाले ब्लड प्रेसर , सुगर जैसे बिमारिओ से ग्रस्त हो जाते है क्यों की हमारा काम हमें हमेशा टेंशन में रखता है...०५)समाज में हमारे बच्चो को शादी के लिए रिश्ता मिलाना बहुत कठिन होता है.कोई भी ब्यक्ति पुलिश  वाले के बेटे-बेटियों से शादी में नहीं बंधना चाहता है.,०६)पुलिश वाले प्रायः हार्ट अटैक  के शिकार होते है. ०७)परिवार से दूर रहना,पत्नी का सहयोग न होना ,अपनो से दुरी वगैरह-वगैरह कारण ,पुलिश वालो को अनैतिक व्यभिचार के रास्ते पर धकेल देता है..०८) हमें समाज में हमेशा तिरस्कार की नजरो से देखा जाता है,भले हमारे सामने कोई कुछ  न बोले.      सभी ने  कुछ न कुछ अपनी सुना दी फिर मेरे बारे में जाने वगैर कैसे रह    सकते थे

मैंने भी अपने बारे में बता दी...मै राजधानी,  गरीब रथ और सुपर फास्ट ट्रेन का लोको   चालक हूँ. मेरा हेड कुँर्टर गुंतकल में है.मुझे   गुंतकल से बंगलुरु,सिकुंदाराबाद,सोलापुर   रेनिगुनता के तरफ ट्रेन लेकर जाना पड़ता है. ०२)हमें भी आठ घंटे की ड्यूटी करना पड़ता है. ०३)हमारे कार्य में कोई दखल नहीं दे सकता. ०४)लगातार दो-दो/तिन-तिन घन्टे  चलने के बाद,गाड़ी रुकती है.इस समय जरा सी भी चुक हजारो की जान ले सकती है.    
 ०५)ड्यूटी के समय हमें अनेको फाटक ,सिगनल,un -ussual परिस्थितियों से गुजरना  पड़ता है.०६)हम पानी का सेवन तक काम कर देते है.क्यों की हमारे लोको में टोइलेट की व्यवस्था नहीं है.टोइलेट के लिए हमें नेक्स्ट स्टॉप का इंतजार करना पड़ेगा या emergency में गाड़ी को खड़ा कर जाना होगा.  ०७)लगातार बिना पलक गिराए काम करने से आँखों की रोसनी भी कम हो जाती है.  ०८)कोई काम या आयोजन होने पर छूटी मिलना,बड़ा कठिन होता है.हमें छूटी कब मिलेंगा,शायद भगवान को भी नहीं पता.०९)लोको चालक घुस-खोर नहीं होते ,क्योकि इन्हें किसी प्रकार से पब्लिक संपर्क नहीं होता.१०)हमें जितना ड्यूटी दिया जाता है हम उसे ईमानदारी से निभाते है जैसे एक लिपिक अपने काम को कल पर धकेल देगा .वैसा लोकोचालाको के साथ संभव नहीं है.उसे अपने ट्रेन को लेकर नियत स्थान पर जाना ही है. ११)अगर कोई एक्सिडेंट हो जाती है,तब लोको चालको को किसी न किसी तरह एक भागीदारी बना दिया जाता है.१२)रेलवे में लोकोचालाको को ज्यादा सजा मिलाता है.हर आदमी की उंगली लोकोचालाको के प्रति ज्यादा उठती है.१३)काम के घंटे काम हो इसकी मांग बरसो से है पर प्रशासन के कानो पर जू तक नहीं रेंगती है............वगैरह.....वगैरह.....प्रश्न लोगो ने किये  जिनका उत्तर ही मैंने ऊपर नोट किया है.
 साथियों हर किसी को अपने काम से शिकायत है पर आज के इस कलियुग में ,राम मिलना मुश्किल  है.उधिष्टिर मिलना मिश्किल  है .कोई राजा हरीश चन्द्र   बनने को तैयार नहीं.फिर मै न्याय की अपेक्षा कैसे करू . आज बस इतना ही .....इसके आगे की यात्रा -२ , समय मिलने पर बाद में पोस्ट करूँगा.

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