Friday, August 9, 2013

मृत्यु की बोनस जिंदगी

उस दिन की घटना कैसे भुलाई जा सकती है । हम लोको पायलटो का जीवन ही ऐसा है । रोजमर्रा के किसी भी कार्य की  कोई समय बद्धता नहीं होती । जीवन तो जीवन है , मृत्यु भी हमें अपनो से अलग कर देती है । परिवार से सदैव अलगाव पन  की परिस्थितिया नाना प्रकार की समस्याओ को जन्म देती है । मानसिक कुंठा घेर लेती है । ऐसा ही कुछ , इब्राहीम के परिवार में आज की रात की व्यथा गम की हवा विखेर दी  थी । 

उस लोको पायलट का नाम इब्राहीम था । कुछ ही देर पहले माल गाडी लेकर आयें थे  । रात्रि के साढ़े बारह हुए होंगे । अभी साईन ऑफ भी नहीं कर सके थे  । वाश - वेसिन में हाथ धोते समय , उन्होंने  ह्रदय में दर्द महसूस की  और सीने पर हाथ रख , अचानक फर्श पर गीर पड़े थे  ।

लॉबी में उपस्थित जिन्होंने भी देखा , घबडा ये सा  उस तरफ दौड़े । वह निःसचेत पड़ गए  थे  ।  जिसे जो जान पड़ा , मदद करना चाहा  । किन्तु किसी के वस में कुछ नहीं था । उनके  प्राण - पखेरू उड़ चुके थे । उन्हें  तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र में  ले जाया गया । डॉक्टर ने उन्हें औपचारिक रूप से मृत घोषित कर दिया । कैसी बिडम्बना थी ,मौत ने उन्हें परिवार के  किसी से मिलने का अवसर प्रदान नहीं किया  था ।  ऐसा लगता है - वह मृत्यु द्वारा दी गयी बोनस की आयु के अंतर्गत जी रहे थे  । वह कैसे ? आयें विचार करें -

एक बार हम सभी लोको पायलट रायचूर रनिंग  रूम में बैठ कर समाचार पढ़ रहे थे ।उस  समय मै सहायक लोको पायलट था । हमारे बिच इब्राहीम जी भी थे । आपसी वार्तालाप और बातो -बात में सर्प का प्रसंग छिड़ गया । किसी ने कहा - इस रनिंग रूम के अन्दर बहुत सांप है , हमें सावधान रहना चाहिए । कईयों ने हामी भरी थी । और यही वास्तविक  सच्चाई भी थी । हमें कभी कभार सांप दिखाई देते थे और केयर टेकर उसे मार डालते थे । इब्राहीम जी  सभी के बातो को सुन रहे थे । सहसा हँसे और बोले - " मै एक बार सांप के मुंह से बच चूका हूँ । अभी बोनस की जिंदगी जी रहा हूँ , अन्यथा कई वर्ष पहले इस दुनिया को  अलविदा  कर दिया होता ।  कभी सोंचता हूँ तो शरीर  में सिहरन दौड़ जाती है , अल्लाह ने मदद की थी । "

हम उस समय रेलवे में नए - नए आये थे । शायद १९८८ की घटना है । हम रनिंग स्टाफ की  कहानी और किस्से सुनने  के बहुत शौक़ीन थे । किसी ने उनसे उस घटना को प्रस्तुत करने के लिए आग्रह कर दिया था । इब्राहीम जी ने कहा कि  एक बार वे इसी रनिंग रूम में अपने बैग को  ,अपने बेड के निचे रख कर सो रहे थे । बैग का जीप खुला हुआ था । आधी रात के बाद whitefield  गुड्स को कार्य करने का काल बुक मिला । मै सोकर उठा और बाहर रखे यूनिफार्म को पहन लिया तथा बैग का जीप बंद कर ड्यूटी के लिए लॉबी में आ गया । लॉबी जाते समय बैग भारी लग रहा था । लॉबी में साईन ऑन किया । गुड्स ट्रेन का चार्ज लिया । ट्रेन चलाकर गुटी जंकशन तक आया । गूटी में साईन ऑफ भी किया  और फिर घर आ गया । 

घर में जब टावेल निकलने के लिए बैग का जीप खोला ,उसमे से सांप के फुफकार की आवाज आई और एक लम्बा सांप बाहर निकलने लगा । घर के अन्य सदस्य अचंभित हो गए । उस सांप को मार दिया गया । मेरी पत्नी ने अल्लाह से दुआ के लिए हाथ ऊपर उठा  लिए और कहने लगी - " अल्लाह का शुक्र है , जो तुमने चलती ट्रेन में बैग नहीं खोले । अन्यथा यह सांप तुम्हे डंस लेता था "  

यह सुन हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा और तरह - तरह के प्रश्न उठने लगे ?

रनिंग रूम में रात के अँधेरे में बैग के अन्दर हाथ डालने पर क्या हो सकता  था ?
लोको के गति के दौरान बैग का जीप खोलने पर क्या हो सकता था ?
रायचूर और गूटी लॉबी के अन्दर बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?
घर में अन्य किसी के द्वारा बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?

यानी हर परिस्थिति खतरे से खाली नही थी । उनके साथ घटी यह घटना , हमारे शरीर में भी शिहरण पैदा कर देती है । इस नियति के खेल बड़े निराले है । शायद इब्राहीम जी को रेलवे प्रांगन में ही , आखिरी साँस लेनी थी । हम रनिंग स्टाफ की जिंदगी रेलवे के लिए अनमोल और परिवार वालो के लिए आस्था का विषय है । सबसे  ज्यादा विरह - वेदना पत्नी को सहने पड़ते है । जिसकी आँखे हमेशा दरवाजे की ओर एक टक इंतजार में डूबी रहती  है । प्रियतम कब सकुशल घर आयेंगे ?

अल्लाह इस ईद की उपलक्ष में इब्राहीम जी की आत्मा  को शांति दें ।
 


5 comments:

  1. ईश्वर इब्राहीम जी की आत्मा को शांति दें ।,,,

    RECENT POST : तस्वीर नही बदली

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  2. "अल्लाह इस ईद की उपलक्ष में इब्राहीम जी की आत्मा को शांति दें ।"
    हमारा भी स्वर इस प्रार्थना में शामिल!

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  3. ईश्वर इब्राहीम जी की आत्मा को शांति और उनके परिजनों को शक्ति दे!

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  4. जाको राखे सांईया मार सके न कोय।

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  5. दुखद ही होती हैं ऐसी घटनाएँ..... :(

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