नया साल शुरू हो गया फिर भी अतीत के बुलन्दियो या पाताल की गहराई को महसूस करने से कोई कैसे बच सकता है.जो बीत गया वह कितना सत्य था,कितना ठीक था-यह तभी पता चलेगा जब हम उससे भी अच्छा कर दिखाए.किन्तु यह सत्य है की पिछला बरस,बिलकुल अनुशासनहिन् था .कही भी अनुशासन की रोशनी ज्यादा न दिखी.
एक बार फिर उस शासन की याद ताजा हो गई -जब इमरजेंसी का राज था और किसी को कुछ कहते नहीं बनता था.चारो तरफ बेकारी,अराजकता,भूख-मरी ,भय का तांडव छाये हुए था.गैर-क़ानूनी रूप से परिवार नियोजन किया जाता था.नेताओ को जेल की आटा पिसनी पड़ रही थी. जो शक्ति में था वह लूट रहा था...वगैरह-वगैरह..
पिचले बरस भी ठीक वैसी ही वातावरण का कंडिशनिंग हो गया था.उसका प्रभाव अभी भी ब्याप्त है.सरकारी तंत्र में लूट सके तो लूट.बाजार में हाहाकार.नौकरी पेशे में भत्ता की कमी,शासन-प्रशासन में अनियमितता.जिसे काम की जिम्मेदारी सौपी गई ,वही लूटने में शुमार.अधिकारिओ में लोलुपता,खिंचा-तानी.काम में लापरवाही,बिना घुस कुछ होने का नहीं.जमाखोरों का जमावड़ा तेज .किसी की परवाह नहीं.बाजार में किसी का कंट्रोल नहीं .जैसी -मर्जी वैसी रेट.बिजली..पेट्रोल...डीजल..का रेट बढाओ..और बाजार को बहाना दो जिससे की उछाल आ सके.
कहने को गरीब सरकार , पर अमीर बने...अमीर ही...गरीबो को सुनने वाला कोई नहीं.....गरीबो के गरीबी के आधार पर नियम कानून ही नहीं बने. जो बने वह गरीबो को ही चूस लिए.गरीब हाथ मलता रहा और सब कुछ चुपचाप देखता रहा.
उन्हें वोट बैंक से ज्यादा महत्व नहीं दिया गया.शायद उनके बारे में यही धारणा रही की इन्हें कल के लिए गरीब ही रहने दो.क्यों की कल बोलने के लिए मुद्दा चाहिए और इनसे बड़ा मुद्दा कोई हो ही नहीं सकता...वगैरह-वगैरह..
घपलेबाजी कम नहीं हुए, अगर कम हो जाएगी तो सी .बी.आई. को काम नहीं मिलेगा.उसके लिए काम हमेशा तैयार रखो.जाँच बैठाओ और क्लीन चीट ले लो.किसकी हिम्मत है जो मुह खोले.करोगे क्या,अभी मतदान बहुत दूर है.हो सकता है सत्ता न रहे इस लिए खूब कमा लो अन्यथा चांस मिले या न मिले.खूब रही.......
अफसर गिरी भी कम नहीं ठेकेदारी से काम करने का जिम्मा लो और कमिसन कमाओ....पकडे गए तो बहुत होगा , नौकरी जाएगी .जमानत पर बाहर आ जायेंगे और छुपाई हुई दौलत पर राज करेंगे दस पीढ़ी बैठ कर खाएगी.इसलिए डर काहें का. बगैरह-बगैरह......
बहुत और बहुत यादे २०१० अपने जेहन में समेत कर ले गया और २०११ को कह गया देंखेगे तुम क्या करते हो?
मुझे नेताओ में राज ठाकरे ही अच्छा लगे और वह भी भारतीय लोकतंत्र में .उन्हें मै सलाम करता हूँ,जिसने कम से कम दो तीन उत्तरी राज्यों को सोंचने के लिए मजबूर तो किया की अपने राज्य की उन्नति करो.अन्यथा इस मुंबई में नो रूम.इसका जीता जगाता उदाहरण हमारे सामने बिहार खड़ा है ,जिसे श्री नितीश कुमार जैसा लीडर मिला.जिसने बिहार के नब्ज को पहचाना और उसके तरक्की की ओर ध्यान देना शुरू किया आज बिहार तरक्की की ओर अग्रसर हो गया है.दूसरी तरफ सुश्री मायावती भी सोंचने के लिए बाध्य हो गई है.जी हाँ उत्तर भारत के राज्यों के कर्ण धारों को अपने राज्य की उन्नति के लिए आगे आना होगा ,उन्नतिगामी हो कर ,राज ठाकरे को जबाब देना होगा,
मै तो समझता हूँ की उत्तर के राज्यों के लोग अनुशासन का पालन करें.सरकार को उंनती की प्रयासों में मदद करें.साधन की सफलता उसके उपयोग करता के ईमानदारी पर निर्भर करता है.सरकार अपने राज्यों में चौबीसों घंटे बिजली मुहैया कराये ,जिससे सभी लोग आधुनिक प्रसाधनो का इस्तेमाल कर सके .और चारो तरफ रात-हो या दिन ,दीपावली हिनजर आये.जैसे सभी की इच्छा हो की फ्रिज या टीवी रखु,पर करंट न रहने से ऐसा संभव ही नहीं है.कल-कारखाने ठीक से कम ही नहीं कर सकते.वगैरह-वगैरह....
आषा है आज की सरकार पिछली परेशानियो को निरस्त कर, गरीबो के उत्थान के लिए ज्यादा गंभीर होगी,तभी हम कह सकते है नव-बरस मंगल मय हो.अनुशासन ही देश को महान बनाता है.
आपसे सहमत। अनुशासन ही देश को महान बनाता है।
ReplyDeleteमैं मनोज कुमार के विचारों से भी सहमत हूँ और आपने बिलकुल सही लिखा है.
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