Friday, March 16, 2012

....... माँ का आंचल ......



माँ पलंग  से उतर  ..तुरंत अपने अंक में भर ली  ! मेरी कपकपी दूर हो गयी ! माँ के आंचल से बड़ा सुख , इस दुनिया के किसी  तम्बू में नहीं है ! वह घबडा गयी ! वह घबरायी हुयी - अमला  ( मेरी छोटी बहन ) से बोली --"  जा ..बेटी  जरा मिर्ची  या काली मिर्च लाओ !" बहन  ने माँ के आज्ञा का तुरंत  पालन किया और  तुरंत हाजीर  हो गयी और माँ के हथेली पर रख दी ! माँ  मेरे तरफ मुखातिब हो बोली - " लो बेटा इसे खाओ !" मैंने न में सिर हिलाई , आनाकानी की  किन्तु माँ नहीं  मानी ! जबरन मुझे काली मिर्च खानी ही पड़ी ! तब तक छोटी दादी , चाची और कई लोग आँगन के प्रांगन  में हाजिर हो गए थे ! मेरे आंख में आंसू आ गए  ! काली  मिर्च काफी तीता लग रहा था ! 

माँ ने पूछा - " कैसा लग रहा है ? "   ....." बहुत तीता !" मैंने अपने हाथो से आँख के पोरों पर लुढ़क रहे आंसू के बूंदों को पोंछते हुए कहा ! फिर माँ बोली -" कुछ नहीं हुआ ! वहां  क्यों गए थे ? उस तरफ नहीं जाना था !" और माँ मेरे आंसुओ को  अपने साड़ी के आँचल से पोछने लगी ! मेरा दिल भी हल्का हो गया ! मैंने देखा , माँ के आँखों में भी आंसू भर आयें थे ! जो मौन मूक थे ! छोटी दादी  और सभी ने कौतुहल वस्  पूछ बैठे - " आखिर ऐसा  क्या  हो गया जी ? जो इतनी घबडाई हो !" 
"  इसी से पूछ लीजिये  ! " - माँ ने कहा और सबकी नजर मेरे तरफ ! 
" मेरे पैर के नजदीक से बड़ा  सांप गुजर गया था ! और क्या ? " मैंने  भी संक्षेप में ...अनमनी - शरारती   अंदाज में उत्तर दे दिया  ! आखिर बचपना जो था ! उस समय सांप या किसी जहरीले जंतु से बड़ा भय लगता था ! सभी के मुख से बस एक ही आवाज - "  वापरे ..वाप !" गोरखनाथ बहुत नसीब वाले हो ! सभी मेरे मुख को देखते रह गए !

जी हाँ  ! बिलकुल सही और सत्य घटना है , जब एक दफा , एक लम्बा सांप  , मेरे पैर के  बहुत करीब से गुजर गया था !
 घटना  कुछ  इस प्रकार है --
 मई के महीने थे  ! स्कुलो में छुट्टिया हो गयी थी ! अतः  पिताजी सपरिवार कोलकाता से गाँव आ गए थे ! उस समय कुछ संभ्रांत परिवारों को छोड़ , किसी के भी घर में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! स्त्री हो या पुरुष ..सभी को शौच के लिए गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! फिर भी किसी की ये हिम्मत नहीं होती थी कि किसी के भी बहु -बेटियों को छेड़े ! 

कारण एक संस्कार और सभी की इज्जत कि भावना जिन्दा थी ! सभी रीति और रिश्ते की भैलू समझते थे ! सभी के दिलो में बड़ो के प्रति इज्जत और छोटो के प्रति प्यार भरा था ! जिसकी आज - कल की आधुनिकता की होड़ वाली दुनिया में आभाव  ही आभाव नजर आता है ! जो समाज में ब्याभिचार को जन्म देने के लिए काफी है !


! दोपहर का समय ! मुझे शौच लगा ! मेरी उम्र करीब तेरह वर्ष की  होगी ! मै अकेले खेतो की तरफ निकल पड़ा ! शहर में रहने की वजह से - खुले मैदान में शौच की आदत नहीं थी ! शर्म की वजह से एक गन्ने के खेत में जा बैठा ! कुछ देर बाद मुझे सरसराहट की आवाज सुनाई दी ! गन्ने के पत्ते हिलने लगे , जो जमीन पर पड़ी हुयी थी ! मुझे सियार या भेडिये का शक हुआ ! बैठे - बैठे ही  सिर आस - पास घुमा कर  देखने लगा ! कुछ भी नजर नहीं आया ! अचानक पैर के करीब नजर गयी ! देखा एक बड़ा ( करीब दो मीटर का होगा ) और मोटा सांप रेंगते हुए मेरे सामने से पीछे की ओर जा रहा है ! मेरे खून सुख गए ! जरा भी हिला नहीं ! उसके चले जाने तक स्थिर बैठा रहा ! कुछ क्षण रुक कर भाग खड़ा हुआ ! शरीर कांप रहे थे ! जैसे - तैसे घर आया और सारी घटना , माँ को कह सुनाई ! 


कहते है - जिसे सांप काट लेता है , उसे मिर्च या काली मिर्च की तीतापन महसूस नहीं होता ! यह कहाँ तक सही है , मै भी नहीं समझता ! शायद इसी से अभिभूत हो माँ ने मुझे काली मिर्च खाने को दी थी ! 

इस घटना को सुन सभी दंग रह गए ! माँ से ज्यादा संतान का दुःख किसी को नहीं महसूस होता ! माँ और उसका भय   वाजिब था ! दूसरी माँ मिल सकती है , पर माँ का दूध नहीं मिल सकता ! माँ के ऊपर  अपने सारे प्यार और सभी सुख ... न्योक्षावर कर देने पर भी  ...हम उसके  दूध की कर्ज....   अदा नहीं कर सकते  !    माँ तो माँ होती है !
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28 comments:

  1. पहली बार पता चला, कि मिर्च से यह पता लगाया जा सकता है।

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    1. सर जी -- गाँव के लोगो के अपने अनुभव है !तुरंत बीस के असर की जानकारी के लिए !आभार

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  2. डाक्टर साहब . बहुत - बहुत आभार ! आज मै सोलापुर जा रहा हूँ ! रविवार को लौटने पर - चर्चा मंच पर आऊंगा !

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  3. सार्थक पोस्ट ...सच माँ बढ़कर कुछ नहीं

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  4. माँ बढ़कर कुछ नहीं,सुंदर सार्थक प्रस्तुति,....

    MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  5. bahut sarthak post.......jankaari mili so alag.

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  6. कह नहीं सकते कैसा टोटका है ?लिटमस पेपर टेस्ट भी हो सकता है .सांप के दंश का पता लगाने का .बहर सूरत फिलवक्त कुछ कहने की सूरत में नहीं हूँ अलबत्ता माँ की ममता का तो कोई सानी हो ही नहीं सकता वह बहु विध नजर उतारती है बच्चे की .'आलतू ,पालतू आई बला को ताल तू '.मार्मिक प्रसंग माँ का प्रेम एक स्वार्थ हीन छाता होता है जो धुप छाँव से हमारी हिफाज़त करता है .

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  7. सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...

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  8. sunder sarthak post .badhai

    mere blog par aapna anmol smaye dene ke liye abhar

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  9. maa to bas maa hoti hai badhiya prastuti.

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  10. यह पोस्ट और लिंक की गई पोस्ट दोनों को पढ़ा है. माँ की ममता से बढ़ कर और क्या हो सकता है. वह तो अन्य जीवों की मासूमियत भी पहचानती है. आपकी अभिव्यक्ति की सरलता और सहजता बहुत अच्छी लगी.

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    1. सर जी बहुत - बहुत आभार ! माँ सर्वोपरि उच्च है !

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  11. ma se badh kar kuchh bhi nahi hota hai ma bina svarth bachche ke liye jiti hai ............
    abhar
    rachana

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  12. माँ तो माँ होती है...सुंदर प्रस्तुति...

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    1. आभार करुना जी ! माँ की तुलना किसी से नहीं हो सकती ! माँ अतुल्य है !

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  13. बहुत सुन्दर लेखन...
    दिल को छू गयी...
    हर बेटा काश समझे माँ की कीमत....

    सादर.

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  14. जी, एकदम सही कहा, माँ तो माँ होती है।

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    1. expression और स्मार्ट इंडियन जी आप दोनों का बहुत - बहुत आभार !

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  15. Ati sundar maa to ma hoti hai maa se badkar koe nhi

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