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Friday, March 11, 2016

नपुंशक

आज कल शिक्षा का क्षेत्र  काफी विकसित हो गया है । जो समय की मांग है । वही इस शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले भरपूर सेवा का योगदान नहीं देते है । सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए , वह भी आराम की तथा ज्यादा सैलरी होनी चाहिए किन्तु अपने फर्ज निभाते वक्त आना कानी करते है । कई तो कोई जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते । किस किस विभाग को दोष दूँ समझ में नहीं आता । ऐसा हो गया है की सरकारी बाबुओ और अफसरों के ऊपर से विश्वास ही उठता जा रहा है । आज हर कोई किसी भी विभाग  में किसी कार्य के लिए जाने के पहले ही यह तय करता है कि उसका कार्य कितने दिनो में संपन्न होगा और उसे कौन कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा  । वह दोस्तों से अधिक जानकारी की भी आस लगाये रखता है  ।

क्या यह सब सरकारी विफलताओं को दोष देने से दूर हो जायेगा ? कतई नहीं । हम सभी का सहयोग बहुत जरुरी है । बच्चे का जन्म होते ही उसकी जिम्मेदारिया बढ़नी शुरू हो जाती है । वह किसी की अंगुली पकड़ कर चलने का प्रयास करता है । उसे अपने माता -पिता के प्यार से आगे की कर्मभूमि का ज्ञान शिक्षण संस्थाओ से मिलता है । उस ज्ञान का दुरूपयोग या उपयोग उसके शैक्षणिक  शक्ति पर निर्भर करता है । पुराने ज़माने में गुरुकुल या छोटे छोटे स्कुल हुआ करते थे । हमने देखा है उस समय  शिक्षक और शिष्य में एक अगाध प्रेम हुआ करता था । दोनों एक दूसरे की इज्जत करते थे । मजाल है की शिष्य गुरु के ऊपर कोई आक्षेप गढ़ दे या गुरु शिष्य पर क्यों की आपसी मेल जोल काफी सुदृढ़ होते थे । उस समय नैतिक विचार नैतिक आचरण सर्वोपरि थे । छोटे बड़ो की इज्जत और बड़े छोटे को भी सम्मान देते थे । कटुता और द्वेष का अभाव था । ऐसे गुरुकुल या शिक्षण स्कुल से निकलकर आगे बढ़ने वालो के अंदर एक उच्च कार्य करने की क्षमता थी । शायद ही कभी कोई किसी को शिकायत का अवसर देता था । इस तरह एक स्वच्छ समाज और देश का निर्माण होता था । 

आज कल की दुर्दसा देख रोने का दिल करता है । शैक्षणिक संस्थान व्यवसाय के अड्डे बनते जा रहे है । शिक्षा के नाम पर कोई सम्मान जनक सिख तो दूर समाज को बर्बादी के रास्ते पर चलने को उकसाए जा रहे है । शैक्षणिक संस्थान रास लीला , नाच और गान के केंद्र बनते जा रहे है । नयी सोंच और नयापन इतना छा गया है कि कभी कभी बेटे  बाप को यह कहते हुए शर्म नहीं करते कि चुप रहिये आप को कुछ नहीं पता । अब आप का जमाना नहीं है । पिता के प्रति पुत्र का आचरण आखिर समाज को किधर मोड़ रहा है । बलात्कार , देश के प्रति अनादर , व्यभिचार समाज में इतना भर गया है और हम नैतिक रूप से इतने गिर गए है कि अगर कोई बहन को भी लेकर बाहर निकले तो देखने वाले तरह तरह के विकार तैयार कर लेते है , फब्तियां कसेंगे देखो किसे लेकर घूम रहा है। ऐसा नहीं है  की सभी ऐसे ही है पर अच्छो की संख्या नगण्य है । उनको कोई इज्जत नहीं मिलती । 

हमारे रेलवे में दो रूप है । प्रशासक और कर्मचारी । आज सभी शिक्षित है चाहे जिस किसी भी रूप में कार्यरत हो ।कर्मचारियों को हमेशा उत्पादन देना है जिसे वे हमेशा जी जान से पूरा करते है चाहे दस आदमी का कार्य हो और उस दिन 5 ही क्यों न हो । इस असंतुलन से कर्मचारी सामाजिक  , पारिवारिक , धार्मिक और राजनितिक उपेक्षा से प्रभावित हो जाते है । क्या एक कर्मचारी किसी गदहे जैसा है ? जो मालिक को खुश करने के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देता है । क्या कहे हम तो मजदूर है नीव की ईंट से लेकर  भवन के कंगूरे को सजाते है । फिर भी हमारी जिंदगी नीव की ईंट के बराबर ही है  । सभी कंगूरे की सुंदरता देखते है नीव की ईंट पर किसी का ध्यान नहीं जाता । शायद उन्हें नहीं मालूम की यह भव्य सुंदरता नीव की ईंट पर ही ठहरी है ।प्रशासक उन उच्च श्रेणी में आते है जो हमेशा  कर्मचारियों पर बगुले की तरह नजर गड़ाये रहते है । इन्हें विशेषतः उत्पादकता को बढ़ाना तथा कर्मचारियों के कल्याणकारी योजनाओ को सुरक्षित रखना होता है  । जो एक क़ानूनी दाव पेंच के अंदर क्रियान्वित होता या करना पड़ता  है । यह भी एक जटिल क़ानूनी प्रक्रिया के अनुरूप होता है । लेकिन ज्यादातर देखा गया है की प्रशासक इस क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करते  है जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो सके । मेरा अपना अनुभव है की अच्छे प्रशासक बहुत कम हुए है और है । आज कल इन्हें अपने को दायित्वमुक्त व् फ्री रखने की आदत बन गयी है । ये सब उपरोक्त सड़ी हुयी शिक्षा का असर ही तो है । कौन अच्छा अफसर है ? आज कल समझ पाना बड़ा मुश्किल है । आम आदमी यही सोचता है की चलो ये अफसर ख़राब है तो अगला अच्छा है , आगे बढे। काम जरूर हो जायेगा । किन्तु सच्चाई कुछ और ही होती है । 

इसे आप क्या कहेंगे ? 

उस दिन जब बंगलुरु स्टेशन पर  बॉक्स पोर्टर ने मेरे बॉक्स को पटक कर बुरी तरह से तोड़ दिया था । जुलाई 2015 की घटना है । मैंने इसकी सूचना सभी को दी चाहे मेरे मंडल का अफसर हो या बंगलुरु का । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी । मुझे संतोष नहीं हुआ और मैंने फिर एक लिखित शिकायत मंडल रेल मैनेजर बंगलुरु को भेजा । इसकी कॉपी अपने मंडल रेल मैनेजर को व्हाट्सएप्प से भेजा । फिर भी कोई न कारवाही हुयी और न enquiry । शायद छोटी और अपने स्टाफ की शिकायत समझ इस पर कोई कार्यवाही करना किसी ने उचित नहीं समझा । अगर वही हमसे कोई गलती हो जाय तो हमें नाक पकड़ कर बैठाते है । उस पर धराये लगाकर सजा की व्यवस्था तुरंत करते है क्यों की उनके लिए ये आसान है । ऐसे समाज और कार्यालयों  की त्रुटियों को आखिर बढ़ावा कौन दे रहा है ।  शायद हमारे सड़ी हुयी शिक्षा का प्रभाव है । जिसे इन नपुंशक अफसरों की वजह से औए बढ़ावा मिलता है और एक दिन यह एक नासूर बन जाता है । आज कल ऐसे नासूरों का इलाज करना अति आवश्यक हो गया है । आखिर इसका इलाज कौन करेगा ? 

आज हमारे नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुछ कार्यक्रमो से काफी खुश हूँ क्यों की इन नपुंशको को  एक सठीक इलाज मिलने वाली है । रेलवे ने फिल्ट्रेशन शुरू कर दी है इसके अंतर्गत उन अफसरों पर गाज गिरेगी और उन्हें CR के अंतर्गत निकाल दिया जायेगा जिन्होंने 30 वर्ष सर्विस या 55 वर्ष की उम्र को पूरी कर ली है तथा अच्छे रिकार्ड नहीं है । काश ऐसे नपुंशको पर जल्द गाज गिरे । समाज बहुत सुधर जायेगा और कर्मठ कर्मचारियों के जीवन में एक नए सबेरे का उदय होगा ।

कर्मठ और मेहनत कश मजदूरो को नमस्कार । यह लेख उन मेहनती  कर्मचारी समूह को समर्पित है ।



Monday, January 11, 2016

एक कहानी - मनरेगा ।

सड़क के किनारे वह अधमरा कराह रहा था । उसे किसी की सख्त मदद की जरुरत थी । भीड़ उमड़ता जा रहा था । पर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था । यह भी एक सामाजिक कुरीति है ।  लोगो के जबान पर फुस  फुसाहट की ध्वनि आ रही थी । माजरा क्या है ? समझ से बाहर था । हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ने को उतावले थे । उस घायल व्यक्ति के नजदीक पहुँच खड़े  थे । कैमरा मैन वीडियो लेने के लिए तैयार उतावला  था वह मेरे अनुमति का इंतजार कर रहा था ।

तभी एक महिला एक छोटे बच्चे को गोद में लिए आयी और उस व्यक्ति के शारीर पर गिर रोने लगी । हमने उस महिला से कुछ पूछने की कोसिस  कि पर वह चिल्लाने लगी  और जोर जोर से  बोली - मैं कहती थी कि बैर मत मोलो । हम भूखे रह लेंगे । पैसे दे दो । हे भगवान कोई तो हमारे ऊपर रहम करो ? हमसे रहा न गया । मैंने उस महिला को अपना परिचय दिया और पूरी जानकारी हासिल करने की एक कोशिश की । पर वह महिला कुछ भी बताने से इंकार कर दिया  । उनके पहनावे और व्यवहार से यही लगता था कि वे बेहद गरीब थे । मीडियावाले है सुनते ही कुछ भी कहने से इंकार कर दी । अगल बगल के लोगो से कुछ जानकारी चाही किन्तु असफल रहा । मामला गंभीर था । हमने कुछ करने की सोंची ।  तभी हमारे पास एक लंबा चौड़ा और बड़ी बड़ी मुच्छो वाला आ खड़ा हुआ । वह गुर्राते हुए बोला । अबे नया नया आया है क्या ? तेरे को समाचार चाहिए । आ मेरे साथ मैं सब कुछ बताऊंगा । मैं उसके मुह को देखने लगा । देखा की भीड़ अपने आप खिसकने लगी । जाहिर था यह कोई यहाँ का दबंग है ।

हम पत्रकारो को कभी कभी आश्चर्य तो होता है पर डर नहीं । जी हम पत्रकार है । हमें इस घटना की जानकारी चाहिए । मैंने कहा । जरूर मिलेगा । आईये मेरे साथ । कह कर वह मुड़ा और हम उसके पीछे हो लिए । अब हम एक बड़ी हवेली के सामने खड़े थे । दरवाजे पर दो लठैत बिलकुल पहरेदार जैसा । हवेली के सामने एक बड़ा आम का बगीचा था वही हमें बैठने के लिए कहा गया । स्वागत सत्कार के बिच उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया था । सुन कर पूरी घटना समझ में आई ।ऐसे शासन और जनता के सुविधाओकी धज्जिया उड़ते  कभी नहीं देखा था । उन्होंने बताया की वे इस गांव के मुखिया है । मनरेगा के नाम पर काफी रुपये आते है । गांव वालो को काम के नाम पर जो पैसे आते है उन्हें उसमे से मुखिया को  पैसे देने होते है । सभी के बैंक खाते है । मजदूरी के पैसे सीधे खाते में जाते है । सभी को उसमे से मुखिया को कमीशन देने पड़ते है । मुखिया किसी से कोई काम नहीं करवाता है और सभी का हाजरी बना कर भेज देता है । इसी एवज में कमीशन लेता है । उस व्यक्ति ने कमीशन देने से इंकार कर दिया था । अतः मुखिया के कोप भाजन का शिकार बन गया था । अब समझ में आया मनरेगा का पैसा कैसे बर्बाद होता है और इससे कोई विकास भी नहीं ।

मुखिया हमें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया और धीरे से एक सौ की गड्डी हाथ में पकड़ा दी । हमने मनाही की पर वह न माना । कहने लगा - रख लीजिये ये तो एक छोटा सा नजराना है । दिल बेचैन था । कर्तव्य के साथ खिलवाड़ करने का मन कतई नहीं था । एक उपाय सुझा । हम सीधे उस गरीब के घर गए । देखा उसके दरवाजे पर एक्का दुक्का व्यक्ति खड़े थे । उस व्यक्ति की पत्नी दरवाजे पर बाहर बैठी थी । छोटा बच्चा उसे बार बार नोच रहा था । गरीबी ठहाके लगा रही थी । मेरे हाथ एक छोटी सी मदद के लिए उसके तरफ बढे और मैंने उस महिला की ओर उस सौ की गड्डी को बढ़ा दी जिसे मुखिया ने नजराने की तौर पर दी थी । वक्त को करवट बदलते देर न लगा । उस महिला ने उस गड्डी को घुमा कर जोर से दूर फेक दिया । मेरे दरवाजे से चले जाओ मुझे भीख नहीं चाहिए । हम जितना में  है उसी में जी लेंगे ।

मैं हतप्रभ हो देखते रह गया । मैं हार चूका था । हम धनवान होकर भी गरीब थे और वे गरीब होकर भी अमीर क्यों की उनके पास ईमान और इज्जत आज भी बरकरार थी ।

Monday, February 11, 2013

हाय जीवन तेरी यही कहानी

मिडिया में खलबली | बारम्बार समाचार  चैनलों पर दिखाया  जाना की अफजल गुरु को ९ फरवरी २०१३ को सुबह फांसी के तख्ते  पर लटका दिया गया | वाकई आश्चर्य चकित करने वाली समाचार थी | सभी प्रतिक्रियाएं   
देश की कानून की जीत  को दर्शाती हुयी , आने लगी |  या यूँ  कहें की दो दिनों की कहानी मानस  पटल पर सदैव यादगार बन कर रहेगी | एक तरफ अफजल गुरु को मृत्यदंड , तो दूसरी तरफ दिनांक १० फरवरी २०१३  को रात्रि सात बजे के करीब , इलाहाबाद में होने वाले भगदड़ और मौत का तांडव | एक तरफ उल्लास तो दूसरी तरफ उदासी का माहौल | 

 किन्तु मैंने कल ( १० फरवरी २०१३ को साढ़े छ बजे के करीब )  इन दो घटनाओ के बीच जो देखा , वह मनुष्य को जीवन और मृत्यु के बारे में सोंचने को मजबूर कर देती है | सभी के लिए जीवन ...जीवन नहीं है | कुछ लोग ऐसे है जो मृत्यु को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है |काश   मृत्यु प्राप्त लोगो के अनुभव  विश्व में उपलब्ध होते , जब की काल्पनिक अवशेष बहुत मिल जायेंगे |  ऐसा यदि  होता तो मनुष्य के मृत्यु भी हसीन होते | सभी बड़े - बड़े ग्रन्थ फीके पड़ जाते | हाय जीवन तेरी यही कहानी |

कल हुआ यूँ की , मुझे राजधानी एक्सप्रेस ( १२४३०  हजरत निजामुदीन - बंगलुरु एक्सप्रेस ) को  लेकर सिकंदराबाद से गुंतकल तक आना था | अतः ड्यूटी में तैनात था | अभी ट्रेन नहीं आई थी | अतः  मै और लोको इंस्पेक्टर श्री जय प्रकाश एक नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर हैदराबाद एंड में खड़े होकर वार्तालाप में व्यस्त थे | हमने देखा ..कुछ पांच /छ युवक एक युवक को पकड़ कर खिंच रहे है  ,( सभी के पीठ पर छोटे - बड़े बैग लटके हुए थे  , शायद वे १२५९१ गोरखपुर - बंगलुरु एक्सप्रेस से उतरे थे ) और स्टेशन से बाहर ले जाने का प्रयास कर रहे थे | वह जाने से इनकार कर रहा था | तभी पास से गुजरते आर.पि.ऍफ़ के पास भी गए | मामला कुछ समझ में नहीं आ रहे  थे | हमने सोंच शायद आपसी झगडा या चोरी का मामला होगा |

और ये क्या ?  पकड़ ढील पड़ते ही वह युवक भाग खड़ा हुआ | एक और युवक अपने बैग को जमीन पर रख उसके पीछे दौड़ा | समय का अंतर बढ़ चला था  | भागने  वाला युवक पास के इलेक्ट्रिक खम्भे से लगा एक इलेक्ट्रिक ट्रांसफोर्मर के खुले तार को अपने हाथो से पकड़ लिया | देखते ही देखते उसके शरीर में आग लग गयी | वह धडाम से जमीन पर गिर गया | उसके पीछे दौड़ने वाले  युवक के पैर जहाँ के तहां रूक गए | लोगो का हुजूम लग गया | किसी को अपने आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था | क्षण में क्या से क्या हो गया था | तुरंत मौके पर जी.आर.पि और आर.पि.ऍफ़ को लोग आ धमके और कानूनी प्रक्रिया तेज हो चली थी | क्या ये आत्महत्या की कोशिश थी , जो  देहदाह में बदल चुकी थी ?

राजधानी एक्सप्रेस  के दस नंबर प्लेटफोर्म पर आने की सूचना दी जा रही थी | हम दोनों उस प्लेटफोर्म की ओर चल दिए | आज के अखबारों में यह समाचार जरूर छपा होगा |

जीवन अमूल्य है , इसका मजा लें  और जीवन से कभी  निराश  न हो |

Sunday, April 1, 2012

सहमी सी जिंदगी !

आज - कल एक तरफ अन्ना , तो दूसरी तरफ रामदेव और तीसरी तरफ -हम नहीं बदलेंगे ! दुनिया में आन्दोलन होते रहते है और अनर्थकारी अपने हरकतों से बाज नहीं आते ! पिछले तीन   दिनों में जो  कुछ भी महसूस किया , वह मन को उद्वेलित कर गयी ! त्तिरछी नजर ---

१) गोरखपुर सुपर फास्ट एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! ट्रेन दोहरी लाईन पर दौड़ रही थी ! एक कुत्ता दौड़ते हुए दोनों पटरियों के बीच में आया और राम-राम सत्य ! कुछ गड़बड़ की आभास ...

२) उसी दिन - कुछ और आगे जाने के बाद  देखा एक बुजुर्ग...धोती कुरते में था ..आत्म हत्या वश , तुरंत पटरी पर सो गया ! मेरे होश उड़ गए ! ११० किलो मीटर की रफ्तार से चलने वाली गाडो कब रुकेगी ? किन्तु जिसे वो न मारे , भला दूसरा कैसे मारेगा ? उस व्यक्ति का बाल न बाका हो सका ! है न आश्चर्य वाली बात ! मुझे हंसी भी आ रही है ! क्यों की वह जल्दी में दूसरी लाईन पर जा कर सो गया ! हम सही सलामत अपने रास्ते आगे बढ गए !

३) तारीख ३१-०३ -२०१२ , दिन शनिवार  ! पुरे देश में नवमी की तैयारी ! वाडी जाने के लिए घर से लोब्बी में गया ! जो समाचार मिला वह विस्मित करने वाला था ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर (पावर ) को रंगे हाथो विजिलेंस वालो ने पकड़ लिया था ! सुन कर बहुत दुःख हुआ क्यों की उनसे  हमेशा मिलते रहा हूँ ! वह साहब ऐसा भी कर सकते है , वह मैंने कभी नहीं सोंचा था ! हाँ एक बार मैंने उन्हें सजग भी किया था की ऐसी गतिबिधियो से सतर्क रहे ! क्यों की जिनकी दाल नहीं गलेगी वे तरह - तरह के हथकंडे अपना कर बदनाम करने की कोशिश करेंगे ! मेरे विचार में यहाँ भी यही हुआ लगता  है !

आज उनके घर की राम नवमी मद्धिम हो गयी है ! नियति के खेल निराले ! परिवार वालो पर क्या गुजरेगी ? पत्नी के दिल पर क्या गुजरती होगी ? सपने अपने होंगे या अधूरे ?  और  भी बहुत कुछ ..मै  महसूस कर सिहर उठता हूँ ! तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कोई भी बलवान या धनवान नहीं बन सकता ! फिर भाग -दौड़ क्यों ? सत्यमेव जयते !


Friday, February 3, 2012

पत्नी व्रती और ससुर जी

इस फ्लैश समाचार को देख न चौकें ! इसे देख कुछ यादे ताजी हो गयी ! जो प्रस्तुत कर रहा हूँ ! यह हमारे लोब्बी में टंगा हुआ नोटिश बोर्ड है ! इस पर वही लिखा जाता है , जो अति जरुरी होता है ! इस तरह से प्रमुख घटनाओ की जानकारी , हमें यानि लोको पायलटो को मिलती रहती है ! आज  ( २५-०१.२०१२ ) जब मैंने लोब्बी में प्रवेश किया तो इस सूचना को देखा ! इसे आप भी आसानी से पढ़ सकते है ! " मुख्यतः इस बात पर जोर दिया गया है की जब किसी लोको पायलट के ट्रेन के निचे कोई व्यक्ति आकर आत्म  हत्या या दुर्घटना ग्रष्ट होता है ,तो लोको पायलटो को  इसकी  समुचित जानकारी जी.आर.पि /आर.पि.ऍफ़ को तुरंत  देनी चाहिए ! अन्यथा शिकार व्यक्ति के परिवार / रिश्तेदार टिकट लाश के ऊपर रख कर मुआवजा की मांग करेंगे !"  यह भी एक अजीब सी बात है ! सही है होता होगा !


 अब देखिये ना - हम लोको पायलटो को भी अजीब दौर से गुजरना पड़ता है ! बहुतो को कटी हुई लाश देख चक्कर आने लगते है ! बहुत तो देख भी नहीं सकते ! चलती ट्रेन के सामने लोगो का आत्म हत्या वश आ जाना -आज कल जैसे यह स्वाभाविक सा हो गया है ! घर में , परिवार में , पढाई में या यो कहें और कुछ कारण ...बात ..बात में ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे देना ...कहाँ की बहादुरी है ! जीवन   जीने की एक कला है ! इसे जीना चाहिए और इसकी खुबसूरत  रंगों को इस दुनिया में बिखेरते रहना चाहिए ! अगर दूसरो को कुछ न दें सके तो खैर कोई और बात है .. कम से कम ..अपने लिए तो जीना सीखें ! 

 कुछ सत्य घटनाये प्रस्तुत है -
भाव वश  इस तरह के निर्णय कायरपन है ! एक बार की वाकया याद आ गया ! उस समय दोपहर  के वक्त  थे ! मै उस समय मालगाड़ी का लोको पायलट था ! तारीख याद नहीं ! किन्तु कृष्नापुरम और कडपा के मध्य की घटना है ! मै केवल लोको लेकर कडपा को जा रहा था ! रास्ते में एक नहर पड़ती है ! नहर के उस पार एक गाँव है !  अचानक देखा की , गाँव के बाहर एक बुजुर्ग दम्पति  दोनों लाईन के ऊपर आकर सो गए !मंशा साफ है .. कहने की जरुरत नहीं ! चुकी केवल लोको लेकर जा रहा था , इसलिए तुरंत रोकने में परेशानी नहीं हुई ! लोको रुक गया ! हम देखते रह गए , पर वे दोनों नहीं उठे ! मैंने अपने सहायक को कहा की जाकर उन्हें उठाये और समझाये , जिससे वे दोनों इस भयंकर कृति से मुक्त हो जाएँ ! सहायक गया , समझाया ,पर वे उठने के नाम नहीं ले रहे थे ! मुझसे भी देखा न गया ! मैंने अपने लोको को सुरक्षित कर उनके पास गया ! हम दोनों उन्हें पकड़ कर दोनों लाईन से बाहर कर दिए ! उनके हिम्मत को परखने के लिए - मैंने कहा की आप लोग पहले यह सुनिश्चित करे की पहले कौन मरना चाह रह है और वह आकर लाईन पर सो जाये ..मै लोको चला दूंगा ! यह सुन उनके चेहरे उड़ गए और गाँव की तरफ चले  गए ! इस घटना के पीछे कौन से कारण होंगे ? सोंचने वाली बात है ! बच्चो से तकरार / बहु बेटियों से तकरार  / कर्ज - गुलाम /सामाजिक उलाहना ..वगैरह - वगैरह ! जिस माँ - बाप ने बचपन से अंगुली पकड़ कर ..जवानी की देहली पर पहुँचाया , उसे बुढ़ापे में इस तरह की तिरस्कार का कोप भजन क्यों बनना पड़ता है ? क्या बच्चे माँ - बाप के बोझ को नहीं ढो सकते !

दूसरी घटना - 
तारीख -२३ अगस्त २००८ की बात है ! सिकंदराबाद  से गुंतकल , गरीब रथ एक्सप्रेस ले कर आ रह था ! मेरे सहायक का नाम  श्री के.एन.एम्.राव था ! गार्ड श्री एस.मोहन दास ! शंकरापल्ली स्टेशन के लूप लाईन से पास हो रहे थे ! थोड़ी दूर बाद लेवल क्रोसिंग गेट है ! इस गेट पर  ट्राफिक काफी है !समय रात के करीब  आठ बजते होंगे ! मैंने ट्रेन की हेड लाईट में देखा की एक व्यक्ति अचानक दौड़ते हुए लाईन पर आकर सो गया है ! उसके सिर  लाईन पर और धड ट्रक के बाहर !मैंने तुरंत ट्रेन के आपात  ब्रेक लगायी ! ट्रेन रुक गयी और वह बच गया ! जैसा होना चाहिए - सहायक को जा कर देखने और उसे उठाने के लिए कहा ! चुकी गेट नजदीक था अतः गेट मैन भी सजग हो गया और दौड़ते हुए घटना स्थल पर आ गया ! मैंने घटने की पूरी जानकारी स्टेशन मैनेजर को भी वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! गेट मैन  और मेरे सहायक के काफी समझाने के बाद वह व्यक्ति उठ कर जाने लगा ! मैंने गेट मैन को कहा की सावधानी से उसे ले जाये और समझाये !  मेरा सहायक ने जो सूचना मुझे दी वह इस प्रकार है ! उसके आत्महत्या के कारण --उसके ससुर जी थे ! वह अपने ससुराल में आया था ! वह पत्नी को लिवा जाना चाहता था ! पर हठी ससुर के आगे उसकी न चली ! 

यह भी एक गजब ! अब तक सास के अत्याचार सुने थे , पर ससुर के नहीं ! ससुर के अत्याचार से पीड़ित , उसने यह निर्णय ले लिया था ! वैसे  पत्नी से प्यार करता था ! उसने अपने ससुर जी से कहा की अगर आप बिदाई नहीं करोगे , तो ट्रेन के निचे सर रख दूंगा ! ससुर ने कहा जा रख दें ! इसी का यह परिणाम ! यह घटना भी एक मिसाल - पत्निव्रता और ससुर जी का !

आये ज्योति  जलाये , पर किसी की  बत्ती न बुझायें ! जीवन अनमोल है ! इसकी संरक्षा और सुरक्षा पर ध्यान दें !लोको पायलट की  हैसियत से यह जरुर कहूँगा की जब भी मैंने किसी की जान बचायी है , तब एक अजीब सी  ख़ुशी महसूस हुई है ! जिसे शब्दों में पिरोना मेरे वश में नहीं ! सबका मालिक एक !

तिरुपति के तिरचानूर --पद्मावती मंदिर के समक्ष ली गयी हम दोनों की तश्वीर -दिनांक  २७-०१-२०१२ 

Friday, October 28, 2011

असुबिधा के लिए खेद है !

आदरणीय पाठक गण-
 १) मैंने कुछ तकनीक दोष की वजह से अपने ब्लोग्स के पते को बदल दिया हूँ ! अतः बहुत से पाठक   मेरे नए  पोस्ट से अनभिग्य हो गए है ! मेरा पुराना URL  बदल गया है ! इस लिए मेरे कोई भी पोस्ट उन फोल्लोवेर्स के दैसबोर्ड पर प्रकाशित नहीं हो रहे है , जो मेरे ब्लोग्स के फोल्लोवेर्स दिनांक - ११-१०-२०११ के पहले के  है !  इतना ही नहीं वे मेरे किसी भी ब्लॉग को खोल नहीं पा रहे है ! इसकी शिकायत कुछ पाठको के तरफ से मिली है ! अतः इस के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !

२) मेरा नया URL / ब्लोग्स के लिंक निम्नलिखित है ! भविष्य में इस पते पर ही मेरे ब्लोग्स को खोला जा सकता है----

बालाजी के  लिए --www.gorakhnathbalaji.blogspot.com 
OMSAI  के लिए-- www.gorakhnathomsai.blogspot.com 
रामजी के लिए --- www.gorakhnathramji.blogspot.com 
 
३) आप को अपने - दैसबोअर्ड के ऊपर मेरे  ताजे पोस्ट के प्रकाशन को प्रदर्शित  ,  हेतु कुछ मूल सुधार करने होंगे यदि आप मेरे ब्लोग्स के पुराने फोल्लोवेर्स है ! इसके लिए आप को मेरा पुराना फोल्लोवेर निलंबित कर फिर से नया फोल्लोवेर्स बनने होंगे !

४) सारी फेर - बदल मैंने अपने ब्लोग्स के सुरक्षा हेतु किया है , जो गायब होने के मूड में था ! 

असुबिधा के लिए खेद है ! आशा करता हूँ , आप का सहयोग बना रहेगा !
विनीत -गोरख नाथ साव !
 

Friday, August 5, 2011

...जाको राखे साईया मार सके न कोय ! ( शीर्षक आप का -श्री विजय माथुर जी )

                           ये है मोहित अग्रवाल की जुड़वा बेटियाँ !
आज कुछ न लिख कर , अपनी एक पसंदीदा पोस्ट , जो तारीख १०-११-२०१० को पोस्ट किया था , को फिर से एक बार आप के सामने हाजिर कर रहा हूँ !  उस समय मै इस ब्लॉग जगत में बिलकुल  नया  था ! साथ ही हिंदी पोस्ट करने की पद्धति से भी अनभिग्य  ! पाठक भी कम थे ! अतः ज्यादा लोगो तक नहीं पहुँच सका ! मेरी हिंदी भी शुद्ध नहीं थी ! दक्षिण भारतीय लफ्जो में लिखी गयी थी ! आज मेरी हिंदी कुछ - कुछ सुधर सी गयी लगती है ! इसका भी एक मात्र कारण - यह ब्लॉग जगत ही है ! आज उस पोस्ट को कुछ सुधार कर पेस्ट कर रहा हूँ ! उस समय मैंने इसे -"आप-बीती----०३. नवम्बर माह." के शीर्षक से पोस्ट किया था !
दुनिया में जो कुछ भी हमारे नजरो के सामने है ,उसमे  कुछ न कुछ है.यही कुछ एक छुपी हुई सच्चाई है अथवा सब   मिथ्या ! यानी मानो तो देव , नहीं तो पत्थर ! मैंने  बहुत से व्यक्तियों को तरह -तरह के तर्क देते और आलोचना करते देखा है ,यह आलोचना मौखिक और लिखित  दोनों रूप में मिल जायेगी ! बहुत से लोग इस दुनिया के मूल भूत इकाई पर  ,भरोसा ही नहीं करते! हमारी उपस्थिति ही किसी अनजान सच्चाई की ओर इंगित करती है !.और हम सब किसी के हाथ के गुलाम है .जो हमे पूरी तरह से बन्दर की भाक्ति नचाता है.! 


मै दुनिया के हर सृष्टी में  किसी के सजीव रूप को  प्रत्यक्ष देखता हूँ !. उसके इशारे बिना ,एक पत्ता भी नहीं हील  सकता ! . "जाको राखे  साईया ,मार सके न कोय." यह वाक्य  जब कही गयी होगी उस समय कुछ तो  जरुर हुआ होगा  या जिसने यह पहला उच्चारण किया होगा , उसने  कुछ न कुछ  अनुभव जरुर किया  होगा ! , इसी कड़ी को  सार गत आगे बढाते हुए  ,इस माह के आप-बीती के कड़ी में एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ.! 


बात उन दिनों की है ,जब मै सवारी गाड़ी के लोको चालक के रूप में पदोन्नति लेकर पाकाला डेपो  में पदस्थ था.पाकाला आंध्र प्रदेश के चित्तूर  जिले में पड़ता है.यहाँ से तिरुपति महज ४२ किलोमीटर है! यह घटना तारीख १५.०२.१९९९ की है! दिन सोमवार था.और मै २४८ सवारी ट्रेन को लेकर ,धर्मावरम  ( यहाँ  से सत्य साईं बाबा के आश्रम यानी प्रशांति निलयम ,जो अनंतपुर जिले में पड़ता है, को जाया जा सकता है ) से , अपने मुख्यालय  पाकाला की तरफ आ रहा था.! दोपहर की वेला और ट्रेन बिना किसी समस्या के ...समय से चल रही थी ! होनी को कौन  टाल सकता है! एक ह्रदय बिदारक  घटना घटी ! जिसे मै जीवन  में भूल नहीं पाता हूँ ! यह घटना मुझे हमेशा याद आती रहती है.! इसी लिए २०११ वर्ष में भी एक बार फिर आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ !


हुआ यह की जब मेरी ट्रेन मदन पल्ली स्टेशन के होम  सिगनल के करीब पहुँचने वाली थी,तभी एक नौजवान औरत करीब २२-२३ बरस की होगी ,अपने गोद  में  करीब एक बरस की बच्ची को लिए हुए थी ,अचानक पटरी के बीच  में आकर खड़ी हो गई.! .मेरी गाड़ी की गति करीब ५०-६० के बीच  थी ! मैंने जैसे ही उसे देखा आपातकालीन  ब्रेक  लगा दी ! गाड़ी तो रुकी पर उस महिला को समेट ले गई.! मै अनायास इस एक   पाप का भागी बन गया ! नया - नया और जीवन में पहली आत्महत्या देखी थी ! हक्का - बक्का सा हो गया ! समझ में नहीं आया की अब क्या करू !.खैर ट्रेन रुक गई.मैंने  अपने ट्रेन गार्ड को अचानक ट्रेन के रुकने की  सूचना दे दी और कहा की पीछे जाकर उस महिला के मृत शरीर  की मुआयना करें , देंखे  की क्या हम कुछ कर सकते है जैसे की फर्स्ट ऐड वगैरह यदि वह जीवीत हो ! मैंने अपने सहायक लोको पायलट श्री टी.एम्.रेड्डी  को जाकर देखने को कहा !.मेरे ट्रेन गार्ड श्री रामचंद्र जी थे !.कुछ समय के बाद मेरा सहायक चालक  मुझे जो खबर ,वाल्की -तालकी  के माध्यम से दी , वह चौकाने वाली थी! 

सूचना----
१) उस महिला की - सीर  में चोट की वजह से मौत हो चुकी थी.और पटरी  के किनारे उसकी मृत प्राय शारीर  पड़ी हुई थी ! .सीर  से खून  के फब्बारे लगातार रिस रहे  थे !
२)दूर कंकड़-पत्थर के ऊपर उसकी छोटी बच्ची  निश्चेत पड़ी हुई थी !


अब  समस्या थी उनके मृत अस्थि  को उठा कर ट्रेन में लोड करने की ! . मैंने ट्रेन गार्ड और अपने सहायक को कहा की दोनों के अस्थियो को ---उठा कर गार्ड ब्रेकभैन  में लोड कर लिया जाए ! उन्होंने ऐसा ही किया.! महिला के अस्थि को कुछ यात्रियों  की मदद से ब्रेक में लोड कर दिया गया ! जब मेरा सहायक उस  छोटी सी बच्ची को, जो पत्थर  पर मृतप्राय पड़ी थी ,को  उठाना चाहा , तो वह बच्ची तुरंत रो पड़ी और डरी-डरी सी कांपने  लगी.थी ! यह देख हमें आश्चर्य का ठीकाना न रहा क्यों की जिस बच्ची को हमने गेंद की तरह उप्पर उछलते देखा था , वह बिलकुल ज़िंदा थी ! यह विचित्र  दृश्य देख  ,सभी ट्रेन यात्री ,हक्का-बक्का सा हो  गए ! जिस चोट से उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी,उसी गंभीर चोट के बावजूद वह जिन्दा थी ! वाह ..क्या कुदरत की कमाल है.,इस दृश्य को जिन्हों ने देखा,वे जहा भी होंगे लोगो में चर्चा जरुर करते होंगे ! भाई वाह इस उप्पर वाले के खेल निराले !.हमने ट्रेन को चालू किया और मदन पल्ली रेलवे स्टेशन पर आ गये !उस बच्ची को थोड़ी सी चोट लगी  थी ,इस लिए रेलवे डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया ! मदनपल्ली में रेलवे स्वास्थ्य केंद्र  है ! बाक़ी  जरुरी प्रक्रिया  करने के बाद ,मृत महिला और उसके जीवीत बेटी  को ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मेनेजर को सौप दिया गया ,ताकि आस-पास के गाँव में ,सूचना फैलने के बाद,उचित परिवार को उनकी बॉडी सौपी  जा सके ! फिर हमने अपनी आगे की सफ़र जारी रखी !


मै शाम को ५ बजे पाकाला पहुंचा और सारी घटना - अपनी पत्नी को बताई ! मेरी पत्नी ने जो कहा वह वाकई नमन के योग्य है ! मेरी पत्नी ने कहा की - " उस बच्ची को घर लाना था हम पाल-पोस लेते थे ! " मै अपने पत्नी की इच्छा को सुन कर कुछ समय के लिए दंग रह गया और मन ही मन अपने पत्नी और उस दुनिया को बनाने वाले को नमन किया ! मेरे आँखों में आंसू आ गए ! क्यों की हमें कोई प्यारी सी  लड़की नहीं है ! मै सिर्फ इतना ही कह सका की ठीक है - अगले ट्रिप पर जाने के समय उस स्टेशन पर पता करूँगा ,अगर कोई  न  ले गया होगा तो उस बच्ची को अपने घर ले आऊंगा !


सोंचता हूँ आज मेरे पास वह सब कुछ है जो इस आधुनिक ज़माने में लोग इच्छा रखते है ! दो सुनहले सुपुत्र भी है एक राम जी तो दूजा बालाजी ,पर बेटी नहीं है ! शायद इसकी इच्छा  भगवान ने पूरी नहीं करनी चाही ! फिर भी सोंचते है , चलो दो बेटियाँ बहु बन कर तो आ ही जायेंगी !


दूसरी बार ,जब मै मदनपल्ली गया तो उस बच्ची के बारे में पता किया ! वह महिला पास के गाँव की रहने वाली थी ! उसके माता-पिता ,आकर उसके शव  और बच्ची को  ले गए थे! सोंचता हूँ,आज वह बच्ची करीब १३  बर्ष की हो  ही गयी है ! उससे मिलने और उसे देखने की इच्छा आज भी है ,लेकिन उसका पता मालूम नहीं  !.कई बार मदन पल्ली के स्टेशन मेनेजर से संपर्क बनाया पर उस समय ड्यूटी पर रहने वाले मास्टर के सिवा इस घटना  की जानकारी किसी और को नहीं है !


लोग इस तरह आत्महत्या क्यों करते है ? .क्या इस कार्य से वे संतुष्ट हो जाते है ? क्या घरेलु झगड़े का इस तरह निदान ठीक है ? मनुष्य को श्रद्धा  और सब्र  से काम लेना चाहिए ! सोंचता हूँ इस घटना के पीछे भी कोई घरेलु कारण ही  होंगे !.हमें जीवन को इतना कमजोर  नहीं समझना चाहिए !  जरुरत है अच्छे कर्मो  में लिप्त होने  की ! आखिर क्यों ? उस छोटी बच्ची का बाल न बांका हुआ और उसकी माँ को मृतु लोक मिला ! कुछ तो है !

Thursday, July 21, 2011

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )



इश्वर  ने  हमें  वह  सब  कुछ  दिया  है  , जो  सृष्टि  के किसी  प्राणी  को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने  के लिए आँख , सुनने के लिए  कान  , खाने के लिए  मुंह  ..आदी  ! इसमे सबसे योग्य  हमारा  मष्तिक है , जो हमसे  सब कुछ करवाने  के लिए , मार्ग  दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की  पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब  तक  पहचान  होती  है , बहुत  देर  हो  चुकी   होती   है  ! धर्म और कर्म का बहुत ही  बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के  शुद्ध कर्म नहीं ! बिन  कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है ! 

मै  लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ?  क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा   ! " सर  आज  उस अफसर ( नाम  बताया ) के वेटे का देहांत  हो गया  है  !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे  दुःख  व्यक्त  करूँ ,और  कुछ   कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण  भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा 
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात  पर  किसी को  भी  चार्ज सीट  दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की -  " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये  है  क्या ?"

जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत  दिनों  तक अपोलो अस्पताल में भरती  रही  और इस दुनिया को छोड़ चली गयी  ! उसके शव को  दूर  शहर  में  हाथ  देने  वाले कोई  नहीं  थे , फिर  भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस  शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये  थे !वह अपनी  करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने  नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर   उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज  उसकी दुनिया से  उसका   एकलौता  वेटा  भी उसे  छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी  के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है ! 

( सत्य  पर आधारित  घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम  छुपा दिए गए है ! ) 





Friday, June 24, 2011

अनुभूति

     जीवन  में कभी - कभी , कुछ चीजे मानव को सोंचने पर मजबूर कर देती है ! मनुष्य की दरिंदगी अपने आप में निष्ठुर और विनाशक है ! आज  मानव हर चीज को पाने की लालसा में , कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है ! उसकी मन की आकांक्षा ..और भी तीब्र हो जाती है जब वह आधुनिक परिवेश की तरफ आकर्षित होता है ! उसके आकर्षण ,  दुनिया की हर पहलुओ को ध्यान से देखती  है ! चाहे पहनावा हो या खान - पान या अति - सुवीधाजनक  शानशौकत ! खान - पान में शाकाहारी हो या मांसाहारी  !  सभी के अपने रंग ! सभी अति की तरफ इंगित करते है ! 

तारीख २१-०६-२०११ को मै गरीब रथ एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! सिटी में इंटर कर गया था ! ट्रेन धीरे - धीरे स्व-चालित सिगनल  क्षेत्र में आगे बढ़ रही थी ! सनत नगर के पहले एक बूचड़ खाना है , जो रेलवे लाइन के बिलकुल किनारे में ही है ! वहां  रोज दो -तीन जानवरों की ह्त्या हो ही जाती है ! मैंने देखा ..कसाई कमरे के अन्दर ..किसी जानवर को काट कर .बगल में खड़े ऑटो रिक्सा पर लाद रहा था ! कमरे के बाहर दो बैल बिलकुल शांत मुद्रा में  खड़े थे और  एक बैल जमीन पर चारो पैर फैला कर लेटा हुआ था ! मेरे मन में हलचाल सी हुई ! आज उसके दिल पर क्या गुजरती होगी ,शायद वह अपने अंत को भाप गया है ,  अनुभव करने की जरुरत है ! वह सोंचता होगा की कल का उसका एक दोस्त , आज कसाई के जुल्म का शिकार हो गया ! कल उसकी पारी है !  वह बेजान धरती के ऊपर पडा हुआ था !

फिर दुसरे दिन यानी तारीख २३-०६-२०११ को गरीब रथ लेकर  सिकंदरा वाद  जा रहा था ! सहसा फिर उसी बूचड़ खाने पर नजर पड़ी ! देखा दो बैल खड़े थे , पर वह बेचारा नहीं था ! आज वे दोनों भी इस दुनिया में नहीं होंगे ! कितनी बड़ी विडम्बना है ! एक जीव दुसरे जीव की ह्त्या करने से नहीं चुकता ! उस कसाई का दिल कैसा होगा ? निष्ठुर , बेदर्दी और कुछ क्या - क्या ?

जो ह्त्या में विश्वास करते है , क्या उनसे प्रेम की निर्झर बहेगी ? क्या प्रेम उनके लिए कोई मायने रखती  है ? क्या उनके दिल में कोमलता की दीप होगी  ? क्या उनका प्यार भरोसे के काबिल है ? ऐसे स्वभाव के लोगो से जागरुक और सतर्क रहना ही उचित उपाय है !

कहते है ---जो बोल नहीं सकते   वे आने वाली कष्टों  को भाप जाते है ! जो देख नहीं सकते वे अपने दिल के आईने में वह सब कुछ देख लेते है , जो एक आँख वाले को मयस्सर नहीं होती !

आखिर हम इतने निष्ठुर और निर्दयी क्यों हो जाते है ? जो चीज हम खुद नहीं चाहते , वह दूसरो के लिए क्यों पैदा करते है ? क्या दूसरो को मार कर , हमारा अस्तित्व बना रहेगा ? ताकत से सत्ता तो मिल जाती है पर वह प्यार नहीं मिलता ! जिसके लिए सभी तरसते है !

Sunday, May 1, 2011

..उसकी अस्मिता लूटती रही और मेरा दृढ निर्णय ...

                           जीवन में हर मोड़ पर ..किसी न किसी निर्णय को लेना या करना पड़ता है !राम ने पिता के आज्ञा को पालन करने का निर्णय लिया था !दसरथ ने कैकेयी के वर और अपने वचनों के पालन का निर्णय लिया था ! लक्षमण  ने राम के साथ वन जाने का निर्णय लिया था ! सीता ने पति धर्म निभाते हुए ...पति के साथ वनवास जाने का निर्णय लिया था ! रावण ने सीता का अपहरण करने का निर्णय लिया और यह एक घोर और भीषण लडाई का कारण बना था !बिभीषण ने न्याय का पक्ष लेने का निर्णय किया और घर के भेदी जैसे शुभ नाम से जाना जाने लगें ! राम भक्त हनुमान ने अपने ईस्ट देव / प्रभु राम का साथ देने का निर्णय किया !

                         महाभारत में देंखे तो युधिष्ठिर ने लडाई से परे रहने का निर्णय लिया ! दुर्योधन ने एक इंच भी जमीन पांडवो को न देने का निर्णय किया और एक लम्बी युद्ध को निमंत्रण दे बैठा ! कृष्ण ने पांडवो का पक्ष लिया , यह भी एक योग रूपी निर्णय था !
              हर निर्णय को देंखे तो हमें  दो रूप ही दिखाई देते है ! 
              पहला - परोपकार हेतु निर्णय और 
              दूसरा- स्वार्थ  वश !

              इसी धुरी पर केन्द्रित निर्णय ..हमें रोज जीवन में लेने पड़ते है ! भुत , वर्त्तमान और भविष्य ...कोई भी काल क्यों न हो हमेशा एक न एक निर्णय के साए में ही ...फला और पनपा है ! सभी दृस्तियो में निर्णय  ही भावी रहा है !

              ज्यादा शब्द बोझ न देते हुए ...संक्षेप में इस कड़ी को पूरी करना चाहता हूँ !
              मै दोपहर को सो कर ही उठा था और टी.वि.देख रहा था , तभी बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की जल्द चार पास पोर्ट साइज़ फोटो  लेकर ऑफिस में आ जाईये !  
            मैंने पूछा -क्यों ?
           "अरे यार आओ ना " चुकी बैच  मेट है , इसीलिए उन्होंने भी सहज रूप में जबाब दिया ! मै थोड़ा घबरा सा गया ! आखिर कौन सी बात आ टपकी ! सर्टीफिकेट का मामला हो सकता है - मैंने सोंचा ! उन्होंने जिद्द कर दी ,अतः मै चार फोटो के साथ ऑफिस में चला गया ! 
            फोटो देते हुए फिर पूछा -"  सर मेरे प्रश्न का जबाब नहीं मिला है ? 
         ' यू आर सलेक्टेड फॉर जी .एम्. अवार्ड ! उन्होंने तुरंत जबाब दिया !
         " मै नहीं मानता ,भला मुझ जैसे निकम्मे को जी.एम्. अवार्ड कौन देगा ? " - मैंने ब्यंगात्मक भाव से पूछा !        " बिलकुल सच ,यार !" जबाब  मिला !. यह घटना मार्च माह के प्रथम वीक की है ! 

                   तारीख ०८-०४-२०११ को मै रेनिगुन्ता से सुपर -१२१६४ काम करके आया और आगे जाने वाले लोको पायलट को ट्रेन का कार्यभार सौप रहा था! देखा - बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर श्री मुर्ती जी चले आ रहे है ! वे मुझसे उम्र में बड़े है तथा नौकरी में भी बरिष्ट ! आते ही मुझे - " congratulation "  कहा !
                मैंने पूछा - किस बात का सर ?
             आप का नाम जी.एम्.अवार्ड के लिए अनुमोदित हो गया है ! १३ अप्रैल / ११ अप्रैल को दिया जाएगा !  मैंने कुछ नहीं कहा ,सिर्फ धन्यबाद के !

               मैंने इस बात की जानकारी अपने मुख्य कर्मी दल नियंत्रक  श्री जे.प्रसाद को दी ! इसके बाद से ही मेरे प्रति षडयंत्र शुरू ! दुसरे दिन मेरे लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन ने बताया की - " दुःख के साथ कहना पड रहा है की आप का नाम  जी.एम्.अवार्ड से बंचित हो गया ! इसके पीछे साजिश काम कर गया !" मुझे भी इस समाचार को सुनकर दुःख हुआ !

              मै १२६२८ कर्नाटका एक्सप्रेस तारीख १३-०४-२०११ को काम करके आया था और स्नान वगैरह कर सोने की तैयारी में था , तभी गदिलिंगाप्पा ( मुख्य कर्मीदल नियंत्रक / गुड्स ) का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की आज डी.आर.एम्.अवार्ड रेलवे इंस्टिट्यूट में दिया जाएगा और आप का भी नाम शामिल है !मैसेज संख्या -१३ /०४ /२५ है ! आप इंस्टिट्यूट में जाकर इसे ग्रहण करें ! 

               मैंने कहा -ओ.के .और फ़ोन रख दिया !  रात भर ट्रेन चलाने की वजह से नींद आ रही थी अतः सो गया !             यह निर्णय कर की -मै इस अवार्ड को बहिष्कार करूंगा !

              जी हाँ ,उस दिन मै सो नहीं सका क्यों की बार - बार सभी लोको इंस्पेक्टरों  की रेकुएस्ट भरी फ़ोन आती रही की आप आओ और इस अवार्ड को ग्रहण करें ! मैंने जिद्द कर ली थी और उन लोगो को कहला दिया की मै अवार्ड का भूखा नहीं हूँ ! कृपया मुझे माफ करें! मेरे सर्टिफिकेट को लोब्बी में रख दे तथा जो कैश है उसका स्वीट खरीद कर गरीबो में बाँट दे !

            साजिस = जैसे ही कुछ लोको इंस्पेक्टरों और मुख्य शक्ति नियंत्रक को मालूम हुआ की मुझे जी.एम्.अवार्ड मिलने वाला है , त्यों ही उन्होंने एक यूनियन की मदद से उसे तुरंत खारिज करवा दिए ! इस तरह से उस अवार्ड की अस्मिता लूट गयी ! इन भ्रष्ट लोको इंस्पेक्टरों और यूनियन   के समूह ने मिल कर इस अवार्ड को मौत के घाट उतार दिया !वह मेरी न हो सकी !उससे मै बंचित रह गया !उसकी अस्मिता वापस लाने के लिए ,डी.आर.एम्.ने तारीख १३-०४-२०११ को रेलवे इंस्टिट्यूट में बुलवाएँ !

              इस घिनौनी हरकत और अन्धो के बीच अपनी नाक कटवा दूँ ! यह मुझे गवारा नहीं था ! अतः मैंने इसे लेने से इनकार कर दिया ! आज - कल ..सरकारी क्षेत्र में अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए ...वैभव और स्वर्ण वेला के लिए , मौन मूक तड़प रही है ! ठीक चातक की तरह ...इसी आस में की अमावश की रात कटेगी   और पूर्णिमा की चाँदनी रात जरुर आएगी ! 
   
             मेरे इस निर्णय को पूरी तरह से सराहा गया ! यह मेरे जीवन की अविस्मर्णीय घटना बन गयी है ! चोरो का मुह काला हो गया है !

Monday, April 25, 2011

दिल न तोड़ें .......handle with care

                                    चित्र में -बाए से चौथा--  मेरे बालाजी....... ..नृत्य करते हुए !
                  बच्चे बहुत भाऊक होते है ! विशेष कर बचपन में ! उन्हें अच्छे - बुरे की परिपक्वता नहीं होती ! बात - बात पर रूठना , गुस्से करना ,बहाना बनाना ,हिचकिचाना ,नक़ल करना , आदि ख़ास बाते ...बच्चो में प्रमुखता से पायी जाती है ! इन सभी गुणों का बड़ो में भी पाया जाना ...एक बचपनी हरकत से कम नहीं ! इसीलिए तो कहते है -बुढापा बहुधा बचपन का पुर्नागमन  होता है !

                       इन सभी बातो के मद्दे नजर यह जरुरी है की बच्चो के साथ ..बड़ी सावधानी से वर्ताव किया जाय ! माता - पिता हो या गुरुजन .......बच्चो के  मनोविज्ञान को समझ कर ही ....डाटने / फटकारने / और अपने विचार प्रकट करने  की कोशिश होनी  चाहिए ! बच्चे प्यार के भूखे होते है ! प्यार से इन्हें कुछ भी कहा या समझाया जा सकता है !

                        चाणक्य ने कहा था --" माता - पिता / गुरुजन को अपने बच्चो / शिष्यों से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए ! समयानुसार माता - पिता को बच्चो को डांटने / गुरु को शिष्य को पीटने से नहीं हिचकना चाहिए ! ज्यादा प्यार उद्दंड बना देता है  और बच्चे सही मार्ग से भटक जाते है !"

                        संक्षेप में सोंचे तो हम यह पाते है की कोई भी  माता - पिता / गुरु  का ....व्यवहार  बच्चो के लिए उपयोगी और मददगार ही होता है ! कोई यह नहीं चाहता की उसका शिष्य या संतान ...दुनिया की नजरो में अयोग्य  ,दुराचारी और जीवन की दौड़ में नाकाम रहे ! बच्चे यदि शांत प्रिय और आकर्षण के धनी हो तो ...सोने पे सुहागा ! किन्तु बच्चो में नक़ल की प्रवृति ...बड़ी तेज होती है ! अभिभावक / गुरुजन में गलती हो , तो ये आसानी से ग्रहण कर लेते है ! जिससे हमें काफी सतर्क रहनी चाहिए ! इसीलिए तो कहते है --" पारिवारीक संस्कार का बच्चो पर काफी प्रभाव पड़ता है ! " यानी जैसा बांस , वैसी बांसुरी !

                      बहुत सी बातें होती है , जिन्हें हम अभिभावक गण ..बच्चो के सामने प्रकट नहीं करे , तो बेहद सुन्दर !जैसे -माता - पिता  का आपस में झगड़ना ,दूसरो की निंदा करना ,किसी को भद्दी गाली देना , किसी दुसरे बच्चे की शेखी बघारना इत्यादी ! अच्छी देख - भाल ..पौधे को उन्नत और सुदृढ़ बनाती है!  आईये एक सुन्दर बच्चो के उपवन और भविष्य के तारो की सृजन में लग जाएँ ! बच्चे ही हमारे कल की आलंबन है !

                      आज - कल परीक्षा और उसके परिणामो के दिन है ! सफलता और असफलता ..आएँगी , कोई रोयेगा , कोई रुलाएगा ! किसी ने आत्म -ह्त्या की, तो  किसी ने आग लगायी , तो कोई तीन मंजिले भवन से नीची छलांग ! आये दिन  अखबार लिखेंगे और हम पढेंगे ! कब क्या होगी किसी को नहीं मालुम ! इस विषय पर सोंचने के लिए बाध्य होना पड़ा और पुरानी यादे तरो - ताजा हो मष्तिष्क  पर घूम गयी ! आप भी देख लें -

                  तारीख -०४ / ०५-०५-२००८...दिनांक रविवार /सोमवार , मै उस दिन ट्रेन संख्या -२४२९ .बंगलोर से हजरत - निजामुदीन जाने वाली राजधानी एक्सपेस काम करते हुए आ रहा था ! रात्री का समय था ! रात के बारह बजे के आस - पास ट्रेन अनंतपुर......... (स्वर्गीय / भूतपूर्व राष्ट्रपति ...श्री नीलम संजीव रेड्डी का पैत्रिक  शहर और सत्य साई बाबा का जिला , जिनका आज पुर्त्त्पर्ती में देहांत हो गया है ) ...में रुकी ! दो मिनट के बाद सिगनल मिला ! मेरा सहायक लोको पायलट श्री के.एन.एम्.राव थे ! गार्ड के अनुमति के बाद ..हमने ट्रेन को चालू किया ! प्लेटफोर्म से ट्रेन ...धीरे - धीरे बहार निकल रही थी ,  घोर अन्धेरा ...ट्रेन की  हेड लाइट तेज ! हम लास्ट स्टॉप सिगनल के करीब पहुँच रहे थे ! मैंने देखा की कोई बण्डल या कोई मृत बॉडी........ दोनों पटरियों के बीच...पड़ी हुई है ! मैंने अपने सहायक का ध्यान आकर्षित  किया ! उसने भी देखा ! तब - तक ट्रेन ..बहुत नजदीक आ चुकी थी ! मैंने उस जगह एक हलचल देखी और तुरंत ट्रेन को रोक दिया !  मैंने सहायक को जा कर देखने को कहा !
                   सहायक गया और  जो देखा ...वह ....यह  की एक सोलह / पंद्रह वर्ष का लड़का ...स्पोर्ट पायजा और टी - शर्ट पहने हुए ...घायल अवस्था में दोनों पटरियों के बीच कराह रहा था  ! उसके पैर और सिर में काफी चोट लगी थी और वह लहू- लुहान था ! टी - शर्ट खून से भींग गए थे ! मामला समझते देर नहीं लगी .....क्योकि.......परीक्षा के परिणाम के दिन थे ! शायद घर वाले कुछ कहे हो या खुद...असफलता वश .... उसने ऐसी साहसिक  कदम उठाये हो ! हमारे आगे कई एक्सप्रेस ट्रेन जा चुकी थी , उन्ही में से किसी के सामने आया होगा , पर अपने मनसूबे में सफल नहीं हो सका था ! हमने पास के ट्राफिक गेट-मैन को उसे अस्पताल भेजने के लिए सौप दिया तथा इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर को वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! फिर आगे बढ़ गए !
                 अप्रैल और मई के महीनो में...... शहरों से गुजरते समय..... भगवान से यही प्राथना करते है ......की कोई मासूम हमारे ट्रेन के निचे.... न आये !  उस दिन हमने एक माँ के जिगर के टुकडे को... उसे सुरक्षित वापस भेज दिया ! एक अनर्थ से बचे !  इसीलिए तो कहते है.....दिल न तोड़ें ..
       

Monday, April 18, 2011

मौत का अनूठा चांस ...

हम लोको पायलट   जीवन में अजीव सी जिंदगी जीते है ! वह भी ड्यूटी के वक्त .! जीवन चलने का नाम है  और चलती का नाम गाड़ी  ! रेलवे की ट्रेन चौबीसों घंटे चलती और दौड़ती रहती है ! इस दौड़ में दर्शक......ये  यात्री और उनकी गवाह ...  ये लोको पायलट ही होते है ! ट्रेन  नदियों- नालो ,जंगलो -झाडो  , पर्वत - पहाड़ो से गुनगुनाती हुई निकलती रहती है और ये लोको पायलट ...सजग और होशियारी पूर्वक ...समय के साथ ..जीवन की गीत गाते हुए ...सभी को उस पार ....  दूर  नियत स्थान पर ले जाकर सुरक्षित छोड़ देते है ! उतरने वाले ..एक टक भी इनके तरफ   नहीं देखते,  कितनी आत्मीयता है !
               सिटी बजी ...और फिर यह गाड़ी चल दी ! उसी धुन और राग को अलापते ! जीवन भी तो एक गाडी ही है ! इसे जैसे चाहो ...चलाओ ! उस पर भी इस लोकतंत्रीय भारत वर्ष में ! लोक - तंत्र सबके लिए ..समानता का अधिकार देता  है , पर असलियत दूर ! किसी के पास अरबो की सम्पति है ,तो कोई दाने - दाने के लिए मोहताज है ! ये कैसी व्यवस्था  ?
              अब आये विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! हम लोको  पायलट  ट्रेन की भागम - दौड़ में ..इन दो रेल की पटरियों ( या जीवन की सुख - दुःख ) के बीच ..बहुतो को आत्महत्या या मरे हुए देखा है ! मरने वाले इंसान  हो या जानवर या पशु - पक्षी ...सभी घटनाए   अपने - आप में कुछ शब्द छोड़ जाती है , जिन्हें व्यक्त करना या शब्दों में बांधना ...बड़ा ही कठिन जान पड़ता है ! यह तो सच है की हमें किसी ने बनाया है ! माता - पिता हो या भगवान ...जो भी मान ले ! उसी तरह मृत्यु भी ..इस सृष्टी की एक अजूबा है !   जो सत्य है  ! सभी महसूस  करते है ! जानते है ! फिर भी बेवजह , जबान पर भी लाने से  डरते है ! किन्तु इससे कोई भी नहीं बचेगा ! बचेगा सिर्फ  हमारे कर्म और धर्म से कमाई हुयी ..सम्पति !
            जी ,आज  ( १८-०४-२०११ ) मै ट्रेन संख्या - १२१६३ एक्सप्रेस  ( दादर -चेन्नई सुपर ) वाडी जंक्शन  से लेकर गुंतकल आ रहा था ! यात्रा के दौरान  एक अजीव घटना घटी ! जिसे मैंने व्याख्या कर यही पाया की मौत भी सभी को बचने का चांस देती  है ! ठीक उसी तरह  जैसे  - मृत्यु दंड के अपराधी को ..देश के राष्ट्रपति का स्वर्ण चांस  !  
                     हुआ यूँ की  एक कुत्ता ( मटमारी - मंत्रालयम स्टेशन के बीच ) अचानक दो पटरी के बीच आया ! उसे जब ट्रेन के आने की आभास हुआ, वह तुरंत पटरी से बहार गया ! बाहर जाकर फिर ..पटरी के बीच में आया !  बाहर गया और  फिर ...वापस पटरी के बीचो-बीच आया  ! सामने दौड़ाने लगा ! तब - तक ट्रेन नजदीक   और वह एक जोर झटके के साथ ...मृत्यु लोक को सिधार गया !
             क्या  इस घटना से  ऐसा नहीं लगता की मृत्यु भी ...सभी को एक चांस   जीने के लिए देती है ?

Sunday, March 6, 2011

कभी-कभी - ०२...हार की जीत

  मेरे   जीवन   में   ४ ,    ५  , और  ६  मार्च  काफी  मायने  रखता  है  !  समझ  में  नहीं  आता  , इसे  किस  आधार   पर  याद  करूँ  ? जीवन  के  बीते  क्षण  कभी - कभी  बहुत  दर्दीले  और  गर्म  आंसू  से  भरे   जान  पड़ते  है  !  आज  ही  शिर्डी  से  लौटा   हूँ !  एका  - एक   आज  मुझे  शिर्डी  यात्रा  के  अनुभओं को  आप  सभी  से  बांटने  का बिचार  दिल  में  आया ! किन्तु  कल यानी  ०६ मार्च की  याद  आ गयी ! अतः  शिर्डी  यात्रा  और  इस  अनुभव   को  बाद में  पोस्ट  करूँगा  !    तारीख  चौथा  मार्च ..२००२  ! समय   शाम  के  करीब   चार  बजे  का ! मै  गुंतकल   रेलवे स्टेशन के अस्पताल   के  पास  से  गुजर रहा  था  , तभी  मेरे  एसोसिएसन  के  कार्यकारी मंडल  अध्यक्ष  श्री 
 वाई .भूपाल रेड्डी  से मुलाकात  हुयी ! जो  अस्पताल  के  नजदीक  बने  साईकिल जमा करने  वाले गैराज  के  पास  खड़े  थे  ! मुझसे  उम्र  में  बड़े   थे , अतः  मैंने  ही  पहले  उन्हें प्रणाम  किया और वही  खड़ा  हो  गया  ! उन्हें  सिगरेट पिने  का  शौक  था ! सिगरेट  का  काश  लेते  हुए ..उन्होंने  कहा --
            " गाडी  नहीं  गए हो..क्या  आज  रेस्ट  है ? "
            " नहीं  सर ..आज  रात  को  शोलापुर ..कर्णाटक  एक्सप्रेस को  लेकर  जाना  है !"- मैंने   साधारण  सा    जबाब दिया ! बाद  में  एसोसिएसन  के  बारे  में  बाते  चली !   उस समय  मै ऐल्र्सा  का मंडल सचिव  था !  
   फिर उन्होंने  मुझे  कहा - " एक  काम  करो  ,मै  अपना  रेलवे  क्वार्टर खाली  करने  वाला  हूँ ..तुम  उसे  अपने    नाम पर  बुक  कराकर  मुझे  एक  सप्ताह  तक  रहने  दो  ! क्वार्टर संख्या १३५ /अ  है ,वह  भी  टाईप - ४ !" मै  भी अवाक्  होकर  पूछा - "  आखिर  ऐसा  क्यों  ? आप  ने  अभी - अभी  ही  इसे अपने  नाम  पर  बुक  कराया है !" ,,,,," मै  गूती  सिफ्ट कर  रहा  हूँ ! " उनका  जबाब  था ! मै  भी  मामले  की  गहराई  को न  समझ  सका  और  कह  दिया - " ठीक है ! मै तारीख -०५ - ०३ - २००२ को  २६२७ कर्णाटक  एक्सप्रेस  को  लेकर  शोलापुर  चला  गया  और 
  शोलापुर  से तारीख ०६ - ०३ -२००२ को २६२८ कर्नाटक एक्सप्रेस  लेकर  लौटा ! गाड़ी  समय  से  चल  रही  थी ! अचानक  गुंतकल  होम  सिग्नल  के  पास  २६२८ एक्सप्रेस  को  ४५  मिनट  से  ज्यादा देर  तक  रोक  दिया  गया ! मैंने गुंतकल स्टेशन  के  उत्तर केबिन  से संपर्क  बनाने  की  चेष्टा  की , पर  किसी  का  जबाब पूर्ण  रूप से  प्राप्त  न  हो  सका  ! पुरे  स्टेशन  से  भी  किसी की  आवाज  वल्कि - तल्की पर  भी  सुनाई  नहीं  पड़  रही  थी  !  आखिर कार गाड़ी  को  प्लेटफोर्म संख्या  ६ पर  लिया  गया  ! मैंने गाडो  को  ठीक  पूरी  तरह  से प्रस्थान  सिग्नल  के  नजदीक  खड़ा  कर दिया  ! देखते  ही  देखते  गुंतकल  मंडल  के  सभी बड़े  अफसर  गाड़ी  के पास
 आ  खड़े  हुए ! माजरा मुझे  समझ  में  नहीं  आया ! सभी  ने  मुझे  घेर  लिया ! सभी  का  मैंने  अभिवादन किया ! सभी  ने  अपनी  स्वीकारोक्ति दुहरायी ! तब - तक  मेरे  एसोसिएसन  के  मेम्बर  भी  आ जुटे ! मुझे  कुछ  समझ  में  न आया ! तभी मैंने  देखा की  वाई .भूपाल रेड्डी  का लड़का  दौड़ते  हुए  आया  और  लोको को बंद  कर  दिया और  चिल्लाने  लगा - "   अंकल ...कोई  ट्रेन आज  नहीं  जाएगी ? "... मैंने  अफसरों  के मध्य  से  बाहर निकल  उससे  पूछा - " क्या  बात  है ? " तभी  किसी  ने  भीड़  से  दबे शब्दों  में  मुझे  कहा - " वाई, भूपाल रेड्डी  ने  आत्महत्या  कर  ली  है !  ट्रेन  संख्या -७००३ के निचे कट गए "
               मै  सन्न  रह  गया   जैसे  मुझे सांप  ने  सूंघ  लिया  हो  ! मुझे  भी  गुस्सा  आ  गया जो  लाजिमी  था ! क्यों  की मै  लोको  चालको  का मंडल  सचिव  था और  आज  भी  हूँ !  सभी  अफसर मामले  को दबाना  चाहते  थे  अतः सभी  ने  मुझे समझते  हुए कहा - " शाव जी ... आप  धीरज  रखे ! सब कुछ  ठीक  हो  जायेगा ,चले  हम  मीटिंग के  द्वारा  मामले  को सुलझा  ले ! "..हम  सभी  लोब्बी  में  चले  गए वही  सब अफसरों  ने मीटिंग  करनी  चाही , किन्तु  मैंने अस्वीकार  कर  दिया ! मीटिंग  के  लिए  पुरे  ब्यौरा  और मेरे सदस्यों  की इच्छा  जरुरी  थी   ! मीटिंग शाम  को चार  बजे  मंडल रेलवे  मैनेजर के  चेंबर  में  निर्धारित  हुयी !मै अपने  सामानों  को  घर  भिनजवा कर  सीधे  सरकारी  अस्पताल  में  चला  गया , जहा पार्थिव  शारीर को  पोस्ट  मर्दम  के  लिए  रखा  गया  था  ! सभी पत्रों में  यह  समाचार  छपा और अधिकारिओ के हरासमेंट  को  ही रेड्डी  के  मृत्यु  का एक  मात्र वजह दर्शाया गया ! निर्धारित समय पर हमारी मीटिंग  मंडल रेलवे मैनेजर के साथ उनके ही चेंबर में हुयी !उस समय प्रवीण कुमार जी मंडल रेलवे मैनेजर थे ! मीटिंग  के  दौरान मंडल ऑफिस  को पूरी तरह से रेलवे   सुरक्षा बल  के द्वारा सील  कर दिया गया था !भाव -भीनी मीटिंग के दौरान  यह निर्णय लिया गया की रेड्डी के 
 परिवार को पूरी सहायता , एक बेटे को नौकरी और जो भी मेल लोको चालक  के बेनिफिट है  ,वह दिया जायेगा ! यह प्रस्ताव रेड्डी के पत्नी को बता दिया गया ! वह भी अपने वकील के परामर्श के बाद मान गयी ! इस तरह से रेड्डी के मामला और पूरी बेनिफिट ...केवल तीन महीने के अन्दर पुरे हो गए ! उनके एक पुत्र को तीसरी श्रेणी में नौकरी देकर तिरुपति में पोस्टिंग दिया गया ! पत्नी को नौ हजार के ऊपर मासिक पेंसन और लोको चालक की पूरी लाभ मुहैया कराया गया ! इस घटना के बाद , उस श्री  जी . यस .बिनोद राव - मंडल यांत्रिक इंजिनियर ( शक्ति )  को ट्रान्सफर हो गया ! जिसका नाम  इस  केश  से जुड़ा था !
          आप लोग सोंच रहे होंगे की इस आकस्मिक  दुर्घटना के कारण क्या थे ? किन हालत में इस तरह की घटनाये घटी ! जरुर जानने की जिज्ञासा बढ़ी होगी ! तो लीजिये वह भी उधृत किये देता हूँ- 
         एक दिन की बात है जब वाई.बी.रेड्डी  गाड़ी संख्या -७४२९ हैदराबाद - तिरुपति एक्सप्रेस लेकर गुंतकल से रवाना हुए ! ट्रेन रास्ते में  कमलापुरम स्टेशन पर दो मिनट  के लिए रुकी !  सहायक  लोको चालक को शौचालय जाना जरुरी हो गया ! लोको में किसी तरह के पेशाब या शौचालय के साधन नहीं है ! अतः रेड्डी ने अपने सहायक को आदेश दिया की गार्ड ब्रेक वें में जाकर शौचालय पूरी करो और मै गाड़ी लेकर कडपा तक चलता हूँ ! तुम कडपा में फिर लोको में आ जाओ ! इन्होने गाड़ी स्टार्ट कर दी और कडपा पहुँच गए ! कडपा में  पांच मिनट रुकने के बाद , गाड़ी स्टार्ट करने का  सिगनल हो गया , पर रेड्डी का सहायक नहीं लौटा ! उनहोने  ड्यूटी मास्टर को तुरंत बता दी !मास्टर ने कण्ट्रोल ऑफिस को तुरंत सूचना दे दी ! कंट्रोलर ने बिना सहायक गाड़ी स्टार्ट करने की अनुमति देते हुए एक मेमो मास्टर के द्वारा रेड्डी को भिजवा दिया ! बिना सहायक  गाड़ी स्टार्ट करना जुर्म है !रेड्डी ने एक दुसरे माल गाड़ी के सहायक को अपने लोको में बुला लिया और गाड़ी नन्दलुर डेपो तक ले गए ( ताकि गाड़ी को समय से ले जाया जा सके !)जहा पर सहायक लोको चालक भेजा गया ,ताकि वह रेड्डी को तिरुपति तक कर्यनिस्पदन में सहयोग करे ! इस तरह से रायलसीमा एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से करीब आधे घंटे लेट तिरुपति पहुंची !
              अब आये देंखे की उनका सहायक श्री श्रीनिवासुलु ने क्या किया ? उस सहायक ने कमलापुरम में गार्ड ब्रेक में न जाकर ,पास के खेत में जाकर शौच करने लगा और गाड़ी स्टार्ट होने पर तुरंत न आ सका ! इस तरह से वह कमलापुरम में ही छुट गया ! इस घटना के बाद वाई.बी.रेड्डी को तुरंत सस्पेंड कर दिया गया !सस्पेंड के बाद उन्हें एस.यफ -५ दिया गया ! जो बहुत ही खतरनाक चार्ज सीट है ! इस चार्ज सीट के बाद कर्मचारी को डिसमिस /बर्खास्त /अपदस्त /पे में कटौती / बेतन में पूरी तरह से कटौती  वगैरह की जा सकती है , जो जाँच अधिकारी के रिपोर्ट और disciplinary ऑफिसर के ऊपर निर्भर करता है ! आज - कल इस तरह के सजाओ से बचने के लिए ..सरकारी संस्थानों में कर्मचारी शाम ,दंड भेद और अर्थ  का उपयोग करने से नहीं हिचकते ! इतना ही नहीं ..अगर अधिकारी लोलुप निकला तो उसके दोनों  हाथो में लड्डू ! प्रायः आज कल इस चार्ज शीट का इस्तेमाल अधिकारी गण  पैसा   कमाने के लिए पूरी तरह से करते है ! उनके पास इंसाफ नाम की चीज बहुत कम ही होती है ! बिरले  ही कुछ अच्छे अधिकारी मिल जायेंगे , जो अपने पद पर ईमानदारी से कार्यरत हो !आज कल की हालत आप के सामने दिख ही रहे है , जहाँ ऊपर से लेकर निचे तक सभी किसी भी हालत में अमीर बन जाना चाहते है !
                    तो मामला सलटा नहीं ! जी,यस.विनोद राव  ( लोको चालको का अधिकारी )ने रेड्डी को करीब डेढ़ बर्ष तक सस्पेंड में ही रखे ! जब रेड्डी के अवकाश ग्रहण के केवल १६ महीने बच गए ,तब उन्होंने सजा का ऐलान किया ,वह भी पक्ष के सभी पहलुओ को नजर अंदाज करते हुए ! उन्हें सजा मिली -लोको चालक( शंटिंग )की ! यानी पांच ग्रेड निचे  अपदस्त ! देंखे कैसे - 
         लोको चालक मेल / एक्सप्रेस से लोको चालक ( शंटिंग  ) अर्थार्त - ०१ )लोको चालक मेल / एक्सप्रेस के निचे  ०२ ) सेनियर लोको चालक पैसेंजर के निचे  ०३ ) लोको चालक पैसेंजर  के निचे  ०४ )सिनीयर लोको चालक गुड्स के निचे ०५ ) लोको चालक गुड्स के निचे ०६ ) लोको चालक शंटिंग ! वह भी ट्रांसफर के साथ - गूती डिपो  में ,अमानुषिक अत्याचार का नमूना , वह भी १६ महीने के लिए ! यानि अवकास ग्रहण के समय भी सुबिधा  लोको चालक शंटिंग के ही मिलेंगे !  बाद में  - "मैंने जब ,  रेड्डी से चार मार्च को मिला था " - का आशय समझ पाया ! उस दिन उन्होंने सच्चाई मुझसे छुपा दी थी ! कल उनके शहादत का दिन है !सोंच कर मन उदास हो जाता है , काश भगवान इस तरह के अधिकारिओ को सद्भुधि कब देंगे ? या जल्दी दें ! जिससे की निरपराध कर्मचारियो को इंसाफ मिल सके !  मैंने रेड्डी को बार - बार कहते सुना था - " की सर कट जायेंगे ,पर झुकूँगा नहीं !" यह बात वे तब कहते थे , जब कई लोको इन्स्पेक्टर उन्हें सुझाव देते थे की जाकर क्षमा मांग लो ! लेकिन उन्होंने ऐसा करना उचित नहीं समझे ! यहाँ तक  की वह अधिकारी और स्वर्गीय वाई, बी. रेड्डी दोनों पडोसी  थे ! वह अधिकारी SSE   ( TXR ) से प्रमोट हुए थे ! उनके दिमाग में लोको चालको के प्रति बिद्वेष भरा पड़ा था ! उस बिद्वेष के शिकार रेड्डी को बनना पड़ा ! आज वह अधिकारी भी अवकाश प्राप्त कर चुके है और उनका घर भी गुंतकल में ही है ! आज उनकी परिस्थितिया देख सभी खिल्ली उड़ाते है ! किसी बच्चो को जॉब नहीं वह भी मुह छुपा कर फिरते है ! हालत अच्छी नहीं है !शायद भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं ! भगवान उन्हें सजा दे रहे है !
          इस  संसार में स्वर्ग-नरक साथ - साथ चलते है ! हमारे अच्छे कर्म स्वर्ग और बुरे कर्म नरक के  सामान   है और इसी के अनुसार फलीभूत होते है ! इसी संसार  में सभी के सामने भुगतने पड़ते है !  आज मै उनके उसी बंगले में हूँ , जिसे उन्होंने मुझे ग्रहण करने के लिए आग्रह किया था !
      स्वर्गीय वाई,बी,रेड्डी कर्मठ और अनुशासन के अनुयायी थे ! किसी को किसी चीज की मदद की जरुरत हो ,और वे जान कर भी मदद न करे ....ऐसा कभी हो ही नहीं सकता था ! उनहोंने रेलवे में कई अवार्ड लिए ! जिसे ऊपर के पत्र को क्लिक करके जाना जा सकता है ! अंत में मै उनके आत्मा की ... शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ !
  
                             एक सच्ची श्रद्धांजलि  ........

Tuesday, March 1, 2011

......................मौत का घोडा ...................

                           मृत्यु .......मृत्यु.......मृत्यु........के  नाम  से  ही  बहुतो  के  जेहन  में  सिहरन  व्  कपकपी  पैदा  हो  जाती  है  ! आखिर  मौत  या  मृत्यु  है  क्या  ? इसके  बारे  में  बिश्व  विज्ञानं  बर्षो  से  लगे  हुए  है  ! लेकिन  सिधान्त  तौर  पर  कुछ  नहीं  कर  पाया  ! अंततः  धार्मिक  आस्था  ही  सर्वोपरो  परिलक्षित   होती  है  !  सभी  धर्मो  ने  इसे  अपने -अपने  मन्तब्यो  के आधार पर   प्रेषित  किया ! किसी  ने  आत्मा को  परमात्मा  से मिलन  कहा तो  किसी  ने शरीर रूपी चोला  बदलने  की  कला !  किसी  ने  जीवन की  सार्थक  , परिपूर्ण ..सूर्यास्त !..वगैरह - वगैरह...
                             अगर  हम  मान  ले  की  मृत्यु  कुछ है  , तो  क्या  इससे  बचने  के  उपाय  है  ? अगर  है  तो  क्या ? क्या  इससे  कोई  बच  पाया  है ?अगर  बच गया  तो  कहाँ  है ? वगैरह..वगैरह .....मै  कोई  भाविस्यवेत्ता  नहीं , कोई  ज्योतिष  नहीं ...पर  मृत्यु  जैसी  चीज  को  बार - बार देखता  आया  हूँ ...अनुभव  किया  हूँ ..जिसके दो  उदाहरण आप - बीती = ५ और ६  को  पढ़ने  सेमिल  जायेगा   तथा    भविष्य    में   और  पोस्ट  करूँगा !
                  सवाल  यही  ख़त्म  नहीं  होती  ! क्या  मौत  सभी  की  पीछा  करती  है  या  हम  मौत  के सदैव नजदीक  होते  है  ? मेरे   ख्याल  और  भौतिक बिशलेषण  तो  यही  कहते  है  की मौत  एक  होनी / 
     अनहोनी  है , जो  समय  आने  पर  स्वतः  बारूद  के  गोले  जैसा  फूट  पड़ती  है ! सभी  समय  से  ही  मृत्यु      को  प्राप्त  करते  है ...असमय  कुछ  भी  नहीं  हो  सकता  ! इसी   उपरोक्त  कथन  के  प्रमाणिक  हेतु ..आईये एक  सच्ची  घटना  का  जिक्र  ...प्रस्तुत  है ..!
                   तारीख = २५ -०२ -२०११ ,गुंतकल  से  सोलापुर  की  यात्रा  ..गाड़ी  संख्या = १२६२७ सुपर 
  फास्ट  कर्नाटक  एक्सप्रेस ..और  उस  गाड़ी  का  लोको  चालक   मै  ! बिशेसतः  यह  गाड़ी  हमेशा  समय  से  ही  चलती  है ..अगर  लेट ..तो  इसे  इसका  दुर्भाग्य  ही कहेंगे ! उस  दिन ट्रेन  गुंतकल  से  आधे  घंटे लेट छुटी..और  इसे  अगले  स्टेशन  पर  रुकना  पड़ा  क्यों की वहा  से अगले स्टेशन  पर सिगनल  और  पॉइंट   में  कुछ बाधा  उत्पन्न  हो  गया  था !   दस  मिनट  के  बाद  सिगनल  मिला  और  गाड़ी  स्टार्ट  किया !
                          फिर  अगले  स्टेशन  यानी  नेमकल्लू  में  होम (निकट ) सिगनल  पर पचास  मिनट तक  
     रुकना  पड़ा ! पॉइंट  मेन प्राधिकार मेमो मुझे  लाकर  होम  सिगनल  के पास  दिया  और  गाड़ी  को अन्दर
     तक  लेजाने  में  मदद  किया  ! इस  तरह  से  इस  दिन  कर्नाटक  एक्सप्रेस  सवा  घंटे  से  ज्यादा  लेट  हो  
      गयी ! आगे  यात्रा  के  दौरान , रास्ते  में  मन्त्रालयम रोड नामक  स्टेशन  है , जहाँ  गाड़ी  एक  मिनट के  लिए   रात  के चार बज कर पंद्रह  पर   रुकी और  फिर रवाना हो  गयी  ! जब  की यहाँ  इसका समय  से आगमन रात के दो बज कर चालीस मिनट पर है ! यानी  एक  घंटा  पैतीस मिनट  लेट.! फिर  यहाँ  से  गाड़ी  चार  बज  कर  सोलह  मिनट पर प्रस्थान  हुयी ! अगला  स्टेशन  मतमारी  आने  वाला  था ......की  हमने देखा  की  एक  घोडा ....दौड़ते  हुए  ...गाड़ी  के  सामने  आ  गया  और  तेज  गति  से  गाड़ी  के  आगे - आगे, दोनों लाइन  के बीचोबीच  दौड़ाने  लगा , बिचित्र  दृश्य ..वह  भी  इतनी  रात  गए..,जब  की  कभी  भी  हमने  रात  को  किसी  घोड़े  को  लावारिस , इस  तरह  घुमते  नहीं  देखा  था.!
                       हमने  सिटी  बजायी  किन्तु वह  हटा  नहीं  और  दोनों  लाइन  के  बिच  दौड़ता  रहा !  हमने  
  सोंचा वह किनारे  चला  जायेगा ...किन्तु  ऐसा  नहीं  हुआ !वह  आगे - आगे  और गाड़ी  पीछे - पीछे ! आखिर कार मौत  ने  उसे दबोच  लिया ! वह गाड़ी  के  तेज  झटके से लाइन  से  बाहर  जा  गिरा !हमने  अपनी  यात्रा  जारी  रखी ! गाड़ी  खड़ा  करने का  कई  औचित्य  नजर  नहीं  आया  क्यों की  गाड़ी  को भी कुछ  नुकसान  हुआ हो  , इस  तरह  का  अंदेशा नहीं  था ! अगले  स्टेशन  रायचूर में लोको  का  जाँच  करने  पर हमने  पाया  की  कुछ भी  नुकशान  नहीं  हुआ  था !
                  दुसरे  दिन वापसी  यात्रा  के  दौरान यानि  तारीख =२६ -०२ -२०११ , को ट्रेन संख्या = १२६२८ को लेकर आते  समय  हमने  देखा  की  , उस घोड़े  का  मृत शरीर  लाइन  से  दूर  पड़ा  था  ! इस  घटना  का बिष -
 लेषण करने  से  बिदित  होता  है  की -न ट्रेन  लेट  होती  , न घोडा मरता !  उस  घोड़े  की  मृत्यु समय -४.१६ से  ४.२७ बजे के बिच ही  होनी  थी !  नियति  ने  खेल  खेला , गाड़ी  लेट  हो  गयी  और  घोडा  कही  दूर  होने  पर  भी ...समय  से  ट्रैक  के  बिच  आ  गया ! नियति  के  खेल  बड़े  निराले  , कोई  इसे  पराजित  नहीं  कर  सका ..! प्राचीन  कथाओ  में  गिद्ध राज  की  मौत  भी  सुनिश्चित  थी ....यमराज  से  छुपने  के  बाद  भी  न बच  सके  ! ( इसके  बारे  में श्री गगन शर्मा जी का -  " कुछ  अलग सा " में  शीर्षक -" शायद  प्रारब्ध की हर घटना का  स्थान और समय निश्चित होता है " पढ़ने योग्य है   ( चार  दिनों की अवकाश पर शिरडी जा रहा हूँ , अगला पोस्ट वहा से वापस आने के बाद - श्रधा  और सबुरी  . )