Friday, January 22, 2016

कभी सोचा है आपने ।

आज का दिन और इस आक्रोश को शायद ही कोई भूल पायेगा । किसी ने नहीं सोच था कि रनिंग स्टाफ का परिवार मंडल रेल प्रबंधक को इस तरह बंधक बना लेगा । छोटे छोटे बच्चे और रंग विरंगी परिधान में सजी उनकी पत्निया चारो तरफ से मंडल रेल प्रबंधक को अपने घेरे में ले रखी थी । बच्चे पास में पड़े सोफे पर कूदने लगे थे । सभी का चेहरा  गुस्से से लाल । मंडल रेल प्रबंधक की हालत देखते बनती थी । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । हम सभी लोको चालक उन महिलाओ के चारो तरफ खड़े थे । सभी महिलाये कुछ न कुछ कहना चाह रही थी । शोर इतना बढ़ गया कि कुछ भी आवाज समझ से बाहर थी । डी आर एम् को सभी से प्रार्थना करना पड़ा कि कोई एक महिला आगे बढिए और सभी के तरफ से अपनी मांग मुझे बताये या कोई ज्ञापन हो तो दीजिये । सभी की आवाज एक साथ सुनना संभव नहीं है । 

हमें मालूम था ऐसा ही होगा अतः हमारे यूनियन के सचिव की पत्नी ही आगे बढ़ी और अपनी मांग डी आर एम् साहब के सामने परत दर परत खोलने लगीं । सुबह से लेकर पति के घर लौटने तक की अथक और अनगिनत  कहानी  सुन डी आर एम् साहब भी स्तंभित रह गए । वैसे सभी अफसरों को मालूम है कि लोको पायलटो की पत्निया एक अभूतपूर्व त्याग करती है । जिनके मूक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । करीब दो घंटे तक सभी महिलाये ऑफिस के अंदर डटी रही  और डी आर एम् साहब ने सभी की बातें ध्यान से सुनी । सभी महिलाये टस से मस नहीं हुई आखिर में  डी आर एम् को ये आश्वाशन  देना पड़ा कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी मांगो को निपटाएंगे ।जो उनके अधिकार क्षेत्र में होगा ।

जी हाँ , कभी सोचा है आपने कि लोको पायलटों की पत्निया कैसी जिंदगी जीती है । एक जमाना था की लोग ड्राइवर को अपनी बेटी देना ( शादी का बंधन ) पसंद नहीं करते थे । फिर भी पुत्री अपने को परिवेश में बदल लेगी के कायल हो समाज की अवधारणा बदलती गई । कौन पिता होगा जो अपने पुत्री को सुखी नहीं देखना चाहता ? सब कुछ ताक पर रख शादिया होती ही है । हर दुलहन शादी के पहले अपने एक सपनो की दुनिया बुन ही लेती है । नए संसार में प्रवेश के पहले दिल का धड़कन बढना वाजिब  है । ये करेंगे वो करेंगे । पति के साथ ज्यादा समय दूंगी । पति को अपने अंगुली पर नाचाऊंगी ।जब मन करे पिक्चर  जाउंगी । खाली वक्त सखियो  को बताउंगी कि शादी सुदा जीवन कैसे गुजर रहा है । वगैरह वगैरह । लेकिन कौन जानता था ये सिर्फ स्वप्न ही है क्योंकि उसकी शादी एक लोको चालक के साथ होने वाली है । जो कब घर में रहेगा और कब आएगा - भगवान को भी नहीं मालूम । मोनिका के साथ ऐसा ही तो हुआ था । जब वह शादी के बाद पहली बार ससुराल गयी थी । चार माह तक लगातार पति के साथ रही और ऊब गयी थी । मैके आते ही माँ के गोद में सिर रख रो दी थी । यहाँ तक की वह दुबारा जाने से इंकार कर दी । माँ को सब कुछ जानते हुए भी  सहज लहजे में सिर्फ इतना ही कहते बना - बेटी सब नसीब का खेल है । भगवान सभी की जोड़ा बना कर भेजते है । शायद तुम्हारे नसीब में यही था । मोनिका माँ की बातो को इंकार न कर सकी । बस रोते रही थी । 

हम यहाँ किसे दोष दे ? रेलवे प्रशासन को या उस लोको चालक को जो कोल्हू की तरह पिसता रहता है । खुद को रेल सेवा में समर्पित । लोको चालक दुधारी तलवार पर लटकता रहता है । उसकी पूरी जिंदगी रेलवे प्रशासन द्वारा गन्ने की जूस की तरह चूस ली जाती है । गन्ने रूपी लोको चालक को सुरक्षित और सींचने का कार्य उसकी पत्नी करती है । लोको पायलटो की पत्नियो के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । रात हो या दिन समय पर भोजन तैयार करना । पति को मंगल कामनाओ के साथ भोजन का कैरियर हाथो में पकड़ा कर बिदा करना ।सकुशल लौटने की दुआ भगवान से करना । पति की अनुपस्थिति में सास ससुर  और अपने बच्चों की परवरिश करना । दुःख दर्द में भी मर्द का फर्ज सिर आँखों पर रखना । बाजार से लेकर स्कूल तक की भाग दौड़ कितना बताऊँ । कोल्हू की बैल की तरह 24×7 पिसती रहती है । धन्य है ये पत्निया जिनके कार्य की मूल्यांकन किसी के बस की नहीं।

आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग  किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल  मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया  सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं  और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।

सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी  । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य   बनाये रखे की  प्रेरणा दी थी ।

उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत  करती है जैसे  इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब  तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।



( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा  की स्रोत है । )



Monday, January 11, 2016

एक कहानी - मनरेगा ।

सड़क के किनारे वह अधमरा कराह रहा था । उसे किसी की सख्त मदद की जरुरत थी । भीड़ उमड़ता जा रहा था । पर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था । यह भी एक सामाजिक कुरीति है ।  लोगो के जबान पर फुस  फुसाहट की ध्वनि आ रही थी । माजरा क्या है ? समझ से बाहर था । हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ने को उतावले थे । उस घायल व्यक्ति के नजदीक पहुँच खड़े  थे । कैमरा मैन वीडियो लेने के लिए तैयार उतावला  था वह मेरे अनुमति का इंतजार कर रहा था ।

तभी एक महिला एक छोटे बच्चे को गोद में लिए आयी और उस व्यक्ति के शारीर पर गिर रोने लगी । हमने उस महिला से कुछ पूछने की कोसिस  कि पर वह चिल्लाने लगी  और जोर जोर से  बोली - मैं कहती थी कि बैर मत मोलो । हम भूखे रह लेंगे । पैसे दे दो । हे भगवान कोई तो हमारे ऊपर रहम करो ? हमसे रहा न गया । मैंने उस महिला को अपना परिचय दिया और पूरी जानकारी हासिल करने की एक कोशिश की । पर वह महिला कुछ भी बताने से इंकार कर दिया  । उनके पहनावे और व्यवहार से यही लगता था कि वे बेहद गरीब थे । मीडियावाले है सुनते ही कुछ भी कहने से इंकार कर दी । अगल बगल के लोगो से कुछ जानकारी चाही किन्तु असफल रहा । मामला गंभीर था । हमने कुछ करने की सोंची ।  तभी हमारे पास एक लंबा चौड़ा और बड़ी बड़ी मुच्छो वाला आ खड़ा हुआ । वह गुर्राते हुए बोला । अबे नया नया आया है क्या ? तेरे को समाचार चाहिए । आ मेरे साथ मैं सब कुछ बताऊंगा । मैं उसके मुह को देखने लगा । देखा की भीड़ अपने आप खिसकने लगी । जाहिर था यह कोई यहाँ का दबंग है ।

हम पत्रकारो को कभी कभी आश्चर्य तो होता है पर डर नहीं । जी हम पत्रकार है । हमें इस घटना की जानकारी चाहिए । मैंने कहा । जरूर मिलेगा । आईये मेरे साथ । कह कर वह मुड़ा और हम उसके पीछे हो लिए । अब हम एक बड़ी हवेली के सामने खड़े थे । दरवाजे पर दो लठैत बिलकुल पहरेदार जैसा । हवेली के सामने एक बड़ा आम का बगीचा था वही हमें बैठने के लिए कहा गया । स्वागत सत्कार के बिच उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया था । सुन कर पूरी घटना समझ में आई ।ऐसे शासन और जनता के सुविधाओकी धज्जिया उड़ते  कभी नहीं देखा था । उन्होंने बताया की वे इस गांव के मुखिया है । मनरेगा के नाम पर काफी रुपये आते है । गांव वालो को काम के नाम पर जो पैसे आते है उन्हें उसमे से मुखिया को  पैसे देने होते है । सभी के बैंक खाते है । मजदूरी के पैसे सीधे खाते में जाते है । सभी को उसमे से मुखिया को कमीशन देने पड़ते है । मुखिया किसी से कोई काम नहीं करवाता है और सभी का हाजरी बना कर भेज देता है । इसी एवज में कमीशन लेता है । उस व्यक्ति ने कमीशन देने से इंकार कर दिया था । अतः मुखिया के कोप भाजन का शिकार बन गया था । अब समझ में आया मनरेगा का पैसा कैसे बर्बाद होता है और इससे कोई विकास भी नहीं ।

मुखिया हमें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया और धीरे से एक सौ की गड्डी हाथ में पकड़ा दी । हमने मनाही की पर वह न माना । कहने लगा - रख लीजिये ये तो एक छोटा सा नजराना है । दिल बेचैन था । कर्तव्य के साथ खिलवाड़ करने का मन कतई नहीं था । एक उपाय सुझा । हम सीधे उस गरीब के घर गए । देखा उसके दरवाजे पर एक्का दुक्का व्यक्ति खड़े थे । उस व्यक्ति की पत्नी दरवाजे पर बाहर बैठी थी । छोटा बच्चा उसे बार बार नोच रहा था । गरीबी ठहाके लगा रही थी । मेरे हाथ एक छोटी सी मदद के लिए उसके तरफ बढे और मैंने उस महिला की ओर उस सौ की गड्डी को बढ़ा दी जिसे मुखिया ने नजराने की तौर पर दी थी । वक्त को करवट बदलते देर न लगा । उस महिला ने उस गड्डी को घुमा कर जोर से दूर फेक दिया । मेरे दरवाजे से चले जाओ मुझे भीख नहीं चाहिए । हम जितना में  है उसी में जी लेंगे ।

मैं हतप्रभ हो देखते रह गया । मैं हार चूका था । हम धनवान होकर भी गरीब थे और वे गरीब होकर भी अमीर क्यों की उनके पास ईमान और इज्जत आज भी बरकरार थी ।

Saturday, December 5, 2015

प्रकोप

जीवन संघर्ष का नाम है तो मृत्यु चिर बिश्राम । यही जीवन का यथार्थ है । जन्मते ही मृत्यु की तरफ अग्रसर होना एक चिंता का विषय हो सकता है पर कुछ कर सकने के लिए दिनोदिन समय का अभाव भी तो है । जीवन  - मृत्यु की सच्चाई हमारे सामने मुंह बाये खड़ी रहती है और हम है जो व्यर्थ के कामो में समय बर्बाद कर रोते रहते है । आंसुओ की धारा हमारे अभाव को कभी नहीं धो सकती । अभाव को आत्मशक्ति और कुछ कर सकने की सबल इच्छा शक्ति ही पार लगा सकती  है । हँसने वाले का साथ सभी देते है रोने वाले का साथ बहुत कम ।

हम कितने स्वार्थी होते है जब अपने स्वार्थ में बशीभूत हो दूसरे के अधिकारो को मसलने में थोडी भी सकुचाहट महसूस नहीं करते । आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसे स्वभाव लोकतंत्र के पर्याय नहीं हो सकते । लोकतंत्र हमें दुसरो के अधिकारो की ऱक्षा के लिये वाध्य करता है । अन्यथा प्रकोप अतिसंभव । 

30 सितम्बर 1993 की वो डरावनी रात । आज भी याद है । प्रकोप को कुछ भी नजर नहीं आता । न धर्म की पहचान न इंसान की न ही किसी के स्वाभिमान की । सभी कुछ इसके चपेट में आकर नष्ट हो जाते है । जो शेष  बच जाते है उनके पास रोने और बोने के सिवा कुछ नहीं बचता । उस रात मैं रायचूर में कार्यरत था । नाईट ड्यटी में तैनात था । अपने ऑफिस यानी लॉबी में कुर्सी पर बैठे क्रू पोजीशन की लेख जोखा देख रहा था । करीब रात के दो बज रहे होंगे । प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा छाया हुआ था । कोई ट्रेन आने वाली नहीं थी । सिर्फ चेन्नई एक्सप्रेस के क्रू को तीन बजे कॉल सर्व करना था । कॉल बॉय पास के बेंच पर सो रहा था करता भी क्या । यह भी स्वस्थ रहने का एक सदुपयोग है ।

अचानक मुझे जोर का झटका लगा और जैसे मेरे कुर्सी को कोई पकड़ कर हिला रहा हो । मैंने समझा की कॉल बॉय मेरे कुर्सी को झकझोर रहा है । मैं बुक में कुछ लिखते हुए ही जोर से डपट लगायी  । अरे ये क्या कर रहे हो । फिर मुड़ कर देखा , कॉल बॉय अपने बेंच पर इतमिनान से सो रहा था । पीछे मुड़ कर देखा वहा भी कोई नहीं था । स्टेशन में किसी ट्रेन के आने की आवाज सुनाई दी । पर कोई ट्रेन नहीं आई ।शरीर में थोड़े समय के लिए सिहरन पैदा हो गयी । शायद कोई शैतानी प्रकोप तो नहीं । तभी कंट्रोल रूम का फोन बजा । कंट्रोल साहब ने पूछा - रायचूर में भूकंप आया है क्या ? मैंने कहा नहीं पर हाँ  जोर की ध्वनि और कुर्सी जरूर हिलते हुए महसूस किया हूँ । कंट्रोलर ने कहा यही तो भूकंप के झटके है ।

जी हाँ जो भी महसूस हुआ था वह भूकंप ही था । चारो तरफ समाचार फ़ैल गया । दूसरे दिन सभी समाचार पत्रो  ने बिस्तृत रिपोर्ट छापे । महाराष्ट्र के लातूर में इस भूकंप से काफी तबाही हुयी थी । सरकार बचाव कार्य में जुट  चुकी थी । बहुत जान माल की नुकशान हुई थी । महाराष्ट्र और आस पास के राज्यो में सतर्कता की सूचना दे दी गयी । एक सप्ताह तक सभी पडोसी  राज्यो के लोग रात को घर के बाहर सोते रहे  । अंततः ये प्रकोप की घटनाये होती क्या है ? बिज्ञान ने इसे  तरह तरह के क्रिया और प्रक्रिया  के परिणाम बताते रहे है । कुछ ईश्वरीय गुस्सा । जो कुछ भी हो इतना तो सत्य है जो बोएगा वही काटेगा । कुछ तो है जो हमें हमारे कर्मो की सजा देता है । मनुष्य की शक्ति के आखिरी छोर के बाद ही तो वह है जिसे ईश्वर के नाम से जानते है । जिसकी शक्ति अनंत और अंतहीन है । मानो तो देव नहीं तो पत्थर ।

Saturday, July 25, 2015

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल

आज दिनाक 17 सितंबर 2015 है । एक तरफ विश्वकर्मा पूजा की धूम है तो दूसरी तरफ बिघ्नकर्ता दुखहरन गणपति की पूजा । और      इस एक संयोग को क्या कहे कि आज ही कर्मठ सदाचारी और पूर्ण मानव हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का जन्म दिवस भी है । एक दिवस और त्रिकर्ता एक साथ । संयोग कुछ तो इंगित जरूर करता है । विश्व को बनानेवाला विश्वकर्मा जी , विश्व का दुःख हरण करता गणेश जी और आज के विश्व को नव सृजन की गति देने में व्यस्त मानवो का देव नरेंद्र मोदी जी । ऐसे संयोग किसी शुभ आगमन को ही इंगित करतेे है ।

दूसरी तरफ जंगल राज में मंगल मनाते दानवो की हाथो में तमंचा । बहु बेटियो के तिरस्कार  , लूट मार की भरमार  उत्तर प्रदेश राज्य  । जी हाँ आज ही मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश ) में समाज कल्याण मंत्री के सलाहकार बने कुरैशी के समर्थको ने भरी बाजार में वह भी थाने के सामने अंधाधुंध गोलियों की बौछार करते दिखे । जिसे ज़ी न्यूज़ ने टेलीकास्ट किया है । यह जंगल राज नहीं है तो और क्या है ? ठीक ही कहा गया है जैसी राजा वैसी प्रजा भी हो जाती है ।  कहने को उत्तर प्रदेश भारत का एक बड़ा राज्य है । किन्तु कुशासन में भी कम नहीं है । चारो तरफ असामाजिक तत्वों का बोलबाला है । शासन और अनुशासन नाम की कोई चीज नजर नहीं आती।

उदहारण स्वरुप दूसरी घटना की जिक्र क्यों करे एक अपनी ही घटना की प्रस्तुति समर्पित है । प्रथम सप्ताह दिसंबर 2014 । मैं पुनश्चय पाठ्यक्रम के लिए काजीपेट गया हुआ था । गॉव से  शाम को भाई का फोन आया  । समाचार सुन दिमाग कौंधने लगा । दिल में पीड़ा और बदले की भावना  पनपने लगी  । गुस्से में अपने को संभालना कठिन हो रहा था  । बात यह थी की गॉव में मेरे पड़ोसियों ने मेरी माँ और भाई को बुरी तरह से पिट कर घायल कर दिए थे । मामला पुलिस तक पहुंचा पर दरोगा FIR भी दर्ज नहीं कर रहा था । उसके ऊपर राजनीतिक पहुच का दबाव बन गया था ।

झगड़े का कारण चोरी से बिजली जलने का बिरोध करना था । मेरे पडोसी चोरी से बिजली का उपयोग कई वर्षो से  करते आ रहे थे । जिसका विरोध करना माँ को महंगा पड़ गया । किसी तरह पुलिस वालो ने माँ और भाई के चोट की चिकित्सीय रिपोर्ट तैयार करवाये । उचित कार्यवाही न होते देख हमें कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े । तब जाकर FIR की प्रक्रिया पूर्ण हुई । अरेस्ट वारंट रिलीज हुए । आज विरोधी जमानत पर है और कानूनी कार्यवाही / अदालती शुरू हो गयी है । कहते है कानूनी प्रक्रिया में काफी देरी होती है । उस पर उत्तर प्रदेश हो तो क्या कहें । मेरी नजरो में जंगल राज से कम नहीं ।

माँ और भाई के घायल होने के बाद दुखित और बेचैन होना स्वाभाविक था । छुट्टी लेकर जाने की इच्छा हमेशा बनी रही , पर जा न सका । दो या तीन दिनों बाद की बात है । मै फेशबुक के पन्नों को पलट रहा था । वही एक दोस्त ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल माननीय राम नायक जी को प्रश्न के घेरे में खड़ा कर दिया था । बात यह थी कि किसी कार्यक्रम में उन्होंने अपने भाषण में यह कह दिया था कि प्रदेश में बिजली चोरी करने वालो को जुत्ते से मारे । टिप्पणी कर्ता ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में संभव नहीं है , जैसे प्रश्न खड़े कर दिए थे । इस विषय के ऊपर मेरे दिमाग में भी बिजली कौंध गयी । सोंचा यही एक अच्छा मौका है क्यों न उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से शिकायत की जाए । मेरे माँ और भाई का मामला भी बिजली से सम्बंधित है ।

इंटरनेट की दुनिया में गोते लगानी शुरू कर दी । उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का इ मेल आईडी मिल गया । फिर क्या था लगा दी शिकायत यह कहते हुए कि क्या आप उचित कार्यवाही करेंगे ? मेल रजिस्टर्ड हो गया था । दिन हप्ते और महीने बीत गए । मेरे दिए हुए मोबाइल नंबर पर कोई कॉल भी नहीं आई । अचानक एक दिन मेल बॉक्स खोल और उसमे राज्यपाल द्वारा कार्यवाही किये जाने की कॉपी मुझ सूचनार्थ  मेल की गयी थी । दिल को थोड़ी सी सुकून मिली । चलो किसी ने सुध ली । फिर भी संदेह बनी हुयी थी एक राज्यपाल अकेले क्या कर लेगा ? संदेह गलत नहीं थी । महीनो बाद पुलिस वालो से रिपोर्ट तलब की गयी और एक दिन रात  दस बजे राज भवन से कॉल आई । शायद इ मेल सही था या फर्जी की जानकारी ली गयी । आज इस पोस्ट को लिखे जाने तक क्या कुछ हुआ - समझ से बाहर है । मामला कोर्ट के अधीन जा चूका है , क़ानूनी देरी सभी को परेशान करती है ।

जो भी हो राज्यपाल की सोंच सकारात्मक और प्रशासन नकारात्मक पथ पर अग्रसर है इसमे दो राय नहीं । राज्य के नागरिको को सचेत और अनुशासित होना होगा । तभी जंगल राज से मुक्ति की अपेक्षा की जा सकती है । आज भी न्याय के लिए आँखे बेक़रार है क्योंकि कानून अँधा होता है ।