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Wednesday, February 10, 2016

चैट कीजिये ।

मैं पत्नी को देखते ही मोबाइल के स्क्रीन को तुरंत बदल दिया किन्तु पत्नी को समझते देर न लगी । चैट कीजिये - वह बिना किसी संकोच के बोली । मेरी ख़ामोशी को भाप गयी। बोली - मुझे कोई ऐतराज नहीं है । आप तो स्वयं समझदार है । आप कोई गलती नहीं कर सकते । मुझे पूरा भरोसा है । ये कह कर न जाने क्यों फिर जिधर से आई थी उधर ही चली गयी । आज सूर्य पूर्व के सिवाय पश्चिम से उदय होता नजर आया । वह पत्नी जो चैट के नाम पर क्रोध करती और आग बबूला हो जाया करती थी वही चैट करने के लिए स्वतंत्र रूप से आजादी दे रही थी । मैं आश्चर्य चकित था । पत्नी जी फिर  चाय के प्याले के साथ उपस्थित हुई । मुझसे रहा न गया , बरबस साहस कर पूछ ही लिया । देवी जी आज कैसे खुश हुई कोई कारण ? चाय का प्याला मेरे सामने रखते हुए बोली - वही जयपुर वाली आप की बेटी । बहुत सुन्दर और रहन दार है । भगवान ऐसी ही बेटी सभी को दें । फिर एक क्षण के लिए रुकी और एक लंबी साँस लेते हुए बोलीं - भगवान भी कितना अन्याय करते है । कुछ न कुछ कमी सभी को देते है । काश उसे जबान दी होती । इतना कहने के बाद उसका गला  भर आया । मैं कुछ नहीं बोल सका बस निःशब्द हो खयालो में खो गया ।

ये उन दिनों की बात है । जब मैं एंड्राइड स्मार्ट फोन का इस्तेमाल शुरू किया था । नई यांत्रिकी थी । नेट में तैरना अच्छा लगता था । एक मुठ्ठी भर का  यंत्र काफी कुछ के लिए मदद गार  था । उस दिन मैं सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म संख्या 10 पर बैठा था । राजधानी एक्सप्रेस लेकर जाना था । ट्रेन आने में देरी थी अतः समय वश व्हाट्सप्प पर टहल रहा था । देखा एक अनजान व्यक्ति का कुछ मैसेज वेटिंग में था । पढना शुरू किया तभी एक मैसेज डिस्प्ले हुआ । आप क्या कर रहे है । मैंने उस अज्ञात व्यक्ति की परिचय पूछा । जबाब मिला मैं लक्ष्मी देव हूँ जयपुर से । फिर कल मिलेंगे - कह कर , मैंने मोबाइल बंद कर दी । मेरी ट्रेन आ चुकी थी ।

दूसरे दिन सुबह सोकर उठा । आदत वस सबसे पहले मोबाइल नेट को देखना शुरू किया । देखा लक्ष्मी देव ने कई चुटकुले और पिक पोस्ट किये थे । पढ़ा और बहुत आनंदित हुआ । अनचाहे मन से रिप्लाई भी पोस्ट कर दी - अच्छे लगे । वैसे व्हाट्सप्प के कई दोस्त और ग्रुप है जिन्हें रोज  पढ़ते रहता हूँ । इस दौरान मैंने लक्ष्मी देव की टिप्पणी देखी जो इस तरह की थी ~ " जय जवान जय किसान जय चालक । आप की डयुटी एक फौजी से कम नही है । अच्छा लिखते है आप सब drivers भाईयो को सलाम । जिस वक्त हम अपने बिस्तरो मे दुबके हुये रहते है उस वक्त आप हमारे लिये पटरियो पर सघर्ष करते है और और रेल संचालन का परिपूर्ण रूप से करते है " टिप्पणी पढ़ कर मन गदगद होना स्वाभाविक था । जीवन में पहली बार किसी ने जय जवान जय किसान स्लोगन के साथ जय चालक शव्द को जोड़ा था ।

मेरी जिज्ञासा लक्ष्मी देव के बारे में जानने की हुई । मैंने एक दिन पूछा - आप क्या करते है । जबाब मिला ~ मैं हाउसवाइफ हूँ । मेरे पति व्यापारी है । मेरे कान खड़े हो गए । आज तक मैं जिस व्यक्ति को पुरुष समझ रहा था वह एक महिला निकली । कहानी यही ख़त्म नहीं हुई । एक पुरुष और महिला का आकर्षण सर्व बिदित है । फिर क्या था । दिनोदिन चैट का सिलसिला शुरू हो गया । इस दौरान हम दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान चुके थे । घर गृहस्थी          हो या पारिवारिक लोग  या सामाजिक तंत्र या स्थानीय शहर या पति पत्नी और  हमारे बच्चे सभी के बारे में हम दोनों को एक दूसरे के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी थी । प्रतिदिन कोई न कोई एक नए विषय पर चैट होती थी ।कभी कभी पत्नी भी बगल में बैठे होने के नाते मैं क्या कर रहा हूँ को समझ जाती थी ।अतः  पत्नी को भी इस बात की जानकारी दे दी थी। पहले तो वह गुस्सा हुई पर नरम पड़ गयी जब उसे यह मालूम हुआ कि मैं लक्ष्मी देव को एक पुत्री के रूप में स्वीकार किया  हूँ  । और यह सही भी था क्योंकि कि लक्ष्मी देव और मुझमे स्वच्छ चैट ही होते थे । एक बार मैंने एक वीडियो सांग लक्ष्मी देवको भेजी । लक्ष्मी ने उसके गलत अर्थ लगाते हुए मुझे कोसे थे । उस समय मैंने उसे समझते हुए कहा था कि किसी चीज का अर्थ हमारे मानसिक सोच पर निर्भर करता है । गलत सोच गलत और सही सोच सही मार्ग पर ले जाते है । उसके बाद लक्ष्मी देव ने अपने गलती का एहसास की थी ।

चैटिंग के साथ ही हम दोनों के पारिवारिक रिश्ते भी सुदृढ़ हो गए । किन्तु कोई भी एक दूसरे को प्रत्यक्ष न देखा था न ही कभी मिला था । लक्ष्मी देव अपने परिवार में काफी खुश थी और कोई आभाव महसूस नहीं करती थी । सभी उन्हें प्यार करते थे । मैंने कई बार फोन पर बात करना चाही पर लक्ष्मी देव को ये पसंद नहीं था । मेरी पत्नी भी एब बार बात करने की इच्छा जाहिर की , पर बाद में फिर कभी कह कर लक्ष्मी देव मुकर गयी । उनके परिवार में एक दबंग थी उनकी एकलौती सास , जिससे काफी डरती थी । एक बार उन्होंने अपने घूँघट को नाक तक चढ़ा ली थी जिससे उनकी सास कुपित हो बड़ी मार मारी  थी । आखिर घर की मालकिन सास ही थी किसी भी मर्द की नहीं चलती थी । एक तरह से मेरा अनुभव ये कहता है कि जिस घर की मालकिन औरत होती है उस घर में झगड़े और कलह नामात्र के होती है । लक्ष्मी देव को कई बार सेल्फ़ी भेजने की विनती की पर वह इसे भी इंकार कर दी यह कहकर की लोग पिक का गलत इस्तेमाल करते है । मैंने भी कोई जिद्द नहीं की थी ।

हम दोनों की दिल्ली इच्छा थी की किसी जगह मिले । मैं जा सकता था पर लक्ष्मी देव जयपुर छोड़ कही नही जा सकती थी ।  कहते है समय बहुत बलवान होता है । जिसे चाहे मिला दे या अलग भी कर दे । किसी की वश नहीं चलता । मुझे किसी काम वश जोधपुर जाना था । लक्ष्मी देव से संपर्क किया और पूछा की अगर वो जयपुर में मिल सकती है तो मैं एक दिन के लिए जयपुर रुकने के लिए तैयार हूँ । जैसे मैंने लक्ष्मी देव की , उनके मुहं की बात छीन ली हो , वह तुरंत तैयार हो गयी । मुझे भो आत्मशांति मिली चलो अब उन्हें प्रत्यक्ष देख पाउँगा । आज तक केवल चैट और कल्पनाओ की आँख से ही देखता था । कभी भी वह सेल्फ़ी या कोई पिक भेजने से इंकार करती रही थी । अब सामने खड़ी होगी और हम खूब बात करेंगे । मन की दुविधा दूर हो जायेगी ।

मैं जयपुर पहुँच गया था । अपने होटल के कमरे में सपरिवार ठहरा था । पत्नी भी जल्द तैयार हो गयी थी। लक्ष्मी देव की आगवानी जो करनी थी । दस बजने वाले थे । हम सभी आतुरता से उनकी  इंतजार में बैठे थे । मैं बेचैन था क्योंकि अब तक मैं उसे औरत नहीं समझ सका था । मेरे दिमाग में एक ही बात घुसी हुयी थी कि ये कोई पुरुष ही है जो मुझे औरत के रूप में चैट कर ब्लैकमेल कर रहा है । इसकी पुष्टि भी आज हो जायेगी । उसने दस बजे तक आने की वचन दी थी । बार बार घडी पर नजर जा रही थी अब साढ़े दस बजने वाले थे । सब झूठ है । वह धोकेबाज है । वह नहीं आएगी । वह आप से चैट तक ही सम्बन्ध रखना चाहती है । पत्नी भी मायूस हो शव्दों की प्रश्न चिन्ह खड़ी कर दी । मैं भी अशांत समुद्री लहर सा चुप चाप सुनता रहा । तभी किसी के दरवाज़े को ठोकने की ध्वनि सुनाई दी । अन्मयस्क सा उठा , बेयरा होगा बुदबुदाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया । ग्यारह बजने वाले थे । दरवाजा खोला । सामने चार लोगो को खड़े पाया । एक गोरी सी खूबसूरत महिला एक जवान पुरुष और दो छोटे बच्चे । कुछ देर के लिए खामोश । क्या वही चैट वाली प्रोफाइल वाली औरत सामने खड़ी है ? पत्नी को आवाज लगाई  । इधर आना । वे लोग मुझे घूरते रहे या हो सकता है वे भी मुझे सही पहचानने की कोशिश कर रहे  थे । पत्नी बगल में आ खड़ी हुई थी । आप ही लक्ष्मी देव है ? मैंने औरत की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए पूछा । जबाब के वजाय वह औरत झुक कर हम दोनों के पैर छु लिए । मुझे जबाब मिल चूका था । पत्नी ने उन्हें अंदर आने की अनुग्रह की । हमारे साथ वे लोग अंदर आ गए । हमने उन्हें सोफे पर बैठने का  आग्रह  किया और बगल में ही बैठ गए ।


अंकल ये है मेरी पत्नी लक्ष्मी देव और ये दोनों पुत्र विवेक और शिवांग । मेरा नाम विजय है । आप सभी से मिलकर ख़ुशी हुई । लक्ष्मी देव जी आप को कैसा लग रहा है। चैट तो दमदार करती है । मैंने बेहिचक अपने वाक्य कह दिए । लक्ष्मी देव बिलकुल शांत बैठी रही और अपने पैर की अंगुलियो को ध्यान से सर झुकाये देख रही थी । जी लक्ष्मी कैसी हो ? अब खुल कर बात करो न ? पत्नी ने सवाल किये । मम्मी बोल नहीं सकती - शिवांग ने कहा । क्या ? हम दोनों के मुख से ये शव्द निकले । जी अंकल ये सही है - विजय ने कहा । देखा लक्ष्मी के हाथ में एक नॉट बुक था । अपने पति की जेब से कलम निकल कर कुछ लिखने लगी और हमारे तरफ पलट दिया । लिखा था - सॉरी अंकल ये सही है । मैं बचपन से ही गूंगी हूँ । बोल नहीं सकती । मैं यह आप से छुपाये रखा । कृपया क्षमा करे । हमदोनो पति - पत्नी की आँखे भर आई । देखा लक्ष्मी भी रो रही थी । पत्नी खुद रोते हुए उसे चुप कराने लगी । आज हम जीवन में एक अजीब सच्चाई से सामना कर रहे थे जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । अब समझ में आ गया था आखिर लक्ष्मी फ़ोन में बात करने से क्यों कतरा रही थी । हे भगवान आप ने बिन आवाज ऐसी खूबसूरत मूर्ती क्यों बना दी । लक्ष्मी साक्षात् दुर्गा की मूर्ती लग रही थी । बस कमी एक ध्वनि की थी । आप से चैट कर के लक्ष्मी बहुत खुश रहती है अंकल । मुझे सब मालूम था । मैंने चैट करने की अनुमति दे रखी थी । विजय ने कहा । मैंने पूछा - आप लोग मुझे पहले क्यों नहीं बताये की लक्ष्मी देव बात नहीं कर सकती ?  विजय ने कहा - अंकल लक्ष्मी आप की ब्लॉग बहुत पसंद करती है । एक लेखक  से चैट करके इसे गर्व महसूस होता है । लक्ष्मी ने नॉट बुक में  कुछ लिखी और मेरे तरफ मोड़ दी लिखा था - " हमें डर था कहीँ असलियत का पता चलते ही आप चैट बंद कर देंगे । इसीलिए हमने आप को इसकी खबर नहीं होने दी । " एक पाठक मुझसे चैट कर इतना खुश था , जान कर बहुत हर्ष हुआ । मैंने कहा - एक लेखक बहुत ही संवेदनशील होता है । लेखक हमेशा जोड़ता है , तोड़ता नहीं । हमारी आँखे सुखने का नाम ही नहीं ले रही थी । सबसे ज्यादा पत्नी का जो लक्ष्मी का सिर गोद में रख कर एक माँ जैसा प्यार न्योछावर कर रही थी । दुर्लभ दृश्य ।

बेयरा भोजन की सामग्री रख कर चला गया था । दोपहर का भोजन हो चूका था । हमलोगो के बिच बहुत सी बाते हुई । मैंने विजय को कहा - आप एक महान पुरुष से कम नहीं जो ऐसे दिव्यांग से शादी कर ख़ुशी से जीवन बिता रहे है । आप वास्तव में एक पूण्य के भागीदार है । विजय मुस्कुरा कर स्वीकृती दी । मैंने उन्हें अपने बेटे की शादी में आने का अनुरोध किया । लक्ष्मी अपने पति की ओर देखने लगी जैसे कह रही हो - जबाब दीजिये । विजय ने कहा - अंकल जरूर आएंगे । इन्हें खूब पढ़ाओ बच्चों की तरफ इशारा कर कहा । लक्ष्मी नॉट बुक पर कुछ लिखने लगी और मेरे तरफ पढने के लिए बढ़ा दी । लिखा था - एक को लोको पायलट और दूसरे को प्लेन का पायलट बनाउंगी । पक्के और दृढ इरादे के आगे मैं नतमस्तक था । लक्ष्मी को देखते हुए मुस्कुरा दिया । बोला भगवान आप की मनोकामना पूरी करे । यही तो है दिव्यांग । लक्ष्मी  नॉट बुक में फिर कूछ लिखी - लिखा था मेरे बेटो के शादी में आप लोग जरूर आएंगे । हमने हामी भर दी । मजाक मजाक में मेरे मुह से निकल गया - आप की आने वाली बहुए आप को चैतानी कहेंगी । सभी खिलखिला कर हंस दिए । लक्ष्मी शर्म से मुस्कुराते हुए सिर निचे झुका ली ।

जीवन का एक अदभुद अनुभव था । शव्दों में गूँथना काफी नहीं है । उन्हें जाने देने का मन नहीं कर रहा था । मैं अपने प्रोग्राम को अधूरा छोड़ यहाँ उनके लिए रुक था । जिसका लक्ष्मी और उसके पति ने धन्यवाद जाहिर की । शाम को बिदाई के समय पत्नी ने गिफ्ट का पैकेट लक्ष्मी को दिए जिसे हमने पहले से ही तैयार रखा था । मैंने लक्ष्मी के दोनों बेटो के हाथ पर सौ सौ के नोट पकड़ा दिए । फिर एक बार लक्ष्मी ने हम दोनों के पैर छुए । हमने आशीर्वाद हेतु अपने हाथ उसके सिर पर रख दिए । जाते जाते हमने देखा लक्ष्मी की आँखे गीली हो गयी । वह अपने साड़ी के पल्लू को मुँह पर दबाएं  सपरिवार आगे बढती जा रही थी और घूम घूम कर हमें देख रही थी जैसे कह रही हो अंकल गलती माफ़ करना । हमने उसके आँखों में आंसुओ की धारा बहते देखा । हमारी आँखे भी नम हो गयी और हाथ स्वतः ऊपर उठ गए आशीर्वाद हेतु ।



(यह पोस्ट माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ " योजना को समर्पित है । यह एक समसामयिक लेख है । इसका यथार्थ से आंशिक सम्बन्ध  है । यह सत्य घटनाओ पर आधारित है नाम , जगह काल्पनिक है  । चित्र  - साभार व्हाट्सप्प )














Friday, January 22, 2016

कभी सोचा है आपने ।

आज का दिन और इस आक्रोश को शायद ही कोई भूल पायेगा । किसी ने नहीं सोच था कि रनिंग स्टाफ का परिवार मंडल रेल प्रबंधक को इस तरह बंधक बना लेगा । छोटे छोटे बच्चे और रंग विरंगी परिधान में सजी उनकी पत्निया चारो तरफ से मंडल रेल प्रबंधक को अपने घेरे में ले रखी थी । बच्चे पास में पड़े सोफे पर कूदने लगे थे । सभी का चेहरा  गुस्से से लाल । मंडल रेल प्रबंधक की हालत देखते बनती थी । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । हम सभी लोको चालक उन महिलाओ के चारो तरफ खड़े थे । सभी महिलाये कुछ न कुछ कहना चाह रही थी । शोर इतना बढ़ गया कि कुछ भी आवाज समझ से बाहर थी । डी आर एम् को सभी से प्रार्थना करना पड़ा कि कोई एक महिला आगे बढिए और सभी के तरफ से अपनी मांग मुझे बताये या कोई ज्ञापन हो तो दीजिये । सभी की आवाज एक साथ सुनना संभव नहीं है । 

हमें मालूम था ऐसा ही होगा अतः हमारे यूनियन के सचिव की पत्नी ही आगे बढ़ी और अपनी मांग डी आर एम् साहब के सामने परत दर परत खोलने लगीं । सुबह से लेकर पति के घर लौटने तक की अथक और अनगिनत  कहानी  सुन डी आर एम् साहब भी स्तंभित रह गए । वैसे सभी अफसरों को मालूम है कि लोको पायलटो की पत्निया एक अभूतपूर्व त्याग करती है । जिनके मूक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । करीब दो घंटे तक सभी महिलाये ऑफिस के अंदर डटी रही  और डी आर एम् साहब ने सभी की बातें ध्यान से सुनी । सभी महिलाये टस से मस नहीं हुई आखिर में  डी आर एम् को ये आश्वाशन  देना पड़ा कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी मांगो को निपटाएंगे ।जो उनके अधिकार क्षेत्र में होगा ।

जी हाँ , कभी सोचा है आपने कि लोको पायलटों की पत्निया कैसी जिंदगी जीती है । एक जमाना था की लोग ड्राइवर को अपनी बेटी देना ( शादी का बंधन ) पसंद नहीं करते थे । फिर भी पुत्री अपने को परिवेश में बदल लेगी के कायल हो समाज की अवधारणा बदलती गई । कौन पिता होगा जो अपने पुत्री को सुखी नहीं देखना चाहता ? सब कुछ ताक पर रख शादिया होती ही है । हर दुलहन शादी के पहले अपने एक सपनो की दुनिया बुन ही लेती है । नए संसार में प्रवेश के पहले दिल का धड़कन बढना वाजिब  है । ये करेंगे वो करेंगे । पति के साथ ज्यादा समय दूंगी । पति को अपने अंगुली पर नाचाऊंगी ।जब मन करे पिक्चर  जाउंगी । खाली वक्त सखियो  को बताउंगी कि शादी सुदा जीवन कैसे गुजर रहा है । वगैरह वगैरह । लेकिन कौन जानता था ये सिर्फ स्वप्न ही है क्योंकि उसकी शादी एक लोको चालक के साथ होने वाली है । जो कब घर में रहेगा और कब आएगा - भगवान को भी नहीं मालूम । मोनिका के साथ ऐसा ही तो हुआ था । जब वह शादी के बाद पहली बार ससुराल गयी थी । चार माह तक लगातार पति के साथ रही और ऊब गयी थी । मैके आते ही माँ के गोद में सिर रख रो दी थी । यहाँ तक की वह दुबारा जाने से इंकार कर दी । माँ को सब कुछ जानते हुए भी  सहज लहजे में सिर्फ इतना ही कहते बना - बेटी सब नसीब का खेल है । भगवान सभी की जोड़ा बना कर भेजते है । शायद तुम्हारे नसीब में यही था । मोनिका माँ की बातो को इंकार न कर सकी । बस रोते रही थी । 

हम यहाँ किसे दोष दे ? रेलवे प्रशासन को या उस लोको चालक को जो कोल्हू की तरह पिसता रहता है । खुद को रेल सेवा में समर्पित । लोको चालक दुधारी तलवार पर लटकता रहता है । उसकी पूरी जिंदगी रेलवे प्रशासन द्वारा गन्ने की जूस की तरह चूस ली जाती है । गन्ने रूपी लोको चालक को सुरक्षित और सींचने का कार्य उसकी पत्नी करती है । लोको पायलटो की पत्नियो के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । रात हो या दिन समय पर भोजन तैयार करना । पति को मंगल कामनाओ के साथ भोजन का कैरियर हाथो में पकड़ा कर बिदा करना ।सकुशल लौटने की दुआ भगवान से करना । पति की अनुपस्थिति में सास ससुर  और अपने बच्चों की परवरिश करना । दुःख दर्द में भी मर्द का फर्ज सिर आँखों पर रखना । बाजार से लेकर स्कूल तक की भाग दौड़ कितना बताऊँ । कोल्हू की बैल की तरह 24×7 पिसती रहती है । धन्य है ये पत्निया जिनके कार्य की मूल्यांकन किसी के बस की नहीं।

आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग  किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल  मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया  सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं  और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।

सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी  । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य   बनाये रखे की  प्रेरणा दी थी ।

उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत  करती है जैसे  इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब  तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।



( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा  की स्रोत है । )



Wednesday, September 24, 2014

कोई शक्ति है ।


कहते है समय बलवान होता है । कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं होता । कोई तो है ; जो हमारी सांसो को कंट्रोल करता है । उसके मर्जी के बिना कुछ सम्भव नहीं है । गाड़िया चलती है तभी जब चलाने वाला हो ।
उस दिन ऐसा ही कुछ होने से रह गया । दिनांक 20 जून 2014 को सपरिवार शादी में  शरीक होने जा रहा था । झिम झिम बारिस पड  रही थी । बस स्थानक में खड़े थे । बसे उस स्थानक पर नहीं रुकती है । कुछ समय के बाद एक बस आई और हमने रुकने के लिए हाथो  से इसरा किया ।
बस रुकी और हम जल्दी से उसके अन्दर प्रवेश किये ।बस  चल दी । कुछ दूर बढ़ने के बाद खलासी ने ड्राईवर को रुकने के लिए कहा । ड्राइवर ने बस तुरंत रोक दी ।खलासी बस से उतरा और पीछे की और गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । देखा की -पीछे के चक्के के पुरे नट बाहर निकलने वाले थे ।
फिर क्या था तुरंत अपने औजारों से टाइट किया । बस फिर गंतव्य की ओर रवाना हो गयी । कंडक्टर ने कहा -आज सबकी जान बच गयी अन्यथा एक्सीडेंट होने वाला था ।नटो के बाहर निकलते ही चक्के बाहर आ जाते थे । शुक्र है समय से लिया गया निर्णय सभी को सुरक्षित रखा ।
कहते है -एक छोटा छिद्र नाव को डुबो देता है । कही यह भी सही है की एक धर्मात्मा की वजह से असंख्य की जान बच  जाती है । कोई तो है जो सब कुछ जानता है । कब और क्या करना है ?

Sunday, February 23, 2014

कहानी - दो पैर

मै अपने किसी कार्य हेतु तिरुपति जा रहा था । प्लेटफॉर्म के एक सीट पर बैठा  ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रहा था । चारो तरफ गहमा - गहमी थी । सभी को सिर्फ  ट्रेन की  इंतजार थी । चारो तरफ  नजर  दौड़ाई  । शायद कोइ जानकार  
 साथी मिल जाए ? दूर भीड़ के एक कोने में एक व्यक्ति के ऊपर नजर पड़ी  । वह अपने बैशाखी के सहारे खड़ा था । अनायास उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी ।वह मुझे  बार - बार देख रहा था । मुझे भी वह कुछ परिचित सा लगा । शायद कहीं देखा हो  । बार -बार माथे पर बल दिया किन्तु सफलता नहीं मिली क्यूंकि अपाहिज से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । ट्रेन आ चुकी थी । सभी जगह पाने कि होड़ में दौड़े । ट्रेन समय से पहले आई  थी । अतः यह तो निश्चित था कि पहले नहीं छूटेगी । 

मै एक कम्पार्टमेंट के अंदर जगह पा लीथी  । अनायास वह बैशाखी वाला व्यक्ति भी मेरे सामने वाली सीट पर आ बैठा । मेरे मुंह खुले रह गए । यह तो वही नायडू था  ,जिसे दो वर्ष पहले एक ट्रेन एक्सीडेंट ने अपाहिज बना दिया था । " नमस्ते नायडू " - नायडू से उम्र में बड़े  होने के  वावजूद भी मेरे मुख से आत्मीय स्वर निकल पड़े । नायडू ने भी स्वीकृति में - मेरी तरफ देखा और प्रशंशनीय मुद्रा में कहा - " शेखर सर  नमस्ते । कैसे है सर जी  ? बहुत दिनों के बाद मिले है ?"  उसके चेहरे 
पर एक अजीब सी ख़ुशी कि रेखाए नांच गयी ।मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि वह मुझे अभी भी  
पहचान लिया था । वैसे तो उस ट्रेन एक्सीडेंट के बारे में मुझे सूचना थी ,पर नायडू ने दोनों  पैर  
गवा दिए थे , इसकी जानकारी  नहीं थी । 

" ये कैसे हुआ नायडू ?" - मैने विस्तृत जानकारी हासिल करने कि कोशिश की । उसने अगल - बगल देखें और एक लम्बी साँस लेते  हुए कहा । " सर आप को उस दुर्घटना कि जानकारी तो है ही , पर प्रशासन कि लापरवाही की  वजह से मुझे ये पैर गवाने पड़े ।रिलीफ वैन देर से आई थी  " इतना कहते  ही उसके आँखों में पानी भर आया  । " मै दो घंटे तक लोको में फँसा रहा । सभी समझ रहे थे कि मै मर गया हूँ ।अस्पताल पहुँचने के पहले ही मेरे दोनों पैर अधिक रक्तस्राव की  वजह से ढीले पड़ गए थे ।मै  उन लोको पायलटो का शुक्र गुजार हूँ जिन्होंने अपने खून दानकर मेरी जान बचाई । अन्यथा। .... । " नायडू ने अपनी आँखे पोछी और अपने हाथ कि अंगुलियो को मरोड़ने लगा । 

मैंने कहा -" ईश्वर को शायद यही मंजूर था नायडू । ईश्वर ही सबका रखवाला है । " मुझे पता था लोको पायलटो के परिवार वाले कैसे- कैसे  दर्द और अलगाव बर्दाश्त  करते है ।कुछ पूछूं ? इसके पहले ही नायडू ने कहा -"सर आज मेरी पत्नी ही मेरी दो पैर है ,इसके वजह से जिन्दा हूँ । " इतना कह नायडू ने बगल में बैठी अपनी पत्नी से परिचय करवाया । इस महान महिला के प्रति आदर स्वरूप मेरे दोनों हाथ नमस्कार हेतु  जुड़ गए ।उस साध्वी ने भी एक हल्की ख़ुशी के साथ अपने हाथ जोड़ दिए ।बिलकुल यह सच है कि लोको पायलटो को कोई सम्बल देता है तो वह है उनका परिवार ।तब - तक तिरुपति आ चूका था । हम सभी काम्पार्टमेंट से बाहर आ गए थे । नायडू ने मुझसे मिलने कि ख़ुशी जाहिर की  और सपरिवार आगे बढ़ गया ।

 मै एक टक लगाये सोंचता  रहा -यह कैसी विडम्बना है , दुनिया के मुसाफिरो को मंजिल तक ले जाने वाला , बैशाखियों के सहारे अपनी मंजिल तय कर  रहा है । क्या यह सच है  प्रशासन  इन्हे कोल्हू के बैल से ज्यादा महत्त्व नहीं देता ? जागो लोको पायलटो .... नयी सूरज की  नयी किरण अभी बाकी है । 

Wednesday, January 22, 2014

आधा घंटा पहले का निर्णय

मै अपने पाठको के समक्ष हमेश ही सत्य और प्रमाणिकता से जुड़े विषयों को प्रस्तुत करते रहा हूँ , चाहे कहानी हो या अनुभव । कभी -कभी अति आश्चर्य होता है , जब सत्य सामने खड़ा हो  और हम उसे समझ पाने या अनुभव कर सकने में अक्षम हो जाते है । कही ऐसा तो नहीं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता ? जो भी हो , हवा की रूख भापने वाले संभल जाते है । हमारे शरीर  का निर्माण पाँच तत्वो  से हुआ  है । अतः यह स्वाभाविक है कि इनमे से किसी के अपनत्व  का संपर्क एक अजीब सा अनुभव ही देगा । 

हम लोको चालको का कार्य स्थान्तरित होते रहता है । कभी इस शहर में तो कभी उधर । यात्री गाड़ी हो तो अनुभव के अवसर बहुत मिलते  है । तरह - तरह के यात्रियो से संपर्क बनते है । हर किस्म के लोग संपर्क में आते है । इस अनुभव और प्रश्नो कि लड़ी उस समय और बढ़ जाती है ,जब किसी बाधाबश गाड़ी देर तक रूक गई हो । यात्री  झुण्ड के झुण्ड लोको के पास आ खड़े होते है । प्रश्न वाचक चेहरे , प्रश्न वाचक शव्द -हमे संयम कि पटरी पर ला घसीटते है । 

लाख करें चतुराई पर विधि कि लिखन्ती को कोई टाल नहीं सका है । अगर ईश्वर है , तो कालनिर्णय का चांस सभी को देते है । कोई जरूरी नहीं कि आप भी इस मत से सहमत हों । उस दिन ऐसा ही कुछ हुआ था । मै अपने को -लोको चालक के साथ सिकंदराबाद आरामगृह में कॉफी कि चुस्की ले रहा था । ठंढ लग रही थी । सबेरे का वक्त था । अभी - अभी बंगलूरू - हजरतनिजमुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस को काम करके आयें थे । वि. आर. के. राव ने कहा -मै अपोलो अस्पताल जाकर आता हूँ । आप नास्ता कर लेना । मैंने पूछा - ऐसी क्या बात है ? 

उन्होंने जो बताएं वह इस प्रकार है --
" मेरे सम्बन्धी एक अपार्टमेंट हैदराबाद में ख़रीदे है । उन्होंने  शिफ्ट करने के पहले दूध गर्म और गृहप्रवेश कि पूजा हेतु , गुंतकल से  सपरिवार अपने कार से हैदराबाद आ रहे थे । वे लोग रात को ग्यारह बजे यात्रा शुरू किये । रास्ते में एक बजे कार चालक ने कहा -मुझे नींद आ रही है । एक घंटा सोना  चाहता हूँ । चालक को अनुमति मिल गयी । कार को सड़क के एक किनारें पार्किंग कर सो गया । कुछ आधे घंटे ही हुए होंगे , मेरे रिस्तेदार ने उस चालक को आगे चलने को कहा , क्यूंकि सुबह का मुहूर्त छूट सकता था । 

अल साये हुए चालक और कार चल दी । यात्रा के दौरान कुछ दूर जाने के बाद चालक ने कंट्रोल खो दी और कार ने पलटी मारी । सभी रात  भर घायल अवस्था में कार में पड़े रहे । किसी वाहन चालक या पथिक  ने उनकी सुध नहीं ली । सुबह आस - पास के गाव वालो की नजर पड़ी और उनके मदद से मेरे रिस्तेदार अपोलो में भर्ती है । सभी को गम्भीर चोट पहुंची है । "

जी हाँ । यह घटना पिछले माह कि है । अब वे लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके है । आधा घंटा पहले का निर्णय महंगा पड़ा ? या नियति में यही लिखा था ? या कर्म के परिणाम थे ?या अपार्टमेंट अशुभ था ? जो भी हो हवा और अग्नि में जरूर फर्क होता है । 

Thursday, July 11, 2013

अजीब सी है यह शिकायत पुस्तिका ।

 कौन ऐसा होगा जिसे किसी से शिकायत  न होगी ? शिकायत का नाम आते ही हम कुछ दुविधा में पड़  जाते है । जैसे सांप सूंघ गया हो । बहुतो को एक दुसरे की शिकायत करते देखा गया है , परन्तु लिखित शिकायत के नाम पर  खिसक जाते है । आखिर क्यों ?

 शिकायत पुस्तिका और इसके  समक्ष  उत्पन्न होने वाले प्रश्न -

१ . हमें शिकायत करनी चाहिए , पर करते नहीं ।
२. अन्य को परवाह नहीं , मै  ही क्यों मुशिवत मोल लूं ?
३ .दूसरो को भी कहते नहीं थकते  की इससे होगा क्या ? यानी अपरोक्ष रूप से मनाही ।
४. तुम्हे ही इतनी चिंता क्यों है ? बहुत से लोग है जिन्हें यह परेशानी  है । छोडो इस ववाल को ।
५ .मुझे पूरी तरह से लिखने नहीं आता अन्यथा शिकायत कर देता ।
६ मै किसी परेशानी में नहीं उलझन चाहता ।
७ बहुतो को शिकायत बुक कहाँ मिलेगी - की जानकारी ही नहीं होती ।
८ कुछ दफ्तरों में  इस मुहैया नहीं कराया जाता ।
वगैरह - वगैरह

.क्या  हम इतने भीरु और डरपोक हो गए है । कईयों को कहते सुना है , छोडो यार किसे परेशानी मोल लेनी है । वाह कौन सी  परेशानी ...यही  डर तो हमें अव्यवस्था को बढाने  वाले  की  श्रेणी में ला खड़ा करता  है ।आखिर हम जिम्मेदारी और कर्तव्य से कब तक डरते रहेंगे ? कब तक सहते रहेंगे ? इसीलिए कहते है की सारी समस्याओ का  जड़ हम ही है । हम ही है , जो निकम्मों और अयोग्य  लोगो को अपना नेता चुनते है  और बाद में पछताते है। उनके पापो को धोते फिरते है । 

प्रायः सभी सरकारी कार्यालयों में शिकायत पुस्तिका मिल जाएगी । कई पुस्तिका इतनी गन्दी और मैली दिखती  है जैसे दसको तक उसे छुआ नहीं गया हो । चलिए सरकारी महकमे को संतुष्टि मिल जाती है की सब कुछ ठीक है । प्रजा को कोई दुःख या तकलीफ नहीं । जी हाँ यह सच्चाई भी है की कई मामलों में शिकायत कर्ता को भी   परेशानी झेलनी पड़ी ।  थोड़ी सी परेशानी ,  वह भी कुछ खामियों की आपुर्तिवश उतपन्न हुयी हो सकती है । पर ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता को लाभ ही मिला है ।

अजीब सी है यह शिकायत पुस्तिका । यहाँ एक वाक्या  याद आ गया । जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ । रात्रि का समय । करीब डेढ़ बजे ।एक युवक  रायलसीमा एक्सप्रेस की इंतजार में  प्लेटफोर्म पर चहल कदमी कर रहा था ।ट्रेन आने में काफी समय था अतः वह एक बेंच पर बैठ गया । उसे ख्याल ही नहीं रहा कि बेंच को अभी - अभी पेंट किया गया था । जब तक उसके ध्यान उस तरफ जाते -उसके पेंट और शर्त चिपचिपे और गंदे हो गए थे । उसके हावभाव से लग रहा था कि वह बहुत परेशां है । वह स्टेशन मास्टर के कार्यालय में गया और अपनी आप बीती कह सुनाई । मास्टर ने कहा की आप को बैठने के पहले बेंच को देख लेना था ? कल रेल मंत्री जी आ रहे है , इसी लिए जल्दी में बेंच की पेंटिंग की गयी होगी । मै उस कार्यालय से बात करूँगा । मास्टर ने इसके लिए उस व्यक्ति से क्षमा भी मांगी ।

वह युवक निडर था । उसने शिकायत पुस्तिका मांगी । स्टेशन मास्टर बिना किसी हिचकिचाहट के शिकायत पुस्तिका के लोकेशन को बता दिया , जो उसके कार्यालय में एक कोने में पड़ी हुयी थी । उस व्यक्ति ने शिकत पुस्तिका में अपनी शिकायत को -रेल मंत्री  को संबोधित करते हुए लिखा कि-" आप कल निरिक्षण को आ रहे है , इसी लिए यात्रियों के बैठने के बेंच को किसी ने पेंट किया । मै उस बेंच पर बैठा और मेरे पेंट तथा शर्त गंदे हो गए । आप कार्यवाही करे । "

जी हाँ पाठको । आप को जानकार हैरानी होगी की रेलवे ने उस शिकायत पर उचित कार्यवाही की । जो अपने आप में इतिहास बन गया । उस व्यक्ति के पते पर एक शर्ट  और पेंट की कीमत का ड्राफ्ट भेज गया । दोस्तों यह शिकायत पुस्तिका ही आप का प्रिय दोस्त है । इसका खूब इस्तेमाल करें और इसके मुल्य को समझे । मैंने अपने जीवन में बहुत सी शिकायते की है और फल को भी प्राप्त किया हूँ । फिर कभी और चर्चा होगी आज बस इतना ही ।

(स्थान , स्टेशन और मास्टर को उधृत नहीं किया हूँ । यह जरूरी नहीं समझता । क्षमाप्रार्थी हूँ । ) 


Saturday, June 15, 2013

शिर्डी वाले साईं बाबा



दोनों एक समय  के जिगरी दोस्त थे । बहुत दिनों के बाद एक साथ और परिवार के साथ  मिले थे । वह भी महाराष्ट्र के मशहूर धार्मिक नगर शिर्डी में । दो दिनों का प्रोग्राम था । दोनों छुट्टी पर थे । एक एयर फ़ोर्स में कार्यरत शिव थे , तो दुसरे रेलवे के अधीन महादेव ।  नाम  अलग - अलग , पर अर्थ एक जैसे । यह भी एक इत्तेफाक था । पहले दिन नासिक दर्शन को  गए थे । थकावट में रात गुजरी । सुबह होते ही बाबा के दर्शन करने के बाद , शिर्डी  से प्रस्थान की व्यवस्था हो चुकी थी । 

दुसरे दिन वही हुआ , जो प्रोग्रमित था ।  दोनों दोस्त दोपहर के भोजन के बाद भक्ति निवास में लौट आयें । यही दो कमरे बुक हुए  थे । दोनों  दो बजे रेलवे स्टेशन के लिए रवाना होने वाले थे । शिव की ट्रेन नासिक से थी और महादेव की कोपर गाँव से । अतः शिव ने एक कार को भक्ति निवास में ही बुक कर लिया । कोपर गाँव जाने के लिए कोई साधन भक्ति निवास में उपलब्ध नहीं थे । साईं बाबा के मंदिर के सामने ही कोपर गाँव के लिए साधन मिलते है । 

दोनों के जुदा होने का वक्त आ गया था । भक्ति निवास में शिव अपने परिवार के साथ कार में जा बैठा । महादेव और उनके परिवार वालो ने विदाई हेतु अपने हाथ को हवा में लहराए । तभी महादेव के दिमाग में  एक तरकीब जगी , क्यों न हम सभी  इसी कार में साईं बाबा के मंदिर तक चल चले ? और दो मिनट  एक साथ रहेंगे । शिव ने भी ख़ुशी जाहिर की । महादेव भी परिवार के साथ उस कार में बैठ गया । कार पोर्टिको से बाहर सड़क की ओर चल दी । 

ओ ..ड्राईवर कार रोको ? किसी ने कार ड्राईवर को इशारा करते हुए कहा । ड्राईवर ने कार रोक दी । शायद वह ऑटो वाले थे । उसने ड्राईवर को  मराठी भाषा में कुछ हिदायत दी और न मानने की हालत में सौ रुपये जुरमाना देने को कहा । दस मिनट हो चुके थे । माजरा क्या है ?  जानने के लिए महादेव ने ड्राईवर से प्रश्न किया  । ये लोग दो परिवार को क्यों बैठाये हो -के मुद्दे पर प्रश्न खड़ा कर रहे है । एक ही परिवार को ले जाने के लिए कह रहे है । यह सून कर बड़ा ही ताज्जुब हुआ । ड्राईवर  और महादेव ने उन्हें समझने की लाख कोशिस की और उन्हें बताया गया कि एक परिवार मंदिर के पास उतर जाएगी । किन्तु उन लोगो के कान पर जू तक न रेंगी । उनकी बात न सुनी गयी , तो कार के चक्के की हवा निकाल देंगे । 

मामला गंभीर न हो जाए अतः महादेव  स्वयं परिवार सहित कार से निचे उतर गए और अफसोस के साथ दोस्त को अलबिदा किया । धर्म के स्थल पर यह घोर अन्याय है । महादेव मन ही मन बुद  बुदाये । ऑटो वाले ठीक नहीं कर रहे है । महादेव ने गुस्से के साथ पत्नी से कहा कि हम यहाँ से किसी ऑटो को किराये पर नहीं लेंगे और पैदल ही मंदिर तक जायेंगे । 

पहिये वाली सूट केस और बैग को सड़क पर खींचते हुए मंदिर की तरफ चल दिए , जहाँ से कोपरगाँव की   ऑटो / जीप  मिलती है । ऑटो वाले देखते रह गए । सहसा एक ऑटो आकर उनके समक्ष रूका , जिसे कोई बारह या पंद्रह वर्ष का लड़का चला  रहा था । लडके ने कहा - ऑटो में बैठिये मै मंदिर तक छोड़ देता हूँ । महादेव के मन में गुस्सा था । उसने सीधे इंकार कर दिया । किन्तु ऑटो वाला अपने   जिद्द पर अड़ा  रहा । अंततः महादेव ऑटो में बैठ गया ।



 दो मिनट में मंदिर स्थल आ गया । महादेव ऑटो से उतरने के बाद भाडा देने हेतु अपने पर्स खोलने लगे  । पर ऑटो वाला बिना देर किये , बिना भाडा लिए ही , वहां से  फुर्र हो  गया । जबकि भक्ति निवास से मंदिर तक का ऑटो चार्ज बीस रुपये था । महादेव आश्चर्य चकित थे । भला जिस पैसे के लिए उन ऑटो वालो ने हमे कार से उतरने के लिए विवश कर दिया था , वही बिन भाडा कैसे जा सकते है ? उन्हें समझते देर न लगी । साईं बाबा ने अपने भक्तो को कभी भी उदास नहीं किया है । सभी की बिदाई ख़ुशी से करते है । महादेव ने मन ही मन साईं बाबा को प्रणाम किया । 

ॐ साईं .....ॐ साईं ....ॐ साईं .....

( साथियों ....यह घटना सत्य पर आधारित है । परिवेश वही है , पर नाम बदल दिए गए है । दूर घर बैठे फोन के माध्यम से अपनो से बात चित हो जाती है । क्या यह सत्य नहीं की मंदिर रूपी फोन  के माध्यम  से हमारी आवाज भी ईश्वर तक पहुँच जाती है ?) 

Saturday, May 18, 2013

मेरे नैना ...क्यू भर आयें ?

जीवन से मृत्यु का सफ़र सभी के लिए खुशनसीब नहीं होतें । संघर्ष भरी कड़ी का अंत ही तो मृत्यु  है । इन्होने जीवन को  एक कर्मयोगी की तरह जी थी । ऐसे पुरूष विरले ही देंखे थे , जिन्हें कभी गुस्सा आया हो ? किसी को भी मुस्कुराकर स्वीकार करने की शक्ति इनमे थी । बच्चे हो या नौजवान या हमउम्र ...सभी से हंसते हुए व्यवहार ..गजब से थे । ह्रदय में गुस्से की प्रतिशत नाममात्र भी नहीं । मैंने अपने जीवन का बचपन इनके आगोश में ही  विताएं । मुझे  याद है , एक ..... बस एक  बार थप्पड़ मारे थे , वह भी स्कूल जाने के लिए । पिताजी ऐसे थे , जिन्हें एक भी शत्रु नहीं थे । उनकी सक्सियत विरले ही मिलेगी । खुद हम भी उनके कदमो  पर चलने में असमर्थ है । 

पढ़े नहीं । स्कूल नहीं गए थे । रामायण की चौपाई या दोहें सामने बैठे बच्चो को प्यार से सुनाते  थे । किताबे धीरे - धीरे पढ़ लेते थे । कागजातों पर हिंदी में अपनी हस्ताक्षर कर लेते थे । गाँधी जी को देंखे थे हमें उनके बारे में भी बताते थे । उन्होंने कभी भी पैसे नहीं पूछे । निस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी । उन्हें गाय - गरू और खेती बहुत प्रिय थे । जब -तक शरीर में दम थे ,खेती को नहीं छोड़ें । 
उनकी बराबरी करने की शक्ति हम दोनों भाईयो में नहीं है । 

पिछले एक वर्ष से वे कमजोर हो गए थे । दावा -दारू चल रहा था । विस्तर पकड़ लिए थे ।  दिनांक ८ अप्रैल २ ० १ ३ को मेरे दादा जी के छोटे भाई का देहांत हो गया । पिताजी ने  घर के अन्दर से ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय देखा । वे भाव - विह्वल हो गए ।  " काका मुझे छोड़ कर चले गए । "- कह -कह कर रोने लगे थे । इसके उपरांत पिताजी की तबियत और ख़राब होने लगी । खान - पान बंद होने लगे । सभी को आशा की किरण कम नजर आने लगी । मुझे इसकी सूचना मिली । 2 3 अप्रैल 2 0 1 3 को बछिया के पूंछ पकडाने और उसको ब्राह्मण को दान देने की विधि संपन्न कराई गयी । इसके बाद उनकी आँखे और बात - चित बंद हो गयी । 

इस गंभीर समाचार के बाद मैंने अपनी यात्रा शुरू कर दी । 2 5 अप्रैल 2 0 1 3 को ट्रेन पकड़ी । गुंतकल से बलिया जाने में कम से कम 4 8 घंटे लगते है । इधर सभी परेशां थे क्यूंकि उनके काकाजी का क्रियाकर्म 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को होनी थी । डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे । यात्रा के दौरान हर घडी की खबर मुझे दी जा रही थी । 2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को इलाहबाद पहुंचा । देखा -मोबाईल का स्क्रीन क्रैक हो गया था । मन में डर पैदा हो गया । वातानुकूलित डिब्बे में अपने बर्थ में मुंह छुपा कर रो दिया था । 

शाम को साढ़े छह बजे बलिया पहुंचा । मेरे बहनोई मुझे लेने के लिए आयें । घर पहुँचाने में बस आध घंटे की दुरी बाकी थी । तभी बहनोई की मोबाईल बजी । बहन का फोन था । फोन रखते ही उनकी आँखे भर आई । माजरा समझते देर न लगी । पिताजी जी मुझसे मिले वगैर प्रस्थान कर चुके थे । रात का अँधेरा , चारो तरफ फैला हुआ था । जो उत्तर - प्रदेश की उन्नति का गवाह था । घर में कदम रखते ही माँ , बहन और अन्य सभी रो पड़े । मै  पिताजी के पार्थिव शरीर से चिपक कर रोने लगा । माँ सुध खोये जा रही थी । अपने ऊपर कंट्रोल किया और माँ को सान्तवना दी की आप के सामने अभी मै हूँ । आप निः फिक्र रहे । 

कितनी विडम्बना थी की 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को जब -तक उनके काकाजी का क्रिया कर्म और भोज की प्रक्रिया चली  , उनके प्राण नहीं निकलें ।शायद  पिताजी की आत्मा अपने काकाजी  के रस्म में खलल नहीं डालनी चाहती थी  । सभी कह रहे थे की अंतिम क्षणों में तीन बार भगवान का नाम लिए थे । दुसरे दिन 2 7 अप्रैल 2 0 1 3 को पिताजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपूर्त कर दिया गया । कईयों की इच्छा गंगा में परवाह करने की थी । किन्तु माँ ने इच्छा जाहिर कि  की  हमारे पुरखे जिस जगह अग्नि को सुपुर्द हुए है  , वही इनका भी संस्कार होगा । माँ की इच्छा भला कौन टाले  ?  ज्येष्ठ पुत्र के नाते मुझे ही मुखाग्नि देनी पड़ी । बाकी सभी क्रिया कर्म गरूण पुराण के अनुसार पूर्ण हुए । 

कुछ सार्थक मुहूर्त होते है । जो कुछ न कुछ कह जाते है । सभी को इस मृत्यु रूपी सच्चाई का सामना करना है । दुनिया से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ ? बस अपने कर्मो के पद छाप छोड़ जाते है । 


                                             मेरी रेलवे की नौकरी दिनांक - 2 6 जून 1 9 8 7 । 
                                             मेरे दादाजी की मृत्यु दिनांक - 2 6  जून 1 9 9 6 । 
                                            मेरे पिताजी की मृत्यु दिनांक -2 6 अप्रैल 2 0 1 3 । 
                                             "--------------------------- "-2 6 .                    ?

जीवन की सबसे बहुमूल्य समय गवा दिया था । पिताजी का अंतिम आशीर्वाद से वंचित रहा । यह हमेशा ही खलेगा । मेरे नैना  फिर भर आयें ....फिर भर आयें ......



Saturday, March 30, 2013

धोती , कुर्ता और टोपी |

ये भाई जरा देख के चलो 
दायें  भी नहीं  , बाएं भी ,
आगे भी नहीं ...  पीछे भी 
ऊपर भी नहीं  , निचे भी | यानी चारो तरफ से सतर्क |
 या 
चाँद न बदला , सूरज न बदला ...पर 
कितना बदल गया इन्सान ?

जी | सही  भी है | हर क्रिया के पीछे प्रतिक्रिया छिपी होती है | बहुत से जिव - जंतु  घास खा सकते है | घास खाने वाले अपने अंग से दूध विसर्जित कर सकते है | जो किसी दैविक शक्ति से कम नहीं | मानव वर्ग  सुन्दर से सुन्दर खाद्य सामग्री  खाकर भी नमकहराम हो जाते है | उनके द्वारा विसर्जित तत्व अनुपयोगी साबित होते  है | थोड़े समय के लिए सोंचे - दुनिया के सभी मानव श्रेणी   एक जैसी  होते तो क्या होता  ? क्या हम उंच - नीच , अल्प - ज्यादा  आदी के अंतर समझ  पाते   ? बड़ा ही कठिन होता | 

समानता में विखराव पण भी लाजमी है | यही वजह है कि हर व्यक्ति एक ही रंग  या एक ही आकार - प्रकार  व् पसंद  वाले नहीं होते | सभी के अंगो से खुशबु( यश ) नहीं निकलती | पर यह सही है कि मानव के कार्यकलाप , गतिविधिया , हाव  - भाव और आँखों की कलाएं ....उनकी पोल खोल देती है | या यूँ कहे कि सभी क्रियाएं  मानव के दर्पण है | जो कभी झूठ नहीं बोलते  | तिरछी आंखे , पलट -पलट  कर  देखना , अंगो को सिकोड़ लेना , गले लगा लेना ,सिर पर हाथ रखना वगैरह - वगैरह बहुत  से अनगिनत शव्द है | जो राज को  छुपाने नहीं देते  |

कहते है -हमारे पूर्वज असभ्य और अशिक्षित थे | जंगलो और पहाड़ो  में निवास करते थे  |  असभ्यता की जंजीरों में जकडे हुए , जीवन को जीते हुए ..सभ्यता के राह पर चल दिए | कहते है आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है | सब कुछ बदलने लगा , मानव की आवश्यकता के अनुरूप  | धीरे - धीरे बदलाव आये | आग के से लेकर वायुयान तक के अविष्कार हुए | ध्वनि तेज हुयी  | शर्म और हया की अनुभूति धागे और कपड़ो को विस्तार दिए होंगे  |  कपडे की अविष्कार  की वजह तन को ढकना और सुरक्षित रखना  ही था ,आज -कल की तरह  नुमयिस नहीं | प्राकृतिक आपदाएं और अलग - अलग प्राकृतिक आवोहवा ने सूक्ष्म , पतले और कोमल कपड़ो को  जन्म दिए  |

 मानवीय गुण   और व्यवहार में विकास |  रंगों के समागम और भेद  | रंगों से पहचान  बढ़ी होगी | गेरुवे , काले  , सफ़ेद  और रंगविरंगे परिधान -व्यक्ति के  व्यक्तित्व को उजागर करने के माध्यम बने  होगे | गेरुवे सन्यास , पुजारी ,काले विरोधक और सफ़ेद सादगी की पहचान बनी होगी | इस संसार को वक्त के थपेड़ो का शिकार होना पड़ा ,जो बदलाव के कारन बने   | फिर भी आज भारतीय संस्कृति में बहुत कुछ है सुरक्षित है , जो वक्त के थपेड़ो को झेल गया , उसमे किसी प्रकार की बदलाव नहीं आई  | 

भारतीय संस्कृति की धरोहर और  मिसाल दुनिया में कहीं  नहीं मिलती | मनुष्य के रहन - सहन और  पहनावे बदलते गए | आज हमारे सामने रंग - विरंगी दुनिया खड़ी है |  धोती ज्यो की त्यों हमारे सामने अडिग खड़ी है | जी हाँ ...धोती - कुरते और साडी दुनिया के किसी और छोर में विरले ही मिलते होंगे , अगर मिल भी गएँ , तो भारतीय मूल में ही होंगे | एक नारी के लिए उसके साडी की खुब सुरती नायब है |साडी में नारी की आभा खिल उठती है | वह भी सिर्फ  भारतीय नारी की  | साडी  नारी के  व्यक्तिव में निखार  और सादगी लाती  है | मजाल है जो कोई अंगुली उठा के देखे ? किसी विदेशी को साडी पहना कर देखे -आप हँसे न रह पाएंगे | भारतीय नारी की अस्मिता को ढंकती है --यह भारतीय सांस्कृतिक साडी | पर दुःख है की यह जिसके लिए निर्मित हुयी  थी वह भी समय के साथ बदल गयीं  | अपनी संस्कृति और धरोहर को छोड़ , हम पाश्चात्य के पीछे दौड़ने लगे  | जरूरत से ज्यादा नकलची बन बैठे  |

 किन्तु हमारी भारतीय  संस्कृति और यहाँ के  संस्कार इतने  कमजोर नहीं है , जो इतनी आसानी से बदल जाती  | आज भी देश के कई क्षेत्रो में धोती - कुरते वाले मिल जायेंगे | जो एक महान देश के महान संस्कृति की परिचायक है |  इसका सफ़ेद  रंग सदाचार , सदगुण के धोत्तक  है , अपवाद सवरूप कुछ होंगे जो इस पहचान को मिटटी में मिला रहे है , फिर भी हमारे भारतीय संस्कृति में   धोती की गरिमा अवमुल्य  है | शव्दकोश में धोती के पर्याय शव्द नहीं है | इतनी मजबूत है यह हमारी धोती | आज भी इस  वस्त्र को धारण करने वाले अधिक आदर के पात्र होते है | अतः हम कह सकते है कि हमारे  पहनावे , हमारे आकृति को बुलंदियों पर ले जाते है  | 

एक वाकया याद आ गया , जो प्रासंगिक है , प्रस्तुत है |  वर्ष १९८८ -बंगलूर में गया हुआ था | उस समय जींस - पेंट का बाजार जोर लिए हुए था | जवान था | कुछ वर्ष पूर्व ही शादी हुयी थी | दोस्तों ने जोर दी एक सेट ले लो | एक जींस और टी - शर्ट खरीद ली | उस वक्त करीब सौ रुपये लगे  | दुसरे दिन पत्नी के समक्ष पहन खड़ा हुआ |  घर में बड़े मिरर नहीं थे , जो अपनी तस्वीर देख लेता  | अपनी तस्वीर को दूसरों  के आँखों में देखने पड़ते थे |  जो प्राकृतिक ऐनक हुआ करते थे | पहले पत्नी की प्रमाणिकता जरूरी थी | पत्नी ने मुह विचका लिए | कुछ नहीं बोली |  संसय में झेप  गया | अरे भाग्यवान  कुछ तो बोलिए  ? क्या बात है ? पत्नी ने बहुत ही साधारण सी जबाब दी -" आप के  व्यक्तित्व में नहीं खिलती है | " . ओह ये बात है | जींस पेंट और टी-शर्ट निकाल फेंका | जी यह भी सत्य है कि आज - तक  उधर मुड़कर नहीं देखा | भाई को दे दी | वह भी पहनने से इंकार कर दिया | आज भी वह सेट माँ के कस्टडी में ,  माँ के प्यारे बॉक्स वाली अजायब घर  में बंद है |

ये मेरे अपने विचार है , आप के अपने - अपने विचार व् भाव अलग - अलग हो सकते है | सभी स्वतंत्र है | इस लेख / पोस्ट का मतलब  किसी के वैभव / पसंद को ठेस पहुँचाना नहीं है | हमारे संस्कार अटल है | हमारी संस्कृति अटल है | तभी तो धोती - कुरता के ऊपर इस टोपी की जादू नहीं  चली  | भारतीय संस्कृति हमारी धरोहर है | इसे बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है |


Monday, March 4, 2013

अंक की बिंदिया

कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक  था  | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल  ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में    विभिन्न  परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है | 

मन की अभिलाषाएं -असीमित  है | इस असंतोष की  भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने  अपने  जीवन में सादा  विचार और सादा  रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा  के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी  इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?

इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन  कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर  दिल की  ख्वायिस और  इच्छा के आगे  घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा  का शिकार हो जाता  है , जब उसके सामने  बहुत सी सुविधाए और अवसर के  मार्ग उपलब्ध हो  |    

मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था |  मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को  कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से  -इस जगह को खोज निकाला  था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते  है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना  |  बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी  को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और  नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की  कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और  प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती   है | 

उस दिन की काली कोल सी  , काली भयावह रातें  कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास  दर्द ही तो उत्पन्न  कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो  | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |

 उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली  ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी  | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात  के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा  | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे  लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की  तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |

अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे  | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण  औरत की ख़ुशी और उसके अंक  की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी  आँखों में आंसू भर आयें  |  दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है | 

एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी  मानवता है  , तो हमें नजदीक खीच लाती  है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही  है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर  सैलरी  और जहाँ - चाह  वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए  ?

 अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही  अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो | 

Saturday, January 26, 2013

कर भला हो भला |

अरे कलुआ ( बदले हुए नाम ) ...कहाँ है रे |  तू बाहर  आ  | क्या कर दिया रे | आज मेरे पुत्र को क्या हो गया  ? बहुत कुछ बडबडाते  हुए वह  औरत आगे बढ़ रही थी | रात्रि  का पहर  | चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा | गाँव का मामला | बिजली की आस नहीं | झींगुरो की आवाज गूंज रही थी | कुत्ते भूकने लगे थे | आचानक वह महिला चिल्लाते हुए कलुआ के दरवाजे पर आ धमकी  | उसके पीछे लोगो का झुण्ड   किसी के हाथ में लाठी  , तो किसी के हाथ में डंडे | टार्च की रोशनी फैल रही थी | शोर गुल तेज हो गए | आस - पास के लोग भी अपने घरो से बाहर  निकल आये | किसी को माजरा  समझ में नहीं आ रहा था, आखिर बात  क्या है ?

उस गरीब के झोपड़ी के सामने , इन दबंगों के भीड़ को देख सभी समझ गए की जरुर कुछ लफडा है | लगता था जैसे भीड़ कलुआ को चिर कर खा जाने के लिए तत्पर हो चली थी  | उस झोपड़ी के अन्दर तेल के मद्धिम  दीप की  रोशनी में कलुआ की बीबी चूल्हे पर कुछ पका रही थी | दो छोटे बच्चे पास में ही चिपके हुए थे | कलुआ पास में बैठा ,बीडी पिने में मशगुल था  | घर के बाहर  उसके सास और ससुर  चौकी पर लेटे हुए थे | इतनी हुजूम ,  देखते ही उनके अन्दर डर समां गयी | अँधेरे में भी उन्हें समझते देर न लगी की कौन उनके घर के पास खड़ा है और  चिल्लाये जा रहा है |

' बबुआ की माँ जी का  बात है ?'-कलुआ के बाप के मुह से सहमी सी  आवाज निकली | पहले बता कलुआ कहा है ? भीड़ से किसी ने कहा | तब तक कलुआ झोपड़ी के अन्दर से धीरे - धीरे  बाहर निकला | उसके बाहर  आते ही वह बुड्ढी ( जो  संपन्न / दबंग घर की महिला थी ) कलुआ के पैर पर गिर पड़ी | कलुआ मेरे बेटे को बचा लो | मेरा बेटा मर जायेगा | मेरा बेटा मर जायेगा | वह एक साँस में बोले जा रही थी  ,  रुकने का नाम नहीं ले रही थी और कहते - कहते बिलख कर रोने लगी | सभी हतप्रभ थे , किसी को समझ में नहीं आया | आखिर मामला क्या है ?

चाची जी रौआ उठी | ऐसन का बात हो गईल , जो इतना परेशान बानी | उसने  भोजपुरी लहजे में   ही कहा  और अपने पैर को दूर खिंच लिया |  वृद्धा उठ चौकी के एक कोने में बैठ गयी  और अपनी बात दुहराते हुए फिर बोल पड़ी  - बेटा  कलुआ , मेरे बेटे से गलती हो गयी | अगर उसने कुछ गलत किये हो तो , उसके लिए मै माफी मांगती हूँ , माफ कर दो | तेरे सभी पैसे मै देने  के लिए तैयार हूँ | कुछ कर धर ( मतलब कोई टोटके ) दिया हो तो उसे वापस ले लो | तू भी मेरे बेटे सामान है | कलुआ मेरा बेटा मर जायेगा | और बहुत कुछ ....

कलुआ हक्का बक्का सा गुमसुम खड़ा रहा  | उसे समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है ? असमंजस सी स्थिति | आस - पास वाले भी कुछ न समझ पाए |

गाँव के हाट बाजार | जो सप्ताह में दो दिन , वह भी संध्या समय ही लगते है - रविवार और बुधवार | उस दिन रविवार थे | बाजार खाचा - खच भर गया था | इस हाट बाजार में दबंगों की दबंगई जोरो पर रहती है | अतः सभी व्यापारी , इस बाजार में आने से डरते है | कुछ परिस्थिति से सामंजस्य बना लेते है | कलिया (मांस ) के दूकान एक या दो लगती है | मछुआरे एक तरफ चार या पांच की संख्या में आते है | उसमे कलुआ भी एक था | वह अपने टोकरी में मछली लेकर बिक्री कर रहा था | लेने वालो के हुजूम लगे हुए थे | कोई भाव पूछ रहा था तो कोई मोल भाव में व्यस्त | तभी अमर सिंह ( बदले हुए नाम )  दबंगों का झुण्ड आ डाटा | उन्होंने कलुआ से  मछली का रेट पूछा  | बीस रूपए किलो साहब | अबे बीस रुपये मछली कहाँ है रे ?  दस रूपए में दे दो | नहीं साहब घाटा  हो जायेगा | कलुआ गिडगिडाने लगा | दबंगों ने जबरन दो किलो मछली तौल  लिए और जाते - जाते पैसे भी नहीं दिए | कलुआ मुह देखते रह गया |

घर की औरतो ने  मछली  बहुत मसालेदार  बनायीं | घर के सभी छोटे - बड़े .. बारी - बारी से भोजन ग्रहण कर लिए थे | जब अमर सिंह  भोजन करने लगा  ( जिसने कलुआ से जबरन मछली छीन कर लायी थी ) अचानक उसके गले में मछली के कांट फँस गए | बहुत चेष्टा की ,सादे भात खाए  पर  निकलना मुश्किल | घर वाले गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में ले गए | डॉक्टर ने जबाब दे दिया |  डॉक्टर ने कहा - शहर के अस्पताल में ले जाएँ | शहर के अस्पताल ने वनारस को रेफर कर दिया | घटना क्रम से प्रभावित हो किसी साथी  ने कह दी की मुफ्त की मछली का नतीजा है | कलुआ ने कोई जादू - टोना की होगी | परिणाम सामने है सभी घर वाले क्षमा - याचना वस् कलुआ के घर दुहाई के लिए जुट गए थे  | कलुआ की अनुनय - विनय हो रही थी |

 संसार में जीवो की उत्पति ही कुछ न कुछ अर्थ रखती  है | मनुष्य सबसे चालक और उत्कृष्ट माना जाता है | इसके कार्यकलापो से  हवा के अन्दर जो स्पंदन उठती  है , वह आस - पास की सभी चीजो को प्रभावित करती है | आग के पास बैठने से गर्मी या सर्दी नही | आम से आम या इमली नही | परिणाम हमारे कर्मो की देन है ,फिर आंसू किस लिए ? इसीलिए कहते है -- कर  भला - हो भला | 

(  यह सत्य घटना मेरे गाँव की | परिणाम बहुत ही दर्दनाक रहें | तीन महीने बाद अमर सिंह की मृत्यु हो गयी | आज गाँव में यह घटना एक उदहारण बन गयी है | जैसी करनी वैसी भरनी | मछुआरो ने गाँव का बहिष्कार कर दिया था |  )

Sunday, November 11, 2012

सावधानी हटी ....दुर्घटना घटी ।

आज धन- तेरस है । दक्षिण दिशा में दीप जलाने  और अकाल मृत्यु से मुक्ति का दिन । सभी जगह दुकाने सजी हुई  है । नए सामानों को खरीदने की होड़ । सभी को लक्ष्मी जी को मनाने और अपने घर में आगमन की  तैयारी / और  इंतज़ार । अपने - अपने ढंग और तैयारी  । साफ़ - सफाई और समृद्धि  की पूजा / त्यौहार है ..यह ..दिवाली । कहीं  समृद्धि  तो कहीं दिवालापन । तरह  तरह के भाग्य आजमाने के नुस्खे ।

 कल किसने देखा है । अतः आज की सुरक्षा  ही कल की दिवाली है । मनुष्य अत्यंत ही महत्वाकांक्षी प्राणी है । अपने अभिलाषा  की पूर्ति हेतु यह जरुरी है .कि ..कदम - कदम पर  सावधानी बरती  जाय । अब  देखिये ना ...कल यानी  दिनांक  10 . 11. 2012  कि एक घटना याद आ गयी । मै 12163 - दादर -चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता  जा रहा था ।   लोको चालको को ड्यूटी में आते ही सतर्कता आदेश ( caution order ) दिए जाते है । जिसमे यह अंकित होते है कि उसे किन दो स्टेशन के  बीच  , किस किलोमीटर के पास , कितने गति से ट्रेन को  चलाने है तथा किन चीजो का विशेष ध्यान  रखने है ।
 
मुझे भी सतर्कता आदेश की कापी स्टेशन मैनेजर ने दी  । ट्रेन समय से गुंतकल आई । हमने ट्रेन का चार्ज लिया । समय से रवाना भी हुयी । हम जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे ...क्रमानुसार ...आगे आने वाले स्टेशन के सतर्कता क्रम पर भी नजर थी । अचानक मैंने देखा कि पताकोत्तचेरुवु और गूती स्टेशन के बीच 402/1-0 किलोमीटर पर 30 किलोमीटर की गति से जाने का आदेश है क्यों की रेल जॉइंट टूटी हुई  है और मरम्मत का कार्य चल रहा है । 

 तुरंत मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठा । ये दोनों स्टेशन तो ठीक है , परन्तु ये किलोमीटर इन दोनों स्टेशन के बीच  नहीं है , जरुर कोई प्रिंटिंग में गलती हुई  है । मैंने अपने सहायक को कहा की डिप्टी कंट्रोलर को फोन करे और जानकारी लें । सहायक लोको चालक ने ऐसा ही किया । किन्तु डिप्टी कंट्रोलर से सकारात्मक उत्तर नहीं मिला । ट्रेन 105 किलोमीटर की रफ़्तार से दौड़ रही थी ।

असमंजस की घडी । सामने पताकोत्तचेरुवू स्टेशन आने वाला था । कई स्टेशन मास्टरों को वल्कि - ताल्की पर पुकारा गया । कोई जबाब नहीं । अंततः मैंने ट्रेन को पास थ्रू सिगनल होने के वावजूद भी पताकोत्ताचेरुवु स्टेशन में खड़ा  कर दिया । ट्रेन के रुकने के बाद स्टेशन मास्टर हरकत में आया । उसने रुकने का कारण पूछा । मेरे सहायक ने पूरी जानकारी दी । स्टेशन मास्टर एक नया सतर्कता आदेश तैयार कर भेजा । जिसमे किलोमीटर  420/1-0  था । इस तरह एक भीषण दुर्घटना  होने से बची । क्योकि जहाँ कार्य चल रहा था ..वहां ट्रेन गति से चलने की वजह से जान - माल का नुकशान हो सकता था और जहाँ कार्य नहीं हो रहा था , वहां ट्रेन  30 किलोमीटर की गति से चलती थी ।

इसी लिए कहते है --एक लोको चालक सैकड़ो  को बचा सकता है , सैकड़ो मिलकर एक लोको चालक को नहीं बचा सकते  । आज रेलवे में लोको चालक उपेक्षा का शिकार है , फिर भी दिन - रात कड़ी मेहनत कर आप को सुरक्षित ..आप के मंजिल तक पहुँचाने में सतत प्रयत्नशील ।

जी हाँ ...सामने दिवाली है । आप जश्न में मस्त रहेंगे और हम परिवार से दूर आप की सेवा में । पटाखे जलेंगे । प्रदुषण बढ़ेंगे । जेब खाली  होंगे ..जेब भरेंगे । इस पावन - पर्व पर आशा करता हूँ सभी की दिवाली मंगल मय और समृद्धि से परिपूर्ण  होगी । आप इस आतिशबाजी से सावधान रहें और हम ट्रेन के परिचालन में , क्युकी सावधानी हटी , दुर्घटना  घटी ।

Friday, September 7, 2012

लोहा सिंह

नर - नारी ,  घर परिवार , समाज , जिला ,  प्रदेश , देश - विदेश , संसार और यह व्योम । सम नहीं है , भला मनुष्य सम कैसे हो सकता है । हर मनुष्य में कुछ कर सकने की शक्ति छुपी हुयी होती है । कोई पढ़ने में , कोई खेलने में , कोई राजनीति में , तो कोई -भोग  विलास और योग के क्षेत्र में  माहिर है । एक ही कक्षा में कई विद्यार्थी , एक ही शिक्षक के द्वारा  शिक्षा ग्रहण करने के वावजूद भी अलग - अलग मार्ग पर अग्रसर हो जाते है । एक ही धरती ..अलग - अलग बीज   ग्रहण कर , अलग -अलग आकार   देती है । ये तो व्यापारी और ग्राहक का एक अनूठा सम्बन्ध है ।

कुछ जीवन की अनुभूति -

बाबूलाल यादव का नाम आते ही  सभी यही समझ जाते थे .....पढाई में कमजोर विद्यार्थी । शिक्षक के डांट  या फटकार का  कोई असर नहीं । लोहा सिंह इसके नाम का पर्याय बन चुका था । सभी शिक्षको  के उपहास का पात्र । कोई भी उसके तरफ ध्यान नहीं देते थे । होम वर्क नक़ल कर कक्षा  में ही  तैयार करना , शिक्षको की अनुपस्थिति में क्लास के  अन्दर शोर गुल का भागी दार बनना , उसे बेहद पसंद   था ।

कक्षा -6 , स्कूल के दुसरे मंजिल पर क्लास । उस दिन क्लास का आखिरी पीरियड , वह भी व्यायाम और उससे सम्बंधित । पशु  पति सिंह जी इसके शिक्षक थे  । भलामानस व्यक्तित्व वाले । समय - समय पर सामाजिक कार्यकलापो का जिक्र करने में माहिर । क्लास में आयें , किन्तु देर से । हम  सभी शांत मुद्रा में , अगले विषय के इंतज़ार में । क्लास में सन्नाटा । हम सभी की ओर उन्मुख हो उन्होंने अचानक एक प्रस्ताव रखा । उन्होंने कहा की -" इस दुसरे  मंजिल से निचे कौन कूद सकता है ? हाथ उठाये ?"
 
सभी के बीच सन्नाटा छा  गया । शिक्षक महोदय बारी - बारी से सभी की ओर देखने लगे । एक मिनट , दो मिनट और पांच  मिनट गुजर गए । आखिर में असहाय सा प्रतीत होते देख , एक बार फिर उन्होंने अपनी बात दुहरायी । और ये क्या ? सभी को आश्चर्य ...ही ..आश्चर्य । सभी के सामने ..बाबू लाल यादव ने अपने हाथ ऊपर उठायें । बाबू लाल ने कहा -सर मै  निचे कूद सकता हूँ । इधर आओं । पीपी सिंह जी बाबू लाल को अपने पास बुलाते हुए कहा  । सभी लड़को के बीच  फुसफुसाहट की ध्वनि गूंजने  लगी ।

 पीपी सिंह जी ने कहा - इसका फैसला कल प्रेयर के बाद होगा । दुसरे दिन ..सभी लडके - लड़कियों के बीच सिर्फ बाबू लाल यादव की ही चर्चा । इसके हाथ - पैर जरूर टूट जायेंगे । अपने को तीसमार खा समझता है । पछतायेगा । इसे इस तरह के जोखिम लेने की  क्या जरूरत थी ।..अब क्या होगा ? जानने के लिए सब उतसुक । प्रथम पीरियड ..पीपी सिंह जी का न हो कर भी वह ..कक्षा में आयें । उनके मुख पर मुस्कान की छटा । उन्होंने - बाबू लाल यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा -" इधर आओ ।" बाबू लाल उनके करीब जाकर खड़ा हो गया ।  दोस्तों के तरह - तरह की बातो को सुन वह सहम सा गया था । मुख पर सहमी सी मुस्कराहट । पीपी सिंह जी ने  एक बार फिर  बाबू लाल के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा  -" कूदने के लिए तैयार हो ?" बाबू लाल ने हां में सिर हिलाई ।

पीपी सिंह जी हँसे और अपने पाकेट से एक बाल पेन निकाल कर बाबू लाल को उपहार स्वरुप आगे बढ़ाये । उन्होंने कहा -  " बच्चो .. वास्तव में बाबू लाल लोहा सिंह है ।"

Thursday, August 2, 2012

दर्द , दवा और दुवाएँ एक भँवर

जिंदगी में कभी - कभी साहस की परीक्षा भी हो जाती है । मेरे लिए दिनांक 17 जुलाई से 29 जुलाई 2012 का समय , एक चुनौती भरा रहा । एक तरफ दर्द तो दूसरी तरफ कर्तव्य । यही वजह था ,जो मुझे कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत से दूर रखा । यहाँ..., मै उन अनुभूतियो को रखना चाहूँगा । अगर ध्यान से पढ़ा जाय  तो बहुत कुछ समझा जा सकता है । अवश्य पढ़ें
दिनांक 17 जुलाई 2012 -गुंतकल 
मै दिनांक 17 जुलाई को प्रशांति एक्सप्रेस से विजयवाडा जाने वाला था और वातानुकूलित श्रेणी में बर्थ कन्फर्म था । ट्रेन रात को साधे आठ बजे थी ।रिजर्व टिकट किसी दुसरे साथी के पास था । सुबह से ही पूरी तैयारी  कर ली थी । ग्यारह बजे गंगाधरन ने फोन की और कहा की सिखामनी सभी टिकट कैंसिल करवा दिया है । मेरे होश उड़ गए । अब क्या होगा ? जोनल सम्मेलन  में जाना ही होगा , अन्यथा सभी क्या कहेंगे । किन्तु बाद में पता चला की मेरे टिकट सुरक्षित थे ।
दिनांक -18 जुलाई 2012-विजयवाडा 
आल इंडिया लोको रुन्निंग स्टाफ असोसिएसन दक्षिण मध्य रेलवे का ग्यारहवा कांफेरेंस आयोजित था । सभी  कार्यकर्ता और सदस्य एकत्रित हो रहे  थे । मुझे सब्जेक्ट  कमिटी का  चैरमैन बनाया गया था । सभा के कार्यकर्म सुनियोजित ढंग से चल रहे थे । दोपहर बाद गुंतकल से काल आया । फोन मैडम ( पत्नी ) ने किया था । मैडम ने सूचना दी  कि बड़ा बेटा  राम जी अस्पताल में भरती है ! यह खबर घबराहट देने वाली थी  और  मै सभा गृह से बाहर  आ गया । पूरी जानकारी ली ।  अस्पताल में भरती होने का कारण पूछा ? जबाब नकारात्मक थे , क्यों कि डॉक्टर ने कुछ बताने से इंकार कर दिया था । डॉक्टर मुझे ही बताने की जिज्ञासा जाहिर की थी । मैंने मैडम से पूछा -क्या मेरी उपस्थिति जरुरी है ? अगर ऐसा है तो मै  तुरंत घर आने की चेष्टा करता हूँ । मैडम ने कहा कि आप कांफेरेंस  की प्रक्रिया पूरी करके भी आ सकते है । मुझे कुछ शांति मिली और प्रोग्राम में यथास्वरूप शामिल रहा । अंततः रात्रि के साढ़े आठ बजे प्रोग्राम की समाप्ति हुयी । विजयवाडा से गुंतकल जाने के लिए कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं थी , अतः पसेंजर द्वारा यात्रा शुरू हुयी । ट्रेन करीब रात  के नौ बजे छुटी ।

दिनांक -19 जुलाई 2012 -फिर से गुंतकल 
मै  सुबह नौ बजे गुंतकल पहुंचा । घर आने पर पाया कि मैडम अस्पताल में है ।सुबह के नित्यक्रियाकर्म में व्यस्त हो गया , सोंचा  कि  रिफ्रेश होकर अस्पताल में जाऊं । शेव के लिया तैयार हो ही रहा था कि मोबाइल की आवाज आई । बड़े पुत्र की आवाज थी । मद्धिम  स्वर । डैडी डॉक्टर साहब जल्दी बुला रहे है । मैंने शेव के कार्यक्रम को स्थगित कर जैसे - तैसे चल दी । अस्पताल घर के पास ही है । वार्ड में जाते ही नर्सो ने पे स्लिप के जेरोक्स  और declaration फॉर्म की प्रक्रिया पूरी करने को कहा । मै   अपने साथियों को कुछ कार्य सौप कर डॉक्टर से मिलने चला गया । डॉक्टर श्रीनिवासुलु उस समय महिला वार्ड में निरिक्षण पर थे । मामले की गंभीरता को देखते हुए मै  उनसे वही मिलने चला गया , पर वे मुझसे वहां  मिलने से इंकार कर गए और कहा की मै उनका इंतजार आई सी यु में करूँ , जल्द आ रहे है । करीब  आधे घंटे बाद वे अपने चेंबर में आयें ।मै  अन्दर गया । उन्होंने मुझे बैठने को कहा । मेरे बेटे की रिपोर्ट को देखते हुए उन्होंने कहा कि -मेरे बेटे को डेंगू बुखार है । ह्विट प्लेट लेट की संख्या डेढ़ लाख से 23000 हजार को आ गयी है । इस उपचार  की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है , अतः जितना जल्द हो सके लालागुडा ले जाएँ ,वहां व्यवस्था  होगा अन्यथा वे लोग प्राइवेट अस्पताल में रेफर करेंगे । मुझे जैसे सांप सूंघ गया । स्थिति भयावह थी ।  ट्रेन दोपहर और रात को थी । ट्रेन से हैदराबाद जाना , खतरे से खाली  नहीं था । । अस्पताल से अम्बुलेंस की मांग की , पर एक ही अम्बुलेंस है कह कर कन्नी काट लिया गया । मैंने एक दोस्त को फोन की और टाटा सुमो को लाने  को कहा । फिर क्या था , समाचार चारो तरफ फैलते देर न लगी । आधे घंटे में गाडी तैयार ।

गुंतकल से हैदराबाद का सफर 
घर के सभी सदस्य चलने के लिए तैयार । हमारी यात्रा साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुयी । हैदराबाद पहुँचने में करीब 6 घंटे लगेगे । टाटा सुमो  बंगलोर - हैदराबाद हाईवे पर दौड़ रही थी । किसी को भी मैंने रोग के बारे में नहीं बताई थी । मुझे पता था - समय बहुत कम है और बेटे की जान खतरे में है । कल क्या होगा ? किसी को नहीं पता ? हाईवे के रास्ते  में एक दुर्गा जी का मंदिर है । कहते है - जो भी बिना पूजा किये  इसे पास करता  है , उसके साथ कोई न कोई अनहोनी होती है । हमने यहाँ पूजा की . नारियल फोड़े और प्रसाद खाते हुए आगे बढ़ चले । कर्नूल के करीब से बेटे की तबियत और बिगड़ने लगी , बुखार बढ़ने लगा । आँखे लाल हो गयी । बदन में दर्द तेज । अस्पताल ने बिना किसी औषधि / नर्स के बिदा कर दिया था । हमें भी जल्दी में कुछ नहीं सुझा था । पत्नी साईं बाबा की गुहार लगाये जा रही थी । बाबा बेटे की जान बचाना । मेरे दिल में धड़कन बढ़ रही थी । भगवान के सिवा , कोई नजर नहीं आ रहा था । रुमाल भींगा कर बेटे के सिर पर रखे थे । अपने साथियों को इतल्ला कर दी थी । वे हैदराबाद के लालागुडा अस्पताल में बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पांच  बजे तक शहर के सीमा पर पहुँच गए ।  ट्राफिक  जाम की वजह से सात बजे अस्पताल में पहुंचे । ड्यूटी पर अपातकाली डॉक्टर मौजूद थी ...डॉक्टर पद्द्माप्रिया  । हम  पति -पत्नी के उस डॉक्टर से अच्छे रिश्ते थे क्युकी वे गुंतकल अस्पताल में काम कर चुकी थी । उन्होंने स्थिति को भांप लीं और बिना देर किये ... तुरंत यशोदा अस्पताल को रेफर कर दी , जो एक कारपोरेट अस्पताल है । साढ़े   साथ बजे हम यशोदा अस्पताल के इमरजेंसी में थे ।

यशोदा अस्पताल / सिकंदराबाद 
डोक्टरो  की टीम मुआयेने में जुट गयी । मेरे बेटे की जान खतरे में थी । किसी ने ग्लुकोसे के बोतल चढ़ाये । तो किसी ने खून निकले , जांच के लिए । बाद में किडनी के खराबी की आशंका की वजह से सिने और पेट के स्कैनिंग कराये गए । जांच जोरो पर थी । इस तरह की इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती। मेरा बेटा नरम पड़ते जा रहा था । दुआ के सिवा कुछ नहीं बचा था । मेरे पुत्र को ACU वार्ड में दाखिल कर दिया गया । जिसे ACUTE केयर UNIT के नाम से जानते है । हम सभी परिवार वेटिंग हॉल में रात गुजार  रहे थे । पल - पल की जानकारी के लिए उत्सुक । रात के बारह बजे के बाद वार्ड से  मुझे फोन आया । मेरा दिल बैठ गया । हे भगवान , मदद करना । मै  जल्द ही लिफ्ट से छठे फ्लोर पर गया । मुझे अन्दर बुलाया गया । मैंने देखा ..मेरा पुत्र बिस्तर पर लेटे  हुए था , उसे नींद नहीं आ रही थी । मुझे देख हल्का सा मुस्कुराया , जैसे कह रहा हो - डैडी मै  बिलकुल ठीक  हूँ आप चिंता न करें । मुझे हिम्मत आई , पूछा ?  तबियत कैसी है । पेशाब नहीं हो रहा है । पेट फूल गया है । नर्स ने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया । हम दोनों  की बाते पूरी होने के बाद उसने कहा - हमें जल्द white प्लेट लेट चाहिए , क्युकी  प्लेट लेट की संख्या 13000 आ गयी है । मैंने कहा सिस्टर जैसे भी हो रात को ब्लड  बैंक से मदद ले । अभी तो मै असमर्थ हूँ । सुबह इंतजाम हो जायेगा । ऐसा ही हुआ । ब्लड बैंक से white प्लेट लेट दिया गया ।


दिनांक -20 जुलाई 2012 -की सुबह-शाम 
मैंने तुरंत अपने असोसिएसन के सिकंदराबाद और हैदराबाद के पदाधिकारियों को फोन की । दिन भर लोको पायलटो की आवाजाही शुरू हो गयी । blood  ग्रुप  ओ पोजिटिव की जरुरत  थी । अंततः तीन  लोको पायलट  श्री एन सत्यनारायण , श्री एस सूर्यनारायण  और एम् शिवालकर  चुने गए । एम् शिवालकर सहायक लोको पायलट की white प्लेट लेट को मेरे बेटे को समर्पित किया गया ।

दिनांक -21 जुलाई 2012 -प्लेट लेट 
 सभी देवो के देव महादेव ( एम् शिवालकर ) के खून की शक्ति रंग लायी । प्लेट लेट की संख्या बढ़  कर  20000 हो गयी । सभी के जी में जान आई । फिर क्या था । राम जी  की दशा भी सुधरने लगी । शिर्डी से  डॉक्टर मुकुंद सिंह की काल आई ।  मेरे रूआसे ध्वनि को वे परख लिए और उन्होंने पूछ - सर क्या बात है ? मै  सब कुछ बता दिया । उन्होंने कहा -आप बाबा की भभूती पुत्र को चटायें , मै मंदिर में प्राथना के लिए जा रहा हूँ । बाबा ने भभूती पहले ही भेंज दी थी । मुझे तुरंत पूर्व की घटना याद आ गयी  । पिछले महीने डॉक्टर साहब ने मुझे शिर्डी का प्रसाद और भभूती दी थी , जब वे शिर्डी से बंगलूर कर्नाटक एक्सपेस से जा रहे थे । मैंने वैसा  ही किया । कुदरत की लीला गजब है ।

परिस्थितिया बदली । लोगो के आने का सिलसिला बढ़ने लगा । किन्तु अस्पताल के अन्दर बिना पास के अन्दर जाना मना  है , एक पास पर एक ही व्यक्ति । सैकड़ो  दुआओं के हाथ उठे । प्रतिदिन प्लेट लेट की संख्या बढ़ने लगी । 22 जुलाई को 30000 , 23 जुलाई को 40000 , 24जुलाई को 50000 । हमने डॉक्टर को कहला दिया था की जितना blood  चाहिए , उतना देने के लिए हमारे लोग हमेशा तैयार है । यहाँ तक की इन्डियन एयर फाॅर्स के जवान भी तैयार थे । किन्तु जरुरत नहीं पड़ी । डॉक्टर धीमी गति से  प्लेट लेट के बढ़ोतरी से चिंतित थे । अतः बोन मैरो जाँच की शंका जाता रहे थे । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेरे पुत्र को स्वस्थ घोषित कर 24 जुलाई 2012 को संध्या बेला में ACU  वार्ड से साधारण वार्ड में सिफ्ट कर दिए ।

साधारण वार्ड -
धीरे - धीरे पुत्र की दशा में सुधार  होने लगा । 25 जुलाई को प्लेट लेट की संख्या 70000 , 26 जुलाई को 100000 और 27 जुलाई को 1.5 लाख हो गए , जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरुरी सीमा है । अंततः सैकड़ो हाथो की दुआए और देवी - देवताओ  के आशीर्वाद मेरे पुत्र को संकट से बचा लिए । 27 जुलाई को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया । 28 जुलाई को रेलवे अस्पताल / लालागुडा  को रिपोर्ट किया । वापसी के राह में भी वही डॉक्टर मिली । दवा लिखने के बाद केश गुंतकल को रेफर हुआ । 28 जुलाई को रायलसीमा ( 17429 एक्सप्रेस) के द्वारा हम हैदराबाद से गुंतकल को रवाना  हुए ।  हम  29 जुलाई 2012 , रात को बारह बज कर दस मिनट पर गुंतकल पहुंचे । 30 जुलाई को गुंतकल रेलवे अस्पताल के फिजिसियन से मिले और हमारे लोगो ने उसकी बहुत फजीयत की । उसकी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता ।

अनुभव का भंवर -
इसे क्या कहेंगे ?

1) अस्पताल में भारती की तारीख = 18 और इसके योग =9  ,समय =एक बजे दोपहर के आस- पास 
2)लालागुडा पहुँचाने का समय =19 घंटे और इसमे भी =9
3)ACU  में वेड संख्या =  9
4) साधारण वार्ड में दाखिल और  कमरे की संख्या = 9 , मंजिल के तल्ले भी = 9
5)अस्पताल से डिस्चार्ज की तारीख =27 जुलाई और इसके योग =9
6)वापसी में ट्रेन संख्या = 1742 9 और इस संख्या के आखिरी में = 9
7)गुंतकल पहुँचाने का समय =रात के बारह बजे के बाद और एक के पहले , तारीख 29 जुलाई और इसमे भी आखिरी = 9
आखिर ये क्या है ? नौ देवियाँ या नौ ग्रह या नवरत्न या और भी बहुत कुछ । जो भी हो किसी शक्ति के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता ।
पुत्र का नाम - राम जी . इश्वर का नाम । जिस डॉक्टर ने लालागुडा रेफर किया उसका नाम भी - श्रीनिवासुलु
लालागुडा  अस्पताल के  आपातकालीन डॉक्टर का नाम - पद्मप्रिया ,यशोदा के प्रांगन  में जिस डॉक्टर के निगरानी में इलाज चला - उनके नाम भी - शिवचरण और जिस अस्पताल में रेफर हुआ , उस अस्पताल का नाम भी यशोदा ( कृष्ण जी की माता जी/ पालनकर्ता  )
जिनके blood कामयाब हुए , उनके नाम भी - इश्वर के
सत्यानारायण , सुर्यनारायण और शिवालकर । शिव जी संहारक है , शिव जी ने मेरे पुत्र को जीवन दान दी है , शिवालकर ।
इश्वर ने अपने भक्त को कभी नहीं रुलाई । जहाँ आस्था है , वहीँ भक्ति । जहाँ भक्ति है , वही शक्ति । मेरा परिवार उन सभी देवी - देवताओ और सभी सज्जनों को प्रणाम करता है , जिनकी दवा और दुआएं मेरे पुत्र को जीवन दान दिया है । 
( कृपया वैज्ञानिक टिपण्णी न करें = विज्ञानं ने सब कुछ दिया है । घास से दूध नहीं बनायीं । आज तक खून नहीं बना सका है ।)