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Wednesday, May 31, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6

आज 10 मई 2016 , दिवस मंगलवार है । दिल्ली से कोपरगाँव के लिए झेलम एक्सप्रेस में सीट रिजर्व था । सुबह जल्दी तैयार हो गए । बोर्डिंग नयी दिल्ली स्टेशन से थी ।  होटल से रेलवे स्टेशन काफी नजदीक ही है , फिर भी ऑटो वाले एक सौ रुपये की मांग रख रहे थे । अजीब है कमाई ! दुनिया में ईमानदारी भी कोई चीज है या नहीं । एक दूसरे ऑटो वाले ने 50 रुपये में रेलवे स्टेशन तक पहुंचा दिया । सुबह नाश्ते की आदत है । रेलवे स्टेशन के सामने ही एक तमिल वाले  की दुकान दिखाई दी । ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि यहाँ अच्छे नास्ते की संभावना थी ।

हम दुकान में प्रवेश किये । हम सभी , जिसे जो खाने की इच्छा थी   , उसकी फरमाइश पेश कर दिए  । इडली , डोसा , पोंगल यानि हर दक्षिण भारतीय नास्ते उपलब्ध थे । पर एक विशेषता यह दिखी की सभी आइटम  टेस्टी भी थे  । बिलकुल दक्षिण भारतीय होटलो की तरह । साफ सुथरा नार्मल था और बिल भी वाजिब । आज बहुत दिनों के बाद कुछ स्वादिष्ट खाने के लिए मिला था ।

मैं आज बहुत आनंद महसूस किया । हमारी ट्रेन समय से आधे घंटे लेट थी । हमने दोपहर का आहार भी इसी दुकान से लेनी चाही किन्तु इसके लिए और 2 घंटे wait करने पड़ेंगे । हमारे पास समय नही था । अतः ट्रैन में ही ले लेंगे , की आस पर प्लेटफॉर्म में आ गए । जैसा कि सर्व विदित है कि कुछ ट्रेनों में पेंट्री कार होते है जो यात्रियों को खाने पीने की सामग्री की व्यवस्था करते है । इस सुविधा के पीछे रेलवे की धारणा यही है कि इससे यात्रियों को उचित दर पर खाने - पीने के बस्तुओं की व्यवस्था हो पाएगी । आज कल रेलवे इसे ठेकेदारों के माध्यम से प्रायोजित करता है । किसी भी क्षेत्र में ठेकेदारों के क्या योगदान है सभी जानते है । एक तरह से ये प्रथा एक कानूनी लूट को ही इंगित करती है । जहां भी ठेकेदारी है वहाँ गुडवत्ता का अभाव और लूट ज्यादा है । जनता परेशान और प्रशासन मस्त रहते है ।

मेरे विचार से ठेकेदारी सरकारी तंत्र में मलाई खाने का एक आसान साधन है । सरकारी तंत्राधीश नजराने लेते है और ठेकेदार को एक के माल को नौ के भाव पास कर देते है । ठेकेदारों और सरकारी तंत्रकारो के मकड़ जाल ऐसे होते है कि कोई उनके विरोध में आवाज नही उठता है । इसके स्वप्निल रूप चित्रपट में प्रायः  दिखते है । आईये झेलम एक्सप्रेस के ठेके ( पैंट्रीकार ) के ऊपर एक दृष्टि डालें -

पैंट्रीकार वाले अग्रिम आर्डर ले लेते है । उस दिन भी वैसा ही हुआ । एक युवक दोपहर के भोजन का ऑर्डर लेने के लिए हमारे सीट के पास आया । हम ऐसी two टायर में थे । उसने वेज खाने की कीमत 120 रुपये बतायी । मुझे गुस्सा आ गया । वेज खाना इतना महंगा और मात्रा भी काफी कम होते है । मैंने उससे मेनू लाने के लिए कहा । कुछ समय बाद वह एक पेपर लेकर आया जिसमे तरह तरह के व्यंजन और उनके कीमत अंकित थे । वेज का कीमत 120 रुपये ही था । 120 रुपये में कौन सी सामग्री सर्व होगी , सब कुछ था । हमारी मजबूरी थी । 3 खाने का आर्डर दे दिया गया । करीब डेढ़ बजे दोपहर को खाने के पैकेट हमे दिया गया । सबसे पहले पुत्र जी ने एक पैकेट खोले और भोजन की शुरुवात की । आहार में कोई टेस्ट नही था । चावल के दाने काफी मोटे मोटे तथा लिस्ट के मुताबिक व्यंजन नही दिए गए थे । ऊपर की तस्वीर देंखें ।

कीमत के अनुसार अव्यवस्था देख मुझे बहुत गुस्सा आया । मैंने रेलवे मंत्री को ट्वीट करनी चाही किन्तु नेट की असुविधा से ऐसा न कर पाया । जब पैंट्रीकार के प्रबंधक को मालूम हुआ तो वह और टीटी भी आये । प्रबंधक ने क्षमा मांगी और बहाने में कहने लगा कि गलती से ये आप के पास आ गया । मैं उनके बहाने बाजी समझता था । भोजन वापस कर दिया । मैने उन्हें बता दिया कि इसकी ऊपर शिकायत करूँगा । प्रबंधक सहम गया । उसने पैंट्रीकार से टी और ब्रेड भिजवाई । ताकि मैं शिकायत न करूँ । मैंने अस्वीकार कर दिया और बड़े पुत्र को फोन लगाया । दूसरे तरफ से पुत्र ने फोन उठायी । मैन उन्हें पूरे किस्से बताए और घर से रेलवे को शिकायत भेज देने के लिए कहा । पुत्र ने ऐसा ही किया । शिकायत दर्ज हो गयी और शिकायत नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया ।

PNR 2858871469
TN 11078
Date of journey 10.05.2016
NDLS to KP G
Meals quality and stranded very bad. Veg.
And even though they are about to charge Rs 120/-
I did not had and returned it due to.
advised TTE also on duty .
That type of meals even we are not feeding to our dog in home.

एक सप्ताह बाद मुझे रेलवे के कार्यालय ( दिल्ली ) से फोन आया । फोनकर्ता ने शिकायत की पूरी जानकारी पूछी । मैंने पूरी कहानी सुना दी और कहा कि ऐसा भोजन मेरा कुत्ता भी नही करता है । विश्वास न हो तो मेरे घर आकर जांच पड़ताल कर लें । किन्तु दूसरे तरफ से कोई उत्तर नही मिला । फोनकर्ता ने कार्यवाही करेंगे , कह कर फोन काट दी । कुछ दिन के बाद मुझे एक एस एम एस मिला । जो रेलवे का था । उसमें लिखा था कि झेलम एक्सप्रेस के ठेकेदार पर दस हजार का जुर्माना लगाया गया है । इस समाचार के बाद कुछ सकून मिला ।

इसके पहले एक समाचार पत्र में भी पढ़ा था कि रेलवे के महाप्रबंधक ने झेलम एक्सप्रेस के पैंट्रीकार की औचक निरीक्षण किया तथा अनेक अनिमियता देखी । ठेकेदार पर पचास हजार का जुर्माना ठोका ।

जी हां । रेलवे आप को सतत  उचित सेवा देने के लिए प्रयासरत है । क्या आप रेलवे की मदद करेंगे ?

अभी भी  न्याय जिंदा है ।

Friday, February 10, 2017

माँ वैष्णो देवी यात्रा -5

हम जम्मू अपने रिश्तेदार के घर  लुधियाना आ गए थे । यहाँ पर एक दिन रुकने के बाद , अब यहाँ से नई दिल्ली जाना था। लुधियाना शहर अपने उद्योगिक राजस्व के लिए प्रसिद्द है ।यहाँहर किस्म की छोटी बड़ी फैक्ट्री मिल जायेगी । इसकी उत्पादन क्षमता पुरे भारत ही नहीं विदेशो में भी फैली हुई है । लुधियाना के बारे में जितना भी लिखा जाए वह कम ही होगा । 8 मई 2016 , रविवार को गोल्डन टेम्पल एक्सप्रेस ( 12904 ) से नयी दिल्ली के लिए रवाना हो गए । 9 मई 2016 को सुबह 7 बजे हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर उतरे क्योंकि यह ट्रेन नयी दिल्ली होकर नहीं चलती है । हमें योजनानुसार किसी के घर न जाकर , नयी दिल्ली के किसी होटल में ठहरना था । 


हजरत निजामुद्दीन से नयी दिल्ली के लिए रोड और रेल यातायात से बहुत से साधन है । ट्रैन से जाने का प्रोग्राम था किंतु एक टैक्सी वाले ने हमें 50/- में नयी दिल्ली पहुचाने की ऑफर दी । मुझे कुछ आश्चर्य भी हुआ । कानो को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था  । कही ये धोका तो नहीं देना चाहता ? अनायास ही मन में संदेह उपजे । जीवन में कभी भी 50/- में दोनों स्टेशन के बीच यात्रा नहीं की थी । हमने उससे कहा - चलो । उसने एक आज्ञाकारी नौकर की तरह सामान उठा लिए और चल पड़ा । आगे आगे वो और पीछे पीछे  हम । कारो - टेम्पो की झुंडों से होते हुए , हम आगे बढ़ रहे थे । उसकी कार , पार्किंग के एक कोने में खड़ी थी । हम कार में सवार हुए और हमारी यात्रा शुरू हो गयी । चुकी दिल्ली दर्शन के लिए रुक रहे थे , सोचा कार वाले से ही कुछ जानकारी भी ले ली जाये । 

मैंने कार वाले से पूछा - दिल्ली घुमाने के लिए कितना भाड़ा है ? उसने उत्तर के वजाय मुझसे ही प्रश्न कर दिया - दिल्ली घूमना है क्या ? 
मैंने कहा - हाँ जी । 
साहब ऐसी या नॉन ऐसी , किस तरह का चाहिए ? 
गर्मी है ऐसी चाहिए । मैंने सहज में ही कह दिया । साहब ऐसी के 1800/- रुपये और नॉन ऐसी के 1500/- रुपये लगेंगे । उसने बड़े ही आत्मीय ढंग से कहा जैसे हम उसके सगे हो । ज्यादा है भाई । टूरिस्ट बस से तो ,  सौ दो सौ में बात बन जायेगी । मैंने भी अनायास  ही कह दिया । साहब सब कुछ महंगा हो गया है । पेट्रोल डीजल महंगा है । रास्ते  में पुलिस वाले है । पार्किंग खर्च है । सभी तो देखना पड़ता है । खैर हमें तो दिल्ली घूमना था । उससे बात पक्की कर ली । कम नहीं किया । कार को एक होटल के पास रोका - पहाड़गंज का क्षेत्र । होटल अच्छा था साफ सुथरा । श्रीमती जी को पसंद आया । वैसे भी घरेलु रहन - सहन तथा घर कैसे हो ? मर्दो से बेहतर औरते ज्यादा जानती है । मर्द पिछड़ जाते है क्यों की वित्तीय घोटाले नहीं करना चाहते ।

नित्य क्रियाकर्म और नास्ते के बात हम होटल से बाहर आये । उस टैक्सी चालक का पता नहीं था । होटल का मैनेजर सामने आया और कहा -" वह ड्राइवर चला गया । मैंने उसके भाड़े 50/- रुपये दे दिए है । आप मुझे दे दीजिए और दूसरी कार रेडी है । ये है ड्राइवर । उसने एक नाटे व्यक्ति की तरफ इशारा किया । ये आप को पूरी दिल्ली घुमा देगा । " मैंने संसय में पूछा - और भाड़े कितने ? मैनेजर बोला - जो पहले तय हुयी थी , उतना ही  ।

दिल्ली के मुख्य दर्शनीय स्थल - 

 लाल किला , जामा मस्जिद , विजय घाट , शांति वन , शक्ति स्थल , राजघाट , गांधी म्यूजियम , कोटला फिरोज शाह , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , तीन मूर्ति , इंदिरा गांधी मेमोरियल हाल , राष्ट्र पति भवन , पार्लियामेंट हाउस , बिरला मंदिर , लोटस टेम्पल , अक्षर धाम मंदिर , रेल म्यूजियम वगैरह वगैरह । 


कार ड्राइवर बिरला मंदिर से दर्शन की शुरुआत की । ड्राइवर  बिच बिच में चुटकुले भी कहने शुरू का दिए थे । ये अच्छे लगते थे । समय व्यतीत होने के लिए जरुरी भी थे । एक जगह कार ड्राइवर हमें एक इम्पोरियम में ले जाने की इच्छा जताई । हमने जाने से मना कर दिया । हमें मालूम था कि वहाँ लेने के देने पड़ते है । ये टूरिस्ट कार वाले मिले होते है । इसके पीछे इनके कमिसन रखे होते है । कई बार हम ठग भी चुके है । उसने हमारी एक न मानी और अनुरोध करने लगा की एक बार आप जाये , कुछ न लें बस । हमने उसकी एक न मानी । अंत में उसे आगे ही बढ़ने पड़े । 

क़ुतुब मीनार के पास गए । यहाँ अंदर जाने के लिए टिकट लेने पड़ते । टिकट खिड़की पर गया । मैंने देखा टिकट काउंटर पर बैठा व्यक्ति सबसे ख़ुदरे रुपये पूछ रहा था । सभी परेशान हो रहे थे । मेरी बारी आई । मेरे साथ भी वही व्यवहार । मुझे तुरंत गुस्सा आ गया । उसे बहुत कुछ कह दिया । वह निरुत्तर सा हो गया , मुझे टिकट आराम से दे दिया । क़ुतुब मीनार ही दर्शन की प्रमुख टारगेट था , मैडम जी का । अंदर में भ्रमण हुई । कई जगह पिक और वीडियो लिए गए  । 

दोपहर के भोजन भी कार ड्राइवर के निशानदेही होटल में ही हुई । हम ठहरे दक्षिण भारतीय रहन - सहन वाले । भोजन रास न आये । पर जीने के लिए तो जरुरी है । काश कोई फल फूल खा लिए होते , तो ही अच्छा होता । दिल्ली दर्शन  के दौरान हमने पाया कि बहुत से दर्शनीय स्थल सोमवार को बंद थे । हमारे मनसूबे पर पानी फिर गए । जो खुले थे वे है - विजय घाट , शांति वन , राजघाट , शक्तिस्थल , इंडिया गेट , क़ुतुब मीनार , बिरला मंदिर । इन्हें देख के संतोष करने पड़े । बाकी सब बंद थे ।  कार ड्राइवर को भी पता था , पर उसने कोई सूचना नहीं दी थी । बालाजी के लिए दिल्ली का दर्शन महत्वपूर्ण था । हम तो कई बार देख चुके है । फिर कभी आएंगे , सोमवार को छोड़ , कह आज की दर्शन यात्रा को विराम देनी पड़ी । 

दोस्तों , किसी भी दर्शनीय स्थल पर जाने के पूर्व , वहाँ के बारे में पूरी जानकारी कर लेनी जरुरी होती है । ये जानकारी दोस्तों , रिस्तेदारो या आज कल नेट से प्राप्त की जा सकती है । अन्यथा परेशानी और व्यर्थ के समय बर्बाद होंगे ही और पैसे भी । नए शहर में नए लोग तुरंत पहचान में आ जाते है अतः किसी  पुलिस स्टेशन का मोबाइल नंबर साथ हो , तो किसी भी अनहोनी या ठगी से बचा जा सकता है । वैसे पुलिस स्टेशन के लफड़े से ज्यादातर दूर ही रहना चाहिए क्योंकि पुलिस थाने  भरोसे के स्थल नहीं है । ये ज्यादा उचित होगाकि दिल्ली दर्शन के लिए  सोमवार को न जाए या जो दर्शन करना चाहते है वह किस दिन उपलब्ध है इसकी पूरी जानकारी कर लें । पर्यटन स्थल पर खरीददारी न करें । सामान कोई खास नहीं पर भड़कीले होते है जो पर्यटक को बरबस आकर्षित करते है । वैसे आप जो ख़रीदारी करना चाहते है वह आप के शहर में भी मिल जायेंगे तथा रास्ते भर उस सामान को ढ़ोने की समस्या से भी निजात मिलेगा  । हाँ यात्रा का पड़ाव हो तो खरीद सकते है । वैसे पसंद अपनी अपनी । पैसे अपने अपने । कार चालको से भी सदैव सतर्कता बरतनी चाहिए ।

जैसा की मैं रेलवे में चालक हूँ । एक बहुत ही जिम्मेदारी भरा ड्यूटी करना पड़ता है । परिवार , समाज , ऑफिस और कार्यस्थल के सभी ड्यूटी को सुरक्षित संपादन के लिए वक्त के पाबंद है हम । कुछ के लिए समय को बचाने पड़ते है । यही वजह है कि सुचारू ढंग से ब्लॉग पर पोस्ट न दे पा रहा हूँ । बहुत से पाठक फोन या व्हाट्सएप्प पर सवाल करते रहते है कि अगली पोस्ट कब आ रही है । ऐसे फ़ैन को तहे दिल से धन्यावाद तथा देर लतीफी के लिए दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ । आप के प्यार और लगाव को मेरा सत सत नमन । 

( आगे की यात्रा के बारे में जानकारी के लिए पढ़िए - 
माँ वैष्णो देवी यात्रा - 6 ) 



Sunday, March 23, 2014

आरक्षण

सत्ताईसवीं फरवरी २०१४ को शिवरात्रि का दिन  था । उस दिन ट्रेन में आरक्षण हेतु सिकंदराबाद स्टेशन के आरक्षण खिड़की पर गया था । " क्या आप ही सबसे पीछे है ? " मैंने सामने कतार में खड़े व्यक्ति से पूछा ।उसने हाँ में सिर  हिला दी । मै उसके पीछे खड़ा हो गया । मेरे सामने पुरे दस व्यक्ति खड़े थे । आध घंटे से कम नहीं लगेगा ? सोंचते हुए अनमयस्क सा लाईन में खड़ा रहा । सामने वाला बार -बार मुझे पलट कर देख रहा था । शायद कुछ पूछना चाह रहा हो । मैंने उसके तरफ ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा । 

आखिर वह पीछे पलटा और अपने टिकट को मुझे दिखाते हुए पूछा  - क्या टिकट का रद्दीकरण 
इसी खिड़की पर होगा ? मैंने हाँ में सिर हिला दी । पर मेरा मन माना नहीं । उसके हाथो कि 
ओर फिर देखा । उसके हाथो में केवल टिकट था । मैंने उससे कहा - " रद्दीकरण के लिए फॉर्म 
भरना पड़ेगा , वह कहाँ है ?" उसने सच्चाई भाप ली । उसने फॉर्म नहीं भरी थी । पूछा - " फॉर्म 
कहाँ  मिलेगा ?" मैंने उसे दूसरी खिड़की कि ओर इशारा कर दी । वह लाईन से बाहर चला गया । 

दिल में तशल्ली हुई ,कम से कम एक व्यक्ति सामने से कम हुआ । सामने से लाईन कम होने कि 
नाम नहीं ले रही थी । सामने ग्रीष्म कालीन  टूर हेतु  आरक्षण वाले ज्यादा थे । मैंने देखा कि फिर वह व्यक्ति हमारे आस -पास टहलने लगा । उसके हाथो में रद्दीकरण का एक फॉर्म था । कभी मेरे तरफ तो कभी आगे वाले व्यक्ति को देख रहा था । शायद कलम कि जरूरत हो  । उसके पास कलम नहीं थे । मेरे मन में भूचाल आया । मै उसे कलम नहीं देने वाला क्योकि आरक्षण कि खिड़की के 
पास मेरे कई कलम गुम हो चुके है । जिन्होंने फॉर्म भरने के लिए लिए , बिन वापस किये चले गएँ । 

यह कैसी विडम्बना है कि आज - कल के ज्यादातर व्यक्तियो के पास मोबाइल / स्मार्टफोन मिल जायेंगे , पर कलम नहीं । 

तब तक लाईन में खड़े सामने वाले व्यक्ति ने उसकी मंसा को भांप लिया  और अपनी जेब कि कलम उसके तरफ बढ़ा दी  । वह व्यक्ति भी सहर्ष स्वीकार कर लिया । किन्तु फॉर्म भरने कि वजाय वह  इधर - उधर देखते रहा । आखिर कार कलम देनेवाले ने कहा - " फॉर्म भर डालो भाई , आपकी बारी आने वाला है । "

ओह उसके मुख से आश्चर्य जनक शव्द  निकले - " सर लिखने नहीं आता । " मेरा मन उसके प्रति सहानुभूति से भर गया । क्या यही है शिक्षा का अधिकार ? क्या यही है आजादी के पैंसठ वर्षो से अधिक  की उन्नति ? आज भी देश के कोने - कोने में हजारो ऐसे व्यक्ति मिल जायेंगे , जो पढ़ाई से ज्यादा जीविका पर ज्यादा ध्यान  देते है । अगर ऐसा ही रहा तो आधुनिक भारत की  कल्पना बेकार है । 

Wednesday, January 22, 2014

आधा घंटा पहले का निर्णय

मै अपने पाठको के समक्ष हमेश ही सत्य और प्रमाणिकता से जुड़े विषयों को प्रस्तुत करते रहा हूँ , चाहे कहानी हो या अनुभव । कभी -कभी अति आश्चर्य होता है , जब सत्य सामने खड़ा हो  और हम उसे समझ पाने या अनुभव कर सकने में अक्षम हो जाते है । कही ऐसा तो नहीं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता ? जो भी हो , हवा की रूख भापने वाले संभल जाते है । हमारे शरीर  का निर्माण पाँच तत्वो  से हुआ  है । अतः यह स्वाभाविक है कि इनमे से किसी के अपनत्व  का संपर्क एक अजीब सा अनुभव ही देगा । 

हम लोको चालको का कार्य स्थान्तरित होते रहता है । कभी इस शहर में तो कभी उधर । यात्री गाड़ी हो तो अनुभव के अवसर बहुत मिलते  है । तरह - तरह के यात्रियो से संपर्क बनते है । हर किस्म के लोग संपर्क में आते है । इस अनुभव और प्रश्नो कि लड़ी उस समय और बढ़ जाती है ,जब किसी बाधाबश गाड़ी देर तक रूक गई हो । यात्री  झुण्ड के झुण्ड लोको के पास आ खड़े होते है । प्रश्न वाचक चेहरे , प्रश्न वाचक शव्द -हमे संयम कि पटरी पर ला घसीटते है । 

लाख करें चतुराई पर विधि कि लिखन्ती को कोई टाल नहीं सका है । अगर ईश्वर है , तो कालनिर्णय का चांस सभी को देते है । कोई जरूरी नहीं कि आप भी इस मत से सहमत हों । उस दिन ऐसा ही कुछ हुआ था । मै अपने को -लोको चालक के साथ सिकंदराबाद आरामगृह में कॉफी कि चुस्की ले रहा था । ठंढ लग रही थी । सबेरे का वक्त था । अभी - अभी बंगलूरू - हजरतनिजमुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस को काम करके आयें थे । वि. आर. के. राव ने कहा -मै अपोलो अस्पताल जाकर आता हूँ । आप नास्ता कर लेना । मैंने पूछा - ऐसी क्या बात है ? 

उन्होंने जो बताएं वह इस प्रकार है --
" मेरे सम्बन्धी एक अपार्टमेंट हैदराबाद में ख़रीदे है । उन्होंने  शिफ्ट करने के पहले दूध गर्म और गृहप्रवेश कि पूजा हेतु , गुंतकल से  सपरिवार अपने कार से हैदराबाद आ रहे थे । वे लोग रात को ग्यारह बजे यात्रा शुरू किये । रास्ते में एक बजे कार चालक ने कहा -मुझे नींद आ रही है । एक घंटा सोना  चाहता हूँ । चालक को अनुमति मिल गयी । कार को सड़क के एक किनारें पार्किंग कर सो गया । कुछ आधे घंटे ही हुए होंगे , मेरे रिस्तेदार ने उस चालक को आगे चलने को कहा , क्यूंकि सुबह का मुहूर्त छूट सकता था । 

अल साये हुए चालक और कार चल दी । यात्रा के दौरान कुछ दूर जाने के बाद चालक ने कंट्रोल खो दी और कार ने पलटी मारी । सभी रात  भर घायल अवस्था में कार में पड़े रहे । किसी वाहन चालक या पथिक  ने उनकी सुध नहीं ली । सुबह आस - पास के गाव वालो की नजर पड़ी और उनके मदद से मेरे रिस्तेदार अपोलो में भर्ती है । सभी को गम्भीर चोट पहुंची है । "

जी हाँ । यह घटना पिछले माह कि है । अब वे लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके है । आधा घंटा पहले का निर्णय महंगा पड़ा ? या नियति में यही लिखा था ? या कर्म के परिणाम थे ?या अपार्टमेंट अशुभ था ? जो भी हो हवा और अग्नि में जरूर फर्क होता है । 

Friday, November 22, 2013

राजधानी एक्सप्रेस रुक गयी ।

कभी - कभी जीवन में ऐसा लगता है कि हर चीज और अनुभव सबके बस की नहीं  होती । बहुत सी ऐसी चीजे है , जिन्हे धनवान  नहीं समझ सकते । ठीक वैसे ही धनवानो  की कुछ अनुभव  कमजोर  के पहुँच से बाहर होती है । कुछ समाज या व्यक्ति विशेष असाधारण प्रतिभावान  होते है , पर असुविधा कि वजह से अपनी प्रतिभा को विखेर नहीं पाते । शायद इसी लिए पांचो अंगुलिया बराबर नहीं है और  इसी भिन्नता कि वजह से समाज में संतुलन बना रहता है ?

 लोको पायलटो की जिंदगी भी अजीब सी  होती है । दिन में सोना , रात्रि पहर  जागते हुए कार्य को पूर्ण रूप देना ,दिनचर्या सी बन गयी है । हजारो सिगनलों , सैकड़ो मानव रहित / मानव विहीन समपार फाटको , सर्दी या गर्मी , वरसात या सुखा  , विभिन्न प्रकार के गाड़ियों / इंजनो , रुकन या प्रस्थान वगैरह - वगैरह को अनुशासन  के भीतर रहते हुए पूर्णरूप देना ही तो है लोको पायलट । समाज से दूर , परिवार से दूर बस गाड़ी के यात्रियों को ही परिवार मानकर सतत आगे बढ़ते रहते है । लोको पायलटो का   मुख्य ध्येय  -  अनुशासन में रहते हुए जान - माल की  रक्षा ,  रेलवे और देश की प्रगति में चार चाँद लगाना ही तो है । आप एक क्षण के लिए लोको पायलट बन , इनके जीवन की अनुभूतियों को महसूस कर सकते है । 

लोको पायलटो को  कार्य के समय कई छोटे या बड़े मुश्किलो का सामना करना पड़ता  है । सफलता पूर्वक त्रुटियों को झेल जाना भी एक बड़ी अनुभव होती है । हमने सिनेमा घरो में कई बार देखा होगा कि नायक /नायिका  रेलगाड़ी  में सफ़र कर रहे होते है । कोई छोटी वस्तु / घी के डब्बे / टिफिन बॉक्स को खतरे की जंजीर  से बांध देते है । तदुपरांत रेलगाड़ी  रूक जाती है । रेलगाड़ी के  कर्मचारी अपने निरिक्षण के दौरान इस गलती को देख लेते है और नायक / नायिका को खरी खोटी सुनाते  है । थोड़े समय के लिए  दर्शक हँसे बिना नहीं रह पाते और कुछ ताली तक बजा देते है । जी हाँ यह छवि गृह / सिनमोघरो  के छवि/ चलचित्र  में निर्देशक द्वारा प्रेषित , दर्शको के लिए मनोरंजन के एक मसाले के साधन मात्र होते है । ऐसी घटना वास्तविकता से परे समझी जाती है । लेकिन  -

सभ्य और शिक्षित समाज इस कार्य को कार्यान्वित कर दें , तो आप क्या कहेंगे ? क्या आपने कभी  ऐसी कल्पना कि है ? जी शायद आप को पता नहीं , यह वास्तविक जीवन में भी सम्भव हो  सकता है , जब राजधानी एक्सप्रेस ठहर गयी । कल यानि २१ नवम्बर २०१३ कि घटना प्रस्तुत है । कल मै राजधानी एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । राजधानी एक्सप्रेस सेडम स्टेशन पर रुकी । इसके फर्स्ट क्लास के डिब्बे से एक यात्री उतर गया , जो लोअर बर्थ का यात्री था । राजधानी फिर रवाना हो गयी । कुछ चार / पञ्च किलोमीटर कि यात्रा के बाद किसी ने खतरे कि जंजीर खिंच दी । फिर क्या था राजधानी एक्सप्रेस तुरंत रुक गयी । जाँच के दौरान  पता चला कि फर्स्ट क्लास के कोच में उप्पर बर्थ का यात्री लोअर बर्थ में सोने के लिए निचे उतरने के लिए इस जंजीर का सहारा लिया था । शायद वह यह नहीं समझ पाया कि यह कोई साधारण जंजीर नहीं है  बल्कि खतरे की जंजीर है । अनपढ़ की गलती क्षम्य है पर सभ्य और पढ़े - लिखे कि ? जब उसकी गलती से राजधानी एक्सप्रेस रुक गयी । 

Monday, September 23, 2013

पूर्वाभास

हमारे जीवन में सोते वक्त स्वप्न और जागते वक्त कल्पनाएँ -प्रतिक्षण कुरेदती  रहती है । कोई स्वप्न देखना नहीं चाहता  , तो कोई कल्पना मात्र  से भी डरता है । फिर भी हमारे हाथ पैर इन्हें साकार करने हेतु प्रयत्नशील रहते है । हमारे मष्तिष्क की उपज है ये  स्वप्न और कल्पनाएँ । स्वप्न में भयावह दृश्य हो  सकती है , आनंदायी भी और उमंग भरी भी ।  पर कल्पनाएँ  जागरुक और सुखमय ही कर जाती  है । 

स्वप्न और कल्पनाएँ दोनों  मिलकर एक हकीकत को रंग देती है । स्वप्न और कल्पनाएँ निजी सम्पदा है । निजी प्रयत्नों से कामयाब होती है । बोतल की नीर , बोतल से ही निकलेगी , घड़े से नहीं । दुनिया में बहुत कम लोग होंगे जिन्हें स्वप्न या कल्पनाओ की अनुभूति न हुई   हो । कभी - कभी ये सच का रूप भी  लेती है । मंथन से अमृत निकल सकता है , तो जिज्ञासा से सच्चाई क्यों नहीं ? तभी तो कहते हुए सुना गया है -जिन   खोजा तिन पाईया ।  

जब स्वप्न और कल्पनाओ की बातें हो ही  गयी तो एक उदहारण भी प्रस्तुत है -
           मै वाड़ी में  था और मुझे उस  दिन शिर्डी साईं नगर एक्सप्रेस लेकर गुंतकल आना था । दोपहर को भोजन के उपरांत  सो गया । मुझे एक स्वप्न आया कि  मै गेंहू पिसवा  रहा हूँ , पर गेंहू गीला हो जाता था । सो कर उठने के बाद परेशान हो गया ।दिमाग चलायमान हो चूका था ।  किसी अशुभ घटना के संकेत थे क्युकी कहते है शिरडी में हैजा की बीमारी के समय , साईं बाबा जी ने चाकरी में गेंहू की पिसाई की थी और औरतो से कहाकि  गाँव के चारो ओर सीमा पर छिड़क दें । सूखे आटा को सीमा पर छिड़कने से हैजा से मुक्ति मिली थी । पर यहाँ तो आटा गिला हो रहे थे ?

ड्यूटी में पौने पांच बजे शाम को ज्वाईन हुआ  । मिसेस जी का  फ़ोन काल आया । उन्होंने सूचना दी कि मिनी के सास की मृत्यु हो गई  , जो बनारस में ब्रेन फीवर की वजह से भरती थीं । मिनी मेरे बहन की बड़ी बेटी है ।  सूखे आटे कि जगह यह है गीली आटे का स्वप्न । स्वास्थ्य के वजाय अस्वस्थ सूचना ।  जी ऐसी कितने पूर्वाभास हमें होते रहते है । सिर्फ हम उन्हें हल्के में ले लेते है । अगर उनकी समीक्षा की जाये , तो जरूर निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है । फिर भी जरूरी नहीं कि आप मुझसे सहमत हों । 

Saturday, June 15, 2013

शिर्डी वाले साईं बाबा



दोनों एक समय  के जिगरी दोस्त थे । बहुत दिनों के बाद एक साथ और परिवार के साथ  मिले थे । वह भी महाराष्ट्र के मशहूर धार्मिक नगर शिर्डी में । दो दिनों का प्रोग्राम था । दोनों छुट्टी पर थे । एक एयर फ़ोर्स में कार्यरत शिव थे , तो दुसरे रेलवे के अधीन महादेव ।  नाम  अलग - अलग , पर अर्थ एक जैसे । यह भी एक इत्तेफाक था । पहले दिन नासिक दर्शन को  गए थे । थकावट में रात गुजरी । सुबह होते ही बाबा के दर्शन करने के बाद , शिर्डी  से प्रस्थान की व्यवस्था हो चुकी थी । 

दुसरे दिन वही हुआ , जो प्रोग्रमित था ।  दोनों दोस्त दोपहर के भोजन के बाद भक्ति निवास में लौट आयें । यही दो कमरे बुक हुए  थे । दोनों  दो बजे रेलवे स्टेशन के लिए रवाना होने वाले थे । शिव की ट्रेन नासिक से थी और महादेव की कोपर गाँव से । अतः शिव ने एक कार को भक्ति निवास में ही बुक कर लिया । कोपर गाँव जाने के लिए कोई साधन भक्ति निवास में उपलब्ध नहीं थे । साईं बाबा के मंदिर के सामने ही कोपर गाँव के लिए साधन मिलते है । 

दोनों के जुदा होने का वक्त आ गया था । भक्ति निवास में शिव अपने परिवार के साथ कार में जा बैठा । महादेव और उनके परिवार वालो ने विदाई हेतु अपने हाथ को हवा में लहराए । तभी महादेव के दिमाग में  एक तरकीब जगी , क्यों न हम सभी  इसी कार में साईं बाबा के मंदिर तक चल चले ? और दो मिनट  एक साथ रहेंगे । शिव ने भी ख़ुशी जाहिर की । महादेव भी परिवार के साथ उस कार में बैठ गया । कार पोर्टिको से बाहर सड़क की ओर चल दी । 

ओ ..ड्राईवर कार रोको ? किसी ने कार ड्राईवर को इशारा करते हुए कहा । ड्राईवर ने कार रोक दी । शायद वह ऑटो वाले थे । उसने ड्राईवर को  मराठी भाषा में कुछ हिदायत दी और न मानने की हालत में सौ रुपये जुरमाना देने को कहा । दस मिनट हो चुके थे । माजरा क्या है ?  जानने के लिए महादेव ने ड्राईवर से प्रश्न किया  । ये लोग दो परिवार को क्यों बैठाये हो -के मुद्दे पर प्रश्न खड़ा कर रहे है । एक ही परिवार को ले जाने के लिए कह रहे है । यह सून कर बड़ा ही ताज्जुब हुआ । ड्राईवर  और महादेव ने उन्हें समझने की लाख कोशिस की और उन्हें बताया गया कि एक परिवार मंदिर के पास उतर जाएगी । किन्तु उन लोगो के कान पर जू तक न रेंगी । उनकी बात न सुनी गयी , तो कार के चक्के की हवा निकाल देंगे । 

मामला गंभीर न हो जाए अतः महादेव  स्वयं परिवार सहित कार से निचे उतर गए और अफसोस के साथ दोस्त को अलबिदा किया । धर्म के स्थल पर यह घोर अन्याय है । महादेव मन ही मन बुद  बुदाये । ऑटो वाले ठीक नहीं कर रहे है । महादेव ने गुस्से के साथ पत्नी से कहा कि हम यहाँ से किसी ऑटो को किराये पर नहीं लेंगे और पैदल ही मंदिर तक जायेंगे । 

पहिये वाली सूट केस और बैग को सड़क पर खींचते हुए मंदिर की तरफ चल दिए , जहाँ से कोपरगाँव की   ऑटो / जीप  मिलती है । ऑटो वाले देखते रह गए । सहसा एक ऑटो आकर उनके समक्ष रूका , जिसे कोई बारह या पंद्रह वर्ष का लड़का चला  रहा था । लडके ने कहा - ऑटो में बैठिये मै मंदिर तक छोड़ देता हूँ । महादेव के मन में गुस्सा था । उसने सीधे इंकार कर दिया । किन्तु ऑटो वाला अपने   जिद्द पर अड़ा  रहा । अंततः महादेव ऑटो में बैठ गया ।



 दो मिनट में मंदिर स्थल आ गया । महादेव ऑटो से उतरने के बाद भाडा देने हेतु अपने पर्स खोलने लगे  । पर ऑटो वाला बिना देर किये , बिना भाडा लिए ही , वहां से  फुर्र हो  गया । जबकि भक्ति निवास से मंदिर तक का ऑटो चार्ज बीस रुपये था । महादेव आश्चर्य चकित थे । भला जिस पैसे के लिए उन ऑटो वालो ने हमे कार से उतरने के लिए विवश कर दिया था , वही बिन भाडा कैसे जा सकते है ? उन्हें समझते देर न लगी । साईं बाबा ने अपने भक्तो को कभी भी उदास नहीं किया है । सभी की बिदाई ख़ुशी से करते है । महादेव ने मन ही मन साईं बाबा को प्रणाम किया । 

ॐ साईं .....ॐ साईं ....ॐ साईं .....

( साथियों ....यह घटना सत्य पर आधारित है । परिवेश वही है , पर नाम बदल दिए गए है । दूर घर बैठे फोन के माध्यम से अपनो से बात चित हो जाती है । क्या यह सत्य नहीं की मंदिर रूपी फोन  के माध्यम  से हमारी आवाज भी ईश्वर तक पहुँच जाती है ?) 

Sunday, November 11, 2012

सावधानी हटी ....दुर्घटना घटी ।

आज धन- तेरस है । दक्षिण दिशा में दीप जलाने  और अकाल मृत्यु से मुक्ति का दिन । सभी जगह दुकाने सजी हुई  है । नए सामानों को खरीदने की होड़ । सभी को लक्ष्मी जी को मनाने और अपने घर में आगमन की  तैयारी / और  इंतज़ार । अपने - अपने ढंग और तैयारी  । साफ़ - सफाई और समृद्धि  की पूजा / त्यौहार है ..यह ..दिवाली । कहीं  समृद्धि  तो कहीं दिवालापन । तरह  तरह के भाग्य आजमाने के नुस्खे ।

 कल किसने देखा है । अतः आज की सुरक्षा  ही कल की दिवाली है । मनुष्य अत्यंत ही महत्वाकांक्षी प्राणी है । अपने अभिलाषा  की पूर्ति हेतु यह जरुरी है .कि ..कदम - कदम पर  सावधानी बरती  जाय । अब  देखिये ना ...कल यानी  दिनांक  10 . 11. 2012  कि एक घटना याद आ गयी । मै 12163 - दादर -चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता  जा रहा था ।   लोको चालको को ड्यूटी में आते ही सतर्कता आदेश ( caution order ) दिए जाते है । जिसमे यह अंकित होते है कि उसे किन दो स्टेशन के  बीच  , किस किलोमीटर के पास , कितने गति से ट्रेन को  चलाने है तथा किन चीजो का विशेष ध्यान  रखने है ।
 
मुझे भी सतर्कता आदेश की कापी स्टेशन मैनेजर ने दी  । ट्रेन समय से गुंतकल आई । हमने ट्रेन का चार्ज लिया । समय से रवाना भी हुयी । हम जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे ...क्रमानुसार ...आगे आने वाले स्टेशन के सतर्कता क्रम पर भी नजर थी । अचानक मैंने देखा कि पताकोत्तचेरुवु और गूती स्टेशन के बीच 402/1-0 किलोमीटर पर 30 किलोमीटर की गति से जाने का आदेश है क्यों की रेल जॉइंट टूटी हुई  है और मरम्मत का कार्य चल रहा है । 

 तुरंत मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठा । ये दोनों स्टेशन तो ठीक है , परन्तु ये किलोमीटर इन दोनों स्टेशन के बीच  नहीं है , जरुर कोई प्रिंटिंग में गलती हुई  है । मैंने अपने सहायक को कहा की डिप्टी कंट्रोलर को फोन करे और जानकारी लें । सहायक लोको चालक ने ऐसा ही किया । किन्तु डिप्टी कंट्रोलर से सकारात्मक उत्तर नहीं मिला । ट्रेन 105 किलोमीटर की रफ़्तार से दौड़ रही थी ।

असमंजस की घडी । सामने पताकोत्तचेरुवू स्टेशन आने वाला था । कई स्टेशन मास्टरों को वल्कि - ताल्की पर पुकारा गया । कोई जबाब नहीं । अंततः मैंने ट्रेन को पास थ्रू सिगनल होने के वावजूद भी पताकोत्ताचेरुवु स्टेशन में खड़ा  कर दिया । ट्रेन के रुकने के बाद स्टेशन मास्टर हरकत में आया । उसने रुकने का कारण पूछा । मेरे सहायक ने पूरी जानकारी दी । स्टेशन मास्टर एक नया सतर्कता आदेश तैयार कर भेजा । जिसमे किलोमीटर  420/1-0  था । इस तरह एक भीषण दुर्घटना  होने से बची । क्योकि जहाँ कार्य चल रहा था ..वहां ट्रेन गति से चलने की वजह से जान - माल का नुकशान हो सकता था और जहाँ कार्य नहीं हो रहा था , वहां ट्रेन  30 किलोमीटर की गति से चलती थी ।

इसी लिए कहते है --एक लोको चालक सैकड़ो  को बचा सकता है , सैकड़ो मिलकर एक लोको चालक को नहीं बचा सकते  । आज रेलवे में लोको चालक उपेक्षा का शिकार है , फिर भी दिन - रात कड़ी मेहनत कर आप को सुरक्षित ..आप के मंजिल तक पहुँचाने में सतत प्रयत्नशील ।

जी हाँ ...सामने दिवाली है । आप जश्न में मस्त रहेंगे और हम परिवार से दूर आप की सेवा में । पटाखे जलेंगे । प्रदुषण बढ़ेंगे । जेब खाली  होंगे ..जेब भरेंगे । इस पावन - पर्व पर आशा करता हूँ सभी की दिवाली मंगल मय और समृद्धि से परिपूर्ण  होगी । आप इस आतिशबाजी से सावधान रहें और हम ट्रेन के परिचालन में , क्युकी सावधानी हटी , दुर्घटना  घटी ।

Saturday, January 21, 2012

अंधेर नगरी चौपट राजा और दीप तले अँधेरा !

देश के महान विचारक एवं दार्शनिक स्वामी विवेकानंद ने कहा था - " कि अपने जीवन में सत्यता हेतु जोखिम उठाना चाहिए ! अगर आप कि विजय होती है , तो  आप अन्य लोगो का नेतृत्व करेंगे ! अगर आप पराजित होते है , तो अन्य लोगो को अपना अनुभव बता कर साहसी बनायेंगे !" 



                          एक बुजुर्ग प्लास्टिक के कचरे / बोतल बीनते हुए !
 उपरोक्त व्यक्ति को  चित्र में देखें -
 इस तस्वीर को मैंने लोको से ली थी ! उस समय जब देश में अन्ना हजारे का आन्दोलन तेज था ! लोकपाल के लिए मन्नत और विन्नत दोनों जोरो पर थे ! सत्यवादी  ईमानदार- समर्थक और लोलुप /लालची /बेईमान इस आन्दोलन से कन्नी काट रहे थे ! काट रहे है ! जैसे लोकपाल उनके आमदनी और बेईमानी पर कालिख पोत देगी !
 किन्तु इस तस्वीर को देखने से हमें बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है ! 
क्या यह बुजुर्ग मेहनती नहीं है ?  क्या यह कोई चोर लगता है ?  क्या यह स्वार्थी है ? क्या पेट पालने के लिए , नाजायज तौर तरीके अपना रहा है ? क्या यह समाज का सेवा नहीं कर रहा है ? क्या इस तरह के लोगो कि दुर्दशा - समाज के लिए कलंक नहीं है ? क्या उत्थान कि दुन्दुभी पीटने वाली सरकारे --ऐसे लोगो के लिए कुछ नहीं कर सकती ? और भी बहुत कुछ , पर यह बृद्ध व्यक्ति निस्वार्थ ,दूसरो कि गन्दगी साफ करते हुए , जीने की राह पर अग्रसर है !
जीने के लिए तो बस --रोटी , कपड़ा और मकान ही ज्यादा है ! फिर इससे ज्यादा बटोरने की होड़ क्यों ? हमारे देश के लोकतंत्र में अमीर ...और अमीर ..तो गरीब ..और गरीब होते जा रहा है ! देश का लोक तंत्र बराबरी का अधिकार देता है , फिर धन और दौलत में क्यों नहीं ? क्यों १% लोगो के पास अरबो की सम्पति है ?  और  ९९% जनता - रोटी / कपड़ा/ मकान के लिए तरसती  फिरती  है ! इसे लोक तंत्र की सबसे बुरी खामिया कह सकते है ! 
लोगो के समूह से परिवार , परिवार से घर , घर से समाज ,समाज से गाँव , गाँव से शहर , शहर से और आगे बहुत कुछ बनता जा रहा है ! परिवार  को ही ले लें  एक ही घर में पति और पत्नी नौकरी करते मिल जायेंगे ! एक ही परिवार में कईयों के पास नौकरी के खजाने भरे मिलेंगे ! वही पड़ोस में एक परिवार बिलबिलाते हुए दिन गुजार रहे होंगे ! आखिर क्यों ? 
क्या सरकार ऐसा कोई बिधेयक नहीं ला सकती , जिसके द्वारा--
१) एक परिवार( पति - पत्नी और संताने  दो ) में एक व्यक्ति को ही नौकरी मिले !
२) नौकरी वाले  पति / पत्नी , में कोई एक ही नौकरी करे !
३) सरकार - सरकारी कर्मचारियों में लोलुप व्यवहार और आदत को रोकने के लिए - कुछ मूल भुत सुबिधाओ को मुहैया करने के लिए कदम उठाये , जिससे उनकी भ्रष्ट आदतों/ अपराधो  पर लगाम लगे  जैसे-नौकरी लगते ही ---
अ) घर की गारंटी !
बी)बच्चो की शिक्षा की गारंटी !
क)बिजली , पानी  और गैस की सुबिधा ! 
डी) मृत्यु तक स्वास्थ्य और सुरक्षा की गारंटी ! वगैरह - वगैरह 
४) धन रखने की सीमा निर्धारित हो ! जिससे की उससे ज्यादा कोई भी धन न रख सके !
५) सभी लेन- देन इलेक्ट्रोनिक कार्ड से हो !
६)बैंको में कैश की भुगतान न हो !
७)किसी भी चीज को बेचने या खरीदने का दर सरकार ही निर्धारित करें और उसके कैश भुगतान न हो केवल इलेक्ट्रोनिक भुगतान लागू हो !
उपरोक्त कुछ सुझाव मेरे अपने है !  टिपण्णी के द्वारा -आप इसे जोड़ या घटा सकते है ! संभवतः इस प्रक्रिया से कुछ हद तक  गरीबी दूर की जा सकती है ! भ्रष्टाचार दूर की जा सकती है !अपराध में कमी आ सकती है ! कुछ - कुछ होता है ! पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ?
आज कल भ्रष्ट  का ही बोल बाला है ! भ्रष्टाचार  बढ़ और फल फूल रहा है ! इसके भी कारण स्वार्थ ही है ! स्वार्थ जो न कराये ! हम अमीर है ! हमारा देश सोने की चिड़िया है  ! इसीलिए तो एक डालर के लिए ५०.३५ रुपये( आज का भाव ) देते है ! गरीब देश थोड़े ही देगा ! फिर भी ..अंधेर नगरी चौपट राजा और  दीप तले अँधेरा !

Tuesday, January 17, 2012

आधी रात और हप्ता


आज आधी रात दौड़ जंक्सन ,  . में लगभग 30-50 रुन्निंग  स्टाफ (लोको पायलटों) ने ( १६/१७-०१-२०१२ , सोलापुर डिवीजन के अंतर्गत). ट्रेनों की आवाजाही .. लगभग २ से ३ घंटे तक . बंद कर दिया (नांदेड़ एक्सप्रेस , राजकोट एक्सप्रेस  आदि) , सभी ने ऐसा अपने क्षेत्र के गुंडा गर्दी के बिरोध में किया ! श्री सुशील कुमार / ALP  से पैसे के लिए स्थानीय  गुंडे हप्ता मांग रहे थे ! इसका बिरोध करने पर उनकी बुरी तरह से पिटाई उन गुंडों ने की ! वह अब अस्पताल में है ! डीआरएम / ए.डी.आर.एम्.के  हस्तक्षेप , और ADME / इंस्पेक्टर रेलवे सुरक्षा बल / जीआरपी- इंस्पेक्टर /स्टेशन मैनेजर -  दौड़ के द्वारा ,   लेखन में संयुक्त रूप से आश्वासन देने के बाद , गाडियों की आवाजाही शुरू हुई !,

लाल सलाम दौड़ डिपो के सभी रुन्निंग कर्मचारियों को .!
(मध्य रेलवे के शोलापुर मंडल )

(एक 10 साल के बच्चे ने रोक दिया बड़ा रेल हादसा- इसे पढ़ने के लिए  ' न्यूज़ '  में जाएँ )!

Sunday, December 18, 2011

दक्षिण भारत दर्शन --कन्याकुमारी भाग -२

गतांक से आगे -
 पिछले पोस्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें --Balaji 
कहने की जरुरत तो नहीं है कि कन्याकुमारी की सारी चीजे हमारी आँखों को ही नहीं , बल्कि मन को भी आनंद देती है !  प्रकृति  ने इस बालू में अपनी पूर्ण निपुणता  दिखाई है ! हजारो लोग यहाँ आते है और प्रकृति से सुन्दर दृश्य का अवलोकन कर , अनुभूति लिए लौट जाते है ! वे सभी धन्य है , जिनको कन्याकुमारी के दर्शन करने के सौभाग्य मिले है !
यह दक्षिण भारत दर्शन का आखिरी अंक है ! इसमे ज्यादा विषय को पोस्ट न कर , मै अपने कुछ गुदगुदी भरे अनुभओं को बांटने का प्रयास करूँगा ! 

                 विवेकानंद राक से लेकर गोधुली के दर्शन - यहाँ प्रस्तुत है !
             विवेकानंद राक के अन्दर - विवेकानंद  का स्मारक भवन 
                             सूर्योदय से सूर्यास्त तक का नक्शा !
                            ध्यान कक्ष के बाहर लगे सूचना पट्ट 
 राक के अन्दर बना यह कुण्ड , जो वर्षा के पानी को एकत्र करने के काम आता है ! इस पानी को इस जगह पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ! चूकी समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं होता ! 
 इस सुन्दर पत्थर  के हाथी के साथ फोटो खिंचवाते - बालाजी ! हाथी को छूना सख्त मन है !इस भव्य मेमोरियल का उदघाटन तात्कालिक राष्ट्रपति श्री वि.वि.गिरी.जी ने किया था !
                      जल बोट से ली गयी विवेकानंद राक की तश्वीर !
                                 बालाजी की फोटोग्राफी और मै !
 सूर्यास्त के पहले , संगम पर उमड़ता जन सैलाब ! सूर्य की बिदाई के लिए आतुर !सबकी नजर पश्चिम की ओर !जैसे - जैसे पल नजदीक सभी के चेहरे उदास सी दिखने लगे थे ! चिडियों का कोलाहल बंद और पर्यटक भी अपने आश्रय की ओर उन्मुख !भावबिभोर ...  
बिन औरत भला कोई समारोह सफल होता है क्या ? जी यहाँ भी देंखे --मेरी  धर्म पत्नी जी को ..जहाँ रहेंगी , वहां चुप नहीं बैठती ! वश बोलना ही है ! अगल - बगल वाले लोगों  को प्रेरित कर ही लेती है ! बालू के ऊपर बैठे और सूर्यास्त के इंतजार में बैठी , स्पेनिस युवतियों से बात - चीत करने लगीं  ! मुझे दबी जुबान से हंसी आ गयी तब , जब  स्पैनिश युवतियों ने कहा की- हम हिंदी नहीं जानतीं ! फिर क्या था मैडम ने भी उसी तर्ज पर कह दीं  - आई डोंट नो स्पेनिस एंड इंग्लिश ! फिर क्या था - दोनों तरफ से हंसी फुट पड़ी  और आस - पास बैठे / खड़े लोग  भी हंस दिए ! यह भाषा भी गजब की चीज  है !
जीवन चलने का नाम है ! हार - जीत आनी ही है ! बिना हार की जीत और बिन दुःख की  सुख की मजा ही क्या ? दिवस के बाद का अँधेरा हमेशा कुछ कहता है ! सूर्य की आखरी किरण को बिदा देते पर्यटक ! जैसे समुद्र की लहरे भी शांत होती चली गयी !देखते ही देखते अँधेरे का आलम छ गया !
                      बालाजी के हाथ में बत्ती का बाळ ! बहुत खुश -- 
 संगम के किनारे  बने गाँधी स्मारक ! १२ फरवरी सन १९४८ को गाँधी जी के चिता भस्म को कन्याकुमारी के तीर्थ में अर्पण कर दिया गया !उस समय के तिरु- कोचीन सरकार  ने यहाँ एक स्म्मारक बनवाने का वादा किया !अतः आचार्य कृपलानी ने 20 जून १९५४ को इसकी नीव डाली ! सन १९५६ को यह बन कर तैयार हुआ !इस स्मारक का निर्माण उड़ीसा के शिल्प कला पर किया गया है ! याद रखने की बात यह है को दो अक्टूबर को सूर्य की किरणे छत की छिद्र  से हो कर , अन्दर रखी मूर्ति पर पड़ती है ! दिन में इसके ऊपर चढ़ कर समुद्र के क्रिया - कलापों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है !
कहते है ह़र चीज का अंत एक याद गार होता है , चाहे ख़ुशी भरा हो या दुखी ! मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ ! पर मै इस चीज को आप के साथ नहीं बांटना चाहता ! अच्छा तो हम चलते है , फिर कभी मिलेंगे ! 

अलबिदा कन्याकुमारी ! कन्यामयी !

Wednesday, December 7, 2011

पटरी पर दौड़ती हैं सांसें

                                              तिरुपति रेलवे स्टेसन का बाहरी दृश्य 

किसी भी ट्रेन में सफ़र करते वक्त मुशाफिर की चिंता  होती है सिर्फ अपनी सीट की और अपने गंतव्य की ! मगर उस  ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा भी सफ़र करता है , जिसे सारे मुशाफिरो की फिक्र होती है !ये व्यक्ति इंजन / ट्रेन का लोको पायलट ( ड्राईवर )होता है ! देखने सुनने में लगता है की इसका काम बहुत आसान है  की इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी अपने - आप पटरियों पर दौड़ने लगती है ,  हजारो जानो  को सही - सलामत उनके अपनो तक पहुँचाने का काम किसी इबादत से कम नहीं है ! रेल इंजन का ड्राईवर / लोको पायलट होना यानि पहियों के साथ अपनी सांसों को भी पटरियों  पर दौड़ना ,  वक्त की पावंदी और न ठहरने का तय मुकाम ....बस चलते जाना ! यही लोको पायलट / ड्राईवर की पूरी जिंदगी का असली सार है !


                                 बड़ा मुश्किल है --  

रमाशंकर तिवारी ( लोको पायलट ) के अनुसार --" अब काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है ! रेस्ट के  घंटो में भी  वर्किंग से उब गए है ! अफसर है की समझने को तैयार नहीं और हमारे साथ लगातार ज्यादातिया हो रही है !"

( भास्कर  )

Sunday, December 4, 2011

दक्षिण भारत दर्शन -कन्याकुमारी !

गतांक से आगे -
पिछले पोस्ट को पढ़ने के लिए इसे क्लिक करे - Balaji 
 रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने  वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता  के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर  लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो ! 

 जैसे भी हो रात्रि  का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन  पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया !  कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए  साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग   रूम के एक किनारे  दरवाजे पर लगा हुआ था !
                            समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !
 अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम  ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे  रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
                            कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम

                                बालाजी और फिल्मी स्टाईल !

                           चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने

 माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !

 घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया !  चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !

सामने  गली में कन्याकुमारी  मंदिर दिखाई दे रहा है !

 कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को  कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी  कन्याये है  या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों  के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन  काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया  ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही  - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
 मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व  , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना  है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम  में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान  और  तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
         मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है !  वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति  २०  रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !

स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !

 अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
                         टिकट खिड़की के द्वार !
                        टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
                     खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य 
                   स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
 स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
      लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर 
 क्रमशः 




Monday, November 21, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम के आगे-भाग -2

गतांक से आगे -
केरला को दक्षिण भारत में प्राकृतिक सौन्दर्य का जैसे वरदान मिला है ! इसके हर भाग में हरियाली आप के स्वागत के लिए हमेशा तैयार रहती है ! जिधर देंखें उधर ही हरियाली ही हरियाली ! छोटे - छोटे पौधे और उनके बीच नारियल का पेड़ सिर उठाये जैसे कह रहा हो - मै आप के स्वागत और संस्कृति को सदैव बनाये रखने की लिए अबिरल तैयार खड़ा हूँ ! इजाजत दें ! जी हाँ -केरला राज्य को प्रकृति ने उपहार स्वरुर अति मनोरम सुन्दरता से सजाया है ! एक तरफ हरियाली तो दुसरे तरफ समुद्र की मंद - मंद लहरे सिने ताने  समुद्र स्थल पर खेलती मिल जाती है !  

 केरला के सीमा में घुसते ही हमने एक अनुपम शीतलता का अनुभव किया ! सड़क के किनारे का कोई भी जगह ऐसा नहीं होगा , जहाँ झाडिया और घर न हों ! सभी गाँव सड़क के किनारे ही बसे है ! हम सोंचने पर मजबूर हो गए की यहाँ के लोग रात को कैसे रहते होने ? क्या इन्हें सांप और बिच्छु से डर नहीं लगता ?  एक जगह हमने यहाँ के   लालिमा  सा गहरे  रंग  वाले  केले  ख़रीदे ! जो  ४० रुपये किलो  थे  ! धुप की  छटा  देखने  को  नहीं मिल रही थी ! बदल से घिरा मौसम  ! कहते है यहाँ बारिस भी सदैव होती रहती ही ! किन्तु हमें इस मौसम के लुभावने अंदाज नहीं मिले !  तीन  बजने  वाले थे  ! पेट पूजा का समय बिता जा रहा था ! हमने ड्राईवर को किसी होटल में ले चलने के लिए कहा ! रास्ते में कोई भी होटल नजर नहीं आ रहे थे ! ड्राईवर ने एक जगह कार को पार्क  किया और एक छोटी सी होटल की तरफ इशारा किया ! छोटा पर कामचलाऊ था ! नॉन - भेज  और भेज  दोनों  की  व्यवस्था ! अजब सा लगा   ! भोजन के  बाद संतुष्टि नहीं मिली ! हर चीज में नारियल और उसका तेल ! चावल के दाने मटर के सामान  ! संतुष्टि के लिए समुद्री फराई  फिश  - कुछ   बेहतर !

 भूख लगी थी , खाने पड़े ! मजबूरी थी ! जीवन में पहली अनुभव - केरला के खाने का ! विचित्र लगा !  पिने के लिए गर्म पानी मिला ! पूछने  पर  मालूम हुआ की गर्म पानी नहीं पिने से इन्फेक्सन  होने का डर रहता है ! हमें मलयालम नहीं आता था और होटल वाले को हिंदी ! सर्ट  शब्दों में काम चलाने पड़े ! आगे बढे - कुछ और तस्वीर -
 यहाँ हम बोटिंग करनी चाही ! किन्तु भूतकाल की कुछ यादें -डर पैदा कर दी और निर्णय ख़त्म !
                                  बालाजी का प्रकृति प्रेम !
                                 प्रकृति के प्रांगन   में - एक आवास !
आगे का पड़ाव -अरबियन सागर की तरफ , जिसकी हहाकारती समुद्री लहरे जी में उमंग पैदा कर देती थी ! जैसे कह रही हो -जीवन में कभी मत हारो !  जो हार गया -समझो मर गया ! समुद्र की लहरों का जमीन के किनारे आकर टकराना और मधुर ध्वनि पैदा करना भी अजीब  होता है !
                                     कोवलम  बीच और जन सैलाब !
                   अरबियन सागर और उसकी उछलती , चमकीली तरंगे !
                                          मै और मेरे  बालाजी 
                                     त्रिवेंद्रम का पद्मनाभम  मंदिर!     
पद्मनाभन मंदिर कुछ  दिन पूर्व -अपने  अपार सम्पदा संग्रह की वजह से समाचार की सुर्खियों में था !  इस मंदिर के कई कमरों को खोलने के बाद करोडो की सम्पदा मिली थी ! अभी भी कई कमरे है , जिनके अन्दर अपार सम्पति के होने की आशा है ! किन्तु इसे कौन खोले ?-पर संसय बनी  हुयी   है ! कहा जाता है की दरवाजे खोलने वाले मृत्यु के ग्रास हो जायेंगे ! इस मंदिर की कलात्मक निर्माण खास नहीं है ! लेकिन सम्पति के चलते  ज्यादा प्रसिद्धी मिली है ! त्रिवेंद्रम स्टेशन के  करीब ही है ! यही वजह था की हम भी इस ओर हो लिए ! मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु जी  सर्प  सैया पर  लेटे हुए है ! जिन्हें हम एक ही दरवाजे से नहीं देख सकते ! अन्दर से एक ही कमरा , किन्तु  बाहर से तीन दरवाजे है ! पहले दरवाजे से विष्णु जी के सिर , दुसरे से पेट का भाग और तीसरे से पैर  को देखा  जा सकता है !   ! यही वजह होगा  क्यों की स्थानीय लोग इस मंदिर को  ब्रह्मा , विष्णु और महेश का मंदिर भी कहते है ! रात होने को था ! हमने यहाँ वक्त के सीमा में दर्शन कर मंदिर के अन्दर भी एक नजर दौडाई ! मंदिर के अन्दर लुंगी ( पुरुष  )और महिलाओ को साड़ी में प्रवेश करने होते  है ! इसके लिए  मंदिर के बाहर  उचित  व्यवस्था है ! भाड़े पर लुंगी / साड़ी मिल  जाते है ! मै और बालाजी  दो नए लुंगी खरीद कर पहने ! अकसर दक्षिण भारत के बहुत से   मंदिरों    में निजी वस्त्र के  साथ  प्रवेश  निषेध  है ! कुल  मिलकर  इस  मंदिर का दर्शन संतोष जनक रहा !
                                          मंदिर का  प्रवेश   द्वार   !
क्रमशः