मेरी जीवन संगिनी और बाला जी । कटरा स्टेशन |
हम स्टेशन से बाहर निकले । इस अनजान शहर में एक आश्रय की जरुरत थी । कोई जान पहचान वाला नहीं था । अतः होटल के कमरे लेना जरुरी था । सामने रोड पर एक दलाल घूम रहा था । हमें खड़े देख पास आया और पूछा - साब रूम चाहिए क्या ? हमने हामी भरी तो उसने कहा - मिल जायेगा । ये सी या नार्मल ? कटरा का वातावरण बिलकुल ठंढा था अतः वातानुकूलित का प्रश्न नहीं था । हमने कहा - नार्मल रूम चलेगा । किन्तु साफ सुथरा रहनी चाहिए । उसने कहा - आप चल कर कमरा देख ले । पसंद आये तो रहे अन्यथा दूसरे जगह ले चलूँगा । 1200/- लगेगा । हमने कम कराये तो हजार पर राजी हो गया । उसने किसी को फोन किया और एक कार सामने आकर रुकी । हमें बैठने का इशारा हुआ । हम लोग कार में बैठ गए । करीब 2 मिनट में कार एक होटल के पोर्टिको में प्रवेश किया । जिसका नाम होटल टुडे है जो रेलवे स्टेशन रोड में स्थित है । हमने प्रोग्राम के अनुरूप रुम का मुआयना किया । रूम बिलकुल अच्छे थे । हमारी सहमति के बाद कागजी प्रक्रिया पूरी हुई । होटल का मैनेजर हमारी आईडी नहीं पूछा । जबकि हम तैयार होकर चले थे । हमने हमारे कमरे में प्रवेश किया जो ग्राउंड फ्लोर पर ही था ।
हम दिन चर्या से निवृत होकर तैयार थे । नास्ते का समय था । हमने होटल से ही आलू पराठे और दही लिए । आदत तो नहीं था पर स्वाद अच्छे लगे । आज आराम करने का प्रोग्राम था चुकी कोई थकावट तो नहीं थी । इसीलिए हमने आज ही मंदिर जाने के प्रोग्राम तय कर ली । होटल वालो ने भी बताया की अभी जाने से शाम तक वापसी संभव है । यहाँ के होटलो में एक समानता है । सभी के पास अपनी कार है । ये यात्रियों को मुफ़्त में रेलवे स्टेशन या वैष्णो देवी यात्रा की शुरुवाती द्वार वाणगंगा तक ले जाते है और वापस भी ले आते है । तो हमने पूर्णतः आज ही मंदिर जाने का निश्चय कर लिया ।
बालाजी होटल के मुख्य द्वार पर । |
कुछ आगे बढ़ते ही पालकी और घोड़ो के मालिको से सामना हुई । वे भी घेर लिए । श्रीमती जी शुगर की मरीज है । पैदल यात्रा संभव नहीं था । घोड़े या पालकी जरुरी था । मुझे भी पैदल की आदत नहीं है । पालकी वाले 5 हजार और घोड़े वाले ने 1850/- की मांग रखे वह भी प्रति व्यक्ति । हेलीकॉप्टर से जाने का प्लान था किन्तु इसकी बुकिंग 2 माहपूर्व करनी पड़ती है । करेंट संभव नहीं था । माँ की यात्रा , और पॉकेट पर बल न पड़े अतः हमने घोड़े की सवारी का निर्णय किया । बहुत जद्दो जहद के बाद 1500/- प्रति व्यक्ति पर जाने और ले आने की बात बनी । घोड़े पर सवार होने के लिए जगह जगह प्लेटफॉर्म बने हुए है । घोड़े की सवारी भी अजीब लगी । घोड़े के टॉप और हमारे शरीर में उछल कूद आनंददायी थे पर यात्रा के बाद कमर को दर्द का अहसास हुआ । वाणगंगा से मंदिर की चढ़ाई 13 किलोमीटर है । इसी रास्ते में अर्धकुआरी माता जी का मंदिर है । जिनका दर्शन करने के लिए एक गुफा से गुजरना पड़ता है । जो सभी के लिए उपयुक्त नहीं है । घोड़े से यात्रा करने के समय यह मंदिर बाईपास हो जाता है । अगर मन में इच्छा हो तो घोड़े के मालिको से कह , यहाँ भी जाया जा सकता है । चढ़ाई के रास्ते पक्के है । जगह जगह शेड भी मिल जाते है । छोटे छोटे दुकान भी मिलते है। रास्ते में पड़ने वाले दुकान बहुत पैसे वसूल करते है क्योंकि उन्हें अपने सामान घोड़े के माध्यम से लाने पड़ते है । वैसे तो गर्मी का मौसम था किन्तु सुबह से धुप नदारद थी । उस पर यात्रा के दौरान एक दो जगह बारिस भी हुई जिससे मौसम खुशनुमा हो गया था । लोग पेट के लिए क्या क्या न करते है । हम घोड़े पर बैठे थे और उनका मालिक उन्हें पकड़ कर निचे चल रहे थे । यात्रा के दौरान जगह जगह चेक पोस्ट मिले ।
तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।
बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है । इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।
चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में ।
तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।
बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है । इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।
चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में ।
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