Monday, June 23, 2014

चार - चार चौदह

समय स्वतः ही एक  समाचार है । कौन है जो  आज  समाचार से ग्रस्त नहीं  है । हम भी इस  समाचार के एक पहलू है ।  समाचार कई तरह के हो सकते है जैसे - घरेलू , सामाजिक , देशिक,  प्रादेशिक या विश्वस्तरीय  वगैरह -  वगैरह  । रेल गाडी का  चलन भी एक समाचार से कम  नहीं है , तो इसे चलाने वाले चालक इससे परे क्यों रहे । देश में इलेक्शन का दौर शुरू हो गया  है । भारतीय नागरिको को अपने मताधिकार का सदुपयोग अप्रैल - मई २०१४ के महीने में करना है । सोलहवीं लोकसभा और पंद्रहवी प्रधानमंत्री का चुनाव वेहद ही लोकप्रिय बन गया है  , जब की बी जे पि ने अपने अगले प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी जी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दी है  । सारी राजनीतिक पार्टिया अपने बैचारिक भिन्नता को भुला , एक जुट हो - शाम ,  दाम -  भेद से बशीभूत हो , अपनी पूरी शक्ति श्री नरेंद्र मोदी को रोकने में लगा दी है । फिर भी अगर श्री नरेंद्र मोदी की जीत होती है , तो ये अपने - आप में व्यक्तिक जीत ही होगी । देखना है होता है क्या ?

चार -चार - चौदह । यानी चौथा अप्रैल २०१४ का दिन । कुछ अजीब सा रहा ।

घर में  टी. वीं पर नजर गयी । किसी स्टिंग का प्रसारण चल रहा था । सभी चैनल इसके प्रसारण में व्यस्त । इसके दिखाने का मकसद सिर्फ यही था कि बाबरी मस्जिद के विधवंश के पीछे बी जे पी के शीर्ष नेताओ के हाथ होने को पब्लिक के समक्ष प्रस्तुत कर बीजेपी को नुकशान पहुँचाया जाय  । साथ ही यह स्टिंग मतदान पर भी असर डाल सकती है । चौदह वर्ष पहले की स्टिंग और आज प्रसारण का मकसद क्या हो सकता है ? राजनीतिक लाभ / ब्लैकमेल /आर्थिक लाभ या और कुछ ? समय के साथ समाचार का काला युग ? मेरे विचार से ऐसे स्टिंगर और प्रसारण करने वालो को तुरंत गिरफ्तार कर लेना चाहिए क्योकि उस स्टिंग का इस समय कोई औचित्य नहीं था । अगर यह सही था तो मिडिया ने इसे चौदह वर्ष क्यों दबा कर रखा ? समयाभाव की वजह से पूरा प्रसारण  नहीं देख  पाया । राजकोट एक्सप्रेस को लेकर वाड़ी जाना था ।  डेढ़ बजने वाले थे । कड़ाके की धुप में घर से  निकल पड़ा ।समय पालन अतिआवश्यक जो है ।

गाड़ी आने की इंतजार में लॉबी के लॉन्ग में बैठा हुआ था । सहसा एक लोको पायलट मेरे तरफ मुड़े और अभिवादन करते हुए बोले - सर - आज  कल दिखाई नहीं दे रहे है ? उनके मुह से शव्दो के साथ थूक के छींटे मेरे हाथो पर गिर पड़े । वे बहुत ही क्लोज लोको पायलट है । इसका मुझे ख्याल ही न रहा और झिड़की देते हुए उनपर बरस पड़ा , बोला - " आप शव्दो के साथ थूक न फेंके जी । हाथ गन्दा हो गया । " उन्हें  मेरी भावनाओ की   कठोरता  महसूस नहीं  हुआ  । वे तुरंत मेरे हाथो को रुमाल से पोंछने लगे औरनम्रता से  बोलें - सॉरी सर । मेरे चेहरे  पर क्षमा सी मुस्कान खिल उठीं  । इसे कहते है पॉजिटिव ईमेज / एप्रोच  ।

 राजकोट गाड़ी आ चुकी थी । लॉबी से  निकलने का दिल नहीं कर  रहा था । ऐ.सी. की भीनी - भीनी ठंढक दिल को मोह रही थी । वध्यता थी निकलना ही पड़ा । गाड़ी दस मिनट लेट गुंतकल से रवाना हुई । गाड़ी नँचरला रेलवे स्टेशन को लूप लाइन से पास कर रही थी क्योकि  मेन लाइन में  इंजीनियरिंग काम चल रहा था गाड़ी की गति सिर्फ ३० किलोमीटर / घंटा थी । इंजीनियरिंग स्टाफ वालो ने वॉकी -टॉकी पर हमें अनुरोध के साथ सूचना दी कि लोको पायलट साहब कृपया गाड़ी को  धीमी गति से चलाते  हुए आगे बढे , कुछ हमारे इंजीनियरिंग स्टाफ दोपहर के खाने के पैकेट के साथ उतरना चाह रहे है । हम लोगो ने अभी तक भोजन नहीं किया है । स्वाभाविक है , अपने रेल  कर्मी थे और इस चिलचिलाती धुप में कठिन कर्मरत । मैंने गाड़ी की गति काफी  कम कर दी । सभी भोजन सामग्री के साथ उत्तर गए । उन्होंने वॉकी -टॉकी पर धन्यवाद कहा ।

सामने मलोगावलि स्टेशन  आने वाला था । गाड़ी १०० किलोमीटर / घंटे  गति से दौड़ रही थी । अचानक दो गायों की  झुण्ड  लाइन पर आ गई । जब तक गाड़ी की ब्रेक लगाते , दुरी कम और दोनों के चिथड़े उड़ गए । गाड़ी के दो कोचों के बीच ब्रेक पाईप अलग हो गए । गाड़ी रुक गई । कैसा संयोग था ? कैसी विडम्बना थी -मौत / यमराज की गति नँचरला में धीमी हुई और दोनों गायों की मौत मलोगावलि  में । हर जीव की मौत सुनिश्चित है । उनके  मालिको के प्रति दिल में दर्द उठा । अफसोस हजारो की नुकशान हो चुकी थी । काश अपने पशुओ की संरक्षा और सुरक्षा की ध्यान रखते ?

राजकोट एक्सप्रेस के कोच में पानी मंत्रालयम स्टेशन में  भरा जाता है । नदी सुख गयी है अतः पानी कृष्णा स्टेशन  में भरा जायेगा | इसीलिए  मंत्रालयम स्टेशन में गाड़ी नहीं रुकी ।  कृष्णा रेलवे स्टेशन पर कोचों में पानी भरा जा रहा था | मै लोको में बैठा सिग्नल का इंतजार कर रहा था | तभी एक यात्री लोको के पास आया और लोको के नंबर प्लेट ( १६६७२ ) की तरफ इंगित करते हुए पूछा - " साहब क्या इस गाडी का नंबर यही है ? मैंने कहा - नहीं , ये मेरे लोको का नंबर है | वह कुछ देर तक शांत रहा | इधर - उधर देखा | फिर पूछ बैठा -तब इस गाडी का नंबर क्या है ? मैंने कहा -१६६१४ और उसे देखता रहा | उसके मुखमंडल पर रेखाएं दौड़ती नजर आयीं असंतोष के भाव  , शायद उसके मन में कोई उत्सुकता जगी जैसे और कुछ जानकारी  चाहता हो | मुझे देखते हुए फिर बोला - " सर रिज़र्वेशन किस नंबर का करेंगे ? मै थोड़े समय के लिए अवाक् रह   गया , कैसा अजनवी है जिसे रिजर्वेशन कैसे करते है , का भी ज्ञान नहीं है  |  इस आधुनिक युग के दौर में ऐसे लोग भी है ?

 इस व्यक्ति को इसकी  भाषा में समझाना जरूरी था | अतः मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की और कहा - " ये नंबर मेरे लोको का है यहाँ मै बैठता हूँ | आप कोच में बैठते है और उस गाडी का नंबर १६६१४ है , अतः आप को उसी नंबर का रिज़र्वेशन करना चाहिए , जहाँ आप बैठते है | मैंने अनुभव किया - अब वह समझ गया था | गाड़ी का सिगनल हो चूका था | सहायक ने सिटी बजायी | सभी लोग दौड़ - भाग कर कोच में चढ़ गए थे | गाड़ी आगे चल दी ।

आज जीवन के विचित्र अनुभव मिले थे | शायद जाने - अनजाने सभी के साथ ऐसा कुछ होता ही होगा ? बिरले ही हम सीरियसली लेते होंगे | दर्द को गहराई से सोंचने पर दर्द की विशालतम रूप दिखाई देती है अन्यथा हास्य | हम रहें या न रहें - गाड़ी की सिटी बजती ही रहेगी ? जो संभल गया वही मुकद्दर का सिकंदर अन्यथा मौत । 







1 comment:

  1. सच है की दर्द की गहराई उसमें उतर केर ही समझी जा सकती है ...
    हा किसी के लिए पल निर्धारित हैं जीवन में ... अच्छी संवेदनशील पोस्ट ...

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