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Sunday, March 19, 2017

लघु कथा - नोटबंदी पार्ट -2

मैं आज टी वी के सामने बैठा हुआ था । ऑफिस में बहुत देर हो गयी थी । सामने अखबार पड़ा हुआ था । ऑफिस में काम से कहा फुर्सत मिलती है । एक नजर दौड़ाई । देश और दुनिया में शांति से ज्यादा अशांति ही दिखाई दी । मैडम चाय लेकर आई । सामने रख दी । चाय की चुस्की लेते हुए टीवी की ओर देखा । साढ़े आठ बज रहे थे ।

देखा मोदी जी का कोई संबोधन प्रसारित हो रहा था ।
मोदी जी कह रहे थे -

" भाईयो और बहनों ,
आप ने देखा कि देश के भ्रष्टाचार को कम करने के लिए मैंने नोटबंदी का सहारा लिया । जिससे छुपे हुए कालाधन बाहर आ सके । यह आंशिक रूप से सफल और कारगर साबित हुआ है । फिर भी बहुत से कालाबाजारी कुछ बैंक की मदद से अपने छुपे धन को सफ़ेद करने में  कामयाब रहे । मैं उन्हें छोड़ने वाला नहीं । सभी पर कार्यवाही होगी और जरूर होगी ।
आज बारह बजे रात से कोई भी नोट कार्य नहीं करेगा । जिनके - जिनके पास नए 2 हजार और 5 सौ के नोट है , वे कल बैंक में जाकर अपने खाते में जमा करवा दें । पुराने नोट को अपने खाते में कोई भी सिर्फ एक बार जमा कर सकेगा । पुराने नोट एक ही खाते में दुबारा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । 

यह  सुविधा 5 दिनों तक लागू रहेगा ।

50 हजार से ज्यादा जमा का लेख जोखा देना होगा अन्यथा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । अब एटीएम से प्लास्टिक के नए नोट मिलेंगे ।

भाईयो और बहनों - 

मुझे आशा है आप लोग मेरे इस कार्यवाही को नोटबंदी एक की तरह  सहर्ष स्वीकार करेंगे । बाकी जानकारी बैंक वाले बता देंगे । आप सभी का धन्यवाद 
बन्दे मातरम भारत माता की जय ।" 

मेरे शरीर में सिहरन समा गयी । ये क्या नोटबंदी 2 आ गया ? ओह माय गॉड । मैं तो मर गया । 15 लाख कैश घर में रखे पड़े है । अब क्या होगा । लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी दौड़ो ? 


पत्नी ने जोर से झटके दी । अरे सोये सोये ये क्या चिल्ला रहे थे । मैंने अपनी आँख को रगड़ते हुए कहा - " लक्ष्मी आज मैंने बहुत बुरी स्वप्न देखी है । देखा - मोदी जी ने नोटबंदी 2 लागू कर दी है । भगवान न करे ये कही सही हो जाय । लक्ष्मी जल्दी से तैयार हो जाओ । बैंक चलने है । मैंने पत्नी से अनुरोध किया । 

क्यों ? पत्नी ने एक झटके में पूछा । 

भाग्यवान , तुम मेरी लक्ष्मी हो । अलमारी में 15 लाख रखे है । कृपया अपने खाते में जमा करा दो । मैंने प्यार से गुहार किया । 

आखिर 15 लाख आये कहाँ से ? बोलो ना ? पत्नी जानने हेतु जिद्द करती रही । न चाहते हुए भी बताना पड़ा । कहा - " मोदी जी ने कर्मचारियों के वार्षिक इंक्रीमेंट के लिए - वैरी गुड - सर्विस रिकॉर्ड में होना अनिवार्य कर दिया है । अतः मैंने अपने अंतर्गत कर्मचारियों से 1 से लेकर 3 हजार तक बसूले है वैरी गुड रिमार्क के लिये । " 

पत्नी के मुख से निकले - पापी कही के । इतना कह पत्नी बाहर की ओर जाने लगी । मैं जाती हुई लक्ष्मी को आश्चर्य से देखता रह गया ।

( नोट - यह एक काल्पनिक लघु कथा है । सत्य से कोई सरोकार नहीं । )

Friday, February 10, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा -5

हम जम्मू अपने रिश्तेदार के घर  लुधियाना आ गए थे । यहाँ पर एक दिन रुकने के बाद , अब यहाँ से नई दिल्ली जाना था। लुधियाना शहर अपने उद्योगिक राजस्व के लिए प्रसिद्द है ।यहाँहर किस्म की छोटी बड़ी फैक्ट्री मिल जायेगी । इसकी उत्पादन क्षमता पुरे भारत ही नहीं विदेशो में भी फैली हुई है । लुधियाना के बारे में जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा । 8 मई 2016 , रविवार को गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस ( 12904 ) से नयी दिल्ली के लिए रवाना हो गए । 9 मई 2016 को सुबह 7 बजे हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर उतरे क्योंकि यह ट्रेन नयी दिल्ली होकर नहीं चलती है । हमें योजनानुसार किसी के घर न जाकर , नयी दिल्ली के किसी होटल में ठहरना था । 


हजरत निजामुद्दीन से नयी दिल्ली के लिए रोड और रेल यातायात से बहुत से साधन है । ट्रैन से जाने का प्रोग्राम था किंतु एक टैक्सी वाले ने हमें 50/- में नयी दिल्ली पहुचाने की ऑफर दी । मुझे कुछ आश्चर्य भी हुआ । कानो को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था  । कही ये धोका तो नहीं देना चाहता ? अनायास ही मन में संदेह उपजे । जीवन में कभी भी 50/- में दोनों स्टेशन के बीच यात्रा नहीं की थी । हमने उससे कहा - चलो । उसने एक आज्ञाकारी नौकर की तरह सामान उठा लिए और चल पड़ा । आगे आगे वो और पीछे पीछे  हम । कारो - टेम्पो की झुंडों से होते हुए , हम आगे बढ़ रहे थे । उसकी कार , पार्किंग के एक कोने में खड़ी थी । हम कार में सवार हुए और हमारी यात्रा शुरू हो गयी । चुकी दिल्ली दर्शन के लिए रुक रहे थे , सोचा कार वाले से ही कुछ जानकारी भी ले ली जाये । 

मैंने कार वाले से पूछा - दिल्ली घुमाने के लिए कितना भाड़ा है ? उसने उत्तर के वजाय मुझसे ही प्रश्न कर दिया - दिल्ली घूमना है क्या ? 
मैंने कहा - हाँ जी । 
साहब ऐसी या नॉन ऐसी , किस तरह का चाहिए ? 
गर्मी है ऐसी चाहिए । मैंने सहज में ही कह दिया । साहब ऐसी के 1800/- रुपये और नॉन ऐसी के 1500/- रुपये लगेंगे । उसने बड़े ही आत्मीय ढंग से कहा जैसे हम उसके सगे हो । ज्यादा है भाई । टूरिस्ट बस से तो ,  सौ दो सौ में बात बन जायेगी । मैंने भी अनायास  ही कह दिया । साहब सब कुछ महंगा हो गया है । पेट्रोल डीजल महंगा है । रास्ते  में पुलिस वाले है । पार्किंग खर्च है । सभी तो देखना पड़ता है । खैर हमें तो दिल्ली घूमना था । उससे बात पक्की कर ली । कम नहीं किया । कार को एक होटल के पास रोका - पहाड़गंज का क्षेत्र । होटल अच्छा था साफ सुथरा । श्रीमती जी को पसंद आया । वैसे भी घरेलु रहन - सहन तथा घर कैसे हो ? मर्दो से बेहतर औरते ज्यादा जानती है । मर्द पिछड़ जाते है क्यों की वित्तीय घोटाले नहीं करना चाहते ।

नित्य क्रियाकर्म और नास्ते के बात हम होटल से बाहर आये । उस टैक्सी चालक का पता नहीं था । होटल का मैनेजर सामने आया और कहा -" वह ड्राइवर चला गया । मैंने उसके भाड़े 50/- रुपये दे दिए है । आप मुझे दे दीजिए और दूसरी कार रेडी है । ये है ड्राइवर । उसने एक नाटे व्यक्ति की तरफ इशारा किया । ये आप को पूरी दिल्ली घुमा देगा । " मैंने संसय में पूछा - और भाड़े कितने ? मैनेजर बोला - जो पहले तय हुयी थी , उतना ही  ।

दिल्ली के मुख्य दर्शनीय स्थल - 

 लाल किला , जामा मस्जिद , विजय घाट , शांति वन , शक्ति स्थल , राजघाट , गांधी म्यूजियम , कोटला फिरोज शाह , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , तीन मूर्ति , इंदिरा गांधी मेमोरियल हाल , राष्ट्र पति भवन , पार्लियामेंट हाउस , बिरला मंदिर , लोटस टेम्पल , अक्षर धाम मंदिर , रेल म्यूजियम वगैरह वगैरह । 


कार ड्राइवर बिरला मंदिर से दर्शन की शुरुआत की । ड्राइवर  बिच बिच में चुटकुले भी कहने शुरू का दिए थे । ये अच्छे लगते थे । समय व्यतीत होने के लिए जरुरी भी थे । एक जगह कार ड्राइवर हमें एक इम्पोरियम में ले जाने की इच्छा जताई । हमने जाने से मना कर दिया । हमें मालूम था कि वहाँ लेने के देने पड़ते है । ये टूरिस्ट कार वाले मिले होते है । इसके पीछे इनके कमिसन रखे होते है । कई बार हम ठग भी चुके है । उसने हमारी एक न मानी और अनुरोध करने लगा की एक बार आप जाये , कुछ न लें बस । हमने उसकी एक न मानी । अंत में उसे आगे ही बढ़ने पड़े । 

क़ुतुब मीनार के पास गए । यहाँ अंदर जाने के लिए टिकट लेने पड़ते । टिकट खिड़की पर गया । मैंने देखा टिकट काउंटर पर बैठा व्यक्ति सबसे ख़ुदरे रुपये पूछ रहा था । सभी परेशान हो रहे थे । मेरी बारी आई । मेरे साथ भी वही व्यवहार । मुझे तुरंत गुस्सा आ गया । उसे बहुत कुछ कह दिया । वह निरुत्तर सा हो गया , मुझे टिकट आराम से दे दिया । क़ुतुब मीनार ही दर्शन की प्रमुख टारगेट था , मैडम जी का । अंदर में भ्रमण हुई । कई जगह पिक और वीडियो लिए गए  । 

दोपहर के भोजन भी कार ड्राइवर के निशानदेही होटल में ही हुई । हम ठहरे दक्षिण भारतीय रहन - सहन वाले । भोजन रास न आये । पर जीने के लिए तो जरुरी है । काश कोई फल फूल खा लिए होते , तो ही अच्छा होता । दिल्ली दर्शन  के दौरान हमने पाया कि बहुत से दर्शनीय स्थल सोमवार को बंद थे । हमारे मनसूबे पर पानी फिर गए । जो खुले थे वे है - विजय घाट , शांति वन , राजघाट , शक्तिस्थल , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , बिरला मंदिर । इन्हें देख के संतोष करने पड़े । बाकी सब बंद थे ।  कार ड्राइवर को भी पता था , पर उसने कोई सूचना नहीं दी थी । बालाजी के लिए दिल्ली का दर्शन महत्वपूर्ण था । हम तो कई बार देख चुके है । फिर कभी आएंगे , सोमवार को छोड़ , कह आज की दर्शन यात्रा को विराम देनी पड़ी । 

दोस्तों , किसी भी दर्शनीय स्थल पर जाने के पूर्व , वहाँ के बारे में पूरी जानकारी कर लेनी जरुरी होती है । ये जानकारी दोस्तों , रिस्तेदारो या आज कल नेट से प्राप्त की जा सकती है । अन्यथा परेशानी और व्यर्थ के समय बर्बाद होंगे ही और पैसे भी । नए शहर में नए लोग तुरंत पहचान में आ जाते है अतः किसी  पुलिस स्टेशन का मोबाइल नंबर साथ हो , तो किसी भी अनहोनी या ठगी से बचा जा सकता है । वैसे पुलिस स्टेशन के लफड़े से ज्यादातर दूर ही रहना चाहिए क्योंकि पुलिस थाने  भरोसे के स्थल नहीं है । ये ज्यादा उचित होगाकि दिल्ली दर्शन के लिए  सोमवार को न जाए या जो दर्शन करना चाहते है वह किस दिन उपलब्ध है इसकी पूरी जानकारी कर लें । पर्यटन स्थल पर खरीददारी न करें । सामान कोई खास नहीं पर भड़कीले होते है जो पर्यटक को बरबस आकर्षित करते है । वैसे आप जो ख़रीदारी करना चाहते है वह आप के शहर में भी मिल जायेंगे तथा रास्ते भर उस सामान को ढ़ोने की समस्या से भी निजात मिलेगा  । हाँ यात्रा का पड़ाव हो तो खरीद सकते है । वैसे पसंद अपनी अपनी । पैसे अपने अपने । कार चालको से भी सदैव सतर्कता बरतनी चाहिए ।

जैसा की मैं रेलवे में चालक हूँ । एक बहुत ही जिम्मेदारी भरा ड्यूटी करना पड़ता है । परिवार , समाज , ऑफिस और कार्यस्थल के सभी ड्यूटी को सुरक्षित संपादन के लिए वक्त के पाबंद है हम । कुछ के लिए समय को बचाने पड़ते है । यही वजह है कि सुचारू ढंग से ब्लॉग पर पोस्ट न दे पा रहा हूँ । बहुत से पाठक फोन या व्हाट्सएप्प पर सवाल करते रहते है कि अगली पोस्ट कब आ रही है । ऐसे फ़ैन को तहे दिल से धन्यावाद तथा देर लतीफी के लिए दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ । आप के प्यार और लगाव को मेरा सत सत नमन । 

( आगे की यात्रा के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए - 
माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6 ) 



Friday, November 25, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा - 4

आज 6 मई 2016 है । आज कोई प्रोग्राम तो नहीं है । सुबह करीब 10 बजे होटल मैनेजर का फोन आया ।  उसका कहना था कि दोपहर तक 24 घंटे हो जायेंगे , अतः कमरा खाली करेंगे या एक्सटेंशन लेंगे ? मैंने उसे बताया कि दस ग्यारह बजे रात  को कमरा खाली करूँगा । उसने कहा कि तब दो दिनों के चार्ज लगेंगे । " कैसा इंसाफ है यार , कुछ ही घंटो की तो बात है । क्या कुछ एडजस्ट नहीं कर सकते क्या ? " -  मैंने उससे पूछा । मैं कुछ नहीं कर सकता सर , ये तो लॉज के नियम में शामिल है । मालिक के साथ गद्दारी तो नहीं कर सकता । उसने बड़ी ही नम्रता से अपनी बात कह डाली । इस कर्मचारी के ईमानदारी पर खुशी भी हुयी । फिर उसने ही कहा - साब एक काम कीजिये आप 6 बजे तक खाली कर दें । केवल आधे दिन का एक्स्ट्रा चार्ज पे कर दीजियेगा । चलो ठीक है । नहीं से कुछ तो भला । मैंने हामी भर दी । सुबह बाजार जाने का प्लान था  किंतु शाम को 6 बजे के बाद क्या करेंगे ? अतः प्रोग्राम कैंसिल करनी पड़ी । जो खरीदना है वह शाम को ही खरीद लेंगे ।

जम्मू के वातावरण में कोई खास गर्मी नहीं थी । हल्का धुप था । वादे के मुताबिक करीब 6 बजे संध्या को लॉज खाली कर दिए । जम्मू स्टेशन सामने ही था अतः ऑटो वगैरह नहीं करनी पड़ी । चलिये ऑटो के पैसे बच गए । हम पैदल ही स्टेशन आ गए , सिर्फ 5 मिनट लगे । स्टेशन के सुरक्षा घेरो को पार कर स्टेशन परिसर में दाखिल हुए । सोंचा रिटायरिंग रुम में कोई कमरा मिल जाय तो बहुत अच्छा होगा । कोशिस की किन्तु कमरे ख़ाली नहीं थे । सामान के साथ बाजार में घूमना मुश्किल था । हमने अपने सामान को लॉकर में जमा कर दिए । हमारी ट्रेन संख्या 22462 एक्सप्रेस थी , जिसका आगमन / जम्मू में रात बारह बजे के बाद था । हमने टिकट कटरा से लिए थे और बोर्डिंग जम्मू से करवा ली थी ।

अब निश्चिन्त हो बाजार की तरफ निकल पड़े । समय को व्यतीत करना भी तो मुश्किल लग रहा था । हमने बाजार से सूखे फल , रेन कोट , स्वीट , सेव और कुछ ऊनि साल ख़रीदे क्योंकि हमारे शहर के अपेक्षा बहुत सस्ते थे । साउथ इंडियन होने की वजह से नार्थ के खाने कुछ अरुचिकर लग रहे थे । फिर भी जहा तक हो समन्वय बनाना भी जरुरी था । एक दुकान वाले ने बताया कि  सामने वैष्णो देवी ट्रस्ट का निवास स्थल है । कमरे वगैरह मिलते है । ग्राउंड फ्लोर पर होटल है ववहाँ हर तरह के खाने मिलते है और बहुत साफ सुथरे है । आप लोग वहां जाकर भोजन कर सकते है  सुझाव अच्छे लगे । हमने उस दूकानदार को धन्यवाद दी और उस निवास की तरफ चल पड़े । उसने ठीक ही कहा था । बिलकुल सुन्दर अट्टालिका , साफ सुथरी । पर्यटकों के लिए किफायती दर पर कमरे उपलब्ध थे । वातानुकूलित या नॉन वातानुकूलित दोनों । खैर हमें कमरे से मतलब नहीं था फिर भी पता चला की कोई रुम नहीं है । हमने रात्रि भोजन किये । साउथ इंडियन वड़े भी खाने के लिए लिये , पर वे उतने टेस्टी नहीं थे । 

जम्मू स्टेशन के आस पास साफ सफाई नहीं थी ।  जहाँ देखो वही गन्दगी दिखाई दे रही थी । ये स्थानीय निकायों की देन है ।ज्यादा चहल पहल भी नहीं थी । जो पब्लिक थी वह यात्री या दुकान व् दुकानदारी वाले ही थे । हम भोजन के बाद वैष्णो देवी निवास के सामने बने बगीचे में टहलने लगे । अभी बहुत समय है इसीलिए वही एक खली पड़े बेंच पर बैठ गए । इंतजार के समय बहुत ही कष्टकर लगते है । इधर उधर की बाते करते रहे । अब समय साढ़े दस बजने वाले थे । हम वापस स्टेशन की तरफ चल दिए । रास्ते में  पत्नी को अचानक एक पत्थर से ठोकर लगी । वह बुरी तरह गिर पड़ी । हमने सहारा देकर उन्हें उठा  दिए । उन्हें जोर से घुटने में चोट लग गई थी। पत्नी उसी तरह कराहते हुए  स्टेशन के लॉकर तक पहुंची । ये क्या लॉकर के दरवाजे के ऊपर ताले लगे थे । पास के फल वाले दूकानदार से पूछा जो दुकान बंद कर रहा था ।उसने कहा - लॉकर दस बजे बंद हो जाते है अब सुबह 6 बजे खुलेंगे । ये सुन  ऐसा महसूस हुआ जैसे हमारे शरीर के खून ही सुख गए हो । अनायास मुख से निकला - ओह अब क्या होगा । हमारी गाड़ी साढ़े बारह बजे है और वह भी रिजर्व सीट ।

खैर जो होगा , अब तो कुछ करना ही पड़ेगा । हम पूछ ताछ कार्यालय में अपनी कहानी दोहरायी । पर उस पीआरओ के कान पर जु तक नहीं रेंगी । उलटे उसने हमें सिख देने लगा - क्या आप को मालूम नहीं है कि ऑफिस दस बजे बंद हो जाते है । देखते ही देखते और कुछ यात्री जमा हो गए , जिनके सामान लॉकर में थे और वे भी घबड़ाये हुए थे । उसने किसी भी प्रकार के मदद से इंकार कर दिया । फिर हम टीटीई के कार्यालय में गए , शायद कुछ मदद मिल सके । उस कार्यालय में कोई नहीं था , सिर्फ एक व्यक्ति दिखा जिसने सुझाव दिया की स्टेशन मास्टर से मिलिए । वह कुछ कर सकता है क्यों की वही स्टेशन का इंचार्ज है । हम स्टेशन सुपरिटेंडेंट के कार्यालय में भी गए पर दरवाजे पर बाहर से ताला  लटका रहा था । कैरेज स्टाफ मिल गए । उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि रात के समय यहाँ कोई नहीं रहता । मुझे आश्चर्य हो रहा था क्या ये रेलवे की संस्था है या कोई और कुछ । जहाँ देखो वहाँ किसी को भी प्रोपर ड्यूटी करते नहीं देख पा रहा हूँ । जैसे जैसे समय बीत रहा था और ट्रेन के आने का अंतर काम हो रहा था , दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी । दिमाग में एक सूझ आई । पार्सल ऑफिस में गया क्योंकि लॉकर इसी वाणिज्य विभाग के अंतर्गत आता है । वहाँ एक  क्लर्क मिला । उसने कहा - अब कुछ नहीं हो सकता आप सुबह 6 बजे आ जाए । मैंने अपनी दुखड़ा सुनाई पर वो बिलकुल इंकार कर गया । 

मैं अपने को निःसहाय महसूस करने लगा । देखा धीरे धीरे सभी आस पास की दुकानें बंद होते जा रही थी और जम्मू स्टेशन वीरान होते जा रहा था । जो बचे थे वे सिर्फ यात्री गण ही थे। जिन्हें कोई न कोई ट्रैन पकड़नी थी । अचानक मुझे सामने लोको पायलट की लॉबी नजर आयी । मैंने अब तक के किसी भी पूछ ताछ के समय अपनी परिचय जाहिर नहीं की थी । एक साधारण पब्लिक की तरह ही मदद की पेशकस की थी । मैं लॉबी के अंदर गया और अपना पूरा परिचय देते हुए अपनी समस्या बताई । क्रू कंट्रोलर आश्चर्यचकित हुआ और तुरन्त पार्सल ऑफिस से कांटेक्ट किये । कुछ बात बनती नजर आई । उन्होंने फोन कट कर दी और एक बॉक्स बॉय के साथ मुझे पार्सल ऑफिस में जाने के लिए निर्देश दिए । अब मैं पार्सल ऑफिस में था और वह बॉक्स बॉय जिससे मुझे मिलाया , वह वही क्लर्क था जो पहले इंकार कर चुका था । वह कुछ शर्मिंदगी महसूस किया और बोला - आप लॉकर के पास इंतजार कीजिये मैं  एक ट्रेन आ रही है उसमें पार्सल के सामान लोड करवा कर आता हूँ । मैंने स्वीकृति में हामी भर दी किन्तु लॉकर के पास नहीं गया । डर था कि कंही ये भूल न जाय इसीलिए वही ट्रेन आने तक खड़ा रहा । ट्रेन आई , उसने कुछ सामान गार्ड ब्रेक में लोड किये और एक खलासी को लॉकर की चाभी देते हुए बोला- जाओ लॉकर खोलकर साहब का सामान दे दो । हम सभी लॉकर के पास थे । अपने सामान ले लिए । अब हम अपने को बहुत सफल महसूस कर रहे थे , जैसे कोई लड़ाई जीत ली हो । और होनी भी चाहिए , ये स्वाभाविक है । हमने कुछ पैसे उस खलासी को उपहार स्वरूप देने चाहे , पर उसने लेने से इंकार कर दिया । फिर भी मेरी पत्नी उसके पॉकेट में जबरदस्ती रख दी ।

पत्नी को गंभीर चोट लगी थी पर इस आफत की घडी ने सब भुलने के लिए मजबूर कर दिया था । मैंने कई बार रेलवे की शिकायत वाली नंबर पर फोन की परंतु दूसरे तरफ से कॉल रिसीव नहीं किया गया । ऐसा लगता था जैसे कुछ समय के लिए रेलवे ठप्प पड़ गयी हो । एक छोटी सी भूल ( यानि नोटिस और सूचना पट्ट ) ने हमें इस जगह परेशानी में डाल दिया था । प्रायः हम छोटी छोटी सूचनाओं को नजर अंदाज कर देते है । पर ऐसा नहीं है । सभी अपने महत्त्व को उजागर कर ही देते है । आज हमें सिख मिल गयी थी कि हमेशा सतर्क और क़ानूनी प्रक्रिया पर ध्यान देनी चाहिए । थोड़ी सी गलती बड़ी परेशानी उत्तपन्न कर देती है । सरकारी कर्मचारी पब्लिक से कैसा व्यवहार करते है , वह सामने था । यही नहीं कभी कभी ये अपने कर्मचारी को भी मदद करने से नजरअंदाज कर देते है । एक सरकारी कर्मचारी को सदैव मदद के लिए तैयार रहना चाहिए । शायद आज के युग में स्वार्थी ज्यादा और परोपकारी बहुत कम है । यही नहीं , पब्लिक की सहनशीलता इन्हें निकम्मा बना देती है । पब्लिक को चाहिए की शिकायत पुस्तिका का उपयोग जरूर करें । आज हमारे और आप के विचारों में सकारात्मक बदलाव जरुरी है । सकारात्मक विचार उत्थान और नकारात्मक पतन के धोत्तक है ।

आगे की यात्रा के लिए इंतजार कीजिये -  माँ वैष्णो देवी यात्रा - 5 

Saturday, September 24, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा -3


कटरा से जम्मू सड़क मार्ग में एक सुरंग । 
आज दिनांक 5वी मई 2016 है । आज कोई प्रोग्राम नहीं था क्योंकि माता जी का दर्शन कल पूरी हो गयी थी । यहाँ से वापसी भी 6 तारीख को था । 24 घंटे व्यर्थ न जाये , अतः कुछ भ्रमण की तैयारी करना जरुरी लग रहा था । हमने निर्णय लिया कि क्यों न सड़क मार्ग से जम्मू चला जाय । ये कश्मीर है । एक समय था जब इसे भारत वर्ष का स्वर्ग के नाम से जानते थे । आज वह खोता नजर आ रहा है । जिधर देखो उधर डर का माहौल व्याप्त है ।आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आ गयी है । कब क्या हो जायेगा , कोई तय नहीं कर सकता । इसकी आशंका होटल मालिक ने कर दूर कर दी । उसने कहा की आप आराम से बिना भय के कटरा से जम्मू जाएँ । कोई परेशानी नहीं होगी । कहे तो मैं टूरिस्ट कार की व्यवस्था कर देता हूँ । यह भी बिलकुल साठीक सुझाव था । किसी अनजाने की कार को भाड़े पर ले जाना ठीक नहीं था । हमने होटल टुडे के माध्यम से एक कार किराये पर ली । भ्रमण कराते हुए जम्मू तक छोड़ने का 1500/- रुपये । चलो ठीक है । करार हुयी और हमने अपनी यात्रा 10 बजे से शुरू की । हमने अपने पुरे सामान कार में रख दिए और होटल टुडे को अलबिदा कहा ।

हमने मन ही मन बैष्णो माताजी को प्रणाम किये और सुख शांति की दुआ की आग्रह के साथ फिर दुबारा आने की लालसा व्यक्त की । कार कटरा के छोटी छोटी गलियो से होते हुए शहर से बाहर निकला  मुझे ट्रेन की सफ़र तो पसंद
 है ही , पर कार की मजा अलग ही होती है । हम सब कुछ करीब से देख और परख सकते है ।कार  दोहरी सड़क पर दौड़ने लगी । चारो तरफ हरियाली ही नजर आ रही थी जबकि गर्मी का मौसम था । इन वादियो के नज़ारे बरसात में देखते ही बनते होंगे । जंगलो और झाड़ियो में गाँव दिखाई दे रहे थे किन्तु प्रत्येक घर एक दूसरे से दुरी पर थे । वीरान और सुनसान सा । इसीलिए आतंकवादियो के मनसूबे सफल हो जाते है । जेहन में एक तरह से डर भी लग रहा था और आनंद भी । चलते चलते कई पिक भी लिया गया ।

सेल्फ़ी लेने में मजा है या अपनी जिगर की चाहत । क्या हम अच्छे लगते है । ये भी एक आधुनिकता की पहचान है । आये दिन इस कृत से कईयो की जाने भी जा चुकी है । हमारी यात्रा आगे बढती रही । सडको के किनारे हरियाली और नयी नवेली सड़क मुग्ध कर रही थी । सड़क यात्रा के दौरान मंदिर और संग्रहालय व् एक छोटा सा चिड़ियाघर दिखा । रास्ते में ही कौल कंडाली माता बैष्णो देवी जी का मंदिर है । इस जगह से माता जी का लगाव था । कहते है की इसके दर्शन भी बैष्णो माँ के दर्शन पुरे कर देते है । यह मंदिर यहाँ के लोकल लोगो के प्रबवधन में है । साफ सुथरा है । यहाँ एक कुँआ भी है जिसके पानी पिने से फल की प्राप्ति होती है । मैं विस्तार में नहीं जाना चाहता । आप खुद ही पिक और विवरण को पढ़ जानकारी प्राप्त कर सकते है । 
जूम कीजिये और विवरण पढ़िए ।
जूम कीजिये और विवरण पढ़िए ।
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जम्मू घाटी की एक सुखी बरसाती नदी ।
ये एक कश्मीरी राजा के बंशजो द्वारा बनायीं गयी अमर महल संग्रहालय है । इसे हरी तारा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है । जिसमे उनके कुछ परिवारो की तस्वीर प्रदर्शित है । श्रीकरण सिंह । एक सोने का सिंहासन  भी है । इसके अंदर जाने का किराया मात्र 20 रुपये प्रति व्यक्ति है । एक तरफ नदी तो दूसरी तरफ हरी भरी फुलवारी है । कार , मोटर या टूरिस्ट बसो के लिए पार्किंग भी है । जीवन में बहुत से म्यूजियम देखे है किन्तु यहाँ निराशा ही हाथ लगी ।  इसके आस पास के बगीचे में घुमे । आम के पेड़ो पर मोजर आ गए थे । चौकीदार छूने नहीं दे रहे थे । यहाँ से निकल कर चिड़ियाघर पहुंचे । यहाँ भी इक्के दुक्के पक्षी और कुछ बाघ के सिवा कुछ नहीं था । 
अब हम जम्मू शहर में आ गए थे । यहाँ एक मंदिर है ।जिसे देखने गए । दरवाजे पर सिक्युरिटी वाले सब कुछ चेक किये । मोबाइल या कैमरे अंदर ले जाना मना है । हमने प्रमुख द्वार के खिड़की पर जमा कर दिए । मंदिर के अंदर कोई खास भीड़ नहीं था । मंदिर के प्रांगण में अलग अलग कई कमरे है । इन सभी कमरो में अलग अलग देवी - देवताओ की मूर्तिया है और सभी जगह एक पुजारी का ड्यूटी था । जिस मंदिर में भी गये ,  वहाँ पुजारी के मंत्रो का सामना करना पड़ा और उस के एवज कुछ न कुछ दक्षिणा देना पड़ा । प्रभु के भोग या गरीब अन्न दान के स्वरूप  । जो एक पारंपरिक रिवाज है । 
जो भी हो भगवान सबके दाता है । जो नसीब में होगा भाग कर आएगा। जो नहीं होगा वह लाख चतुराई के बाद भी चला जायेगा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे । कोई विशेष दर्शनीय स्थान न होने की वजह से यात्रा समाप्त करनी पड़ी । अतः हम आश्रय के लिए एक लॉज में गए । जो रेलवे स्टेशन के ही नजदीक था । शाम के समय बाजार में खरीददारी हुई । लेकिन हाँ यहाँ जेहन में हमेशा डर सत्ता रहा था । ये कश्मीर है पहले जैसा नहीं । अब कल की यात्रा यानि 6 मई 2016 - अगले कड़ी में । इसे जरूर पढियेगा । यह मेरे जीवन का एक अजूबा था या भूल । कुछ कह नहीं सकता ।
अब फिर मिलेंगे " माँ वैष्णो देवी यात्रा - 4 " में 



Saturday, July 2, 2016

माँ बैष्णो देवी यात्रा - 2

मेरी जीवन संगिनी और बाला जी ।  कटरा स्टेशन 
कटरा स्टेशन में हमने कुछ तस्वीर अपने मोबाइल में कैद किये । हमें रेलवे को बधाई देनी पड़ेगी जिसने इन खूबसूरत कश्मीर के वादियो में पहाड़ो को काट छांटकर एक सुन्दर स्टेशन का निर्माण जो किया है । मई का महीना गर्मियों भरा होता है फिर भी चारो तरफ हरियाली थी । मौसम तो बादलो से ढका जैसा । नरम सी सर्दी लग रही थी । प्राकृतिक की सर्दी कृतिम सर्दी से लाखगुना अच्छी लग रही थी । जिधर देखो उधर ही नजरो को सिर्फ व् सिर्फ हरियाली  ही दिखाई दे रही थी। स्टेशन से बाहर आते ही पहाड़ो के ऊपर माँ वैष्णो देवी जी का मंदिर दिखाई दे रहा था । जाने आने के रास्ते नजर आ रहे थे । बाहर कोई ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं था । दर्शनार्थियों को यात्रा के पूर्व पंजीकरण की पर्ची लेनी पड़ती है । जो पूर्ण रूप से कम्प्यूटरिकृत है । यह सुविधा रेलवे , बस स्टैंड और जहाँ से यात्रा शुरू होती है ( वाणगंगा ) में उपलव्ध है । हमने अपने  पंजीकरण यही से करवा लिए क्यों की हम रेलवे स्टेशन में मौजूद थे । इस प्रक्रिया से सभी को गुजरना पड़ता है । इसमे हमारे नाम , स्थान को हमारे पिक के साथ रेकॉर्ड किया जाता है और एक टिकट व्यक्ति को दी जाती है । इस कार्ड की जरुरत यात्रा के दौरान कई जगहों पर पड़ती है । आवश्यकता के समय सुरक्षाकर्मियों को दिखानी पड़ती है । इसे सुरक्षा कर्मी मंदिर में प्रवेश करने के पहले ले लेते है । कटरा स्टेशन भाग दौड़ की शहरी जिंदगी से बिलकुल शांत लगा । साधारण भीड़ । एक झुण्ड में सिमटे घर ।

हम स्टेशन से बाहर निकले । इस अनजान शहर में एक आश्रय की जरुरत थी । कोई जान पहचान वाला नहीं था । अतः होटल के कमरे लेना जरुरी था । सामने रोड पर एक दलाल घूम रहा था । हमें खड़े देख पास आया और पूछा - साब रूम चाहिए क्या ? हमने हामी भरी तो उसने कहा - मिल जायेगा । ये सी या नार्मल ? कटरा का वातावरण बिलकुल ठंढा था अतः वातानुकूलित का प्रश्न नहीं था । हमने कहा - नार्मल रूम चलेगा । किन्तु साफ सुथरा रहनी चाहिए । उसने कहा - आप चल कर कमरा देख ले । पसंद आये तो रहे अन्यथा दूसरे जगह ले चलूँगा । 1200/- लगेगा । हमने कम कराये तो हजार पर राजी हो गया । उसने किसी को फोन किया और एक कार सामने आकर रुकी । हमें बैठने का इशारा हुआ । हम लोग कार में बैठ गए । करीब 2 मिनट में कार एक होटल के पोर्टिको में प्रवेश किया । जिसका नाम होटल टुडे है जो रेलवे स्टेशन रोड में स्थित है । हमने प्रोग्राम के अनुरूप रुम का मुआयना किया । रूम बिलकुल अच्छे थे । हमारी सहमति के बाद कागजी प्रक्रिया पूरी हुई । होटल का मैनेजर हमारी आईडी नहीं पूछा । जबकि हम तैयार होकर चले थे । हमने हमारे कमरे में प्रवेश किया जो ग्राउंड फ्लोर पर ही था ।

हम दिन चर्या से निवृत होकर तैयार थे । नास्ते का समय था । हमने होटल से ही आलू पराठे और दही लिए । आदत तो नहीं था पर स्वाद अच्छे लगे । आज आराम करने का प्रोग्राम था  चुकी कोई थकावट तो नहीं थी । इसीलिए हमने आज ही मंदिर जाने के प्रोग्राम तय कर ली । होटल वालो ने भी बताया  की अभी जाने से शाम तक वापसी संभव है । यहाँ के होटलो में एक समानता है । सभी के पास अपनी कार है । ये यात्रियों को मुफ़्त में रेलवे स्टेशन या वैष्णो देवी यात्रा की शुरुवाती द्वार वाणगंगा तक  ले जाते है और वापस भी ले आते है । तो हमने पूर्णतः आज ही मंदिर जाने का निश्चय कर लिया ।

बालाजी होटल के मुख्य द्वार पर ।


होटल का मैनेजर अपने कार के ड्राईवर को निर्देश दिया की साहब को वाणगंगा तक छोड़ आये , जहां से माँ के मंदिर के लिए यात्रा शुरू होती है । उसने वही किया । हम वाणगंगा के नजदीक बाजार में थे जहा कार ड्राईवर ने हमें छोड़ी थी । चारो तरफ प्रसाद की  दुकाने लगी हुई थी । दुकान दारो ने अपने दलाल छोड़ रखे थे ।  हमें अपने तरफ आकर्षित करने लगे । हम पहली बार आये थे अतः प्रसाद खरीद लिए । मुख्य द्वार की तरफ चल पड़े । एक छोटा भेंडर आया और चांदी  के सिक्के मातादी के तस्वीर वाले लेने  के लिए विवश करने लगा । हमने अपनी अनिक्षा जाहिर की । वह गिड़ गिड़ाने लगा । साहब ले लो । यही हमारे जीविका  का साधन है । सौ रुपये में 6 ले लो । हम अनजान सा आगे बढ़ते रहे । वह मायूस हो गया और बोला - साहब आप लोग दूसरे जगह हजारो खर्च कर देंगे पर गरीब की भलाई के लिए कुछ नहीं सोंचते । बात पते की थी । कटु सत्य । मेरे मन में उसके प्रति सहानुभूति जगी और मैंने न चाहते हुए भी 6 चांदी के सिक्के जिस पर माँ की तस्वीर छपी थी ले लिए । उसके मुख पर मुस्कराहट खिल  पड़ी । 

कुछ आगे बढ़ते ही पालकी और घोड़ो के मालिको से सामना हुई । वे भी घेर लिए । श्रीमती जी शुगर की मरीज है । पैदल यात्रा संभव नहीं था । घोड़े या पालकी जरुरी था । मुझे भी पैदल की आदत नहीं है । पालकी वाले 5 हजार और घोड़े वाले ने 1850/- की मांग रखे वह भी प्रति व्यक्ति । हेलीकॉप्टर से जाने का प्लान था किन्तु इसकी बुकिंग 2 माहपूर्व करनी पड़ती है । करेंट संभव नहीं था । माँ की यात्रा , और पॉकेट पर बल न पड़े अतः हमने घोड़े की सवारी का निर्णय किया । बहुत जद्दो जहद के बाद 1500/- प्रति व्यक्ति पर जाने और ले आने की बात बनी । घोड़े पर सवार होने के लिए जगह जगह प्लेटफॉर्म बने हुए है । घोड़े की सवारी भी अजीब लगी । घोड़े के टॉप और हमारे शरीर में उछल कूद आनंददायी थे पर यात्रा के बाद कमर को दर्द का अहसास हुआ । वाणगंगा से मंदिर की चढ़ाई 13 किलोमीटर है । इसी रास्ते में अर्धकुआरी माता जी का मंदिर है । जिनका दर्शन करने के लिए एक गुफा से गुजरना पड़ता है । जो सभी के लिए उपयुक्त नहीं है । घोड़े से यात्रा करने के समय यह मंदिर बाईपास हो जाता है । अगर मन में इच्छा हो तो घोड़े के मालिको से कह , यहाँ भी जाया जा सकता है । चढ़ाई के रास्ते पक्के है । जगह जगह शेड भी मिल जाते है । छोटे छोटे दुकान भी मिलते है। रास्ते में पड़ने वाले दुकान बहुत पैसे वसूल करते है क्योंकि उन्हें अपने सामान घोड़े के माध्यम से लाने पड़ते है ।  वैसे तो गर्मी का मौसम था किन्तु सुबह से धुप नदारद थी  । उस पर यात्रा के दौरान एक दो जगह बारिस भी हुई जिससे मौसम खुशनुमा हो गया था । लोग पेट के लिए क्या क्या न करते है । हम घोड़े पर बैठे थे और उनका मालिक उन्हें पकड़ कर निचे चल रहे थे । यात्रा के दौरान जगह जगह चेक पोस्ट मिले ।

तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।

बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है ।  इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।

चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच  ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में । 

Thursday, April 14, 2016

सर्प दंश

सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार । जमीन या पेड़ या घरो में रहने वाले सर्प बहुत ही नुकसान देह होते  है । 

वैसे तो सर्प  के बारे में पूरी दुनिया में कई किस्से मशहूर है   किताबो से ज्यादा चलचित्र में । नाग और नागिन पर आधारित चलचित्र मनोरंजन के प्रमुख साधन है । चलचित्र में नाग या नागिन द्वारा अपने दुश्मन से बदला लेने की कला सबको चकित कर देती है । मन में ये दृश्य ऐसे समा जाते है जैसे सच में  भी यह संभव है । चलचित्र की कहानिया सही हो या न हो पर  वास्तविक जीवन में कुछ घटनाये गहरी दर्द दे जाती है । कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हें याद करते ही शारीर में सिहरन दौड़ जाती है । मैं खुद और मेरे परिवार के लोग कई बार सर्प से सामना कर चुके है ।  यहाँ तक की एक बहुत ही पुराना सर्प मेरे घर में वर्षो से निवास कर रहा था और इसकी भनक किसी को नहीं । भगवान की दया है की कोई नुकशान नहीं झेलने पड़े ।

एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी  भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।

सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।


सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के  पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।

भारती  की नजर  उस सर्प पर  पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर  को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।

कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर  यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या  किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने  लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी  कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।

जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।

Friday, March 11, 2016

नपुंशक

आज कल शिक्षा का क्षेत्र  काफी विकसित हो गया है । जो समय की मांग है । वही इस शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले भरपूर सेवा का योगदान नहीं देते है । सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए , वह भी आराम की तथा ज्यादा सैलरी होनी चाहिए किन्तु अपने फर्ज निभाते वक्त आना कानी करते है । कई तो कोई जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते । किस किस विभाग को दोष दूँ समझ में नहीं आता । ऐसा हो गया है की सरकारी बाबुओ और अफसरों के ऊपर से विश्वास ही उठता जा रहा है । आज हर कोई किसी भी विभाग  में किसी कार्य के लिए जाने के पहले ही यह तय करता है कि उसका कार्य कितने दिनो में संपन्न होगा और उसे कौन कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा  । वह दोस्तों से अधिक जानकारी की भी आस लगाये रखता है  ।

क्या यह सब सरकारी विफलताओं को दोष देने से दूर हो जायेगा ? कतई नहीं । हम सभी का सहयोग बहुत जरुरी है । बच्चे का जन्म होते ही उसकी जिम्मेदारिया बढ़नी शुरू हो जाती है । वह किसी की अंगुली पकड़ कर चलने का प्रयास करता है । उसे अपने माता -पिता के प्यार से आगे की कर्मभूमि का ज्ञान शिक्षण संस्थाओ से मिलता है । उस ज्ञान का दुरूपयोग या उपयोग उसके शैक्षणिक  शक्ति पर निर्भर करता है । पुराने ज़माने में गुरुकुल या छोटे छोटे स्कुल हुआ करते थे । हमने देखा है उस समय  शिक्षक और शिष्य में एक अगाध प्रेम हुआ करता था । दोनों एक दूसरे की इज्जत करते थे । मजाल है की शिष्य गुरु के ऊपर कोई आक्षेप गढ़ दे या गुरु शिष्य पर क्यों की आपसी मेल जोल काफी सुदृढ़ होते थे । उस समय नैतिक विचार नैतिक आचरण सर्वोपरि थे । छोटे बड़ो की इज्जत और बड़े छोटे को भी सम्मान देते थे । कटुता और द्वेष का अभाव था । ऐसे गुरुकुल या शिक्षण स्कुल से निकलकर आगे बढ़ने वालो के अंदर एक उच्च कार्य करने की क्षमता थी । शायद ही कभी कोई किसी को शिकायत का अवसर देता था । इस तरह एक स्वच्छ समाज और देश का निर्माण होता था । 

आज कल की दुर्दसा देख रोने का दिल करता है । शैक्षणिक संस्थान व्यवसाय के अड्डे बनते जा रहे है । शिक्षा के नाम पर कोई सम्मान जनक सिख तो दूर समाज को बर्बादी के रास्ते पर चलने को उकसाए जा रहे है । शैक्षणिक संस्थान रास लीला , नाच और गान के केंद्र बनते जा रहे है । नयी सोंच और नयापन इतना छा गया है कि कभी कभी बेटे  बाप को यह कहते हुए शर्म नहीं करते कि चुप रहिये आप को कुछ नहीं पता । अब आप का जमाना नहीं है । पिता के प्रति पुत्र का आचरण आखिर समाज को किधर मोड़ रहा है । बलात्कार , देश के प्रति अनादर , व्यभिचार समाज में इतना भर गया है और हम नैतिक रूप से इतने गिर गए है कि अगर कोई बहन को भी लेकर बाहर निकले तो देखने वाले तरह तरह के विकार तैयार कर लेते है , फब्तियां कसेंगे देखो किसे लेकर घूम रहा है। ऐसा नहीं है  की सभी ऐसे ही है पर अच्छो की संख्या नगण्य है । उनको कोई इज्जत नहीं मिलती । 

हमारे रेलवे में दो रूप है । प्रशासक और कर्मचारी । आज सभी शिक्षित है चाहे जिस किसी भी रूप में कार्यरत हो ।कर्मचारियों को हमेशा उत्पादन देना है जिसे वे हमेशा जी जान से पूरा करते है चाहे दस आदमी का कार्य हो और उस दिन 5 ही क्यों न हो । इस असंतुलन से कर्मचारी सामाजिक  , पारिवारिक , धार्मिक और राजनितिक उपेक्षा से प्रभावित हो जाते है । क्या एक कर्मचारी किसी गदहे जैसा है ? जो मालिक को खुश करने के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देता है । क्या कहे हम तो मजदूर है नीव की ईंट से लेकर  भवन के कंगूरे को सजाते है । फिर भी हमारी जिंदगी नीव की ईंट के बराबर ही है  । सभी कंगूरे की सुंदरता देखते है नीव की ईंट पर किसी का ध्यान नहीं जाता । शायद उन्हें नहीं मालूम की यह भव्य सुंदरता नीव की ईंट पर ही ठहरी है ।प्रशासक उन उच्च श्रेणी में आते है जो हमेशा  कर्मचारियों पर बगुले की तरह नजर गड़ाये रहते है । इन्हें विशेषतः उत्पादकता को बढ़ाना तथा कर्मचारियों के कल्याणकारी योजनाओ को सुरक्षित रखना होता है  । जो एक क़ानूनी दाव पेंच के अंदर क्रियान्वित होता या करना पड़ता  है । यह भी एक जटिल क़ानूनी प्रक्रिया के अनुरूप होता है । लेकिन ज्यादातर देखा गया है की प्रशासक इस क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करते  है जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो सके । मेरा अपना अनुभव है की अच्छे प्रशासक बहुत कम हुए है और है । आज कल इन्हें अपने को दायित्वमुक्त व् फ्री रखने की आदत बन गयी है । ये सब उपरोक्त सड़ी हुयी शिक्षा का असर ही तो है । कौन अच्छा अफसर है ? आज कल समझ पाना बड़ा मुश्किल है । आम आदमी यही सोचता है की चलो ये अफसर ख़राब है तो अगला अच्छा है , आगे बढे। काम जरूर हो जायेगा । किन्तु सच्चाई कुछ और ही होती है । 

इसे आप क्या कहेंगे ? 

उस दिन जब बंगलुरु स्टेशन पर  बॉक्स पोर्टर ने मेरे बॉक्स को पटक कर बुरी तरह से तोड़ दिया था । जुलाई 2015 की घटना है । मैंने इसकी सूचना सभी को दी चाहे मेरे मंडल का अफसर हो या बंगलुरु का । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी । मुझे संतोष नहीं हुआ और मैंने फिर एक लिखित शिकायत मंडल रेल मैनेजर बंगलुरु को भेजा । इसकी कॉपी अपने मंडल रेल मैनेजर को व्हाट्सएप्प से भेजा । फिर भी कोई न कारवाही हुयी और न enquiry । शायद छोटी और अपने स्टाफ की शिकायत समझ इस पर कोई कार्यवाही करना किसी ने उचित नहीं समझा । अगर वही हमसे कोई गलती हो जाय तो हमें नाक पकड़ कर बैठाते है । उस पर धराये लगाकर सजा की व्यवस्था तुरंत करते है क्यों की उनके लिए ये आसान है । ऐसे समाज और कार्यालयों  की त्रुटियों को आखिर बढ़ावा कौन दे रहा है ।  शायद हमारे सड़ी हुयी शिक्षा का प्रभाव है । जिसे इन नपुंशक अफसरों की वजह से औए बढ़ावा मिलता है और एक दिन यह एक नासूर बन जाता है । आज कल ऐसे नासूरों का इलाज करना अति आवश्यक हो गया है । आखिर इसका इलाज कौन करेगा ? 

आज हमारे नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुछ कार्यक्रमो से काफी खुश हूँ क्यों की इन नपुंशको को  एक सठीक इलाज मिलने वाली है । रेलवे ने फिल्ट्रेशन शुरू कर दी है इसके अंतर्गत उन अफसरों पर गाज गिरेगी और उन्हें CR के अंतर्गत निकाल दिया जायेगा जिन्होंने 30 वर्ष सर्विस या 55 वर्ष की उम्र को पूरी कर ली है तथा अच्छे रिकार्ड नहीं है । काश ऐसे नपुंशको पर जल्द गाज गिरे । समाज बहुत सुधर जायेगा और कर्मठ कर्मचारियों के जीवन में एक नए सबेरे का उदय होगा ।

कर्मठ और मेहनत कश मजदूरो को नमस्कार । यह लेख उन मेहनती  कर्मचारी समूह को समर्पित है ।



Wednesday, February 10, 2016

चैट कीजिये ।

मैं पत्नी को देखते ही मोबाइल के स्क्रीन को तुरंत बदल दिया किन्तु पत्नी को समझते देर न लगी । चैट कीजिये - वह बिना किसी संकोच के बोली । मेरी ख़ामोशी को भाप गयी। बोली - मुझे कोई ऐतराज नहीं है । आप तो स्वयं समझदार है । आप कोई गलती नहीं कर सकते । मुझे पूरा भरोसा है । ये कह कर न जाने क्यों फिर जिधर से आई थी उधर ही चली गयी । आज सूर्य पूर्व के सिवाय पश्चिम से उदय होता नजर आया । वह पत्नी जो चैट के नाम पर क्रोध करती और आग बबूला हो जाया करती थी वही चैट करने के लिए स्वतंत्र रूप से आजादी दे रही थी । मैं आश्चर्य चकित था । पत्नी जी फिर  चाय के प्याले के साथ उपस्थित हुई । मुझसे रहा न गया , बरबस साहस कर पूछ ही लिया । देवी जी आज कैसे खुश हुई कोई कारण ? चाय का प्याला मेरे सामने रखते हुए बोली - वही जयपुर वाली आप की बेटी । बहुत सुन्दर और रहन दार है । भगवान ऐसी ही बेटी सभी को दें । फिर एक क्षण के लिए रुकी और एक लंबी साँस लेते हुए बोलीं - भगवान भी कितना अन्याय करते है । कुछ न कुछ कमी सभी को देते है । काश उसे जबान दी होती । इतना कहने के बाद उसका गला  भर आया । मैं कुछ नहीं बोल सका बस निःशब्द हो खयालो में खो गया ।

ये उन दिनों की बात है । जब मैं एंड्राइड स्मार्ट फोन का इस्तेमाल शुरू किया था । नई यांत्रिकी थी । नेट में तैरना अच्छा लगता था । एक मुठ्ठी भर का  यंत्र काफी कुछ के लिए मदद गार  था । उस दिन मैं सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म संख्या 10 पर बैठा था । राजधानी एक्सप्रेस लेकर जाना था । ट्रेन आने में देरी थी अतः समय वश व्हाट्सप्प पर टहल रहा था । देखा एक अनजान व्यक्ति का कुछ मैसेज वेटिंग में था । पढना शुरू किया तभी एक मैसेज डिस्प्ले हुआ । आप क्या कर रहे है । मैंने उस अज्ञात व्यक्ति की परिचय पूछा । जबाब मिला मैं लक्ष्मी देव हूँ जयपुर से । फिर कल मिलेंगे - कह कर , मैंने मोबाइल बंद कर दी । मेरी ट्रेन आ चुकी थी ।

दूसरे दिन सुबह सोकर उठा । आदत वस सबसे पहले मोबाइल नेट को देखना शुरू किया । देखा लक्ष्मी देव ने कई चुटकुले और पिक पोस्ट किये थे । पढ़ा और बहुत आनंदित हुआ । अनचाहे मन से रिप्लाई भी पोस्ट कर दी - अच्छे लगे । वैसे व्हाट्सप्प के कई दोस्त और ग्रुप है जिन्हें रोज  पढ़ते रहता हूँ । इस दौरान मैंने लक्ष्मी देव की टिप्पणी देखी जो इस तरह की थी ~ " जय जवान जय किसान जय चालक । आप की डयुटी एक फौजी से कम नही है । अच्छा लिखते है आप सब drivers भाईयो को सलाम । जिस वक्त हम अपने बिस्तरो मे दुबके हुये रहते है उस वक्त आप हमारे लिये पटरियो पर सघर्ष करते है और और रेल संचालन का परिपूर्ण रूप से करते है " टिप्पणी पढ़ कर मन गदगद होना स्वाभाविक था । जीवन में पहली बार किसी ने जय जवान जय किसान स्लोगन के साथ जय चालक शव्द को जोड़ा था ।

मेरी जिज्ञासा लक्ष्मी देव के बारे में जानने की हुई । मैंने एक दिन पूछा - आप क्या करते है । जबाब मिला ~ मैं हाउसवाइफ हूँ । मेरे पति व्यापारी है । मेरे कान खड़े हो गए । आज तक मैं जिस व्यक्ति को पुरुष समझ रहा था वह एक महिला निकली । कहानी यही ख़त्म नहीं हुई । एक पुरुष और महिला का आकर्षण सर्व बिदित है । फिर क्या था । दिनोदिन चैट का सिलसिला शुरू हो गया । इस दौरान हम दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान चुके थे । घर गृहस्थी          हो या पारिवारिक लोग  या सामाजिक तंत्र या स्थानीय शहर या पति पत्नी और  हमारे बच्चे सभी के बारे में हम दोनों को एक दूसरे के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी थी । प्रतिदिन कोई न कोई एक नए विषय पर चैट होती थी ।कभी कभी पत्नी भी बगल में बैठे होने के नाते मैं क्या कर रहा हूँ को समझ जाती थी ।अतः  पत्नी को भी इस बात की जानकारी दे दी थी। पहले तो वह गुस्सा हुई पर नरम पड़ गयी जब उसे यह मालूम हुआ कि मैं लक्ष्मी देव को एक पुत्री के रूप में स्वीकार किया  हूँ  । और यह सही भी था क्योंकि कि लक्ष्मी देव और मुझमे स्वच्छ चैट ही होते थे । एक बार मैंने एक वीडियो सांग लक्ष्मी देवको भेजी । लक्ष्मी ने उसके गलत अर्थ लगाते हुए मुझे कोसे थे । उस समय मैंने उसे समझते हुए कहा था कि किसी चीज का अर्थ हमारे मानसिक सोच पर निर्भर करता है । गलत सोच गलत और सही सोच सही मार्ग पर ले जाते है । उसके बाद लक्ष्मी देव ने अपने गलती का एहसास की थी ।

चैटिंग के साथ ही हम दोनों के पारिवारिक रिश्ते भी सुदृढ़ हो गए । किन्तु कोई भी एक दूसरे को प्रत्यक्ष न देखा था न ही कभी मिला था । लक्ष्मी देव अपने परिवार में काफी खुश थी और कोई आभाव महसूस नहीं करती थी । सभी उन्हें प्यार करते थे । मैंने कई बार फोन पर बात करना चाही पर लक्ष्मी देव को ये पसंद नहीं था । मेरी पत्नी भी एब बार बात करने की इच्छा जाहिर की , पर बाद में फिर कभी कह कर लक्ष्मी देव मुकर गयी । उनके परिवार में एक दबंग थी उनकी एकलौती सास , जिससे काफी डरती थी । एक बार उन्होंने अपने घूँघट को नाक तक चढ़ा ली थी जिससे उनकी सास कुपित हो बड़ी मार मारी  थी । आखिर घर की मालकिन सास ही थी किसी भी मर्द की नहीं चलती थी । एक तरह से मेरा अनुभव ये कहता है कि जिस घर की मालकिन औरत होती है उस घर में झगड़े और कलह नामात्र के होती है । लक्ष्मी देव को कई बार सेल्फ़ी भेजने की विनती की पर वह इसे भी इंकार कर दी यह कहकर की लोग पिक का गलत इस्तेमाल करते है । मैंने भी कोई जिद्द नहीं की थी ।

हम दोनों की दिल्ली इच्छा थी की किसी जगह मिले । मैं जा सकता था पर लक्ष्मी देव जयपुर छोड़ कही नही जा सकती थी ।  कहते है समय बहुत बलवान होता है । जिसे चाहे मिला दे या अलग भी कर दे । किसी की वश नहीं चलता । मुझे किसी काम वश जोधपुर जाना था । लक्ष्मी देव से संपर्क किया और पूछा की अगर वो जयपुर में मिल सकती है तो मैं एक दिन के लिए जयपुर रुकने के लिए तैयार हूँ । जैसे मैंने लक्ष्मी देव की , उनके मुहं की बात छीन ली हो , वह तुरंत तैयार हो गयी । मुझे भो आत्मशांति मिली चलो अब उन्हें प्रत्यक्ष देख पाउँगा । आज तक केवल चैट और कल्पनाओ की आँख से ही देखता था । कभी भी वह सेल्फ़ी या कोई पिक भेजने से इंकार करती रही थी । अब सामने खड़ी होगी और हम खूब बात करेंगे । मन की दुविधा दूर हो जायेगी ।

मैं जयपुर पहुँच गया था । अपने होटल के कमरे में सपरिवार ठहरा था । पत्नी भी जल्द तैयार हो गयी थी। लक्ष्मी देव की आगवानी जो करनी थी । दस बजने वाले थे । हम सभी आतुरता से उनकी  इंतजार में बैठे थे । मैं बेचैन था क्योंकि अब तक मैं उसे औरत नहीं समझ सका था । मेरे दिमाग में एक ही बात घुसी हुयी थी कि ये कोई पुरुष ही है जो मुझे औरत के रूप में चैट कर ब्लैकमेल कर रहा है । इसकी पुष्टि भी आज हो जायेगी । उसने दस बजे तक आने की वचन दी थी । बार बार घडी पर नजर जा रही थी अब साढ़े दस बजने वाले थे । सब झूठ है । वह धोकेबाज है । वह नहीं आएगी । वह आप से चैट तक ही सम्बन्ध रखना चाहती है । पत्नी भी मायूस हो शव्दों की प्रश्न चिन्ह खड़ी कर दी । मैं भी अशांत समुद्री लहर सा चुप चाप सुनता रहा । तभी किसी के दरवाज़े को ठोकने की ध्वनि सुनाई दी । अन्मयस्क सा उठा , बेयरा होगा बुदबुदाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया । ग्यारह बजने वाले थे । दरवाजा खोला । सामने चार लोगो को खड़े पाया । एक गोरी सी खूबसूरत महिला एक जवान पुरुष और दो छोटे बच्चे । कुछ देर के लिए खामोश । क्या वही चैट वाली प्रोफाइल वाली औरत सामने खड़ी है ? पत्नी को आवाज लगाई  । इधर आना । वे लोग मुझे घूरते रहे या हो सकता है वे भी मुझे सही पहचानने की कोशिश कर रहे  थे । पत्नी बगल में आ खड़ी हुई थी । आप ही लक्ष्मी देव है ? मैंने औरत की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए पूछा । जबाब के वजाय वह औरत झुक कर हम दोनों के पैर छु लिए । मुझे जबाब मिल चूका था । पत्नी ने उन्हें अंदर आने की अनुग्रह की । हमारे साथ वे लोग अंदर आ गए । हमने उन्हें सोफे पर बैठने का  आग्रह  किया और बगल में ही बैठ गए ।


अंकल ये है मेरी पत्नी लक्ष्मी देव और ये दोनों पुत्र विवेक और शिवांग । मेरा नाम विजय है । आप सभी से मिलकर ख़ुशी हुई । लक्ष्मी देव जी आप को कैसा लग रहा है। चैट तो दमदार करती है । मैंने बेहिचक अपने वाक्य कह दिए । लक्ष्मी देव बिलकुल शांत बैठी रही और अपने पैर की अंगुलियो को ध्यान से सर झुकाये देख रही थी । जी लक्ष्मी कैसी हो ? अब खुल कर बात करो न ? पत्नी ने सवाल किये । मम्मी बोल नहीं सकती - शिवांग ने कहा । क्या ? हम दोनों के मुख से ये शव्द निकले । जी अंकल ये सही है - विजय ने कहा । देखा लक्ष्मी के हाथ में एक नॉट बुक था । अपने पति की जेब से कलम निकल कर कुछ लिखने लगी और हमारे तरफ पलट दिया । लिखा था - सॉरी अंकल ये सही है । मैं बचपन से ही गूंगी हूँ । बोल नहीं सकती । मैं यह आप से छुपाये रखा । कृपया क्षमा करे । हमदोनो पति - पत्नी की आँखे भर आई । देखा लक्ष्मी भी रो रही थी । पत्नी खुद रोते हुए उसे चुप कराने लगी । आज हम जीवन में एक अजीब सच्चाई से सामना कर रहे थे जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । अब समझ में आ गया था आखिर लक्ष्मी फ़ोन में बात करने से क्यों कतरा रही थी । हे भगवान आप ने बिन आवाज ऐसी खूबसूरत मूर्ती क्यों बना दी । लक्ष्मी साक्षात् दुर्गा की मूर्ती लग रही थी । बस कमी एक ध्वनि की थी । आप से चैट कर के लक्ष्मी बहुत खुश रहती है अंकल । मुझे सब मालूम था । मैंने चैट करने की अनुमति दे रखी थी । विजय ने कहा । मैंने पूछा - आप लोग मुझे पहले क्यों नहीं बताये की लक्ष्मी देव बात नहीं कर सकती ?  विजय ने कहा - अंकल लक्ष्मी आप की ब्लॉग बहुत पसंद करती है । एक लेखक  से चैट करके इसे गर्व महसूस होता है । लक्ष्मी ने नॉट बुक में  कुछ लिखी और मेरे तरफ मोड़ दी लिखा था - " हमें डर था कहीँ असलियत का पता चलते ही आप चैट बंद कर देंगे । इसीलिए हमने आप को इसकी खबर नहीं होने दी । " एक पाठक मुझसे चैट कर इतना खुश था , जान कर बहुत हर्ष हुआ । मैंने कहा - एक लेखक बहुत ही संवेदनशील होता है । लेखक हमेशा जोड़ता है , तोड़ता नहीं । हमारी आँखे सुखने का नाम ही नहीं ले रही थी । सबसे ज्यादा पत्नी का जो लक्ष्मी का सिर गोद में रख कर एक माँ जैसा प्यार न्योछावर कर रही थी । दुर्लभ दृश्य ।

बेयरा भोजन की सामग्री रख कर चला गया था । दोपहर का भोजन हो चूका था । हमलोगो के बिच बहुत सी बाते हुई । मैंने विजय को कहा - आप एक महान पुरुष से कम नहीं जो ऐसे दिव्यांग से शादी कर ख़ुशी से जीवन बिता रहे है । आप वास्तव में एक पूण्य के भागीदार है । विजय मुस्कुरा कर स्वीकृती दी । मैंने उन्हें अपने बेटे की शादी में आने का अनुरोध किया । लक्ष्मी अपने पति की ओर देखने लगी जैसे कह रही हो - जबाब दीजिये । विजय ने कहा - अंकल जरूर आएंगे । इन्हें खूब पढ़ाओ बच्चों की तरफ इशारा कर कहा । लक्ष्मी नॉट बुक पर कुछ लिखने लगी और मेरे तरफ पढने के लिए बढ़ा दी । लिखा था - एक को लोको पायलट और दूसरे को प्लेन का पायलट बनाउंगी । पक्के और दृढ इरादे के आगे मैं नतमस्तक था । लक्ष्मी को देखते हुए मुस्कुरा दिया । बोला भगवान आप की मनोकामना पूरी करे । यही तो है दिव्यांग । लक्ष्मी  नॉट बुक में फिर कूछ लिखी - लिखा था मेरे बेटो के शादी में आप लोग जरूर आएंगे । हमने हामी भर दी । मजाक मजाक में मेरे मुह से निकल गया - आप की आने वाली बहुए आप को चैतानी कहेंगी । सभी खिलखिला कर हंस दिए । लक्ष्मी शर्म से मुस्कुराते हुए सिर निचे झुका ली ।

जीवन का एक अदभुद अनुभव था । शव्दों में गूँथना काफी नहीं है । उन्हें जाने देने का मन नहीं कर रहा था । मैं अपने प्रोग्राम को अधूरा छोड़ यहाँ उनके लिए रुक था । जिसका लक्ष्मी और उसके पति ने धन्यवाद जाहिर की । शाम को बिदाई के समय पत्नी ने गिफ्ट का पैकेट लक्ष्मी को दिए जिसे हमने पहले से ही तैयार रखा था । मैंने लक्ष्मी के दोनों बेटो के हाथ पर सौ सौ के नोट पकड़ा दिए । फिर एक बार लक्ष्मी ने हम दोनों के पैर छुए । हमने आशीर्वाद हेतु अपने हाथ उसके सिर पर रख दिए । जाते जाते हमने देखा लक्ष्मी की आँखे गीली हो गयी । वह अपने साड़ी के पल्लू को मुँह पर दबाएं  सपरिवार आगे बढती जा रही थी और घूम घूम कर हमें देख रही थी जैसे कह रही हो अंकल गलती माफ़ करना । हमने उसके आँखों में आंसुओ की धारा बहते देखा । हमारी आँखे भी नम हो गयी और हाथ स्वतः ऊपर उठ गए आशीर्वाद हेतु ।



(यह पोस्ट माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ " योजना को समर्पित है । यह एक समसामयिक लेख है । इसका यथार्थ से आंशिक सम्बन्ध  है । यह सत्य घटनाओ पर आधारित है नाम , जगह काल्पनिक है  । चित्र  - साभार व्हाट्सप्प )














Monday, January 11, 2016

एक कहानी - मनरेगा ।

सड़क के किनारे वह अधमरा कराह रहा था । उसे किसी की सख्त मदद की जरुरत थी । भीड़ उमड़ता जा रहा था । पर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था । यह भी एक सामाजिक कुरीति है ।  लोगो के जबान पर फुस  फुसाहट की ध्वनि आ रही थी । माजरा क्या है ? समझ से बाहर था । हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ने को उतावले थे । उस घायल व्यक्ति के नजदीक पहुँच खड़े  थे । कैमरा मैन वीडियो लेने के लिए तैयार उतावला  था वह मेरे अनुमति का इंतजार कर रहा था ।

तभी एक महिला एक छोटे बच्चे को गोद में लिए आयी और उस व्यक्ति के शारीर पर गिर रोने लगी । हमने उस महिला से कुछ पूछने की कोसिस  कि पर वह चिल्लाने लगी  और जोर जोर से  बोली - मैं कहती थी कि बैर मत मोलो । हम भूखे रह लेंगे । पैसे दे दो । हे भगवान कोई तो हमारे ऊपर रहम करो ? हमसे रहा न गया । मैंने उस महिला को अपना परिचय दिया और पूरी जानकारी हासिल करने की एक कोशिश की । पर वह महिला कुछ भी बताने से इंकार कर दिया  । उनके पहनावे और व्यवहार से यही लगता था कि वे बेहद गरीब थे । मीडियावाले है सुनते ही कुछ भी कहने से इंकार कर दी । अगल बगल के लोगो से कुछ जानकारी चाही किन्तु असफल रहा । मामला गंभीर था । हमने कुछ करने की सोंची ।  तभी हमारे पास एक लंबा चौड़ा और बड़ी बड़ी मुच्छो वाला आ खड़ा हुआ । वह गुर्राते हुए बोला । अबे नया नया आया है क्या ? तेरे को समाचार चाहिए । आ मेरे साथ मैं सब कुछ बताऊंगा । मैं उसके मुह को देखने लगा । देखा की भीड़ अपने आप खिसकने लगी । जाहिर था यह कोई यहाँ का दबंग है ।

हम पत्रकारो को कभी कभी आश्चर्य तो होता है पर डर नहीं । जी हम पत्रकार है । हमें इस घटना की जानकारी चाहिए । मैंने कहा । जरूर मिलेगा । आईये मेरे साथ । कह कर वह मुड़ा और हम उसके पीछे हो लिए । अब हम एक बड़ी हवेली के सामने खड़े थे । दरवाजे पर दो लठैत बिलकुल पहरेदार जैसा । हवेली के सामने एक बड़ा आम का बगीचा था वही हमें बैठने के लिए कहा गया । स्वागत सत्कार के बिच उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया था । सुन कर पूरी घटना समझ में आई ।ऐसे शासन और जनता के सुविधाओकी धज्जिया उड़ते  कभी नहीं देखा था । उन्होंने बताया की वे इस गांव के मुखिया है । मनरेगा के नाम पर काफी रुपये आते है । गांव वालो को काम के नाम पर जो पैसे आते है उन्हें उसमे से मुखिया को  पैसे देने होते है । सभी के बैंक खाते है । मजदूरी के पैसे सीधे खाते में जाते है । सभी को उसमे से मुखिया को कमीशन देने पड़ते है । मुखिया किसी से कोई काम नहीं करवाता है और सभी का हाजरी बना कर भेज देता है । इसी एवज में कमीशन लेता है । उस व्यक्ति ने कमीशन देने से इंकार कर दिया था । अतः मुखिया के कोप भाजन का शिकार बन गया था । अब समझ में आया मनरेगा का पैसा कैसे बर्बाद होता है और इससे कोई विकास भी नहीं ।

मुखिया हमें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया और धीरे से एक सौ की गड्डी हाथ में पकड़ा दी । हमने मनाही की पर वह न माना । कहने लगा - रख लीजिये ये तो एक छोटा सा नजराना है । दिल बेचैन था । कर्तव्य के साथ खिलवाड़ करने का मन कतई नहीं था । एक उपाय सुझा । हम सीधे उस गरीब के घर गए । देखा उसके दरवाजे पर एक्का दुक्का व्यक्ति खड़े थे । उस व्यक्ति की पत्नी दरवाजे पर बाहर बैठी थी । छोटा बच्चा उसे बार बार नोच रहा था । गरीबी ठहाके लगा रही थी । मेरे हाथ एक छोटी सी मदद के लिए उसके तरफ बढे और मैंने उस महिला की ओर उस सौ की गड्डी को बढ़ा दी जिसे मुखिया ने नजराने की तौर पर दी थी । वक्त को करवट बदलते देर न लगा । उस महिला ने उस गड्डी को घुमा कर जोर से दूर फेक दिया । मेरे दरवाजे से चले जाओ मुझे भीख नहीं चाहिए । हम जितना में  है उसी में जी लेंगे ।

मैं हतप्रभ हो देखते रह गया । मैं हार चूका था । हम धनवान होकर भी गरीब थे और वे गरीब होकर भी अमीर क्यों की उनके पास ईमान और इज्जत आज भी बरकरार थी ।

Wednesday, January 21, 2015

ऐसा भी होता है ।

दिसंबर का महीना था ।कड़ाके की सर्दी । कुहासे की वजह से रेल गाड़ियों के आवा जाही पर असर पड़ा था । यानि  दिनांक 15 और वर्ष 2014 । आज रिफ्रेशर क्लास का आखिरी दिन था । वक्त गुजरता जा रहा था ।समय जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । सभी को , जिन्हें ट्रेन पकड़नी थी उन्हें एक ही चिंता  सता रही थी की कब रिलीफ पत्र मिलेगा । मैं भी उसमे से एक था । शाम को करीब पौने पाँच बजे रिलीफ पत्र मिला । जैसे - तैसे हास्टल को भागे । पहले से  ही पर्सनल सामान सहेज के रख दिया था । राजधानी का समय हो चला था । भागते हुए काजीपेट के प्लेटफॉर्म संख्या दो पर पहुंचे  । तब तक राजधानी एक्सप्रेस जा चुकी थी । अनततः ईस्ट कॉस्ट एक्सप्रेस से हैदराबाद के लिए रवाना हुवे ।

हैदराबाद से गुंतकल के लिये  कोल्हापुर एक्सप्रेस जाती है । उसमे हम सभी का रिजर्वेशन था । रात ग्यारह बजे ट्रेन को प्लेटफॉर्म में लगाया गया । मेरे साथ कई लोको पायलट थे । मुझे नींद आ रही थी । अतः बिना देर किये , अपने 2 टायर कोच में पवेश किया । मेरा लोअर बर्थ था । मेरे सामने के ऊपरी बर्थ पर एक बुजुर्ग अपने बिस्तर को सहेज रहे थे ।अपने सामानों को सुव्यवस्थित रख , थोड़े समय के लिए टॉयलेट या   बाहर चले गए । 

कुछ समय के उपरान्त लोको पायलट मुरली आ धमाके । मैंने पूछा _ आप की बर्थ कौन सी है ? उन्होंने  मेरे सामने की ऊपर वाली बर्थ की तरफ इशारा किया । मैंने कहाकि उसपर एक बुजुर्ग है । गलती से आया होगा , कहते हुए बुजुर्ग के बैग को मुरली जी ने निचे रख दिए और  मेरे बगल में ही बैठ गए । हम एक दूसरे से वार्तालाप में व्यस्त थे । तभी वह बुजुर्ग आये । अपने बैग को बर्थ से गायब देख , जोर से चिल्लाने लगे । मेरा बैग कहा गया ? मुरली जी ने उसके तरफ रुख करते हुए जबाब दिया की  आप का बैग यहाँ निचे है । अब तो वह बुजुर्ग आप से बाहर हो गए और बोले किसने यहाँ रखी ? मुरली ने तुरंत स्वीकारते हुए कह दी _ मैंने रखी है ये बर्थ मेरा है । बुजुर्ग कंट्रोल से बाहर । मुरली के तरफ इशारा करते हुए  बोले _ मेरा बैग ऊपर रखो जल्दी । ये बर्थ मेरा है । 

ज्यादा बात न बढे इसलिए मैंने हस्तक्षेप किया । दोनों से उनकी टिकट  फिर से देखने का आग्रह किया । चार्ट में मेरा नाम मुरली लिखा हुआ है _ मुरली ने कहा । वह बुजुर्ग व्यक्ति टपक से कहा मेरा नाम मुरली है । मैंने मुरली से उनकी टिकट दिखाने को कहा । किन्तु टिकट उनके पास नहीं था ।टिकट उनके सहायक के पास था । उस व्यक्ति ने अपनी टिकट दिखाई । वह बर्थ उसी का था । अतः मुरली उसके कोप का अधिकारी न बने , मैंने ही उसकी बैग उसके बर्थ पर तुरंत रख दिया । वह व्यक्ति गुस्से में लाल हो गया था । बहुत कुछ कहा जो यहाँ उद्धृत करना जरूरी नहीं समझता । मुरली को अपने गलती का अहसास हो गया था । अब शांत और चुप्पी के सिवाय कोई औचित्य नहीं था । मुरली इस मामले को नजरअंदाज करते हुए चुपके से खिसक गए । सहायक लोको पायलट के आने के बाद पता चला की उनका बर्थ कहीं और था ।


जी हाँ आये दिन हमसे ऐसी गलतिया होती रहती है । पर हम में कितने लोग है जो गंभीरता से सोंचते है ? थोड़ी भी सूझ बुझ से  की गयी कार्य हमारे स्वाभिमान में चार चाँद लगा देते है । मनुष्य मात्र ही एक ऐसा प्राणी है जिसे सूझ बुझ की शक्ति प्राप्त है अन्यथा जानवर और मनुष्य में फर्क कैसे ? स्वच्छ और सशक्त नागरिक देश के उन्नति के नीव है ।

Monday, November 17, 2014

मैं शराबी नहीं हूँ ।

बहुत दर्द हो रहा है मेरे मुह से निकल गया । पत्नी जो किचन में खाना बना रही थी मेरी आवाज को   सुन ली थी । वही से पूछ वैठी ? क्यों जी क्या हो गया । मै अनसुना सा बैठ रहा  । दिल कुछ कहने के पक्ष में नहीं था । पत्नी और वह भी जाने बगैर कैसे रह सकती थी ? पास आ गयी और पुलिसिया प्रश्नो के बौछार शुरू कर दी । बिना कुछ जाने मेरी खैर नहीं । अपनत्व जो गंभीर है । शादी के वक्त कसम भी तो खाये थे कि हम एक दूसरे के दुःख सुख के साथी जीवन भर बने रहेंगे ।

दर्द बेहद असहनीय था । दाहिने हाथ के अंगूठे को बाए हाथ से सहलाते हुए बोला - इस अंगूठे और पंजे में खून जम गया है और सूजन भी बहुत है । कुछ क्षण के लिए चुप हो गया । पत्नी बगल में बैठते हुए मेरे हाथ को अपने हाथो से पकड़ ली और डॉक्टर की तरह जांच मुआयने करने लगी । ओह बहुत सूज गया है । पत्नी के इन शव्दों में कितना प्यार और अपनत्व था , आसानी से एक प्रेमी युगल ही समझ सकता है । वह हाथ को सहलाते हुए पूछने लगी - ये तो चोट है , आखिर कैसे हुआ ? और उठ बेड रूम से पतंजलि के दिव्य पीड़ान्तक तेल ले आई । तुरंत मालिस करने लगी । पतली और कोमल  अंगुलियो के दबाव भी असहनीय पीड़ा उत्तपन्न कर रही थी , पर पुरुष को सहने की शक्ति भी कम नहीं होती ? मुह बंद कर दर्द को सहन करता रहा। पत्नी फिर अपने प्रश्नो को दुहरायी । क्यों जी यह कैसे हुआ बोलते क्यों नहीं है ? 

वाकया उस दिन की थी जब मेरी ट्रेन को बिफोर समय चलने की वजह से एक स्टेशन पर खड़ा कर दिया गया था । मै और मेरा सहायक लोको में बैठे हुए थे । अचानक एक नौजवान लोको के अंदर प्रवेश किया । उसके हाव भाव से लग रहा था कि उसने शराब पी रखी थी । हमने उसे तुरंत बाहर जाने के लिए कहा , पर बाहर जाने का नाम नहीं ले रहा था और अनावश्यक शव्दों को बके जा रहा था । सहायक उसे खिंच बाहर ले गया । निचे उतरकर भी उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। पीछे से मैं भी प्लेटफॉर्म पर उतर गया । अब वह मुझसे उलझ पड़ा । हमने उसे दूर जाने की हिदायत दी । कुछ और यात्री भी समझाये , पर उसे कुछ असर नहीं पड़ा । हमारे प्रति उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आये । हमारे सहनशीलता पर दबाव बढ़ने लगा था

अचानक मैंने अपना कंट्रोल खो दिया था और मैंने उसे दूर ढकेलते हुए कई थप्पड़ जड़ दिया । उसे होश था या मदहोशी मालूम नहीं तुरंत मेरे पैर पकड़ लिया । शक्ति और पराजय शांत हो गए । उस समय कुछ महसूस नहीं हुआ था । क्रोध अँधा होता है । उस समय कुछ समझ से बाहर था । कोमल और सुकुवार हाथ में धीरे धीरे दर्द शुरू होने लगा । आराम गृह में रात भर सो नहीं सका था । दाहिने हाथ की हथेली और अंगूठे में सघन पीड़ा थी जो उस व्यक्ति को पीटने का नतीजा था ।परिणाम ख़त्म हो चूका था और नतीजे मैं भुगत रहा था ।

पत्नी शांत मुद्रा में सुनती रही । मेरे शव्दों पर विराम लगते ही वह विफर पड़ी । मेरे प्रति प्यार और दर्द गायब हो गए । उसके हृदय में  उस शराबी के प्रति प्यार और सहानुभूति उमड़ पड़े ।वह  गुस्से में दुर्गा की रूप धर ली और कहने लगी - आप को अपनी शक्ति और क्रोध पर लगाम लगानी चाहिए । उस नौजवान ने शराब पी थी , आप तो शराबी नहीं हो । आप में और उसमे अंतर ही क्या रह गया ? आप अपने को कंट्रोल करना सीखिये । अब भुगते करनी का फल । उसका श्राप लग गया है । आप हमेशा ऑन लाइन जाते रहते है , किसी दिन अपने साथियो के साथ आप पर हमला कर देगा तो क्या कीजियेगा ? 

आज पत्नी मुझे कठघरे में खड़ा कर  जो जी में आया कोसती रही । उसके भावनाओ में कोई खोट नहीं थे । मैं अपने को कोसता रहा । यह मेरे जीवन की बड़ी गलती थी । स्वर्ण अलग धातु से मिल अपनी चमक खो चूका था । मुझे बस इतना ही कहते बना -मैं शराबी नहीं हूँ । घोर गलती हो गई । अब पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा । क्रोध का अंत कुछ भी नहीं है । बस राख ही राख । सहनशीलता महान है । प्यार जीत और द्वेष हार एवं पीड़ा ही देती है ।


ओह अंगुली में अभी भी दर्द है ।