Sunday, July 31, 2011

चलना ही जीवन है ! ( शीर्षक --डॉ मोनिका शर्मा जी )

कल रेनिगुंता में था !बारिश की फुहार पड़ रही थी ! हौले - हौले ! न जाने कितनी पानी की बुँदे ,जैसे दर्द बन कर गीर रही थी ! टप- टप ! लगता था जैसे सारा वातावरण रो रहा हो ! उमस के बाद ठंढी मिली थी ! बड़ी सुहावन लगी ! जल ही जल ! इसी लिए कहते है - जल ही जीवन है ! बूंद टूटा आसमान से ! धरती पर गीरा ,बहते हुए कुछ मिटा ,कुछ खिला और कुछ अपने अस्तित्व को बचा लिया ! यही तो जीवन है ! इसमे न पहिया है , न तेल ! बिलकुल चलता ही रहता है ! अजीव है यह जीवन ! कितना प्यारा ! कितना दुलारा ! सब चीज का जड़ ! क्या काटना अच्छा होगा ? या संवारना ? 

 सभी को अपने प्राण प्यारे होते है ! थोडा ही सही , किन्तु बहुत प्यारे ! आईये देखते है , वह भी बिना टिकट के ! आज की बात है ! जब मै रेनिगुंता से चेन्नई - दादर सुपर फास्ट लेकर चला ! मेरे साथ हवा चली ! लोको चला और पीछे यात्रियों से भरा कोच ! सभी अपने में मग्न ! मै भी , प्राकृतिक छटाओ को निहारते ,सिटी बजाते , जंगल के मध्य बने दो पटरियों पर , लगातार बढ़ते जा रहा था ! जब ट्रेन जंगल से गुजरती है तो बहुत ही मनोहारी दृश्य देखने को मिलते है ! आप को कोच से जीतनी सुहानी लगती है , उससे ज्यादा हमें ! कभी मोर दिखे तो कभी कोई हिरन छलांग लगा दी !

लेकिन आज जो मै देखा , वह एक अजीब सी लगी ! उस बिन टिकट यात्री को ! जो मेरे लोको के अन्दर चिमट कर बैठ  गयी  थी  ! हम  पूरी ड्यूटी के दौरान ,कई बोतल पानी गटक गए ! रास्ते में कहीं गर्मी तो कही बादल ! रेनिगुंता से गुंतकल की दुरी ३०८ किलोमीटर ! वह बिना पानी और भोजन के एक कोने में सिमटी हुयी जिंदगी की आस में उछल - कूद किये जा रही थी ! जब मेरी नजर उस पर पड़ी ! मै  उसे देखते रह गया ! इतनी सुन्दर  चित्रकारी और बेजोड़ कलाकारी ,वाह ! बार - बार ध्यान से देखा ! अपने सहायक को देखने के लिए विवस किया ! वह भी मुह खोले रह गया  ! इश्वर ने क्या चीज बनायी है !

छोटी सी दुनिया , इतनी खुबसूरत ! आज मेरे लोको में यात्री थी ,बिना टिकट के ! २७५ किलोमीटर तक मेरे साथ रही ! न पानी पी न भोजन  ! उसकी दशा  देख  , मुझे  तरस आ गयी  ! मैंने उससे कह दी तू गूत्ति आने के पहले अपने दुनिया में चली जा ! कब तक बिन खाए पीये  यहाँ पड़ी रहेगी ! शायद वह मेरे मन की बात समझ गयी ! गूत्ति आने के पहले ही वह फुर्र हो गयी ! क्योकि चलना ही जीवन है ! अगर वह और कुछ घडी रुक जाती , तो मौत  निश्चित थी ! मैंने उसमे जुरासिक पार्क के डायनासोर देखें! अब आप भी देंख लें -
 बिन टिकट यात्री !शीशे के पास दुबकी हुयी !
 ट्रेन की गति कम होने पर , जीवन की एक कला   !
 अपनी दुनिया के लिए बेचैन !
ध्यान से देंखें - उसके पंख पर डायनासोर ही तो है !इस्वरीय करामात !
यह तितली अपने को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखते हुए यात्रा करती रही ! ट्रेन के रुकने पर पंख को फैलाना  और तेज गति के समय सिकोड़ लेना , जीवन की बुद्धिमता ही तो है ! हम भी इस मायावी संसार में फैलने और सिकुड़ने में व्यस्त है ! आखिर एक दिन सभी को बिन टिकट यात्रा करनी पड़ेगी ! यही तो कह गयी यह मेरी  प्यारी तितली !

19 comments:

  1. एक बेजुबान को आपने इतनी लम्बी यात्रा करने दी,
    लेकिन अब वह अपने परिवार से कई सौ किलोमीटर दूर आ गयी होगी, शायद फ़िर मिल भी ना सके? कभी नहीं?

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  2. भाए आप कोलकाता कब आ रहे हैं।
    हमें भी लोको में घूमना है।
    बड़ा ही सुंदर वृत्तांत लिखा है आपने।

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  3. मनोज जी प्रणाम ! फिलहाल कोलकाता आने असमर्थ हूँ क्यों की बच्चे पढ़ रहे है ! उनके पढाई में व्यवधान नहीं डालना चाहता ! हो सका तो दशहरा में आउंगा !

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  4. जीवन के सफ़र में राही ... अनूठा सहयात्री!

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  5. वाह! बेहतरीन.
    आपके दिल की कोमलता और सुंदरता को दर्शाती सुन्दर
    पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार.

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  6. प्रकृति के सुन्दरतम दृश्य मुझे लोको में फुट प्लेट करते समय ही दिखे हैं। तितली के मनोहारी चित्र।

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  7. कितने सुंदर चित्र ...बेहतरीन बिम्ब को लेकर प्रस्तुत जीवन दर्शन ..... आभार

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  8. रोचक चित्रमय प्रस्तुतीकरण ।

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  9. वाह! राह में दो पल साथ तुम्हारे , बीते उन को ढूंढ रहा हूँ...शानदार ...

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  10. बदिया लगा जी आपका ब्लॉग ...... और ये शानदार पोस्ट..... फलोवेर बन रहा हूँ .

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  11. sir very nice presentation.Practically happens.

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  12. तितली की मार्फ़त जीवन दर्शन को खंगालती पोस्ट हाँ हम भी तितली की तरह मौके के अनुरूप पंख खोलतें हैं और सिकोड़ भी लेतें हैं और एक दिन बिना टिकिट लम्बी यात्रा पर प्रयाण .

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  13. पूरी संवेदना के साथ लिखि गयी पोस्ट....जीवन का यही सच्चा रंग है,एक तितली ,न कहकर भी बहुत कुछ कह गयी !

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  14. हर आदमी आपकी तरह नहीं सोच पाता है . गहरी सोच से भरी पोस्ट .तितली के चित्र ने तो कमल कर दिया.

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  15. सुन्दर चित्र के साथ बहुत ही रोचक और शानदार प्रस्तुती!

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  16. Beautifully written about this small and mesmerizing creature.

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  17. कृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/http://sb.samwaad.com/
    भाई साहब ,गुरु भाव से जीते ही आदमी के गुरु घंटाल होने का ख़तरा मंडराने लगता है .शिष्य भाव विकास की यात्रा है अनवरत ,नीहारिकाओं को छूने की ......

    http://sb.samwaad.com/

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  18. ओह, हाउ स्वीट :)

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  19. सही कहा -चलना ही जीवन है ..जाने कहाँ-कहाँ ले जाती है जिन्दगी..

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