थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।
ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का - कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।
उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर गया है । दाल मथना बाकी है ।
अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ । सभी के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ देता था और आज हम सभी लोको पायलट विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।
फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल दिया गया और नए सिरे से तैयारी की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।
होनी तो होके रहे, अनहोनी न होय
ReplyDeleteजाको राखे साइयां मार सके न कोय,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
यही मेरा मानना है, हम सभी एक चौराहे पर खड़े होते हैं और मृत्यु केवल एक सिग्नल के इन्तेज़ार में होती है, जस्ट ए ग्रीन लाईट......
Deleteमृत्यु कभी रेड लाईट नहीं होती.
अनहोनी होय नहीं, होनी होय सो होय.
ReplyDeleteआप बने रहेंगे, छोटे छोटे विघ्न ईश्वर हरेंगे।
ReplyDeleteसच है ...ईश्वर ही रक्षा करता है हम सबकी....
ReplyDeleteआप सभी को शुभकामनायें-
ReplyDeleteछिपकलियों ने कई की, हालत रखी बिगाड़ |
छिपकलियों की ले रहे, बड़े खिलाड़ी आड़ |
बड़े खिलाड़ी आड़, पुराना रद्दी राशन |
मध्याहन का भोज, बांटता यही प्रशासन |
यह संक्रमित अनाज, राज इनका न खोले |
छिप जाते दुष्कर्म, नहीं छिपकलियाँ बोले ||
जाको राखे साँई !
ReplyDeleteकिसी भलाई का बदला दे दिया भगवान ने
ReplyDeleteलोगों की जिंदगी में अक्सर ऐसा कुछ ना कुछ घटित हो जाता है इस लिए तो कहते है 'जाको राखे साँइया मार सके न कोय...jai sai ram.
ReplyDeleteआपकी सूझबूझ से सबकी जान बच गई जी
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