Sunday, May 1, 2011

..उसकी अस्मिता लूटती रही और मेरा दृढ निर्णय ...

                           जीवन में हर मोड़ पर ..किसी न किसी निर्णय को लेना या करना पड़ता है !राम ने पिता के आज्ञा को पालन करने का निर्णय लिया था !दसरथ ने कैकेयी के वर और अपने वचनों के पालन का निर्णय लिया था ! लक्षमण  ने राम के साथ वन जाने का निर्णय लिया था ! सीता ने पति धर्म निभाते हुए ...पति के साथ वनवास जाने का निर्णय लिया था ! रावण ने सीता का अपहरण करने का निर्णय लिया और यह एक घोर और भीषण लडाई का कारण बना था !बिभीषण ने न्याय का पक्ष लेने का निर्णय किया और घर के भेदी जैसे शुभ नाम से जाना जाने लगें ! राम भक्त हनुमान ने अपने ईस्ट देव / प्रभु राम का साथ देने का निर्णय किया !

                         महाभारत में देंखे तो युधिष्ठिर ने लडाई से परे रहने का निर्णय लिया ! दुर्योधन ने एक इंच भी जमीन पांडवो को न देने का निर्णय किया और एक लम्बी युद्ध को निमंत्रण दे बैठा ! कृष्ण ने पांडवो का पक्ष लिया , यह भी एक योग रूपी निर्णय था !
              हर निर्णय को देंखे तो हमें  दो रूप ही दिखाई देते है ! 
              पहला - परोपकार हेतु निर्णय और 
              दूसरा- स्वार्थ  वश !

              इसी धुरी पर केन्द्रित निर्णय ..हमें रोज जीवन में लेने पड़ते है ! भुत , वर्त्तमान और भविष्य ...कोई भी काल क्यों न हो हमेशा एक न एक निर्णय के साए में ही ...फला और पनपा है ! सभी दृस्तियो में निर्णय  ही भावी रहा है !

              ज्यादा शब्द बोझ न देते हुए ...संक्षेप में इस कड़ी को पूरी करना चाहता हूँ !
              मै दोपहर को सो कर ही उठा था और टी.वि.देख रहा था , तभी बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की जल्द चार पास पोर्ट साइज़ फोटो  लेकर ऑफिस में आ जाईये !  
            मैंने पूछा -क्यों ?
           "अरे यार आओ ना " चुकी बैच  मेट है , इसीलिए उन्होंने भी सहज रूप में जबाब दिया ! मै थोड़ा घबरा सा गया ! आखिर कौन सी बात आ टपकी ! सर्टीफिकेट का मामला हो सकता है - मैंने सोंचा ! उन्होंने जिद्द कर दी ,अतः मै चार फोटो के साथ ऑफिस में चला गया ! 
            फोटो देते हुए फिर पूछा -"  सर मेरे प्रश्न का जबाब नहीं मिला है ? 
         ' यू आर सलेक्टेड फॉर जी .एम्. अवार्ड ! उन्होंने तुरंत जबाब दिया !
         " मै नहीं मानता ,भला मुझ जैसे निकम्मे को जी.एम्. अवार्ड कौन देगा ? " - मैंने ब्यंगात्मक भाव से पूछा !        " बिलकुल सच ,यार !" जबाब  मिला !. यह घटना मार्च माह के प्रथम वीक की है ! 

                   तारीख ०८-०४-२०११ को मै रेनिगुन्ता से सुपर -१२१६४ काम करके आया और आगे जाने वाले लोको पायलट को ट्रेन का कार्यभार सौप रहा था! देखा - बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर श्री मुर्ती जी चले आ रहे है ! वे मुझसे उम्र में बड़े है तथा नौकरी में भी बरिष्ट ! आते ही मुझे - " congratulation "  कहा !
                मैंने पूछा - किस बात का सर ?
             आप का नाम जी.एम्.अवार्ड के लिए अनुमोदित हो गया है ! १३ अप्रैल / ११ अप्रैल को दिया जाएगा !  मैंने कुछ नहीं कहा ,सिर्फ धन्यबाद के !

               मैंने इस बात की जानकारी अपने मुख्य कर्मी दल नियंत्रक  श्री जे.प्रसाद को दी ! इसके बाद से ही मेरे प्रति षडयंत्र शुरू ! दुसरे दिन मेरे लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन ने बताया की - " दुःख के साथ कहना पड रहा है की आप का नाम  जी.एम्.अवार्ड से बंचित हो गया ! इसके पीछे साजिश काम कर गया !" मुझे भी इस समाचार को सुनकर दुःख हुआ !

              मै १२६२८ कर्नाटका एक्सप्रेस तारीख १३-०४-२०११ को काम करके आया था और स्नान वगैरह कर सोने की तैयारी में था , तभी गदिलिंगाप्पा ( मुख्य कर्मीदल नियंत्रक / गुड्स ) का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की आज डी.आर.एम्.अवार्ड रेलवे इंस्टिट्यूट में दिया जाएगा और आप का भी नाम शामिल है !मैसेज संख्या -१३ /०४ /२५ है ! आप इंस्टिट्यूट में जाकर इसे ग्रहण करें ! 

               मैंने कहा -ओ.के .और फ़ोन रख दिया !  रात भर ट्रेन चलाने की वजह से नींद आ रही थी अतः सो गया !             यह निर्णय कर की -मै इस अवार्ड को बहिष्कार करूंगा !

              जी हाँ ,उस दिन मै सो नहीं सका क्यों की बार - बार सभी लोको इंस्पेक्टरों  की रेकुएस्ट भरी फ़ोन आती रही की आप आओ और इस अवार्ड को ग्रहण करें ! मैंने जिद्द कर ली थी और उन लोगो को कहला दिया की मै अवार्ड का भूखा नहीं हूँ ! कृपया मुझे माफ करें! मेरे सर्टिफिकेट को लोब्बी में रख दे तथा जो कैश है उसका स्वीट खरीद कर गरीबो में बाँट दे !

            साजिस = जैसे ही कुछ लोको इंस्पेक्टरों और मुख्य शक्ति नियंत्रक को मालूम हुआ की मुझे जी.एम्.अवार्ड मिलने वाला है , त्यों ही उन्होंने एक यूनियन की मदद से उसे तुरंत खारिज करवा दिए ! इस तरह से उस अवार्ड की अस्मिता लूट गयी ! इन भ्रष्ट लोको इंस्पेक्टरों और यूनियन   के समूह ने मिल कर इस अवार्ड को मौत के घाट उतार दिया !वह मेरी न हो सकी !उससे मै बंचित रह गया !उसकी अस्मिता वापस लाने के लिए ,डी.आर.एम्.ने तारीख १३-०४-२०११ को रेलवे इंस्टिट्यूट में बुलवाएँ !

              इस घिनौनी हरकत और अन्धो के बीच अपनी नाक कटवा दूँ ! यह मुझे गवारा नहीं था ! अतः मैंने इसे लेने से इनकार कर दिया ! आज - कल ..सरकारी क्षेत्र में अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए ...वैभव और स्वर्ण वेला के लिए , मौन मूक तड़प रही है ! ठीक चातक की तरह ...इसी आस में की अमावश की रात कटेगी   और पूर्णिमा की चाँदनी रात जरुर आएगी ! 
   
             मेरे इस निर्णय को पूरी तरह से सराहा गया ! यह मेरे जीवन की अविस्मर्णीय घटना बन गयी है ! चोरो का मुह काला हो गया है !

22 comments:

  1. दुर्भाग्यपूर्ण घटना।

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  2. ईर्श्या द्वेष का यह खेल दुखद है। अवार्ड देने-लेने में और रेवडियाँ बांटने में बहुत बार ओछी हरकतें शामिल होती हैं जिन्हें जानकर दिल दुखता है। आपने जो भी निर्णय लिया सोच विचारकर ही लिया है। किंतु यदि आप अवार्ड स्वीकार कर लेते तब भी आपका बडप्पन ही दिखता।

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  3. ईर्श्या द्वेष यह भारत मे ही नही पुरे विश्व के लोगो मे हे, पता नही लोगो को क्या मिलता हे ऎसा कर के...

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  4. .

    वेदों , उपनिषदों , संहिताओं और ग्रंथों में भी यह कहा गया है कि - काम , क्रोध, लोभ , मोह, मद और मत्सर से बचिए। हमें अपने मन में आये इन वेगों को धारण करना चाहिए अर्थात इन पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। जब तक हमारी इन्द्रियों पर हमारा नियंत्रण नहीं होगा , तब तक हम अनेकानेक मानसिक विकारों से ग्रस्त होते रहेंगे।

    ईर्ष्‍या एक ऐसा ही घातक मानसिक विकार है , जिसकी परिणति अक्सर भयानक होती है। लोगों को पता भी नहीं चलता कि कब वो ईर्ष्‍या से ग्रस्त हो गए हैं। यह एक ऐसा मानसिक विकार है जो व्यक्ति को अति-दयनीय स्थिति में पहुंचा देता है.

    प्ररस्कार वितरण/चयन में लोग अक्सर निष्पक्ष नहीं रह रह पाते।

    .

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  5. just wait and watch,you will be acknowledged....

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  6. ईर्श्या द्वेष का यह खेल दुखद है। आप ने जो निर्णय लिया वह सही था|
    धन्यवाद|

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  7. बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है ... ईर्षा और द्वेष का कोई अंत नही होता ... आपका निर्णय सही था ...

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  8. वैसे तो रेलवे में जी एम् एवार्ड की मात्रा सिमित होती है
    किसी को एवार्ड न मिलने का मतलब ये नहीं की उसने मन लगा कर काम नहीं किया
    किन्तु आजकल जिस तरह चाटुकारिता की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है
    वो निंदनीय है
    आप ने बहुत ही अच्छा किया
    क्यों की ऐसी स्थिति में एवार्ड का कोई भी मतलब नहीं रह जाता
    आपके जज्बे को सलाम !!

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  9. यह तो रोज होता रहता है....अच्छा साहस किया...बधाई...

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  10. बेहद अफसोसजनक ...ऐसी घटनाएँ बताती हैं की ऐसा तथाकथित सम्मान भी चटुकारिता को बढ़ावा देता है..... आपका कदम सम्मान करने योग्य....

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  11. aapne sahi samay par ek nirbheek nirnay liya iske liye aapko badhai.aur is nirnay se aapne un logo ko karara javab diya ye bahut achchha kiya. imandari se kiya gaya kam logo ki nigah me aata hi hai aur koi de na de us upar vale se iska inam milata hai...punasch badhai.

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  12. सही निर्णय लिया आपने.......

    हमारे आस पास के हमारे अपने ही , जहां एक ओर हमारे दुःख के क्षणों में घडियाली आंसू बहाते हैं वहीँ दूसरी ओर हमारी सफलताओं से चिढ़ते हैं और साजिशें रचते रहते हैं |

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  13. आप सभी को बहुमूल्य टिपण्णी के लिए ...बधाई ! आज मै अवार्ड नहीं लेकर जितना सकून महसूस कर रहा हूँ ,उतना लेकर नहीं मिलता था ! जिन्होंने इस दुष्कर्म को किया , वे मेरे सामने आने में भी कतरा रहे है ! सभी उन्हें धिक्कार रहे है ! इससे बड़ा सम्मान भला क्या हो सकता है ! मै अवार्ड के पीछे नहीं दौड़ता ,बल्कि अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए उचित ब्यक्ति को खोजती है ! इस घटना को प्रस्तुत करने का मेरा मकसद था की ...अराजकता को सबके सामने लाया जाय ! एक छोटी सी अवार्ड के समय , ऐसी हालत है तो बड़े - बड़े के समय क्या होता होगा ? सोंचने वाली बात है ! आज तक मै अपने जीवन में खुद द्वारा किये हुए किसी भी निर्णय में असफल नहीं हुआ हूँ ! इस निर्णय के बाद बदलाव आयेगा ! यह मेरी हार्दिक इच्छा है ! एक बार फिर आप सभी को नमस्कार और बधाई !

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  14. श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

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  15. aadarniy sir
    aisa award jo apni antratma ko ghal karke mile use na lena hi behtar hai .aapne is award ka bhishkar kar bahut hi achha nirny liya .halanki man aisi sthiti me kabhi kabhi danva -dol bhi ho jaata hai lekin sirf ek baar apne aap ko majbut kar lene se nirnay lena aasaan ho jaata hai .lekin achhe kaam ka fal vyarth kabhi nahi jaata .ek din vo jarur aayega jab aapko apne swabhi maan ke saath samman sahit award diya jayega
    hardik shubh kamnaaye
    poonam

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  16. श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

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  17. गोरख जी ! लगभग ४० वर्षों तक सरकारी सेवा में मैं ऐसी ही समस्याओं से जूझता रहा हूँ ! ऎसी पोस्ट्स पर काम किया जहाँ प्रति दिन हजारों कमा सकता था ,पर न कमाया न ऊपर वालों को खुश कर सका ! फलस्वरूप हर दो वर्ष बाद तबादले हुए खुशी खुशी ५ बच्चों के साथ हम मियां बीवी दुनिया भर में भटकते रहे ! ऐसे में जैसा होता है निकट के सम्बन्धी भी मुझे बुद्धू समझते थे ! साथ दिया आपकी काकी ने और फिर बच्चों ने और ईश्वर तो सत्य का साथ देता ही है ! यदि उस जमाने के हिसाब से तब लाखों खोया , तो आज करोड़ों से खेल रहा हूँ जिसका एक एक पैसा इमानदारी से कमाया गया है ! शाबाश गोरखजी

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  18. क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

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  19. दूसरों के मान सम्मान से जलने वालों की कमी नहीं है !
    ऐसा हर युग में होता रहा है !
    आपका निर्णय आपके स्वाभिमान और व्यक्तित्व का परिचायक है !

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  20. aadarniy sir
    aapko dil se bahut bahut hardik dhanyvaad jo aapne mere blog par aakar mera utsaah badhaya .
    aap jaisi mahan vibhutiyan hi to mere blog ki shobha hain jinse bahut hi sukhad anubhuti hoti hai.
    aapko hardik naman
    vaise idhar swasthy ji jyada hi gadbada raha hai is liye main kahi comments bhi nahi de pa rahun kyon ki jyada der net par aa nahi sakti.haath ki ungliyo me kampan mahsus hoti hai isiliye type karne me dikkat hoti hai .
    kal thodi der koshish ki thi par bas do ya char comments daal paai .aaj aapko apne blog par samarthak ke roop me dekh hardik prasannta hui .so aap par punah comments daal rahi hun.
    aapko mera hriday se naman
    poonam

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  21. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

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  22. प्राचीन कलाकृति की बढि़या तस्‍वीर.

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