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Sunday, December 4, 2016

फ़ैन


मैंने शाहरुख खान की फिल्म फैन देखी थी , लुधियाना में । एक फैन और मशहूर अभिनेता की कहानी है । फैन अपने अभिनेता के प्रति आक्रामक हो जाता है , जब उसे अपने चहेते अभिनेता से साक्षातकार के अवसर नहीं मिलते । ऐसे ही कई फैन है जिनके फोन या टिप्पणियां हमेशा मुझे मिलती रहती है । आज एक फैन से मुझे एक कहानी प्राप्त हुई  है , जो हमारे जीवन से संवंधित ही है । मैं अपने आप को इस ब्लॉग पर पोस्ट करने से नहीं रोक सका हूँ ।

आप के सामने प्रस्तुत है ---

" रात का आखिरी पहर था ,बारिश के साथ - साथ ठंडी हवा हड्डियो को अन्दर तक हिला दे रही थी । मै जितनी जल्दी हो सके घर पहुचकर बिस्तर मे घुसने के लिये आतुर था । आज मै एक कारोबारी दौरे से वापिस दूसरे शहर से अपने शहर मे आ रहा था । दूर दूर तक आदमी तो छोडिये जानवर, कुत्ता ,  बिल्ली भी नही दिख रहे थे । मै पूरी रफ्तार से कार मे बैठा अपने घर की ओर बढा चला जा रहा था । कार के दरवाजे बन्द होने के वावजूद  दम निकली जा रही थी । बाहर हल्की बारिश हो रही थी। लोग अपने घरो में , अपने बिस्तरो मे दुबके नीद का मजा ले रहे होंगे  ।

जैसे ही कार  , मैने अपनी गली की ओर मोडी , दूर से कार की रोशनी मे मुझे एक धुधंला सा साया नजर आया। उसने  बारिश से बचने के लिये सिर पर प्लास्टिक का कुछ थैला ओढ रखा था । मैंने सोचा इस बारिश मे कौन है जो बेचारा बाहर घूम रहा है । इस हालत में बेचारे कि क्या मजबूरी हो सकती है । शायद घर मे कोई बीमार तो नही । मैंने अपनी कार  उसके नजदीक ले जाके  , कार के शीशा नीचे कर सूरत देखने तथा हालचाल जानने की नीयत से आवाज लगायी ।  देखा तो हैरान रह गया , अरे ये तो हमारे पडोसी मोहन जी है जो रेल्वे मे लोको पायलट है। मैने नमस्कार कर हालचाल जानने की नियत से पूछा कि इतनी रात मे आप कहॉ जा रहे है ?  तो उन्होंने बडे ही शिष्टाचार से जबाब दिया - डयुटी । मैने पूछा ,,,,,इतनी रात को  ? तो उन्होने किसी मासूम बच्चे की तरह हॉ मे सिर हिलाया। और आगे बढ गये ,,,,,,,,,

इस छोटी सी मुलाकात ने मुझे अन्दर तक सोचने पर मजबूर कर दिया । मै चैतनाशुन्य मे खो गया ,,,,कि एक व्यक्ति जो हमारी यात्रा को सफल बनाने के लिये क्या क्या झेलता है न मौसम की परवाह न ही परिवार की ,,,,,,,इसको कितने मिलते होगे शायद 30000 या 50000  ,,,,,,,, पर वो सुख  , वो नीद , वो चैन ,  ये कभी ले पाता होगा या ले पायेगा ,,,,,,,पता नही  ,,,शायद ऐसे ही कर्मठ और जिम्मेदार लोगो की वजह से ये दुनिया टिकी हुई है ।

मेरा मन चाहा कि गाडी से उतर कर आदर स्वरुप उन्हें गले लगाऊ पर वो जा चुके थे ,,,,,पर दूर कही से एक तेज आवाज सुनायी दी थी जो शाायद किसी रेलगाडी के हॉर्न की आवाज थी ,,,,,,,
सलाम है ऐसे कर्मठ वीरो को 
" 
( कर्मठ लोको पायलटो को समर्पित । प्रेषक और लेखिका - तुलसी जाटव लेक्चरर / मैथ )

Thursday, June 2, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा ।

झेलम एक्सप्रेस का खाना 
माँ बैष्णो देवी के दर्शन के बाद लौटते हुए 
बहुत दिनों से जम्मू कश्मीर की यात्रा की इच्छा थी । वह भी वैष्णो देवी माँ  का दर्शन । सुना था की मंदिर तक पैदल रास्ता ही है ।  जेब भारी हो तो और भी दूसरे साधन उपलब्ध है जैसे घोड़े या पालकी या हेलीकॉप्टर ।  1983 वर्ष में श्रीनगर गया था । किन्तु बैष्णो देवी माँ के दर्शन करने की इच्छा पूरी न हो सकी  थी क्यों की किसी और कार्य से गया था । वैसे लोग कहते है कि माँ जिन्हें बुलाती है , वही उनके दरबार तक जा पाता है । उस समय विवाह भी नहीं  हुई  थी । किन्तु जम्मू कश्मीर में उस समय किसी तरह का डर भय या आतंकवाद  नहीं था ।हमारे घर में एक यात्रा का प्रोग्राम प्रति वर्ष बन ही जाता है । ये सच है की किसी भी यात्रा में आर्थिक परिस्थिति ही साथ देती है जो आप को प्रति क्षण संयोजे रखती है । आज कल देश का भ्रमण सबके लिए बस की बात नहीं है । दिन ब दिन महंगाई दबोचे जा रही है । हमारे साथ भी यही समस्या आ खड़ी थी  जिसका नियोजन यात्रा के पूर्व ही कर लिया था ।

मंदिर की लोकेशन जेहन में भय पैदा कर रही थी । फिर भी हिम्मत से  सभी तैयार हो गए ।  जेब खाली हो तो यात्रा दर्शन के नज़ारे मनहूस सा लगते है । हमें एक चीज का फायदा जरूर है की ट्रेन के यात्रा खर्च बच जाते है । फ्री पास जो उपलब्ध है । हमने  पूरी तैयारी के साथ गुंतकल से नई दिल्ली से कटरा से लुधियाना से फिर नई दिल्ली से शिरडी से गुंतकल का अग्रिम टिकट बुक कर लिए थे । सारे के सारे कंफर्म हो गए थे । 2 मई 2016 को कर्नाटक एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ट्रेन चलाते वक्त जो अनुभूति मिलती है उससे ज्यादा आनंद  ट्रेन से यात्रा में है जो मुझे बहुत पसंद है । वह भी लंबी दुरी  हो तो कुछ और ही  ।

मैं बहुत अनुशासित हूँ , मुझे नाइंसाफी पसंद नहीं है । अतः किसी भी हद का विरोध जल्द कर देता हूँ । कर्नाटक एक्सप्रेस में खाने पिने के लिए पैंट्री उपलब्ध है । आज कल ट्रेन में कोई  भी चीज सस्ती नहीं है । अतः मेरा सुझाव है कि आप अपनी यात्रा के पूर्व खाने पिने की व्यवस्था घर से करके ही चले तो सुखमय है । एक जगह एक वेंडर 20 रुपये में एक बोतल पानी दे रहा था । जिसके ऊपर मैं गुस्सा हो गया था और कोच से बाहर चल जाने के लिये कहा क्योंकि पैंट्री वाले 15 रुपये में दे रहे थे । खाने के मामले में  पैंट्री वाले पैसे बहुत वसूलते है पर खाना ऐसा की एक छोटे बच्चे का पेट भी नहीं भरेगा । चलिए इसी बहाने पैसे से आंशिक उपवास भी हो जाता है ।

3 मई को दिल्ली पहुँच गए । रिस्तेदार बहुत है । उन्होंने घर आने की रिकुवेस्ट की थी । किन्तु फिर शाम को 5.30 बजे श्रीशक्ति एक्सप्रेस से कटरा के लिए रवाना होना था  । अतः चार  5 घंटे के लिए कहीं  दूर जाना मुनासिब नहीं लगा  । दस बज रहे थे अतः रिटायरिंग रूम में समय व्यतीत कर लेना ही उचित समझा । रिटायरिंग रूम में डबलबेड वाला रूम 250/- में  मिल गयी । 5 बजे शाम तक के लिए केवल ।हमलोग  स्नान वगैरह कर स्टेशन के बगल में स्थित बाजार में चल पड़े । जहाँ कुछ छोटी मोटी खरीदारी हुई और दोपहर का भोजन । छोले भटूरे। नया नाम पर सुना  हुआ । हमारे दक्षिण में नहीं मिलती है । हमने इसके स्वाद चखे । चटक और मजेदार लगा । वापसी में अनार ख़रीदे जो सौ रुपये से भी ज्यादा प्रति किलो था । हमारे यहाँ 60 या 70 के दर में मिल जाते है । समय कैसे बिता । पता ही नहीं चला । मौसम भी नरम और अनुकूल था ।

सामान समेट कर 17 बजे प्लेटफॉर्म में आ गए । अभी श्रीशक्ति एक्सप्रेस ( 22461 ) का रेक बैक नहीं हुआ था । 15 मिनट बाद हम 2 टेयर ऐसी कोच में प्रवेश किये । समय से ट्रेन रवाना हुई । संध्या होने वाली थी । वेंडर कोच में फिरना शुरू कर दिए थे । हमने पनीर पकौड़े के दो पैकेट ख़रीदे । चार्ज 120 रुपये लगा । पैकेट खोले । प्रति पैकेट में शायद 5 पकोड़े थे , वह भी छोटे छोटे । दुःख हुआ इस नाइंसाफी के लिए । हमारे पास रात्रि भोजन भी नहीं था । ट्रेन में खरीद कर हल्का फुल्का खा लेंगे , समझ कर बाहर से नहीं लाये थे । पैंट्री में ही 3 भोजन ( शाकाहारी ) का आर्डर दे दिया  । ट्रेन अम्बाला पहुच गयी थी , पता ही नहीं चला । किन्तु 30 मिनट से खड़ी थी । आखिर क्यों ? पता नहीं चल रहा था । ट्रेन से बाहर  आकर लोगो से पता किया । किसी ए सी कोच में ए सी काम नहीं कर रहा था अतः लोग इसकी मरम्मत चाह रहे थे । अंततः करीब एक घंटे बाद ट्रेन रवाना हुई ।

इसी बीच एक दोस्त को फोन लगाया जो लुधियाना में लोको पायलट है । उन्हें जान कर बहुत ख़ुशी हुई की मैं इस ट्रेन से कटरा जा रहा हूँ । उन्होंने  घर से भोजन उपलव्ध कराने की इच्छा जाहिर  की । हमने धन्यवाद कह मना कर दी क्यों की खाने का आर्डर दिया जा चूका था । कुछ समय बाद रात्रि भोजन का पैकेट हमारे सामने था । रात्रि के साढ़े नौ से ऊपर हो रहे थे । जल्द भोजन ग्रहण किये किन्तु भोजन किसी काम का नहीं था । स्वाद से ज्यादा गुस्सा बढ़ा गया । ट्रेन है सोंच कर बर्दास्त कर लिए । हम सभी अपने अपने बर्थ पर सो गए । मैं ऊपर के बर्थ पर सो गया । आधे घंटे बाद पैंट्री बॉय पैसे वसूलने आया । मैंने उसे पांच सौ के नोट दिए । वह मुझे कुछ छुट्टे वापस से जल्द चला गया । मैंने गिनने शुरू किये ये तो 140/- रुपये ही है । वह 360/- रुपये 3 भोजन का ले लिया था ।

ये तो पब्लिक के साथ बहुत बड़ा धोखा है । कुछ करना चाहिए । ये सरासर बेईमानी है । मैंने तुरंत रेलवे को इसकी शिकायत की । दूसरी तरफ से मेरी शिकायत दर्ज की गयी और कार्यवाही का भरोसा दिया गया । कुछ देर बाद रेलवे का कॉल आया और मुझे बताया गया की आप पैंट्री मैनेजर से शिकायत दर्ज करा दीजिये । मैंने कहा आप लोग अपनी तरफ से कार्यवाही करे मैं सबेरे शिकायत लिख दूंगा और  आराम से सो गया । कुछ देर बाद टीटी साहब आये और मुझे जगा कर पूरी जानकारी लिए । उन्होंने कहा की आप ने  इतनी ऊपर शिकायत क्यों कर दी । मुझसे कहना था । मैंने कहा कि आप को कहाँ कहाँ ढूढता फिरू । ठीक है देखता हूँ - कह कर चले गए और सबेरे तक वापस नहीं आये । सुबह ट्रेन कटरा पहुंची । हम निचे उतरे । प्लेटफॉर्म पर टीटी महोदय दिखाई दिए । फिर उनसे पूछा ? भोजन के बारे में क्या कार्यवाही हुई ? पैंटी का मैनेजर उनके पास ही था । उन्होंने उससे मेरा परिचय कराया।

मैनेजर मुझे पैंट्री के अंदर ले गया और शिकायत न करने की विनती करने लगा । उसने मेरे हाथो पर 60 रुपये वापस दिए । मैंने कहा - फिर भी 100 रुपये का भोजन हुआ और वह भी  घटिया । वह गिड़गिड़ाने लगा और बोला - सर आप माँ का दर्शन करने आये है । हमें क्षमा कर दे माँ आप को देंगी । वह बच्चा नया है । गलती हो गयी । हम गरीब लोग है । अब मेरा मन भी शिकायत के मूड में नहीं था । उन्हें दुबारा ऐसी गलती न हो की हिदायत दे बाहर आ गया ।

कटरा रेलवे स्टेशन और बालाजी ।


आगे की यात्रा विवरण  अगली क़िस्त में पढ़िए ।

Saturday, July 25, 2015

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल

आज दिनाक 17 सितंबर 2015 है । एक तरफ विश्वकर्मा पूजा की धूम है तो दूसरी तरफ बिघ्नकर्ता दुखहरन गणपति की पूजा । और      इस एक संयोग को क्या कहे कि आज ही कर्मठ सदाचारी और पूर्ण मानव हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का जन्म दिवस भी है । एक दिवस और त्रिकर्ता एक साथ । संयोग कुछ तो इंगित जरूर करता है । विश्व को बनानेवाला विश्वकर्मा जी , विश्व का दुःख हरण करता गणेश जी और आज के विश्व को नव सृजन की गति देने में व्यस्त मानवो का देव नरेंद्र मोदी जी । ऐसे संयोग किसी शुभ आगमन को ही इंगित करतेे है ।

दूसरी तरफ जंगल राज में मंगल मनाते दानवो की हाथो में तमंचा । बहु बेटियो के तिरस्कार  , लूट मार की भरमार  उत्तर प्रदेश राज्य  । जी हाँ आज ही मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश ) में समाज कल्याण मंत्री के सलाहकार बने कुरैशी के समर्थको ने भरी बाजार में वह भी थाने के सामने अंधाधुंध गोलियों की बौछार करते दिखे । जिसे ज़ी न्यूज़ ने टेलीकास्ट किया है । यह जंगल राज नहीं है तो और क्या है ? ठीक ही कहा गया है जैसी राजा वैसी प्रजा भी हो जाती है ।  कहने को उत्तर प्रदेश भारत का एक बड़ा राज्य है । किन्तु कुशासन में भी कम नहीं है । चारो तरफ असामाजिक तत्वों का बोलबाला है । शासन और अनुशासन नाम की कोई चीज नजर नहीं आती।

उदहारण स्वरुप दूसरी घटना की जिक्र क्यों करे एक अपनी ही घटना की प्रस्तुति समर्पित है । प्रथम सप्ताह दिसंबर 2014 । मैं पुनश्चय पाठ्यक्रम के लिए काजीपेट गया हुआ था । गॉव से  शाम को भाई का फोन आया  । समाचार सुन दिमाग कौंधने लगा । दिल में पीड़ा और बदले की भावना  पनपने लगी  । गुस्से में अपने को संभालना कठिन हो रहा था  । बात यह थी की गॉव में मेरे पड़ोसियों ने मेरी माँ और भाई को बुरी तरह से पिट कर घायल कर दिए थे । मामला पुलिस तक पहुंचा पर दरोगा FIR भी दर्ज नहीं कर रहा था । उसके ऊपर राजनीतिक पहुच का दबाव बन गया था ।

झगड़े का कारण चोरी से बिजली जलने का बिरोध करना था । मेरे पडोसी चोरी से बिजली का उपयोग कई वर्षो से  करते आ रहे थे । जिसका विरोध करना माँ को महंगा पड़ गया । किसी तरह पुलिस वालो ने माँ और भाई के चोट की चिकित्सीय रिपोर्ट तैयार करवाये । उचित कार्यवाही न होते देख हमें कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े । तब जाकर FIR की प्रक्रिया पूर्ण हुई । अरेस्ट वारंट रिलीज हुए । आज विरोधी जमानत पर है और कानूनी कार्यवाही / अदालती शुरू हो गयी है । कहते है कानूनी प्रक्रिया में काफी देरी होती है । उस पर उत्तर प्रदेश हो तो क्या कहें । मेरी नजरो में जंगल राज से कम नहीं ।

माँ और भाई के घायल होने के बाद दुखित और बेचैन होना स्वाभाविक था । छुट्टी लेकर जाने की इच्छा हमेशा बनी रही , पर जा न सका । दो या तीन दिनों बाद की बात है । मै फेशबुक के पन्नों को पलट रहा था । वही एक दोस्त ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल माननीय राम नायक जी को प्रश्न के घेरे में खड़ा कर दिया था । बात यह थी कि किसी कार्यक्रम में उन्होंने अपने भाषण में यह कह दिया था कि प्रदेश में बिजली चोरी करने वालो को जुत्ते से मारे । टिप्पणी कर्ता ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में संभव नहीं है , जैसे प्रश्न खड़े कर दिए थे । इस विषय के ऊपर मेरे दिमाग में भी बिजली कौंध गयी । सोंचा यही एक अच्छा मौका है क्यों न उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से शिकायत की जाए । मेरे माँ और भाई का मामला भी बिजली से सम्बंधित है ।

इंटरनेट की दुनिया में गोते लगानी शुरू कर दी । उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का इ मेल आईडी मिल गया । फिर क्या था लगा दी शिकायत यह कहते हुए कि क्या आप उचित कार्यवाही करेंगे ? मेल रजिस्टर्ड हो गया था । दिन हप्ते और महीने बीत गए । मेरे दिए हुए मोबाइल नंबर पर कोई कॉल भी नहीं आई । अचानक एक दिन मेल बॉक्स खोल और उसमे राज्यपाल द्वारा कार्यवाही किये जाने की कॉपी मुझ सूचनार्थ  मेल की गयी थी । दिल को थोड़ी सी सुकून मिली । चलो किसी ने सुध ली । फिर भी संदेह बनी हुयी थी एक राज्यपाल अकेले क्या कर लेगा ? संदेह गलत नहीं थी । महीनो बाद पुलिस वालो से रिपोर्ट तलब की गयी और एक दिन रात  दस बजे राज भवन से कॉल आई । शायद इ मेल सही था या फर्जी की जानकारी ली गयी । आज इस पोस्ट को लिखे जाने तक क्या कुछ हुआ - समझ से बाहर है । मामला कोर्ट के अधीन जा चूका है , क़ानूनी देरी सभी को परेशान करती है ।

जो भी हो राज्यपाल की सोंच सकारात्मक और प्रशासन नकारात्मक पथ पर अग्रसर है इसमे दो राय नहीं । राज्य के नागरिको को सचेत और अनुशासित होना होगा । तभी जंगल राज से मुक्ति की अपेक्षा की जा सकती है । आज भी न्याय के लिए आँखे बेक़रार है क्योंकि कानून अँधा होता है ।

Thursday, July 9, 2015

एक कप चाय

हमारे हिन्दू धर्म में सात का बहुत महत्त्व है । सात फेरे हो या सात दिन . सात जन्म हो या सात समंदर । वगैरह वगैरह । हमारे लिए भी सात वही महत्त्व रखता है । परम्पराये जीवित है ।जो समझते है उनके लिए बहुत महत्त्व रखती है । घडी की सुई निरंतर अंको को रौंदती रहती है और बार बार समय की अनुमान प्रस्तुत करती है । क्या घडी की सुई ही एक मात्र साधन है जो समय बताती है ?

जी नहीं मैं ऐसा नहीं समझता । हमारे आस पास घटित सभी घटनाये कुछ न कुछ सूचनाये देती है । बशर्ते हम उनका अवलोकन और समीक्षा करे । आईये ऐसी ही एक घटना पर नजर डाले ।

दिनांक 7 जुलाई 2015 की बात है । मैं सिकंदराबाद से राजधानी कार्य करने के लिए तैयार था । मेरा को - लोको पायल एम् वि कुमार थे । ड्यूटी में ज्वाइन होने के पूर्व किचन की तरफ मुड़े । शायद कुमार को चाय पिने की चस्का ज्यादा है । कुमार ने कूक से एक कप चाय मांगी । मैं और हमारे गार्ड दोनों बगल में ही खड़े थे । कूक ने एक कप चाय कुमार को पकड़ाया । कुमार ने चाय के कप को मेज के ऊपर रखनी चाही । लेकिन असुरक्षित । चाय का प्याला लुढक गया । पूरी की पूरी चाय मेज पर पसर गयी ।

ओह । मेरे मुह से ये शव्द यू ही निकाला । लगता है आज कुछ  होने वाला है ? आज सतर्क रहना पड़ेगा । गार्ड ने सहमति जाहिर की किन्तु कुमार ने अविश्वास मे सिर हिलाकर नाकारात्मक विचार प्रकट किये । ये सब बहम है । लेकिन मैं परिस्थितियों को उपेक्षित नहीं समझता । शांत रहा ।

हमें राजधानी के समय पर आने की सूचना दी गयी थी । किन्तु ट्रेन  लेट आई और एक घने लेट सिकंदराबाद से रवाना हुई । मैंने सफ़र के दौरान करीब आध घंटे तक विलम्ब कम कर लिया । आशा थी गुंतकल समय से आगमन होगी ।काश मन के विचार समय से मेल खाते । राजधानी को चितापुर स्टेशन में सिग्नल नहीं मिला । एक लोरी फाटक के बैरियर में अटक गई थी । मास्टर को गेट बंद करने में परेशानी हो रही थी । अंततः राजधानी एक्सप्रेस को 58 मिनट होम सिगनल पर सिगनल के लिए इंतजार करना पड़ा । जो कुछ भी बिलंब कम हुआ था वह फिर बढ़ गया । मैंने कुमार को याद दिलाया । देख लिए न मैंने किचन के सामने क्या कहा था ? कुमार निरुत्तर सा रह गए । खैर अभी भी यात्रा काफी बाकी है ।

चलते चलते समय बदलती रहती है । काश अपशगुन भी बदल जाते । अब अदोनी आ रहा था । राजधानी गाड़ी को अदोनी में रुकना पड़ा । स्टेशन मैनेजर ने सतर्कता आदेश भेजा जिसके अनुसार हमें अदोनी और नगरुर स्टेशन के बिच सतर्क होकर वाकिंग गति से जाना चाहिए क्यों की शोलापुर का चालक किसी अप्रिय हलचल की सूचना दी थी । जो पीछे वाली गाड़ी के लिए अप्रिय या असुरक्षित हो सकता है । हमारे लोको में इंजीनियरिंग स्टाफ भी आये । इस तरफ सतर्कता आदेश की पालन करते हुए 6 मिनट की सफ़र के लिए 30 मिनट लगा । मैंने कुमार को किचन वाली चाय की याद दिलाई । इस बार वे शांत रहे जैसे मेरी बातो में कुछ तो है जिसे इंकार नहीं किया जा सकता ।

आखिर कार हमें यात्रा  के दौरान दो विभिन्न घटनाओ से सामना करना पड़ा । जिसकी सूचना चाय की प्याली ने दे दी थी । आप हंसेंगे , न मानेंगे कोई बात नहीं । अपनी अपनी मन पसंद है ।जो पढ़ेगा वही पास होगा ।

Thursday, May 14, 2015

अनहोनी

13 मार्च 2015 । अलार्म बजने लगा था । तुरंत उठ गया और पास में सोये हुए जुबेदुल्ला जी को भी उठाया । शायद गुंतकल आने वाला था । अलार्म भी इसीलिए तो सेट किया था । हम दोनों बैठ गए । तभी जुबेदुल्ला जी का मोबाइल बज उठा । उन्होंने काल रिसीव किया । कुछ हलकी सी बाते हुयी । मैंने पूछा - किसका काल था ? ऐसेमेल राम का । फिर उदासी भरे लहजे में बोले - एक और spad हो गया । कहाँ ? अचानक मेरे शव्द निकले । उन्होंने कहा - इसी ट्रेन का यानि गरीब रथ एक्सप्रेस का और इसके लोको पायलट शेर खान । मेरे मुह खुले रह गए । आश्चार्य और दुःख , विषाद चेहरे पर फ़ैल गया ।कुछ विश्वास नहीं हो रहा था । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग रही थी । हमने लोको के नजदीक जाने की तैयारी की जिससे इस ट्रेन के लोको पायलट से कुछ जानकारी ली जा सके ।

हम लोको के पास पहुंचे । यह क्या ? ट्रेन का लोको पायलट कोई और था । अब किसी अविश्वास की कोई गुन्जाईस  नहीं थी । हमने इस लोको पायलट से पूछा ? उसने भी घटना को सही बताया । लोको पायलट के जीवन की सबसे दुष्कर वक्त इससे ज्यादा कोई नहीं है । Spad के बाद वह असहाय हो जाता है । कोई भी उसकी हमदर्दी में सहयोग नहीं देता । सिवा कुछ लोको पायलटो के अपने संघठन के । इसी लिए सर्वथा कहते सुना जाता है की एक लोको पायलट हजारो की जाने बचा सकता है पर हजार एक साथ मिलकर एक लोको पायलट को जीवन दान नहीं दे सकते । ये कैसी विडम्बना है ?

कहते है तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता । वाकई सही है । कल ही सिकंदराबाद रनिंग रूम में हम एक साथ चाय पिए थे । बातो - बातो में मैंने शेरखान से पूछ था की कब पार्टी दे रहे हो ? उन्होंने अत्यधिक ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा था । पार्टी जरूर दूंगा वह भी इसी माह में । ओफ्फिसियल पत्र जल्द आने वाला है । हमने भी ख़ुशी जताई ।

शेरखान लारजेश स्किम के तहत रिटायर होने वाले थे । वह भी इसी माह में क्योकि उनके बेटे का चयन की परिक्रिया पूरी हो गयी थी । शेरखान के बेटे की बहाली सहायक लोको पायलट के रूप में होनेवाली तय  थी और उन्हें वीआरएस । शेरखान के लिए अब सारे सपने अधूरे शाबित होंगे यदि रेलवे प्रशासन कठोर कार्यवाही करती है । आज कल spad की घटनाओ में लोको पायलट को सर्विश से हाथ धोना पड़ता है । ऐसी कठोर सजा और कहीं नहीं मिलती ।

लोको पायलट का जीवन कोल्हू के बैल जैसा है । रेलवे उसे मनमानी ढंग से उपयोग करती है । न रात को चैन न ही दिन में । बिना मांगे साप्ताहिक अवकाश भी दूर । तीज त्यौहार की क्या कहने ।आप अपने बर्थ पर आराम से सोते है । लोको पायलट रात भर पलक झपकाये बिना आप को आपके मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाते है । और भी बहुत कुछ जो छुपी हुयी है । क्या आपने कभी लोको पायलटो के जीवन में झांकने की कोशिश की है ? अगर नहीं तो हर व्यक्ति को जाननी चाहिए ? एक बार सोंच कर तो देंखे यदि आप एक लोको पायलट होते ?

आज शेरखान ससपेंड है । विभागीय ऑफिसर से मिला और शेरखान के केश को सहानुभूति पूर्वक संज्ञान में लेने की अनुरोध भी कर चूका हूँ  । विभागीय अफसर से सकारात्मक उत्तर मिला  है । प्रशासनिक कार्यवाही जारी है । देखना है समय की छड़ी किस आवाज से पुकारती है  ।

हम लोको पायलटो की संवेदना उनके साथ है । हम लोको पायलट कर्मठ भी और असुरक्षित ।

Wednesday, January 21, 2015

ऐसा भी होता है ।

दिसंबर का महीना था ।कड़ाके की सर्दी । कुहासे की वजह से रेल गाड़ियों के आवा जाही पर असर पड़ा था । यानि  दिनांक 15 और वर्ष 2014 । आज रिफ्रेशर क्लास का आखिरी दिन था । वक्त गुजरता जा रहा था ।समय जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । सभी को , जिन्हें ट्रेन पकड़नी थी उन्हें एक ही चिंता  सता रही थी की कब रिलीफ पत्र मिलेगा । मैं भी उसमे से एक था । शाम को करीब पौने पाँच बजे रिलीफ पत्र मिला । जैसे - तैसे हास्टल को भागे । पहले से  ही पर्सनल सामान सहेज के रख दिया था । राजधानी का समय हो चला था । भागते हुए काजीपेट के प्लेटफॉर्म संख्या दो पर पहुंचे  । तब तक राजधानी एक्सप्रेस जा चुकी थी । अनततः ईस्ट कॉस्ट एक्सप्रेस से हैदराबाद के लिए रवाना हुवे ।

हैदराबाद से गुंतकल के लिये  कोल्हापुर एक्सप्रेस जाती है । उसमे हम सभी का रिजर्वेशन था । रात ग्यारह बजे ट्रेन को प्लेटफॉर्म में लगाया गया । मेरे साथ कई लोको पायलट थे । मुझे नींद आ रही थी । अतः बिना देर किये , अपने 2 टायर कोच में पवेश किया । मेरा लोअर बर्थ था । मेरे सामने के ऊपरी बर्थ पर एक बुजुर्ग अपने बिस्तर को सहेज रहे थे ।अपने सामानों को सुव्यवस्थित रख , थोड़े समय के लिए टॉयलेट या   बाहर चले गए । 

कुछ समय के उपरान्त लोको पायलट मुरली आ धमाके । मैंने पूछा _ आप की बर्थ कौन सी है ? उन्होंने  मेरे सामने की ऊपर वाली बर्थ की तरफ इशारा किया । मैंने कहाकि उसपर एक बुजुर्ग है । गलती से आया होगा , कहते हुए बुजुर्ग के बैग को मुरली जी ने निचे रख दिए और  मेरे बगल में ही बैठ गए । हम एक दूसरे से वार्तालाप में व्यस्त थे । तभी वह बुजुर्ग आये । अपने बैग को बर्थ से गायब देख , जोर से चिल्लाने लगे । मेरा बैग कहा गया ? मुरली जी ने उसके तरफ रुख करते हुए जबाब दिया की  आप का बैग यहाँ निचे है । अब तो वह बुजुर्ग आप से बाहर हो गए और बोले किसने यहाँ रखी ? मुरली ने तुरंत स्वीकारते हुए कह दी _ मैंने रखी है ये बर्थ मेरा है । बुजुर्ग कंट्रोल से बाहर । मुरली के तरफ इशारा करते हुए  बोले _ मेरा बैग ऊपर रखो जल्दी । ये बर्थ मेरा है । 

ज्यादा बात न बढे इसलिए मैंने हस्तक्षेप किया । दोनों से उनकी टिकट  फिर से देखने का आग्रह किया । चार्ट में मेरा नाम मुरली लिखा हुआ है _ मुरली ने कहा । वह बुजुर्ग व्यक्ति टपक से कहा मेरा नाम मुरली है । मैंने मुरली से उनकी टिकट दिखाने को कहा । किन्तु टिकट उनके पास नहीं था ।टिकट उनके सहायक के पास था । उस व्यक्ति ने अपनी टिकट दिखाई । वह बर्थ उसी का था । अतः मुरली उसके कोप का अधिकारी न बने , मैंने ही उसकी बैग उसके बर्थ पर तुरंत रख दिया । वह व्यक्ति गुस्से में लाल हो गया था । बहुत कुछ कहा जो यहाँ उद्धृत करना जरूरी नहीं समझता । मुरली को अपने गलती का अहसास हो गया था । अब शांत और चुप्पी के सिवाय कोई औचित्य नहीं था । मुरली इस मामले को नजरअंदाज करते हुए चुपके से खिसक गए । सहायक लोको पायलट के आने के बाद पता चला की उनका बर्थ कहीं और था ।


जी हाँ आये दिन हमसे ऐसी गलतिया होती रहती है । पर हम में कितने लोग है जो गंभीरता से सोंचते है ? थोड़ी भी सूझ बुझ से  की गयी कार्य हमारे स्वाभिमान में चार चाँद लगा देते है । मनुष्य मात्र ही एक ऐसा प्राणी है जिसे सूझ बुझ की शक्ति प्राप्त है अन्यथा जानवर और मनुष्य में फर्क कैसे ? स्वच्छ और सशक्त नागरिक देश के उन्नति के नीव है ।

Friday, May 23, 2014

कुशल प्रशासक

मनुष्य किसके अधीन है किस्मत या कर्म , यह कह पाना बड़ा ही कठिन है ।मनुष्य सामाजिक प्राणी है । इसे घर के अंदर परिवार से तो बाहर समाज से सामना करना पड़ता है । हर व्यक्ति के स्वाभाव में हमेशा ही अंतर दिखती है। सभी के कार्य कलाप और व्यवहारिक दिशा भिन्न - भिन्न तरह  की  होती है । कुछ में बदलाव के कारण पारिवारिक  अनुवांशिकता , तो कुछ में स्वतः जन्मी असंख्य सामयिक और बौद्धिक गुण होते  है । यही कारण है कि सभी व्यक्ति अपने - अपने क्षेत्र में विभिन्नता से परिपूर्ण  होते है ।

चोर चोरी के तजुर्बे खोजने में माहिर तो पुलिस चोर को पकड़ने के तिकड़म में सदैव लिप्त रहते है । वैज्ञानिक विज्ञानं कि तो व्यापारी व्यापर लाभ की  । सभी कि मंशा के पीछे स्वयं का हित ही छुपा होता  है । जो इस क्षेत्र के बाहर निकलते है , वही महात्मा कि श्रेणी में गिने जाते है या महात्मा हो जाते है क्योकि उनके अंदर परोपकार कि भावना ज्यादा भरी होती है । पेड़ पौधे अपने फल और  मिठास को दान कर , सबका प्रिय हो जाते है ।

आज - कल सरकारी दफ्तरों को सामाजिक कार्यो से कोई सरोकार नहीं है । दूसरे की भलाई से कुछ लेना - देना नहीं है । जो शासन के पराजय और भ्रष्टाचार का एक विराट रूप ही है ।  इसका मुख्य कारण दिनोदिन हो रहे नैतिक पतन ही तो है । भ्रष्टाचार ही है । अनुशासन हीनता है । एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ है । इस कुबेर की भाग दौड़ में सिर्फ साधारण जनता ही पिसती है । इस प्रथा के शिकार साधारण जन ही होते है । कोई नहीं चाहता कि उसे किसी कार्य हेतु कुछ देने पड़े । एक कार्य के लिए दस बार दौड़ने के बाद स्वतः मनुष्य  टूट जाता है और इस नासूर से छुटकारा पाने के लिए मजबूरन असामान्य पथ  को अखतियार कर लेता   है ।लिपिको के पास कमाई से ज्यादा धन कहाँ से आ जाते  है ? ऑफिसरो के पास अनगिनत सम्पति के सोर्स कौन से है ? घरेलू पत्नी करोडो की मालकिन कैसे हो जाती है ।स्कूल में पढने वाले बच्चे के अकाउंट में लाखो कैसे ?

ऐसे ही परिस्थितियों के शिकार यि. सि. यस राव ( लोको पायलट ) थे । जिनका मन पत्नी के देहांत के बाद अशांत रहने लगा था । कार्य से अरूचि होने लगी थी । इस अशांत मन से ग्रसित हो  गाडी चलाना सुरक्षा की दृष्टि से एक गुनाह से कम नहीं था  । उनका मन नहीं लग रहा था  । अतः उन्होंने यह निर्णय लिया  कीअब  स्वैक्षिक अवकाश ले लेना चाहिए । कई राय सुमारी के बाद दरख्वास्त लगा दिए । इस अवकाश के लिए अधिक से अधिक तीन महीने ही लगते है । तीन महीने भी गुजर गए , पर अवकाश की स्वीकृति का पत्र नहीं आया । एक लिपिक से दूसरे लिपिक , एक चैंबर से कई चैंबर काट चुके । बात  बनती नजर नहीं आई । दोस्तों से आप बीती सुनाते  रहे । सुझाव मिली , कुछ दे लेकर बात सलटा लीजिये । किन्तु सदैव अनुशासन की पावंद रहने वाला व्यक्तित्व भला ये कैसे कर सकता था । उन्होंने और अन्य साथियो ने मुझसे इस केश को देखने का आग्रह किये ।

यह शिकायत हमारे समक्ष आते ही लोको रनिंग स्टाफ  का मंडल सचिव होने के नाते मेरी और संगठन की  जिम्मेदारी बढ़ गयी । अपने अध्यक्ष के साथ  मै इस केश में जुट गया । लिपिक और कुछ कनिष्ट ऑफिसरों से मिलने के बाद पता चला की यि. सि. यस राव के सर्विस रिकार्ड्स के कुछ डाक्यूमेंट्स गायब थे । इसी की वजह से केश पेंडिंग था । हम कनिष्ट पर्सनल अफसर से जाकर मिले । उसने वही बात दुहरायी । हमने कहाकि डॉक्यूमेंट आप के कस्टडी में था , फिर पेपर गायब कैसे हुए ? जैसे भी हो इस महीने में अवकाश पत्र मिल जाने चाहिए , अन्यथा वरिष्ठ ऑफिसरों से शिकायत करेंगे । उस अफसर के कान पर जू तक न रेंगा । महीने का आखिरी दिन भी चला गया ।

हमने एडिशनल मंडल रेल प्रबंधक श्री राजीव चतुर्वेदी जी से शिकायत की । राजीव जी बहुत ही नम्र किन्तु अनुशासन प्रिय अफसर थे । हमने सोंचा  की ये भी दूसरे अन्य  ऑफिसरों  की तरह कहेंगे - ठीक है केश देखूंगा और केश जस का तस डस्ट बिन में पड़ा रहेगा । पर यह धारणा  बिलकुल गलत साबित हुई  । उन्होंने तुरंत उस कनिष्ट पर्सनल अफसर को हमारे सामने ही तलब  किया । वह अफसर आया और हमें  यहाँ देख , उसे मामले की गंभीरता  समझते देर न लगी । ADRM  साहब ने उनसे पूछा -यि. सि. यस राव का केश क्यों पेंडिंग है । वह अफसर शकपकाया और कहा - सर एक हफ्ते में पूरा हो जायेगा । तब श्री राजीव चतुर्वेदी जी ने उन्हें हिदायत दी -  " लोको पायलट बहुत ही परिश्रमी कर्मचारी हैं । उन्हें हेड क्वार्टर में आराम की जरूरत होती है । मै नहीं चाहता कि कोई भी लोको पायलट अपने ग्रीवेंस के लिए आराम के समय ऑफिस का चक्कर काटें ।  आप खुद लोको पायलट होते , तो किस चीज की आकांक्षी होते  ? "

न्याय के इस विचित्र पहलू से हमें भी हैरानी हुयी , क्योकि इस तरह के अफसर बहुत काम ही मिलते है । हमने ADRM  साहब  धन्यवाद दी । कुछ ही दिनों में सफलता मिली और यि. सी यस राव का स्वैक्षिक अवकाश का पत्र समयानुकूल आ गया । यह एक कुशल प्रशासक के नेतृत्व का कमाल था । चतुर्वेदी जी के स्वर हमेशा गूजँते रहे । हमने ग्रीवेंस रजिस्टर की माँग तेज की , जो प्रत्येक लॉबी में होनी चाहिए ।  आज सभी लॉबी में ग्रीवेंस रजिस्टर उपलब्ध है । ऐसे सच्चे ईमानदार प्रशासको को नमन । 

Wednesday, April 23, 2014

लोवर बर्थ


२७ मार्च २०१४ दिन गुरुवार । राजधानी एक्सप्रेस लेकर सिकंदराबाद आया था । आज ही आल इण्डिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएसन  के आह्वान पर , लोको पायलट जनरल मैनेजर के ऑफिस के समक्ष धरने  पर बैठने वाले थे । मेरा  को -लोको पायलट सैयद हुमायूँ और मै  धरना  में शरीक हुए । दोपहर को दक्षिण मध्य रेलवे के जोनल लीडरो की  वैठक थी । पूरी रात गाड़ी चलाने  और धरना में शामिल होने कि वजह से थकावट महसूस हो रही  थी कारण  पिछले  दिन बुखार से भी ग्रसित था । अतः जोनल सदस्यों की सभा में अनुपस्थित ही रहा । 

वापसी के समय कोई गाड़ी नहीं थी । लिंक के अनुसार गरीब रथ (१२७३५) से मुख्यालय वापस जाना था । सिकंदराबाद से यह गाड़ी १९.१५ बजे छूटती  है । हम समयानुसार प्लॅटफॉर्म पर पहुँच गए । हमने एडवांस में अपने बर्थ आरक्षित कर ली थी । इस लिए कोई असुविधा  का सवाल नहीं था । कोच -७ / बर्थ संख्या -३४ और ३७ । प्लॅटफॉर्म  का नजारा अजीबो - गरीब  था । गाडी पर लेबल गरीबो की , पर पूरी उम्मीदवारी अमीरो की  थी । लगता था जैसे श्री लालू यादव जी ने अमीरो को तोहफा स्वरुप  इस ट्रेन को चलाने का निर्णय लिया था । शायद असली सच्चाई  यही हो  । इसीलिए तो गरीबो ने श्री लालू जी को गरीब बना दिए और वह बनते ही जा रहे है । सामाजिक कार्य में खोट कभी छुपती नहीं है । आज सबको मालूम है , लालू जी किस मुसीबत से जूझ रहे है । 

हमने अपने बर्थ ग्रहण किये और लिंगमपल्ली आने के पूर्व ही डिन्नर कर ली । लिंगमपल्ली में यात्रियो की  काफी भीड़ हो जाती है । आध घंटे में लिंगमपल्ली भी आ गया । कोच खचा - खच तुरंत भर गया । यात्रियो में ९०% नौजवान और १०% ही ४० वर्ष उम्र वाले या  ऊपर के होंगे । यह प्रतिसत हमेशा देखी  जा सकती है । सिकंदराबाद / हैदराबाद / बंगलूरू में जुड़वा भाई का सम्बन्ध है । प्रतिदिन लाखो की  संख्या में एक शहर से दूसरे शहर में लोगो का स्थानांतरण होते रहता है ।  अगर एक दिन भी ट्रेन सेवा रूक जाय , तो लोगो में अफरातफरी मच जायेगी

हमारे  आमने - सामने  वाले सीट पर एक दम्पति और उनके दो छोटे - छोटे प्यारे बच्चे स्थान ग्रहण किये ।  उनकी सीट भी वही थी । इनकी आयु करीब २५ - ३० वर्ष के आस - पास  होगी । पहले तो मैंने समझा कि दोनों युवक है । लेकिन ऐसा नहीं था । एक युवक और दूसरी उनकी  पत्नी थी । बिलकुल अत्याधुनिक लिबास से सज्जित । उस संभ्रांत महिला ने काले-नीले स्पोर्ट पैंट और सफ़ेद -टी  शर्ट पहन रखी थी । दृश्य का वर्णन नहीं कर सकता । आस  - पास के लोगो कि निगाहे सिर्फ उसी पर । लिबास ऐसे थे कि हमें उधर देखने में शर्म आ रही थी । अगर ऐसे पहनावे का विरोध किया जाय तो जबाब मिलेंगे  - मेरी मर्जी जैसा भी पहनू । अपने चरित्र को कंट्रोल में रखिये ।

यहाँ प्रश्न उठता है कि --

१) क्या कोई तड़क - भड़क पहनावे से महान / गुणी बन जाता है ?
२)आखिर इतनी गंदी एक्सपोज किसके लिए  ?
३)क्या ऐसे व्यक्तियो के समक्ष समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?
४)अपने अधिकार कि दुहाई देने वाले , क्या  दूसरे के अधिकारो का हनन नहीं करते ?
५)क्या ऐसे व्यक्ति समाज में व्यभिचार फ़ैलाने में सहयोग नहीं करते ?
६)क्या वस्त्र का निर्माण इसी दिन के लिए हुए थे या अंग ढकने के लिए ?
७)क्या हमारे समक्ष हमारी सभ्यता कोई मायने नहीं रखती ?

बहुत से ऐसे प्रश्न है , जो आज  समाज के युवा वर्ग के सामने है । अपने समाज को स्वच्छ और भारतीय बनाने में आज के युवा वर्ग को  सहयोग करनी चाहिए । इतिहास उठा के देखने से पता चलेगा कि महान व्यक्तियो के आचरण कैसे थे । स्वर्गीय और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी जैसा अंग्रेजी आज भी कोई नहीं बोलता है और पहनावा -धोती और कुरता । स्वर्गीय इंदिराजी का इतिहास सामने है । आज के श्री मोदी जी को देखे ? डॉक्टर  अब्दुल कलाम जी को देखे है वगैरह - वगैरह । नदी में चारो तरफ जल ही जल फैली होती  है , परन्तु डुबकी किसी खास जगह ही लगायी जाती है सुरक्षित रहने के लिए । वैसे ही समाज में सुरक्षित डुबकी ( पहनावा ) क्यों नहीं ? वस्त्र तन ढकने के लिए पहने जाते है , तन दिखाने  के लिए नहीं । 

बहुत कुछ कोच में हुए जो व्यवहारिक नहीं थे । उस युवक ने हमसे पूछा - आप के बर्थ कौन से है , ये लोअर बर्थ है क्या ? हमने हामी भरते हुए कहा - जी बिलकुल सही । उसने अनुरोध किया  कि - " क्या आप लोग मेरे मीडिल बर्थ से एक्सचेंज करना  स्वीकार करेंगे  ?" हमारे मन में एक आवाज उठी ।कितने स्वार्थी हैं , ऐसे आधुनिक घोड़े पर चढ़ने वाले , हमारे लोअर बर्थ को भी छीन लेना चाहते थे  कैसी विडम्बना है । पूछने के पहले हमारे उम्र कि लिहाज तो कर लेते ? लोअर बर्थ की इच्छा सभी की होती है । ऐसे इंसानो को लोअर बर्थ  सुपुर्द करना भी उचित नहीं लगा  क्युकी गुंतकल में यात्री ज्वाइन करते  है । गुंतकल में आने वाले यात्री उन्हें डिस्टर्ब करेंगे । अतः हमने उन्हें पूरी बाते बता दी । उन्हें भी मायूसी में  संतोष करना पड़ा  । वैसे मुझे दूसरे कि पहनावे से  जलन नहीं है ,बस अपने संस्कार से वेहद लगाव है ।अपनी संस्कार छोड़ ,दूसरे की संस्कार स्वीकार करने वाले से बड़ा भिखारी भला कौन हो सकता है ?
ये वो थे जो ज़माने से बदल रहे थे , 
पर ज़माने को 
बदलने कि ताकत उनमे नहीं थी । 

Sunday, February 23, 2014

कहानी - दो पैर

मै अपने किसी कार्य हेतु तिरुपति जा रहा था । प्लेटफॉर्म के एक सीट पर बैठा  ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रहा था । चारो तरफ गहमा - गहमी थी । सभी को सिर्फ  ट्रेन की  इंतजार थी । चारो तरफ  नजर  दौड़ाई  । शायद कोइ जानकार  
 साथी मिल जाए ? दूर भीड़ के एक कोने में एक व्यक्ति के ऊपर नजर पड़ी  । वह अपने बैशाखी के सहारे खड़ा था । अनायास उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी ।वह मुझे  बार - बार देख रहा था । मुझे भी वह कुछ परिचित सा लगा । शायद कहीं देखा हो  । बार -बार माथे पर बल दिया किन्तु सफलता नहीं मिली क्यूंकि अपाहिज से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । ट्रेन आ चुकी थी । सभी जगह पाने कि होड़ में दौड़े । ट्रेन समय से पहले आई  थी । अतः यह तो निश्चित था कि पहले नहीं छूटेगी । 

मै एक कम्पार्टमेंट के अंदर जगह पा लीथी  । अनायास वह बैशाखी वाला व्यक्ति भी मेरे सामने वाली सीट पर आ बैठा । मेरे मुंह खुले रह गए । यह तो वही नायडू था  ,जिसे दो वर्ष पहले एक ट्रेन एक्सीडेंट ने अपाहिज बना दिया था । " नमस्ते नायडू " - नायडू से उम्र में बड़े  होने के  वावजूद भी मेरे मुख से आत्मीय स्वर निकल पड़े । नायडू ने भी स्वीकृति में - मेरी तरफ देखा और प्रशंशनीय मुद्रा में कहा - " शेखर सर  नमस्ते । कैसे है सर जी  ? बहुत दिनों के बाद मिले है ?"  उसके चेहरे 
पर एक अजीब सी ख़ुशी कि रेखाए नांच गयी ।मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि वह मुझे अभी भी  
पहचान लिया था । वैसे तो उस ट्रेन एक्सीडेंट के बारे में मुझे सूचना थी ,पर नायडू ने दोनों  पैर  
गवा दिए थे , इसकी जानकारी  नहीं थी । 

" ये कैसे हुआ नायडू ?" - मैने विस्तृत जानकारी हासिल करने कि कोशिश की । उसने अगल - बगल देखें और एक लम्बी साँस लेते  हुए कहा । " सर आप को उस दुर्घटना कि जानकारी तो है ही , पर प्रशासन कि लापरवाही की  वजह से मुझे ये पैर गवाने पड़े ।रिलीफ वैन देर से आई थी  " इतना कहते  ही उसके आँखों में पानी भर आया  । " मै दो घंटे तक लोको में फँसा रहा । सभी समझ रहे थे कि मै मर गया हूँ ।अस्पताल पहुँचने के पहले ही मेरे दोनों पैर अधिक रक्तस्राव की  वजह से ढीले पड़ गए थे ।मै  उन लोको पायलटो का शुक्र गुजार हूँ जिन्होंने अपने खून दानकर मेरी जान बचाई । अन्यथा। .... । " नायडू ने अपनी आँखे पोछी और अपने हाथ कि अंगुलियो को मरोड़ने लगा । 

मैंने कहा -" ईश्वर को शायद यही मंजूर था नायडू । ईश्वर ही सबका रखवाला है । " मुझे पता था लोको पायलटो के परिवार वाले कैसे- कैसे  दर्द और अलगाव बर्दाश्त  करते है ।कुछ पूछूं ? इसके पहले ही नायडू ने कहा -"सर आज मेरी पत्नी ही मेरी दो पैर है ,इसके वजह से जिन्दा हूँ । " इतना कह नायडू ने बगल में बैठी अपनी पत्नी से परिचय करवाया । इस महान महिला के प्रति आदर स्वरूप मेरे दोनों हाथ नमस्कार हेतु  जुड़ गए ।उस साध्वी ने भी एक हल्की ख़ुशी के साथ अपने हाथ जोड़ दिए ।बिलकुल यह सच है कि लोको पायलटो को कोई सम्बल देता है तो वह है उनका परिवार ।तब - तक तिरुपति आ चूका था । हम सभी काम्पार्टमेंट से बाहर आ गए थे । नायडू ने मुझसे मिलने कि ख़ुशी जाहिर की  और सपरिवार आगे बढ़ गया ।

 मै एक टक लगाये सोंचता  रहा -यह कैसी विडम्बना है , दुनिया के मुसाफिरो को मंजिल तक ले जाने वाला , बैशाखियों के सहारे अपनी मंजिल तय कर  रहा है । क्या यह सच है  प्रशासन  इन्हे कोल्हू के बैल से ज्यादा महत्त्व नहीं देता ? जागो लोको पायलटो .... नयी सूरज की  नयी किरण अभी बाकी है । 

Wednesday, January 22, 2014

आधा घंटा पहले का निर्णय

मै अपने पाठको के समक्ष हमेश ही सत्य और प्रमाणिकता से जुड़े विषयों को प्रस्तुत करते रहा हूँ , चाहे कहानी हो या अनुभव । कभी -कभी अति आश्चर्य होता है , जब सत्य सामने खड़ा हो  और हम उसे समझ पाने या अनुभव कर सकने में अक्षम हो जाते है । कही ऐसा तो नहीं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता ? जो भी हो , हवा की रूख भापने वाले संभल जाते है । हमारे शरीर  का निर्माण पाँच तत्वो  से हुआ  है । अतः यह स्वाभाविक है कि इनमे से किसी के अपनत्व  का संपर्क एक अजीब सा अनुभव ही देगा । 

हम लोको चालको का कार्य स्थान्तरित होते रहता है । कभी इस शहर में तो कभी उधर । यात्री गाड़ी हो तो अनुभव के अवसर बहुत मिलते  है । तरह - तरह के यात्रियो से संपर्क बनते है । हर किस्म के लोग संपर्क में आते है । इस अनुभव और प्रश्नो कि लड़ी उस समय और बढ़ जाती है ,जब किसी बाधाबश गाड़ी देर तक रूक गई हो । यात्री  झुण्ड के झुण्ड लोको के पास आ खड़े होते है । प्रश्न वाचक चेहरे , प्रश्न वाचक शव्द -हमे संयम कि पटरी पर ला घसीटते है । 

लाख करें चतुराई पर विधि कि लिखन्ती को कोई टाल नहीं सका है । अगर ईश्वर है , तो कालनिर्णय का चांस सभी को देते है । कोई जरूरी नहीं कि आप भी इस मत से सहमत हों । उस दिन ऐसा ही कुछ हुआ था । मै अपने को -लोको चालक के साथ सिकंदराबाद आरामगृह में कॉफी कि चुस्की ले रहा था । ठंढ लग रही थी । सबेरे का वक्त था । अभी - अभी बंगलूरू - हजरतनिजमुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस को काम करके आयें थे । वि. आर. के. राव ने कहा -मै अपोलो अस्पताल जाकर आता हूँ । आप नास्ता कर लेना । मैंने पूछा - ऐसी क्या बात है ? 

उन्होंने जो बताएं वह इस प्रकार है --
" मेरे सम्बन्धी एक अपार्टमेंट हैदराबाद में ख़रीदे है । उन्होंने  शिफ्ट करने के पहले दूध गर्म और गृहप्रवेश कि पूजा हेतु , गुंतकल से  सपरिवार अपने कार से हैदराबाद आ रहे थे । वे लोग रात को ग्यारह बजे यात्रा शुरू किये । रास्ते में एक बजे कार चालक ने कहा -मुझे नींद आ रही है । एक घंटा सोना  चाहता हूँ । चालक को अनुमति मिल गयी । कार को सड़क के एक किनारें पार्किंग कर सो गया । कुछ आधे घंटे ही हुए होंगे , मेरे रिस्तेदार ने उस चालक को आगे चलने को कहा , क्यूंकि सुबह का मुहूर्त छूट सकता था । 

अल साये हुए चालक और कार चल दी । यात्रा के दौरान कुछ दूर जाने के बाद चालक ने कंट्रोल खो दी और कार ने पलटी मारी । सभी रात  भर घायल अवस्था में कार में पड़े रहे । किसी वाहन चालक या पथिक  ने उनकी सुध नहीं ली । सुबह आस - पास के गाव वालो की नजर पड़ी और उनके मदद से मेरे रिस्तेदार अपोलो में भर्ती है । सभी को गम्भीर चोट पहुंची है । "

जी हाँ । यह घटना पिछले माह कि है । अब वे लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके है । आधा घंटा पहले का निर्णय महंगा पड़ा ? या नियति में यही लिखा था ? या कर्म के परिणाम थे ?या अपार्टमेंट अशुभ था ? जो भी हो हवा और अग्नि में जरूर फर्क होता है । 

Friday, November 22, 2013

राजधानी एक्सप्रेस रुक गयी ।

कभी - कभी जीवन में ऐसा लगता है कि हर चीज और अनुभव सबके बस की नहीं  होती । बहुत सी ऐसी चीजे है , जिन्हे धनवान  नहीं समझ सकते । ठीक वैसे ही धनवानो  की कुछ अनुभव  कमजोर  के पहुँच से बाहर होती है । कुछ समाज या व्यक्ति विशेष असाधारण प्रतिभावान  होते है , पर असुविधा कि वजह से अपनी प्रतिभा को विखेर नहीं पाते । शायद इसी लिए पांचो अंगुलिया बराबर नहीं है और  इसी भिन्नता कि वजह से समाज में संतुलन बना रहता है ?

 लोको पायलटो की जिंदगी भी अजीब सी  होती है । दिन में सोना , रात्रि पहर  जागते हुए कार्य को पूर्ण रूप देना ,दिनचर्या सी बन गयी है । हजारो सिगनलों , सैकड़ो मानव रहित / मानव विहीन समपार फाटको , सर्दी या गर्मी , वरसात या सुखा  , विभिन्न प्रकार के गाड़ियों / इंजनो , रुकन या प्रस्थान वगैरह - वगैरह को अनुशासन  के भीतर रहते हुए पूर्णरूप देना ही तो है लोको पायलट । समाज से दूर , परिवार से दूर बस गाड़ी के यात्रियों को ही परिवार मानकर सतत आगे बढ़ते रहते है । लोको पायलटो का   मुख्य ध्येय  -  अनुशासन में रहते हुए जान - माल की  रक्षा ,  रेलवे और देश की प्रगति में चार चाँद लगाना ही तो है । आप एक क्षण के लिए लोको पायलट बन , इनके जीवन की अनुभूतियों को महसूस कर सकते है । 

लोको पायलटो को  कार्य के समय कई छोटे या बड़े मुश्किलो का सामना करना पड़ता  है । सफलता पूर्वक त्रुटियों को झेल जाना भी एक बड़ी अनुभव होती है । हमने सिनेमा घरो में कई बार देखा होगा कि नायक /नायिका  रेलगाड़ी  में सफ़र कर रहे होते है । कोई छोटी वस्तु / घी के डब्बे / टिफिन बॉक्स को खतरे की जंजीर  से बांध देते है । तदुपरांत रेलगाड़ी  रूक जाती है । रेलगाड़ी के  कर्मचारी अपने निरिक्षण के दौरान इस गलती को देख लेते है और नायक / नायिका को खरी खोटी सुनाते  है । थोड़े समय के लिए  दर्शक हँसे बिना नहीं रह पाते और कुछ ताली तक बजा देते है । जी हाँ यह छवि गृह / सिनमोघरो  के छवि/ चलचित्र  में निर्देशक द्वारा प्रेषित , दर्शको के लिए मनोरंजन के एक मसाले के साधन मात्र होते है । ऐसी घटना वास्तविकता से परे समझी जाती है । लेकिन  -

सभ्य और शिक्षित समाज इस कार्य को कार्यान्वित कर दें , तो आप क्या कहेंगे ? क्या आपने कभी  ऐसी कल्पना कि है ? जी शायद आप को पता नहीं , यह वास्तविक जीवन में भी सम्भव हो  सकता है , जब राजधानी एक्सप्रेस ठहर गयी । कल यानि २१ नवम्बर २०१३ कि घटना प्रस्तुत है । कल मै राजधानी एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । राजधानी एक्सप्रेस सेडम स्टेशन पर रुकी । इसके फर्स्ट क्लास के डिब्बे से एक यात्री उतर गया , जो लोअर बर्थ का यात्री था । राजधानी फिर रवाना हो गयी । कुछ चार / पञ्च किलोमीटर कि यात्रा के बाद किसी ने खतरे कि जंजीर खिंच दी । फिर क्या था राजधानी एक्सप्रेस तुरंत रुक गयी । जाँच के दौरान  पता चला कि फर्स्ट क्लास के कोच में उप्पर बर्थ का यात्री लोअर बर्थ में सोने के लिए निचे उतरने के लिए इस जंजीर का सहारा लिया था । शायद वह यह नहीं समझ पाया कि यह कोई साधारण जंजीर नहीं है  बल्कि खतरे की जंजीर है । अनपढ़ की गलती क्षम्य है पर सभ्य और पढ़े - लिखे कि ? जब उसकी गलती से राजधानी एक्सप्रेस रुक गयी । 

Wednesday, October 23, 2013

ऐसा होता है अनुशासन

अनुशासन की बात आते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है । मुख्यतः  जो इसके आदी नहीं है । पर अपने आप में अनुशासन बहुत ही लाजबाब चीज है ।जिन्हें यह प्रिय है , उनके लिए देव तुल्य  । इसके परिणाम उस समय आश्चर्य की सीमा को छू लेती  है , जब दोनों ही इसके प्यारे/ अवलंबी हो । इसके परिणाम इसके सकारात्मक / नकारात्मक इस्तेमाल पर निर्भर करते है ।

 हां यह जरूर पथ में कांटे / दुश्मनों की संख्या बढ़ा देती है , परन्तु  धैर्यवान उच्चाई को छु लेते है और कायर परिणाम की गिनती करते हुए हथियार डाल देते है । कभी ऐसा भी होता होगा जब  अनुशासित व्यक्ति अपने आप को भी थोड़े समय के लिए सोंचने के लिए बाध्य हो जाए ।वास्तव में ऐसा  होता भी है । किन्तु यह सत्य है कि अनुशासन स्वयं को फायदा और इसका दुरुपयोग दुसरे को फायदा पहुंचता है । 

हम रेलवे के लोको पायलटो की कहानी बहुत करीब से  इससे  जुडी हुई  है । इस अनुशासन के सहारे गाड़िया अपने मंजिल तक सुरक्षित पहुंचती है । इसी लिए कहते है - अनुशासन हटी , दुर्घटना घटी । मेरा निजी अनुभव  है कि अनुशासन प्रिय लोग दिल और दिमाग से कठोर होते है । कभी - कभी ऐसे कदम उठाने पड़ते है , जिसे याद करके अकेले में आंसू निकल आते है । 

एक वाकया प्रस्तुत है । घटना उस समय की है जब मेरी पोस्टिंग यात्री लोको चालक के रूप में पकाला में हुई  थी । सांय काल का समय । katapadi  से तिरुपति पैसेंजर ट्रेन लेकर जाना था । ड्यूटी में आ गया था । katapadi का अगला स्टेशन रामापुरम  है । जो करीब १५ किलोमीटर दूर है । मुझे ट्रेन प्रस्थान की आथारिटी दी गयी । अथारिटी एब्नार्मल थी यानी पेपर लाइन क्लियर और सतर्कता आदेश के साथ , क्युकी katapadi स्टेशन मास्टर का संपर्क रामापुरम  मास्टर से नहीं हो पा रही  थी  । सतर्कता आदेश को पढ़ा , जो मुझे १५ किलोमीटर की गति से katapadi से रामापुरम जाने की अनुमति दे रहा था । कुछ समय के लिए अवाक् हो गया । 

katapadi दक्षिण और दक्षिण मध्य रेलवे की सीमा है । katapadi दक्षिण रेलवे के अंतर्गत पड़ता है । सीएमसी /वेल्लोर जाने के लिए यही उतरना पड़ता है ।मै सतर्कता आदेश के साथ स्टेशन मास्टर के ऑफिस  में गया और कहाकि - हमारे रेलवे में एब्नार्मल परिस्थिति में १५ किलोमीटर की सतर्कता आदेश नहीं दी जाती है । रामापुरम की दुरी १५ किलोमीटर से ज्यादा है । १५किलोमीटर की गति से रामापुरम पहुँचाने में बहुत समय लगेगा । मास्टर ने जबाब में कहा - मै कुछ नहीं कर सकता । हमारे यहाँ जो नियम है , उसी के मुताबिक सतर्कता आदेश दिया हूँ । अब मै निरुत्तर हो गया ।

 मै भी दृढ अनुशासन प्रिय । मैंने दृढ निश्चय कर ट्रेन को अनुशासित रूप से चालू कर दिया । रामापुरम तक १५ किलोमीटर की  गति से चल कर१५ मिनट के रास्ते को  ७५ मिनट में पूरा करते हुए पहुंचा । इधर हमारे मंडल में खतरे की घंटी बजने लगी । आखिर ट्रेन किधर है ? रामापुरम में मदुरै एक्सप्रेस एक घंटे से लाइन क्लियर के इन्तेजार में खड़ी थी । रामापुरम पहुंचते ही मास्टर ने लेट आने की जानकारी मांगी । मैंने पूरी कहानी कह दी । सभी आश्चर्य चकित रह गए । सभी ने मानी - ऐसा होता है अनुशासन । 

Monday, September 23, 2013

पूर्वाभास

हमारे जीवन में सोते वक्त स्वप्न और जागते वक्त कल्पनाएँ -प्रतिक्षण कुरेदती  रहती है । कोई स्वप्न देखना नहीं चाहता  , तो कोई कल्पना मात्र  से भी डरता है । फिर भी हमारे हाथ पैर इन्हें साकार करने हेतु प्रयत्नशील रहते है । हमारे मष्तिष्क की उपज है ये  स्वप्न और कल्पनाएँ । स्वप्न में भयावह दृश्य हो  सकती है , आनंदायी भी और उमंग भरी भी ।  पर कल्पनाएँ  जागरुक और सुखमय ही कर जाती  है । 

स्वप्न और कल्पनाएँ दोनों  मिलकर एक हकीकत को रंग देती है । स्वप्न और कल्पनाएँ निजी सम्पदा है । निजी प्रयत्नों से कामयाब होती है । बोतल की नीर , बोतल से ही निकलेगी , घड़े से नहीं । दुनिया में बहुत कम लोग होंगे जिन्हें स्वप्न या कल्पनाओ की अनुभूति न हुई   हो । कभी - कभी ये सच का रूप भी  लेती है । मंथन से अमृत निकल सकता है , तो जिज्ञासा से सच्चाई क्यों नहीं ? तभी तो कहते हुए सुना गया है -जिन   खोजा तिन पाईया ।  

जब स्वप्न और कल्पनाओ की बातें हो ही  गयी तो एक उदहारण भी प्रस्तुत है -
           मै वाड़ी में  था और मुझे उस  दिन शिर्डी साईं नगर एक्सप्रेस लेकर गुंतकल आना था । दोपहर को भोजन के उपरांत  सो गया । मुझे एक स्वप्न आया कि  मै गेंहू पिसवा  रहा हूँ , पर गेंहू गीला हो जाता था । सो कर उठने के बाद परेशान हो गया ।दिमाग चलायमान हो चूका था ।  किसी अशुभ घटना के संकेत थे क्युकी कहते है शिरडी में हैजा की बीमारी के समय , साईं बाबा जी ने चाकरी में गेंहू की पिसाई की थी और औरतो से कहाकि  गाँव के चारो ओर सीमा पर छिड़क दें । सूखे आटा को सीमा पर छिड़कने से हैजा से मुक्ति मिली थी । पर यहाँ तो आटा गिला हो रहे थे ?

ड्यूटी में पौने पांच बजे शाम को ज्वाईन हुआ  । मिसेस जी का  फ़ोन काल आया । उन्होंने सूचना दी कि मिनी के सास की मृत्यु हो गई  , जो बनारस में ब्रेन फीवर की वजह से भरती थीं । मिनी मेरे बहन की बड़ी बेटी है ।  सूखे आटे कि जगह यह है गीली आटे का स्वप्न । स्वास्थ्य के वजाय अस्वस्थ सूचना ।  जी ऐसी कितने पूर्वाभास हमें होते रहते है । सिर्फ हम उन्हें हल्के में ले लेते है । अगर उनकी समीक्षा की जाये , तो जरूर निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है । फिर भी जरूरी नहीं कि आप मुझसे सहमत हों । 

Friday, August 9, 2013

मृत्यु की बोनस जिंदगी

उस दिन की घटना कैसे भुलाई जा सकती है । हम लोको पायलटो का जीवन ही ऐसा है । रोजमर्रा के किसी भी कार्य की  कोई समय बद्धता नहीं होती । जीवन तो जीवन है , मृत्यु भी हमें अपनो से अलग कर देती है । परिवार से सदैव अलगाव पन  की परिस्थितिया नाना प्रकार की समस्याओ को जन्म देती है । मानसिक कुंठा घेर लेती है । ऐसा ही कुछ , इब्राहीम के परिवार में आज की रात की व्यथा गम की हवा विखेर दी  थी । 

उस लोको पायलट का नाम इब्राहीम था । कुछ ही देर पहले माल गाडी लेकर आयें थे  । रात्रि के साढ़े बारह हुए होंगे । अभी साईन ऑफ भी नहीं कर सके थे  । वाश - वेसिन में हाथ धोते समय , उन्होंने  ह्रदय में दर्द महसूस की  और सीने पर हाथ रख , अचानक फर्श पर गीर पड़े थे  ।

लॉबी में उपस्थित जिन्होंने भी देखा , घबडा ये सा  उस तरफ दौड़े । वह निःसचेत पड़ गए  थे  ।  जिसे जो जान पड़ा , मदद करना चाहा  । किन्तु किसी के वस में कुछ नहीं था । उनके  प्राण - पखेरू उड़ चुके थे । उन्हें  तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र में  ले जाया गया । डॉक्टर ने उन्हें औपचारिक रूप से मृत घोषित कर दिया । कैसी बिडम्बना थी ,मौत ने उन्हें परिवार के  किसी से मिलने का अवसर प्रदान नहीं किया  था ।  ऐसा लगता है - वह मृत्यु द्वारा दी गयी बोनस की आयु के अंतर्गत जी रहे थे  । वह कैसे ? आयें विचार करें -

एक बार हम सभी लोको पायलट रायचूर रनिंग  रूम में बैठ कर समाचार पढ़ रहे थे ।उस  समय मै सहायक लोको पायलट था । हमारे बिच इब्राहीम जी भी थे । आपसी वार्तालाप और बातो -बात में सर्प का प्रसंग छिड़ गया । किसी ने कहा - इस रनिंग रूम के अन्दर बहुत सांप है , हमें सावधान रहना चाहिए । कईयों ने हामी भरी थी । और यही वास्तविक  सच्चाई भी थी । हमें कभी कभार सांप दिखाई देते थे और केयर टेकर उसे मार डालते थे । इब्राहीम जी  सभी के बातो को सुन रहे थे । सहसा हँसे और बोले - " मै एक बार सांप के मुंह से बच चूका हूँ । अभी बोनस की जिंदगी जी रहा हूँ , अन्यथा कई वर्ष पहले इस दुनिया को  अलविदा  कर दिया होता ।  कभी सोंचता हूँ तो शरीर  में सिहरन दौड़ जाती है , अल्लाह ने मदद की थी । "

हम उस समय रेलवे में नए - नए आये थे । शायद १९८८ की घटना है । हम रनिंग स्टाफ की  कहानी और किस्से सुनने  के बहुत शौक़ीन थे । किसी ने उनसे उस घटना को प्रस्तुत करने के लिए आग्रह कर दिया था । इब्राहीम जी ने कहा कि  एक बार वे इसी रनिंग रूम में अपने बैग को  ,अपने बेड के निचे रख कर सो रहे थे । बैग का जीप खुला हुआ था । आधी रात के बाद whitefield  गुड्स को कार्य करने का काल बुक मिला । मै सोकर उठा और बाहर रखे यूनिफार्म को पहन लिया तथा बैग का जीप बंद कर ड्यूटी के लिए लॉबी में आ गया । लॉबी जाते समय बैग भारी लग रहा था । लॉबी में साईन ऑन किया । गुड्स ट्रेन का चार्ज लिया । ट्रेन चलाकर गुटी जंकशन तक आया । गूटी में साईन ऑफ भी किया  और फिर घर आ गया । 

घर में जब टावेल निकलने के लिए बैग का जीप खोला ,उसमे से सांप के फुफकार की आवाज आई और एक लम्बा सांप बाहर निकलने लगा । घर के अन्य सदस्य अचंभित हो गए । उस सांप को मार दिया गया । मेरी पत्नी ने अल्लाह से दुआ के लिए हाथ ऊपर उठा  लिए और कहने लगी - " अल्लाह का शुक्र है , जो तुमने चलती ट्रेन में बैग नहीं खोले । अन्यथा यह सांप तुम्हे डंस लेता था "  

यह सुन हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा और तरह - तरह के प्रश्न उठने लगे ?

रनिंग रूम में रात के अँधेरे में बैग के अन्दर हाथ डालने पर क्या हो सकता  था ?
लोको के गति के दौरान बैग का जीप खोलने पर क्या हो सकता था ?
रायचूर और गूटी लॉबी के अन्दर बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?
घर में अन्य किसी के द्वारा बैग खोलने पर क्या हो सकता था ?

यानी हर परिस्थिति खतरे से खाली नही थी । उनके साथ घटी यह घटना , हमारे शरीर में भी शिहरण पैदा कर देती है । इस नियति के खेल बड़े निराले है । शायद इब्राहीम जी को रेलवे प्रांगन में ही , आखिरी साँस लेनी थी । हम रनिंग स्टाफ की जिंदगी रेलवे के लिए अनमोल और परिवार वालो के लिए आस्था का विषय है । सबसे  ज्यादा विरह - वेदना पत्नी को सहने पड़ते है । जिसकी आँखे हमेशा दरवाजे की ओर एक टक इंतजार में डूबी रहती  है । प्रियतम कब सकुशल घर आयेंगे ?

अल्लाह इस ईद की उपलक्ष में इब्राहीम जी की आत्मा  को शांति दें ।
 


Thursday, July 11, 2013

अजीब सी है यह शिकायत पुस्तिका ।

 कौन ऐसा होगा जिसे किसी से शिकायत  न होगी ? शिकायत का नाम आते ही हम कुछ दुविधा में पड़  जाते है । जैसे सांप सूंघ गया हो । बहुतो को एक दुसरे की शिकायत करते देखा गया है , परन्तु लिखित शिकायत के नाम पर  खिसक जाते है । आखिर क्यों ?

 शिकायत पुस्तिका और इसके  समक्ष  उत्पन्न होने वाले प्रश्न -

१ . हमें शिकायत करनी चाहिए , पर करते नहीं ।
२. अन्य को परवाह नहीं , मै  ही क्यों मुशिवत मोल लूं ?
३ .दूसरो को भी कहते नहीं थकते  की इससे होगा क्या ? यानी अपरोक्ष रूप से मनाही ।
४. तुम्हे ही इतनी चिंता क्यों है ? बहुत से लोग है जिन्हें यह परेशानी  है । छोडो इस ववाल को ।
५ .मुझे पूरी तरह से लिखने नहीं आता अन्यथा शिकायत कर देता ।
६ मै किसी परेशानी में नहीं उलझन चाहता ।
७ बहुतो को शिकायत बुक कहाँ मिलेगी - की जानकारी ही नहीं होती ।
८ कुछ दफ्तरों में  इस मुहैया नहीं कराया जाता ।
वगैरह - वगैरह

.क्या  हम इतने भीरु और डरपोक हो गए है । कईयों को कहते सुना है , छोडो यार किसे परेशानी मोल लेनी है । वाह कौन सी  परेशानी ...यही  डर तो हमें अव्यवस्था को बढाने  वाले  की  श्रेणी में ला खड़ा करता  है ।आखिर हम जिम्मेदारी और कर्तव्य से कब तक डरते रहेंगे ? कब तक सहते रहेंगे ? इसीलिए कहते है की सारी समस्याओ का  जड़ हम ही है । हम ही है , जो निकम्मों और अयोग्य  लोगो को अपना नेता चुनते है  और बाद में पछताते है। उनके पापो को धोते फिरते है । 

प्रायः सभी सरकारी कार्यालयों में शिकायत पुस्तिका मिल जाएगी । कई पुस्तिका इतनी गन्दी और मैली दिखती  है जैसे दसको तक उसे छुआ नहीं गया हो । चलिए सरकारी महकमे को संतुष्टि मिल जाती है की सब कुछ ठीक है । प्रजा को कोई दुःख या तकलीफ नहीं । जी हाँ यह सच्चाई भी है की कई मामलों में शिकायत कर्ता को भी   परेशानी झेलनी पड़ी ।  थोड़ी सी परेशानी ,  वह भी कुछ खामियों की आपुर्तिवश उतपन्न हुयी हो सकती है । पर ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता को लाभ ही मिला है ।

अजीब सी है यह शिकायत पुस्तिका । यहाँ एक वाक्या  याद आ गया । जिसे प्रस्तुत कर रहा हूँ । रात्रि का समय । करीब डेढ़ बजे ।एक युवक  रायलसीमा एक्सप्रेस की इंतजार में  प्लेटफोर्म पर चहल कदमी कर रहा था ।ट्रेन आने में काफी समय था अतः वह एक बेंच पर बैठ गया । उसे ख्याल ही नहीं रहा कि बेंच को अभी - अभी पेंट किया गया था । जब तक उसके ध्यान उस तरफ जाते -उसके पेंट और शर्त चिपचिपे और गंदे हो गए थे । उसके हावभाव से लग रहा था कि वह बहुत परेशां है । वह स्टेशन मास्टर के कार्यालय में गया और अपनी आप बीती कह सुनाई । मास्टर ने कहा की आप को बैठने के पहले बेंच को देख लेना था ? कल रेल मंत्री जी आ रहे है , इसी लिए जल्दी में बेंच की पेंटिंग की गयी होगी । मै उस कार्यालय से बात करूँगा । मास्टर ने इसके लिए उस व्यक्ति से क्षमा भी मांगी ।

वह युवक निडर था । उसने शिकायत पुस्तिका मांगी । स्टेशन मास्टर बिना किसी हिचकिचाहट के शिकायत पुस्तिका के लोकेशन को बता दिया , जो उसके कार्यालय में एक कोने में पड़ी हुयी थी । उस व्यक्ति ने शिकत पुस्तिका में अपनी शिकायत को -रेल मंत्री  को संबोधित करते हुए लिखा कि-" आप कल निरिक्षण को आ रहे है , इसी लिए यात्रियों के बैठने के बेंच को किसी ने पेंट किया । मै उस बेंच पर बैठा और मेरे पेंट तथा शर्त गंदे हो गए । आप कार्यवाही करे । "

जी हाँ पाठको । आप को जानकार हैरानी होगी की रेलवे ने उस शिकायत पर उचित कार्यवाही की । जो अपने आप में इतिहास बन गया । उस व्यक्ति के पते पर एक शर्ट  और पेंट की कीमत का ड्राफ्ट भेज गया । दोस्तों यह शिकायत पुस्तिका ही आप का प्रिय दोस्त है । इसका खूब इस्तेमाल करें और इसके मुल्य को समझे । मैंने अपने जीवन में बहुत सी शिकायते की है और फल को भी प्राप्त किया हूँ । फिर कभी और चर्चा होगी आज बस इतना ही ।

(स्थान , स्टेशन और मास्टर को उधृत नहीं किया हूँ । यह जरूरी नहीं समझता । क्षमाप्रार्थी हूँ । ) 


Saturday, March 16, 2013

इतना हम पर अहसान करो |





Ramesh Chandra Srivastava
+91 97524 17392
( श्री गिरिराज शर्मा जी ने मुझे कोटा / राजस्थान से इ-मेल द्वारा भेजी है | जो  लोको पायलटो की दुर्दशा को इंगित कर रही है | यह कविता व्यंग शैली में लिखी गयी है | एक तरह से रेलवे प्रशासन की पोल खोलती है |)