Tuesday, March 1, 2011

......................मौत का घोडा ...................

                           मृत्यु .......मृत्यु.......मृत्यु........के  नाम  से  ही  बहुतो  के  जेहन  में  सिहरन  व्  कपकपी  पैदा  हो  जाती  है  ! आखिर  मौत  या  मृत्यु  है  क्या  ? इसके  बारे  में  बिश्व  विज्ञानं  बर्षो  से  लगे  हुए  है  ! लेकिन  सिधान्त  तौर  पर  कुछ  नहीं  कर  पाया  ! अंततः  धार्मिक  आस्था  ही  सर्वोपरो  परिलक्षित   होती  है  !  सभी  धर्मो  ने  इसे  अपने -अपने  मन्तब्यो  के आधार पर   प्रेषित  किया ! किसी  ने  आत्मा को  परमात्मा  से मिलन  कहा तो  किसी  ने शरीर रूपी चोला  बदलने  की  कला !  किसी  ने  जीवन की  सार्थक  , परिपूर्ण ..सूर्यास्त !..वगैरह - वगैरह...
                             अगर  हम  मान  ले  की  मृत्यु  कुछ है  , तो  क्या  इससे  बचने  के  उपाय  है  ? अगर  है  तो  क्या ? क्या  इससे  कोई  बच  पाया  है ?अगर  बच गया  तो  कहाँ  है ? वगैरह..वगैरह .....मै  कोई  भाविस्यवेत्ता  नहीं , कोई  ज्योतिष  नहीं ...पर  मृत्यु  जैसी  चीज  को  बार - बार देखता  आया  हूँ ...अनुभव  किया  हूँ ..जिसके दो  उदाहरण आप - बीती = ५ और ६  को  पढ़ने  सेमिल  जायेगा   तथा    भविष्य    में   और  पोस्ट  करूँगा !
                  सवाल  यही  ख़त्म  नहीं  होती  ! क्या  मौत  सभी  की  पीछा  करती  है  या  हम  मौत  के सदैव नजदीक  होते  है  ? मेरे   ख्याल  और  भौतिक बिशलेषण  तो  यही  कहते  है  की मौत  एक  होनी / 
     अनहोनी  है , जो  समय  आने  पर  स्वतः  बारूद  के  गोले  जैसा  फूट  पड़ती  है ! सभी  समय  से  ही  मृत्यु      को  प्राप्त  करते  है ...असमय  कुछ  भी  नहीं  हो  सकता  ! इसी   उपरोक्त  कथन  के  प्रमाणिक  हेतु ..आईये एक  सच्ची  घटना  का  जिक्र  ...प्रस्तुत  है ..!
                   तारीख = २५ -०२ -२०११ ,गुंतकल  से  सोलापुर  की  यात्रा  ..गाड़ी  संख्या = १२६२७ सुपर 
  फास्ट  कर्नाटक  एक्सप्रेस ..और  उस  गाड़ी  का  लोको  चालक   मै  ! बिशेसतः  यह  गाड़ी  हमेशा  समय  से  ही  चलती  है ..अगर  लेट ..तो  इसे  इसका  दुर्भाग्य  ही कहेंगे ! उस  दिन ट्रेन  गुंतकल  से  आधे  घंटे लेट छुटी..और  इसे  अगले  स्टेशन  पर  रुकना  पड़ा  क्यों की वहा  से अगले स्टेशन  पर सिगनल  और  पॉइंट   में  कुछ बाधा  उत्पन्न  हो  गया  था !   दस  मिनट  के  बाद  सिगनल  मिला  और  गाड़ी  स्टार्ट  किया !
                          फिर  अगले  स्टेशन  यानी  नेमकल्लू  में  होम (निकट ) सिगनल  पर पचास  मिनट तक  
     रुकना  पड़ा ! पॉइंट  मेन प्राधिकार मेमो मुझे  लाकर  होम  सिगनल  के पास  दिया  और  गाड़ी  को अन्दर
     तक  लेजाने  में  मदद  किया  ! इस  तरह  से  इस  दिन  कर्नाटक  एक्सप्रेस  सवा  घंटे  से  ज्यादा  लेट  हो  
      गयी ! आगे  यात्रा  के  दौरान , रास्ते  में  मन्त्रालयम रोड नामक  स्टेशन  है , जहाँ  गाड़ी  एक  मिनट के  लिए   रात  के चार बज कर पंद्रह  पर   रुकी और  फिर रवाना हो  गयी  ! जब  की यहाँ  इसका समय  से आगमन रात के दो बज कर चालीस मिनट पर है ! यानी  एक  घंटा  पैतीस मिनट  लेट.! फिर  यहाँ  से  गाड़ी  चार  बज  कर  सोलह  मिनट पर प्रस्थान  हुयी ! अगला  स्टेशन  मतमारी  आने  वाला  था ......की  हमने देखा  की  एक  घोडा ....दौड़ते  हुए  ...गाड़ी  के  सामने  आ  गया  और  तेज  गति  से  गाड़ी  के  आगे - आगे, दोनों लाइन  के बीचोबीच  दौड़ाने  लगा , बिचित्र  दृश्य ..वह  भी  इतनी  रात  गए..,जब  की  कभी  भी  हमने  रात  को  किसी  घोड़े  को  लावारिस , इस  तरह  घुमते  नहीं  देखा  था.!
                       हमने  सिटी  बजायी  किन्तु वह  हटा  नहीं  और  दोनों  लाइन  के  बिच  दौड़ता  रहा !  हमने  
  सोंचा वह किनारे  चला  जायेगा ...किन्तु  ऐसा  नहीं  हुआ !वह  आगे - आगे  और गाड़ी  पीछे - पीछे ! आखिर कार मौत  ने  उसे दबोच  लिया ! वह गाड़ी  के  तेज  झटके से लाइन  से  बाहर  जा  गिरा !हमने  अपनी  यात्रा  जारी  रखी ! गाड़ी  खड़ा  करने का  कई  औचित्य  नजर  नहीं  आया  क्यों की  गाड़ी  को भी कुछ  नुकसान  हुआ हो  , इस  तरह  का  अंदेशा नहीं  था ! अगले  स्टेशन  रायचूर में लोको  का  जाँच  करने  पर हमने  पाया  की  कुछ भी  नुकशान  नहीं  हुआ  था !
                  दुसरे  दिन वापसी  यात्रा  के  दौरान यानि  तारीख =२६ -०२ -२०११ , को ट्रेन संख्या = १२६२८ को लेकर आते  समय  हमने  देखा  की  , उस घोड़े  का  मृत शरीर  लाइन  से  दूर  पड़ा  था  ! इस  घटना  का बिष -
 लेषण करने  से  बिदित  होता  है  की -न ट्रेन  लेट  होती  , न घोडा मरता !  उस  घोड़े  की  मृत्यु समय -४.१६ से  ४.२७ बजे के बिच ही  होनी  थी !  नियति  ने  खेल  खेला , गाड़ी  लेट  हो  गयी  और  घोडा  कही  दूर  होने  पर  भी ...समय  से  ट्रैक  के  बिच  आ  गया ! नियति  के  खेल  बड़े  निराले  , कोई  इसे  पराजित  नहीं  कर  सका ..! प्राचीन  कथाओ  में  गिद्ध राज  की  मौत  भी  सुनिश्चित  थी ....यमराज  से  छुपने  के  बाद  भी  न बच  सके  ! ( इसके  बारे  में श्री गगन शर्मा जी का -  " कुछ  अलग सा " में  शीर्षक -" शायद  प्रारब्ध की हर घटना का  स्थान और समय निश्चित होता है " पढ़ने योग्य है   ( चार  दिनों की अवकाश पर शिरडी जा रहा हूँ , अगला पोस्ट वहा से वापस आने के बाद - श्रधा  और सबुरी  . ) 
                           
        

6 comments:

  1. ऐसा कई बार अनुभव किया है की .....हर घटना का स्थान और समय निश्चित होता है "

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  2. विधि के खेल निराले हैं।

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  3. आपने ठीक कहा -जन्म और मृत्यु अपने निर्धारिओत समय पर ही होते हैं.

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  4. वास्तव में स्थूल शरीर की जन्म और मृत्यु प्रकृति की अदभुत घटना है .जन्म और मृत्यु दोनों का समय ही निश्चित जान पड़ते हैं .सूक्ष्म
    अवलोकन से ही बहुत सी बातों का पाता चलता है.वर्ना प्रत्येक पल कितने ही जनम और मृत्यु हो रहे हैं .
    आपका मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आना बहुत अच्छा लगा .कृपया अपने बहुमूल्य विचारों का दान प्रदान करते रहिएगा .

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  5. ऐसा होता है , महाकवि तुलसीदास ने यही 'मानस' में लिखा है -------

    तुलसी जस भवितव्यता , तस तेहि होत सहाय |

    आप न जावत तहाँ पर , ताहि तहाँ लै जाय |

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  6. जन्म और मरण पर उस वाहेगुरु का हक़ हे -शायद उस दिन उस घोड़े का मरण निश्चय था |लाजबाब पोस्ट

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