Wednesday, July 4, 2012

पढ़े लिखे अनपढ़

रेलवे हमें भारतीयता की पहचान  दिलाती है !रेल ही हमें एकता का सन्देश देती है ! यह देश के एक भाग से दुसरे भाग को छूती है , जोड़ती है ! एकता का ऐसा मिसाल शायद ही कोई होगा ! हमें सैकड़ो वर्षो तक गुलाम रहने पड़े ! फिर भी शासको को भारत की उन्नति की ओर ध्यान खींचता रहा ! इसकी एक मिसाल रेल और उसकी स्थापना है ! वृतानियो को अपने देश से रेल को आयातित करने पड़े ! तब  जाकर भारत में रेलवे की नीव पड़ी ! अकसर लोग कहते मिल जायेंगे कि देश में रेलवे को काफी आमदनी है ! रेलवे  चाहे तो सोने की पटरी बिछा सकती है ! बिलकुल सही - भावना ! दूसरी तरफ -लुटेरे इसे कंगाल बनाने में पीछे नहीं रहते ! वर्षो अंग्रेजो ने लूटा - अब भारतीय लूट रहे है ! लूटेरो की भीड़ इतनी बढ़ गयी है कि सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ! जो इमानदार है , उनकी कोई अस्तित्व नहीं !

बचपन में जब रेल गाड़ी की छुक - छुक या -भक - भक की आवाज सुनता तो इस कार्य को  करने की इच्छा मन में हिलोरे लेने लगती थी  ! कौन  ..जाने की  यह एक दिन  सच में बदल जाएगा ! गाँव या वनारस / बलिया जाने के लिए हावड़ा स्टेसन से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी ! उस  समय ट्रेनों में जनरल कम्पार्टमेंट ज्यादा और रिजर्व कम होते थे ! पढ़े-  लिखे लोगो की संख्या कम हुआ करती थी ! साधन संपन्न रिजर्व करके यात्रा करते थे ! साधनों की कमी ! यात्री ट्रेन पर चढने के पहले ,  कईयों से - बार बार पूछते थे की फलां  ट्रेन / यह ट्रेन कहाँ जा रही है  ! पूरी तरह चेतन होने के बाद ही ट्रेन पर चढते थे ! यात्रा के दौरान पूरी तरह से सजग ! घर से चलने के पूर्व ही घर के बुजुर्ग सन्देश हेतु कहते थे - किसी के हाथ का  दिया हुआ नहीं खाना  जी ! न जाने - क्या क्या मिला हुआ होता है ! यात्रा भी बड़े ही गंभीरता   के साथ गुजरती थी ! मजा भी था और यात्रा के समय अपनापन भी !

आज - कल कुछ बदला सा ! ट्रेनों की संख्या सुरसा के मुख की भाक्ति दिनोदिन और प्रति बजट में  बढ़ती जा रही है ! शिक्षा का समुद्र लहरे मार रहा है ! अनपढो की संख्या काफी कुछ कम हो गयी है ! ट्रेनों में कोचों की संख्या काफी बढ़ गयी है और बढ़ते जा रही है ! जनरल डिब्बो की संख्या कम हो गयी है ! उनकी जगह आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बो की संख्या की बढ़ोतरी ने ले ली  है ! जन सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है ! आरक्षण की अवधि एक सप्ताह से पखवाडा , पखवाडा से महीना   और महीना  से कई महीनो में बदल चूका है ! फिर भी तत्तकाल पर मारा-  मारी ! वह शांति दूत भारत , अब अशांत सा भागम- भाग में शरीक है ! भागने वाले को यह भी पता नहीं कि  वह किस जगह बैठा /  खड़ा / घुस चूका है ! एक छोटा सा उदहारण --

कल सिकंदराबाद से गरीब - रथ काम कर के आ रहा था ! नाम से परिलक्षित है की यह ट्रेन गरीबो द्वारा इस्तेमाल होती है ! किन्तु वास्तविकता कुछ और है ! इस ट्रेन को चलाने की मनसा... मंत्री जी के मन में क्या थी ? वह मै  नहीं कह सकता ! पर  इतना जरूर है , इसे साफ्ट वेयर इंजिनियर और एक बड़ा शिक्षित तबका जो मेट्रो पोलिटन शहरों में जीवन यापन कर रहा है / से जुड़े हुए है ..100% कर रहा है ! ऐसे लोगो से गलती की अपेक्षा भी करना जुर्म होगा ! किन्तु बार - बार ... प्रति ट्रिप ...चैन  खींचना कोई  इनसे सीखे ! जी हाँ .. यह बिलकुल सत्य है , हम लोको पायलट इन पढ़े लिखे  अनपढ़ लोगो से परेशान हो गए है ! आप पूछेंगे ..आखिर क्यों ?

बात यह है की सिकंदराबाद - यशवंतपुर गरीब रथ 19.15 बजे सिकंदराबाद से चलती है और सिकंदराबाद -विशाखापत्तनम गरीब रथ ..20.15 बजे ! दोनों की दिशाएं भी अलग है ! समय से यशवंतपुर गरीब रथ चलती है और विशाखापत्तनम के यात्री इस ट्रेन में आ कर बैठ जाते है ! ट्रेन के चलने के बाद , जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण  भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ !  आप भी सोंचे ? इसे  क्या कहेंगे -आज का पढ़े लिखे अनपढ़ !

16 comments:

  1. ये लोग अपनी हडबडाहट/जल्दबाजी/नासमझी या फिर मूर्खता से दुसरे यात्रियों को मुसीबत में डालते हैं...

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  2. इसे आप कन्फ्यूज़्ड क्लास कह सकते हैं, चाहे ये कितने ही पढ़े-लिखे क्यों न हों. रेलवे का इससे कितना नुकसान होता है ये नहीं जानते. बढ़िया लेखन.

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  3. aise padhe likhe anpadhon par sakht jurmane ka pravdhan hona chahiye...ye kitane logo ka samy barbad karte hai nahi jante..

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  4. ऐसे पढे-लिखे अनपढ, बन्दर के हाथ तलवार होने का सटीक उदाहरण हैं। जब चेन खीँचकर पूरी ट्रेन रोक सकते हैं तो साइन पढने की क्या ज़रूरत? अपनी ही ग़लती और अपनी ही सुविधा के लिये ऐसी मनोवृत्ति के लोग अपने आसपास के सैकड़ों लोगों की असौविधा का कारण बनते हैं।

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  5. सच है .... इन्हें यह विचार ही नहीं आता कि इनका ऐसा व्यव्हार न जाने कितने लोगों के लिए समस्या बनता है....

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  6. सही कहा ...पढ़े लिखे अनपढ़ ....भरे हुए हैं देश में ...

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  7. हम तो इन्हें पढे लिखे बेवकूफ ही कहेगे,,,,,और क्या ,,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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  8. आपकी रोचक धाराप्रवाह प्रस्तुति बहुत अच्छी व जानकारीपूर्ण लगी.
    हमें सभ्यता का व्यवहार करना सीखना ही होगा.
    वर्ना परेशान करते कराते रहना ही हमारी नियति रहेगी.

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  9. धीरे धीरे ट्रेनों की इस भीड़ में रहना सीख जायेंगे यात्री, मुम्बई में लाखों यात्री बैठते हैं प्रतिदिन..

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  10. आजकल दादागिरी ... दबंगई का ज़माना ज्यादा है ... पड़े लिखे होने से क्या फरक पड़ता है ... शर्म आती है ऐसे लोगों पे जो परेशान करते हैं सह यात्रियों को ...

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  11. बिल्‍कुल सही कहा आपने ... सशक्‍त प्रस्‍तुति

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  12. डेली पैसेंजर के धंधे , सन्डे को ही पड़ते मंदे |
    जानबूझकर ट्रेन पकड़ते, रखे इरादे गंदे गंदे |
    पढ़े-लिखे हैं इसीलिए तो, मूर्ख समझते हैं दूजे को-
    गली में खुद को शेर समझते, खता खुदा से करते बन्दे ||

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  13. sir---
    bahut hi sateek chitran kiya hai aapne aaj kal ki triao ki vastu- sthiti ka
    ek sashakt prastuti karan -----
    poonam

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  14. ऐसा भारत में रोज़ होता है आइन्दा पचास सालों तक भी होता रहेगा .ये लोग तो जहाज हवाई में भी दौड़ के चढ़तें हैं .

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  15. पढे लिखे बेवकूफ
    try to find 1 one will find millions

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  16. जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ ! आप भी सोंचे ? इसे क्या कहेंगे ..
    पढ़े लिखे मूर्ख बुद्धू ..और क्या कहेंगे ..लूटम खसोट तो मची ही है कैटरिंग से विस्तर रख रखाव सब में खाना अधूरा मिलता है तो पानी नहीं कहीं अँधेरा कहीं सफाई की समस्या ..जेब कतरों की लगता है इसमें भर्ती की गयी हो कमा के लायें और खाओ ..अच्छा झरोखा ..सुन्दर ..जय श्री राधे
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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