मदुरै की यात्रा भाग-२,आज प्रस्तुत करने जा रहा हूँ.मदुरै हिन्दुओ की एक पबित्र धर्म-स्थली है.जो तमिलनाडू में स्थित है. कहा जाता है की-पुराने ज़माने में ,एक कदम्वानाम नाम का एक जन्गल था.यहाँ लोर्ड इन्द्र ने स्वयंभू की पूजा की थी.इसी लिंग को , जो कदम ब्रिक्ष के निचे था , धनजय नाम का एक किसान ने देखा था और उस दृश्य को ,राजा कुरुक्षेत्र पंडया को सूचित किया.राजा ने उस जंगल को साफ़ कराइ तथा एक सुन्दर मंदिर का निर्माण करवाया.धीरे-धीरे वहा एक शहर वस गया. इसी शहर के ऊपर अमृत का एक बूंद टपका,अतः इसे मधुरं कहा जाने लगा.धीरे-धीरे यही नाम...मदुरै में बदल गया. यह चित्र मदुरै स्टेशन के बाहरी दृश्य है. हम तारीख ०४.१०.२०१०.को रात साढ़े नौ बजे मदुरै स्टेशन पर पहुंचे.प्रोग्राम के मुताबिक मेरे मदुरै के साथियों ने रेतिरिंग रूम बुक करके रख दिया था.मै आपने परिवार के साथ उस रात कही जाने का प्लान नहीं किया बिसराम करना ही श्रेयस्कर समझा.दुसरे दिन यानि तारीख ०५.१०.२०१०.को मदुरै ने हमारा स्वागत चाय और समाचर पात्र से किया.यानि रेतिरिंग रूम के केयर तकर ने ब्यवस्था के मुताबिक चाय और समाचार पत्र,हमें लाकर दिया ,जो हर occupant को प्रति दिन फ्री में दिया जाता है.जैसा की उन्होंने मुझे सूचित किया.सुबह की क्रिया -कर्म से निब्रित होकर हम मंदिर दरसन के लिए चल पड़ें. पहली बार की यात्रा होने की वजह से हमें ,मीनाक्षी मंदिर का रास्ता नहीं मालूम था.किसी से पूछने में भी हिचक हो रही थी,क्योकि सुना था तमिलियन लोग हिंदी नहीं बोलते है.किन्तु यहाँ जो देखा वह बिलकुल अलग सा एवं झूठा लगा.प्रायः हर शिक्षित तमिलियन उलटी-पुलती हिंदी बोल रहे थे एवंग हमारे प्रश्नों का जबाब देनेका भरपूर कोसिस कर रहे थे.यहाँ के लोग मुझे काफी पसंद आये.बाद में मुझे एक लोकल दोस्त ने घुमाने में साथ दिया.
मंदिर में देवी को चढाने के लिए ,हमने प्रसाद ली जिसके लिए उस दुकानदार ने हमसे एक सौ रुपये लिए.मैंने भी दे दी जो मेरी पुराणी आदत है,क्यों की मंदिर या पूजास्थली में मै मोल-भाव नहीं करता.पश्चिम दिशा से मंदिर में प्रवेस किये और घूम कर दक्षिण के दरवाजे से मंदिर के प्रांगन में पहुंचे. बाये बगल का चित्र हजार खम्भे वाला मंदिर से लिया गया है जिसे ठोकने से ,कहा जाता है की सात सुर निकलते है.मंदिर की कारीगरी देखा कर प्राचीन ज़माने के लोगो के हुनर को बारीकी से समझा जा सकता है.मंदिर में पूजा करने हेतु ,मंदिर का एक कर्मचारी हमारे साथ हो लिया. उसने हमें एक बोर्ड के तरफ इशारा करके बताया की स्पेशल दरसन के लिए सौ रुपये लगते है.हमने स्वीकार कर लिया.उसने हमें मीनाक्षी देवी तथा शिव लिंग की पूजा करवाने के लिए अपने साथ ले गया. बाद में मेरा दोस्त जो लोकल बासिन्दा हैं वह भी मंदिर में ही आ गए और उन्होंने मंदिर दर्शन के समय पूरा साथ दिया
सात सुरों वाला खम्भा.
तिरुमलै निक्कर प्लेस में एक खम्भे की बनावट.जो देखने लायक है.इसमे जाने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है.
थिरुमलाई निक्कर पलास के एक खम्भे की बनावट.
थिरुमलाई निक्कर पैलेस के अन्दर जाते समय ,दिखाई देता सभा गृह .
गाँधी मुजियम से ली गई ,गाँधी जी अपने पत्नी के साथ .
हजार खम्भे वाली मंदिर में एक पत्थर से बनी हाथी के साथ फोटो खिंचवाते ,बालाजी.
यह मदुरै के एक वाटर टंक है,जिसे मरिंमन मंदिर, के नाम से जाना जाता है.कहते है की इसी के मिटटी से यहाँ का राजा ,माँ मीनाक्षी की प्रतिमा को बनवाया थे. इतना ही नहीं बरसात के दिनों में ,नदी का पानी,यहाँ स्टोर किया जाता है ,जो मदुरै सिटी में वाटर supply के काम आता है.टैंक के बीचो-बिच मंदिर भी है,जो साफ दिखाई दे रहा है.तस्बीर में बालाजी तस्बीर खिंचवाते हुए.
गाँधी मुजियम से ली गई तस्बीर,गाँधी जी बिस्तर पर सोये है तथा इंदिरा गाँधी (बचपन का तस्बीर )सिरहाने बैठी हुई है.
मिनाक्षी मंदिर में ,सरस्वती जी की पत्थर की मूर्ति .
मदुरै के एक चौराहे की फोटो,जो मीनक्षी मंदिर के पूरब दिशा में है.
हजार खम्भे वाली मंदिर में एक बैठे हुए बैल के साथ फोटो खिंचवाते हुए बालाजी और मेरी धर्मपत्नी.
पज्हमुथिर चोली (हिल्स) के अन्दर ,बंदरो को बादाम देते हुए मेरी धर्मपत्नी.बन्दर भी आनंद के साथ लेते हुए.कमल के जंतु .फोटोग्राफी बालाजी.
मिनाक्षी मंदिर का एक भाग.जिसके कला का जबाब नहीं .हम इक्कीसवी सदी में आ गए पर पूर्वजों से ज्यादा न दे सके है ,पूर्वजो के नमूनों/स्मारकों को देख कर संतुस्ट हो रहे है.कमाल का कलयुग है.
बन्दर को बुलाते हुए ,मेरी धर्म पत्नी और बालाजी.
पज्ह्ज्मुथिर चोली(हिल्स) मंदिर के अन्दर जाने का मुख्य द्वार.मंदिर के बाहर भिखारी बैठे हुए.
मीनक्षी मंदिर का एक भाग.मंदिर के अन्दर कैमरे ले जाना मना है.मोबाइल से ली गई फोटोग्राफी.
वाटर टैंक का एक हिस्सा जिसके पीछे नदी है.
(मरिंमन टेम्पले)
सूर्यास्त के समय पज्ह्ज्मुथिर चोली मंदिर के अन्दर से ली गई तस्वीर .इसके अन्दर तिरुपथी के बालाजी की मूर्ती है .जिसे आंध्र प्रदेश के किसी राजा ने बनवाई थी.कहते है यह आठ सौ बरस पुराणी मंदिर है.इसके ज्यादा तर हिस्से टूट-फुट गए है.तमिलनाडु सरकार इसे अपने कब्जे में करके मरमत का काम सुरु कर दिया है.
मदुरै रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म नंबर एक और साफ़-सफाई में जुटी सफाई कर्मी.यह भारतीय रेलवे की अथक प्रयास है.हम भारतीय नागरिको को गन्दगी को कण्ट्रोल करना चाहिए.यदि ऐसा न कर पाए तो काम से काम गन्दगी न फैलाये.
सफाई की अनवरत प्रयास.
sedam रेलवे स्टेशन का एक वीएव.फोटोग्राफी बालाजी.जो बतानुकुलित coach के अन्दर से ली गयी.
रेलवे स्टेशन का एक view फोटोग्राफी-बालाजी..
रेलवे स्टेशन.फोटोग्राफी--बालाजी.
मैं इस जगह जा चुका हूं, आपने याद ताजा करा दी है,
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