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Wednesday, May 29, 2013

ताप्ती गंगा एक्सप्रेस

 जिंदगी    एक सफ़र , है सुहाना    । जी हाँ ..जिंदगी सफ़र ही तो है ।  बिलकुल  जैसे ताप्ती - गंगा एक्सप्रेस । किसी भी गाडी के अन्दर प्रवेश करते ही हमें अपने सिट और सुरक्षा की चिंता ज्यादा रहती  है । गाडी में सवार होने के बाद ..ट्रेन समय से चले और हम निश्चित समय से गंतव्य पर पहुँच जाएँ इससे ज्यादा कुछ भी आस नहीं । किन्तु इन सभी  झंझटो को छोड़ दें तो कुछ और भी इस यात्रा में  है , जो  हमारे दिल पर सुनहरी छाप छोड़ जाते है ।  

आस -पास बैठे  सह यात्री भी वाकई दिलचस्प होते  है । इसी महीने मै ताप्ती -गंगा एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था , जो  छपरा से सूरत जा रही थी । थ्री  टायर कोच के एक कुप्पे  में अकेला ही बैठा था । मऊ  से एक जवान पति और पत्नी सवार  हुयें और साईड वाले वर्थ ग्रहण किये । शायद कुछ दिन पूर्व शादी हुयी हो । आजमगढ़ से एक विधवा , अपने जवान बेटी ( १ ८ ) के साथ आयीं । जौनपुर से एक पैसठ / सत्तर साल के दम्पति आयें । इस तरह ये कुप्पा भर गया । बुजुर्ग दम्पति ने सभी के साथ वार्तलाप की शुरुवात किये । विषय की कोई ओर छोर नहीं  । धार्मिक , समाजिक , पारिवारिक या राजनीतिक , शिक्षा या अनुशासन सारांश में कहे तो कोई भी क्षेत्र अछूता  नहीं बचा ।

यात्रा के अनुभव और  कुछ विचार जो सबसे अच्छे  लगे । प्रस्तुत है ---

१) मऊ के नव दम्पति --
उस नौजवान ने कहा की मै अपनी माँ का पैर रोज दबाता  हूँ । माँ ऐसा करने नहीं देती , पर मै नहीं मानता  । माँ को पत्नी के भरोसे नहीं छोड़ता । पास में बैठी पत्नी उसे घूरती रही , जिसे हम सभी ने भांप लिए । एक पत्नी के जाने से दूसरी पत्नी मिल जाएगी , किन्तु माँ नहीं मिल सकती । मै  किसी को सिखाने के पूर्व करने में विश्वास करता हूँ । समझदार खुदबखुद अनुसरण करने लगेंगे । 

२) बुजुर्ग दम्पति - 
अपने पतोह की बडाई करते नहीं थके क्योकि वे शुगर के मरीज थे और बहु काफी ख्याल ( खान-पान के मामले में ) रखती है । बहु को पहली संतान ओपरेसन के बाद हुआ है । फिलहाल उसे आराम की जरूरत  है । अतः इन्हें खान - पान की असुबिधा है । सहन करने पड़ते है । काफी समझदार लगे । पराये की बेटी की इज्जत , अपने बेटी जैसी होनी चाहिए । 

३) विधवा और उनकी बेटी - 
इनके पिता जी पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे । चालीस वर्ष पूर्व इन्होने बारहवी पास की थी । चाहती तो अच्छी नौकरी मिल सकती थी । पति के इच्छा के विरुद्ध नहीं गयी और घरेलू संसार में जीवन लगा दिया । आज दो बेटे नौकरी करते है । एक गाँव में रहता है । ये बेटी सीए की पढाई कर रही है । आज पिता और पति के ईमानदारी का सुख भोग रही है । बेटे के लिए बहु देखने जा रही है । बेटो को मुझपर ही भरोसा है । सभी संसकारी है । 

४ ) मेरे बारे में जानकर उन्हें काफी ख़ुशी हुयी और उनकी उत्सुकता रेलवे में हमारे कार्य के घंटे , दुरी और सुरक्षा के ऊपर अधिक जानकारी प्राप्त करने की ओर ज्यादा रही ।  यात्रा काफी आनंदायक  और मजेदार रही । समय कितना और कब व्यतीत हो गया , किसी को पता नहीं  चला ।  सभी भाऊक हो गए , जब मै  इटारसी में उतरने लगा । कितना अपनत्व था । जो पैसे से नहीं  मिलता , इसके लिए प्यार , दिल और आदर्श की जरूरत है । मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ उन सभी को अभिवादन किया और प्लेटफोर्म पर आ गया । 

गाडी आगे बढ़ गयी और मै देखते रह गया , उन तमाम शब्दों और तस्वीरों की छाया को । कितना  जिवंत और सकून  था  उन बीते दो क्षणों में । 

Monday, March 26, 2012

शैतान की पीड़ा !


हमें जन्म से मृत्यु तक कभी भी शांति नहीं मिलती  ! अशांति का मुख्य जड़ स्वार्थ और बिवसता है ! स्वार्थ बस  हाथ हिलाते है और विवस हो पैर स्वतः  रुक  जाते है ! मनुष्य  इन्ही उधेड़ बुन में फँस कर , जो भी कृत्य कर बैठता है वही उसके कर्मो के फलदाता बन जाते है ! अर्थार्थ जैसी करनी , वैसी भरनी ! अतः मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है !
हमारे शरीर में मन का बहुत बड़ा स्थान / देन है ! मन की बातों को कोई भी न समझ सका ! इसकी गहराई समुद्र से भी गहरी होती है ! हम मन के नाव  पर बैठ सारी दुनिया की भ्रमण कर आते है ! तो क्या  हमें मन की चंचलता  स्वप्न में भी जगाती है ? हम स्वप्न क्यों देखते है  ? आखिर वह कौन सी दुनिया है , जिसमे सोने के बाद तैरने लगते है ? सोये हुए बिस्तर पर बकना , चिल्लाना , रो पड़ना , डर जाना वगैरह - वगैरह क्रियाये क्यों होती है ? अगर किसी को जानकारी हो तो मेरे जिज्ञासा की पूर्ति करें !

अब आयें एक घटना की जिक्र करें ! उस समय मै सहायक लोको पायलट के पद पर कार्य रत था ! मॉल गाड़ी में कार्य करता था !  मै उस दिन नंदलूर आराम गृह में ठहरा हुआ था ! वापसी के लिए ट्रेन काफी देर से आने वाली थी ! अतः कुछ लोको पायलट और सहायक लोको पायलट मिल कर सिनेमा देखने चले गएँ ! पिक्चर तेलुगु भाषा में थी  ! जिसका अनुबाद हिंदी में भी हो गया है ! शायद - " जुदाई " जिसमे अनिल कपूर , श्रीदेवी और एक हिरोईन है , नाम याद नहीं आ रहे है ! कथानक यह है की - पत्नी अपनी शानशौकत के लिए पति को भी बेच देने के लिए राजी हो जाती है ! अंत में तरह - तरह के परेशानियों से गुजरती है ! देखने वाले चौक जाते है - यह भी एक अजीब  सी लेखक के दिमाग की पैदायिस थी ! फ़िल्म काफी हिट हुई थी ! हिंदी बाद में बनी ! पर तेलगू फ़िल्म की कथानक और सेट अच्छी लगती है !

अब आयें विषय पर लौटे --
फ़िल्म देख बारह बजे रात के करीब लौटे ! आते ही हम सभी रेस्ट रूम में अपने बिस्तर पर सो  गए ! दिन भर की थकावट और देर तक फ़िल्म देखने की वजह से  नींद  तुरंत आ गयी ! 

 नींद के बाद की  वाक्या - 
ओबलेसू जो उस समय रेस्ट रूम का वाच मैन था , अब टी.टी हो गया है , बरांडे  में बैठा पेपर पढ़ रहा था ! वह   मुझे जोर से झकझोरने लगा ! मेरी नींद टूट गयी ! उसने पूछा - "  क्या हो गया जी , इतनी जोर से चिल्ला रहे हो  ?"

मै सकपका गया ! कुछ समझ में नहीं आया ! बिस्तर पर पड़े हुए ही बोला -" न जाने कौन मेरे  सीने पर बैठ , गले को जोर से दबा रहा था , ताकि मेरी  मौत हो जाए ! उसके सिर  और दाढ़ी के बाल लम्बे - लम्बे थे ! भयानक सा दिख रहा था !"" फिर रुक कर बोला - " मदद हेतु स्वप्न में  चिल्ला रहा था ! शायद यही शोर तुम्हे सुनाई दी हो !" इतना कह  उठ बैठा ! शरीर में डर समां गया ! कुछ और सह-कर्मी उठ बैठे ! सभी ने कहना शुरू की यह बिस्तर ठीक नहीं है ! जो भी सोता है , उसके साथ यही होता है ! रात्रि- लैम्प क्यों बंद कर दिए हो ? इसे जला कर सो जाओ !

जी हाँ 
क्या इस आधुनिक ज़माने के लोग इसे विश्वास करेंगे ? अगर नहीं - तो ऐसी घटनाये आखिर क्यों होती है और ये  क्या है ? अगर किसी को कोई लिंक की  सूचना / जानकारी हो तो मुझे/मेरी शंका का समाधान करें ?(  नोट -किसी अंधविश्वास से प्रेरित कथा सर्वथा न समझे , यह ब्लॉग स्वयं में  सत्य पर आधारित है !)

Wednesday, December 7, 2011

पटरी पर दौड़ती हैं सांसें

                                              तिरुपति रेलवे स्टेसन का बाहरी दृश्य 

किसी भी ट्रेन में सफ़र करते वक्त मुशाफिर की चिंता  होती है सिर्फ अपनी सीट की और अपने गंतव्य की ! मगर उस  ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा भी सफ़र करता है , जिसे सारे मुशाफिरो की फिक्र होती है !ये व्यक्ति इंजन / ट्रेन का लोको पायलट ( ड्राईवर )होता है ! देखने सुनने में लगता है की इसका काम बहुत आसान है  की इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी अपने - आप पटरियों पर दौड़ने लगती है ,  हजारो जानो  को सही - सलामत उनके अपनो तक पहुँचाने का काम किसी इबादत से कम नहीं है ! रेल इंजन का ड्राईवर / लोको पायलट होना यानि पहियों के साथ अपनी सांसों को भी पटरियों  पर दौड़ना ,  वक्त की पावंदी और न ठहरने का तय मुकाम ....बस चलते जाना ! यही लोको पायलट / ड्राईवर की पूरी जिंदगी का असली सार है !


                                 बड़ा मुश्किल है --  

रमाशंकर तिवारी ( लोको पायलट ) के अनुसार --" अब काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है ! रेस्ट के  घंटो में भी  वर्किंग से उब गए है ! अफसर है की समझने को तैयार नहीं और हमारे साथ लगातार ज्यादातिया हो रही है !"

( भास्कर  )

Saturday, September 3, 2011

तीसरी नजर

कल यानि दुसरे सितम्बर २०११ को शोला पुर में था ! सोंचा चलो अच्छा हुआ , गणपति दर्शन हो जायेंगे ! शाम को बादल  उमड़ - घुमड़ रहे थे !  छतरी भी साथ ले लिया ! सहायक भी साथ में था ! चारो तरफ शहर में घुमे , पर रौनक नजर नहीं आई ! लगता था जैसे सभी अन्ना हजारे के समर्थन में इस वर्ष की उत्सव -साधारण तौर पर मना रहे  है ! किसी से पूछने का साहस  नहीं किया - आखिर क्यों ऐसा ? हमारे गुंतकल में ही गणपति का उत्सव बड़े धूम - धाम से मनाया गया है ! आज विसर्जन होने वाला है ! सोंचा कुछ बधाई और शुभकामनाओ को ब्लॉग पर डाल ही  दूँ ! मेरे बालाजी का अपना गणपति  पूजा मजेदार का रहा !  यहाँ देंखे - कैसी रही बालाजी की गणपति पूजा ? 

                                     आप सभी को गणेश चतुर्दशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !
अब कुछ जेलर की तरफ ध्यान दे ! तिरछी नजर से परेशां -उसने आज खूब चढ़ा ली थी ! डंडे को भांजते हुए वह फिर कसाव के रूम के पास हाजिर हुआ ! नशे में धुत ! जोर से हँसाना शुरू किया ! ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह   हां हां हां हां हां हां हां ..ही ही ही ही ही ..हु हु हु हु हु हु हु ...हे हे हे हे हे ...इस जोशीले आवाज को सुन सभी संतरी जेलर के पास आ खड़े हुए ! भय -भीत  !  जेलर की हंसी  ...ठीक गब्बर सिंह के  जैसा ! देखते - देखते सभी संतरी भी हंसी में मशगुल हो गए ! कसाब  को भी हंसी आ ही गयी ! पर आज वह  सहमा सा दिखा ! न जाने क्यों ? उसे कोई  अनजानी आशंका  दबोच ली  ! 
  " अबे कसाब ? "- जेलर कसाब  की तरफ मुखातिब हो बोला !  " स्साले सब बच गए ! कितने  आदमी थे ?..बिलकुल तीन ! हा  हा  हा  ये राजनीति ....बहुत  कमाल  की.. है...... किसी को फांसी पर भी न चढाने देगी ! अबे ..अब तेरी भी बकरी ( बकरीद के वजाय -बकरी बोल गया ) नहीं आएगी .." वह नशे में धुत था ! उसके शब्द टूट -टूट कर  बाहर निकल रहे थे ! वह राजीव गाँधी के गुनाहगारो के फाँसी की सजा पर लगी रोक से तिलमिलाए हुए था ! फिर बोला -" अब तू भी बच जाएगा ,देवेंदर पाल  सिंह भुल्लर भी बचेगा और ...और...और वो संसद वाला ...   सांसदों  का गुरु ......अफजल भी बचेगा ! प्रक्रिया ...मुख्य  मुख्य मंत्रियो .....द्वारा ...तेज  हो गयी  ...है  !" इस समाचार ने  कसाब के मुखमंडल पर...थोड़ी सी मुस्कराहट बिखेर दी !" जेलर  संतरियो की तरफ देखा और फिर कहने लगा ---अब नए सम्मान दिए जायेंगे -जानते हो ? 
एक हत्या वाले को --पद्मश्री  ..हा..हा..हां.
दो हत्या वाले को--पद्मभूषण  ...........................
तीन हत्या वाले को पद्मविभूषण  ..और  
चार से ज्यादा हत्या वाले को  भारतरत्न  " - जेलर अपने डंडे को भांजने लगा ! 
" तो  सर...  क्या इसे ( कसाब को )  भारतरत्न का सम्मान मिलने वाला है ? "- एक  संतरी  ने प्रश्न  किया ! 
  " जरुर ..जरुर मिलेगा ..हाँ मिलेगा जरुर...इसी के काबिल यह है "--जेलर ने कहा और जोर का ठहाका लेकर कसाब को देख बोला -- " तेरे इस दुनिया में , तेरे पास आतंक ,लूट ,दंगा ,भुखमरी , चोरी ,बलात्कारी ,हत्या या क्या-क्या के सिवा क्या है ?..हाँ..हाँ ..हाँ ..हाँ!'' क्षण भर के लिए रुका और बोलने लगा - "जानता है हमारे पास क्या है ?.......हमारे पास ..सिर्फ और सिर्फ....अहिंसा है



Friday, June 24, 2011

अनुभूति

     जीवन  में कभी - कभी , कुछ चीजे मानव को सोंचने पर मजबूर कर देती है ! मनुष्य की दरिंदगी अपने आप में निष्ठुर और विनाशक है ! आज  मानव हर चीज को पाने की लालसा में , कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है ! उसकी मन की आकांक्षा ..और भी तीब्र हो जाती है जब वह आधुनिक परिवेश की तरफ आकर्षित होता है ! उसके आकर्षण ,  दुनिया की हर पहलुओ को ध्यान से देखती  है ! चाहे पहनावा हो या खान - पान या अति - सुवीधाजनक  शानशौकत ! खान - पान में शाकाहारी हो या मांसाहारी  !  सभी के अपने रंग ! सभी अति की तरफ इंगित करते है ! 

तारीख २१-०६-२०११ को मै गरीब रथ एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! सिटी में इंटर कर गया था ! ट्रेन धीरे - धीरे स्व-चालित सिगनल  क्षेत्र में आगे बढ़ रही थी ! सनत नगर के पहले एक बूचड़ खाना है , जो रेलवे लाइन के बिलकुल किनारे में ही है ! वहां  रोज दो -तीन जानवरों की ह्त्या हो ही जाती है ! मैंने देखा ..कसाई कमरे के अन्दर ..किसी जानवर को काट कर .बगल में खड़े ऑटो रिक्सा पर लाद रहा था ! कमरे के बाहर दो बैल बिलकुल शांत मुद्रा में  खड़े थे और  एक बैल जमीन पर चारो पैर फैला कर लेटा हुआ था ! मेरे मन में हलचाल सी हुई ! आज उसके दिल पर क्या गुजरती होगी ,शायद वह अपने अंत को भाप गया है ,  अनुभव करने की जरुरत है ! वह सोंचता होगा की कल का उसका एक दोस्त , आज कसाई के जुल्म का शिकार हो गया ! कल उसकी पारी है !  वह बेजान धरती के ऊपर पडा हुआ था !

फिर दुसरे दिन यानी तारीख २३-०६-२०११ को गरीब रथ लेकर  सिकंदरा वाद  जा रहा था ! सहसा फिर उसी बूचड़ खाने पर नजर पड़ी ! देखा दो बैल खड़े थे , पर वह बेचारा नहीं था ! आज वे दोनों भी इस दुनिया में नहीं होंगे ! कितनी बड़ी विडम्बना है ! एक जीव दुसरे जीव की ह्त्या करने से नहीं चुकता ! उस कसाई का दिल कैसा होगा ? निष्ठुर , बेदर्दी और कुछ क्या - क्या ?

जो ह्त्या में विश्वास करते है , क्या उनसे प्रेम की निर्झर बहेगी ? क्या प्रेम उनके लिए कोई मायने रखती  है ? क्या उनके दिल में कोमलता की दीप होगी  ? क्या उनका प्यार भरोसे के काबिल है ? ऐसे स्वभाव के लोगो से जागरुक और सतर्क रहना ही उचित उपाय है !

कहते है ---जो बोल नहीं सकते   वे आने वाली कष्टों  को भाप जाते है ! जो देख नहीं सकते वे अपने दिल के आईने में वह सब कुछ देख लेते है , जो एक आँख वाले को मयस्सर नहीं होती !

आखिर हम इतने निष्ठुर और निर्दयी क्यों हो जाते है ? जो चीज हम खुद नहीं चाहते , वह दूसरो के लिए क्यों पैदा करते है ? क्या दूसरो को मार कर , हमारा अस्तित्व बना रहेगा ? ताकत से सत्ता तो मिल जाती है पर वह प्यार नहीं मिलता ! जिसके लिए सभी तरसते है !

Monday, June 6, 2011

योगी बाबा राम देव जी

बाबा राम देव जी ने ..राम लीला मैदान में सत्याग्रह शुरू किया था ! दिनांक -०४ मई २०११ को !  कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगी थी ! आधी रात को (दिनांक -०५ मई २०११ को )दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब ( जैसा की समाचारों में आ रहा है ), बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! ज्यादा नहीं लिखूंगा ! कुछ प्रमाणिक लक्षण पेस  कर रहा हूँ , जो इस घटना की पोल खोलती नजर आ रही है !

पौराणिक  / सम सामयिक घटनाओं को देखने से मुझे बिदीत होता है की - राम ने रावण का बध किया था ! राम और रावण ......?
      कृष्ण ने कंस का बध किया था ! कृष्ण और कंस .........?
      गोडसे ने गाँधी का बध किया था ! गोडसे और गाँधी ........?
     बामा ने सामा का बध किया था ! बामा और सामा ...? और अब ..रामदेव जी के साथ हुआ ..वह भी राम लीला मैदान ! राम देव और राम लीला .....? और भी बहुत शब्द  संयोग......

 उपरोक्त शब्दों और अक्षरों .. के संयोग को देखने से पता चलता है की ...राम लीला मैदान  भी कही ...राम देव जी के साथ होने वाली शब्द / अक्षर .. वाली ..किसी  अनहोनी का  संयोग था ! आधी रात को इस तरह से सत्याग्रहियों पर छुपे रूप से आक्रमण और राम देव जी का स्त्री वेश में छुप कर भाग निकलना,किसी साधारण प्रक्रिया का संकेत नहीं लगता ! जिसे राखे साईया , मार सके न कोय ! ...की बात ही साबित करती है ! देश में  भ्रष्टाचार जीतनी  तेजी से बढ़ रहा है , उसे देखते हुए यही लगता है की .. भ्रष्टाचारी .. राम देव जी का अंत चाहते  होंगे  ! जो भ्रष्ट  है , वे उनके आन्दोलन को समर्थन देना नहीं चाहते ! जब की उन्हें साम्प्रदायिकता के रंग से नहला रहे है ! आज प्रश्न यह है की सांप्रदायिक हो या असाम्प्रदायिक ... क्या काले धन को वापस लाना उचित नहीं समझते  है ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना जरुरी नहीं लगता  है ? स्वच्छ और पारदर्शी सुशासन देना/ लेना  जरुरी नहीं दीखता ?  कही सोने की चमक आँखों को ..चकाचौध तो नहीं कर रही है  सब कुछ छुपाने के लिए .. ?

कल की घटनाए ..सोंच कर दिल दहल उठता है    क्यों की लगता है ...उन्हें मार डालने का षड्यंत्र रचा गया था ! न रहेगा बांस , ना बजेगी बांसुरी ! शब्द संयोग -
रामदेव जी = रा 
राम लीला मैदान = रा
देंखे ..बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता है !

Monday, May 16, 2011

साई मंगलम ......साई नाम मंगलम.......

                                                                                                                                                                               
     दुनिया में समय - समय पर महापुरुषों का आगमन होता रहा है ! महापुरुषों को समझ पाना......
किसी साधारण ब्यक्ति के वश में नहीं ! जब तक ..हमने उन्हें समझा , तब तक काफी देर हो चुकी होती है ! महापुरुषों ने अपने अद्भुत कार्यप्रणाली के द्वारा ..हमें हमेशा आश्चर्य चकित करते रहे है ! उनके पग - पग पर मानवता के सद्गुणों की महक हवा के झोंको के साथ ..इस पृथ्वी पर बिखरती रही है ! जिन्होंने चाहा , उन्होंने उसे लूट लिया ! सफल हो गए ! बहारे आती है , मनुष्य के जीवन में हरियाली फैलती है , जीवन सोना हो जाता है ..जब हम अपने काम ,क्रोध लोभ ,और स्वार्थ को भूल जाते है ! जीवन के हर पल हमें कुछ करने के लिए उकसाते है ! परमार्थ हित में किये गए हर कार्य ....की प्रसंशा होती है ! यही जीवन दायनी और मन को शान्ति प्रदान कराती है ! 
                
                       शासन में मनुष्य को कुछ शक्ति मिलती है , उस शक्ति का इस्तेमाल परोपकार में होनी चाहिए या अपने जीवन में इसे ढाल बनाना चाहिए ! जिसकी सोंच जैसी होगी वैसी ही ....फल उत्पन्न  होगे ! आम लगाओ   आम खाओ ! इमली लगी ...इमली  मिली, फिर इसमे किसका दोष ! इसीलिए कहते है , जैसी करनी वैसी भरनी ! जिनके दिल में  आस्था और समर्पण की भावना होती है ...उनके समक्ष प्रभु को आते देर नहीं लगती ! प्रभु तो प्रेम के भूखे है ! प्रेम तो प्रेम है , जो पत्थर को भी मोम बना देता है !

                       मेरे साई के बारे में कुछ भी न कहे ! वो तो सर्व ब्याप्त है ! दिल से प्यार करने पर , वे तुरंत भाग कर ..अपने भक्त के पास आते है ! स्वप्न में आना , असमय किसी न किसी रूप में मदद करना , चिंता के समय बुद्धि  या राह बताना , तो उनके आने के आभास है ! अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से अद्भुत कार्य किये , जो किसी भी इंसान को भगवान बनाने के लिए काफी है ! वे कहा करते थे --" मै रहू या न रहू ..पर याद करते ही भाग   दौड़ा आउंगा ! यह कार्य मै हजारो वर्षो तक करता रहूंगा !" 
                            
                          जी हाँ आप मानो या न मानो ....पर यह बिलकुल  सच है ! मै पहले यह सभी बातें ,सुना करता था ! अतः एक दिन योजना बना ली और शिर्डी  के लिए सपरिवार रवाना हो गया ! दिनांक ११ से १५ जनवरी २००५ ...का समय शिर्डी में बीता ! मुझे दान - दक्षिणा देने की बहुत लालसा रहती है ! शक्ति के मुताबिक़ दे ही देता हूँ ! तारीख १३-०१-२००५ ...सुबह का समय ...साई मंदिर में साई बाबा का दर्शन कर  बाहर सड़क पर टहल रहे थे ! सोंचा  कुछ साई ट्रस्ट में दान देनी चाहिए ! आज शिर्डी में आये तीसरा दिन था ! काफी पैसे खर्च हो गए थे ! मेरे पास बस ५ हजार रुपये बचे थे ! इस पैसे को दान दे कर .....जोखिम नहीं उठाना चाहता था ! अतः ये.टी.एम्  की खोज में निकल गया ! शिर्डी में ये.टी.एम् बहुत कम थे ! दुसरे ये.टी.एम्.से पैसे निकालने पर सर्विस चार्ज देने पड़ते थे ! मेरे पास SBI  के ATM कार्ड था ! मैंने बहुत लोगो से SBI  का ATM   कहा है ? पूछा !गली -गली फिरा ,पर कही पता नहीं चला !

                             मै पुरे परिवार के साथ , वि .आई.पि गेट के पास खडा था और पत्नी से कहा - " कल हमें औरंगाबाद जाना है , वहा पर ATM होगा ! वही से पैसा ड्रा कर ले आयेंगे और ट्रस्ट में दे देंगे ! " यह बात आई और गयी ! दोपहर का खाना खाने के पास , हम अपने होटल  के  कमरे में जाकर सो गए ! थके होने की वजह से नींद जल्दी आ गयी ! मैंने करीब साढ़े तीन बजे के करीब ....एक स्वप्न देखी ! एक भिखारी बच्चा मेरी अंगुली पकड़ कर ...खींच रहा था और मै उस वि.आई.पि.गेट पर ही खडा था ! बच्चा कह रहा था -वो देखो ..उधर है ..( भक्ति निवास की तरफ इशारा करते हुए ) यानी वह मुझे SBI का ATM   के बारे में बता रहा था ! अचानक मेरी आँखे खुल गयी और मै उठ बैठा ! देखा....... दोनों बेटे और पत्नी साहिबा आपस में बाते कर रहे थे ! शाम के चार बजने वाले थे ! मैंने स्वप्न वाली बात ..पत्नी जी को बता दी ! किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया ! न ही कोई महत्व समझा ! सायं काल ..... फिर शिर्डी दर्शन के लिए निकले ! अचानक घुमाते हुए ..उसी रास्ते पर हो लिया  , जिधर उस भिखारी बच्चे ने ...ATM   के बारे में  स्वप्न में  ...बतायी थी ! 
                                 
                             मेरे हर्ष का पारावार न रहा ! देखा ...सड़क के बाए तरफ ..SBI  का ATM ..एक lodge के  प्रांगण में  था ! मैंने तुरंत पैसे निकाले और ट्रस्ट में जमा करा दिए ! ये है मेरे साई के चमत्कार ! है न .....! आज वही ATM /SBI ..मंदिर के प्रांगण में सिफ्ट हो गया है !  इसके बाद बहुत से चमत्कार देखने को मिले ! जी हां आप लोगो ने ..साई बाबा के बहुत से चमत्कारों की कहानियाँ ..रामानंद सागर के सीरियल - साई बाबा ..में भी देंखे होंगे ! मेरे साई ने मुझे प्रत्यक्ष मदद दी !
                                 
                                 
            इसी लिए कहते है -- साई मंगलम..साई नाम मंगलम ...

Wednesday, February 23, 2011

क्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-६ सासु जी को श्रधांजली

 अजीब सा लगता  है , जब कोई अनहोनी होने से टल जाती है ! मन को काफी शकुन  मिलता है या यूँ कहें .....
 दिल अन्दर ही अन्दर झूम उठता है..! वैसी ख़ुशी,.आनंद..भाव-विभोर ..कांति. वही समझ सकता है.जिसे जीवन  में ,ऐसी अनहोनी से सामना हुयी हो ! ऐसा मै इस लिए उधृत कर रहा हूँ  क्यों की इस तरह की अनुभूति मुझे तब हुयी , जब मैंने तारीख -१९-०२-२०११ ( गाड़ी संख्या -१२१६३ एक्सप्रेस  काम करते समय  )  को एक गायों के झुण्ड  तथा तारीख -२२-०२-२०११ ( गाड़ी संख्या -१२१६४ एक्सप्रेस काम करते समय ) को भैंसों के झुण्ड को ,सुरक्षित बचा लिया ! कहते है ...सबकी रक्षा  भगवान समय पर करते ही है ! उपरोक्त समय मुझे  आपातकालीन ब्रेक  लगाना पड़ा ! भगवान हम-सभी की भी रक्षा करें !
                                        अब आयें भूतकाल की घटना का जिक्र करे ,जो उपरोक्त शीर्षक से संबधित है ! मै 
 गाड़ी संख्या -१२६२७ सुपर फास्ट , जो बंगलुरु से चलकर नयी दिल्ली को जाती है ...को लेकर शोलापुर गया था  और  तारीख ०४-०९-२०१० को फिर वापस ..गाड़ी  संख्या -१२६२८ सुपर फास्ट ,जो नयी दिल्ली से चलकर बंगलुरु को जाती है  , को लेकर  आना था ! इस गाड़ी को काम करने के लिए ..साढ़े ग्यारह बजे रात को ड्यूटी में हाजिर होना होता है ! अतः मै जल्दी से खा-पीकर आठ बजे के करीब सो गया क्योकि इसके बाद रातभर जागना पड़ता है ! लम्बी गाड़ी..उस पर २४  /  २५ डिब्बे ! कष्टमय यात्रा  ! ड्यूटी तो निभानी ही है !
                      रात करीब ग्यारह बजे , कॉल बॉय ..मुझे जगाया. और कहा - " सर गाड़ी राईट टाइम चल रही है " मै उठ बैठ ! कहा - " ठीक है " ! पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ..कॉल बॉय चला गया !मै पूरी तरह  से  तैयार  होकर चालक-परिचालक रेस्ट रूम के डायनिंग हॉल में आकर बैठ गया ! तब - तक मेरा सहायक  के .मुरली कृष्णा  भी आ बैठा ! बेअरेर आया और सामने खड़ा हो गया ,इस इंतजार में की हम कुछ अनुमति दें ! किन्तु अचानक वह पूछ बैठ -" सर बहुत उदास  नजर आ रहे है  "
  " हाँ ..मै भी ऐसा  देख रहा हूँ.. ! " मुरली कृष्णा   ने हामी भरी ! "
 (  चित्र में -सफ़ेद कुरते वाला ही बेअरेर है !
  जैकेट वाला -कुक ! ) मैंने दोनों केबातो 
 को गौर किया और कहा - " तुम लोग    ठीक ही कह रहे हो ! " कुछ समय रुक कर मैंने अपनी बात आगे बढाई और 
 कहा की - " मै एक बहुत ही दर्द-नाक 
 स्वप्न देखा ! " तब-तक बेअरेर चाय ले 
 कर हाजिर हो गया था. ! मैंने चाय की घूंट लेते -लेते अपनी बात जारी रखी !
  दोनों बहुत ध्यान से सुनने लगे ! 
 " मैंने देखा की मेरी माँ मर गयी है और 
  मै   खूब  जोर - जोर से रो रहा हूँ . मेरे 
  पास बैठे ,बालाजी ( मेरा छोटे पुत्र  ) मेरे गोद में सिमटते जा रहे है ! तभी कॉल बॉय मुझे जगाया था ! तब से 
  ही समझ में नहीं आ रहा है की क्या होने वाला है !" कुछ क्षण चुप रहने के बाद  फिर कहा - " मैंने अपने माँ के बारे में ऐसी स्वप्न देखी है अतः  इसके उलटा ही होगा ! भगवान जाने क्या होने वाला है "
                       इसके बाद सभी ने हामी भरी और हम अपने आन को डालने लोब्बी में चले गए ! नियत समय से आधे घंटे लेट गाड़ी आई ! हमने अपनी जरनी शुरू की !हम रात -भर गाड़ी चलाने के बाद ,अब गुंतकल के नजदीक आ रहे थे ,तभी मेरे सहायक के मोबाइल पर कॉल आया ! समय पौने सात ! उसने फ़ोन रिसीव किया !
 बात पूरी करने के बाद -मुरली कृष्णा ने कहा - " सर ..आप ने ठीक ही स्वप्न की बात कही ! अभी मेरे ससुर जी का फोन आया था ! कह रहे थे की मेरी बेटी को लेकर जल्दी आ जाओ ,तुम्हारी सास जी की हालत बेहद नाजुक है ! मेरे बेटी को मत बताना , नहीं तो घबरा जाएगी !''
                   मुरली कृष्णा  गाड़ी से उतरते ही , जल्दी गाड़ी  संख्या -११०२८ मेल से आदोनी के लिए रवाना हो ! गया ! बाद में मैंने फोन कर उसके सास  की हालत के बारे में जान- कारी ली ! पता चला की वे बहुत नाजुक हालत में है !आखिर कार एक सप्ताह के बाद उनका देहावसान हो गया ! भगवान उनकी आत्मा को शांति दें !

  

Thursday, January 20, 2011

क्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-५.,यह महानायक अमिताभ बच्चन के जुबानी.

 तस्वीर को क्लिक करें......
       मै ११-०१-२०११ को १२१६३ चेन्नई सुपर फास्ट को लेकर ,रेनीगुन्ता गया था.बाजार में चाय-पानी करने के बाद ,हम सभी यानि मेरे सहायक और गार्ड ,रेस्ट  रूम में गए.मैंने बतानुकुलित कमरे बेड नंबर  ६ को ग्रहण किया.अपने निजी सामान को सहजने लगा,त्योही मुझे मेज के निचे एक कागज का टुकड़ा पड़ा दिखा.मैंने उसे उठाया,देखा वह एक अखबार का टुकड़ा था-हिंदी में.पढ़ा तो मेरे अपने निजी जीवन से मिलाता-जुलता शब्द संग्रह लगा.उसे अपने डायरी में संजो कर रख लिया.आज डायरी खोलते ही उस पेपर से अवगत हुआ.मुझे लगा लोग मेरे स्वप्न के उल्लेखो को बिस्वास नहीं करते होंगे.हमेशा इसे संसय की दृष्टी का कोप -भाजन बनना पड़ता होगा.यह लेख ,जरुर इस सोंच को बदलने में-सही दिशा निर्देश देगा.जिसे महानायक श्री अमिताभ  बच्चन जी ने सही पाया .तो आईये ,उन्ही की वाणी में सोंचे,जो इस कागज के तुकडे के ऊपर अंकित है-(सायद यह किसी राजस्थानी पत्रिका में छपा था.जो चेन्नई से प्रकाशित होता होंगा.)
      कहते है यादो को याद रखने के लिए जरुरी है खुद को भुला देना.राजनीती के बाद प्रकाश झा की अगली फिल्म आरक्षण के सितारों से मुखातिब होने का,पर जब अमिताभ बच्चन ने स्मिता पाटिल के बेटे प्रतिक को अपनी बगल में बैठ देखा ,तो वे अपनी खास को-स्टार स्मिता का जिक्र करने से खुद को रोक न  पाए. 
     स्मिता पाटिल उम्दा अदाकारा थी यह बात तो हम सभी जानते है.लेकिन अमिताभ बच्चन के मुताबिक उनका सिक्स्थ सेन्स भी कमाल का था.स्मिता के सिक्स्थ सेन्स से जुड़े एक वाकये को याद करते हुए अमिताभ बताने लेंगे-----बात उन दिनों की है जब मै बंगलोर में कूली की शूटिंग कर रहा था और वेस्टर्न होटल में रुका था.किसी फिल्म के सिलसिले में स्मिता भी उसी होटल में रुकी थी.स्मिता से अकसर मै सेट पर मिलता था.उसके अलावा न वह कभी पार्टियों  में जाती और न मेरी मुलाकात होती, सो उनसे ज्यादा बात की कोई गुन्जाईस  नहीं थी ,लेकिन एक रात मुझे होटल की आपरेटर ने फोन पर कहा की स्मिता पाटिल बात करना चाहती  है.मैंने घडी में देखा ,तो रात के एक बज रहे थे.मै काफी हैरान रह गया.हालाँकि उसी दौरान मुझे यह भी लगा की कंही कोई  मेरे साथ मजाक तो नहीं कर रहा है,खैर फिर भी मैंने आपरेटर को फोन देने के लिए कहा और सामने से जब स्मिता ने हैलो कहा,तो मै और हैरान रह गया.उनहोने हैलो के साथ देर रात किये फोन के लिए माफी मांगी.और साथ ही यह भी पूछा की क्या मै ठीक हूँ?.जब मैंने उन्हें हां कहा तो स्मिता ने मुझे बताया की दरअसल उन्होंने मेरे बारे में एक बहुत ही बुरा सपना देखा,सो उन्होंने सोंचा  की क्यों न मुझसे बात कर लें.आखिर कर मुझसे बात कर वे रिलेक्स हो गयी.और हमने एक दुसरे को गुड नाईट  कहते हुए फोन रख दिया.
                                   सुबह जब मै सूटिंग पर गया ,तो मेरा जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया.जिसके कारण मुझे पुरे तीन महीने तक आई.सी.यू में रहना पड़ा.यह बात मेरे लिए अविस्वसनीय  थी,पर मेरे साथ घटित हुयी थी,सो मुझे मानना पड़ा.हालाँकि जब स्मिता को मेरे एक्सीडेंट के बारे में पाता चला तो दौड़ी-दौड़ी आई.और पुरे तीन महीने तक बिना नागा किये वे हर रोज मुझे देखने आई.सी.यू. में आती रही.यह वाकई बहुत बड़ी बात है.आज वे नहीं है ,पर ऐसा लग रहा है की प्रतिक के रूप में वह एक बार फिर मेरे साथ काम  करने वाली है !
         ...............................अमिताबच्चन.
      ( जी हाँ कैसा लगा ....स्मिता पाटिल की स्वपन वाली बात.........?.....सही हुआ न ....) 

Wednesday, January 12, 2011

क्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-4

                                             रेनिगुन्नता स्टेशन का एक दृश्य.
  कल १२१६३ सुपर फास्ट ट्रेन लेकर रेनीगुन्ता गया था.रात को खा-पी  कर अपने वातानुकूलित कमरे में सो गया आज सुबह(१२-०१-२०११) जब मेरे मोबाइल पर सुप्रभातम का अलार्म बजा तो साढ़े ६ बजे , मै उठ गया.
     बिस्तर पर ,बैठे हुए ही आँख को सहलाते हुए इश्वर  का नाम लिया.कुछ समय तक शांत मुद्रा में बैठे रहने के बाद,सुबह-सुबह मस्तिक पटल पर घुमड़ रहे स्वपन की बात याद आ गयी.वह यह था की-" मै चद्दर ओढ़ रहा हूँ और मेरे बगल में ,दो तीन छोटे -छोटे सांप रेंग रहे है.मेरी पत्नी उन्हें पकड़  कर  गर्म पानी के अन्दर ड़ाल रही है."

                                    मेरी तुरंत की सोंच-"हो सकता है किसी दुसरे का समाचार प्राप्त हो.पर समाचार कुछ अच्छे नहीं होंगे.अपशगुन के संकेत.किसी महिला का भी सन्देश हो सकता है." फिर मै उतनी गहराई में नहीं गया.क्यों की मुझे इस तरह के संकेत मिलते ही रहे है और २४ घंटे के भीतर कुछ न कुछ हो ही जाता है.अब आयें और देंखे -आज क्या कुछ हुआ या नहीं........

                            मै आज १२१६४ सुपर फास्ट ट्रेन लेकर रेनिगुन्नता से गुंतकल के लिए रवाना हुआ.ट्रेन आधा घंटा लेट छुटी.कडपा आने पर ,ट्रेन साधारण तह ५ मिनट के लिए रुकी और सिग्नल हो गया .गार्ड ने झंडी दिखाई और हमने ट्रेन स्टार्ट कर दी.अचानक किसी अनजाने ब्यक्ति की आवाज वल्कि-तलकी  के माध्यम से आई-ट्रेन खड़ा करे.मैंने तुरंत ट्रेन स्टॉप कर दी.बाद में पता चला की बतानुकुलित कोच  में डॉक्टर(रेलवे की ) ,किसी बीमार ब्यक्ति की जाँच कर रहे है और बिना काम पूरा हुए ही ट्रेन स्टार्ट हो रही थी.

                    बाद में हमने पाया की वह कोई महिला डॉक्टर थी ,जो बीमार ब्यक्ति की जाँच में लगी थी.उन्होंने स्टेशन मास्टर की पूरी तरह से धज्जिय उड़ा दी और बोली बिना जाँच पूरी हुए किसने कहा सिग्नल देने के लिए?बेचारा मास्टर बेवकूफ बन-कर रह गया , उसे कुछ बोलते न बना.

                 दूसरी घटना ------मै साढ़े तीन बजे के करीब ड्यूटी से उतरने के बाद घर आ गया.पूरी तरह से ऋ -फ्रेश होकर सोफे पर बैठ,टी-वी पर समाचार देखने लगा.स्टार-न्यूज़ का चैनल था जिसमे ब्रकिंग न्यूज़ आ रहा थी -की -कोंग्रेस ने  कहा है की राहुल गाँधी के बयान  को एन.सी.पि.के प्रति नहीं समझना चाहिए....वगैरह-वगैरह.....तभी मेरा मोबाईल चिल्लाने लगा.मैंने तुरंत रीसिव किया और पाया की मैटर वाकई हैरान करने वाला था.हुआ यूँ  की वह फ़ोन लोको चालक (/मेल/एक्सप्रेस)-सैयद हुमायूँ का था,जो आज १६३८१ एक्सप्रेस, जो मुंबई से चल कर कन्याकुमारी को जाती है,को लेकर रेनिगुन्नता गए .जिन्हें मैंने रास्ते में क्रोस भी किया था.--उन्होंने मुझे बताया की वे जब गुंतकल स्टेशन के प्लेटफोर्म नंबर ६ पर अपनी ट्रेन के साथ सिगनल का इंतजार कर रहे था ,तब उन्हें ट्रेन स्टार्ट करने के लिए गलत लाइन का सिगनल दिया गया.उन्हें मेन लाइन से होकर रेनिगुन्नता जाना था और उन्हें ब्रांच लाइन का सिगनल दिया गया,जो बिजयवाडा को जाती है.किन्तु सौभाग्य वश उन्होंने गलत सिगनल को पहचान लिया और ट्रेन स्टार्ट  नहीं किये.इसके बाद फिर से रूट बदलने और सिग्नल देने में एक्स्ट्रा टाइम वेस्ट हुआ.यह भी पता चला है की सैयद हुमायूँ -सभी अधिकारिओ को इस घटना की जानकारी एस यम एस के माध्यम से दे दी है.अब देखना है होता है क्या ?

             इस तरह देंखे तो आज भी मुझे प्री-आभास मिल गया था.कुछ टूटे-फूटे समाचारों का.हे.सृष्टी के मालिक आप की वंदना कैसे करूँ.?
        

Monday, December 20, 2010

क्या स्वपन भी सच्चे होते है ?..03

       कल यानि तारीख -१०-१२-२०१०,को अच्छी   निद्रा में था .घर में सबसे पहले मेरी पत्नी ही सुबह सो कर उठ गई थी.मोबाइल ने अपनी आवाज जोरो से निकाली नॉर्मली मेरे मोबाइल को कोई दूसरा नहीं अत्तेंद  करता.चुकी मै गहरी निद्रा में था इसलिए मेरी पत्नी ने फ़ोन उठाया ,और कुछ बाते करने के बाद ,मेरे बिस्तर  कीओर  मुड़ी,मै भी सतर्क हो गया था.
     लो जी. ज्योति का फ़ोन आया है -फ़ोन मुझे देकर    पत्नी रसोईघर  की तरफ  चली  गई.
    फ़ोन लोब्बी का था .मैंने सोए-सोए ही बाते की -कहा गया की २१६४ एक्सप्रेस लेकर रेनिगुनता को जाना है.मेरा लिंक नहीं था.अतः मै कुछ समय बाद जबाब देने की हामी भर कर,फिर करवट ले ली.किन्तु अब नींद कहाँ आने वाली थी.न चाह कर भी उठ बैठा क्योकि साढ़े आठ बज चुके थे.अब  तक सोना स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं.वैसे रात तीन बजे ही ,गरीब रथ लेकर आने के बाद सोया था.
       उठा और सीधे आँख मलते हुए सोफे  पर आ बैठ. बगल में पड़े न्यूज़ पेपर पर ध्यान  गया,तब-तक पत्नी चाय लेकर हाजिर हो गई थी .वह मेरे बगल में ही आ बैठी और नौकरानी के बारे  में बोलना शुरू कर दी-आज कल अच्छी नौकरानी कहाँ मिलती  है.मिलने पर मुह बाये पैसे पूंछती है.मैंने कहा-"तन्खवाह जो बढ़ गई है." फिर बात को बढ़ाना उचित न समझ,मैंने बिषय बदल दिया और कह-आज मैंने स्वपन में मम्मी को देखा है.वह कह रही थी की तुम बच्चो को लेकर जहाँ सोई हो,वहा चारो तरफ सांप निकलते है..पत्नी ने हामी केसाथ स्वास लिए क्यों की मै जब कुछ देखता हु,कुछ न कुछ होता है.
       फिर मैंने बात बढाई और कहा- लगता है पत्र या कोई समाचार आने वाला है.चुकी टी.वि.आन  था,अतः सभी का ध्यान  सुबह के रशिफालो  पर केन्द्रित हो गया.साढ़े दस बजे सुबह मै तैयार हो कर ड्यूटी में चला गया.साढ़े ग्यारह बजे २१६४ सुपर फास्ट ट्रेन गुंतकल से रवाना हुई और पांच बजे शाम को हम रेनिगुनता  पहुंचे.रेस्ट रूम में जाने के बाद ,पत्नी को फ़ोन लगाया और पूछा कोई समाचार या पत्र वगैरह आया है क्या.?चुकी स्वप्न की बात याद आ गई थी.
      उसने कहा की मै इस समय बाजार में हूँ और कोई भी तर-तरकारी चालीस रुपये किलो से कम नहीं है.वैसे  आज कोई सर-समाचार नहीं मिला है.हाँ बड़ा बेटा राम जी सिकंदेराबाद जाने को कहा रहा है..मैंने कहा-ठीक है,
    रात को मै अपने a /c रूम में ,अपने पलंग  के ऊपर बैठ कर फायर मैगज़ीन को पढ़ रहा था.समय का कुछ अंदाजा ही न रहा. रात के ग्यारह बजने वाले थे.अब  सोना चाहिए .तभी फोन  की रिंग  बजनी  शुरू..हो गई.देख तो पाया मेरे बड़े बेटे का फ़ोन था.फ़ोन रेसिव किया .बेटे ने जो सूचना दी वह चौकाने वाली थी.
      हुआ यह की -वह जिस ट्रेन से सिकंदेराबाद जा रहा था,उस ट्रेन का लोको रन में अपने -आप ट्रेन से अलग हो गया था और ट्रेन अँधेरे में अगले कार्यवाही के इंतजार में खड़ी थी.लोको का कपलर टूट गया था.उसे बदलना जरुरी था.अतः यह जिम्मेदारी लोको चालक की थी और वह इस काम को पूरा करने में व्यस्त थे.मैंने उन लोको चालको से संपर्क करना चाहा,पर बेटे ने सुझाव दिया की वे लोग प्रयत्नशील है,अभी बात करना  उचित नहीं होगा.फिर  भी मैंने कहला  दिया की कोई सुझाव जरुरी हो तो मुझसे संपर्क करे. ट्रेन के लोको चालको ने काफी प्रयत्न करके सामने का कपलर लाकर पीछे लगाया और करीब ४५मिनट ट्रेन रुकने के बाद,फिर रवाना हुई.
   अतः यहाँ भी मैंने सुबह जो सोंचा था की किसी तरह की सूचना या पत्र आने वाला है,वह २४ घंटे के भीतर ही प्राप्त हो गया.फिर मेरा शिर  उस भगवान को नतमस्तक के लिए झुक गया, .जिसने मुझे प्री-आभास दिलाई.

Thursday, December 2, 2010

क्या स्वपन भी सच्चे होते है ?

                                                                
     मै वाडी से २१६४ एक्सप्रेस आज ( तारीख -०२-१२-२०१० ) आने वाला था.मै वाडी लोको चालक आराम गृह में गहरी निद्रा में सोया हुआ था.अतः सुबह ०६ बजे कॉल बॉय आकर मुझे उठाया क्यों की ट्रेन राईट टाइम चल रही थी.

      मै उठ तो गया , किन्तु किसी गहरे स्वप्न में खोया था.पूरा सीन याद नहीं आ रहा है ,पर आखिरी वाक्य याद है--वह यह की-मुख में राम , बगल में छुरी. जैसा की बिदित है और मेरे साथ होता आया है ,इस लिए मै इस वाक्य की ब्याख्या करता रहा.पर कुछ नतीजे पर नहीं पहुंचा.

   पूरी तैयारी  और नास्ता वगैरह करके, ड्यूटी पर आ गया.ट्रेन समय पर आई और समय से वाडी छुटी.यात्रा होती रही .रायचूर आने पर ,मेरे सहायक लोको चालक श्री प,ज,खान ने एक मछुवारे को जो मन्त्रालयम रोड में रहता है को फोन किया और कहा की मुझे २ किलो मछली चाहिए ,तैयार रखो.

       मछली वाले ने मेरे लिए भी मछली लाने के लिए पूछा.मैंने नं कर दी क्यों की मै प्रायः ब्रिह्स्पतिवार को नॉन veg नहीं  लेता वैसे आज ब्रिह्सपतिवार ही है.ट्रेन नियत समय से मन्त्रालयम रोड आई  ( यानि साढ़े नौ बजे. ) हम अपने लोको की जाँच -परताल कर रहे थे,तभी मछली वाला दो पैकेट  के साथ,आ हाजिर हुआ.पहला थैला उसने मेरे सहायक को दी और दुसरे के साथ मेरे नजदीक आया और कहा सर ,ये मछली मैंने आप के लिए लायी है.देखिये सभी मछलिय जिन्दा है.ताजी की ताजी है.
       मुझे आज कौन सा दिन है का ख्याल नहीं रहा और मैंने उस मछली के पैकेट को लेकर लोको के अन्दर रख दिया .गुंतकल आने में डेढ़ घंटे की देरी थी .मेरे सहायक लोको चालक की मछली को मछुवारे ने काट और साफ़ करके लाया था. उसे घर जाकर बनाने भर का काम था.

        रास्ते में मुझे याद आया, कल मै घर पर नहीं रहूँगा क्यों की आज रात को कर्नाटक एक्सप्रेस काम करनी है.चलो मछली को साफ करके फ्रिज मै रखना पड़ेगा .दुसरे दिन  परिवार वाले खा लेंगे.जैसे ही काटने की बात मुझे याद आई,स्वप्न वाली वाक्य याद आ गई.---मुख में राम , बगल में छुरी.

        अर्थार्त अब  इस वाक्य की ब्याख्या मेरे  सामने प्रस्तुत थी.यानि मुख में राम= मै ब्रिह्स्पतिवार को नान-veg नहीं लेता क्यों की साईं बाबा ( शिरडी वाले ) को बहुत मनाता हूँ और बगल में छुरी =का मतलब साफ है ,मछली मेरे साथ है उसे छुरी से काट कर तैयार करने होंगे.

          मै अपने किये पर शर्मिंदा हुआ और साईं बाबा को मन ही मन याद कर क्षमा मांगी.घर आने पर पत्नी ने बैग को देखते ही मुझे बहुत कोसा.मुझे भरपूर फटकार मिली,उसने मुझे हिदायत देते हुए कहा है की आइन्दा ऐसी गलती न होनी चाहिए |  

          (नोट-जरुरी नहीं जो मुझे स्वप्न में दिखी वह सभी के साथ हो,और उनके भी स्वप्न सिद्ध हो,पर यह मेरी अपनी अनुभव है कारण करम अपने - अपने ) यह स्वपन भी सच्चे हुए. 

Sunday, November 28, 2010

क्या स्वपन भी सच्चे होते है ?

                      जी हाँ  ,ये उपरोक्त  वाक्य कुछ समय के लिए हमें हैरत में डाल सकती  है .इसमें बिस्वास करना न करना ,हर आदमी की अपनी पसंद होती है. वैसे  मै  अपने इस ब्लॉग से एक सप्ताह तक अलग रहा, क्यों की मै अपने रेफ्रेशेर क्लास में शामिल  होने के लिए हैदराबाद चला गया था.और आज ही वापस लौटा हूँ ,आते ही सोंचा कुछ लिखना जरुरी है अतः लिखने बैठ गया.वैसे मै अपने इस ब्लॉग की सार्थकता को बनाये रखना चाहता हूँ.
                         मै अपने इर्द घटी बातो को ही यहाँ प्रस्तुत करता हूँ.मै ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर कुछ नहीं कहना चाहता,क्यों की ऐसी मेरी आदत नहीं है.थोड़े शब्दों  में बातो को पूरी करना मेरी प्राथमिकता होती है.
                अब आये ,उपरोक्त वाक्य  पर ध्यान  दे .मै अपने बारे में यही कहूँगा की सपने सच होते है,ब्शारते उसकी पूरी तरह से ब्याख्या की जाय.आये देखे यह कैसे ,सच होते है........
                 मै अपने हॉस्टल के रूम नंबर ४५ पर सोया हुआ था .तारीख २६.११.२०१० की बात है. सुबह जल्द उठाने की आदत हो गयी थी, क्यों की सुबह जल्दी अपने रोज की क्रिया कलाप से निब्रित  होकर सुबह की नास्ते के बाद ०९ बजे ट्रेनिंग क्लास में शामिल होना पड़ता था.मै सात बजे के करीब, अपने को-रूम मेटो को जानकारी दी की मै आज रात एक स्वप्न देखी है. जिसमे मै ट्रेन  के पीछे दौड़ रहा हूँ .कभी चढ़ रहा हूँ,तो कभी उतर रहा हूँ.और एक सह लोको चालक (काफी गन्दी  स्थिति में ) मेरे साथ चिपक रहा है.
                   मैंने  उन लोगो को बताई की दौड़ाने का मतलब यह है की कोई मेरे परिवार के सिवा, बीमर पड़ेगा या मृत्यु के नजदीक है या आज किसी के मौत  की समाचर मिलनेवाली है.तथा सहायक लोको चालक का मेरे साथ चिपकाने का मतलब यह लग रहा है की मेरे घर में कोई अस्वस्थ  है./ होगा.
                   किसी ने हामी भरी तो किसी ने सहमति में कुछ और घटनाओ की जिक्र कर दी.सभी अपने -अपने क्लास को चले गए ,बात आई और यु गई.,शाम को मैंने अपने पत्नी को फोन  लगाया और ,अपने परिवार के बारे में पूछ -ताछ की तो , पाया की बड़ा बेटा हॉस्पिटल में गया है क्यों की उसके आँखों में घाव निकल गया है.
                  नेक्स्ट डे यानि तारीख २७.११.२०१० को जब मै प्रेयर  के लिए मैदान में पहुंचा तो मेरे साथियों ने खबर देते हुए कहा की खादर बलि लोको चालक (passenger /नंदयाल ..) का कल heart अत्तैक की वजह से देहांत हो गया.
     मै अपने सपनों को साकार पाया.ऐसी बहुत सी घटनाओ की जिक्र मै समय-समय पर अगले पोस्ट में करता रहूँगा.