यात्रा में मानवी सहकारिता , संयोग , मिलन और अपनापन का एक अनूठा समिश्रण चार चाँद लगा देता है । कभी - कभी यह दुखदायी भी बन जाता है । समयाभाव की वजह मुझे ब्लॉग से दुरी बनाने के लिए मजबूर किये बैठी है । संक्षिप्त में पोस्ट लिखना मेरी मजबूरी बनते जा रही है । एक समाचार मुझे उद्वेलित कर गयी ।
परसों की बात है । जनरल डिब्बे में दो महिलाये बातों - बातों में ..इस कदर ---- सिट के लिए झगड़ बैठी की एक ने दुसरे की गले को ऐसे दबा दिया , की उसके प्राण पखेरू उड़ गए । माँ के शारीर को पकड़ छोटे बच्चे का बिलखना ....सभी को बिचलित कर दिया । मामला गंभीर था . गाडी रुक गयी । पुलिस आई उस महिला को पकड़ कर ले गयी । पत्रकारों का झुण्ड उमड़ पड़ा । कल समाचार जरूर छपी होगी ।
यात्रा में सावधानी , बरतनी जरूरी है।
दुखद है, विवाद को संवाद से सुलझाया जो सकता है।
ReplyDeleteआश्चर्य जनक दुखद घटना,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
आश्चर्य जनक दुखद घटना,,,,
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ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteअफसोसजनक.... क्रोध पर काबू तो हर जगह ज़रूरी है .
ReplyDeleteइस दौर में मेह्रूमियत ने सुविधाओं की आदमी को कितना उग्र बना दिया है .मुंबई में एक आदमी ने चाल में दूसरे की इस बात पे जाँ ले ली वह पब्लिक लेट्रिन से देर से निकला था .सुविधाओं का अकाल इस देश में जो करा दे सो कम .दूसरे छोर पर वह लोग हैं जो हवाई सफर में भी केटिल क्लास ही देखतें हैं .एक तरफ बे -शुमार सुविधाएं दूसरी तरफ बे -शुमार तंगी .
ReplyDeleteठीक कहतें हैं प्रधान जी ,पैसा पेड़ पे नहीं लगता ,लगता तो ये वंचित /वंचिता तोड़ लेतीं.
मार्मिक और दुखद प्रसंग जो बतलाता है आम जन कितना खीझा हुआ है .गनीमत है अब रेल कोयले से नहीं चलती .डीज़ल से चलती है जीपे सब्सिडी है .
आश्चर्यजनक घटना है।
ReplyDeleteदुखद घटना. कौन हमसफर कैसा निकले क्या पता. लेकिन अन्य यात्रियों को बीच-बचाव करना चाहिए था.
ReplyDeleteजब उस महिला ने दूसरी महिला का गला मात्र एक सीट के लिए दबाया ।तो वहाँ बैठे अन्य यात्रीयो की मानवता क्या घास चरने गई थी ।वहाँ तो निर्णायक की भूमिका मेँ वहाँ बैठे सहयात्री ही थे।जिन्होने वहाँ बैठकर सिर्फ तमाशा देखना बेहतर समझा।किसी की दुनिया लुट गई ।ओर किसी ने मात्र तमाशा देखा।हाय रे मानवता तू कहाँ चली गई ।क्या हो गया मेरे भारत के मानवो को |ऐसे मानवो पर सौ सौ बार धिक्कार है।
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