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Thursday, June 2, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा ।

झेलम एक्सप्रेस का खाना 
माँ बैष्णो देवी के दर्शन के बाद लौटते हुए 
बहुत दिनों से जम्मू कश्मीर की यात्रा की इच्छा थी । वह भी वैष्णो देवी माँ  का दर्शन । सुना था की मंदिर तक पैदल रास्ता ही है ।  जेब भारी हो तो और भी दूसरे साधन उपलब्ध है जैसे घोड़े या पालकी या हेलीकॉप्टर ।  1983 वर्ष में श्रीनगर गया था । किन्तु बैष्णो देवी माँ के दर्शन करने की इच्छा पूरी न हो सकी  थी क्यों की किसी और कार्य से गया था । वैसे लोग कहते है कि माँ जिन्हें बुलाती है , वही उनके दरबार तक जा पाता है । उस समय विवाह भी नहीं  हुई  थी । किन्तु जम्मू कश्मीर में उस समय किसी तरह का डर भय या आतंकवाद  नहीं था ।हमारे घर में एक यात्रा का प्रोग्राम प्रति वर्ष बन ही जाता है । ये सच है की किसी भी यात्रा में आर्थिक परिस्थिति ही साथ देती है जो आप को प्रति क्षण संयोजे रखती है । आज कल देश का भ्रमण सबके लिए बस की बात नहीं है । दिन ब दिन महंगाई दबोचे जा रही है । हमारे साथ भी यही समस्या आ खड़ी थी  जिसका नियोजन यात्रा के पूर्व ही कर लिया था ।

मंदिर की लोकेशन जेहन में भय पैदा कर रही थी । फिर भी हिम्मत से  सभी तैयार हो गए ।  जेब खाली हो तो यात्रा दर्शन के नज़ारे मनहूस सा लगते है । हमें एक चीज का फायदा जरूर है की ट्रेन के यात्रा खर्च बच जाते है । फ्री पास जो उपलब्ध है । हमने  पूरी तैयारी के साथ गुंतकल से नई दिल्ली से कटरा से लुधियाना से फिर नई दिल्ली से शिरडी से गुंतकल का अग्रिम टिकट बुक कर लिए थे । सारे के सारे कंफर्म हो गए थे । 2 मई 2016 को कर्नाटक एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ट्रेन चलाते वक्त जो अनुभूति मिलती है उससे ज्यादा आनंद  ट्रेन से यात्रा में है जो मुझे बहुत पसंद है । वह भी लंबी दुरी  हो तो कुछ और ही  ।

मैं बहुत अनुशासित हूँ , मुझे नाइंसाफी पसंद नहीं है । अतः किसी भी हद का विरोध जल्द कर देता हूँ । कर्नाटक एक्सप्रेस में खाने पिने के लिए पैंट्री उपलब्ध है । आज कल ट्रेन में कोई  भी चीज सस्ती नहीं है । अतः मेरा सुझाव है कि आप अपनी यात्रा के पूर्व खाने पिने की व्यवस्था घर से करके ही चले तो सुखमय है । एक जगह एक वेंडर 20 रुपये में एक बोतल पानी दे रहा था । जिसके ऊपर मैं गुस्सा हो गया था और कोच से बाहर चल जाने के लिये कहा क्योंकि पैंट्री वाले 15 रुपये में दे रहे थे । खाने के मामले में  पैंट्री वाले पैसे बहुत वसूलते है पर खाना ऐसा की एक छोटे बच्चे का पेट भी नहीं भरेगा । चलिए इसी बहाने पैसे से आंशिक उपवास भी हो जाता है ।

3 मई को दिल्ली पहुँच गए । रिस्तेदार बहुत है । उन्होंने घर आने की रिकुवेस्ट की थी । किन्तु फिर शाम को 5.30 बजे श्रीशक्ति एक्सप्रेस से कटरा के लिए रवाना होना था  । अतः चार  5 घंटे के लिए कहीं  दूर जाना मुनासिब नहीं लगा  । दस बज रहे थे अतः रिटायरिंग रूम में समय व्यतीत कर लेना ही उचित समझा । रिटायरिंग रूम में डबलबेड वाला रूम 250/- में  मिल गयी । 5 बजे शाम तक के लिए केवल ।हमलोग  स्नान वगैरह कर स्टेशन के बगल में स्थित बाजार में चल पड़े । जहाँ कुछ छोटी मोटी खरीदारी हुई और दोपहर का भोजन । छोले भटूरे। नया नाम पर सुना  हुआ । हमारे दक्षिण में नहीं मिलती है । हमने इसके स्वाद चखे । चटक और मजेदार लगा । वापसी में अनार ख़रीदे जो सौ रुपये से भी ज्यादा प्रति किलो था । हमारे यहाँ 60 या 70 के दर में मिल जाते है । समय कैसे बिता । पता ही नहीं चला । मौसम भी नरम और अनुकूल था ।

सामान समेट कर 17 बजे प्लेटफॉर्म में आ गए । अभी श्रीशक्ति एक्सप्रेस ( 22461 ) का रेक बैक नहीं हुआ था । 15 मिनट बाद हम 2 टेयर ऐसी कोच में प्रवेश किये । समय से ट्रेन रवाना हुई । संध्या होने वाली थी । वेंडर कोच में फिरना शुरू कर दिए थे । हमने पनीर पकौड़े के दो पैकेट ख़रीदे । चार्ज 120 रुपये लगा । पैकेट खोले । प्रति पैकेट में शायद 5 पकोड़े थे , वह भी छोटे छोटे । दुःख हुआ इस नाइंसाफी के लिए । हमारे पास रात्रि भोजन भी नहीं था । ट्रेन में खरीद कर हल्का फुल्का खा लेंगे , समझ कर बाहर से नहीं लाये थे । पैंट्री में ही 3 भोजन ( शाकाहारी ) का आर्डर दे दिया  । ट्रेन अम्बाला पहुच गयी थी , पता ही नहीं चला । किन्तु 30 मिनट से खड़ी थी । आखिर क्यों ? पता नहीं चल रहा था । ट्रेन से बाहर  आकर लोगो से पता किया । किसी ए सी कोच में ए सी काम नहीं कर रहा था अतः लोग इसकी मरम्मत चाह रहे थे । अंततः करीब एक घंटे बाद ट्रेन रवाना हुई ।

इसी बीच एक दोस्त को फोन लगाया जो लुधियाना में लोको पायलट है । उन्हें जान कर बहुत ख़ुशी हुई की मैं इस ट्रेन से कटरा जा रहा हूँ । उन्होंने  घर से भोजन उपलव्ध कराने की इच्छा जाहिर  की । हमने धन्यवाद कह मना कर दी क्यों की खाने का आर्डर दिया जा चूका था । कुछ समय बाद रात्रि भोजन का पैकेट हमारे सामने था । रात्रि के साढ़े नौ से ऊपर हो रहे थे । जल्द भोजन ग्रहण किये किन्तु भोजन किसी काम का नहीं था । स्वाद से ज्यादा गुस्सा बढ़ा गया । ट्रेन है सोंच कर बर्दास्त कर लिए । हम सभी अपने अपने बर्थ पर सो गए । मैं ऊपर के बर्थ पर सो गया । आधे घंटे बाद पैंट्री बॉय पैसे वसूलने आया । मैंने उसे पांच सौ के नोट दिए । वह मुझे कुछ छुट्टे वापस से जल्द चला गया । मैंने गिनने शुरू किये ये तो 140/- रुपये ही है । वह 360/- रुपये 3 भोजन का ले लिया था ।

ये तो पब्लिक के साथ बहुत बड़ा धोखा है । कुछ करना चाहिए । ये सरासर बेईमानी है । मैंने तुरंत रेलवे को इसकी शिकायत की । दूसरी तरफ से मेरी शिकायत दर्ज की गयी और कार्यवाही का भरोसा दिया गया । कुछ देर बाद रेलवे का कॉल आया और मुझे बताया गया की आप पैंट्री मैनेजर से शिकायत दर्ज करा दीजिये । मैंने कहा आप लोग अपनी तरफ से कार्यवाही करे मैं सबेरे शिकायत लिख दूंगा और  आराम से सो गया । कुछ देर बाद टीटी साहब आये और मुझे जगा कर पूरी जानकारी लिए । उन्होंने कहा की आप ने  इतनी ऊपर शिकायत क्यों कर दी । मुझसे कहना था । मैंने कहा कि आप को कहाँ कहाँ ढूढता फिरू । ठीक है देखता हूँ - कह कर चले गए और सबेरे तक वापस नहीं आये । सुबह ट्रेन कटरा पहुंची । हम निचे उतरे । प्लेटफॉर्म पर टीटी महोदय दिखाई दिए । फिर उनसे पूछा ? भोजन के बारे में क्या कार्यवाही हुई ? पैंटी का मैनेजर उनके पास ही था । उन्होंने उससे मेरा परिचय कराया।

मैनेजर मुझे पैंट्री के अंदर ले गया और शिकायत न करने की विनती करने लगा । उसने मेरे हाथो पर 60 रुपये वापस दिए । मैंने कहा - फिर भी 100 रुपये का भोजन हुआ और वह भी  घटिया । वह गिड़गिड़ाने लगा और बोला - सर आप माँ का दर्शन करने आये है । हमें क्षमा कर दे माँ आप को देंगी । वह बच्चा नया है । गलती हो गयी । हम गरीब लोग है । अब मेरा मन भी शिकायत के मूड में नहीं था । उन्हें दुबारा ऐसी गलती न हो की हिदायत दे बाहर आ गया ।

कटरा रेलवे स्टेशन और बालाजी ।


आगे की यात्रा विवरण  अगली क़िस्त में पढ़िए ।

Thursday, May 14, 2015

अनहोनी

13 मार्च 2015 । अलार्म बजने लगा था । तुरंत उठ गया और पास में सोये हुए जुबेदुल्ला जी को भी उठाया । शायद गुंतकल आने वाला था । अलार्म भी इसीलिए तो सेट किया था । हम दोनों बैठ गए । तभी जुबेदुल्ला जी का मोबाइल बज उठा । उन्होंने काल रिसीव किया । कुछ हलकी सी बाते हुयी । मैंने पूछा - किसका काल था ? ऐसेमेल राम का । फिर उदासी भरे लहजे में बोले - एक और spad हो गया । कहाँ ? अचानक मेरे शव्द निकले । उन्होंने कहा - इसी ट्रेन का यानि गरीब रथ एक्सप्रेस का और इसके लोको पायलट शेर खान । मेरे मुह खुले रह गए । आश्चार्य और दुःख , विषाद चेहरे पर फ़ैल गया ।कुछ विश्वास नहीं हो रहा था । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग रही थी । हमने लोको के नजदीक जाने की तैयारी की जिससे इस ट्रेन के लोको पायलट से कुछ जानकारी ली जा सके ।

हम लोको के पास पहुंचे । यह क्या ? ट्रेन का लोको पायलट कोई और था । अब किसी अविश्वास की कोई गुन्जाईस  नहीं थी । हमने इस लोको पायलट से पूछा ? उसने भी घटना को सही बताया । लोको पायलट के जीवन की सबसे दुष्कर वक्त इससे ज्यादा कोई नहीं है । Spad के बाद वह असहाय हो जाता है । कोई भी उसकी हमदर्दी में सहयोग नहीं देता । सिवा कुछ लोको पायलटो के अपने संघठन के । इसी लिए सर्वथा कहते सुना जाता है की एक लोको पायलट हजारो की जाने बचा सकता है पर हजार एक साथ मिलकर एक लोको पायलट को जीवन दान नहीं दे सकते । ये कैसी विडम्बना है ?

कहते है तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता । वाकई सही है । कल ही सिकंदराबाद रनिंग रूम में हम एक साथ चाय पिए थे । बातो - बातो में मैंने शेरखान से पूछ था की कब पार्टी दे रहे हो ? उन्होंने अत्यधिक ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा था । पार्टी जरूर दूंगा वह भी इसी माह में । ओफ्फिसियल पत्र जल्द आने वाला है । हमने भी ख़ुशी जताई ।

शेरखान लारजेश स्किम के तहत रिटायर होने वाले थे । वह भी इसी माह में क्योकि उनके बेटे का चयन की परिक्रिया पूरी हो गयी थी । शेरखान के बेटे की बहाली सहायक लोको पायलट के रूप में होनेवाली तय  थी और उन्हें वीआरएस । शेरखान के लिए अब सारे सपने अधूरे शाबित होंगे यदि रेलवे प्रशासन कठोर कार्यवाही करती है । आज कल spad की घटनाओ में लोको पायलट को सर्विश से हाथ धोना पड़ता है । ऐसी कठोर सजा और कहीं नहीं मिलती ।

लोको पायलट का जीवन कोल्हू के बैल जैसा है । रेलवे उसे मनमानी ढंग से उपयोग करती है । न रात को चैन न ही दिन में । बिना मांगे साप्ताहिक अवकाश भी दूर । तीज त्यौहार की क्या कहने ।आप अपने बर्थ पर आराम से सोते है । लोको पायलट रात भर पलक झपकाये बिना आप को आपके मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाते है । और भी बहुत कुछ जो छुपी हुयी है । क्या आपने कभी लोको पायलटो के जीवन में झांकने की कोशिश की है ? अगर नहीं तो हर व्यक्ति को जाननी चाहिए ? एक बार सोंच कर तो देंखे यदि आप एक लोको पायलट होते ?

आज शेरखान ससपेंड है । विभागीय ऑफिसर से मिला और शेरखान के केश को सहानुभूति पूर्वक संज्ञान में लेने की अनुरोध भी कर चूका हूँ  । विभागीय अफसर से सकारात्मक उत्तर मिला  है । प्रशासनिक कार्यवाही जारी है । देखना है समय की छड़ी किस आवाज से पुकारती है  ।

हम लोको पायलटो की संवेदना उनके साथ है । हम लोको पायलट कर्मठ भी और असुरक्षित ।