हम लोको पायलट जीवन में अजीव सी जिंदगी जीते है ! वह भी ड्यूटी के वक्त .! जीवन चलने का नाम है और चलती का नाम गाड़ी ! रेलवे की ट्रेन चौबीसों घंटे चलती और दौड़ती रहती है ! इस दौड़ में दर्शक......ये यात्री और उनकी गवाह ... ये लोको पायलट ही होते है ! ट्रेन नदियों- नालो ,जंगलो -झाडो , पर्वत - पहाड़ो से गुनगुनाती हुई निकलती रहती है और ये लोको पायलट ...सजग और होशियारी पूर्वक ...समय के साथ ..जीवन की गीत गाते हुए ...सभी को उस पार .... दूर नियत स्थान पर ले जाकर सुरक्षित छोड़ देते है ! उतरने वाले ..एक टक भी इनके तरफ नहीं देखते, कितनी आत्मीयता है !
सिटी बजी ...और फिर यह गाड़ी चल दी ! उसी धुन और राग को अलापते ! जीवन भी तो एक गाडी ही है ! इसे जैसे चाहो ...चलाओ ! उस पर भी इस लोकतंत्रीय भारत वर्ष में ! लोक - तंत्र सबके लिए ..समानता का अधिकार देता है , पर असलियत दूर ! किसी के पास अरबो की सम्पति है ,तो कोई दाने - दाने के लिए मोहताज है ! ये कैसी व्यवस्था ?
अब आये विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! हम लोको पायलट ट्रेन की भागम - दौड़ में ..इन दो रेल की पटरियों ( या जीवन की सुख - दुःख ) के बीच ..बहुतो को आत्महत्या या मरे हुए देखा है ! मरने वाले इंसान हो या जानवर या पशु - पक्षी ...सभी घटनाए अपने - आप में कुछ शब्द छोड़ जाती है , जिन्हें व्यक्त करना या शब्दों में बांधना ...बड़ा ही कठिन जान पड़ता है ! यह तो सच है की हमें किसी ने बनाया है ! माता - पिता हो या भगवान ...जो भी मान ले ! उसी तरह मृत्यु भी ..इस सृष्टी की एक अजूबा है ! जो सत्य है ! सभी महसूस करते है ! जानते है ! फिर भी बेवजह , जबान पर भी लाने से डरते है ! किन्तु इससे कोई भी नहीं बचेगा ! बचेगा सिर्फ हमारे कर्म और धर्म से कमाई हुयी ..सम्पति !
जी ,आज ( १८-०४-२०११ ) मै ट्रेन संख्या - १२१६३ एक्सप्रेस ( दादर -चेन्नई सुपर ) वाडी जंक्शन से लेकर गुंतकल आ रहा था ! यात्रा के दौरान एक अजीव घटना घटी ! जिसे मैंने व्याख्या कर यही पाया की मौत भी सभी को बचने का चांस देती है ! ठीक उसी तरह जैसे - मृत्यु दंड के अपराधी को ..देश के राष्ट्रपति का स्वर्ण चांस !
हुआ यूँ की एक कुत्ता ( मटमारी - मंत्रालयम स्टेशन के बीच ) अचानक दो पटरी के बीच आया ! उसे जब ट्रेन के आने की आभास हुआ, वह तुरंत पटरी से बहार गया ! बाहर जाकर फिर ..पटरी के बीच में आया ! बाहर गया और फिर ...वापस पटरी के बीचो-बीच आया ! सामने दौड़ाने लगा ! तब - तक ट्रेन नजदीक और वह एक जोर झटके के साथ ...मृत्यु लोक को सिधार गया !
क्या इस घटना से ऐसा नहीं लगता की मृत्यु भी ...सभी को एक चांस जीने के लिए देती है ?
बिल्कुल देती है। अंततः जिसे जितना जीना होता है,उतना ही जीता है।
ReplyDeleteकभी कभी समझ नहीं आता है कि कौन सा स्थान सुरक्षित है।
ReplyDeleteविचारणीय लेख ....
ReplyDeleteजिंदगी-मौत की आँख मिचौली चलती ही रहती है |
जब आती हे तो कोई नही रोक सकता, मोत ऎसी हे जिस क स्थान ओर समय पहले से निशचित हे, बाकी तो बहाने ही हे
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteदेश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर,कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं.
ReplyDeleteजी हाँ, मौत सभी को सोचने को मजबूर करती है.भगवान की खोज की वजह भी तो शायद मौत ही है.लेकिन ,अफ़सोस हम भूले फिरते हैं
'कबीरा गर्व न कीजिये ,काल गहे कर केश
न जाने कित मारिह है,का घर का परदेश'
इस घटना को पढ़ कर तो यही लगा जैसे सभी को एक आखरी चांस मिलता हो
ReplyDeleteईश्वर जब तक आदेश नही दे देता तब तक मोत्त भी किसी का आलिंगन नही करती है --जब उसकी साँसे खत्म हुई तो अचानक वो ट्रेन के सामने आ गया --
ReplyDeleteसच में .....कुछ नहीं होता जब तक उसके होने का समय ना आये.....
ReplyDeleteवो कुछ समय के लिये यमराज जी के दूत चाय पीने लग गये होंगे...और उस चान्स को कुत्ता भुना नही पाया.....अच्छा घटना-व्रत्त...बधाई..
ReplyDeleteये पोस्ट झंझोड़ने वाली है ... किसी भी मोत को देखना और फिर उस पर सोचना ... कंपा देने वाला अनुभव है ...
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletebahut hi anuthe andaaz me aapne mout ke roop me ekyatharthpurn sachchai ko bayaan kiya hai .
yah bilkul sach hai ki mout to aani hi hai ek din,par fir bhi ham jubaan par uska naam laate darte hain .ya to insaan ki jimmedariyan purn ho jaaye to bhi vah mout se ghabraata hai aur jiski adhuri rah jaaye vato chahta hi nahi hai par mout to kisi ka intjaar nahi karti vah kisi bhi roop me kisi bhi bahaane jidgi ki dor ko apne saath khinch hi le jaati hai.
mere blog par aane v itni samvedan sheel prastuti ke liye
hardik abhinandan
avam badhai swikaaren
poonam
Maut ka kya hai wo to ek din maaregi...main to bas zindgi se darta hun....
ReplyDeletekhair...jab jab jo hona hota hai tab tab wahi hota hai...bahut badhiya vicharotejjak post. badhayi sweekar karein...
@Poonam ji.
ReplyDelete@vijay Ranjan ji
I heartily congratulation both of you and these valuable comments .
Yes , We do get a chance to survive but the luck works here also .
ReplyDeletemout ko is tarh samne dekhana behar daravana hai ...mout ne us nireeh prani ko chance diya par vah uska upyog nahi kar paya yahi uski niyati thi...
ReplyDeleteमौत कभी मौका नहीं देती बचने का।
ReplyDeleteउसका दिन और समय निश्चित होता है।
होनी तो हो के रहे
ReplyDelete