उस पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला मंदिर स्थित है !रेनिगुनता से ली गयी तस्वीर !
१९९९ दिसंबर में मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ ! वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए गाँव से यहाँ आई हुयी थीं ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी !
जी हाँ , बिलकुल ठीक ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने भी विचार किया की इस पुत्र का नाम - साँपों की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !
कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को उपयुक्त करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में और बहुत कुछ , हमने देखा था और अनुभव किया है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !
नाग देव को नमन
( अगली पोस्ट -- जादुई छड़ी !)
अक्षराज जी को कोई संतान न थी ! एक दिन सुक जी ने उन्हें सुझाव दिया की महाराज - आप पुत्र -कमेष्टि यज्ञं करे तथा खेत में हल चलाये ! अक्षराज जी ने ऐसा ही किया ! खेत में हल चलाते वक्त ,एक संदूक मिला ! उन्होंने देखा की उस संदूक में एक लड़की है ! अक्षराज ने उस लड़की को पल-पोस कर बड़ा किये ! लड़की का नाम पद्मावती रखा गया !
अक्ष राज ने पद्मावती की विवाह के लिए योग्य वर की तलास शुरू की ! वृहस्पति और सुक महर्षि से राय -विमर्श किये ! श्रीनिवास को इसके लिए सुयोग्य करार दिया गया ! विवाह पक्की हो गयी ! श्रीनिवास के पास शादी के लिए धन का आभाव था ! ब्रह्मा और महेश ने कुबेर से उधार लेने का प्रस्ताव रखा ! कुबेर उधार देने के लिए राजी हो गए ! ब्रह्मा और महेश ने अस्वाथ बृक्ष के निचे पत्र पर गवाह के तौर पर हस्ताक्षर किये ! ब्रह्मा महेश और सभी देवो के उपस्थिति में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह संपन्न हुए ! इस तरह से यह भू - लोक , देव लोक में बदल गया ! शादी के बाद सुक महर्षी और लक्ष्मी देवी कोल्हापुर को चले गएँ !
अब बकाया धन - कुबेर को वापस करने की बारी आई ! पद्मावती ने लक्ष्मी जी को बुलाने के लिए कहा ! अतः श्रीनिवास जी कोल्हापुर गए ! वहा लक्ष्मी जी न मिली ! श्रीनिवास जी ने कमल का फूल रख तपस्या और लक्ष्मी जी को ध्यान करनी शुरू की ! लक्ष्मी जी उसी कमल के फूल से कार्तिक पंचमी को ( कार्तिक पंचमी को लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है ) बाहर निकली ! श्रीनिवास ,ब्रह्मा और महेश के सुझाव पर लक्ष्मी जी आनंदानिलय को प्रवेश की ! इस प्रकार लक्ष्मी जी धन और समृधि की दात्री बन गई ! इनके मदद से श्रीनिवास जी ने कुबेर के कर्ज को अदा करना शुरू किये ! लक्ष्मी जी जब जाने लगी तो - श्रीनिवास जी ने उनसे आग्रह किया की आप यही रहे ! आप की मदद से मै कलियुग तक कुबेर के कर्ज को वापस कर दूंगा !
इसी आस्था के अनुरूप -आज भी भक्त -गण तिरुपति के बालाजी / श्रीनिवास मंदिर में दान देने से नहीं हिचकिचाते क्यों की श्रीनिवास जी उन्हें सूद के साथ वापस दे देंगे ! जो गरीब है वे पैसे न होने की परिस्थिति में अपने सीर के बाल , मुंडन हो, दे देते है ! सभी की यही आस रहती है की जितना ज्यादा हुंडी में डालेंगे - उतना ही ज्यादा बालाजी देंगे ! यह धारणा , आज तक चली आ रही है ! इसीलिए यह मंदिर भारत का एक अजूबा ही है ! जिन खोजा , तिन पाईय ! जैसी सोंच , वैसी मोक्ष !
मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला डिपो में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में कार्य किया था ! पकाला से काट पाडी , धर्मावरम और तिरुपति तक ट्रेन लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा, न ही अब तक पाया है !
इस पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय पर लौटें ! मै धर्मावरम से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई और चाय देते हुए कहने लगी -- " आज मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
इसके जबाब में पत्नी जी ने क्या कहा ? आप उनके शब्दों में ही सुने -
" मै सोनू ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते थे ) को स्कुल में खाना खिलने के बाद (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा ! तुरंत शरीर में , काठ समा गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )
मंदिर के पुजारी और रामजी !
पुजारी और उनके सभी लडके दौड़े आये ! तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है ! लड़को ने पूछा - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा ! पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा दूँ !"
पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान नहीं किया था !
मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला डिपो में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में कार्य किया था ! पकाला से काट पाडी , धर्मावरम और तिरुपति तक ट्रेन लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा, न ही अब तक पाया है !
इस पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय पर लौटें ! मै धर्मावरम से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई और चाय देते हुए कहने लगी -- " आज मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
इसके जबाब में पत्नी जी ने क्या कहा ? आप उनके शब्दों में ही सुने -
" मै सोनू ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते थे ) को स्कुल में खाना खिलने के बाद (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा ! तुरंत शरीर में , काठ समा गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )
मंदिर के पुजारी और रामजी !
पुजारी और उनके सभी लडके दौड़े आये ! तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है ! लड़को ने पूछा - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा ! पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा दूँ !"
पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान नहीं किया था !
१९९९ दिसंबर में मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ ! वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए गाँव से यहाँ आई हुयी थीं ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी !
जी हाँ , बिलकुल ठीक ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने भी विचार किया की इस पुत्र का नाम - साँपों की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !
कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को उपयुक्त करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में और बहुत कुछ , हमने देखा था और अनुभव किया है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !
नाग देव को नमन
( अगली पोस्ट -- जादुई छड़ी !)
बहुत बढ़िया और दिलचस्प पोस्ट! पढ़कर अच्छा लगा और काफी आश्चर्य भी लगा!
ReplyDeleteअलौकिक अनुभव हो सकते हैं.यह भी एक अद्भुत असामान्य घटना है.बच्चे का जुबान निकलना एक संयोग हो सकता है.किन्तु..........इसमें कोई शक नही ...'वो' है और अपने नए नए रूप दिखाता है जिसका विज्ञान के पास कोई जवाब नही किन्तु 'आस्था के पास है.मेरी अपनी दुनिया प्यार ,विशवास आस्था के ईर्द गिर्द घूमती रही है हा हा हा क्या करू?
ReplyDeleteऐसीच हूँ मैं तो
यह घटना तो बड़ी ही अप्रत्याशित और रोमांचक थी ....आश्चर्य चकित कर देने वाला था सब कुछ
ReplyDeleteरोचक घटनाक्रम।
ReplyDeletedilchasp
ReplyDeleteदेश के कार्य में अति व्यस्त होने के कारण एक लम्बे अंतराल के बाद आप के ब्लाग पे आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
ReplyDeleteकृपया इस तरह के अंधविश्वास के चक्कर में मत पड़े ये तो एक संयोग था क्या आप भी ऐसा ही अवैज्ञानिक बातें सोचते हैं |
सत्य की जानकारी के लिए "तर्क " मुख्य हथियार होता है, अंध विश्वास मे तो किसी को भी खुदा मान लो ?क्या दिक्कत है ? सत्य की जानकारी के लिए छानबीन भी करनी पड़ती है ! एक सामान्य परिवार भी दाल- चावल आदि भी बीन कर पकाया करता है ! आजकल तो पानी भी बोतल का लोग पिया करते है , चाहे कितनी ही कीमत क्यों देना पड़े? सभी मनुष्यो को धर्म का अँधा अनुयायी न बनकर , सत्यान्वेषी ज़रूर बनना चाहिए ! कष्ट के लिए क्षमा चाहते हुए , शुभ भावना व धन्यवाद सहित !
Bahut Rochak.... Vishwas hi nahin hota kai baar ki aisa bhi ho sakta hai....
ReplyDeleteGajab kii rachanaa
ReplyDeleteपुत्र को नाग देवता ने गर्भ में ही किसी अनहोनी से बचा लिया था ,वो उसे बचाने के लिए ही वहाँ पहुंचे थे. उन्होंने अपने प्राण भी उस बच्चे को बचाने में खर्च कर दिए .
ReplyDeleteनागदेवता को नमन
जीवन में बहुत विचित्र अनुभव होते हैं.कुछ जैसा आपने अपनी पोस्ट में वर्णित किया अविस्मरणीय होते हैं.
ReplyDeleteपरन्तु,श्रद्धा विश्वास का ही सब खेल है.हर जीव का अपना प्रारब्ध है जो उसकी पूर्व संचित वासनाओं और कर्मों से बना है.परन्तु,जीव नवीन कर्म करने के लिए स्वतंत्र है.आपका दायित्व बालाजी में सद् भाव व सद् संस्कारों का पोषण करना है.बाकी बालाजी अपने सद्प्रयास से और प्रभु कृपा से जीवन को अवश्य सफल बना लेंगें.
मदन शर्मा जी से अक्षरशः सहमत। कृपया अंधविश्वास को बढ़ावा देने का कार्य आप जैसे विज्ञान के ज्ञाता को शोभा नहीं देता।
ReplyDeletepriy Sri Shaw ji
ReplyDeletevisvaas murti bhagwaan baala ji ke sri charnon men naman.
vrindaavan men virendra aapka vandan karta hai.
padhkar rogaten khade ho gae.......lekin shawji wo kahate hain na....jisko rakhe saiya mar sake na koya.
ReplyDeleteadbhut, avismarneeya ghatana. aapka abhar.
मेरे डैश बोर्ड पर आपकी 'तस्वीर' नाम की पोस्ट देख रहा हूँ.पर वह खुल नहीं रही है.
ReplyDeleteएक संयोग ही हो सकता है...
ReplyDeleteअन्ना शाह जी इसके मूल में लोक विश्वास ज्यादा है ,सर्प बहुल क्षेत्र में वास भी .महज़ इत्तेफाक है बच्चे का जीभ बाहर लपलपाना ,जन्म पूर्व विकार भी हो सकता है ,लार की कमी भी . Friday, August 26, 2011
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
"बद अच्छा ,बदनाम ,बुरा
बिन पैसे ,इंसान बुरा ,
काम सभी का ,एक ही है ,पर मनमोहन का नाम बुरा .------"-प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं मैंने ४१ बरस इस देश की सेवा की है .इनमें से २० बरस मैंने संसद में बिताये हैं .अपनी पूरी योग्यता से मैंने देश की सेवा की है .मुझ पर आज लोग ऊंगली उठा रहें हैं .नेता विपक्ष मेरी और मेरे परिवारियों की इस दरमियान जुटाई गई संपत्ति की जांच कर सकतें हैं .
मान्यवर हमारे बुजुर्ग कह गएँ हैं -"बद अच्छा बदनाम बुरा ".आपकी उठ बैठ ,सोहबत खराब है ,स्विस बेन्कियों की आप जी हुजूरी कर रहें हैं और स्विस कोष की हिफाज़त .आपकी निष्ठा "मम्मीजी "के साथ है .उस मंद मति बालक के साथ है ,जो इस अकूत संपत्ति का उत्तराधिकारी है .आप कहतें हैं मेरा कुसूर क्या है ?आप इसी बालक के लिए "हॉट सीट "का अनुरक्षण कर रहें हैं .
ram ram bhai
शुक्रवार, २६ अगस्त २०११
राहुल ने फिर एक सच बोला .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रिया अन्ना भूषन जी ,आपके स्नेहाशीष से ही लिखा जा रहा है .विविधता पूर्ण देश को सलाम .
प्रिय गोरखजी
ReplyDeleteनाग देवता से सम्बन्धित आपके विचित्र अनुभव चिंतन और मनन के लिए अभिनंदनीय हैं !हाल ही में बंगलूर में दस फनवाले सर्प पाए गए हैं!
भोला -कृष्णा
रोमांचक घटनाक्रम ! बहुत बार इस तरह के दृष्टांत जानकारी में आये हैं,। हकीकत क्या है , इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। बालाजी को शुभकामनाएं।
ReplyDelete.
ReplyDeleteगोविंदा गोविंदा !!
तिरुपति बालाजी की जय !
प्रिय बंधुवर गोरख जी
सादर अभिवादन !
मैंने भी तिरुपति बालाजी के दर्शन किए हैं … यह मेरा सौभाग्य है !
आदरणीया इंदु पुरी जी से बहुत सहमत हूं … बहुत सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका विज्ञान के पास कोई जवाब नही ।
आपका संस्मरण रोचक है … इस सन्दर्भ में और बहुत कुछ , जो आपने देखा और अनुभव किया , उन घटनाओ को भी रखते तो और विश्वास होता … लेकिन जो भी हो मैं आपके सुपुत्र और आपके पूरे परिवार के कुशल-मंगल के लिए , सुख-शांति और प्रसन्नता के लिए परमात्मा से प्रार्थना करता हूं !
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
रोमांचक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबड़ी रोमांचक ओर ममस्पृसीय घटना है।पढ़कर ही रोमांच पैदा हो गया
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