Thursday, December 13, 2012

दुरंतो

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो  में हिंसा का बहुत ही कम स्थान है । स्वाभाविक है की इस धर्म के अनुयायी भी नर्म , शांत और भाई- चारे से ओत प्रोत होंगे ही । यहाँ किसी धर्म विशेष के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूँ । प्रसंग वश कहने पड़ते है । उस दिन रविवार था अर्थात दिनाँक 9 वि दिसम्बर 2012 ।  गुंतकल से दुरंतो  ट्रेन लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । 424 किलो मीटर की दुरी तय करनी थी । वैसे ट्रेन हमेशा ही समय से चलती है । पर उस दिन देर से आई पांच बजे सुबह  , वजह था बंगलुरु मंडल में रेल  लाइन में वेल्ड फेलुर । एक बार गुंतकल से ट्रेन चली तो सिकंदराबाद के पहले कहीं नहीं रुकती है । 

अब आप सोंच सकते है की लोको पायलटो  के ऊपर क्या गुजरती होगी , जब उन्हें संडास /पेशाब की जरुरत महसूस हो । लोको के अन्दर इसकी कोई सुबिधा नहीं है । पानी पीना बंद , नास्ते    बंद । ट्रेन की गति थमने की नाम नहीं लेती । दुरंतो जो है । इस हालत में स्वास्थ्य को ठीक रख पाना   कितना मुश्किल है । यह हमारे जीवन की रोज - मर्रा  और भोगने वाली प्रक्रिया  है । यही वजह है की लोको पायलटो को  सुगर / बीपि खाए जा रही  है ।  " ये भी कोई जीवन है ।"- एक सहायक ने गंभीर हो कहा था ।

 " रेल प्रशासन को कुछ करना चाहिए । आखिर अफसर किस लिए है ?"- एक बार यात्रा के दौरान एक यात्री ने प्रश्न किया  था । आप समझते है । वो समझे तब न । बगल वाले ने प्रश्न जड़ दिया । अजीब सा लगता है , जब यात्रा के दौरान साधारण सी पब्लिक बहुत कुछ कह देती है , जो हमारे जिह्वा पर नहीं आते । आखिर क्यों सत्ताधारी /प्रशासनिक अधिकारी अपने सूझ - बुझ से कल्याणकारी योजनाओ को मूर्त रूप नहीं देतें ?

लिंगम्पल्ली  और हाफिजपेट  के बीच  महज चार किलोमीटर का फासला है । दिल धड़क उठा जब एक दो वर्ष का लड़का  पटरी के बीच में आ गया । सिटी बजाये जा रहें थे । अब कुछ करे , तब तक उसकी माँ सामने आती ट्रेन को भांप ली और तुरंत देर किये बिना बच्चे को पटरी से बाहर  खिंच ली । लोको के अन्दर चार व्यक्ति थे । सभी के मुह से चीख निकल गयी । हे भगवान ! आप की कृपा अपरमपार   है । लोको के अन्दर एक अफसर भी थे , घबडा सा गए । अभी थोड़ी आगे ही बढे थे की फिर दो लडके करीब ग्यारह के आस - पास के होंगे , अपनी साईकिल को रेल के बीच  रख कर विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेन को देखने में व्यस्त । सिटी बजती रही , हाई टेक सिटी के प्लेटफोर्म पर खड़े लोगो ने शोर मचाई और वे दोनों लडके ट्रेन के आने की आभास होते ही ,सायकिल को तुरंत रेल की मध्य से बाहर खिंच लिए । ट्रेन  तीब्र  गति से आगे निकल गयी ।फिर कुछ दुरी पर एक महिला मरने से बची । एक ब्लाक के बीच .. तीन  जीवन को जीवनदान मिली ।
सब कुछ उसके हाथ में है , हम तो वश एक आधार /कारक  है । ॐ साईं
 

4 comments:

  1. जाको राखे साइयां मार सके न कोय,,,,
    बढिया प्रस्तुति, बधाई।

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  2. हम तो बस अपना कर्म कर सकते हैं, बाकि सब उपर वाले के हाथ है, जय राम जी की.

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  3. निश्चय ही यह सुविधायें लोकों में हों।

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  4. ओह, इन सब बातों पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है!

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