बहुत दर्द हो रहा है मेरे मुह से निकल गया । पत्नी जो किचन में खाना बना रही थी मेरी आवाज को सुन ली थी । वही से पूछ वैठी ? क्यों जी क्या हो गया । मै अनसुना सा बैठ रहा । दिल कुछ कहने के पक्ष में नहीं था । पत्नी और वह भी जाने बगैर कैसे रह सकती थी ? पास आ गयी और पुलिसिया प्रश्नो के बौछार शुरू कर दी । बिना कुछ जाने मेरी खैर नहीं । अपनत्व जो गंभीर है । शादी के वक्त कसम भी तो खाये थे कि हम एक दूसरे के दुःख सुख के साथी जीवन भर बने रहेंगे ।
दर्द बेहद असहनीय था । दाहिने हाथ के अंगूठे को बाए हाथ से सहलाते हुए बोला - इस अंगूठे और पंजे में खून जम गया है और सूजन भी बहुत है । कुछ क्षण के लिए चुप हो गया । पत्नी बगल में बैठते हुए मेरे हाथ को अपने हाथो से पकड़ ली और डॉक्टर की तरह जांच मुआयने करने लगी । ओह बहुत सूज गया है । पत्नी के इन शव्दों में कितना प्यार और अपनत्व था , आसानी से एक प्रेमी युगल ही समझ सकता है । वह हाथ को सहलाते हुए पूछने लगी - ये तो चोट है , आखिर कैसे हुआ ? और उठ बेड रूम से पतंजलि के दिव्य पीड़ान्तक तेल ले आई । तुरंत मालिस करने लगी । पतली और कोमल अंगुलियो के दबाव भी असहनीय पीड़ा उत्तपन्न कर रही थी , पर पुरुष को सहने की शक्ति भी कम नहीं होती ? मुह बंद कर दर्द को सहन करता रहा। पत्नी फिर अपने प्रश्नो को दुहरायी । क्यों जी यह कैसे हुआ बोलते क्यों नहीं है ?
वाकया उस दिन की थी जब मेरी ट्रेन को बिफोर समय चलने की वजह से एक स्टेशन पर खड़ा कर दिया गया था । मै और मेरा सहायक लोको में बैठे हुए थे । अचानक एक नौजवान लोको के अंदर प्रवेश किया । उसके हाव भाव से लग रहा था कि उसने शराब पी रखी थी । हमने उसे तुरंत बाहर जाने के लिए कहा , पर बाहर जाने का नाम नहीं ले रहा था और अनावश्यक शव्दों को बके जा रहा था । सहायक उसे खिंच बाहर ले गया । निचे उतरकर भी उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। पीछे से मैं भी प्लेटफॉर्म पर उतर गया । अब वह मुझसे उलझ पड़ा । हमने उसे दूर जाने की हिदायत दी । कुछ और यात्री भी समझाये , पर उसे कुछ असर नहीं पड़ा । हमारे प्रति उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आये । हमारे सहनशीलता पर दबाव बढ़ने लगा था
अचानक मैंने अपना कंट्रोल खो दिया था और मैंने उसे दूर ढकेलते हुए कई थप्पड़ जड़ दिया । उसे होश था या मदहोशी मालूम नहीं तुरंत मेरे पैर पकड़ लिया । शक्ति और पराजय शांत हो गए । उस समय कुछ महसूस नहीं हुआ था । क्रोध अँधा होता है । उस समय कुछ समझ से बाहर था । कोमल और सुकुवार हाथ में धीरे धीरे दर्द शुरू होने लगा । आराम गृह में रात भर सो नहीं सका था । दाहिने हाथ की हथेली और अंगूठे में सघन पीड़ा थी जो उस व्यक्ति को पीटने का नतीजा था ।परिणाम ख़त्म हो चूका था और नतीजे मैं भुगत रहा था ।
पत्नी शांत मुद्रा में सुनती रही । मेरे शव्दों पर विराम लगते ही वह विफर पड़ी । मेरे प्रति प्यार और दर्द गायब हो गए । उसके हृदय में उस शराबी के प्रति प्यार और सहानुभूति उमड़ पड़े ।वह गुस्से में दुर्गा की रूप धर ली और कहने लगी - आप को अपनी शक्ति और क्रोध पर लगाम लगानी चाहिए । उस नौजवान ने शराब पी थी , आप तो शराबी नहीं हो । आप में और उसमे अंतर ही क्या रह गया ? आप अपने को कंट्रोल करना सीखिये । अब भुगते करनी का फल । उसका श्राप लग गया है । आप हमेशा ऑन लाइन जाते रहते है , किसी दिन अपने साथियो के साथ आप पर हमला कर देगा तो क्या कीजियेगा ?
आज पत्नी मुझे कठघरे में खड़ा कर जो जी में आया कोसती रही । उसके भावनाओ में कोई खोट नहीं थे । मैं अपने को कोसता रहा । यह मेरे जीवन की बड़ी गलती थी । स्वर्ण अलग धातु से मिल अपनी चमक खो चूका था । मुझे बस इतना ही कहते बना -मैं शराबी नहीं हूँ । घोर गलती हो गई । अब पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा । क्रोध का अंत कुछ भी नहीं है । बस राख ही राख । सहनशीलता महान है । प्यार जीत और द्वेष हार एवं पीड़ा ही देती है ।
ओह अंगुली में अभी भी दर्द है ।