Friday, July 26, 2013

लघु कथा - धीमे चलिए , पुल कमजोर है

कौड़ी के मोल जमीन खरीदकर हीरे के दाम पर  ठेकेदारी बेंची जा रही थी । बड़े ओहदे वाले लाल -लाल हो रहे   थे . नीतीश को अभियंता हुए कुछ ही दिन हुए थे . एक समय था , जब उन्हें बाजार पैदल चलकर ही जाना पड़ता था . आज उसके पास सब कुछ है . दो कारे  , कई दुपहिये और निजी पसंद के बंगले में  कई नौकर चाकर . आस पडोश वाले  शान देख हैरान थे . 


कहते है - जब उसकी नौकरी लगी ,  सभी ने उसकी  उपरवार कमाई के बारे में जानने की कोशिश की थी . नीतीश बहुत इमानदार प्रवृति का था . यह कह कर बात टाल देता की सरकारी तनख्वाह काफी है . साथी कहते कि सरकारी तनख्वाह तो ईद का चाँद है यार . वह झेप जाता था . 


परिस्थितिया बदलती चली गयी . ईमानदारी बेईमानी में बदल गयी . नीतीश  इतना बदल गया कि उसे सरकारी तनख्वाह कम पड़ने लगे . अंग्रेजो द्वारा बनायीं हुयी पुल को तोड़ दिया गया , जिसके ऊपर अभी भी ७५ किलो मीटर की गति से बसे चलती थी . नए पुल का निर्माण किया गया . करोड़ो रुपये लगाये गए . धूमधाम से उदघाटन हुए थे और पुल के दोनों किनारों पर ,एक वर्ष के भीतर ही सूचना बोर्ड लग  गया था . जिस पर लिखा था - 

" धीमे चलिए , पुल कमजोर है "


5 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ लाजबाब व्यंग,,,

    RECENT POST: एक दिन

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  2. The translator gadget does not translate the script.
    I do like your photo. Looks like the water is very high.

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  3. समय के बदलाव को नितीश समझ गया .. या ज़माने ने समझा दिया ...
    जो भी हुआ ... बुरा तो हुआ .... पर किसका कसूर ...

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  4. बेहद सशक्त सम्प्रेषण लघु कथा लिखिए जान है आपकी कलम में .ॐ शान्ति .

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  5. बहुत बढ़िया लघुकथा ...

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