Wednesday, December 15, 2010

बैंगलुरु। मधु सिंघल देख नहीं सकतीं लेकिन उनकी बदौलत हजारों लोगों की ज़िंदगी रोशन हो चुकी है। मधु ने जीवन में संघर्ष तो बहुत किया लेकिन ये संघर्ष सिर्फ जिंदगी जीने के लिए नहीं था, ये संघर्ष था दूसरों के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए। टाइप करती हुई मधु की उंगलियों को देख कर कोई अंदाज़ नहीं लगा सकता कि उन्हें दिखाई नहीं देता। मधु के जन्म के दो महीने बाद उनकी मां को पता चला की मधु देख नहीं सकती। थोड़ा बड़ी होने पर मधु को एहसास हुआ कि हमउम्र बच्चे उसके साथ खेलना पसंद नहीं चाहते।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी आंखों की रोशनी ना होना के एहसास उनमें छटपटाहट भरता गया। साथ ही ये तकलीफ़ भी बढ़ती गयी कि नेत्रहीन कितनी भी मेहनत कर लें उनके आगे बढ़ने के रास्ते ना के बराबर है। फिर इसी तकलीफ़ से बाहर निकलने के लिये उन्होंने मित्रज्योति संस्था की स्थापना की, नेत्रहीनों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जॉब प्लेसमेंट सेल बनाया। कंप्यूटर की नई तकनीक से जरुरतमंदों को ट्रेनिंग की व्यवस्था की।
51 साल की मधु सिंघल की कोशिशों ने लंबा सफर तय किया है। उन्होंने 5000 से ज्यादा दृष्टिहीनों की मदद की है, इसके अलावा स्पेशली एबल्ड लोगों के अधिकारों और उनहें आत्मनिर्भर बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

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