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Saturday, May 18, 2013

मेरे नैना ...क्यू भर आयें ?

जीवन से मृत्यु का सफ़र सभी के लिए खुशनसीब नहीं होतें । संघर्ष भरी कड़ी का अंत ही तो मृत्यु  है । इन्होने जीवन को  एक कर्मयोगी की तरह जी थी । ऐसे पुरूष विरले ही देंखे थे , जिन्हें कभी गुस्सा आया हो ? किसी को भी मुस्कुराकर स्वीकार करने की शक्ति इनमे थी । बच्चे हो या नौजवान या हमउम्र ...सभी से हंसते हुए व्यवहार ..गजब से थे । ह्रदय में गुस्से की प्रतिशत नाममात्र भी नहीं । मैंने अपने जीवन का बचपन इनके आगोश में ही  विताएं । मुझे  याद है , एक ..... बस एक  बार थप्पड़ मारे थे , वह भी स्कूल जाने के लिए । पिताजी ऐसे थे , जिन्हें एक भी शत्रु नहीं थे । उनकी सक्सियत विरले ही मिलेगी । खुद हम भी उनके कदमो  पर चलने में असमर्थ है । 

पढ़े नहीं । स्कूल नहीं गए थे । रामायण की चौपाई या दोहें सामने बैठे बच्चो को प्यार से सुनाते  थे । किताबे धीरे - धीरे पढ़ लेते थे । कागजातों पर हिंदी में अपनी हस्ताक्षर कर लेते थे । गाँधी जी को देंखे थे हमें उनके बारे में भी बताते थे । उन्होंने कभी भी पैसे नहीं पूछे । निस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी । उन्हें गाय - गरू और खेती बहुत प्रिय थे । जब -तक शरीर में दम थे ,खेती को नहीं छोड़ें । 
उनकी बराबरी करने की शक्ति हम दोनों भाईयो में नहीं है । 

पिछले एक वर्ष से वे कमजोर हो गए थे । दावा -दारू चल रहा था । विस्तर पकड़ लिए थे ।  दिनांक ८ अप्रैल २ ० १ ३ को मेरे दादा जी के छोटे भाई का देहांत हो गया । पिताजी ने  घर के अन्दर से ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय देखा । वे भाव - विह्वल हो गए ।  " काका मुझे छोड़ कर चले गए । "- कह -कह कर रोने लगे थे । इसके उपरांत पिताजी की तबियत और ख़राब होने लगी । खान - पान बंद होने लगे । सभी को आशा की किरण कम नजर आने लगी । मुझे इसकी सूचना मिली । 2 3 अप्रैल 2 0 1 3 को बछिया के पूंछ पकडाने और उसको ब्राह्मण को दान देने की विधि संपन्न कराई गयी । इसके बाद उनकी आँखे और बात - चित बंद हो गयी । 

इस गंभीर समाचार के बाद मैंने अपनी यात्रा शुरू कर दी । 2 5 अप्रैल 2 0 1 3 को ट्रेन पकड़ी । गुंतकल से बलिया जाने में कम से कम 4 8 घंटे लगते है । इधर सभी परेशां थे क्यूंकि उनके काकाजी का क्रियाकर्म 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को होनी थी । डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे । यात्रा के दौरान हर घडी की खबर मुझे दी जा रही थी । 2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को इलाहबाद पहुंचा । देखा -मोबाईल का स्क्रीन क्रैक हो गया था । मन में डर पैदा हो गया । वातानुकूलित डिब्बे में अपने बर्थ में मुंह छुपा कर रो दिया था । 

शाम को साढ़े छह बजे बलिया पहुंचा । मेरे बहनोई मुझे लेने के लिए आयें । घर पहुँचाने में बस आध घंटे की दुरी बाकी थी । तभी बहनोई की मोबाईल बजी । बहन का फोन था । फोन रखते ही उनकी आँखे भर आई । माजरा समझते देर न लगी । पिताजी जी मुझसे मिले वगैर प्रस्थान कर चुके थे । रात का अँधेरा , चारो तरफ फैला हुआ था । जो उत्तर - प्रदेश की उन्नति का गवाह था । घर में कदम रखते ही माँ , बहन और अन्य सभी रो पड़े । मै  पिताजी के पार्थिव शरीर से चिपक कर रोने लगा । माँ सुध खोये जा रही थी । अपने ऊपर कंट्रोल किया और माँ को सान्तवना दी की आप के सामने अभी मै हूँ । आप निः फिक्र रहे । 

कितनी विडम्बना थी की 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को जब -तक उनके काकाजी का क्रिया कर्म और भोज की प्रक्रिया चली  , उनके प्राण नहीं निकलें ।शायद  पिताजी की आत्मा अपने काकाजी  के रस्म में खलल नहीं डालनी चाहती थी  । सभी कह रहे थे की अंतिम क्षणों में तीन बार भगवान का नाम लिए थे । दुसरे दिन 2 7 अप्रैल 2 0 1 3 को पिताजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपूर्त कर दिया गया । कईयों की इच्छा गंगा में परवाह करने की थी । किन्तु माँ ने इच्छा जाहिर कि  की  हमारे पुरखे जिस जगह अग्नि को सुपुर्द हुए है  , वही इनका भी संस्कार होगा । माँ की इच्छा भला कौन टाले  ?  ज्येष्ठ पुत्र के नाते मुझे ही मुखाग्नि देनी पड़ी । बाकी सभी क्रिया कर्म गरूण पुराण के अनुसार पूर्ण हुए । 

कुछ सार्थक मुहूर्त होते है । जो कुछ न कुछ कह जाते है । सभी को इस मृत्यु रूपी सच्चाई का सामना करना है । दुनिया से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ ? बस अपने कर्मो के पद छाप छोड़ जाते है । 


                                             मेरी रेलवे की नौकरी दिनांक - 2 6 जून 1 9 8 7 । 
                                             मेरे दादाजी की मृत्यु दिनांक - 2 6  जून 1 9 9 6 । 
                                            मेरे पिताजी की मृत्यु दिनांक -2 6 अप्रैल 2 0 1 3 । 
                                             "--------------------------- "-2 6 .                    ?

जीवन की सबसे बहुमूल्य समय गवा दिया था । पिताजी का अंतिम आशीर्वाद से वंचित रहा । यह हमेशा ही खलेगा । मेरे नैना  फिर भर आयें ....फिर भर आयें ......



Monday, February 11, 2013

हाय जीवन तेरी यही कहानी

मिडिया में खलबली | बारम्बार समाचार  चैनलों पर दिखाया  जाना की अफजल गुरु को ९ फरवरी २०१३ को सुबह फांसी के तख्ते  पर लटका दिया गया | वाकई आश्चर्य चकित करने वाली समाचार थी | सभी प्रतिक्रियाएं   
देश की कानून की जीत  को दर्शाती हुयी , आने लगी |  या यूँ  कहें की दो दिनों की कहानी मानस  पटल पर सदैव यादगार बन कर रहेगी | एक तरफ अफजल गुरु को मृत्यदंड , तो दूसरी तरफ दिनांक १० फरवरी २०१३  को रात्रि सात बजे के करीब , इलाहाबाद में होने वाले भगदड़ और मौत का तांडव | एक तरफ उल्लास तो दूसरी तरफ उदासी का माहौल | 

 किन्तु मैंने कल ( १० फरवरी २०१३ को साढ़े छ बजे के करीब )  इन दो घटनाओ के बीच जो देखा , वह मनुष्य को जीवन और मृत्यु के बारे में सोंचने को मजबूर कर देती है | सभी के लिए जीवन ...जीवन नहीं है | कुछ लोग ऐसे है जो मृत्यु को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है |काश   मृत्यु प्राप्त लोगो के अनुभव  विश्व में उपलब्ध होते , जब की काल्पनिक अवशेष बहुत मिल जायेंगे |  ऐसा यदि  होता तो मनुष्य के मृत्यु भी हसीन होते | सभी बड़े - बड़े ग्रन्थ फीके पड़ जाते | हाय जीवन तेरी यही कहानी |

कल हुआ यूँ की , मुझे राजधानी एक्सप्रेस ( १२४३०  हजरत निजामुदीन - बंगलुरु एक्सप्रेस ) को  लेकर सिकंदराबाद से गुंतकल तक आना था | अतः ड्यूटी में तैनात था | अभी ट्रेन नहीं आई थी | अतः  मै और लोको इंस्पेक्टर श्री जय प्रकाश एक नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर हैदराबाद एंड में खड़े होकर वार्तालाप में व्यस्त थे | हमने देखा ..कुछ पांच /छ युवक एक युवक को पकड़ कर खिंच रहे है  ,( सभी के पीठ पर छोटे - बड़े बैग लटके हुए थे  , शायद वे १२५९१ गोरखपुर - बंगलुरु एक्सप्रेस से उतरे थे ) और स्टेशन से बाहर ले जाने का प्रयास कर रहे थे | वह जाने से इनकार कर रहा था | तभी पास से गुजरते आर.पि.ऍफ़ के पास भी गए | मामला कुछ समझ में नहीं आ रहे  थे | हमने सोंच शायद आपसी झगडा या चोरी का मामला होगा |

और ये क्या ?  पकड़ ढील पड़ते ही वह युवक भाग खड़ा हुआ | एक और युवक अपने बैग को जमीन पर रख उसके पीछे दौड़ा | समय का अंतर बढ़ चला था  | भागने  वाला युवक पास के इलेक्ट्रिक खम्भे से लगा एक इलेक्ट्रिक ट्रांसफोर्मर के खुले तार को अपने हाथो से पकड़ लिया | देखते ही देखते उसके शरीर में आग लग गयी | वह धडाम से जमीन पर गिर गया | उसके पीछे दौड़ने वाले  युवक के पैर जहाँ के तहां रूक गए | लोगो का हुजूम लग गया | किसी को अपने आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था | क्षण में क्या से क्या हो गया था | तुरंत मौके पर जी.आर.पि और आर.पि.ऍफ़ को लोग आ धमके और कानूनी प्रक्रिया तेज हो चली थी | क्या ये आत्महत्या की कोशिश थी , जो  देहदाह में बदल चुकी थी ?

राजधानी एक्सप्रेस  के दस नंबर प्लेटफोर्म पर आने की सूचना दी जा रही थी | हम दोनों उस प्लेटफोर्म की ओर चल दिए | आज के अखबारों में यह समाचार जरूर छपा होगा |

जीवन अमूल्य है , इसका मजा लें  और जीवन से कभी  निराश  न हो |

Saturday, January 26, 2013

कर भला हो भला |

अरे कलुआ ( बदले हुए नाम ) ...कहाँ है रे |  तू बाहर  आ  | क्या कर दिया रे | आज मेरे पुत्र को क्या हो गया  ? बहुत कुछ बडबडाते  हुए वह  औरत आगे बढ़ रही थी | रात्रि  का पहर  | चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा | गाँव का मामला | बिजली की आस नहीं | झींगुरो की आवाज गूंज रही थी | कुत्ते भूकने लगे थे | आचानक वह महिला चिल्लाते हुए कलुआ के दरवाजे पर आ धमकी  | उसके पीछे लोगो का झुण्ड   किसी के हाथ में लाठी  , तो किसी के हाथ में डंडे | टार्च की रोशनी फैल रही थी | शोर गुल तेज हो गए | आस - पास के लोग भी अपने घरो से बाहर  निकल आये | किसी को माजरा  समझ में नहीं आ रहा था, आखिर बात  क्या है ?

उस गरीब के झोपड़ी के सामने , इन दबंगों के भीड़ को देख सभी समझ गए की जरुर कुछ लफडा है | लगता था जैसे भीड़ कलुआ को चिर कर खा जाने के लिए तत्पर हो चली थी  | उस झोपड़ी के अन्दर तेल के मद्धिम  दीप की  रोशनी में कलुआ की बीबी चूल्हे पर कुछ पका रही थी | दो छोटे बच्चे पास में ही चिपके हुए थे | कलुआ पास में बैठा ,बीडी पिने में मशगुल था  | घर के बाहर  उसके सास और ससुर  चौकी पर लेटे हुए थे | इतनी हुजूम ,  देखते ही उनके अन्दर डर समां गयी | अँधेरे में भी उन्हें समझते देर न लगी की कौन उनके घर के पास खड़ा है और  चिल्लाये जा रहा है |

' बबुआ की माँ जी का  बात है ?'-कलुआ के बाप के मुह से सहमी सी  आवाज निकली | पहले बता कलुआ कहा है ? भीड़ से किसी ने कहा | तब तक कलुआ झोपड़ी के अन्दर से धीरे - धीरे  बाहर निकला | उसके बाहर  आते ही वह बुड्ढी ( जो  संपन्न / दबंग घर की महिला थी ) कलुआ के पैर पर गिर पड़ी | कलुआ मेरे बेटे को बचा लो | मेरा बेटा मर जायेगा | मेरा बेटा मर जायेगा | वह एक साँस में बोले जा रही थी  ,  रुकने का नाम नहीं ले रही थी और कहते - कहते बिलख कर रोने लगी | सभी हतप्रभ थे , किसी को समझ में नहीं आया | आखिर मामला क्या है ?

चाची जी रौआ उठी | ऐसन का बात हो गईल , जो इतना परेशान बानी | उसने  भोजपुरी लहजे में   ही कहा  और अपने पैर को दूर खिंच लिया |  वृद्धा उठ चौकी के एक कोने में बैठ गयी  और अपनी बात दुहराते हुए फिर बोल पड़ी  - बेटा  कलुआ , मेरे बेटे से गलती हो गयी | अगर उसने कुछ गलत किये हो तो , उसके लिए मै माफी मांगती हूँ , माफ कर दो | तेरे सभी पैसे मै देने  के लिए तैयार हूँ | कुछ कर धर ( मतलब कोई टोटके ) दिया हो तो उसे वापस ले लो | तू भी मेरे बेटे सामान है | कलुआ मेरा बेटा मर जायेगा | और बहुत कुछ ....

कलुआ हक्का बक्का सा गुमसुम खड़ा रहा  | उसे समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है ? असमंजस सी स्थिति | आस - पास वाले भी कुछ न समझ पाए |

गाँव के हाट बाजार | जो सप्ताह में दो दिन , वह भी संध्या समय ही लगते है - रविवार और बुधवार | उस दिन रविवार थे | बाजार खाचा - खच भर गया था | इस हाट बाजार में दबंगों की दबंगई जोरो पर रहती है | अतः सभी व्यापारी , इस बाजार में आने से डरते है | कुछ परिस्थिति से सामंजस्य बना लेते है | कलिया (मांस ) के दूकान एक या दो लगती है | मछुआरे एक तरफ चार या पांच की संख्या में आते है | उसमे कलुआ भी एक था | वह अपने टोकरी में मछली लेकर बिक्री कर रहा था | लेने वालो के हुजूम लगे हुए थे | कोई भाव पूछ रहा था तो कोई मोल भाव में व्यस्त | तभी अमर सिंह ( बदले हुए नाम )  दबंगों का झुण्ड आ डाटा | उन्होंने कलुआ से  मछली का रेट पूछा  | बीस रूपए किलो साहब | अबे बीस रुपये मछली कहाँ है रे ?  दस रूपए में दे दो | नहीं साहब घाटा  हो जायेगा | कलुआ गिडगिडाने लगा | दबंगों ने जबरन दो किलो मछली तौल  लिए और जाते - जाते पैसे भी नहीं दिए | कलुआ मुह देखते रह गया |

घर की औरतो ने  मछली  बहुत मसालेदार  बनायीं | घर के सभी छोटे - बड़े .. बारी - बारी से भोजन ग्रहण कर लिए थे | जब अमर सिंह  भोजन करने लगा  ( जिसने कलुआ से जबरन मछली छीन कर लायी थी ) अचानक उसके गले में मछली के कांट फँस गए | बहुत चेष्टा की ,सादे भात खाए  पर  निकलना मुश्किल | घर वाले गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में ले गए | डॉक्टर ने जबाब दे दिया |  डॉक्टर ने कहा - शहर के अस्पताल में ले जाएँ | शहर के अस्पताल ने वनारस को रेफर कर दिया | घटना क्रम से प्रभावित हो किसी साथी  ने कह दी की मुफ्त की मछली का नतीजा है | कलुआ ने कोई जादू - टोना की होगी | परिणाम सामने है सभी घर वाले क्षमा - याचना वस् कलुआ के घर दुहाई के लिए जुट गए थे  | कलुआ की अनुनय - विनय हो रही थी |

 संसार में जीवो की उत्पति ही कुछ न कुछ अर्थ रखती  है | मनुष्य सबसे चालक और उत्कृष्ट माना जाता है | इसके कार्यकलापो से  हवा के अन्दर जो स्पंदन उठती  है , वह आस - पास की सभी चीजो को प्रभावित करती है | आग के पास बैठने से गर्मी या सर्दी नही | आम से आम या इमली नही | परिणाम हमारे कर्मो की देन है ,फिर आंसू किस लिए ? इसीलिए कहते है -- कर  भला - हो भला | 

(  यह सत्य घटना मेरे गाँव की | परिणाम बहुत ही दर्दनाक रहें | तीन महीने बाद अमर सिंह की मृत्यु हो गयी | आज गाँव में यह घटना एक उदहारण बन गयी है | जैसी करनी वैसी भरनी | मछुआरो ने गाँव का बहिष्कार कर दिया था |  )

Wednesday, June 13, 2012

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल है !

वह कभी बेंच पर बैठता , तो कभी उठ जाता  ! बिलकुल बेचैन ! घबराहट में चहलकदमी , आगंतुक सा राह  को निहारते हुए ! समझ में नहीं  आ रहा था की क्या करे ? माथे पर सिकन भरी ! होठ सुखते जारहे थे ! हर आने वाले से यही पूछता की डॉक्टर साहब कब आ रहे है ? कोई उन्हें जल्दी बुलाओ ना ? नर्सो से बार - बार , एक ही सवाल ..डॉक्टर साहब आ रहे है या नहीं ? नर्सो के सकारात्मक उत्तर भी नकारात्मक सा लग रहे थे ! सहसा एक व्यक्ति का आगमन होते दिखा  ! ड्यूटी पर उपस्थित नर्स ने  इशारे से कहा - वो .. डॉक्टर साहब आ रहे है !

वह व्यक्ति आपे से बाहर ! उसे समझ में नहीं आया की वह किससे तर्क करने जा रहा है और बोल बैठा -" आप ऐसे ही लेट  आते है क्या ? आप को जरा भी सेन्स नहीं है ! मेरा बच्चा सर्जरी के लिए कब से आपरेसन  थियेटर में पड़ा हुआ है ! वह खतरे से खेल रहा है  और आप है जो ..थोड़ी भी समझ नहीं है ..." वह व्यक्ति एक साँस में बोले जा रहा था !

डॉक्टर  मुस्कुराया और बोला --" मै  आप का क्षमा प्रार्थी हूँ ! मै  अस्पताल में नहीं था ! मुझे जैसे ही नर्स की कॉल मिली , भागे - दौड़े  आ रहा हूँ !"  - डॉक्टर अभी अपने सर्जरी  लिबास में भी नहीं था ! दिखने से लग रहा था की वह पहनावे की फिक्र किये बिना ही आ गया था !

" चुप रहो ,,आप के बेटे  के साथ  ऐसा होता , तो खामोश बैठते क्या ? आप का बेटा इस हालत में मर जाए तो क्या करते ?" उस  बच्चे का पिता  गुस्साए हुए भाव से पूछ बैठा ! डॉक्टर ने मायूस स्वर में कहा - " मेरा जो धर्म है . करूँगा ! हम सब मिट्टी  के बने है और एक दिन मिट्टी  में मिल जायेंगे ! भगवान पर भरोसा रखे .सब ठीक  हो जायेगा ! जाईये  बेटे के  लिए भगवान से प्रार्थना  करें ! " इतना कह और देर न करते हुए .. डॉक्टर आपरेसन थियेटर के अन्दर चला गया !

करीब एक घंटे से ज्यादा ..सर्जरी की प्रक्रिया चली ! डॉक्टर  थियेटर से  तेजी से बाहर  निकला और तेज कदमो से  आगे जाते हुए बच्चे के पिता की ओर( जो बेंच पर घबडाये हुए बैठा था ) मुखातिब हो कहा - " life saved  भगवान का शुक्र है ! अगर कोई बात हो तो नर्स से पूछ लेना !" और तेज कदमो में आँखों से ओझल हो गया !

" वाह .. कितना गुस्से में है ...एक क्षण रूक कर मेरे बेटे के बारे में नहीं बता सकता  क्या ? "- वह व्यक्ति फुसफुसाया ! तब तक नर्स उसके सामने आ चुकी थी और वह  उसके शव्दों को सुन ली थी ! वह व्यक्ति नर्स की तरफ देखा ! नर्स की आँखों में आंसू की लडिया बहे जा रही थी ! व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया ! वह घबडाये  सा उसे देखने लगा ! नर्स ने कहा -"  डॉक्टर के  बेटा  का शव ..श्मसान घाट में उनका इंतजार कर रहा है ! कल सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी थी ! जिस समय उन्हें कॉल मिली उस समय वे उसके अंतिम संस्कार में   व्यस्त थे  ! किन्तु संस्कार की प्रक्रिया बिच में ही छोड़ सर्जरी करने के लिए आ गए !"

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल  है !

( सौजन्य - डॉक्टर श्री मुकुंद सिंह / शिर्डी ..जो सत्य घटना पर आधारित है ! अगर कोई सुधि पाठक उनसे बात करना चाहता है , तो मै  उनका मोबाईल संख्या दे सकता हूँ !)

Sunday, June 3, 2012

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ ! मनुष्य दुनिया में सबसे सर्वोत्तम प्राणी के श्रेणी में गिना जाता है !विचार , रहन - सहन ,पराक्रम और बुद्धि में अंतर स्वाभाविक है ! यही मनुष्य को अलग - अलग चोटियों पर ले जाते है ! कुछ गिर जाते है , कुछ सम्हल जाते है  तो कुछ ऐसी स्थान प्राप्त कर लेते है , जहाँ सबके पहुँचने की  आस कम ही होती है !

आखिर ये सब कैसे और क्यूँ होता है ? 

दुनिया में आने और जाने के रास्ते तो एक जैसा ही है ! बीच  में इतने अंतर क्यूँ ? क्या ये सब हमारे मुट्ठी में बंद तकदीर का कमाल है या कोई आप रूपी  शक्ति कंट्रोल करती है ! जो भी हो मै तो तक़दीर और अंगुलियों के सतरंगी ध्वनि  पर ही विश्वास करता हूँ ! हम अपने अंगुलियों के कर्म रूपी शक्ति से तक़दीर रूपी घरौंदे का निर्माण करते है ! सभी के तकदीर सुनिश्चित है ! इसमे फेर बदल हमारे कर्मो पर निर्भर है ! अगर ऐसा नहीं होता तो आकाश में फेंकी हुई पत्थर इधर - उधर न गिर , हमारे निशान पर ही गिरते !




कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस  जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक  ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है !  जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद  हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4)  एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से  स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के  जॉब से मुक्त है !(7)  एक लोको पायलट काटपादी  गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !  


 अभी बहुत से उदहारण मेरे पास  है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य  स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले  का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र  बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !


( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)

Wednesday, September 7, 2011

बुझ गयी जिंदगी !

  "" दुर्घटना स्थल पर जांच किया और पाया की जीवन समाप्त हो गयी है "    लाल रंग के स्याही से रेलवे डाक्टर ने इस बात की पुष्टि की ! जी हाँ जिस महीने में सारी दुनिया मजदूर दिवस मनाने में मशगुल थी , उसी माह में ऐसी दर्द नाक दुर्घटना होगी - किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था ! सहायक लोको पायलट - एन.एस .प्रबोध की तिरुनेलवेली यार्ड में -एक ट्रेन के रेक को पीछे धकेलते समय - यार्ड में ,धक्का लगाने से  रात्रि के दो बज कर पैतालीस मिनट पर, तारीख ३० मई २०११ को - दुर्घटना का शिकार हो गए ओर तुरंत मृत्यु हो गयी  ! जिसकी पुष्टि रेलवे डाक्टर ने लाल स्याही में कर दी थी  ! असावधानी ही जीवन ले ली  !
                                                                      एन.एस.प्रबोध

शायद इसी लिए लोको पायलटो की पत्निया हमेश एक इंतजार की घडी में ही जीती है ! वह इंतजार भी अपने - अपने इष्ट देव की पूजा और अर्चना में व्यतीत हो जाती है , जिससे की उनके पति सकुशल घर वापस लौटे ! एन.एस.प्रबोध को दो बेटे है ! सात वर्ष का सिद्धार्थ और दो वर्ष का सचिन  ! पत्नी मंजू इस युवा अवस्था में ही अपने पति से बिछड़ गयी , जो काफी असहनीय है ! उसके कंधे पर दो बच्चो की परवरिश और सास -ससुर की देख भाल की जिम्मेदारी आ पड़ी है !

   एन.एस.प्रबोध हमारे असोसिएसन का एक अनुशासित  कार्यकर्ता थे ! आप दिनांक - २५-०९-२००० में रेलवे में सहायक लोको पायलट के रूप में ज्वाइन किया था  ! शुरुवाती पोस्टिंग दक्षिण रेलवे  के इरोड डिपो  में हुयी थी ! इन्होने पालघाट , एरनाकुलम और अंत में अपने पैत्रिक नगर कुईलों में कार्य किया ! इनके अनुशासित रवैये से बहुतो को अपने हाथ सेकने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था और बहुत कुछ !

        दिनांक ०३-०६-२०११ को कुईलों में आल  इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ  एसोसिएसन ने एक शोक -सभा का आयोजन किया और इस एसोसिएसन के तरफ से पांच लाख पच्चीस हजार रुपये  का एक सहायता चेक , उनके धर्मपत्नी को भेंट किया गया !  आल  इण्डिया  लोको रुन्निंग स्टाफ एसोसिएसन गहरा दुःख ब्यक्त करते हुए ,  भगवान से प्रार्थना करता है - की उनके शोक संतप्त परिवार को धैर्य और साहस दे , ताकि वे इस गम को सह  और भुला सके ! पुरे  लोको पायलटो की ओर से  स्वर्गीय एन.एस.प्रबोध को भाव भीनी श्रद्धांजलि ! भारतीय रेलवे के लोको पायलट रोजाना एक नयी जीवन पाते है ! कब क्या हो जाये किसे पता ?