संसार में जीवो में जीव महामानव ....मानव ही है ! दुनिया की गन्दगी इसी में है ! थोड़े समय के लिए सोंच लें -अगर मानव के शारीर में पेट नहीं होता , तो वह परिस्थितिया कैसी होती थी ? क्या जीवो के अन्दर हिंसा या अहिंसा होती ? क्या हम सभी लोग आपस में सामाजिक और सम सामायिक समस्याओ से घिरे होते ? आज दुनिया में आर्थिक राजनीतिक ,सामाजिक और आधुनिक जंग छिड़ी हुयी है ! कोई भी किसी के सामने झुकने को तैयार नहीं ! इस पेट की आग ऐसी लगी है , जो मरते दम तक बुझ नहीं सकती ! दुनिया के सारे अनर्थ का अर्थ यही है !
मै पिछले वर्ष और दिसंबर के आखिरी माह में , अपने रिफ्रेशर ट्रेंनिंग के दौरान काजीपेट स्टेशन के आस - पास टहल रहा था ! हम कुल तीन थे ! संध्या वेला ! हमने देखा एक तीन वर्ष का लड़का - अंगार के ऊपर मक्के को सेंक रहा था ! बिलकुल काम में तल्लीन ! मैंने तुरंत उसके फोटे ले लिए और उसे दिखाया ! वह बहुत खुश हुआ ! उस ख़ुशी में निश्छल मुस्कराहट छिपी हुयी थी ! मेरे फोटो लेने का अभिप्राय क्या था ? उसे कुछ भी नहीं मालूम ! वह हँसता रहा और पंखे को जोर से झटकते हुए बोला -एम् कवाली ( क्या चाहिए ? ) मुझे उसके परिस्थिति को देख दया आ गई ! पर वेवस - मेरे पास कोई जादुई चिराग तो नहीं की उसके जीवन को बदल दूँ ! हमने उससे तीन मक्के खरीद लिए और रोज आने की वादा कर ..आगे बढ़ गए ! जब तक वहा थे - रोजाना मक्का ख़रीदे और मक्के के लुत्फ उठाये !
कुछ तस्वीर प्रस्तुत है -
कल की लगन और जलते अंगारे !
इनके आँखों में भी एक सुनहरा भारत है ! बेबस
चमकीली आँखें और सुनहले भविष्य ! भारत का एक कोना !
वैसे मुझे चलते - चलते कहीं भी , तस्वीर लेने की आदत सी पड़ गयी है ! यह उसी का एक अंग है ! आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !
"यह उसी का एक अंग है ! आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !"
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियों मे लिखी आपकी यह सच्चाई ही तो वास्तविक हकीकत है जिसे मै बार-बार अपने ब्लाग्स के माध्यम से दोहराता आ रहा हूँ कि,'अन्ना-आंदोलन'तो महज भूख,बेरोजगारी,मंहगाई,उत्पीड़न-शोषण से ध्यान हटा कर लुटेरे कारपोरेट जगत और उनके चहेते NGOs के भ्रष्टाचार को छिपाने का उपकरण था। आम जनता द्वारा उसे ठुकरा देने के बाद उसके अमेरिका ने भी उससे हाथ खींच लिए।
दरअसल इंसान हमेशा से ये सोचता आया है की वो ये करे वो करे .. पर उसके हाथ में कुछ नहीं होता ... करने वाला तो बस एक ही है ...
ReplyDeleteआपको और पूरे परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteहर व्यक्ति अपना भाग्य लिखा कर लाता है और उसे भोग कर चला जाता है। कहां से आता है और कहां चला जाता है यह तो ‘उसे’ ही पता है॥
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपको इंडिया दर्पण की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ
बढ़िया विचारों से सजी पोस्ट. वाकई में यह देखने की चीज़ है कि हमारा मीडिया मुद्दों के महत्व के अनुसार उन्हें स्थान और अहमियत नहीं देता. विजय माथुर जी की टिप्पणी भी विचारणीय है. नव वर्ष की शुभकामनाएँ.
ReplyDeletethoughtful post showing the real India
ReplyDeletenice pics
achcha lga.
ReplyDelete@आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !
ReplyDeleteआपका दिल सोने का है। शिक्षा का अधिकार हो या सम्पत्ति का अधिकार, वाकई ऐसे लाखों मासूम बच्चे उससे वंचित हैं। अपने बस में जितना है आप जैसे सज्जन यत्र-तत्र कर ही रहे हैं। मानवता की यह किरण तेज होती जाये और अधिक से अधिक लोग सामने आयें, कुछ तो बदलेगा ही। हार्दिक आभार!
क्या बात है भाई साहब बेहतरीन व्यंग्य व्यवस्था पर .मार्मिक प्रसंग .
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