Monday, April 25, 2011

दिल न तोड़ें .......handle with care

                                    चित्र में -बाए से चौथा--  मेरे बालाजी....... ..नृत्य करते हुए !
                  बच्चे बहुत भाऊक होते है ! विशेष कर बचपन में ! उन्हें अच्छे - बुरे की परिपक्वता नहीं होती ! बात - बात पर रूठना , गुस्से करना ,बहाना बनाना ,हिचकिचाना ,नक़ल करना , आदि ख़ास बाते ...बच्चो में प्रमुखता से पायी जाती है ! इन सभी गुणों का बड़ो में भी पाया जाना ...एक बचपनी हरकत से कम नहीं ! इसीलिए तो कहते है -बुढापा बहुधा बचपन का पुर्नागमन  होता है !

                       इन सभी बातो के मद्दे नजर यह जरुरी है की बच्चो के साथ ..बड़ी सावधानी से वर्ताव किया जाय ! माता - पिता हो या गुरुजन .......बच्चो के  मनोविज्ञान को समझ कर ही ....डाटने / फटकारने / और अपने विचार प्रकट करने  की कोशिश होनी  चाहिए ! बच्चे प्यार के भूखे होते है ! प्यार से इन्हें कुछ भी कहा या समझाया जा सकता है !

                        चाणक्य ने कहा था --" माता - पिता / गुरुजन को अपने बच्चो / शिष्यों से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए ! समयानुसार माता - पिता को बच्चो को डांटने / गुरु को शिष्य को पीटने से नहीं हिचकना चाहिए ! ज्यादा प्यार उद्दंड बना देता है  और बच्चे सही मार्ग से भटक जाते है !"

                        संक्षेप में सोंचे तो हम यह पाते है की कोई भी  माता - पिता / गुरु  का ....व्यवहार  बच्चो के लिए उपयोगी और मददगार ही होता है ! कोई यह नहीं चाहता की उसका शिष्य या संतान ...दुनिया की नजरो में अयोग्य  ,दुराचारी और जीवन की दौड़ में नाकाम रहे ! बच्चे यदि शांत प्रिय और आकर्षण के धनी हो तो ...सोने पे सुहागा ! किन्तु बच्चो में नक़ल की प्रवृति ...बड़ी तेज होती है ! अभिभावक / गुरुजन में गलती हो , तो ये आसानी से ग्रहण कर लेते है ! जिससे हमें काफी सतर्क रहनी चाहिए ! इसीलिए तो कहते है --" पारिवारीक संस्कार का बच्चो पर काफी प्रभाव पड़ता है ! " यानी जैसा बांस , वैसी बांसुरी !

                      बहुत सी बातें होती है , जिन्हें हम अभिभावक गण ..बच्चो के सामने प्रकट नहीं करे , तो बेहद सुन्दर !जैसे -माता - पिता  का आपस में झगड़ना ,दूसरो की निंदा करना ,किसी को भद्दी गाली देना , किसी दुसरे बच्चे की शेखी बघारना इत्यादी ! अच्छी देख - भाल ..पौधे को उन्नत और सुदृढ़ बनाती है!  आईये एक सुन्दर बच्चो के उपवन और भविष्य के तारो की सृजन में लग जाएँ ! बच्चे ही हमारे कल की आलंबन है !

                      आज - कल परीक्षा और उसके परिणामो के दिन है ! सफलता और असफलता ..आएँगी , कोई रोयेगा , कोई रुलाएगा ! किसी ने आत्म -ह्त्या की, तो  किसी ने आग लगायी , तो कोई तीन मंजिले भवन से नीची छलांग ! आये दिन  अखबार लिखेंगे और हम पढेंगे ! कब क्या होगी किसी को नहीं मालुम ! इस विषय पर सोंचने के लिए बाध्य होना पड़ा और पुरानी यादे तरो - ताजा हो मष्तिष्क  पर घूम गयी ! आप भी देख लें -

                  तारीख -०४ / ०५-०५-२००८...दिनांक रविवार /सोमवार , मै उस दिन ट्रेन संख्या -२४२९ .बंगलोर से हजरत - निजामुदीन जाने वाली राजधानी एक्सपेस काम करते हुए आ रहा था ! रात्री का समय था ! रात के बारह बजे के आस - पास ट्रेन अनंतपुर......... (स्वर्गीय / भूतपूर्व राष्ट्रपति ...श्री नीलम संजीव रेड्डी का पैत्रिक  शहर और सत्य साई बाबा का जिला , जिनका आज पुर्त्त्पर्ती में देहांत हो गया है ) ...में रुकी ! दो मिनट के बाद सिगनल मिला ! मेरा सहायक लोको पायलट श्री के.एन.एम्.राव थे ! गार्ड के अनुमति के बाद ..हमने ट्रेन को चालू किया ! प्लेटफोर्म से ट्रेन ...धीरे - धीरे बहार निकल रही थी ,  घोर अन्धेरा ...ट्रेन की  हेड लाइट तेज ! हम लास्ट स्टॉप सिगनल के करीब पहुँच रहे थे ! मैंने देखा की कोई बण्डल या कोई मृत बॉडी........ दोनों पटरियों के बीच...पड़ी हुई है ! मैंने अपने सहायक का ध्यान आकर्षित  किया ! उसने भी देखा ! तब - तक ट्रेन ..बहुत नजदीक आ चुकी थी ! मैंने उस जगह एक हलचल देखी और तुरंत ट्रेन को रोक दिया !  मैंने सहायक को जा कर देखने को कहा !
                   सहायक गया और  जो देखा ...वह ....यह  की एक सोलह / पंद्रह वर्ष का लड़का ...स्पोर्ट पायजा और टी - शर्ट पहने हुए ...घायल अवस्था में दोनों पटरियों के बीच कराह रहा था  ! उसके पैर और सिर में काफी चोट लगी थी और वह लहू- लुहान था ! टी - शर्ट खून से भींग गए थे ! मामला समझते देर नहीं लगी .....क्योकि.......परीक्षा के परिणाम के दिन थे ! शायद घर वाले कुछ कहे हो या खुद...असफलता वश .... उसने ऐसी साहसिक  कदम उठाये हो ! हमारे आगे कई एक्सप्रेस ट्रेन जा चुकी थी , उन्ही में से किसी के सामने आया होगा , पर अपने मनसूबे में सफल नहीं हो सका था ! हमने पास के ट्राफिक गेट-मैन को उसे अस्पताल भेजने के लिए सौप दिया तथा इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर को वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! फिर आगे बढ़ गए !
                 अप्रैल और मई के महीनो में...... शहरों से गुजरते समय..... भगवान से यही प्राथना करते है ......की कोई मासूम हमारे ट्रेन के निचे.... न आये !  उस दिन हमने एक माँ के जिगर के टुकडे को... उसे सुरक्षित वापस भेज दिया ! एक अनर्थ से बचे !  इसीलिए तो कहते है.....दिल न तोड़ें ..
       

22 comments:

  1. बच्चे में आत्म हत्या करने का कारण उसमें गहरे विषाद का घर कर जाना है,जिससे वह आत्म-हत्या जैसे जघन्य कृत तक को करने के लिए तैयार हो जाता है.विषाद से मुक्ति पाने के लिए 'विषाद-योग'
    की आवश्यकता है,जो माता-पिता व गुरुजनों द्वारा ही बच्चे से सहयोग करके किया जा सकता है,बच्चो की मानसिकता समझते हुए उन्हें समय समय पर उचित प्रोत्साहन देकर.

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  2. aaj ki pratispardha bachchon me ghor nirasha paida kar rahi hai aise me yadi ghar valon ka vyavhar unke sath dostana aur unhe samjhne vala na oh to gambheer parinam hote hai....aapka sadhuvad aaapki alertness se ek ghar ka chirag bujhane se bach gaya...

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  3. बच्चो के मित्र बन कर हर समस्या का हल निकल आता हे, वैसे भी ज्यादा प्यार या ज्यादा तकरार दोनो ही गलत हे, बच्चो को विशवास मे ले कर मित्रवत सभी काम आसान हे, एक अच्छा लेख

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  4. ऐसे हालात में बच्चो को धैर्यपूर्वक ही संभाला जा सकता है..... बढ़िया आलेख ...बधाई

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  5. शिक्षा व्यवस्था समझ को विकसित करने के लिये हो, न कि उसका अन्त रने के लिये। विचारणीय आलेख।

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  6. Shaw sa.काफी माता -पिता मैने देखे है वो बच्चो के मामले में बेहद स्ट्रीक होते है --पर प्राय ऐसे बच्चे ही आगे जाकर बेहद शर्मनाक काम करते है-- हमने हमेशा बच्चो को आजादी दी है --आज हर काम बच्चे पूछकर करते है --यदि वो असफल होते है तो हम उन्हें प्रोत्साहित ही करते है --बेटा जब मेडिकल लाइन में असफल हुआ तो हमने उसको कोसा नही वल्कि उसको दूसरी लाइन इंजीनियरीग की सुझाई ,और आज वो वहां सक्सेस है --
    इसी तरह जब बेटी ने कहा की मुझे आगे नही पढना है बस बी. काम. बहुत है ,नोकरी करना है ,हमने बहुत समझाया पर वो नही मानी, नोकरी की- ८ महीने में ही उसे महसूस हुआ की मै गलत हूँ --आज वो MBA कर रही है --
    मेरे विचार से हर पेरेंट्स को अपने बच्चे की बात सुनानी चाहिए--आज की पीढ़ी हम से भी ज्यादा समझदार है ,बस उन्हें मोका मिलना चाहिए ---और हमारा विशवास की बेटा हम आपके पीछे है ---

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  7. सर / मैडम . @ गुरूजी (राकेश कुमार )

    @ कविता जी

    @ राज भाटिया जी

    @ प्रवीण जी

    @ मोनिका जी

    @ दर्शन जी

    आप सभी की टिप्पणिया , इस पोस्ट की कमियों को पूरी कर दी ! बहुत - बहुत धन्यबाद !

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  8. आपका आलेख और विचार सराहनीय हैं एवं अनुकरणीय भी.

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  9. दीजिए हमारा साथ एक ऐसी मुहिम मेँ जहाँ हम देँगे मुँहतोड जवाब उन पापियोँ को जो तुले हैँ हमारी भारत माता को बदनाम करने मेँ
    http://bloggers-adda.blogspot.com

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  10. सभी सलाहें महत्वपूर्ण हैं। बच्चे तो बच्चे ही हैं, हम बडों को यह बातें याद दिलाते रहना ज़रूरी है। कोई परीक्षा-परिणाम इतना महत्वपूर्ण नहीं है जिसके लिये किसी मासूम की बलि चढे।

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  11. प्रेरक लेख ...

    बच्चों की पढाई-लिखाई उनकी जिंदगी से बढ़कर कदापि नहीं है |

    हमें बच्चों के मनोभावों को समझकर ही उसके अनुकूल व्यवहार करना चाहिए |

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  12. आपके बालाजी को मेरा शुभ आशीष.

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  13. अलका जी ...नमस्कार ....आप के सन्देश को बालाजी ने सहर्ष स्वीकार किये है ! कहते है हर मानव के जीवन में स्त्रियों का योगदान काफी होता है ! मैंने जब बालाजी ब्लॉग स्टार्ट किया ....उस समय भी सबसे पहला ...टिपण्णी एक महिला का ही था ! जिन्होंने ब्लॉग लिखने की प्रेरणा दी और मै लिखते गया ! जब की कोई लेखक नहीं , कोई पेशेवर लेखक नहीं ! वह महिला ......कोई और नहीं बल्कि आप ही है ! आप के पोस्ट हमेशा मेरे समक्ष ही रहते है और सभी पोस्ट को पढ़ता हूँ ! जो वास्तव में जानदार होती है !एक बार फिर नमस्कार !

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  14. .

    जाको राखे साइयां , मार सके न कोय।

    बच्चों में आत्म विश्वास जगाने की बहुत आवश्यकता है। उनके नाज़ुक मन को ये विश्वास सिर्फ माता-पिता ही दिला सकते हैं। निराशा में मासूम बच्चे ऐसे भयानक कदम उठा लेते हैं ।

    बालाजी बहुत प्यारे लग रहे हैं चित्र में । उन्हें मेरा आशीर्वाद।

    .

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  15. आपके इस सराहनीय कदम को सलाम .....
    वरना कौन देखता है पटरी पर क्या पड़ा है .....
    इस बालक के माता-पिता की दुआएं हमेशा आपके साथ रहेंगी .....

    और हाँ दुआ है आपके बालाजी हमेशा खुश रहे ...
    पिता का नाम रौशन करें .....

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  16. बाल मनोविज्ञान का अच्छा संदर्भ।

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  17. aadarniy sir
    bahut hi achhi vsachhi baat kahi hai aapne .
    " पारिवारीक संस्कार का बच्चो पर काफी प्रभाव पड़ता है
    bachcho ko sahi mahoul dena aur unke man ke bhavo ko samajh kar uske anusaar hi vyvhaar karna chahiye isi liye kaha bhi gaya hai ki bachcho ki
    pahli pathshala unaka ghar hota hai .ham jo sanskar unhe denge vahi unke bhavishy ka aadhar hoti hai .aur thoda bade hote bachcho ke saath to bahut hi soch-samajh kar dhairy par kadam uthana padta hai.
    bahut hi prabhavparak lekh
    hardik badhai
    poonam

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  18. दोस्तों, क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना.........
    भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से (http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html )

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  19. आप बहुत संवेदनशील है शुभकामनायें आपको !

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    "दिल न तोड़ें .......handle with care".
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