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Wednesday, October 29, 2014

कुत्ते कहीं के ।

प्राणी मात्र में ही उथल - पुथल ज्यादा होते है ; ऐसा नहीं है । इस उथल पुथल को संसार के सभी अवयवो में देखा जा सकता है जिसमे जीव की मात्र उपस्थित होती है । सभी के रंग और व्यवहार अलग अलग होते है । मनुष्य मात्र ही ऐसा प्राणी है जिसे अच्छे बुरे का ज्ञान होता है । प्रकृति का सर्वोत्तम प्राणी का ताज इसे ही प्राप्त है ।किन्तु यह भी सत्य है और जिससे प्रायः हमें कोई सरोकार नहीं होते कीअन्य जीव जंतु भी हमारी तरह सोच विचार करते है । समय के अनुसार बदले की भावना उनमे भी भरी होती है । ये बदला लेने के लिए काफी आक्रामक भी हो जाते है ।यहाँ तक की जान की भी परवाह नहीं करते । 

ऐसी  ही कुछअन होनी आ धमकी थी।बाजार से लौटते समय  बालाजी और रामजी ने एक जोड़े कुत्ते को सड़क के किनारे बैठे  देखा । एक लाल और दूसरी सफ़ेद रंग की थी । दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी । वे सड़क छाप और कुत्ते कहीं के थे। जाहिर  है किसी भी प्राणी के बच्चे बहुत लुभावने होते है । अतः उनके मन में भी इच्छा जगी की इन्हें घर ले चला जाए । 

दोनों घर के सदस्यों से घुल मिल गए  और एक साथ ही घुमते खाते पिते थे । अकेले किसी एक को भोजन देने से मजाल है जो कोई अकेले खाए यानि दोनों की उपस्थिति जरुरी थी । एक दिन दोनों सड़क के किनारे खेल और कूद रहे थे तभी कोई बाईक सवार सफ़ेद बच्चे को कुचल कर चला गया । वह अधमरा सा हो गई । उसका बचना असंभव सा प्रतीत होने लगा । बड़े पुत्र रामजी और पत्नी को उसकी पीड़ा बर्दास्त नहीं हुयी । तुरंत उसे जानवर के डॉक्टर के पास ले जाया गया । डॉक्टर ने एक सुई लगाई और कहा कि एक सप्ताह में ठीक हो जायेगा  अन्यथा इसका बचना मुश्किल है । पत्नी को रहा नहीं गया तो एक रुपये से साईं बाबा जी से मन्नत मांग ली । मन्नत और दवा रंग लायी और उसकी  जान बच गई।

फिर दोनों कुत्ते साथ साथ रहने लगे । दीपावली के एक सप्ताह पहले की बात है । उस दिन लाल कुत्ते को एक मरा हुआ मेढक मिल गया था  उसे पाने के लिए फ़ेद वाले ने झपटा मारी । गहरी  दोस्ती दुश्मनी में बदल गई । दोनों में खूब  युद्ध हुआ  दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया । अब रोजाना लडाई होने लगी । अतः हमने दोनों को अलग अलग रखने का निर्णय किया  । एक को पिछवाड़े और दुसरे को बंगले के अगवाड़े रखा जाने लगा ।

अचानक दीपावली के बाद सफ़ेद कुत्ते की तबीयत ख़राब हो गयी । घाव गहरे हो गए थे । आखिर कार वह 25 अक्टूवर 2014 को चल बसी ।सभी से इतना घुल मिल गयी थी कि उसकी यादे भुलाये नहीं भूलती । लाल कुत्ते को फ्री करते ही वह उसके मृत शरीर के पास गयी और उसके चारो तरफ एक चक्कर लगायी और उसके सिर के नजदीक कुछ समय के लिए बैठ गई जैसे वह अपने दोस्त की मृत्यु की शोक मना रही हो और कह रही हो कि मुझे माफ़ करना मै ही तुम्हारे मृत्यु का कारण हूँ । हमें भी इसकी अनुभूति हई । देखा लाल वाली कुत्ते के मुह पर उदासी की रेखाए थी ।

कुत्ते कहीं के होते है पर इनके स्वामी भक्ति की मिसाल जल्दी नहीं मिलती । मात पिता बंधू बांधव सभी को भूल अपने स्वामी के हो जाते है । आज का इंसान कब जागेगा और आतंकवाद हिंसा कब रुकेगी ?