Wednesday, December 7, 2011

पटरी पर दौड़ती हैं सांसें

                                              तिरुपति रेलवे स्टेसन का बाहरी दृश्य 

किसी भी ट्रेन में सफ़र करते वक्त मुशाफिर की चिंता  होती है सिर्फ अपनी सीट की और अपने गंतव्य की ! मगर उस  ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा भी सफ़र करता है , जिसे सारे मुशाफिरो की फिक्र होती है !ये व्यक्ति इंजन / ट्रेन का लोको पायलट ( ड्राईवर )होता है ! देखने सुनने में लगता है की इसका काम बहुत आसान है  की इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी अपने - आप पटरियों पर दौड़ने लगती है ,  हजारो जानो  को सही - सलामत उनके अपनो तक पहुँचाने का काम किसी इबादत से कम नहीं है ! रेल इंजन का ड्राईवर / लोको पायलट होना यानि पहियों के साथ अपनी सांसों को भी पटरियों  पर दौड़ना ,  वक्त की पावंदी और न ठहरने का तय मुकाम ....बस चलते जाना ! यही लोको पायलट / ड्राईवर की पूरी जिंदगी का असली सार है !


                                 बड़ा मुश्किल है --  

रमाशंकर तिवारी ( लोको पायलट ) के अनुसार --" अब काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है ! रेस्ट के  घंटो में भी  वर्किंग से उब गए है ! अफसर है की समझने को तैयार नहीं और हमारे साथ लगातार ज्यादातिया हो रही है !"

( भास्कर  )

4 comments:

  1. आपका वर्णन और रमाशंकर तिवारी जी का बयान एकदम सही बात को उठाता है। आप लोग का कार्य वाकई महत्वपूर्ण और बेहद ज़िम्मेदारी भरा है।

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  2. समझ सकते हैं सभी लोग ..... काम सच में
    जिम्मेदारी भरा है.... सही में हजारों जानों की सोचनी होती है ...

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  3. सलामत रहे आपका ज़िन्दगी को जीने का ज़ज्बा .दयानतदारी .दोस्ती दोस्तों की .खूबसूरती अन्दर बाहर की केमरे की खूबसूरत नजर की .
    बस यही तो है इस देश में अपनी हिफाज़त खुद करो जियो चाहे मरो .शाशन प्रशाशन का कोई जिम्मा नहीं .कुछ को कोल्हू का बैल बने रहना हैं लोको पायलट सा .पटरियों पर खुद की ही साँसें गिनते रहना है और कुछ के लिए खुल खेल फरुख्खाबादी न कोई काम न धाम पूरा महीना हराम खोरी पूरी तनखा पहली को .

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  4. एक और दुनिया से वाकिफ करवाया है आपने हर पोस्ट में एक इमानदार ज़िन्दगी से रु -बा -रु करवातें हैं आप .लोको -पायलट की साँसें .गिनवाई हैं आपने .

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