यह तस्वीर ..शिर्डी के साईं बाबा की चावडी की है !
श्री गुरु देव चंडिका विद्यालय .जगतदल का जानी - मानी निजी बेसिक स्कूल
है ! जिसे गुरु जी अपने बल बूते पर संचालित करते थे ! इस क्षेत्र में गुरूजी के स्कूल की डंका बजती थी ! बच्चे दाखिला लेने से बेहद डरते थे ! क्योकि शैतानी या बदमाशी करने पर , बच्चो को बहुत ही कठोर सजा को झेलना पड़ता था !ऐसे विद्यार्थियों के पैरो में गुरु जी पांच या दस किलो के लक्कड़ बांध देते थे ( वह लक्कड़ लोहे के चैन में लगा होता था ..और ताले से पैर लाक करना पड़ता था ! ) . जब विद्यार्थी इसे उठा कर ..कंधे पर रख , घर जाते ..तो चलते - फिरते लोग फबतिया कसते और कहते - " क्यों जी बदमाशी क्यों करते हो , आदत छोड़ दो ..मै गुरु जी से
कह कर ..कल खुलवा दूंगा ! " गुरूजी भी ..चाहे कोई हो ..के सिपारिश पर लक्कड़ खोल देते थे !
पढाई - लिखाई में भी कमी नहीं रहती थी ! इस स्कूल में बेसिक से लेकर पांचवी तक की कक्षाए चलती थी !लगभग १९७४ या १९७५ की बात है ! उस समय जनसंख्या भी कम थी ! हर कक्षाओ में आठ या नौ लडके / लड़किया होती थी ! गलियों में ...... फिर आये ..बच्चे बहुत ही कम देखने को मिलते थे ! लोगो में शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ रहा था ! तो हां ...गुरु जी हमेशा स्कूल के मुख्य द्वार पर ही बैठते थे ! अगर कोई लेट आया तो उसे उनके बेंत के डंडे से मार जरुर खानी पड़ती थी !गुरूजी की उम्र काफी हो चला था ! उस समय उनकी उम्र करीब ६०/६५ से कम नहीं थे ! गुरु जी सादे धोती और मारकीन के बनियान ही पहनते थे !जितने गुस्सैल , उतने ही प्यारे ! उनकी अनुपस्थिति में या उनकी मदद ..उनके पुत्र श्री बृज बिहारी पाण्डेय जी करते थे !वे भी सफेद धोती और कमीज ही पहनते थे ..! इनका स्वाभाव भी गुरूजी जैसा ही था ! पुरे स्कूल में करीब सौ लडके / लड़किया होंती थी !
एक दिन मै..पिता जी के साथ बाजार जा रहा था ! गुरूजी पिता जी को बुलाये और मुझे स्कूल में दाखिला लेने का आग्रह किया !पिता जी भी मान गए ! मुझे गुरु जी के स्कूल में दाखिल कर दिए ! पढाई - लिखाई साधारण रूप में चलने लगी !मै अपने कक्षा में पढ़ने में अब्बल रहने लगा ! उस समय चौथी की परीक्षा बोर्ड लेवल पर होती थी ! गुरूजी की स्कूल सुबह दस बजे से शाम को चार बजे तक चलता था ! फिर संध्या क्लास पांच बजे शाम से लेकर सात बजे रात्रि तक लगता था ! संध्या क्लास में अनुपस्थित होने वालो को ..दुसरे दिन सजा भुगतने पड़ते थे !
बात उन दिनों की है , जब मेरी चौथी क्लास की बोर्ड लेवल की परीक्षा चल रही थी ! संध्या क्लास में बबुआ जी ( गुरूजी के पुत्र , जो प्रायः इसी नाम से ज्यादा प्रसिद्ध थे ) क्लास ले
रहे थे ! हम करीब नौ लडके थे , जो परीक्षा में भाग ले रहे थे ! बबुआ जी हमें अपने पास बुलाये ! हम सभी अपने किताब को लेकर उनके सामने गए और लाइन में खड़े हो गए !दुसरे दिन इतिहास के पेपर की परीक्षा थी ! चुकी मै सबसे तेज माना जाता था ,अतः बबुआ जी के सबसे करीब खड़ा था !बबुआ जी ने एक प्रश्न पूछा - मुहम्मद गोरी भारत पर एक लाख सैनिको के साथ आक्रमण किया और बाबर के पास पंद्रह हजार सैनिक थे ! तो किसके पास ज्यादा सैनिक थे ?
सभी साथियों ने मुहम्मद गोरी कहा , जब मेरी बारी आई तो मेरे मुह से बाबर निकल गया !बाबर कहना था..की एक जोर दार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़े ! मै तिल - मिला कर रह गया !मेरे हाथ गाल पर और आँखों के कोने भींग से गए ! मै अपने सिट पर बैठ कर खूब रोया था ..सिसकता रहा था और मेरे साथी ..मेरे पैरो को सान्तवना वश थपथपाते रहे ! मै कभी मार नहीं खाता था ! उसकी हुँक दिल में थी !घर जाने के बाद.. मेरे पडोशी के लड़को ने सारी घटना मेरे माँ को बता दी !माँ ने प्यार से गाल को देखा ..चाह कर भी कुछ न
बोल सकी थी ! सिर्फ इतना ही कहा - पढ़ लो परीक्षा है ..पढोगे तो तुम्हारे काम ही आयेगा !
परीक्षा ख़त्म हो गए ! परिणाम के दिन भी आ गए ! स्कूल के सामने चौतरे के ऊपर मेज और तीन कुर्सिया लगा दी गयी थी ! मेज के ऊपर छोटा सा लौड़ स्पीकर रख दिया गया था !
हम सभी बच्चे मिटटी के भाड़ में रसगुल्ले लेकर ..तो कोई गेंदे के फूल का हार लेकर अपने - अपने सिट पर बैठे थे !आस - पास के लोगो का भीड़ जुटना शुरू हो गया था ! दीक्षित जी आये , जो उस समय अध्यक्ष थे ! अजब के समय थे ...किसी बच्चे को फेल की परिभाषा मालूम नहीं थी !सभी के हाथो में मिठाईया !परिणाम की घोषणा शुरू हुई ! सभी पास ! अंत में मेरे नाम की घोषणा ..बोर्ड की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उतीर्ण ..और एक उपहार दिया गया ..एक पुस्तक --जिसका नाम था .." बच्चो की अच्छी कहानिया "! सभी ने तालियों की धुन पर मुझे स्वागत किया ! जी हाँ .आज भी वह पुस्तक गाँव में सुरक्षित रखी हुई है !
उन दिनों की याद आते ही दिल झूम उठता है ! ओ दिन आज कहा ? गुरु गुरु नहीं ..शिष्यों की क्या कहना !शिक्षा धंधे का रूप ले लिया है ! कही गुरु पीट गया ..तो कही शिष्य ने आत्म ह्त्या कर ली !आज भी गुरुओ में ओज है ..भुनाने वाले नहीं ! शिष्यों में उत्साह है ..पर तरंग नहीं ! जोश है..होश नहीं !लगन है पर मगन नहीं ! जीवन में अनुशासन लुप्त .. बिहीन होते जा रहा है ! शिष्यों में
दुराचार दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है ! गुरु बिहीन शिक्षा ..नए - नए रूप में असामाजिक तत्वों को जन्म दे रही है ! जिसका परिणाम समाज को हर दिन एक नए रूप में भुगतना पड़ रहा है !
जिन्होंने गुरु नाम के मन्त्र का जाप किया ..जिन्होंने अपने जीवन में गुरु के वाणी को अपनाये ..गुरु का आदर- सत्कार करना सिखा ....उनके ही जीवन में बहारे आई ! सदाचार आये !
वाणी गंभीर हुए और सदा दीपक की तरह प्रकाश बिखेरते रहे ..बिखेर रहे है ! इसी लिए तो कहते है बिन गुरु ज्ञान कहा से होई ! माँ जन्म देती है ..गुरु जीवन की नैया खेने का पतवार देता है ! माँ के बाद ..अगर किसी का कोई स्थान है तो वह है गुरु ......कहते है --
गुरु गोविन्द दोउ खड़े , काके लागु पाय !
बलिहारी गुरु आप की ,गोविन्द दियो बताय !
जीवन में गुरु को अपनाते ही ...बहुत सी बुराईया स्वतः नष्ट हो जाती है !आज भी कभी - कभी गुरूजी और बबुआजी की याद आ ही जाती है ! अब न गुरु जी है न बबुआजी ! पर वह स्कूल आज भी चल रहा है , किन्तु वह रौनक और चाह नहीं दिखती ! मुझे किसी को गुरु कह लेने और गुरु बना लेते ही काफी शांति महसूस होती है !जय गुरु देव ..
आज अपने बच्चो और अन्य बच्चो में झांकने का प्रयास करता हूँ पर वह गुरुत्व नहीं !
सीखने की अभिलाषा हो तो परमात्मा गुरुरूप में सर्वत्र उपलब्ध है
ReplyDelete"अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम".अर्जुन ने जब सीखने की इच्छा से खुद को शिष्य मान कर भगवान कृष्ण से याचना की'शिष्यते अहं शाधि मां त्वां प्रपन्न्म' तभी गीता का अनुपम ज्ञान मिल पाया.
आपने अति सुन्दर और रोचक ढंग से गुरु महिमा को प्रकट किया.परमात्मा हमारे जिज्ञाशु भाव से प्रसन्न होकर ही गुरु रूप में प्रकट होते हैं.So,we should always have a desire to learn.
गुरुओं की कृपा निश्छल होती है, उसे प्रसाद के रूप में लेना चाहिये।
ReplyDeleteसच में गुरुओं की कृपा जीवन सफल करने की राह सुझाती है..... अर्थपूर्ण रोचक आलेख
ReplyDeleteजीवन में गुरु को अपनाते ही ...बहुत सी बुराईया स्वतः नष्ट हो जाती है -सत्य वचन!!
ReplyDeleteसुन्दर रोचक शिक्षाप्रद प्रसंग ।
ReplyDeleteआपका संस्मरण प्रेरक है.
ReplyDeleteरोचक आलेख
ReplyDeleteहोली की सपरिवार रंगविरंगी शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
गुरु की महिमा वही समझ पता है जिस पर हरि-कृपा होती है।
ReplyDeleteआपका यह संस्मरण ,मन में बड़ा गहरा उतर गया .संस्मरण के साथ उसके लेखक का व्यक्तित्व जुड़ जाता है उसका प्रभाव भी कम नहीं है .आज की दुनिया में यह सब बहुत दुर्लभ हो गया है -ऐसे जीवन और ऐसे व्यक्तित्व के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteदेर से आने की क्षमा चाहती हु --रोचकता से भरपूर आपका यह लेख मुझे बहुत पसंद आया --कभी कभी जिन्दगी में कोई ऐसा हादसा हो जाता है जिससे सारी जिन्दगी ही बदल जाती है --मेरे भी एक ऐसे ही टीचर हुए है जो हमे रुल से मारा करते थे पर उनके सिखाए हुए 'पहाड़े 'मुझे आज भी याद है --धन्य है वे गुरु जो शिष्य का ही ख्याल रखते थे
ReplyDeleteआज के गुरु तो सिर्फ 'क्लासेस'लेकर इतिश्री कर देते है जो प्राइवेट क्लास ज्वाइन करता है वह पास हो जाता है ?
बहुत खुबसुरत संस्मरण जी हम भी उस समय जब स्कूल जाते थे तो गुरु जी को देख कर आंखे झुक जाती थी, ओर मार पडने पर घर मे नही बताते थे, वर्ना घर पर फ़िर से मार पडेगी, लेकिन आज कल घर मे बाप तेयार हो जाता हे गुरु पर केस करने के लिये... आज ना वो गुरु रहे ना शिष्य बहुत सही लिखा, जो बचे हे उन्हे कोई पहचानता नही..
ReplyDeleteबहुत रोचक और शिक्षाप्रद संस्मरण ...
ReplyDeleteअब वे गुरु कहाँ ?
rochak aalekh.....
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