Monday, August 8, 2011

अपनी मिट्टी और अपनत्व

सुबह सभी को प्यारी होती है ! गर्मी में शीतल हवाए ,वरसात में बूंदा - बांदी, जाड़े में शबनम की बुँदे तथा बसंत में कोयल की कू-कू  सुबह ही तो देखने को मिलती है !.सुबह -सुबह ही पूजा -अराधना होती है ! मंदिरों में घंटिया बजने लगती है ! सुबह सभी शांत और कोमलता से पूर्ण होते है ! इसी समय घर के सदस्यों में प्यार भी देखने को मिलती है ! सूर्य कड़क होकर भी , इस समय उसकी रोशनी ज्यादा गर्म  नहीं होती ! झगड़े भी सुबह नहीं होते ! अतः सुबह की आगमन हमेशा ही खुशनुमा और लुभावन होती  है ! सुबह की हवाए ..प्रेम और जीवन बिखेरती है !


फूल भी सुबह ही खिलते है ! कहते है - सुबह को जन्म लेने वाली संताने अति तेजस्वी , लायक  और चतुर  होते है ! सुबह पढ़ी हुई विषय लम्बे समय तक याद रहती है ! हमें भी इस वक्त सभी अच्छे कार्यो को  लगन से करने की नीति निर्धारण करनी  चाहिए ! इसी तरह जीवन में भी  कई ऐसे क्षण आते है - जब हमें स्वयं  ही , सही वक्त को परखने पड़ते है ! हमारे देश यानी भारत वर्ष में  महंगाई की बिगुल भी आधी रात को पेट्रोल की दर बढ़ा कर की जाती है ! इससे यह साबित होता है की दिन की पहली पहर हमेशा ही किसी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समझी गयी है !


जब मै कोलकाता में था !  उस दिन कड़ाके की सर्दी थी ! घर के सामने सड़क के ऊपर खड़े होकर , हल्की. और कोमल - कोमल  सूर्य की किरणों की रसा - स्वादन कर रहा था ! आस - पास ..पास पड़ोस  के लोग भी थे !  एक योगी घर के पास आये ! उनके मुख से राजा भरथरी के गीत और हाथ सारंगी के ऊपर ! मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे !  कर्णप्रिय ! आकर प्रत्यक्ष खड़े हो गए !  एक क्षण के लिए आवाज और सारंगी पर विराम लग गई  !  वे नीचे झुके और हाथ जमीन पर  कुछ उठाने के लिए बढ़ गई ! देखा ..उन्होंने कुछ मिटटी को अपने हाथो से उठाये ! उनके हाथ मेरे तरफ बढे ! मैंने देखा - उनके द्वारा मिटटी  रगड़ने पर - मिटटी के रंग बदल गए और वह सिंदूर जैसा हो गया ! उस सिंदूर से उस योगी ने मेरे ललाट पर तिलक लगाए ! - " जाओ वेटा घर से कुछ भिक्षा लाओ ! यह योगी दरवाजे पर खडा है ! "


मै घर के अन्दर गया और दो पैसे के सिक्के लाकर ,उन्हें दे दिया ! सभी ने देखा ! कोई कुतूहल नहीं ! साधारण सी घटना ! उस योगी ने पैसे लेते हुए -आशीर्वाद स्वरुप कहा -" जाओ वेटा ,तुम्हारे भाग्य में बहुत तेज है ! दक्षिण  और विदेश सफ़र के योग है ! " और आगे चले गए ! फिर वही भरथरी के गीत और मधुर सारंगी के धुन वातावरण में गूंज उठे ! किसी को इसकी परवाह नहीं ! बात आई और गई सी रह गई ! 


माने या न माने - जब उस योगी के कथनों को कई बार याद किया तो पाया की  उनके वे शब्द अक्षरसः  सत्य लग रहे है ! आज मै दक्षिण भारत में ही हूँ ! जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था ! रही दूसरी बात - विदेश सफ़र की तो वह भी सत्य ही हुई ! पांच -छह माह पूर्व ही मुझे दीपुटेशन पर विदेश जाने के आफर मिले , जिसे मै यह कह कर ठुकरा दिया की मै अपने देश में ही खुश हूँ ! मेरे कुछ साथियों को वह आफर स्वीकार थे और वे जुलाई में विदेश कार्य पर चले गए !


 इस घटना के बाद मैंने अपने माता - पिता और पड़ोसियों  से उस योगी के बारे में जानकारी ली ! सभी ने कहा - वह योगी फिर कभी नहीं दिखे ! उस सुबह की तिलक और वह  स्वर्णिम चक्र आज - तक निरंतर गतिमान  है ! उस स्वप्न और शब्दों को सुनने के लिए कान  ब्याकुल और नेत्र राह देख रहे  है ! ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ? जैसी सोंच वैसी मोक्ष !

 

12 comments:

  1. वह शख्स तांत्रिक होंगे जो आपका चेहरा पढ़ कर बता गए। परंतु ऐसे लोगों से हमेशा बच कर रहें। उनके चमत्कारों पर फिदा मत हों एवं उनका महिमामंडन करके दूसरों को भी उनके चक्कर मे फँसने का मौका न दें।
    मेरे राय मे ऐसे लोगों से हर एक को बचना चाहिए।

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  2. हाँ कई बार ये बाते अविश्वसनीय लगती हैं.... पर ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ?

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  3. शायद सभी के जीवन में ऐसे प्रकरण होते हैं बस किसी पर हम ध्‍यान देते हैं और किसी को साधारण घटना मान लेते हैं। यह सत्‍य है कि अपनी धरती अपनी ही होती है।

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  4. गोरख जी , आज का और इसके पहले वाला ,दोनों सन्देश देखे ! चिंता न करें आपकी भाषा बिलकुल शद्ध है और आपके लेख अति रोचक हैं !आत्महत्या अनुचित है तथा ज्योतिषियों और तांत्रिकों पर अंध विश्वास करना घातक हो सकता है ! भुक्त भोगी हूँ ,अपनी आत्मकथा में कभी न कभी ये दोनों प्रसंग जरूर उठाऊंगा !
    आपका भोला काका

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  5. जय हो! हर घटना का लॉजिकल एक्सप्लेनेशन दिया ही जाये/जा सके, यह ज़रूरी नहीं, हाँ सात्विक और निर्भय होने के साथ-साथ सचेत और शक्तिशाली रहने में कोई बुराई नहीं है।
    शुभकामनायें!

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  6. जिन खोजा तिन पाइयां ,गहरे पानी पैठ
    जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन कैसी .... http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    Wednesday, August 10, 2011
    पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :एक विहंगावलोकन .
    व्हाट आर दी सिम्टम्स ऑफ़ "पोली -सिस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम" ?
    ये अनुभव भी ईश्वरीय प्रसाद है . http://sb.samwaad.com/
    ...क्‍या भारतीयों तक पहुंच सकेगी जैव शव-दाह की यह नवीन चेतना ?
    Posted by veerubhai on Monday, August ८
    बहुत अच्छा काम कर रहें है आप .बधाई .
    But the change in color could be a chemical tric .

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  7. ऊपरवाले तेरे खेल निराले....

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  8. बड़ा ही रोचक प्रसंग रहा यह।

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  9. बहुत सुन्दर, शानदार और रोचक लगा! उम्दा प्रस्तुती!
    You are welcome at my new posts-
    http://urmi-z-unique.blogspot.com/
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  10. बहुत सुन्दर सारगर्भित
    रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

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  11. मेरे स्वप्न अक्सर सच ही निकलते हैं ! और इस बात में कोई दो राय नहीं की अपनी धरती अपनी ही होती है , अमिट प्यार जो है करती !

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  12. कभी कभी इंसान के साथ ऐसा कुछ अचानक घट जाता है कजो मुदतों बाद तक भी सोचने को मजबूर करता रहता है ... कुछ लोग जीवन में ऐसे ही झोंके की तरह आते हैं अपनी खुशबू दे कर ओने मुकाम पर चले जाते हैं लौट कर जीवन भर नहीं मिलते ... every thing is already planned in life ...

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