मुंशी प्रेमचंद पुस्तकालय -अपने आप में एक अलग ही महत्त्व रखता है । इस पुस्तकालय में एक साथ पचासों लोग बैठ सकते है । शिप्रा एक विदुषी महिला थी । सामाजिक , राजनितिक , आर्थिक और देश -विदेश की समस्याओ में विशेष रूचि । इस पुस्तकालय के सभी पाठको में बहुत लोकप्रिय । वह अपने एकलौते पांच वर्षीय पुत्र के साथ नियमित पुस्तकालय में शरीक होती थी । बहुत ही मृदुल भाषी , शांत स्वाभाव वाली । उसका पुत्र भी सभी का प्यारा था ।
एक दिन हरीश ने उनके पुत्र के सिर पर टोपी रखते हुए -" टोपी " कह दिया । शिप्रा के मुख की रेखाए तन गयी । माँ का कोमल दिल , पुत्र के प्रति इस्तेमाल विशेषण के शव्द से आहत हो गया । मर्माहत सा टोपी को दूर फेंकते हुए ,पुस्तकालय से बाहर निकल गयी । हरीश समझ न सका ? सन्न रह गया । समझ नहीं पाया कि उससे कौन सी गलती हो गयी है । वैसे टोपी सिर की शोभा और इज्जत बढाने वाली वस्तु है । पैर पर थोड़े ही रखी जाती है ? एक माँ की ममता को ठेस पहुंचे , ऐसी हरीश की इच्छा नहीं थी , महज प्यार से कह दिया था । एक इत्तेफाक था ।
पुस्तकालय में शिप्रा की उपस्थिति दिन प्रतिदिन कम होने लगी । सभी को उसकी कमी खलने लगी थी । हरीश ने तय किया कि अवसर मिलने पर शिप्रा से गलती के लिए खेद प्रकट करेगा । वह अवसर की ताक में था । आज पुस्तकालय के सभागार में एक समारोह का आयोजन किया गया था । शायद पुस्तकालय के एक वार्षिक मैगजीन की लोकार्पण होने वाली थी । हरीश भी उपस्थित था । मैगजीन को आम पब्लिक हेतु लोकार्पित किया गया । हरीश मैगजीन का मुखपृष्ट देख आश्चर्य चकित हो गया -" मुखपृष्ट पर शिप्रा के पुत्र की तश्वीर छपी थी । "
भीड़ में उसे शिप्रा दिखी । क्षमा हेतु इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है । हरीश ने तपाक से कहा - " आप एक श्रेष्टतम माँ है ।" और शिप्रा कुछ कहे , तब - तक वह आँखों से ओझल हो गया । एक माँ का कोमल मन हर्षित हो उठा । शिप्रा के मन में अमृत का संचार हो चूका था । एक माँ की ममता पिघलने लगी थी । वह पुस्तकालय फिरसे गुंजित होने लगा ।
एक शब्द कडुवाहट ,नफ़रत और प्यार को फ़ैलाने के लिए काफी होते है । अंतर उसके उपयोग में है । इसकी पीड़ा सभी नहीं , कोई माँ ही समझ सकती है ।
एक दिन हरीश ने उनके पुत्र के सिर पर टोपी रखते हुए -" टोपी " कह दिया । शिप्रा के मुख की रेखाए तन गयी । माँ का कोमल दिल , पुत्र के प्रति इस्तेमाल विशेषण के शव्द से आहत हो गया । मर्माहत सा टोपी को दूर फेंकते हुए ,पुस्तकालय से बाहर निकल गयी । हरीश समझ न सका ? सन्न रह गया । समझ नहीं पाया कि उससे कौन सी गलती हो गयी है । वैसे टोपी सिर की शोभा और इज्जत बढाने वाली वस्तु है । पैर पर थोड़े ही रखी जाती है ? एक माँ की ममता को ठेस पहुंचे , ऐसी हरीश की इच्छा नहीं थी , महज प्यार से कह दिया था । एक इत्तेफाक था ।
पुस्तकालय में शिप्रा की उपस्थिति दिन प्रतिदिन कम होने लगी । सभी को उसकी कमी खलने लगी थी । हरीश ने तय किया कि अवसर मिलने पर शिप्रा से गलती के लिए खेद प्रकट करेगा । वह अवसर की ताक में था । आज पुस्तकालय के सभागार में एक समारोह का आयोजन किया गया था । शायद पुस्तकालय के एक वार्षिक मैगजीन की लोकार्पण होने वाली थी । हरीश भी उपस्थित था । मैगजीन को आम पब्लिक हेतु लोकार्पित किया गया । हरीश मैगजीन का मुखपृष्ट देख आश्चर्य चकित हो गया -" मुखपृष्ट पर शिप्रा के पुत्र की तश्वीर छपी थी । "
भीड़ में उसे शिप्रा दिखी । क्षमा हेतु इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है । हरीश ने तपाक से कहा - " आप एक श्रेष्टतम माँ है ।" और शिप्रा कुछ कहे , तब - तक वह आँखों से ओझल हो गया । एक माँ का कोमल मन हर्षित हो उठा । शिप्रा के मन में अमृत का संचार हो चूका था । एक माँ की ममता पिघलने लगी थी । वह पुस्तकालय फिरसे गुंजित होने लगा ।
एक शब्द कडुवाहट ,नफ़रत और प्यार को फ़ैलाने के लिए काफी होते है । अंतर उसके उपयोग में है । इसकी पीड़ा सभी नहीं , कोई माँ ही समझ सकती है ।
माँ के मन पीड़ा माँ ही समझ सकती है ..... हृदयस्पर्शी कहानी
ReplyDeleteकई बार कडुवे बोल कितना नुक्सान कर देते हैं ... औत माँ तो वैसे भी बच्चों को लेकर संवेदनशील होती है ...
ReplyDeleteअचे भावमय कहानी ...