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Wednesday, May 31, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6

आज 10 मई 2016 , दिवस मंगलवार है । दिल्ली से कोपरगाँव के लिए झेलम एक्सप्रेस में सीट रिजर्व था । सुबह जल्दी तैयार हो गए । बोर्डिंग नयी दिल्ली स्टेशन से थी ।  होटल से रेलवे स्टेशन काफी नजदीक ही है , फिर भी ऑटो वाले एक सौ रुपये की मांग रख रहे थे । अजीब है कमाई ! दुनिया में ईमानदारी भी कोई चीज है या नहीं । एक दूसरे ऑटो वाले ने 50 रुपये में रेलवे स्टेशन तक पहुंचा दिया । सुबह नाश्ते की आदत है । रेलवे स्टेशन के सामने ही एक तमिल वाले  की दुकान दिखाई दी । ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि यहाँ अच्छे नास्ते की संभावना थी ।

हम दुकान में प्रवेश किये । हम सभी , जिसे जो खाने की इच्छा थी   , उसकी फरमाइश पेश कर दिए  । इडली , डोसा , पोंगल यानि हर दक्षिण भारतीय नास्ते उपलब्ध थे । पर एक विशेषता यह दिखी की सभी आइटम  टेस्टी भी थे  । बिलकुल दक्षिण भारतीय होटलो की तरह । साफ सुथरा नार्मल था और बिल भी वाजिब । आज बहुत दिनों के बाद कुछ स्वादिष्ट खाने के लिए मिला था ।

मैं आज बहुत आनंद महसूस किया । हमारी ट्रेन समय से आधे घंटे लेट थी । हमने दोपहर का आहार भी इसी दुकान से लेनी चाही किन्तु इसके लिए और 2 घंटे wait करने पड़ेंगे । हमारे पास समय नही था । अतः ट्रैन में ही ले लेंगे , की आस पर प्लेटफॉर्म में आ गए । जैसा कि सर्व विदित है कि कुछ ट्रेनों में पेंट्री कार होते है जो यात्रियों को खाने पीने की सामग्री की व्यवस्था करते है । इस सुविधा के पीछे रेलवे की धारणा यही है कि इससे यात्रियों को उचित दर पर खाने - पीने के बस्तुओं की व्यवस्था हो पाएगी । आज कल रेलवे इसे ठेकेदारों के माध्यम से प्रायोजित करता है । किसी भी क्षेत्र में ठेकेदारों के क्या योगदान है सभी जानते है । एक तरह से ये प्रथा एक कानूनी लूट को ही इंगित करती है । जहां भी ठेकेदारी है वहाँ गुडवत्ता का अभाव और लूट ज्यादा है । जनता परेशान और प्रशासन मस्त रहते है ।

मेरे विचार से ठेकेदारी सरकारी तंत्र में मलाई खाने का एक आसान साधन है । सरकारी तंत्राधीश नजराने लेते है और ठेकेदार को एक के माल को नौ के भाव पास कर देते है । ठेकेदारों और सरकारी तंत्रकारो के मकड़ जाल ऐसे होते है कि कोई उनके विरोध में आवाज नही उठता है । इसके स्वप्निल रूप चित्रपट में प्रायः  दिखते है । आईये झेलम एक्सप्रेस के ठेके ( पैंट्रीकार ) के ऊपर एक दृष्टि डालें -

पैंट्रीकार वाले अग्रिम आर्डर ले लेते है । उस दिन भी वैसा ही हुआ । एक युवक दोपहर के भोजन का ऑर्डर लेने के लिए हमारे सीट के पास आया । हम ऐसी two टायर में थे । उसने वेज खाने की कीमत 120 रुपये बतायी । मुझे गुस्सा आ गया । वेज खाना इतना महंगा और मात्रा भी काफी कम होते है । मैंने उससे मेनू लाने के लिए कहा । कुछ समय बाद वह एक पेपर लेकर आया जिसमे तरह तरह के व्यंजन और उनके कीमत अंकित थे । वेज का कीमत 120 रुपये ही था । 120 रुपये में कौन सी सामग्री सर्व होगी , सब कुछ था । हमारी मजबूरी थी । 3 खाने का आर्डर दे दिया गया । करीब डेढ़ बजे दोपहर को खाने के पैकेट हमे दिया गया । सबसे पहले पुत्र जी ने एक पैकेट खोले और भोजन की शुरुवात की । आहार में कोई टेस्ट नही था । चावल के दाने काफी मोटे मोटे तथा लिस्ट के मुताबिक व्यंजन नही दिए गए थे । ऊपर की तस्वीर देंखें ।

कीमत के अनुसार अव्यवस्था देख मुझे बहुत गुस्सा आया । मैंने रेलवे मंत्री को ट्वीट करनी चाही किन्तु नेट की असुविधा से ऐसा न कर पाया । जब पैंट्रीकार के प्रबंधक को मालूम हुआ तो वह और टीटी भी आये । प्रबंधक ने क्षमा मांगी और बहाने में कहने लगा कि गलती से ये आप के पास आ गया । मैं उनके बहाने बाजी समझता था । भोजन वापस कर दिया । मैने उन्हें बता दिया कि इसकी ऊपर शिकायत करूँगा । प्रबंधक सहम गया । उसने पैंट्रीकार से टी और ब्रेड भिजवाई । ताकि मैं शिकायत न करूँ । मैंने अस्वीकार कर दिया और बड़े पुत्र को फोन लगाया । दूसरे तरफ से पुत्र ने फोन उठायी । मैन उन्हें पूरे किस्से बताए और घर से रेलवे को शिकायत भेज देने के लिए कहा । पुत्र ने ऐसा ही किया । शिकायत दर्ज हो गयी और शिकायत नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया ।

PNR 2858871469
TN 11078
Date of journey 10.05.2016
NDLS to KP G
Meals quality and stranded very bad. Veg.
And even though they are about to charge Rs 120/-
I did not had and returned it due to.
advised TTE also on duty .
That type of meals even we are not feeding to our dog in home.

एक सप्ताह बाद मुझे रेलवे के कार्यालय ( दिल्ली ) से फोन आया । फोनकर्ता ने शिकायत की पूरी जानकारी पूछी । मैंने पूरी कहानी सुना दी और कहा कि ऐसा भोजन मेरा कुत्ता भी नही करता है । विश्वास न हो तो मेरे घर आकर जांच पड़ताल कर लें । किन्तु दूसरे तरफ से कोई उत्तर नही मिला । फोनकर्ता ने कार्यवाही करेंगे , कह कर फोन काट दी । कुछ दिन के बाद मुझे एक एस एम एस मिला । जो रेलवे का था । उसमें लिखा था कि झेलम एक्सप्रेस के ठेकेदार पर दस हजार का जुर्माना लगाया गया है । इस समाचार के बाद कुछ सकून मिला ।

इसके पहले एक समाचार पत्र में भी पढ़ा था कि रेलवे के महाप्रबंधक ने झेलम एक्सप्रेस के पैंट्रीकार की औचक निरीक्षण किया तथा अनेक अनिमियता देखी । ठेकेदार पर पचास हजार का जुर्माना ठोका ।

जी हां । रेलवे आप को सतत  उचित सेवा देने के लिए प्रयासरत है । क्या आप रेलवे की मदद करेंगे ?

अभी भी  न्याय जिंदा है ।

Friday, August 9, 2013

मृत्यु की बोनस जिंदगी

उस दिन की घटना कैसे भुलाई जा सकती है । हम लोको पायलटो का जीवन ही ऐसा है । रोजमर्रा के किसी भी कार्य की  कोई समय बद्धता नहीं होती । जीवन तो जीवन है , मृत्यु भी हमें अपनो से अलग कर देती है । परिवार से सदैव अलगाव पन  की परिस्थितिया नाना प्रकार की समस्याओ को जन्म देती है । मानसिक कुंठा घेर लेती है । ऐसा ही कुछ , इब्राहीम के परिवार में आज की रात की व्यथा गम की हवा विखेर दी  थी । 

उस लोको पायलट का नाम इब्राहीम था । कुछ ही देर पहले माल गाडी लेकर आयें थे  । रात्रि के साढ़े बारह हुए होंगे । अभी साईन ऑफ भी नहीं कर सके थे  । वाश - वेसिन में हाथ धोते समय , उन्होंने  ह्रदय में दर्द महसूस की  और सीने पर हाथ रख , अचानक फर्श पर गीर पड़े थे  ।

लॉबी में उपस्थित जिन्होंने भी देखा , घबडा ये सा  उस तरफ दौड़े । वह निःसचेत पड़ गए  थे  ।  जिसे जो जान पड़ा , मदद करना चाहा  । किन्तु किसी के वस में कुछ नहीं था । उनके  प्राण - पखेरू उड़ चुके थे । उन्हें  तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र में  ले जाया गया । डॉक्टर ने उन्हें औपचारिक रूप से मृत घोषित कर दिया । कैसी बिडम्बना थी ,मौत ने उन्हें परिवार के  किसी से मिलने का अवसर प्रदान नहीं किया  था ।  ऐसा लगता है - वह मृत्यु द्वारा दी गयी बोनस की आयु के अंतर्गत जी रहे थे  । वह कैसे ? आयें विचार करें -

एक बार हम सभी लोको पायलट रायचूर रनिंग  रूम में बैठ कर समाचार पढ़ रहे थे ।उस  समय मै सहायक लोको पायलट था । हमारे बिच इब्राहीम जी भी थे । आपसी वार्तालाप और बातो -बात में सर्प का प्रसंग छिड़ गया । किसी ने कहा - इस रनिंग रूम के अन्दर बहुत सांप है , हमें सावधान रहना चाहिए । कईयों ने हामी भरी थी । और यही वास्तविक  सच्चाई भी थी । हमें कभी कभार सांप दिखाई देते थे और केयर टेकर उसे मार डालते थे । इब्राहीम जी  सभी के बातो को सुन रहे थे । सहसा हँसे और बोले - " मै एक बार सांप के मुंह से बच चूका हूँ । अभी बोनस की जिंदगी जी रहा हूँ , अन्यथा कई वर्ष पहले इस दुनिया को  अलविदा  कर दिया होता ।  कभी सोंचता हूँ तो शरीर  में सिहरन दौड़ जाती है , अल्लाह ने मदद की थी । "

हम उस समय रेलवे में नए - नए आये थे । शायद १९८८ की घटना है । हम रनिंग स्टाफ की  कहानी और किस्से सुनने  के बहुत शौक़ीन थे । किसी ने उनसे उस घटना को प्रस्तुत करने के लिए आग्रह कर दिया था । इब्राहीम जी ने कहा कि  एक बार वे इसी रनिंग रूम में अपने बैग को  ,अपने बेड के निचे रख कर सो रहे थे । बैग का जीप खुला हुआ था । आधी रात के बाद whitefield  गुड्स को कार्य करने का काल बुक मिला । मै सोकर उठा और बाहर रखे यूनिफार्म को पहन लिया तथा बैग का जीप बंद कर ड्यूटी के लिए लॉबी में आ गया । लॉबी जाते समय बैग भारी लग रहा था । लॉबी में साईन ऑन किया । गुड्स ट्रेन का चार्ज लिया । ट्रेन चलाकर गुटी जंकशन तक आया । गूटी में साईन ऑफ भी किया  और फिर घर आ गया । 

घर में जब टावेल निकलने के लिए बैग का जीप खोला ,उसमे से सांप के फुफकार की आवाज आई और एक लम्बा सांप बाहर निकलने लगा । घर के अन्य सदस्य अचंभित हो गए । उस सांप को मार दिया गया । मेरी पत्नी ने अल्लाह से दुआ के लिए हाथ ऊपर उठा  लिए और कहने लगी - " अल्लाह का शुक्र है , जो तुमने चलती ट्रेन में बैग नहीं खोले । अन्यथा यह सांप तुम्हे डंस लेता था "  

यह सुन हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा और तरह - तरह के प्रश्न उठने लगे ?

रनिंग रूम में रात के अँधेरे में बैग के अन्दर हाथ डालने पर क्या हो सकता  था ?
लोको के गति के दौरान बैग का जीप खोलने पर क्या हो सकता था ?
रायचूर और गूटी लॉबी के अन्दर बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?
घर में अन्य किसी के द्वारा बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?

यानी हर परिस्थिति खतरे से खाली नही थी । उनके साथ घटी यह घटना , हमारे शरीर में भी शिहरण पैदा कर देती है । इस नियति के खेल बड़े निराले है । शायद इब्राहीम जी को रेलवे प्रांगन में ही , आखिरी साँस लेनी थी । हम रनिंग स्टाफ की जिंदगी रेलवे के लिए अनमोल और परिवार वालो के लिए आस्था का विषय है । सबसे  ज्यादा विरह - वेदना पत्नी को सहने पड़ते है । जिसकी आँखे हमेशा दरवाजे की ओर एक टक इंतजार में डूबी रहती  है । प्रियतम कब सकुशल घर आयेंगे ?

अल्लाह इस ईद की उपलक्ष में इब्राहीम जी की आत्मा  को शांति दें ।