आज कल मैंने ,मीडिया चैनलों में देखा है की लाल कृष्ण अडवानी जी ,न ज्यादा
बोलते नजर आते है,न चैनलो में ज्यादा दिखाई
देते है. ........
और मनमोहन सिंह जी ,क्या बोलेंगे ,लगता है छुईमुई सा और सिकुर गए है.सायद ये पिछले बरस मतदान के दौरान भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बिच छीटा-कसी का असर है.जब
अडवानी जी और उनके पार्टी के नेता,कहा करते थे --की मनमोहन सिंह जी
,सोनिया गाँधी के इशारे पर काम करते है ,बोलते है तथा कमजोर प्रधान मंत्री है.इस पर मतदान के
समय एक प्रेस conference में ,मन
मोहन सिंह जी ने ,प्रायः एक चलता-
फिरता वाक्य कहा था- की ज्यादा
बोलने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.
मतों के गिनती के बाद,कांग्रेस सत्ता में आई और भारतीय जनता पार्टी को
सत्ता हाथ नहीं लगी.मैंने महसूस किया की-इसका असर अडवानी जी पर पड़ा.सायद वे बहुत दुखी हुएऔर ज्यादा बोलना काम कर दिए.इतना ही नहीं-मनमोहन सिंह जी तो जैसे बोलने से सिकुर सा गए.एक कहावत है की - कम बोलने वाले या तो कुछ नहीं जानते या,
जान-बुज कर कुछ नहीं बोलते.प्रायः देखा
गया है की शिक्षक ज्यादा बोलते है और सिष्य
ज्यादा सुनते है.आखिर क्यों .....?
(नोट-माफ़ कीजियेगा-मेरा मकसद किसी को दुःख पहुचना नहीं है,बल्कि
मैंने अपने बिचार प्रस्तुत किया हु.दोनों नेता महान है.और सबसे बड़ी बात
यह है की सदन के समूहों में सायद ,ये दोनों नेता ही ,आर्थिक रूप से कम है )
तस्बीर कोर्तेस्य-गूगल.कॉम.
मौनी बाबाओं के इस व्यवहार ने छुटभैयों की भी बोलती बंद कर दी है।
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