जिंदगी में कभी - कभी साहस की परीक्षा भी हो जाती है । मेरे लिए दिनांक 17 जुलाई से 29 जुलाई 2012 का समय , एक चुनौती भरा रहा । एक तरफ दर्द तो दूसरी तरफ कर्तव्य । यही वजह था ,जो मुझे कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत से दूर रखा । यहाँ..., मै उन अनुभूतियो को रखना चाहूँगा । अगर ध्यान से पढ़ा जाय तो बहुत कुछ समझा जा सकता है । अवश्य पढ़ें ।
दिनांक 17 जुलाई 2012 -गुंतकल
दिनांक 17 जुलाई 2012 -गुंतकल
मै दिनांक 17 जुलाई को प्रशांति एक्सप्रेस से विजयवाडा जाने वाला था और वातानुकूलित श्रेणी में बर्थ कन्फर्म था । ट्रेन रात को साधे आठ बजे थी ।रिजर्व टिकट किसी दुसरे साथी के पास था । सुबह से ही पूरी तैयारी कर ली थी । ग्यारह बजे गंगाधरन ने फोन की और कहा की सिखामनी सभी टिकट कैंसिल करवा दिया है । मेरे होश उड़ गए । अब क्या होगा ? जोनल सम्मेलन में जाना ही होगा , अन्यथा सभी क्या कहेंगे । किन्तु बाद में पता चला की मेरे टिकट सुरक्षित थे ।
दिनांक -18 जुलाई 2012-विजयवाडा
आल इंडिया लोको रुन्निंग स्टाफ असोसिएसन दक्षिण मध्य रेलवे का ग्यारहवा कांफेरेंस आयोजित था । सभी कार्यकर्ता और सदस्य एकत्रित हो रहे थे । मुझे सब्जेक्ट कमिटी का चैरमैन बनाया गया था । सभा के कार्यकर्म सुनियोजित ढंग से चल रहे थे । दोपहर बाद गुंतकल से काल आया । फोन मैडम ( पत्नी ) ने किया था । मैडम ने सूचना दी कि बड़ा बेटा राम जी अस्पताल में भरती है ! यह खबर घबराहट देने वाली थी और मै सभा गृह से बाहर आ गया । पूरी जानकारी ली । अस्पताल में भरती होने का कारण पूछा ? जबाब नकारात्मक थे , क्यों कि डॉक्टर ने कुछ बताने से इंकार कर दिया था । डॉक्टर मुझे ही बताने की जिज्ञासा जाहिर की थी । मैंने मैडम से पूछा -क्या मेरी उपस्थिति जरुरी है ? अगर ऐसा है तो मै तुरंत घर आने की चेष्टा करता हूँ । मैडम ने कहा कि आप कांफेरेंस की प्रक्रिया पूरी करके भी आ सकते है । मुझे कुछ शांति मिली और प्रोग्राम में यथास्वरूप शामिल रहा । अंततः रात्रि के साढ़े आठ बजे प्रोग्राम की समाप्ति हुयी । विजयवाडा से गुंतकल जाने के लिए कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं थी , अतः पसेंजर द्वारा यात्रा शुरू हुयी । ट्रेन करीब रात के नौ बजे छुटी ।
दिनांक -19 जुलाई 2012 -फिर से गुंतकल
दिनांक -19 जुलाई 2012 -फिर से गुंतकल
मै सुबह नौ बजे गुंतकल पहुंचा । घर आने पर पाया कि मैडम अस्पताल में है ।सुबह के नित्यक्रियाकर्म में व्यस्त हो गया , सोंचा कि रिफ्रेश होकर अस्पताल में जाऊं । शेव के लिया तैयार हो ही रहा था कि मोबाइल की आवाज आई । बड़े पुत्र की आवाज थी । मद्धिम स्वर । डैडी डॉक्टर साहब जल्दी बुला रहे है । मैंने शेव के कार्यक्रम को स्थगित कर जैसे - तैसे चल दी । अस्पताल घर के पास ही है । वार्ड में जाते ही नर्सो ने पे स्लिप के जेरोक्स और declaration फॉर्म की प्रक्रिया पूरी करने को कहा । मै अपने साथियों को कुछ कार्य सौप कर डॉक्टर से मिलने चला गया । डॉक्टर श्रीनिवासुलु उस समय महिला वार्ड में निरिक्षण पर थे । मामले की गंभीरता को देखते हुए मै उनसे वही मिलने चला गया , पर वे मुझसे वहां मिलने से इंकार कर गए और कहा की मै उनका इंतजार आई सी यु में करूँ , जल्द आ रहे है । करीब आधे घंटे बाद वे अपने चेंबर में आयें ।मै अन्दर गया । उन्होंने मुझे बैठने को कहा । मेरे बेटे की रिपोर्ट को देखते हुए उन्होंने कहा कि -मेरे बेटे को डेंगू बुखार है । ह्विट प्लेट लेट की संख्या डेढ़ लाख से 23000 हजार को आ गयी है । इस उपचार की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है , अतः जितना जल्द हो सके लालागुडा ले जाएँ ,वहां व्यवस्था होगा अन्यथा वे लोग प्राइवेट अस्पताल में रेफर करेंगे । मुझे जैसे सांप सूंघ गया । स्थिति भयावह थी । ट्रेन दोपहर और रात को थी । ट्रेन से हैदराबाद जाना , खतरे से खाली नहीं था । । अस्पताल से अम्बुलेंस की मांग की , पर एक ही अम्बुलेंस है कह कर कन्नी काट लिया गया । मैंने एक दोस्त को फोन की और टाटा सुमो को लाने को कहा । फिर क्या था , समाचार चारो तरफ फैलते देर न लगी । आधे घंटे में गाडी तैयार ।
गुंतकल से हैदराबाद का सफर
घर के सभी सदस्य चलने के लिए तैयार । हमारी यात्रा साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुयी । हैदराबाद पहुँचने में करीब 6 घंटे लगेगे । टाटा सुमो बंगलोर - हैदराबाद हाईवे पर दौड़ रही थी । किसी को भी मैंने रोग के बारे में नहीं बताई थी । मुझे पता था - समय बहुत कम है और बेटे की जान खतरे में है । कल क्या होगा ? किसी को नहीं पता ? हाईवे के रास्ते में एक दुर्गा जी का मंदिर है । कहते है - जो भी बिना पूजा किये इसे पास करता है , उसके साथ कोई न कोई अनहोनी होती है । हमने यहाँ पूजा की . नारियल फोड़े और प्रसाद खाते हुए आगे बढ़ चले । कर्नूल के करीब से बेटे की तबियत और बिगड़ने लगी , बुखार बढ़ने लगा । आँखे लाल हो गयी । बदन में दर्द तेज । अस्पताल ने बिना किसी औषधि / नर्स के बिदा कर दिया था । हमें भी जल्दी में कुछ नहीं सुझा था । पत्नी साईं बाबा की गुहार लगाये जा रही थी । बाबा बेटे की जान बचाना । मेरे दिल में धड़कन बढ़ रही थी । भगवान के सिवा , कोई नजर नहीं आ रहा था । रुमाल भींगा कर बेटे के सिर पर रखे थे । अपने साथियों को इतल्ला कर दी थी । वे हैदराबाद के लालागुडा अस्पताल में बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पांच बजे तक शहर के सीमा पर पहुँच गए । ट्राफिक जाम की वजह से सात बजे अस्पताल में पहुंचे । ड्यूटी पर अपातकाली डॉक्टर मौजूद थी ...डॉक्टर पद्द्माप्रिया । हम पति -पत्नी के उस डॉक्टर से अच्छे रिश्ते थे क्युकी वे गुंतकल अस्पताल में काम कर चुकी थी । उन्होंने स्थिति को भांप लीं और बिना देर किये ... तुरंत यशोदा अस्पताल को रेफर कर दी , जो एक कारपोरेट अस्पताल है । साढ़े साथ बजे हम यशोदा अस्पताल के इमरजेंसी में थे ।
दिनांक -20 जुलाई 2012 -की सुबह-शाम
मैंने तुरंत अपने असोसिएसन के सिकंदराबाद और हैदराबाद के पदाधिकारियों को फोन की । दिन भर लोको पायलटो की आवाजाही शुरू हो गयी । blood ग्रुप ओ पोजिटिव की जरुरत थी । अंततः तीन लोको पायलट श्री एन सत्यनारायण , श्री एस सूर्यनारायण और एम् शिवालकर चुने गए । एम् शिवालकर सहायक लोको पायलट की white प्लेट लेट को मेरे बेटे को समर्पित किया गया ।
दिनांक -21 जुलाई 2012 -प्लेट लेट
सभी देवो के देव महादेव ( एम् शिवालकर ) के खून की शक्ति रंग लायी । प्लेट लेट की संख्या बढ़ कर 20000 हो गयी । सभी के जी में जान आई । फिर क्या था । राम जी की दशा भी सुधरने लगी । शिर्डी से डॉक्टर मुकुंद सिंह की काल आई । मेरे रूआसे ध्वनि को वे परख लिए और उन्होंने पूछ - सर क्या बात है ? मै सब कुछ बता दिया । उन्होंने कहा -आप बाबा की भभूती पुत्र को चटायें , मै मंदिर में प्राथना के लिए जा रहा हूँ । बाबा ने भभूती पहले ही भेंज दी थी । मुझे तुरंत पूर्व की घटना याद आ गयी । पिछले महीने डॉक्टर साहब ने मुझे शिर्डी का प्रसाद और भभूती दी थी , जब वे शिर्डी से बंगलूर कर्नाटक एक्सपेस से जा रहे थे । मैंने वैसा ही किया । कुदरत की लीला गजब है ।
परिस्थितिया बदली । लोगो के आने का सिलसिला बढ़ने लगा । किन्तु अस्पताल के अन्दर बिना पास के अन्दर जाना मना है , एक पास पर एक ही व्यक्ति । सैकड़ो दुआओं के हाथ उठे । प्रतिदिन प्लेट लेट की संख्या बढ़ने लगी । 22 जुलाई को 30000 , 23 जुलाई को 40000 , 24जुलाई को 50000 । हमने डॉक्टर को कहला दिया था की जितना blood चाहिए , उतना देने के लिए हमारे लोग हमेशा तैयार है । यहाँ तक की इन्डियन एयर फाॅर्स के जवान भी तैयार थे । किन्तु जरुरत नहीं पड़ी । डॉक्टर धीमी गति से प्लेट लेट के बढ़ोतरी से चिंतित थे । अतः बोन मैरो जाँच की शंका जाता रहे थे । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेरे पुत्र को स्वस्थ घोषित कर 24 जुलाई 2012 को संध्या बेला में ACU वार्ड से साधारण वार्ड में सिफ्ट कर दिए ।
साधारण वार्ड -
धीरे - धीरे पुत्र की दशा में सुधार होने लगा । 25 जुलाई को प्लेट लेट की संख्या 70000 , 26 जुलाई को 100000 और 27 जुलाई को 1.5 लाख हो गए , जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरुरी सीमा है । अंततः सैकड़ो हाथो की दुआए और देवी - देवताओ के आशीर्वाद मेरे पुत्र को संकट से बचा लिए । 27 जुलाई को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया । 28 जुलाई को रेलवे अस्पताल / लालागुडा को रिपोर्ट किया । वापसी के राह में भी वही डॉक्टर मिली । दवा लिखने के बाद केश गुंतकल को रेफर हुआ । 28 जुलाई को रायलसीमा ( 17429 एक्सप्रेस) के द्वारा हम हैदराबाद से गुंतकल को रवाना हुए । हम 29 जुलाई 2012 , रात को बारह बज कर दस मिनट पर गुंतकल पहुंचे । 30 जुलाई को गुंतकल रेलवे अस्पताल के फिजिसियन से मिले और हमारे लोगो ने उसकी बहुत फजीयत की । उसकी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता ।
अनुभव का भंवर -
इसे क्या कहेंगे ?
1) अस्पताल में भारती की तारीख = 18 और इसके योग =9 ,समय =एक बजे दोपहर के आस- पास
2)लालागुडा पहुँचाने का समय =19 घंटे और इसमे भी =9
3)ACU में वेड संख्या = 9
4) साधारण वार्ड में दाखिल और कमरे की संख्या = 9 , मंजिल के तल्ले भी = 9
5)अस्पताल से डिस्चार्ज की तारीख =27 जुलाई और इसके योग =9
6)वापसी में ट्रेन संख्या = 1742 9 और इस संख्या के आखिरी में = 9
7)गुंतकल पहुँचाने का समय =रात के बारह बजे के बाद और एक के पहले , तारीख 29 जुलाई और इसमे भी आखिरी = 9
आखिर ये क्या है ? नौ देवियाँ या नौ ग्रह या नवरत्न या और भी बहुत कुछ । जो भी हो किसी शक्ति के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता ।
पुत्र का नाम - राम जी . इश्वर का नाम । जिस डॉक्टर ने लालागुडा रेफर किया उसका नाम भी - श्रीनिवासुलु
लालागुडा अस्पताल के आपातकालीन डॉक्टर का नाम - पद्मप्रिया ,यशोदा के प्रांगन में जिस डॉक्टर के निगरानी में इलाज चला - उनके नाम भी - शिवचरण और जिस अस्पताल में रेफर हुआ , उस अस्पताल का नाम भी यशोदा ( कृष्ण जी की माता जी/ पालनकर्ता )
जिनके blood कामयाब हुए , उनके नाम भी - इश्वर के
सत्यानारायण , सुर्यनारायण और शिवालकर । शिव जी संहारक है , शिव जी ने मेरे पुत्र को जीवन दान दी है , शिवालकर ।
इश्वर ने अपने भक्त को कभी नहीं रुलाई । जहाँ आस्था है , वहीँ भक्ति । जहाँ भक्ति है , वही शक्ति । मेरा परिवार उन सभी देवी - देवताओ और सभी सज्जनों को प्रणाम करता है , जिनकी दवा और दुआएं मेरे पुत्र को जीवन दान दिया है ।
गुंतकल से हैदराबाद का सफर
घर के सभी सदस्य चलने के लिए तैयार । हमारी यात्रा साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुयी । हैदराबाद पहुँचने में करीब 6 घंटे लगेगे । टाटा सुमो बंगलोर - हैदराबाद हाईवे पर दौड़ रही थी । किसी को भी मैंने रोग के बारे में नहीं बताई थी । मुझे पता था - समय बहुत कम है और बेटे की जान खतरे में है । कल क्या होगा ? किसी को नहीं पता ? हाईवे के रास्ते में एक दुर्गा जी का मंदिर है । कहते है - जो भी बिना पूजा किये इसे पास करता है , उसके साथ कोई न कोई अनहोनी होती है । हमने यहाँ पूजा की . नारियल फोड़े और प्रसाद खाते हुए आगे बढ़ चले । कर्नूल के करीब से बेटे की तबियत और बिगड़ने लगी , बुखार बढ़ने लगा । आँखे लाल हो गयी । बदन में दर्द तेज । अस्पताल ने बिना किसी औषधि / नर्स के बिदा कर दिया था । हमें भी जल्दी में कुछ नहीं सुझा था । पत्नी साईं बाबा की गुहार लगाये जा रही थी । बाबा बेटे की जान बचाना । मेरे दिल में धड़कन बढ़ रही थी । भगवान के सिवा , कोई नजर नहीं आ रहा था । रुमाल भींगा कर बेटे के सिर पर रखे थे । अपने साथियों को इतल्ला कर दी थी । वे हैदराबाद के लालागुडा अस्पताल में बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पांच बजे तक शहर के सीमा पर पहुँच गए । ट्राफिक जाम की वजह से सात बजे अस्पताल में पहुंचे । ड्यूटी पर अपातकाली डॉक्टर मौजूद थी ...डॉक्टर पद्द्माप्रिया । हम पति -पत्नी के उस डॉक्टर से अच्छे रिश्ते थे क्युकी वे गुंतकल अस्पताल में काम कर चुकी थी । उन्होंने स्थिति को भांप लीं और बिना देर किये ... तुरंत यशोदा अस्पताल को रेफर कर दी , जो एक कारपोरेट अस्पताल है । साढ़े साथ बजे हम यशोदा अस्पताल के इमरजेंसी में थे ।
यशोदा अस्पताल / सिकंदराबाद
डोक्टरो की टीम मुआयेने में जुट गयी । मेरे बेटे की जान खतरे में थी । किसी ने ग्लुकोसे के बोतल चढ़ाये । तो किसी ने खून निकले , जांच के लिए । बाद में किडनी के खराबी की आशंका की वजह से सिने और पेट के स्कैनिंग कराये गए । जांच जोरो पर थी । इस तरह की इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती। मेरा बेटा नरम पड़ते जा रहा था । दुआ के सिवा कुछ नहीं बचा था । मेरे पुत्र को ACU वार्ड में दाखिल कर दिया गया । जिसे ACUTE केयर UNIT के नाम से जानते है । हम सभी परिवार वेटिंग हॉल में रात गुजार रहे थे । पल - पल की जानकारी के लिए उत्सुक । रात के बारह बजे के बाद वार्ड से मुझे फोन आया । मेरा दिल बैठ गया । हे भगवान , मदद करना । मै जल्द ही लिफ्ट से छठे फ्लोर पर गया । मुझे अन्दर बुलाया गया । मैंने देखा ..मेरा पुत्र बिस्तर पर लेटे हुए था , उसे नींद नहीं आ रही थी । मुझे देख हल्का सा मुस्कुराया , जैसे कह रहा हो - डैडी मै बिलकुल ठीक हूँ आप चिंता न करें । मुझे हिम्मत आई , पूछा ? तबियत कैसी है । पेशाब नहीं हो रहा है । पेट फूल गया है । नर्स ने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया । हम दोनों की बाते पूरी होने के बाद उसने कहा - हमें जल्द white प्लेट लेट चाहिए , क्युकी प्लेट लेट की संख्या 13000 आ गयी है । मैंने कहा सिस्टर जैसे भी हो रात को ब्लड बैंक से मदद ले । अभी तो मै असमर्थ हूँ । सुबह इंतजाम हो जायेगा । ऐसा ही हुआ । ब्लड बैंक से white प्लेट लेट दिया गया ।दिनांक -20 जुलाई 2012 -की सुबह-शाम
मैंने तुरंत अपने असोसिएसन के सिकंदराबाद और हैदराबाद के पदाधिकारियों को फोन की । दिन भर लोको पायलटो की आवाजाही शुरू हो गयी । blood ग्रुप ओ पोजिटिव की जरुरत थी । अंततः तीन लोको पायलट श्री एन सत्यनारायण , श्री एस सूर्यनारायण और एम् शिवालकर चुने गए । एम् शिवालकर सहायक लोको पायलट की white प्लेट लेट को मेरे बेटे को समर्पित किया गया ।
दिनांक -21 जुलाई 2012 -प्लेट लेट
सभी देवो के देव महादेव ( एम् शिवालकर ) के खून की शक्ति रंग लायी । प्लेट लेट की संख्या बढ़ कर 20000 हो गयी । सभी के जी में जान आई । फिर क्या था । राम जी की दशा भी सुधरने लगी । शिर्डी से डॉक्टर मुकुंद सिंह की काल आई । मेरे रूआसे ध्वनि को वे परख लिए और उन्होंने पूछ - सर क्या बात है ? मै सब कुछ बता दिया । उन्होंने कहा -आप बाबा की भभूती पुत्र को चटायें , मै मंदिर में प्राथना के लिए जा रहा हूँ । बाबा ने भभूती पहले ही भेंज दी थी । मुझे तुरंत पूर्व की घटना याद आ गयी । पिछले महीने डॉक्टर साहब ने मुझे शिर्डी का प्रसाद और भभूती दी थी , जब वे शिर्डी से बंगलूर कर्नाटक एक्सपेस से जा रहे थे । मैंने वैसा ही किया । कुदरत की लीला गजब है ।
परिस्थितिया बदली । लोगो के आने का सिलसिला बढ़ने लगा । किन्तु अस्पताल के अन्दर बिना पास के अन्दर जाना मना है , एक पास पर एक ही व्यक्ति । सैकड़ो दुआओं के हाथ उठे । प्रतिदिन प्लेट लेट की संख्या बढ़ने लगी । 22 जुलाई को 30000 , 23 जुलाई को 40000 , 24जुलाई को 50000 । हमने डॉक्टर को कहला दिया था की जितना blood चाहिए , उतना देने के लिए हमारे लोग हमेशा तैयार है । यहाँ तक की इन्डियन एयर फाॅर्स के जवान भी तैयार थे । किन्तु जरुरत नहीं पड़ी । डॉक्टर धीमी गति से प्लेट लेट के बढ़ोतरी से चिंतित थे । अतः बोन मैरो जाँच की शंका जाता रहे थे । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेरे पुत्र को स्वस्थ घोषित कर 24 जुलाई 2012 को संध्या बेला में ACU वार्ड से साधारण वार्ड में सिफ्ट कर दिए ।
साधारण वार्ड -
धीरे - धीरे पुत्र की दशा में सुधार होने लगा । 25 जुलाई को प्लेट लेट की संख्या 70000 , 26 जुलाई को 100000 और 27 जुलाई को 1.5 लाख हो गए , जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरुरी सीमा है । अंततः सैकड़ो हाथो की दुआए और देवी - देवताओ के आशीर्वाद मेरे पुत्र को संकट से बचा लिए । 27 जुलाई को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया । 28 जुलाई को रेलवे अस्पताल / लालागुडा को रिपोर्ट किया । वापसी के राह में भी वही डॉक्टर मिली । दवा लिखने के बाद केश गुंतकल को रेफर हुआ । 28 जुलाई को रायलसीमा ( 17429 एक्सप्रेस) के द्वारा हम हैदराबाद से गुंतकल को रवाना हुए । हम 29 जुलाई 2012 , रात को बारह बज कर दस मिनट पर गुंतकल पहुंचे । 30 जुलाई को गुंतकल रेलवे अस्पताल के फिजिसियन से मिले और हमारे लोगो ने उसकी बहुत फजीयत की । उसकी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता ।
अनुभव का भंवर -
इसे क्या कहेंगे ?
1) अस्पताल में भारती की तारीख = 18 और इसके योग =9 ,समय =एक बजे दोपहर के आस- पास
2)लालागुडा पहुँचाने का समय =19 घंटे और इसमे भी =9
3)ACU में वेड संख्या = 9
4) साधारण वार्ड में दाखिल और कमरे की संख्या = 9 , मंजिल के तल्ले भी = 9
5)अस्पताल से डिस्चार्ज की तारीख =27 जुलाई और इसके योग =9
6)वापसी में ट्रेन संख्या = 1742 9 और इस संख्या के आखिरी में = 9
7)गुंतकल पहुँचाने का समय =रात के बारह बजे के बाद और एक के पहले , तारीख 29 जुलाई और इसमे भी आखिरी = 9
आखिर ये क्या है ? नौ देवियाँ या नौ ग्रह या नवरत्न या और भी बहुत कुछ । जो भी हो किसी शक्ति के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता ।
पुत्र का नाम - राम जी . इश्वर का नाम । जिस डॉक्टर ने लालागुडा रेफर किया उसका नाम भी - श्रीनिवासुलु
लालागुडा अस्पताल के आपातकालीन डॉक्टर का नाम - पद्मप्रिया ,यशोदा के प्रांगन में जिस डॉक्टर के निगरानी में इलाज चला - उनके नाम भी - शिवचरण और जिस अस्पताल में रेफर हुआ , उस अस्पताल का नाम भी यशोदा ( कृष्ण जी की माता जी/ पालनकर्ता )
जिनके blood कामयाब हुए , उनके नाम भी - इश्वर के
सत्यानारायण , सुर्यनारायण और शिवालकर । शिव जी संहारक है , शिव जी ने मेरे पुत्र को जीवन दान दी है , शिवालकर ।
इश्वर ने अपने भक्त को कभी नहीं रुलाई । जहाँ आस्था है , वहीँ भक्ति । जहाँ भक्ति है , वही शक्ति । मेरा परिवार उन सभी देवी - देवताओ और सभी सज्जनों को प्रणाम करता है , जिनकी दवा और दुआएं मेरे पुत्र को जीवन दान दिया है ।
( कृपया वैज्ञानिक टिपण्णी न करें = विज्ञानं ने सब कुछ दिया है । घास से दूध नहीं बनायीं । आज तक खून नहीं बना सका है ।)
रामजी खतरे से बाहर आ गये, देवों की कृपा हो गयी, ईश्वर करे कि स्वास्थ्य बना रहे।
ReplyDeleteबिल्कुल कोई शक्ति तो ही है जो हमारी आस्था और विश्वास को बनाये हुए है.....
ReplyDeleteबेटे को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो प्रभु से यही प्रार्थना है .... हमेशा स्वस्थ ,सुखी रहें ...शुभकामनायें
ईश्वर में आस्था हो तो बिगड़े काम भी बन जाता हैं। आपके पुत्र को ईश्वर दीर्घायु दे।
ReplyDeleteमैंने साईं बाबा के चमत्कार देखे है .वह हमेशा अपने भक्तों के दुःख दूर करते हैं.आपकी उन पर श्रद्धा है तो वो आपका कल्याण भी करते रहेंगे.
ReplyDeleteआपका बेटा ठीक हो गया.ये बहुत ख़ुशी की बात है.सरकारी अस्पताल अब भरोसे के लायक नहीं रह गए हैं.रेलवे अस्पताल भी उन्हीं में से एक है.
ॐ साईं राम.
साईं की बस कृपा है,नौ का चमत्कार
ReplyDeleteआस्था रखे प्रभू पर,वही करे बड़ा पार,,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
श्री राम के स्वास्थ्य का, प्रभु जी रक्खें ख्याल ।
ReplyDeleteकठिन परीक्षा ले रहे, कठिन जाल जंजाल ।
कठिन जाल जंजाल, आस्था बढती जाए ।
कर्म करे इंसान, वांछित फल भी पाए ।
धीरज संकट काल, भक्त गन जो धरते हैं ।
साईं सारे कष्ट, स्वयं से ही हरते हैं ।।
जन्म दिया जिसने हमें, वो ही रखता ख्याल।
ReplyDeleteदिनचर्चा के साथ में, मिलते बहुत बबाल।।
जिंदगी जब परीक्षा लेती है
ReplyDeleteतब प्रश्नपत्र कहाँ देती है
प्रश्न भी उसके उत्तर भी उसके
कापी भी उसकी नंबर भी उसके
पास करती है या फेल करती है
परीक्षाफल जरूर देती है
हम सोचते हैं हम कर रहे हैं
वो हमें कहाँ कुछ करने देती है
जो करना होता है खुद बा खुद
कर देती है हमें बस बता देती है !
पुत्र के अस्वस्थ होने पर पिता कैसा महसूस करता है वह आपने लिख दिया है. अब वह स्वस्थ है इससे खुशी हो रही है.
ReplyDeleteकष्ट का समय आया, चला गया| 'रामजी' के स्वास्थ्यलाभ हेतु आप सबको शुभकामनाएं|
ReplyDeleteप्रियवर, बहुत दिनों की आपकी चुप्पी ने हमे चिंतित कर दिया था ! चिरंजीव रामजी की बीमारी की कथा पढ़ कर चुप्पी का कारण पता चला ! परमात्मा की असीम कृपा से अब वह बिलकुल ठीक है और भविष्य मे भी स्वस्थ रहेगा ! प्रभु की ऐसी ही कृपा सदा सर्वदा आप सब पर सदा सर्वदा बनी रहे !इस दुआ के साथ !- आपके शुभाकांक्षी भोला कृष्णा
ReplyDeleteदवा और दुआ दोनों का मणि कांचन सहयोग सहयोगियों की वक्त पे इमदाद मिली और सबसे ऊपर आपकी आस्था .अंत भला सो भला ,कर भला हो भला ,अंत भले का भला .आपने कभी किसी का बुरा नहीं किया ,आपके साथ कुछ भी बुरा न होगा .शुक्रिया इस पोस्ट का आपके स्नेही साथियों का ईश्वर का ,नौ देवियों का .
ReplyDeleteआपकी स्थिति समझ सकता हूँ ... ईश्वर पे विश्वास रखने वालों को ईश्वर निराश नहीं करता ... राम जी को को प्यार ...
ReplyDeleteजिस के सिर ऊपर तू स्वामी,सो दुःख कैसे पाए.
ReplyDeleteआप पर प्रभु की असीम कृपा है.
परीक्षा भी देनी पड़तीं हैं जीवन में.
वह अपने भक्त को कभी निराश नही होने देता.
राम जी के स्वास्थ्य की मंगलकामना करता हूँ.
आपको व आपके समस्त परिवार को कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ईश्वर पर विश्वास करने वाले की हार नहीं होती.
ReplyDeleteजाहि पर किरपा राम के होई, ताहि पे किरपा करे सब कोई.....