अभीमै जो लेख प्रस्तुत करने जा रहा हु,वह फाएर पत्रिका ,जो बंगलुरु से निकलती है ,के फरवरी २००९ के अंक में
प्रकाशित हो चुकी है,पर बहुत से सब्द गलत छाप गए थे,जिसे मै सुद्ध रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ.
१५-०९-२००८ को मेरे मोबाइल के अन्दर,जैसे ही हमारे जोइंट सेक्रेटरी जनरल --टी.हनुमैअ जी का मैसेज आया
की-कामरेड एस.के धर expired टुडे ---मै थोड़े समय के लिए सन्न रह गया.किन्तु जो होनी थी वह किसी से कैसे रुकती .जब की दो दिन पहले ही मुझे यह खबर मिली थी -की धर साहब की तबियत काफी ख़राब हो गए है .तथा वे अल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल स्सिएंस न्यू डेल्ही में भर्ती है.यह समाचार सुन कर दिल ने कहा -कास एक नजर देख पता , परन्तु दूर रहने की वजह से
ऐसा न हो सका.
धर साहब अपने आप में महा मानव थे.मै तो उनसे काफी बाद परिचित हुआ था.जब मै अपरेंटिस फायर मैन के रूप
में रेलवे में,१९८७ वर्ष में कदम रखा तो जहा-तहा लोगो को बाते करते सुनाता था किमी एस के धर के गांव का रहने वाला हूँ.उस
समय ,मै नयेपन की वजह से कुछ ,समझ नहीं पता था.
मै सहायक लोको चालक के समय से ही दृढ़ता से अनुसासन का पालन करता था और अब भी करता हूँ.अत: AIRF /NFIR
वालो का मुझसे मिलाना तथा अपने संस्था के तरफ अकर्सित करने का प्रयत्न सुरु हो गया था.लेकिन मेरा मन उस तरफ
अकर्सित नहीं हुआ.मैंने निश्चित कर लिया था की रंनिंग कर्मियों की संस्था अलग से कार्य रत है,फिर उनके साथ क्यों जाऊ.
AIRF /NFIR वालो ने कोई कसर नहीं छोड़ी .मई भी अपने इछासक्ति पर कायम था-और ailrsa गूटी ब्रांच में
प्राथमिक सदस्यता ले लिया और आज तक इसी संस्था से जुडा हुआ हूँ.मैंने उस समय ये कभी नहीं साचा था की एक दिन,मै
मंडल सचिव/गुंतकल मंडल औं जोइंटमहा सचिव/दक्षिण मध्य रेलवे के पद तक पहुंचू गा.
काम.एस.के.धर.के बारे में कुछ कहना मेरे लिए सूर्य के समक्ष दीपक दिखाने के सामान है .उनके बारे में जो कुछ
भी कहा जाय.वह थोड़ी ही है.फिर भी मै अपने कुछ अनुभव को उजागर किये बिना नहीं रह सकता.धर साहब की याद शक्ति
काबिले तारीफ थी.वे दूर दराज के लोगो को पहचान जाते थे.फ़ोन पर नाम बताते ही--वे जगह का नाम दुहराकर परिचय
दुहराते थे.उनकी लेखनी,लैटर ड्राफ्टिंग बहुत ही प्रसंसा के योग्य है.किसी संस्था को कैसे चलाया जाय ,कैसे लोगो को बांध कर रखा जाय,वे भालिभक्ति जानते थे .मै भी उनसे बहुत कुछ सिखा.
उनके द्वारा भेजा हुआ प्रतेक circular मेरे घर के पते पर आता था.सायद यह उनका बढ़प्पन था,मेरे जैसे ब्यक्ति
को भी उतना ही महत्व देते थे.वे बहुत ही मिलनसार थे.किसी से मिलने के बाद,बिना उसका हाल-चाल पूछे नहीं हटाते थे.
मेरा उनसे पहला परिचय बंगलुरु में हुआ था,जब में CWC का EXECUTIVE मीटिंग ATTENDE करने के लिए,२७-२८ जुलाई १९९५ को बंगलुरु गया था.उस समय मैमालगाड़ी लोको चालक था.उस समय वे,मुझसे बड़े प्यार से मिले तथा आल इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ ASSOSIATION के उन्नति में नौजवानों के भागीदारी पर काफी बिचार ब्यक्त किये.
उसके बाद मै उनसे कई समारोहों में मिला.जब मै गुंतकल मंडल का मंडल सचिव बना,तो सोचा इन्हें एक बार
गुंतकल आमंत्रित करना चाहिए,पर इनसे बात करने में डर भी लगता था.हिम्मत करके एक बार मैंने सिकंदराबाद
के एक समारोह में उनके सामने अपना प्रस्ताव रख दिया और उनसे पुछा-क्या आप गुंतकल में कभी पधारेंगे.?उनका जबाब
था-पहले प्रयत्न करो,तारीख तय करो,देखा जायेगा.
फिर क्या था-मै भी बैठने वाला नहीं था-वह दिन भी आ गया .१३ फरवरी २००४ को मैंने मंडल BGM का प्रोग्राम तय कर दिया.धर साहब को फ़ोन द्वारा सूचना दे दी और निमंत्रण कार्ड भी भेज दिया.मुख्य अतिथि उनको बनाया,वाल पेपर प्रिंट करवाया ,उनके लिए ट्रेन का RESERVATION भी करावा दिया.टिकेट उनके पते पर भेज दिया.आखरी तारीख तक आने के लिए कतराते रहे.किन्तु मैंने कह दिया था की प्रोग्राम काफी उत्साहित ढंग से होने वाला है,अतः अवस्य पधारे ,अन्यथा आप की मर्जी.सायद उनके दिल में ये संका रही हो किगुन्ताकल मंडल में काफी परेसनिया है.मीटिंग का गुड रेस्पोंसे होगा की नहीं.
फिर क्या था वो दिन भी आ गया,धर साहब भी प्रोग्राम के मुताबिक पधारे.मंडल अधिवेसन में करीब ५०० से भी ज्यादा लोगो ने भाग लिया,इस जसं को देख कर वे मेरे ऊपर काफी प्रभावित हुए.
मंडल अधिवेसन में नए मंडल सचिव का चुनाव होना था,सभी की इच्छा थी मै ही इस पद पर बना रहू,पर कुछ पेरसोनल असुबिधा के वजह से मैंने इंकार कर दिया.तत्पश्चात कॉम.इ.बलाक्रिशानन को मंडल सचिव बनाया गया.तथा मेरे न नुकुर करने पर भी मुझे मंडल सभापति चुना गया.हम दोनों से बात करते हुए ,धर साहब ने एक बात कही थी-जो मेरे लिए ,मेरे जीवन में एक मंत्र बन गया,वह यह की---जरुरत पड़ने पर,एक कदम आगे या पीछे करने से नहीं घबडाना चाहिए.ये वाक्य मुझे हमेसा याद रहते है,उसमे जीवन का भरपूर मजा है.हर मुस्किल में मुझे धर साहब के ये वाक्य हमेसा याद आते है.
इस सभा के बाद,धर साहब ने यह समझ लिया की अभी भी-गुंतकल मंडल में AILRSA जिन्दा है.फिर क्या था -दक्षिण मध्य रेलवे का जोनल BGM भी गुंतकल में रखा गया.धर साहब फिर पधारे.इतना ही नहीं वे रात को मेरे घर पर खाना भी खाए.किसे मालूम था की इस महामानव की ये आखरी आगमन है.जब मैंने अपनी पत्नी से धर साहब के देहांत की खबर बताई -तो वो भावुक हो गई.
एक तरह से धर साहब AILRSA के लिए GOD FATHER थे.वे इस संस्था को आगे बढ़ने तथा लोको चालको के अधिकार और सुबिधाओ के लिए हमेसा प्रशासन से लड़ते रहे.उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.दिवंगत इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व कल में ,उन्हें देखते ही गोली मरने के आदेस भी जरी हुए थे.उनके स्थान और कमी को पूरा करना,आने वाले पीढ़ी को KAPHI मुस्किल है .AILRSA के प्रति उनकी बलिदान,कभी मिटने वाली नहीं है,उनके अगुई में भारतीय रेलवे को कई बार लोको चालको के हड़ताल का सामना करना पड़ा .जब तक AILRSA रहेगा,तब तक धर साहब का नाम सर्धा के साथ लिया जायेगा.
उनहोने AILRSA को अपने परिश्रम से सींचा,बड़ा किया बढाया.उनके जीवन की कहानी आने वाली पीढ़ी के लिए,प्रेरणा के स्रोत होगा. कहने को कोल्कात्तावासी थे,पर उनका एक पैर दिल्ली तो दूसरा बिभिन्न सहरो में रहता था.अपने जीवन में भारत के हर कोने का भ्रमण उनहोने RUNNINGSTAFF को अपना परिवार बना लिया था .अपने परिवार से दूर,बच्चो से दूर रहना,उनके जीवन का एक अंग बन गया था.उनके परिवार वालो ने हमेसा उनके अनुपस्थिति को झेला.इस दर्द भरी क्षण में भगवान,उन्हें सकती दे.
जीवन का पर्याय मृत्यु है.इस दोनों के बिच मनुष्य बहुत कुछ छोड़ जाता है.अगर दुनिया में कुछ सच्च है,तो वह मृत्यु ही है ,जिसे सभी को झेलना है,अन्तर केवल आगे या पीछे का है.आज धर साहब उस सच्चाई को प्राप्त कर चुके है,पर उनके त्याग और बलिदान को हमेसा याद किया जायेगा.AILRSA के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा.आज के समय में उनके बताये रस्ते पर चलाना और उनके आदर्शो को पालन करना ही,उनकेप्रती सच्ची स्राधांजलि .उस महा मानव की एक बार फिर लाल सलाम.
श्रधांजलि .......१५.०९.२०१०.को.
यह ब्लॉग मेरे निजी अनुभवों जो सत्य और वास्तविक घटना पर निर्भर करता है - पर आधारित है ! वह जीवन - जीवन ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो! जीवन एक सवाल से कम नहीं ! सवाल का जबाब देना और परिणाम प्राप्त करना ही इस जीवन के रहस्य है !! सवाल की हेरा-फेरी या नक़ल उचित नहीं!इससवाल के जबाब स्वयं ढूढ़ने पड़ेगे!THIS BLOG IS PURELY DEDICATED TO LABORIOUS,CORRUPTION-LESS ,PUNCTUAL AND DISCIPLINED LOCO PILOTS OF INDIAN RAILWAYS ( please note --this blog is in " HINDI ")
LOCO PILOTS OF INDIAN RAILWAY.
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