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Thursday, December 13, 2012

दुरंतो

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो  में हिंसा का बहुत ही कम स्थान है । स्वाभाविक है की इस धर्म के अनुयायी भी नर्म , शांत और भाई- चारे से ओत प्रोत होंगे ही । यहाँ किसी धर्म विशेष के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूँ । प्रसंग वश कहने पड़ते है । उस दिन रविवार था अर्थात दिनाँक 9 वि दिसम्बर 2012 ।  गुंतकल से दुरंतो  ट्रेन लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । 424 किलो मीटर की दुरी तय करनी थी । वैसे ट्रेन हमेशा ही समय से चलती है । पर उस दिन देर से आई पांच बजे सुबह  , वजह था बंगलुरु मंडल में रेल  लाइन में वेल्ड फेलुर । एक बार गुंतकल से ट्रेन चली तो सिकंदराबाद के पहले कहीं नहीं रुकती है । 

अब आप सोंच सकते है की लोको पायलटो  के ऊपर क्या गुजरती होगी , जब उन्हें संडास /पेशाब की जरुरत महसूस हो । लोको के अन्दर इसकी कोई सुबिधा नहीं है । पानी पीना बंद , नास्ते    बंद । ट्रेन की गति थमने की नाम नहीं लेती । दुरंतो जो है । इस हालत में स्वास्थ्य को ठीक रख पाना   कितना मुश्किल है । यह हमारे जीवन की रोज - मर्रा  और भोगने वाली प्रक्रिया  है । यही वजह है की लोको पायलटो को  सुगर / बीपि खाए जा रही  है ।  " ये भी कोई जीवन है ।"- एक सहायक ने गंभीर हो कहा था ।

 " रेल प्रशासन को कुछ करना चाहिए । आखिर अफसर किस लिए है ?"- एक बार यात्रा के दौरान एक यात्री ने प्रश्न किया  था । आप समझते है । वो समझे तब न । बगल वाले ने प्रश्न जड़ दिया । अजीब सा लगता है , जब यात्रा के दौरान साधारण सी पब्लिक बहुत कुछ कह देती है , जो हमारे जिह्वा पर नहीं आते । आखिर क्यों सत्ताधारी /प्रशासनिक अधिकारी अपने सूझ - बुझ से कल्याणकारी योजनाओ को मूर्त रूप नहीं देतें ?

लिंगम्पल्ली  और हाफिजपेट  के बीच  महज चार किलोमीटर का फासला है । दिल धड़क उठा जब एक दो वर्ष का लड़का  पटरी के बीच में आ गया । सिटी बजाये जा रहें थे । अब कुछ करे , तब तक उसकी माँ सामने आती ट्रेन को भांप ली और तुरंत देर किये बिना बच्चे को पटरी से बाहर  खिंच ली । लोको के अन्दर चार व्यक्ति थे । सभी के मुह से चीख निकल गयी । हे भगवान ! आप की कृपा अपरमपार   है । लोको के अन्दर एक अफसर भी थे , घबडा सा गए । अभी थोड़ी आगे ही बढे थे की फिर दो लडके करीब ग्यारह के आस - पास के होंगे , अपनी साईकिल को रेल के बीच  रख कर विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेन को देखने में व्यस्त । सिटी बजती रही , हाई टेक सिटी के प्लेटफोर्म पर खड़े लोगो ने शोर मचाई और वे दोनों लडके ट्रेन के आने की आभास होते ही ,सायकिल को तुरंत रेल की मध्य से बाहर खिंच लिए । ट्रेन  तीब्र  गति से आगे निकल गयी ।फिर कुछ दुरी पर एक महिला मरने से बची । एक ब्लाक के बीच .. तीन  जीवन को जीवनदान मिली ।
सब कुछ उसके हाथ में है , हम तो वश एक आधार /कारक  है । ॐ साईं
 

Monday, August 20, 2012

छिपकली - डूबते को तिनके का सहारा



थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी  । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।  

ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै  तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का -  कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।


उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल  लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा  - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर  गया है । दाल मथना बाकी है ।

अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर  देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ ।  सभी  के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ  देता  था और आज हम सभी लोको पायलट  विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।

फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल  दिया गया और नए सिरे से तैयारी  की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।


Wednesday, July 4, 2012

पढ़े लिखे अनपढ़

रेलवे हमें भारतीयता की पहचान  दिलाती है !रेल ही हमें एकता का सन्देश देती है ! यह देश के एक भाग से दुसरे भाग को छूती है , जोड़ती है ! एकता का ऐसा मिसाल शायद ही कोई होगा ! हमें सैकड़ो वर्षो तक गुलाम रहने पड़े ! फिर भी शासको को भारत की उन्नति की ओर ध्यान खींचता रहा ! इसकी एक मिसाल रेल और उसकी स्थापना है ! वृतानियो को अपने देश से रेल को आयातित करने पड़े ! तब  जाकर भारत में रेलवे की नीव पड़ी ! अकसर लोग कहते मिल जायेंगे कि देश में रेलवे को काफी आमदनी है ! रेलवे  चाहे तो सोने की पटरी बिछा सकती है ! बिलकुल सही - भावना ! दूसरी तरफ -लुटेरे इसे कंगाल बनाने में पीछे नहीं रहते ! वर्षो अंग्रेजो ने लूटा - अब भारतीय लूट रहे है ! लूटेरो की भीड़ इतनी बढ़ गयी है कि सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ! जो इमानदार है , उनकी कोई अस्तित्व नहीं !

बचपन में जब रेल गाड़ी की छुक - छुक या -भक - भक की आवाज सुनता तो इस कार्य को  करने की इच्छा मन में हिलोरे लेने लगती थी  ! कौन  ..जाने की  यह एक दिन  सच में बदल जाएगा ! गाँव या वनारस / बलिया जाने के लिए हावड़ा स्टेसन से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी ! उस  समय ट्रेनों में जनरल कम्पार्टमेंट ज्यादा और रिजर्व कम होते थे ! पढ़े-  लिखे लोगो की संख्या कम हुआ करती थी ! साधन संपन्न रिजर्व करके यात्रा करते थे ! साधनों की कमी ! यात्री ट्रेन पर चढने के पहले ,  कईयों से - बार बार पूछते थे की फलां  ट्रेन / यह ट्रेन कहाँ जा रही है  ! पूरी तरह चेतन होने के बाद ही ट्रेन पर चढते थे ! यात्रा के दौरान पूरी तरह से सजग ! घर से चलने के पूर्व ही घर के बुजुर्ग सन्देश हेतु कहते थे - किसी के हाथ का  दिया हुआ नहीं खाना  जी ! न जाने - क्या क्या मिला हुआ होता है ! यात्रा भी बड़े ही गंभीरता   के साथ गुजरती थी ! मजा भी था और यात्रा के समय अपनापन भी !

आज - कल कुछ बदला सा ! ट्रेनों की संख्या सुरसा के मुख की भाक्ति दिनोदिन और प्रति बजट में  बढ़ती जा रही है ! शिक्षा का समुद्र लहरे मार रहा है ! अनपढो की संख्या काफी कुछ कम हो गयी है ! ट्रेनों में कोचों की संख्या काफी बढ़ गयी है और बढ़ते जा रही है ! जनरल डिब्बो की संख्या कम हो गयी है ! उनकी जगह आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बो की संख्या की बढ़ोतरी ने ले ली  है ! जन सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है ! आरक्षण की अवधि एक सप्ताह से पखवाडा , पखवाडा से महीना   और महीना  से कई महीनो में बदल चूका है ! फिर भी तत्तकाल पर मारा-  मारी ! वह शांति दूत भारत , अब अशांत सा भागम- भाग में शरीक है ! भागने वाले को यह भी पता नहीं कि  वह किस जगह बैठा /  खड़ा / घुस चूका है ! एक छोटा सा उदहारण --

कल सिकंदराबाद से गरीब - रथ काम कर के आ रहा था ! नाम से परिलक्षित है की यह ट्रेन गरीबो द्वारा इस्तेमाल होती है ! किन्तु वास्तविकता कुछ और है ! इस ट्रेन को चलाने की मनसा... मंत्री जी के मन में क्या थी ? वह मै  नहीं कह सकता ! पर  इतना जरूर है , इसे साफ्ट वेयर इंजिनियर और एक बड़ा शिक्षित तबका जो मेट्रो पोलिटन शहरों में जीवन यापन कर रहा है / से जुड़े हुए है ..100% कर रहा है ! ऐसे लोगो से गलती की अपेक्षा भी करना जुर्म होगा ! किन्तु बार - बार ... प्रति ट्रिप ...चैन  खींचना कोई  इनसे सीखे ! जी हाँ .. यह बिलकुल सत्य है , हम लोको पायलट इन पढ़े लिखे  अनपढ़ लोगो से परेशान हो गए है ! आप पूछेंगे ..आखिर क्यों ?

बात यह है की सिकंदराबाद - यशवंतपुर गरीब रथ 19.15 बजे सिकंदराबाद से चलती है और सिकंदराबाद -विशाखापत्तनम गरीब रथ ..20.15 बजे ! दोनों की दिशाएं भी अलग है ! समय से यशवंतपुर गरीब रथ चलती है और विशाखापत्तनम के यात्री इस ट्रेन में आ कर बैठ जाते है ! ट्रेन के चलने के बाद , जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण  भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ !  आप भी सोंचे ? इसे  क्या कहेंगे -आज का पढ़े लिखे अनपढ़ !

Friday, April 20, 2012

ईश्वर अल्ला तेरो नाम ..सबको सन्मति दे भगवान !

 आयें आज कुछ नेकी- बदी की बात हो जाय ! कल यानि दिनांक १९ अप्रैल २०१२ को मुझे १२१६३ दादर - चेन्नई सुपर फास्ट लेकर रेनिगुन्ता जाना था ! अतः समय से साढ़े दस बजे गुंतकल लोब्बी में पहुंचा !  जैसे ही ये.सी.लाँग में जाने के लिए दरवाजा खोला ! सामने मेरा एक सह -कर्मी ( लोको पायलट/ नाम न बताने की मनाही है  ) बाहर आते हुए मिल गए और तुरंत हाथ मिलाते हुए , उन्होंने मुझे कहा -"  आप को   भगवान स्वास्थ्य और समृधि प्रदान करें !" 

मै कुछ समय के लिए सकारात्मक भाव , जड़वत  खड़े रहा और उनके मुंह और दाढ़ी को देख- मुस्कुराया !  ख़ुशी जाहिर की ! " और कुछ दुवा करूँ ?"- उन्होंने प्रश्न जड़ दिया ! मैंने कहा - "  हाजी अली ...आप  और भगवान की कृपा बनी रहे ! इससे ज्यादा क्या चाहिए ? वैसे भगवान को मालूम है , मुझे किस चीज की आवश्यकता है !" फिर क्या था वे भी हंस दिए ! मेरे साथ फिर ये.सी.रूम के अन्दर वापस  आ गए ! मेरी ट्रेन के आने में आधे घंटे की देरी थी ! उन्होंने मेरी अंगुली पकड़ जबरदस्ती बैठने के लिए कहा ! मै अपने सूट केश और बैग को साईड में रख , उनके साथ बैठ गया !

" कहिये ?  क्या कोई खास समाचार है  ? "- मैंने पूछ बैठा !
" नहीं यार ! आप  ने भगवान का नाम लिया और मुझे एक वाकया याद आ गयी ! समझ - समझ की बात है ,बिलकुल ईश्वर हमारे ख्याल रखते है !" उन्होंने कहा ! एक लम्बी साँस और छोटी सी विराम ! मै सुनाने को उतावला ! उन्होंने  आगे जो कहा , वह इस प्रकार है--

" मै पिछले हप्ते  एक मॉल गाड़ी लेकर धर्मावरम से गूटी आ रहा था ! मेरी गाड़ी कई घंटो के लिए रामराजपल्ली रेलवे स्टेशन पर रोक दी गयी क्यों की गूटी जंक्शन के यार्ड में लाईन खाली नहीं थी ! दोपहर का समय , कड़ाके की धुप ,पानी ही सब कुछ !  हम लोग बिना खाने का पैकेट लिए ही  चल दिए थे , इस आस में की जल्द घर पहुँच जायेंगे ! पेट में चूहे कूद रहे थे ! खाने का सामान न मेरे पास था , न ही सहायक के पास  ! उसमे रामराज पल्ली में पानी तक नहीं मिलता है ! दोपहर हो चला था ! लोको के कैब में ही नमाज के लिए बैठ गया ! नमाज अदा करने के  समय ही मन में विचार आये --या अल्ला .गाड़ी को जल्दी लाईन क्लियर मिल जाये तो अच्छा हो ! भूख सता रही है ! 

 नमाज पढ़ , स्टेशन मास्टर के ऑफिस की तरफ चल दिया ! मास्टर मुझे देखते ही बोले --पायलट साहब खाना वगैरह हो गया या नहीं ? मैंने कहा - नहीं सर ! खाने के लिए कुछ नहीं है ! फिर क्या था , मास्टर जी अपने भोजन के कैरियर खोल मुझे खाने के लिए दे दिए ! मै  कुछ हिचकिचाया , मन ही मन सोंचा - आखिर सहायक को छोड़ कैसे खा लूं ! उन्होंने दूसरी कप को मुझे देते हुए कहा - ये अपने सहायक  को दे दें !

तब -तक देखा एक रेलवे  ठेकेदार जीप में अपने लेबर के लिए बहुत से खाने का पैकेट लेकर आया और  जबरदस्ती एक पैकेट हमें दे चला गया !

इतना ही नहीं -जब मै लोको के पास आया तो सहायक ने मुझे इत्तला दी की पावर कंट्रोलर गूटी से खाने का दो पैकेट ट्रेन संख्या -११०१३ एक्सप्रेस ( कुर्ला - बंगलुरु ) में भेंजे है ! ट्रेन आते ही उसे पिक अप करनी है ! "

शा जी  ..है न आश्चर्य की बात ! उस परवर दिगार ने एक नहीं , दो नहीं ,  तीन -तीन खाने की बन्दों बस्त कर दी ! मै तो वैसे ही धार्मिक विचार का व्यक्ति हूँ ! यह सुन आस्था और मजबूत हो गयी ! मैंने उनसे और जानकारी चाही , ताकि भालिभक्ति ब्लॉग पर पोस्ट कर सकूँ ! उन्होंने इससे इंकार कर दिया और बोले -नेकी कर दरिया में डाल ! मेरी ट्रेन  आने वाली थी अतः इजाजत ले बाहर आ गया !

जी हाँ इसी लिए मैंने भी  यहाँ उनके नाम को उजागर नहीं किया है ! वे हाजी है ! मै उन्हें संक्षेप में हाजी अली कह कर ही पुकार लेता हूँ ! वे मुझसे एक वर्ष बड़े ही है ! सब कुछ विश्वास और भावना के ऊपर निर्भर है ! ये तो सही है , जो पढ़ेगा और परीक्षा देगा , उसे ही सर्टिफिकेट मिलेगी ! अन्य तो बिन ...?...सुन !

बस इतना ही ....
मै तो   उसके  प्यार  में अँधा हूँ.,
क्यूँ की उसका एक नेक  बंदा हूँ  !

Wednesday, April 11, 2012

व्हाई दिस कोलावेरी दी ........

वर्ष १९७० में भारतीय रेलवे में कुल ९ ज़ोन और ५० मंडल थे ! लेकिन  आज  हमारे  पास कोंकण  रेलवे  से अलग १६ ज़ोन  और  ६८  मंडल  है !  इसका  सीधा अर्थ है   की  ७ अधिक  महाप्रबंधक  , सी.एम्.यी.,सी.यी.यी.,सी.यी.एन.,सी.पि.ओ., सी.एस.टी.यी.,सी.ओ.पि.,ऍफ़.ये.और सी.ये.ओ तथा  दुसरे  विभागाध्यक्ष बनाये  गए  है  ( अब  अधीक्षक  शब्द  भी  प्रबंधक  में  बदल  गया  है  )! अधिकतर  रेलवे जोनो में अतिरिक्त महाप्रबंधक तथा बिभागाध्यक्ष  भी मौजूद है ! इसी तरह १८ नए मंडलों में डी.आर.एम्, ये.डी.आर.एम्,सीनियर डी.एम्.यी.,सीनियर डी.यी.यी.,सीनियर डी.यी .एन.,सीनियर डी.ओ.एम्.,सीनियर डी.सी.एस.,सीनियर डी.एस.टी.यी.,सीनियर.डी.ऍफ़.एम्.,सीनियर डी.पि.ओ. तथा दुसरे मंडल विभागीय अध्यक्ष साथ में डी.एम्.यी.,डी.यी.यी.,डी.एम्.यी.विद्युत् ,डी.ओ.एम्.,डी.ऍफ़.एम्.,डी.एस.टी.यी.,डी.पि.ओ. और भी साथ में दुसरे सहायक अधिकारी ये.एम्.यी.,ये.यी.यी.,ये.यी.एन.,ये.ओ.एम्.,ये.सी.एस.,ये.एस.टी.यी.ये.ये.ओ.की नियुक्ति हुयी है !रेलवे ट्रैक किलो मीटर ना के बराबर बढ़ा है , जो इन बढे हुए पदों को  जायज ठहरा सके !

मंडल अधीक्षक शव्द अब मंडल रेल प्रबंधक में बदल गया है ! जिसकी ग्रेड पे  विभागीय अध्यक्ष के बराबर हो गयी है और सभी मंडलों के बिभागीय मुखिया अब मंडल अधीक्षक की ग्रेड पे पर पहुँच गए है  !

यहाँ यह ध्यान देना भी अतिआवश्यक होगा की ७ नए जोनो तथा १८ नए मंडलों के लिए रेलवे को नयी बिल्डिंगे बनानी पड़ी !अधिकारियो और स्टाफ के नए मकान तथा बिभागो के लिए नए दफ्तर बनाने पड़े है ! जिसमे रेलवे की एक बड़ी पूंजी बर्बाद हुयी ! इस ग्रुप में आज तक एक  अधिकारी का भी पद सरेंडर नहीं हुआ है ! साथ ही प्रति एक मंडल में पर्यवेक्षक स्टाफ भी पूरा भरा हुआ है , जो बिना किसी खास कार्य के बड़ा वेतन  पा   रहा है !

इन उपरोक्त विषयो पर रेलवे को कभी अर्थ व्यवस्था की याद नहीं आई ! कितनी बड़ी  पूंजी रेलवे की बर्बाद हुयी , इसके ऊपर रेलवे ने कभी विचार तक नहीं किया ! लेकिन जब लोको रंनिंग स्टाफ की जायज मांगो के ऊपर विचार करने का समय आया तब रेलवे की निति पूरी तरह बदल गयी तथा अर्थव्यवस्था का ठीकरा कर्मचारियों की मांगो के ऊपर फोड़ा जा रहा है ! प्रति वर्ष नयी रेल गाड़िया बढ़ रही है , बहुत साडी रेल गाडियों का रन स्पान बढाया जा रहा है फिर भी इन गाडियों को चलने के लिए लोको पायलट और सहायक लोको पायलटो की संख्या में बढ़ोतरी नहीं की जा रही है !


उपलब्ध स्टाफ का कार्यभार बढाया जा रहा है ! यह रेलवे की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है ! सुरक्षा श्रेणियों में तुरंत स्टाफ को बढाया जाना चाहिए तथा पहले से खाली पड़े पदों को भरा जाना चाहिए !

लोको रंनिंग स्टाफ के ऊपर अमानवीय कृ लिंक थोपा जा रहा है !
उनमे अत्यधिक घंटे १०+२+१ =१३ घंटे को न्यूनतम मनाकर कार्य लिया जा रहा है !
लगातार ६ नाईट ड्यूटी करायी जा रही है !
साप्ताहिक / आवधिक विश्राम भी नहीं दिया जा रहा है !
नियमो का गलत अर्थ निकल कर १० घंटे तथा १४ घंटे के बाद कॉल दिया जा रहा है
तीन - चार दिन तक मुख्यालय से बाहर रखा जा रहा है !
दयनीय गर्मी तथा सर्दियों में रंनिंग रूमों के विपरीत रेस्ट हाउसों में विश्राम के लिए बाध्य किया जा रहा है !
खाना खाने तथा प्राकृतिक कॉल के लिए भी समय नहीं दिया जा रहा है
यदि संक्षेप में कहें तो लोको रंनिंग स्टाफ के साथ जानवरों तथा मशीनों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है !

नए रेल मंत्री ने पटरी से उतरी रेलवे को पटरी के ऊपर लाने  के लिए भारत सरकार से १०.००० हजार करोड़ रुपये मांगे ! रेलवे को पटरी से उतारने का बड़ा कार्य  पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया !जिसको लोग मैनेजमेंट गुरु  कहने लगे ! यहाँ इस विषय पर गौर करना भी अतिआवश्यक होगा की पिछले ८ सालो से रेलवे ने किराये के दामो में जरा भी वृद्धि नहीं की जबकि सारी वस्तुओ के दाम  ३-४ गुना तक बढे है !

छठा वेतन आयोग आने से कर्मचारियों और पेंशनभोगियो का वेतन भी बढ़ा  है ! उदहारण के लिए  ---पलक्कड़  से बंगलुरु तक का एक्सप्रेस ट्रेन का किराया १०४ रुपये है , स्लीपर श्रेणी का १७९ तथा वातानुकूलित चेयरकार का ३९० रुपये है ! वही पलक्कड़ से बंगलुरु का बस का किराया ५०० रुपये है ! पैसेंजर गाडियों का किराया तो न के बराबर है !

रेलवे को इतने सस्ते में यात्रियों को क्यों ढोना चाहिए ?  आखिर क्यों ?
इसके लिए लोको रंनिंग स्टाफ अकेले बलि का बकरा बन रहे है  !

वास्तव में रेलवे की ऐसी हालत गलत फैसलों , मिस मैनेजमेंट , भ्रष्टाचार , सस्ती वाहवाही तथा घिनौनी राजनीती के कारण  हुयी है !

Why this kolaveri DAI........ 

( सौजन्य - फायर मैगजीन /बंगलुरु /फरवरी अंक /लेखक -वि.के.श्रीकुमार ,भूतपूर्व क्षेत्रीय  सचिव /ailrsa  /दक्षिण रेलवे / अंग्रेजी में )

Friday, February 3, 2012

पत्नी व्रती और ससुर जी

इस फ्लैश समाचार को देख न चौकें ! इसे देख कुछ यादे ताजी हो गयी ! जो प्रस्तुत कर रहा हूँ ! यह हमारे लोब्बी में टंगा हुआ नोटिश बोर्ड है ! इस पर वही लिखा जाता है , जो अति जरुरी होता है ! इस तरह से प्रमुख घटनाओ की जानकारी , हमें यानि लोको पायलटो को मिलती रहती है ! आज  ( २५-०१.२०१२ ) जब मैंने लोब्बी में प्रवेश किया तो इस सूचना को देखा ! इसे आप भी आसानी से पढ़ सकते है ! " मुख्यतः इस बात पर जोर दिया गया है की जब किसी लोको पायलट के ट्रेन के निचे कोई व्यक्ति आकर आत्म  हत्या या दुर्घटना ग्रष्ट होता है ,तो लोको पायलटो को  इसकी  समुचित जानकारी जी.आर.पि /आर.पि.ऍफ़ को तुरंत  देनी चाहिए ! अन्यथा शिकार व्यक्ति के परिवार / रिश्तेदार टिकट लाश के ऊपर रख कर मुआवजा की मांग करेंगे !"  यह भी एक अजीब सी बात है ! सही है होता होगा !


 अब देखिये ना - हम लोको पायलटो को भी अजीब दौर से गुजरना पड़ता है ! बहुतो को कटी हुई लाश देख चक्कर आने लगते है ! बहुत तो देख भी नहीं सकते ! चलती ट्रेन के सामने लोगो का आत्म हत्या वश आ जाना -आज कल जैसे यह स्वाभाविक सा हो गया है ! घर में , परिवार में , पढाई में या यो कहें और कुछ कारण ...बात ..बात में ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे देना ...कहाँ की बहादुरी है ! जीवन   जीने की एक कला है ! इसे जीना चाहिए और इसकी खुबसूरत  रंगों को इस दुनिया में बिखेरते रहना चाहिए ! अगर दूसरो को कुछ न दें सके तो खैर कोई और बात है .. कम से कम ..अपने लिए तो जीना सीखें ! 

 कुछ सत्य घटनाये प्रस्तुत है -
भाव वश  इस तरह के निर्णय कायरपन है ! एक बार की वाकया याद आ गया ! उस समय दोपहर  के वक्त  थे ! मै उस समय मालगाड़ी का लोको पायलट था ! तारीख याद नहीं ! किन्तु कृष्नापुरम और कडपा के मध्य की घटना है ! मै केवल लोको लेकर कडपा को जा रहा था ! रास्ते में एक नहर पड़ती है ! नहर के उस पार एक गाँव है !  अचानक देखा की , गाँव के बाहर एक बुजुर्ग दम्पति  दोनों लाईन के ऊपर आकर सो गए !मंशा साफ है .. कहने की जरुरत नहीं ! चुकी केवल लोको लेकर जा रहा था , इसलिए तुरंत रोकने में परेशानी नहीं हुई ! लोको रुक गया ! हम देखते रह गए , पर वे दोनों नहीं उठे ! मैंने अपने सहायक को कहा की जाकर उन्हें उठाये और समझाये , जिससे वे दोनों इस भयंकर कृति से मुक्त हो जाएँ ! सहायक गया , समझाया ,पर वे उठने के नाम नहीं ले रहे थे ! मुझसे भी देखा न गया ! मैंने अपने लोको को सुरक्षित कर उनके पास गया ! हम दोनों उन्हें पकड़ कर दोनों लाईन से बाहर कर दिए ! उनके हिम्मत को परखने के लिए - मैंने कहा की आप लोग पहले यह सुनिश्चित करे की पहले कौन मरना चाह रह है और वह आकर लाईन पर सो जाये ..मै लोको चला दूंगा ! यह सुन उनके चेहरे उड़ गए और गाँव की तरफ चले  गए ! इस घटना के पीछे कौन से कारण होंगे ? सोंचने वाली बात है ! बच्चो से तकरार / बहु बेटियों से तकरार  / कर्ज - गुलाम /सामाजिक उलाहना ..वगैरह - वगैरह ! जिस माँ - बाप ने बचपन से अंगुली पकड़ कर ..जवानी की देहली पर पहुँचाया , उसे बुढ़ापे में इस तरह की तिरस्कार का कोप भजन क्यों बनना पड़ता है ? क्या बच्चे माँ - बाप के बोझ को नहीं ढो सकते !

दूसरी घटना - 
तारीख -२३ अगस्त २००८ की बात है ! सिकंदराबाद  से गुंतकल , गरीब रथ एक्सप्रेस ले कर आ रह था ! मेरे सहायक का नाम  श्री के.एन.एम्.राव था ! गार्ड श्री एस.मोहन दास ! शंकरापल्ली स्टेशन के लूप लाईन से पास हो रहे थे ! थोड़ी दूर बाद लेवल क्रोसिंग गेट है ! इस गेट पर  ट्राफिक काफी है !समय रात के करीब  आठ बजते होंगे ! मैंने ट्रेन की हेड लाईट में देखा की एक व्यक्ति अचानक दौड़ते हुए लाईन पर आकर सो गया है ! उसके सिर  लाईन पर और धड ट्रक के बाहर !मैंने तुरंत ट्रेन के आपात  ब्रेक लगायी ! ट्रेन रुक गयी और वह बच गया ! जैसा होना चाहिए - सहायक को जा कर देखने और उसे उठाने के लिए कहा ! चुकी गेट नजदीक था अतः गेट मैन भी सजग हो गया और दौड़ते हुए घटना स्थल पर आ गया ! मैंने घटने की पूरी जानकारी स्टेशन मैनेजर को भी वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! गेट मैन  और मेरे सहायक के काफी समझाने के बाद वह व्यक्ति उठ कर जाने लगा ! मैंने गेट मैन को कहा की सावधानी से उसे ले जाये और समझाये !  मेरा सहायक ने जो सूचना मुझे दी वह इस प्रकार है ! उसके आत्महत्या के कारण --उसके ससुर जी थे ! वह अपने ससुराल में आया था ! वह पत्नी को लिवा जाना चाहता था ! पर हठी ससुर के आगे उसकी न चली ! 

यह भी एक गजब ! अब तक सास के अत्याचार सुने थे , पर ससुर के नहीं ! ससुर के अत्याचार से पीड़ित , उसने यह निर्णय ले लिया था ! वैसे  पत्नी से प्यार करता था ! उसने अपने ससुर जी से कहा की अगर आप बिदाई नहीं करोगे , तो ट्रेन के निचे सर रख दूंगा ! ससुर ने कहा जा रख दें ! इसी का यह परिणाम ! यह घटना भी एक मिसाल - पत्निव्रता और ससुर जी का !

आये ज्योति  जलाये , पर किसी की  बत्ती न बुझायें ! जीवन अनमोल है ! इसकी संरक्षा और सुरक्षा पर ध्यान दें !लोको पायलट की  हैसियत से यह जरुर कहूँगा की जब भी मैंने किसी की जान बचायी है , तब एक अजीब सी  ख़ुशी महसूस हुई है ! जिसे शब्दों में पिरोना मेरे वश में नहीं ! सबका मालिक एक !

तिरुपति के तिरचानूर --पद्मावती मंदिर के समक्ष ली गयी हम दोनों की तश्वीर -दिनांक  २७-०१-२०१२ 

Tuesday, January 17, 2012

आधी रात और हप्ता


आज आधी रात दौड़ जंक्सन ,  . में लगभग 30-50 रुन्निंग  स्टाफ (लोको पायलटों) ने ( १६/१७-०१-२०१२ , सोलापुर डिवीजन के अंतर्गत). ट्रेनों की आवाजाही .. लगभग २ से ३ घंटे तक . बंद कर दिया (नांदेड़ एक्सप्रेस , राजकोट एक्सप्रेस  आदि) , सभी ने ऐसा अपने क्षेत्र के गुंडा गर्दी के बिरोध में किया ! श्री सुशील कुमार / ALP  से पैसे के लिए स्थानीय  गुंडे हप्ता मांग रहे थे ! इसका बिरोध करने पर उनकी बुरी तरह से पिटाई उन गुंडों ने की ! वह अब अस्पताल में है ! डीआरएम / ए.डी.आर.एम्.के  हस्तक्षेप , और ADME / इंस्पेक्टर रेलवे सुरक्षा बल / जीआरपी- इंस्पेक्टर /स्टेशन मैनेजर -  दौड़ के द्वारा ,   लेखन में संयुक्त रूप से आश्वासन देने के बाद , गाडियों की आवाजाही शुरू हुई !,

लाल सलाम दौड़ डिपो के सभी रुन्निंग कर्मचारियों को .!
(मध्य रेलवे के शोलापुर मंडल )

(एक 10 साल के बच्चे ने रोक दिया बड़ा रेल हादसा- इसे पढ़ने के लिए  ' न्यूज़ '  में जाएँ )!

Friday, December 16, 2011

लोको पायलटो की अजब कहानी !




                          रेलवे में ज्वाईन करने के अदभुत कारण                  ( रुन्निंग स्टाफ बनने के परिणाम /  लोको पायलट )


   १) मुझे मम्मी - पापा का साथ अच्छा नहीं लगता !
    २) मुझे रविवार और त्यौहार के दिन से सख्त नफ़रत है !
    ३)मुझे दोस्तों से मिलना - जुलना पसंद नहीं !
    ४)अपनी जीवन को बचपन में ही जी लिया हूँ !


                                          ५)पांच - छः घंटे सोना गन्दी बात होती है !
                                           ६)बीबी बच्चे अपने आप पल जायेंगे !


     ७)जीवन में चिंता/टेंसन  न हो तो जीने की क्या मजा ?
     ८)समय पर खान - पान महा पाप है !


                                          ९)गिफ्ट में चार्ज सिट लेना अच्छा लगता है !
         हा   हा ...हा...हा...हा...हां...



Wednesday, December 7, 2011

पटरी पर दौड़ती हैं सांसें

                                              तिरुपति रेलवे स्टेसन का बाहरी दृश्य 

किसी भी ट्रेन में सफ़र करते वक्त मुशाफिर की चिंता  होती है सिर्फ अपनी सीट की और अपने गंतव्य की ! मगर उस  ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा भी सफ़र करता है , जिसे सारे मुशाफिरो की फिक्र होती है !ये व्यक्ति इंजन / ट्रेन का लोको पायलट ( ड्राईवर )होता है ! देखने सुनने में लगता है की इसका काम बहुत आसान है  की इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी अपने - आप पटरियों पर दौड़ने लगती है ,  हजारो जानो  को सही - सलामत उनके अपनो तक पहुँचाने का काम किसी इबादत से कम नहीं है ! रेल इंजन का ड्राईवर / लोको पायलट होना यानि पहियों के साथ अपनी सांसों को भी पटरियों  पर दौड़ना ,  वक्त की पावंदी और न ठहरने का तय मुकाम ....बस चलते जाना ! यही लोको पायलट / ड्राईवर की पूरी जिंदगी का असली सार है !


                                 बड़ा मुश्किल है --  

रमाशंकर तिवारी ( लोको पायलट ) के अनुसार --" अब काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है ! रेस्ट के  घंटो में भी  वर्किंग से उब गए है ! अफसर है की समझने को तैयार नहीं और हमारे साथ लगातार ज्यादातिया हो रही है !"

( भास्कर  )

Tuesday, November 29, 2011

ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

 ब्लॉग जगत एक समुद्र है ! इसमे तैरने के बाद , जो मिला वो विस्मित कर देता है ! आप भी पढ़े महेंद्र श्रीवास्तव जी का  " आधा सच "

 http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

Thursday, 14 July 2011


ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

मित्रों  

आज बात तो रेल हादसे पर करने आया था, लेकिन मुंबई ब्लास्ट का जिक्र ना करुं तो लगेगा कि मैने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। मुंबई में तीन जगह ब्लास्ट में अभी तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन कई लोग गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ब्लास्ट दुखद है, हम सभी की संवेदना उन परिवारों के साथ है, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है। लेकिन ब्लास्ट के बाद सरकार के रवैये पर बहुत गुस्सा आ रहा है।

बताइये किसी देश का  गृहमंत्री यह कह कर सरकार का बचाव करे कि 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। इसे अपनी उपलब्धि बता रहा है। इससे ज्यादा तो शर्मनाक कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का है। वो कहते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। ऐसे बयानों से तो इनके लिए गाली ही निकलती है, लेकिन ब्लाग की मर्यादा में बंधा हुआ हूं। फिर इतना जरूर ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि आगे जब भी ब्लास्ट हो, उसमें मरने वालों में मंत्री का भी एक बच्चा जरूर हो। इससे कम  से कम ये नेता संवेदनशील तो होंगे। चलिए अब मैं आता हूं अपने मूल विषय रेल दुर्घटना पर...


 बीता रविवार मनहूस बनकर आया। मेरे आफिस और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, लिहाजा घर में आमतौर पर सुबह से शुरू हो जाने वाली भागदौड़ नहीं थी। आराम से हम सब ने लगभग 11 बजे सुबह का नाश्ता किया और लंच में क्या हो, ये बातें चल रही थीं। इस बीच आफिस के एक फोन ने मन खराब कर दिया। चूंकि आफिस में मैं रेल महकमें जानकार माना जाता हूं, लिहाजा मुझे बताया गया कि यूपी में फतेहपुर के पास मालवा स्टेशन पर हावडा़ कालका मेल ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। मुझे इतना भी समय नहीं दिया गया कि मैं दुर्घटना के बारे में आगे कोई जानकारी कर सकूं और मेरा फोन सीधे एंकर के साथ जोड़ दिया गया। 

चूंकि कई साल से मैं रेल महकमें को कवर करता रहा हूं और कई तरह की दुर्घटनाओं से मेरा सामना हो चुका है, लिहाजा सामान्य ज्ञान के आधार पर मैं लगभग आधे घंटे तक दुर्घटना की बारीकियों यानि ऐसे कौन कौन सी वजहें हो सकती हैं, जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, ये जानकारी देता रहा। बहरहाल मैने आफिस को बताया कि थोड़ी देर मुझे खाली करें तो मैं इस दुर्घटना के बारे में और जानकारी करूं। आफिस में हलचल मची हुई थी, कहा गया सिर्फ पांच मिनट में पता करें, आपको दुबारा फोन लाइन पर लेना होगा।

बहरहाल मैने रेल अफसरों को फोन घुमाना शुरू किया। अब इस बात पर जरूर गौर कीजिए.. पहले तो दिल्ली और इलाहाबाद के कई अफसरों ने  फोन ही नहीं उठाया, क्योंकि छुट्टी के दिन रेल अफसर फोन नहीं उठाते  हैं। इसके अलावा सात आठ अधिकारियों को रेल एक्सीडेंट के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने उल्टे  मुझसे पूछा कि क्या यात्री ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई है या मालगाड़ी। अब आप समझ सकते हैं कि देश में रेल अफसर ट्रेन संचालन को लेकर कितने गंभीर हैं। 

खैर बाद में रेलवे के एक दूसरे अफसर से बात हुई। मोबाइल उन्होंने आंन किया, लेकिन वो रेलवे के फोन पर किसी और से बात कर रहे थे, इस दौरान मैने इतना भर सुना कि सेना को अलर्ट पर रखना चाहिए, क्योंकि उनके आने से क्षतिग्रस्त बोगी में फंसे यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने में आसानी होगी। ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए,  क्योंकि ये साफ हो गया कि एक्सीडेंट छोटा मोटा नहीं है। बहरहाल इस अधिकारी ने इतना तो जरूर कहा कि महेन्द्र जी बडा एक्सीडेंट है, लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता, कोशिश है कि पहले कानपुर और इलाहाबाद की एआरटी (एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन) जल्द घटनास्थल पर पहुंच जाए। 

अफसर का फोन काटते ही मैने आफिस को फोन घुमाया और बताया कि दुर्घटना बड़ी है, क्योंकि सेना को अलर्ट किया गया है। बस इतना सुनते ही आफिस ने फिर ब्रेकिंग न्यूज चला दी और मेरा फोन एंकर से जोड़ दिया गया। इस ब्रेकिंग को लेकर मैं काफी देर तक एंकर के साथ जुडा रहा और ये बताने की कोशिश की किन हालातों में सेना को बुलाया जाता है। चूंकि रेल मंत्रालय सेना को बुला रहा है इसका मतलब है कि कुछ बड़ी और बुरी खबर आने वाली है। खैर कुछ देर बाद ही बुरी खबर आनी शुरू हो गई और मरने वाले यात्रियों की संख्या तीन से शुरू होकर आज 69 तक पहुंच चुकी है। 

ट्रेन हादसे की वजह

ट्रेन हादसे की वजह को आप ध्यान से समझें तो आपको पत्रकारों के पागलपन को समझने में आसानी होगी। हादसे की तीन मुख्य वजह है। पहला रेलवे के ट्रैक प्वाइंट में गड़बड़ी। ट्रैक प्वाइंट उसे कहते हैं जहां दो लाइनें मिलतीं हैं। कई बार ये लाइनें ठीक से नहीं जुड़ पाती हैं और सिगनल ग्रीन हो जाता है। इस दुर्घटना में इसकी आशंका सबसे ज्यादा जताई जा रही है। दूसरा रेल फ्रैक्चर । जी हां कई बार रेल की पटरी किसी जगह से टूटनी शुरू होती है और ट्रेनों की आवाजाही से ये टूटते टूटते इस हालात में पहुंच जाती है कि इस तरह की दुर्घटना हो जाती है। इसके लिए गैंगमैन लगातार ट्रैक की पेट्रोलिंग करते हैं, पटरी टूटने पर वो इसकी जानकारी रेल अफसरों को देते हैं और जब तक पटरी ठीक नहीं होती, तब तक ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही बंद रहती है। तीसरी वजह कई बार इंजन के पहिए में  दिक्कत हो जाती है इससे भी ऐसी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। 

ट्रेन के ड्राईवर ने अफसरों को बताया है कि वो पूरे स्पीड से जा रहा था, अचानक इंजन के नीचे गडगड़ाहट हुई, और इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता ट्रेन दुर्घटना हो चुकी थी। बताया जा रहा है कि ट्रैक प्वाइंट आपस में ठीक तरह से नहीं जुड पाया और तकनीकि खामी के चलते सिग्नल ग्रीन हो गया। कालका मेल अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर बढ रही थी,  एक झटके में वो पटरी से उतर गई और उसके कई डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ गए। 
दुर्घटना सहायता ट्रेन
हां दुर्घटना के बाद राहत का काम कैसे चला इसकी बात जरूर की जानी चाहिए। मित्रों ट्रेनों का संचालन मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रुम से किया जाता है। जैसे ही कोई ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, उसके आसपास के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सायरन बजाए जाते हैं, जिससे रेल अफसर, डाक्टर और कर्मचारी बिना देरी किए एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन (एआरटी) में पहुंच जाते हैं। इस एआरटी में एक उच्च श्रेणी का मेडिकल वैन भी होता है, जिसमें घायल यात्रियों को भर्ती करने का भी इंतजाम होता है। सूचना मिलने के बाद 15 मिनट के भीतर कानपुर और इलाहाबाद से एआरटी को घटनास्थल के लिए रवाना हो जाना चाहिए था और 45 मिनट से एक घंटे के भीतर इसे मौके पर होना चाहिए था। लेकिन रेलवे के निकम्मेपन की वजह से ये ट्रेन चार घंटे देरी से घटनास्थल पर पहुंची। सच ये है कि अगर रिलीफ ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो मरने वालों की संख्या कुछ कम हो सकती थी। 
पत्रकारों का पागलपन
जी हां अब बात करते हैं पत्रकारों के पागलपन की या ये कह लें उनकी अज्ञानता की। रेलवे के अधिकारी अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए अक्सर कोई भी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी ड्राईवर पर डाल देते हैं। जैसे एक ट्रेन दूसरे से टकरा गई तो कहा जाता है कि ड्राईवर ने सिगनल की अनदेखी की, जिससे ये दुर्घटना हुई। रात में कोई ट्रेन हादसा हो गया तो कहा जाता है कि ड्राईवर सो गया था, इसलिए ये हादसा हुआ। मित्रों आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए, अगर कोई एक्सीडेंट होता है तो सबसे पहले ड्राईवर की जान को खतरा रहता है, क्योंकि सबसे आगे तो वही होता है। लेकिन निकम्मे अफसर ड्राईवर की गल्ती इसलिए बता देते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में ड्राईवर की मौत हो जाती है, उसके बाद जांच का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता। 

ऐसी ही साजिश इस दुर्घटना में भी की गई। कहा गया कि ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, इसकी वजह से दुर्घटना हुई। अब इनसे कौन पूछे कि अगर इमरजेंसी ब्रेक इतना ही खतरनाक है तो इसका प्रावीजन इंजन में क्यों किया गया है। इसे तो हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन नहीं, पागलपन की इंतहा देखिए, पत्रकारों ने घटनास्थल से चीखना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई और ये क्रम दूसरे दिन भी जारी रहा। 

हकीकत ये है दोस्तों को अफसरों को लगा कि इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है ड्राईवर की मौत हो गई होगी, लिहाजा उस पर ही जिम्मेदारी डाल दी जाए। लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन तब तक पत्रकारों ने माहौल तो खराब कर ही दिया था। 
  

25 comments:

संध्या शर्मा said...
ट्रेन हादसा तो हो ही गया और ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. जो बातें सामने आती हैं उसे पत्रकारों का पागलपन कहें या अज्ञानता या फिर रेलवे के अधिकारियों का निकम्मापन लोग तो मारे जाते हैं और सारे सफाई देते रह जाते हैं, क्या ये दुर्घटनायें रोकी नहीं जा सकती... सार्थक विचार...
अरुण चन्द्र रॉय said...
महेंद्र जी जब हम पढ़ रहे थे पत्रकार बनना एक सपना हुआ करता है... समर्पित हुआ करते थे लोग सपने के लिए.. भाषा और विषय पर पकड़ हुआ करती थी... अब तो विषय और भाषा पर पकड़ ही नहीं है... बस चीखना चिल्लाना है.. कई मेरे स्ट्रिंगर मित्र मुझ से स्क्रिप्ट लिखवाते हैं फिर फ़ोनों करते हैं.... क्या पत्रकार मित्र इसको समझेंगे कि बिना तैयारी के रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए...
mahendra srivastava said...
अरुण जी, आप तो स्ट्रिंगर की बात कर रहे हैं, मैन जो उल्लेख किया है, वो दिल्ली और लखनऊ के पत्रकारों का हाल है। विषय की जानकारी के बगैर कुछ भी आंय बांय शांय बोलते रहते हैं।
Suman said...
इस हादसे को टी वी पर देखकर बड़ा दुःख हुआ ! बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार आपका !
मनोज कुमार said...
आपकी रिपोर्टिंग ग़ज़ब की है। घटना की तह में जाकर आपने कई ऐसी जानकारी दी है जो हमारे लिए नई थी। चाहे वह आपके पत्रकार बिरादरी की ही बात क्यों न हो। ऐसी निष्पक्ष रिपोर्टिंग कम ही देखने को मिलती है।
Kailash C Sharma said...
आज कल घटना की तह में न जाकर केवल sensational reporting करना टी वी चंनेल्स में आम बात होती जा रही है. आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग का जो रूप प्रस्तुत किया है वह काबिले तारीफ़ है..आभार
रविकर said...
धीरज रखें || हमेशा ऐसा नहीं होगा || हम जरुर सुधरेंगे || हर-हर बम-बम बम-बम धम-धम | थम-थम, गम-गम, हम-हम, नम-नम| शठ-शम शठ-शम व्यर्थम - व्यर्थम | दम-ख़म, बम-बम, तम-कम, हर-दम | समदन सम-सम, समरथ सब हम | समदन = युद्ध अनरथ कर कम चट-पट भर दम | भकभक जल यम मरदन मरहम || राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
रविकर said...
पकडे गए इन दुश्मनों ने, भोज सालों है किया | मारे गए उन दुश्मनों की लाश को इज्जत दिया || लाश को ताबूत में रख पाक को भेजा किये | पर शिकायत यह नहीं कि आप कुछ बेजा किये --- राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || रेल के घायल कराहें, कर्मियों की नजर मैली | जेब कितनों की कटी, लुट गए असबाब-थैली | तृन-मूली रेलमंत्री यात्री सब घास-मूली संग में जाकर बॉस के कर रहे थे अलग रैली | राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || नक्सली हमले में उड़ते वाहनों संग पुलिसकर्मी | कूड़ा गाडी में ढोवाये, व्यवस्था है या बेशर्मी | दोस्तों संग दुश्मनी तो दुश्मनों से बड़ी नरमी || राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही ||
Rajesh Kumari said...
Mahendra ji aapka bahut bahut dhanyavaad aapne baat ki tah tak panhuch kar ye jaankari di hai.isi tarah agar sabhi apni jimmedari sahi dhang se nibhayen to ye haadse hi na ho.aur humaare desh ki security kitni majboot hai yeh to main haal me hi dekh chuki hoon.
रविकर said...
ड्राइवर को दोषी बता, बचा रहे थे जान, जान नहीं पाए उधर, जिन्दा है इंसान | जिन्दा है इंसान, थोपते जिम्मेदारी, आलोचक की देख, बड़ी भारी मक्कारी | कह रविकर समझाय, निकाले मीन-मेख सब- मुंह मोड़े चुपचाप, मिले उनको जिम्मा जब ||
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
सही कहा आपने। पत्रकार कब किस चीज को किस रूप में प्रस्‍तुत कर दें, कहा नहीं जा सकता। ------ जीवन का सूत्र... लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?
ZEAL said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा ! लोग अपनी गलतियों की जिम्मेदारी दुसरे पर आसानी डाल देते हैं ! ड्राईवर की कोई गलती न होते हुए भी इल्जाम मढ़ा जा रहा था ! पूरे प्रकरण में राहुल गांधी का बयान बेहद भद्दा , बचकाना और गैरजिम्मेदाराना है. शर्मनाक !
रेखा said...
आपने बहुत सारी जानकारी दी है जो हमें पता ही नहीं थी ......इन नेताओं के बयानों को सुनकर कभी -कभी खुद को ही शर्म आने लगाती है
Babli said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा जिसमें मासूम लोगों की जान चली गयी! बहुत दुःख हुआ देखकर! आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
inqlaab.com said...
:)
Maheshwari kaneri said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा...बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा ।नेताओं के बयानों को सुनकर शर्म आती है...
निर्मला कपिला said...
दर्दनाक हादसे का कडवा सच जान कर दुख हुया। पता नही हमारा मीडिया कब सुधरेगा। आभार।
Vivek Jain said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay said...
बहुत अच्छा लिखा है .जैसा दिखाया जाता है समाचारों में वो आधा सच ही होता है .लेकिन आपको पढ़कर बहुत कुछ साफ-साफ समझ में आता है..
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
शालिनी पाण्डेय जी - जागरण जंक्शन में बहुत कम मिलते हैं हम ...?? अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५ लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती।
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
प्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी क्षमा करियेगा ऊपर की टिपण्णी हटा दीजियेगा कुछ भूल .. अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी सादर वंदेमातरम् ! ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन आपकी ऊर्जावान लेखनी से निकले अन्य आलेखों की तरह ही प्रभावशाली है । अपराध की हद तक ग़ैरज़िम्मेवाराना हरक़तें करते टुक्कड़खोर पत्रकार जो कह-लिख-कर जाए वो कम … … … और… मुंबई ब्लास्ट की ताज़ा घटना हर सच्चे भारतीय को आहत कर रही है , वहीं इस नपुंसक-नाकारा सरकार की बेशर्मी आग में घी का काम कर रही है … - ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। - 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। उत्तरदायित्वों को निभाने में सर्वथा असफल रहने के बावजूद भी ऐसे कायरतापूर्ण और बेशर्मी भरे बयान देने वाले नेताओं को चुल्लू पानी में डूब मरना चाहिए … आतंक और आतंकियों के संबंध में मैंने लिखा है - अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ ! नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !! दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार ! फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !! मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम ! ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !! इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार ! वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !! शस्वरंपर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है … हमेशा ही आवश्यक विषयों पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आपका आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं ! -राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनीता शानू said...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
Rachana said...
mahendra ji aapne to aankhen hi hol din itni gahri baat batai ab kya kahun desh bhi apna aye yahan ke log bhi .bahut dukhta hai dil aap ka abhar rachana
वर्ज्य नारी स्वर said...
सही और सार्थक आलेख