Wednesday, January 22, 2014

आधा घंटा पहले का निर्णय

मै अपने पाठको के समक्ष हमेश ही सत्य और प्रमाणिकता से जुड़े विषयों को प्रस्तुत करते रहा हूँ , चाहे कहानी हो या अनुभव । कभी -कभी अति आश्चर्य होता है , जब सत्य सामने खड़ा हो  और हम उसे समझ पाने या अनुभव कर सकने में अक्षम हो जाते है । कही ऐसा तो नहीं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता ? जो भी हो , हवा की रूख भापने वाले संभल जाते है । हमारे शरीर  का निर्माण पाँच तत्वो  से हुआ  है । अतः यह स्वाभाविक है कि इनमे से किसी के अपनत्व  का संपर्क एक अजीब सा अनुभव ही देगा । 

हम लोको चालको का कार्य स्थान्तरित होते रहता है । कभी इस शहर में तो कभी उधर । यात्री गाड़ी हो तो अनुभव के अवसर बहुत मिलते  है । तरह - तरह के यात्रियो से संपर्क बनते है । हर किस्म के लोग संपर्क में आते है । इस अनुभव और प्रश्नो कि लड़ी उस समय और बढ़ जाती है ,जब किसी बाधाबश गाड़ी देर तक रूक गई हो । यात्री  झुण्ड के झुण्ड लोको के पास आ खड़े होते है । प्रश्न वाचक चेहरे , प्रश्न वाचक शव्द -हमे संयम कि पटरी पर ला घसीटते है । 

लाख करें चतुराई पर विधि कि लिखन्ती को कोई टाल नहीं सका है । अगर ईश्वर है , तो कालनिर्णय का चांस सभी को देते है । कोई जरूरी नहीं कि आप भी इस मत से सहमत हों । उस दिन ऐसा ही कुछ हुआ था । मै अपने को -लोको चालक के साथ सिकंदराबाद आरामगृह में कॉफी कि चुस्की ले रहा था । ठंढ लग रही थी । सबेरे का वक्त था । अभी - अभी बंगलूरू - हजरतनिजमुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस को काम करके आयें थे । वि. आर. के. राव ने कहा -मै अपोलो अस्पताल जाकर आता हूँ । आप नास्ता कर लेना । मैंने पूछा - ऐसी क्या बात है ? 

उन्होंने जो बताएं वह इस प्रकार है --
" मेरे सम्बन्धी एक अपार्टमेंट हैदराबाद में ख़रीदे है । उन्होंने  शिफ्ट करने के पहले दूध गर्म और गृहप्रवेश कि पूजा हेतु , गुंतकल से  सपरिवार अपने कार से हैदराबाद आ रहे थे । वे लोग रात को ग्यारह बजे यात्रा शुरू किये । रास्ते में एक बजे कार चालक ने कहा -मुझे नींद आ रही है । एक घंटा सोना  चाहता हूँ । चालक को अनुमति मिल गयी । कार को सड़क के एक किनारें पार्किंग कर सो गया । कुछ आधे घंटे ही हुए होंगे , मेरे रिस्तेदार ने उस चालक को आगे चलने को कहा , क्यूंकि सुबह का मुहूर्त छूट सकता था । 

अल साये हुए चालक और कार चल दी । यात्रा के दौरान कुछ दूर जाने के बाद चालक ने कंट्रोल खो दी और कार ने पलटी मारी । सभी रात  भर घायल अवस्था में कार में पड़े रहे । किसी वाहन चालक या पथिक  ने उनकी सुध नहीं ली । सुबह आस - पास के गाव वालो की नजर पड़ी और उनके मदद से मेरे रिस्तेदार अपोलो में भर्ती है । सभी को गम्भीर चोट पहुंची है । "

जी हाँ । यह घटना पिछले माह कि है । अब वे लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके है । आधा घंटा पहले का निर्णय महंगा पड़ा ? या नियति में यही लिखा था ? या कर्म के परिणाम थे ?या अपार्टमेंट अशुभ था ? जो भी हो हवा और अग्नि में जरूर फर्क होता है । 

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