Thursday, December 21, 2017

इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन ट्रेनिंग सेंटर / विजयवाड़ा

जैसा कि मैं रेलवे में लोको पायलट हूँ । पिछले कई वर्षों से राजधानी एक्सप्रेस में कार्यरत हूँ । उच्च पद पर पहुंचना अपने आप मे एक भाग्योदय का प्रतीक माना जाता है । किन्तु इसके साथ ही तरह तरह की नई जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती है अगर आप ईमानदार और अनुशासित है , तो किसी तरह के डर की गुंजाइश नही । भ्रष्ट लोगो को हमेशा डर घेरे रहता है । भ्रष्टाचार एक नासूर है जो जीवन मे तरह तरह की परेशानियों के मूल कारण  है । किसी भी तरह के डर दिल मे अशांति पैदा करती है। अतः जीवन मे अशांति का कोई स्थान नही होनी चाहिए ।

 जीवन मे खुशी का माहौल हमे स्वास्थ्य प्रदान करते है । इसीलिए कहा गया है कि खुश रहें और दूसरो को भी खुश रखें ।


लोको पायलट का जीवन बिन अनुशासन व्यर्थ ही है । हमारे कार्य ही ऐसे होते है कि बिना अनुशासन के सुरक्षा और संरक्षा संभव ही नही है ।  यदि आप के साथ कोई दुर्घटना हो जाती है , तो इंक्वायरी नियम और कानून के दायरे में ही घुमाती रहती है । उस समय कोई भी लोको पायलट की मदद नही कर सकता। लोको पायलट को स्वतः अपनी बचाव करने पड़ते है । इसके लिए एक ही चीज काम आएगी और वह है - अनुशासन पूर्वक किया गया कार्य । दोस्तो , लोको पायलट का जीवन जितना कष्टकर है उतना ही आनंदायक भी । 

आप एक बार ड्यूटी से मुक्त हुए और दूसरी ड्यूटी तक फ्री रहेंगे । आप को कोई भी कुछ कहने वाला नही मिलेगा  । वैसे देखा जाय तो कोई भी कार्य बिना रिस्क का नही होता है । योग्य और अनुभवी  रिस्क को भी अंगुली पर नचाते है ।

मेरे पास बहुत सारे फोन या व्हाट्सएप्प के माध्यम से संदेश आते रहते है , जो प्रायः नौजवानों के होते है । दसवीं पास या कुछ और पढ़ाई करने वालो के ज्यादा  । उन सभी के एक ही प्रश्न होते है कि लोको पायलट बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता क्या है ? मुझे भी लोको पायलट बनना है , इसके लिए क्या करूँ ? अतः मैने व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप बना रखी है । इसमे उन सभी युवको को जोड़के रखता हूँ , जिन्हें लोको पायलट बनने के लिए  विस्तृत जानकारी चाहिए । अतः कोई भी युवक मुझसे फोन या व्हाट्सअप के माध्यम से संपर्क कर सकते  है ।

अब आइये एक दर्दभरी दास्तान सुनाता हूँ 

 मैं राजधानी एक्सप्रेस में कार्य करता था । उस समय राजधानी डीजल लोको से चलती थी । पहली जुलाई 2017 से  इलेक्ट्रिक लोको उपयोग में है लाया गया है चुकी मुझे इलेक्ट्रिक लोको की ट्रेनिंग नही थी , इसीलिए विजयवाड़ा ट्रेनिंग सेंटर में , जाने पड़े । मैं 7 जुलाई 2017 को ट्रेनिंग सेंटर में रिपोर्ट किया था । ट्रेनिंग का कार्यकाल 66दिनों का था । मेरे क्लास में लोको पायलट थे जो अलग अलग डिपो से ट्रेनिंग के लिए आये थे । ट्रेनिंग में आने के पूर्व ही एक हौआ फैला हुआ था कि इलेक्ट्रिक ट्रेनिंग बहुत हार्ड होती है । यह सबके बस का नही है । खैर जो भी हो हमारी ट्रेनिंग शुरू हो चुकी थी । दिनोदिन की शिक्षा उस हौवे को सही साबित कर रही थी । 10 दिनों तक तो बहुत असुविधा महसूस  हुआ किन्तु  धीरे धीरे कुछ आरामदायक और नॉर्मल होने लगा  । वैसे  नया विषय हमेशा कठिन ही लगता है । 

हमारे ट्रेनिंग के प्रोग्राम - 

कन्वेंशनल लोको की जानकारी , सिम्युलेटर ट्रेनिंग और थ्री फेज लोको की जानकारी थी । इसके अंतराल में ऑन लाइन प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी थी । सभी सुचारू रूप से चल रहे  थे । रोज चार पीरियड , कम से कम डेढ़ घंटे  कि होती थी को अटेंड करने होते थे  । हमारे इंस्ट्रक्टर श्री के कल्यानराम जी थे । जो पूर्व के लोको पायलट ही थे । मेहनती तो थे ही , क्लास में आते ही , पहली पीरियड वार्तालाप पर आधारित था , जिसमे वे पिछले दिनों पढ़ाई हुई विषय पर प्रश्न करते थे । बारी बारी से सभी को उत्तर देना पड़ता था । उम्र दराज वाले  उत्तर न दे पाने पर शर्म महसूस भी करते थे । बहाने भी बना देते थे कि   हमारी उम्र पढ़ने की नही है । हमारी याददाश्त भी कमजोर है । रोज की यह   प्रक्रिया ,  बहुतो के मन मे टेंशन उत्तपन्न कर दिया । बहुत से लोको पायलट हमेशा टेंशन में रहने लगे थे ।

मुझसे जो भी मिलता , उसे मै  समझाने की प्रयास करता था । धीरे धीरे सब आसान हो जायेगा । एक दिन की बात है रवि रंजन और धनंजय कुमार सिम्युलेटर ट्रेनिंग में गए । उनकी क्लास सुबह 6 बजे लगी । प्रायः दो घंटे की थी । प्रैक्टिकल ट्रेनिंग हेतु बाकी लोग विजयवाड़ा ट्रिप शेड में चले गए । हम लोग ट्रेनिंग के लिए एक लोको के अंदर थे । लोको के औजारों के मुआयने कर रहे थे । कुछ समय बाद लोको से बाहर आ गए । पानी पीने के लिए आफिस के तरफ बढ़े । तभी एक सहपाठी मेरे नजदीक आया और पूछ - " सर कुछ मालूम है ?"   मैने  पूछा - क्या ? तब तक दूसरे सहपाठी ने कहा कि - रवि रंजन को हार्ट अटैक आया है । अभी रेलवे अस्पताल में है । मैने अपने मोबाइल पर नजर दौड़ाई ? देखा हमारे इंस्ट्रक्टर कल्यानराम का मिस कॉल था । बजह साफ जाहिर हो चुका था । मैंने तुरंत उन्हें कॉल किया । कल्यानराम जी कॉल रिसीव किये और तुरंत अस्पताल आने को कहा । 

हम सभी लोग रेलवे अस्पताल की तरफ चल पड़े । आज दिनांक 17-08-2017 था । हमने देखा - प्रिंसिपल से लेकर सारे इंस्ट्रक्टर अस्पताल में मौजूद थे । पता चला कि रवि रंजन अब इस दुनिया मे नही रहे । 35 वर्ष के आस पास की आयु और इस तरह का हार्ट अटैक सभी को सोचने के लिए बाध्य कर रहा था । एक माह पूर्व ही वह एक बेटे का पिता बने थे । इस घटना की जानकारी रविरंजन के गॉव को बता दिया गया । रविरंजन बिहार के रहने वाले थे । रेलवे की नौकरी भी कोई ज्यादा दिन की नही थी । यही कोई 8 वर्ष के आस पास । 

यह समाचार सभी डिपो में आग की तरह फैल गयी । व्हाट्सएप्प का जमाना जो है । विजयवाड़ा /रायचूर में उनका कोई नही था । अतः मेडिकल डिपार्टमेंट के अनुरोध पर उनके तीन रिश्तेदार गांव से एक दिन बाद आये । कागजी कार्यवाही / पोस्टमॉर्टम के बाद उनके पार्थिव शरीर को तीन सह कर्मियों  की देख रेख में , विमान द्वारा पटना भेज दिया गया । उनके परिवार और पत्नी पर क्या गुजरा होगा ? हम आसानी से समझ सकते है । लेकिन जिसे मौत आ जाये , कोई नही बचा सकता ।

इस घटना के बाद ट्रेनिंग स्कूल विवादों में घिर गया । कई ट्रेड यूनियनों ने इन्क्वायरी की मांग की । तो किसी ने हमारे इंस्ट्रक्टर के ऊपर दोषारोपण भी कर दिए , शायद कुछ लोगों की नजर में उनका  स्ट्रीकर व्यवहार ही इस मौत का कारण बना हो । कहने वाले हजार कहेंगे । किन्तु ये भी सत्य है कि ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में कोई किसी को क्यों मारेगा । कुछ दिनों तक विवाद बढ़ने की आशंका थी पर धीरे धीरे सब शांत हो गया ।


  • इस तरह के कटु सत्य और अनुभव जीवन मे आते ही रहते है । संक्षेप में कहे तो मौत के कारण नही होते , जबकि मौत एक जीवन की सम्पूर्ण यात्रा है जो स्वयं आती है , इस पर किसी का दबाव नही होता । जीवन में धैर्य और शांति से ही सुखमय जीवन का लाभ मिल सकता है । हम ही हमारे जीवन के रखवाले है । आएं बिना दोष के जीवन जीने की आदत डालें ।

Wednesday, May 31, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6

आज 10 मई 2016 , दिवस मंगलवार है । दिल्ली से कोपरगाँव के लिए झेलम एक्सप्रेस में सीट रिजर्व था । सुबह जल्दी तैयार हो गए । बोर्डिंग नयी दिल्ली स्टेशन से थी ।  होटल से रेलवे स्टेशन काफी नजदीक ही है , फिर भी ऑटो वाले एक सौ रुपये की मांग रख रहे थे । अजीब है कमाई ! दुनिया में ईमानदारी भी कोई चीज है या नहीं । एक दूसरे ऑटो वाले ने 50 रुपये में रेलवे स्टेशन तक पहुंचा दिया । सुबह नाश्ते की आदत है । रेलवे स्टेशन के सामने ही एक तमिल वाले  की दुकान दिखाई दी । ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि यहाँ अच्छे नास्ते की संभावना थी ।

हम दुकान में प्रवेश किये । हम सभी , जिसे जो खाने की इच्छा थी   , उसकी फरमाइश पेश कर दिए  । इडली , डोसा , पोंगल यानि हर दक्षिण भारतीय नास्ते उपलब्ध थे । पर एक विशेषता यह दिखी की सभी आइटम  टेस्टी भी थे  । बिलकुल दक्षिण भारतीय होटलो की तरह । साफ सुथरा नार्मल था और बिल भी वाजिब । आज बहुत दिनों के बाद कुछ स्वादिष्ट खाने के लिए मिला था ।

मैं आज बहुत आनंद महसूस किया । हमारी ट्रेन समय से आधे घंटे लेट थी । हमने दोपहर का आहार भी इसी दुकान से लेनी चाही किन्तु इसके लिए और 2 घंटे wait करने पड़ेंगे । हमारे पास समय नही था । अतः ट्रैन में ही ले लेंगे , की आस पर प्लेटफॉर्म में आ गए । जैसा कि सर्व विदित है कि कुछ ट्रेनों में पेंट्री कार होते है जो यात्रियों को खाने पीने की सामग्री की व्यवस्था करते है । इस सुविधा के पीछे रेलवे की धारणा यही है कि इससे यात्रियों को उचित दर पर खाने - पीने के बस्तुओं की व्यवस्था हो पाएगी । आज कल रेलवे इसे ठेकेदारों के माध्यम से प्रायोजित करता है । किसी भी क्षेत्र में ठेकेदारों के क्या योगदान है सभी जानते है । एक तरह से ये प्रथा एक कानूनी लूट को ही इंगित करती है । जहां भी ठेकेदारी है वहाँ गुडवत्ता का अभाव और लूट ज्यादा है । जनता परेशान और प्रशासन मस्त रहते है ।

मेरे विचार से ठेकेदारी सरकारी तंत्र में मलाई खाने का एक आसान साधन है । सरकारी तंत्राधीश नजराने लेते है और ठेकेदार को एक के माल को नौ के भाव पास कर देते है । ठेकेदारों और सरकारी तंत्रकारो के मकड़ जाल ऐसे होते है कि कोई उनके विरोध में आवाज नही उठता है । इसके स्वप्निल रूप चित्रपट में प्रायः  दिखते है । आईये झेलम एक्सप्रेस के ठेके ( पैंट्रीकार ) के ऊपर एक दृष्टि डालें -

पैंट्रीकार वाले अग्रिम आर्डर ले लेते है । उस दिन भी वैसा ही हुआ । एक युवक दोपहर के भोजन का ऑर्डर लेने के लिए हमारे सीट के पास आया । हम ऐसी two टायर में थे । उसने वेज खाने की कीमत 120 रुपये बतायी । मुझे गुस्सा आ गया । वेज खाना इतना महंगा और मात्रा भी काफी कम होते है । मैंने उससे मेनू लाने के लिए कहा । कुछ समय बाद वह एक पेपर लेकर आया जिसमे तरह तरह के व्यंजन और उनके कीमत अंकित थे । वेज का कीमत 120 रुपये ही था । 120 रुपये में कौन सी सामग्री सर्व होगी , सब कुछ था । हमारी मजबूरी थी । 3 खाने का आर्डर दे दिया गया । करीब डेढ़ बजे दोपहर को खाने के पैकेट हमे दिया गया । सबसे पहले पुत्र जी ने एक पैकेट खोले और भोजन की शुरुवात की । आहार में कोई टेस्ट नही था । चावल के दाने काफी मोटे मोटे तथा लिस्ट के मुताबिक व्यंजन नही दिए गए थे । ऊपर की तस्वीर देंखें ।

कीमत के अनुसार अव्यवस्था देख मुझे बहुत गुस्सा आया । मैंने रेलवे मंत्री को ट्वीट करनी चाही किन्तु नेट की असुविधा से ऐसा न कर पाया । जब पैंट्रीकार के प्रबंधक को मालूम हुआ तो वह और टीटी भी आये । प्रबंधक ने क्षमा मांगी और बहाने में कहने लगा कि गलती से ये आप के पास आ गया । मैं उनके बहाने बाजी समझता था । भोजन वापस कर दिया । मैने उन्हें बता दिया कि इसकी ऊपर शिकायत करूँगा । प्रबंधक सहम गया । उसने पैंट्रीकार से टी और ब्रेड भिजवाई । ताकि मैं शिकायत न करूँ । मैंने अस्वीकार कर दिया और बड़े पुत्र को फोन लगाया । दूसरे तरफ से पुत्र ने फोन उठायी । मैन उन्हें पूरे किस्से बताए और घर से रेलवे को शिकायत भेज देने के लिए कहा । पुत्र ने ऐसा ही किया । शिकायत दर्ज हो गयी और शिकायत नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया ।

PNR 2858871469
TN 11078
Date of journey 10.05.2016
NDLS to KP G
Meals quality and stranded very bad. Veg.
And even though they are about to charge Rs 120/-
I did not had and returned it due to.
advised TTE also on duty .
That type of meals even we are not feeding to our dog in home.

एक सप्ताह बाद मुझे रेलवे के कार्यालय ( दिल्ली ) से फोन आया । फोनकर्ता ने शिकायत की पूरी जानकारी पूछी । मैंने पूरी कहानी सुना दी और कहा कि ऐसा भोजन मेरा कुत्ता भी नही करता है । विश्वास न हो तो मेरे घर आकर जांच पड़ताल कर लें । किन्तु दूसरे तरफ से कोई उत्तर नही मिला । फोनकर्ता ने कार्यवाही करेंगे , कह कर फोन काट दी । कुछ दिन के बाद मुझे एक एस एम एस मिला । जो रेलवे का था । उसमें लिखा था कि झेलम एक्सप्रेस के ठेकेदार पर दस हजार का जुर्माना लगाया गया है । इस समाचार के बाद कुछ सकून मिला ।

इसके पहले एक समाचार पत्र में भी पढ़ा था कि रेलवे के महाप्रबंधक ने झेलम एक्सप्रेस के पैंट्रीकार की औचक निरीक्षण किया तथा अनेक अनिमियता देखी । ठेकेदार पर पचास हजार का जुर्माना ठोका ।

जी हां । रेलवे आप को सतत  उचित सेवा देने के लिए प्रयासरत है । क्या आप रेलवे की मदद करेंगे ?

अभी भी  न्याय जिंदा है ।

Sunday, March 19, 2017

लघु कथा - नोटबंदी पार्ट -2

मैं आज टी वी के सामने बैठा हुआ था । ऑफिस में बहुत देर हो गयी थी । सामने अखबार पड़ा हुआ था । ऑफिस में काम से कहा फुर्सत मिलती है । एक नजर दौड़ाई । देश और दुनिया में शांति से ज्यादा अशांति ही दिखाई दी । मैडम चाय लेकर आई । सामने रख दी । चाय की चुस्की लेते हुए टीवी की ओर देखा । साढ़े आठ बज रहे थे ।

देखा मोदी जी का कोई संबोधन प्रसारित हो रहा था ।
मोदी जी कह रहे थे -

" भाईयो और बहनों ,
आप ने देखा कि देश के भ्रष्टाचार को कम करने के लिए मैंने नोटबंदी का सहारा लिया । जिससे छुपे हुए कालाधन बाहर आ सके । यह आंशिक रूप से सफल और कारगर साबित हुआ है । फिर भी बहुत से कालाबाजारी कुछ बैंक की मदद से अपने छुपे धन को सफ़ेद करने में  कामयाब रहे । मैं उन्हें छोड़ने वाला नहीं । सभी पर कार्यवाही होगी और जरूर होगी ।
आज बारह बजे रात से कोई भी नोट कार्य नहीं करेगा । जिनके - जिनके पास नए 2 हजार और 5 सौ के नोट है , वे कल बैंक में जाकर अपने खाते में जमा करवा दें । पुराने नोट को अपने खाते में कोई भी सिर्फ एक बार जमा कर सकेगा । पुराने नोट एक ही खाते में दुबारा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । 

यह  सुविधा 5 दिनों तक लागू रहेगा ।

50 हजार से ज्यादा जमा का लेख जोखा देना होगा अन्यथा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । अब एटीएम से प्लास्टिक के नए नोट मिलेंगे ।

भाईयो और बहनों - 

मुझे आशा है आप लोग मेरे इस कार्यवाही को नोटबंदी एक की तरह  सहर्ष स्वीकार करेंगे । बाकी जानकारी बैंक वाले बता देंगे । आप सभी का धन्यवाद 
बन्दे मातरम भारत माता की जय ।" 

मेरे शरीर में सिहरन समा गयी । ये क्या नोटबंदी 2 आ गया ? ओह माय गॉड । मैं तो मर गया । 15 लाख कैश घर में रखे पड़े है । अब क्या होगा । लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी दौड़ो ? 


पत्नी ने जोर से झटके दी । अरे सोये सोये ये क्या चिल्ला रहे थे । मैंने अपनी आँख को रगड़ते हुए कहा - " लक्ष्मी आज मैंने बहुत बुरी स्वप्न देखी है । देखा - मोदी जी ने नोटबंदी 2 लागू कर दी है । भगवान न करे ये कही सही हो जाय । लक्ष्मी जल्दी से तैयार हो जाओ । बैंक चलने है । मैंने पत्नी से अनुरोध किया । 

क्यों ? पत्नी ने एक झटके में पूछा । 

भाग्यवान , तुम मेरी लक्ष्मी हो । अलमारी में 15 लाख रखे है । कृपया अपने खाते में जमा करा दो । मैंने प्यार से गुहार किया । 

आखिर 15 लाख आये कहाँ से ? बोलो ना ? पत्नी जानने हेतु जिद्द करती रही । न चाहते हुए भी बताना पड़ा । कहा - " मोदी जी ने कर्मचारियों के वार्षिक इंक्रीमेंट के लिए - वैरी गुड - सर्विस रिकॉर्ड में होना अनिवार्य कर दिया है । अतः मैंने अपने अंतर्गत कर्मचारियों से 1 से लेकर 3 हजार तक बसूले है वैरी गुड रिमार्क के लिये । " 

पत्नी के मुख से निकले - पापी कही के । इतना कह पत्नी बाहर की ओर जाने लगी । मैं जाती हुई लक्ष्मी को आश्चर्य से देखता रह गया ।

( नोट - यह एक काल्पनिक लघु कथा है । सत्य से कोई सरोकार नहीं । )

Friday, February 10, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा -5

हम जम्मू अपने रिश्तेदार के घर  लुधियाना आ गए थे । यहाँ पर एक दिन रुकने के बाद , अब यहाँ से नई दिल्ली जाना था। लुधियाना शहर अपने उद्योगिक राजस्व के लिए प्रसिद्द है ।यहाँहर किस्म की छोटी बड़ी फैक्ट्री मिल जायेगी । इसकी उत्पादन क्षमता पुरे भारत ही नहीं विदेशो में भी फैली हुई है । लुधियाना के बारे में जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा । 8 मई 2016 , रविवार को गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस ( 12904 ) से नयी दिल्ली के लिए रवाना हो गए । 9 मई 2016 को सुबह 7 बजे हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर उतरे क्योंकि यह ट्रेन नयी दिल्ली होकर नहीं चलती है । हमें योजनानुसार किसी के घर न जाकर , नयी दिल्ली के किसी होटल में ठहरना था । 


हजरत निजामुद्दीन से नयी दिल्ली के लिए रोड और रेल यातायात से बहुत से साधन है । ट्रैन से जाने का प्रोग्राम था किंतु एक टैक्सी वाले ने हमें 50/- में नयी दिल्ली पहुचाने की ऑफर दी । मुझे कुछ आश्चर्य भी हुआ । कानो को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था  । कही ये धोका तो नहीं देना चाहता ? अनायास ही मन में संदेह उपजे । जीवन में कभी भी 50/- में दोनों स्टेशन के बीच यात्रा नहीं की थी । हमने उससे कहा - चलो । उसने एक आज्ञाकारी नौकर की तरह सामान उठा लिए और चल पड़ा । आगे आगे वो और पीछे पीछे  हम । कारो - टेम्पो की झुंडों से होते हुए , हम आगे बढ़ रहे थे । उसकी कार , पार्किंग के एक कोने में खड़ी थी । हम कार में सवार हुए और हमारी यात्रा शुरू हो गयी । चुकी दिल्ली दर्शन के लिए रुक रहे थे , सोचा कार वाले से ही कुछ जानकारी भी ले ली जाये । 

मैंने कार वाले से पूछा - दिल्ली घुमाने के लिए कितना भाड़ा है ? उसने उत्तर के वजाय मुझसे ही प्रश्न कर दिया - दिल्ली घूमना है क्या ? 
मैंने कहा - हाँ जी । 
साहब ऐसी या नॉन ऐसी , किस तरह का चाहिए ? 
गर्मी है ऐसी चाहिए । मैंने सहज में ही कह दिया । साहब ऐसी के 1800/- रुपये और नॉन ऐसी के 1500/- रुपये लगेंगे । उसने बड़े ही आत्मीय ढंग से कहा जैसे हम उसके सगे हो । ज्यादा है भाई । टूरिस्ट बस से तो ,  सौ दो सौ में बात बन जायेगी । मैंने भी अनायास  ही कह दिया । साहब सब कुछ महंगा हो गया है । पेट्रोल डीजल महंगा है । रास्ते  में पुलिस वाले है । पार्किंग खर्च है । सभी तो देखना पड़ता है । खैर हमें तो दिल्ली घूमना था । उससे बात पक्की कर ली । कम नहीं किया । कार को एक होटल के पास रोका - पहाड़गंज का क्षेत्र । होटल अच्छा था साफ सुथरा । श्रीमती जी को पसंद आया । वैसे भी घरेलु रहन - सहन तथा घर कैसे हो ? मर्दो से बेहतर औरते ज्यादा जानती है । मर्द पिछड़ जाते है क्यों की वित्तीय घोटाले नहीं करना चाहते ।

नित्य क्रियाकर्म और नास्ते के बात हम होटल से बाहर आये । उस टैक्सी चालक का पता नहीं था । होटल का मैनेजर सामने आया और कहा -" वह ड्राइवर चला गया । मैंने उसके भाड़े 50/- रुपये दे दिए है । आप मुझे दे दीजिए और दूसरी कार रेडी है । ये है ड्राइवर । उसने एक नाटे व्यक्ति की तरफ इशारा किया । ये आप को पूरी दिल्ली घुमा देगा । " मैंने संसय में पूछा - और भाड़े कितने ? मैनेजर बोला - जो पहले तय हुयी थी , उतना ही  ।

दिल्ली के मुख्य दर्शनीय स्थल - 

 लाल किला , जामा मस्जिद , विजय घाट , शांति वन , शक्ति स्थल , राजघाट , गांधी म्यूजियम , कोटला फिरोज शाह , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , तीन मूर्ति , इंदिरा गांधी मेमोरियल हाल , राष्ट्र पति भवन , पार्लियामेंट हाउस , बिरला मंदिर , लोटस टेम्पल , अक्षर धाम मंदिर , रेल म्यूजियम वगैरह वगैरह । 


कार ड्राइवर बिरला मंदिर से दर्शन की शुरुआत की । ड्राइवर  बिच बिच में चुटकुले भी कहने शुरू का दिए थे । ये अच्छे लगते थे । समय व्यतीत होने के लिए जरुरी भी थे । एक जगह कार ड्राइवर हमें एक इम्पोरियम में ले जाने की इच्छा जताई । हमने जाने से मना कर दिया । हमें मालूम था कि वहाँ लेने के देने पड़ते है । ये टूरिस्ट कार वाले मिले होते है । इसके पीछे इनके कमिसन रखे होते है । कई बार हम ठग भी चुके है । उसने हमारी एक न मानी और अनुरोध करने लगा की एक बार आप जाये , कुछ न लें बस । हमने उसकी एक न मानी । अंत में उसे आगे ही बढ़ने पड़े । 

क़ुतुब मीनार के पास गए । यहाँ अंदर जाने के लिए टिकट लेने पड़ते । टिकट खिड़की पर गया । मैंने देखा टिकट काउंटर पर बैठा व्यक्ति सबसे ख़ुदरे रुपये पूछ रहा था । सभी परेशान हो रहे थे । मेरी बारी आई । मेरे साथ भी वही व्यवहार । मुझे तुरंत गुस्सा आ गया । उसे बहुत कुछ कह दिया । वह निरुत्तर सा हो गया , मुझे टिकट आराम से दे दिया । क़ुतुब मीनार ही दर्शन की प्रमुख टारगेट था , मैडम जी का । अंदर में भ्रमण हुई । कई जगह पिक और वीडियो लिए गए  । 

दोपहर के भोजन भी कार ड्राइवर के निशानदेही होटल में ही हुई । हम ठहरे दक्षिण भारतीय रहन - सहन वाले । भोजन रास न आये । पर जीने के लिए तो जरुरी है । काश कोई फल फूल खा लिए होते , तो ही अच्छा होता । दिल्ली दर्शन  के दौरान हमने पाया कि बहुत से दर्शनीय स्थल सोमवार को बंद थे । हमारे मनसूबे पर पानी फिर गए । जो खुले थे वे है - विजय घाट , शांति वन , राजघाट , शक्तिस्थल , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , बिरला मंदिर । इन्हें देख के संतोष करने पड़े । बाकी सब बंद थे ।  कार ड्राइवर को भी पता था , पर उसने कोई सूचना नहीं दी थी । बालाजी के लिए दिल्ली का दर्शन महत्वपूर्ण था । हम तो कई बार देख चुके है । फिर कभी आएंगे , सोमवार को छोड़ , कह आज की दर्शन यात्रा को विराम देनी पड़ी । 

दोस्तों , किसी भी दर्शनीय स्थल पर जाने के पूर्व , वहाँ के बारे में पूरी जानकारी कर लेनी जरुरी होती है । ये जानकारी दोस्तों , रिस्तेदारो या आज कल नेट से प्राप्त की जा सकती है । अन्यथा परेशानी और व्यर्थ के समय बर्बाद होंगे ही और पैसे भी । नए शहर में नए लोग तुरंत पहचान में आ जाते है अतः किसी  पुलिस स्टेशन का मोबाइल नंबर साथ हो , तो किसी भी अनहोनी या ठगी से बचा जा सकता है । वैसे पुलिस स्टेशन के लफड़े से ज्यादातर दूर ही रहना चाहिए क्योंकि पुलिस थाने  भरोसे के स्थल नहीं है । ये ज्यादा उचित होगाकि दिल्ली दर्शन के लिए  सोमवार को न जाए या जो दर्शन करना चाहते है वह किस दिन उपलब्ध है इसकी पूरी जानकारी कर लें । पर्यटन स्थल पर खरीददारी न करें । सामान कोई खास नहीं पर भड़कीले होते है जो पर्यटक को बरबस आकर्षित करते है । वैसे आप जो ख़रीदारी करना चाहते है वह आप के शहर में भी मिल जायेंगे तथा रास्ते भर उस सामान को ढ़ोने की समस्या से भी निजात मिलेगा  । हाँ यात्रा का पड़ाव हो तो खरीद सकते है । वैसे पसंद अपनी अपनी । पैसे अपने अपने । कार चालको से भी सदैव सतर्कता बरतनी चाहिए ।

जैसा की मैं रेलवे में चालक हूँ । एक बहुत ही जिम्मेदारी भरा ड्यूटी करना पड़ता है । परिवार , समाज , ऑफिस और कार्यस्थल के सभी ड्यूटी को सुरक्षित संपादन के लिए वक्त के पाबंद है हम । कुछ के लिए समय को बचाने पड़ते है । यही वजह है कि सुचारू ढंग से ब्लॉग पर पोस्ट न दे पा रहा हूँ । बहुत से पाठक फोन या व्हाट्सएप्प पर सवाल करते रहते है कि अगली पोस्ट कब आ रही है । ऐसे फ़ैन को तहे दिल से धन्यावाद तथा देर लतीफी के लिए दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ । आप के प्यार और लगाव को मेरा सत सत नमन । 

( आगे की यात्रा के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए - 
माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6 ) 



Sunday, December 4, 2016

फ़ैन


मैंने शाहरुख खान की फिल्म फैन देखी थी , लुधियाना में । एक फैन और मशहूर अभिनेता की कहानी है । फैन अपने अभिनेता के प्रति आक्रामक हो जाता है , जब उसे अपने चहेते अभिनेता से साक्षातकार के अवसर नहीं मिलते । ऐसे ही कई फैन है जिनके फोन या टिप्पणियां हमेशा मुझे मिलती रहती है । आज एक फैन से मुझे एक कहानी प्राप्त हुई  है , जो हमारे जीवन से संवंधित ही है । मैं अपने आप को इस ब्लॉग पर पोस्ट करने से नहीं रोक सका हूँ ।

आप के सामने प्रस्तुत है ---

" रात का आखिरी पहर था ,बारिश के साथ - साथ ठंडी हवा हड्डियो को अन्दर तक हिला दे रही थी । मै जितनी जल्दी हो सके घर पहुचकर बिस्तर मे घुसने के लिये आतुर था । आज मै एक कारोबारी दौरे से वापिस दूसरे शहर से अपने शहर मे आ रहा था । दूर दूर तक आदमी तो छोडिये जानवर, कुत्ता ,  बिल्ली भी नही दिख रहे थे । मै पूरी रफ्तार से कार मे बैठा अपने घर की ओर बढा चला जा रहा था । कार के दरवाजे बन्द होने के वावजूद  दम निकली जा रही थी । बाहर हल्की बारिश हो रही थी। लोग अपने घरो में , अपने बिस्तरो मे दुबके नीद का मजा ले रहे होंगे  ।

जैसे ही कार  , मैने अपनी गली की ओर मोडी , दूर से कार की रोशनी मे मुझे एक धुधंला सा साया नजर आया। उसने  बारिश से बचने के लिये सिर पर प्लास्टिक का कुछ थैला ओढ रखा था । मैंने सोचा इस बारिश मे कौन है जो बेचारा बाहर घूम रहा है । इस हालत में बेचारे कि क्या मजबूरी हो सकती है । शायद घर मे कोई बीमार तो नही । मैंने अपनी कार  उसके नजदीक ले जाके  , कार के शीशा नीचे कर सूरत देखने तथा हालचाल जानने की नीयत से आवाज लगायी ।  देखा तो हैरान रह गया , अरे ये तो हमारे पडोसी मोहन जी है जो रेल्वे मे लोको पायलट है। मैने नमस्कार कर हालचाल जानने की नियत से पूछा कि इतनी रात मे आप कहॉ जा रहे है ?  तो उन्होंने बडे ही शिष्टाचार से जबाब दिया - डयुटी । मैने पूछा ,,,,,इतनी रात को  ? तो उन्होने किसी मासूम बच्चे की तरह हॉ मे सिर हिलाया। और आगे बढ गये ,,,,,,,,,

इस छोटी सी मुलाकात ने मुझे अन्दर तक सोचने पर मजबूर कर दिया । मै चैतनाशुन्य मे खो गया ,,,,कि एक व्यक्ति जो हमारी यात्रा को सफल बनाने के लिये क्या क्या झेलता है न मौसम की परवाह न ही परिवार की ,,,,,,,इसको कितने मिलते होगे शायद 30000 या 50000  ,,,,,,,, पर वो सुख  , वो नीद , वो चैन ,  ये कभी ले पाता होगा या ले पायेगा ,,,,,,,पता नही  ,,,शायद ऐसे ही कर्मठ और जिम्मेदार लोगो की वजह से ये दुनिया टिकी हुई है ।

मेरा मन चाहा कि गाडी से उतर कर आदर स्वरुप उन्हें गले लगाऊ पर वो जा चुके थे ,,,,,पर दूर कही से एक तेज आवाज सुनायी दी थी जो शाायद किसी रेलगाडी के हॉर्न की आवाज थी ,,,,,,,
सलाम है ऐसे कर्मठ वीरो को 
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( कर्मठ लोको पायलटो को समर्पित । प्रेषक और लेखिका - तुलसी जाटव लेक्चरर / मैथ )