Sunday, December 4, 2016

फ़ैन


मैंने शाहरुख खान की फिल्म फैन देखी थी , लुधियाना में । एक फैन और मशहूर अभिनेता की कहानी है । फैन अपने अभिनेता के प्रति आक्रामक हो जाता है , जब उसे अपने चहेते अभिनेता से साक्षातकार के अवसर नहीं मिलते । ऐसे ही कई फैन है जिनके फोन या टिप्पणियां हमेशा मुझे मिलती रहती है । आज एक फैन से मुझे एक कहानी प्राप्त हुई  है , जो हमारे जीवन से संवंधित ही है । मैं अपने आप को इस ब्लॉग पर पोस्ट करने से नहीं रोक सका हूँ ।

आप के सामने प्रस्तुत है ---

" रात का आखिरी पहर था ,बारिश के साथ - साथ ठंडी हवा हड्डियो को अन्दर तक हिला दे रही थी । मै जितनी जल्दी हो सके घर पहुचकर बिस्तर मे घुसने के लिये आतुर था । आज मै एक कारोबारी दौरे से वापिस दूसरे शहर से अपने शहर मे आ रहा था । दूर दूर तक आदमी तो छोडिये जानवर, कुत्ता ,  बिल्ली भी नही दिख रहे थे । मै पूरी रफ्तार से कार मे बैठा अपने घर की ओर बढा चला जा रहा था । कार के दरवाजे बन्द होने के वावजूद  दम निकली जा रही थी । बाहर हल्की बारिश हो रही थी। लोग अपने घरो में , अपने बिस्तरो मे दुबके नीद का मजा ले रहे होंगे  ।

जैसे ही कार  , मैने अपनी गली की ओर मोडी , दूर से कार की रोशनी मे मुझे एक धुधंला सा साया नजर आया। उसने  बारिश से बचने के लिये सिर पर प्लास्टिक का कुछ थैला ओढ रखा था । मैंने सोचा इस बारिश मे कौन है जो बेचारा बाहर घूम रहा है । इस हालत में बेचारे कि क्या मजबूरी हो सकती है । शायद घर मे कोई बीमार तो नही । मैंने अपनी कार  उसके नजदीक ले जाके  , कार के शीशा नीचे कर सूरत देखने तथा हालचाल जानने की नीयत से आवाज लगायी ।  देखा तो हैरान रह गया , अरे ये तो हमारे पडोसी मोहन जी है जो रेल्वे मे लोको पायलट है। मैने नमस्कार कर हालचाल जानने की नियत से पूछा कि इतनी रात मे आप कहॉ जा रहे है ?  तो उन्होंने बडे ही शिष्टाचार से जबाब दिया - डयुटी । मैने पूछा ,,,,,इतनी रात को  ? तो उन्होने किसी मासूम बच्चे की तरह हॉ मे सिर हिलाया। और आगे बढ गये ,,,,,,,,,

इस छोटी सी मुलाकात ने मुझे अन्दर तक सोचने पर मजबूर कर दिया । मै चैतनाशुन्य मे खो गया ,,,,कि एक व्यक्ति जो हमारी यात्रा को सफल बनाने के लिये क्या क्या झेलता है न मौसम की परवाह न ही परिवार की ,,,,,,,इसको कितने मिलते होगे शायद 30000 या 50000  ,,,,,,,, पर वो सुख  , वो नीद , वो चैन ,  ये कभी ले पाता होगा या ले पायेगा ,,,,,,,पता नही  ,,,शायद ऐसे ही कर्मठ और जिम्मेदार लोगो की वजह से ये दुनिया टिकी हुई है ।

मेरा मन चाहा कि गाडी से उतर कर आदर स्वरुप उन्हें गले लगाऊ पर वो जा चुके थे ,,,,,पर दूर कही से एक तेज आवाज सुनायी दी थी जो शाायद किसी रेलगाडी के हॉर्न की आवाज थी ,,,,,,,
सलाम है ऐसे कर्मठ वीरो को 
" 
( कर्मठ लोको पायलटो को समर्पित । प्रेषक और लेखिका - तुलसी जाटव लेक्चरर / मैथ )

1 comment:

  1. I think this is an informative post and it is very useful and knowledgeable. therefore, I would like to thank you for the efforts you have made in writing this article.

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