Monday, June 6, 2011

योगी बाबा राम देव जी

बाबा राम देव जी ने ..राम लीला मैदान में सत्याग्रह शुरू किया था ! दिनांक -०४ मई २०११ को !  कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगी थी ! आधी रात को (दिनांक -०५ मई २०११ को )दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब ( जैसा की समाचारों में आ रहा है ), बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! ज्यादा नहीं लिखूंगा ! कुछ प्रमाणिक लक्षण पेस  कर रहा हूँ , जो इस घटना की पोल खोलती नजर आ रही है !

पौराणिक  / सम सामयिक घटनाओं को देखने से मुझे बिदीत होता है की - राम ने रावण का बध किया था ! राम और रावण ......?
      कृष्ण ने कंस का बध किया था ! कृष्ण और कंस .........?
      गोडसे ने गाँधी का बध किया था ! गोडसे और गाँधी ........?
     बामा ने सामा का बध किया था ! बामा और सामा ...? और अब ..रामदेव जी के साथ हुआ ..वह भी राम लीला मैदान ! राम देव और राम लीला .....? और भी बहुत शब्द  संयोग......

 उपरोक्त शब्दों और अक्षरों .. के संयोग को देखने से पता चलता है की ...राम लीला मैदान  भी कही ...राम देव जी के साथ होने वाली शब्द / अक्षर .. वाली ..किसी  अनहोनी का  संयोग था ! आधी रात को इस तरह से सत्याग्रहियों पर छुपे रूप से आक्रमण और राम देव जी का स्त्री वेश में छुप कर भाग निकलना,किसी साधारण प्रक्रिया का संकेत नहीं लगता ! जिसे राखे साईया , मार सके न कोय ! ...की बात ही साबित करती है ! देश में  भ्रष्टाचार जीतनी  तेजी से बढ़ रहा है , उसे देखते हुए यही लगता है की .. भ्रष्टाचारी .. राम देव जी का अंत चाहते  होंगे  ! जो भ्रष्ट  है , वे उनके आन्दोलन को समर्थन देना नहीं चाहते ! जब की उन्हें साम्प्रदायिकता के रंग से नहला रहे है ! आज प्रश्न यह है की सांप्रदायिक हो या असाम्प्रदायिक ... क्या काले धन को वापस लाना उचित नहीं समझते  है ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना जरुरी नहीं लगता  है ? स्वच्छ और पारदर्शी सुशासन देना/ लेना  जरुरी नहीं दीखता ?  कही सोने की चमक आँखों को ..चकाचौध तो नहीं कर रही है  सब कुछ छुपाने के लिए .. ?

कल की घटनाए ..सोंच कर दिल दहल उठता है    क्यों की लगता है ...उन्हें मार डालने का षड्यंत्र रचा गया था ! न रहेगा बांस , ना बजेगी बांसुरी ! शब्द संयोग -
रामदेव जी = रा 
राम लीला मैदान = रा
देंखे ..बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता है !

28 comments:

  1. सांप्रदायिक हो या असाम्प्रदायिक ... क्या काले धन को वापस लाना उचित नहीं समझते है ? --- sahee tathy kee prastuti....

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  3. नकारा सरकार ने सोते हुवे निहत्थे लोगों पर लाठी चार्ज कर के जो बर्बर कार्यवाही की उसकी जीतनी निंदा की जाया कम ही है | आधी रात को दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब , बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! वाह रे सरकार ! ये कैसी नकारा सरकार है !
    जहां तक हो सके रामदेव बाबा को भी राजनितिक पार्टिओं, आर एस एस तथा कट्टरवादी हिन्दू संगठनों से दूर ही रहना चाहिए | ऐसे लोगों से उनकी छवि धूमिल ही होगी | महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिन्होंने जिन्दगी भर कट्टर हिन्दू धर्म का विरोध किया तथा इसी लिए अपने प्राण की आहुति दी को अपना मानसिक गुरु मानने वाले स्वामी राम देव जी कट्टर वादिओं से हाथ मिलाएं ये समझ में नहीं आता |
    सत्य तभी निखार पर आता है जब उसमे किसी भी किस्म के झूठ की मिलावट न हो |आप लाख सच्चे हों किन्तु यदि आप झूठ और गलत लोगो के सहारे आगे बढ़ेंगे तो आप की गिनती भी उन्ही झूठों लोगों में की जायेगी |

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  4. गोरख जी ! सारे विश्व को भारत सरकार के इस अत्याचार के समाचार मिल चुके हैं ! मैंने भी
    यहाँ बोस्टन U S A में भारतीय T V पर प्रसारित समाचारों में पिछले ४८ घंटों से दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई बर्बरता के सजीव चित्र देखे ! इन चित्रों ने मुझे १९४२ में हमारे बलिया नगर में ब्रिटिश सरकार के द्वारा किये अत्याचारों की याद दिला दी ! मन इतना दुखी हुआ की , (मानसिक पीड़ा से मुझे बचाने के लिए) ,बच्चों ने T V. ऑफ करवा दिया , यह कह कर की "पापा It is all so depressing" ! U P A सरकार की पूरी चंडाल चौकड़ी ने शांति से सोये हुए स्त्री पुरुषों और बच्चों को इस बर्बरता से डंडे मार कर teargas के गोले दाग कर वहा से निकाला , यह भी न सोचा के बाहर गाँव से आये ये लोग इतनी रात में कहाँ जायेंगे ,कैसे जायेंगे ? इसका विचार आते ही मन बहुत दुखी हो रहा है !

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  5. रामदेव और अन्ना हजारे केवल भ्रष्ट सर्कार को बचने हेतु जनता को मूर्ख बना रहे हैं.जब तक मजार पर चादर और मंदिर में प्रशाद चढाना जारी रहेगा भ्रष्टाचार फलता-फूलता रहेगा.धार्मिक भ्रष्टाचार ही आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है और कोई भी धार्मिक भ्रष्टाचार दूर करने की बात कर ही नहीं रहा है.क्या सन्यासी के लक्षण-झूठ बोलना,फरेब करना,औरतों के वस्त्र धारण करना और औरतों के झुण्ड में छिप कर चोरों की तरह भागना होते हैं?सर्कार से सौदेबाजी करना कौन से संन्यास धर्म में आता है?

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  6. बाबा रामदेव को पूरी दुनिया भगवान समान मानते थे और उन्होंने ऐसा काम किया जिससे उनके प्रति श्रद्धा न रहा! सच्चाई को बड़े सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है!

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  7. भ्रष्टाचार के विरुद्ध शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे बाबा रामदेव , अहिंसक समर्थकों और रामलीला मैदान में सो रहे निर्दोष वृद्धों,महिलाओं और बच्चों पर आधी रात में पुलिसिया हमला केंद्र सरकार की बर्बरता , असंवेदनशीलता,कायरता और तानाशाही से पूर्ण अति निंदनीय कृत्य है |
    इस तरह के दमन से सच्चाई का मुंह नहीं बंद किया जा सकता |

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  8. आपने जो संयोग बताये है वाकई में सब एक से लगते है,
    वा री कुदरत तेरी माया,

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  9. अक्षरों का विचित्र संयोग। बाबा के सत्याग्रह का दमन करके सरकार ने अपनी गुंडागर्दी का परिचय दिया है। बाबा शांति से अपनी मांग कर रहे थे। सरकार की बर्बरता , लोकतंत्र का हनन है। लेकिन अब इस क्रांति को कोई रोक नहीं सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दे दिए हैं की २ हफ्ते में इस निश्रंस कारवाई का जवाब दिया जाये।

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  10. बाबा के सत्याग्रह का दमन करके सरकार ने अपनी गुंडागर्दी का परिचय दिया है। इस तरह के दमन से सच्चाई का मुंह नहीं बंद किया जा सकता |

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  11. यह टाला जा सकता था।

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  12. जो हुआ बेहद अफसोसजनक है..... निंदनीय है....

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  13. कहीं नाम, कहीं उपनाम और कहीं जगह से बने संयोगों को छोड़ दें तो अच्छी प्रस्तुती।

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  14. आपने शब्दों का चमत्कार दिखाया है .... पर जो भी हुवा सच में बहुत बुरा हुवा ... इस सरकार की विश्वसनीयता ख़त्म हो चिकी है ... देखें अब जनता कब जागती है ...

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  15. माफ कीजीयेग, इस बार मैं आपसे सहमत नहीं हूँ, दरअसल बाबा भी उतने ही भ्रष्ट हैं, जितनी सरकार. जो कुछ हुआ वो तो एक तमाशा था. क्या बाबा नहीं जानते कि करोड़ो रुपया जो उन्हें दान में मिलता है, उसमें से अधिकतर काला धन है, उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति क्यों नहीं बनाते, बल्कि बिजनेस में लगाते हैं,
    सच में अंधेर नगरी चोपट बाबा/राजा/जनता,

    असहमति के लिये पुनः क्षमाप्रार्थी हूँ,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  16. @ विवेक जैन जी

    टिपण्णी सकारात्मक ही हो ....यह जरुरी नहीं ! वैसे मै नकारात्मक टिपण्णी ज्यादा पसंद करता हूँ ! इससे कुछ हद तक परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है , इस प्रक्रिया से सुधार संभव होता है ! आप के इस टिपण्णी से मुझे बहुत ख़ुशी हुई ! भ्रष्ट सभी हो तो भी शासन में रहने वाले राजा को अपने जिम्मेदारी से मुह मोड़ना गैर जिम्मेदारानी हरकत होती है ! अगर सभी चोर है , फिर भी हम मतदान के दिन वोट देने से नहीं चुकते है ! किसी को राजा चुनना ही होगा ! इसी लिए कहते है-" अन्धो में काना राजा ". अब काना यह कह कर चुप बैठे की मै किसके लिए काम करू , क्यों की सब अंधे है ! कहा तक उचित है ? भ्रष्टाचार रोकने के लिए सही कदम उठाये जाय तो बाबा क्या ...सभी दंड भुगतेगें ! पर प्रश्न यह है की बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन ?..बहुत - बहुत धन्यबाद .इसी तरह सम्बन्ध बनाए रखें !

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  17. @गगन शर्मा जी ..प्रणाम.

    नाम ,कही उपनाम ,और स्थान को निकाल दे ..तो बेहतर प्रस्तुति !

    आयें इस पर भी नजर डालें

    राम देव + राम लीला मैदान ....

    या राम + देव और राम + लीला मैदान

    या दोनों में से राम निकाल दें , तो बच गया -- देव + लीला मैदान

    या देव लीला मैदान ...

    अर्थात अब देव की लीला शुरू होगी या असुरो की ( यदि देव का मतलब देने वाला और लीला का मतलब निगलना समझ लिया जाय तो ) ! पर यह निश्चित है की आज की जनता असुरो की लीला नहीं चाहती है ! इसीलिए भविष्य में देव लीला ही संभव है ! आप के अनुरूप ही ..ब्याख्या ....

    संपर्क बनाए रखें ! बहुत - बहुत धन्यबाद !

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  18. @ विजय माथुर जी ..प्रणाम ( गुरूजी )

    सृष्टि की तिजारत अजीब है ! दुनिया के हर कण में झाँक कर देंखे ..तो पता चलता है की सभी जगह दो रूप विदमान है ! उदाहरार्थ - स्त्री -पुरुष , अच्छा - बुरा , सुख - शान्ति ..मधुर - दुर्गन्ध वगैरह - वगैरह !धनात्मक और नकारात्मक ! इसे परखना हमारे काम है ! हम किस रूप को स्वीकार करते है ...तस्वीर भी वही बनती है !जो होता है वह कल्याणकारी होनी चाहिए ! देने वाले कल्याण स्वरुप देते है ! लेने वाला उस चीज का इस्तेमाल कहाँ करता है ..उसकी पर्दाफास होनी चाहिए ! यह केवल एक जागरुक इंसान ही कर सकता है ! सभी को जागरुक बनाने के लिए ही ..तरह - तरह के आन्दोलन होते रहे है ! लोकतंत्र में जनता की भागी दारी और जागरूकता जरुरी है अन्यथा गलत रास्ते तैयार होंगे ! परिणाम भी गलत ! यह सभी को विदित होनी चाहिए की गलत काम रात के अँधेरे और बंद कमरे में ही होते है ! सांच को आंच कैसी ! आज हमें हंस बन दूध को दूध और पानी को पानी कहना जरुरी है !

    बहुमूल्य विचार के लिए आप का बहुत - बहुत प्रणाम ! इसी तरह से संपर्क बनाए रखें !

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  19. @ मदन शर्मा जी ..प्रणाम

    फूल को सभी पसंद करते है ! गंगा में दुष्ट और देव दोनों स्नान करते है ! क्या कभी फूल/ गंगा ने दुष्ट लोगो को कहा है की मेरे सुगंध / अन्दर स्नान ..मत लो / मत करो ! संत हमेशा ही दुष्टता को दूर करने की प्रयास किये है बिना किसी भेद भाव के ! एक बार देवताओं ने गंगा से पूछा की - आप सभी को पवित्र करती है , आप के जल में सभी स्नान करते है !फिर आप का जल गंदा नहीं होता ? गंगा ने जबाब दिया - मेरे जल में कभी - कभी सज्जन लोग भी स्नान करते है , उनके संपर्क से ही मेरी गन्दगी दूर और जल पवित्र हो जाता है ! किसके साथ कौन आया यह प्रमुख न होकर ..मुद्दा जो उठा है वह लायक है या नहीं पर विचार होनी चाहिए ! जन - कल्याणकारी मुद्दों का स्वागत होनी चाहिए ! वैसे दीप तले अन्धेरा होता है , किन्तु ध्यान सभी का ---उज्जाले की वजह से ...अँधेरे की तरफ नहीं जाता है ! क्योकि उजाले का महत्त्व बढ़ जाता है !

    इसी तरह टिपण्णी और संपर्क बनाए रखे ! फ्लोवर से ज्यादा, मुझे टिपण्णी पसंद है ! प्रणाम

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  20. @ भोला - कृष्णा ( काका - काकी जी )..प्रणाम

    लोग कह रहे है ..वह चोर जैसे भाग गया ! वह (अकेले) यदि चोर है तो हजारो की संख्या क्या हुई...... डकैती ! काका जी आप अपने स्वास्थ्य की निगरानी रखें ! आप मेरे पोस्ट पर टिपण्णी नहीं करेंगे .. तो..भी मुझे आप का आशिर्बाद मिल जाएगा

    प्रणाम !

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  21. bahut hi badhiya shaw ji, achhe se sanyog ki maya batlayi!

    tarkpurn prastuti!

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  22. अच्छे को बुरा साबित करना तो जग की रीत रही है। पर समय करवट ले रहा है। वह जमाना गया जब कुछ भी उल्टा-सीधा कह सुन कर नेता अपना उल्लू सीधा कर लिया करते थे। अब तो सड़कों पर इन्हें अपनी करनी का जवाब देना पड़ेगा। हर रात का सबेरा निश्चित होता है।
    आपका सदा स्वागत है।

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  23. आपने सही कहा हैं, मेरी पिछली पोस्ट तो आपके पोस्ट से सही में मेल खाती है.आपने बहुत से संयोग को पेश कर अच्छी प्रस्तुति दी है.

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  24. I totally agree with Mr. Vivek jain

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  25. चाटुकार चमचे करें ,नेता की जयकार ,
    चलती कारों में हुई ,देश की इज्ज़त तार .
    छप रहे अखबार में ,समाचार सह बार ,
    कुर्सी वर्दी मिल गए भली करे करतार ।
    बाबा को पहना दीनि ,कल जिसने सलवार ,
    अब तो बनने से रही ,वह काफिर सरकार ।
    है कैसा यह लोकतंत्र ,है कैसी सरकार ,
    चोर उचक्के सब हुए ,घर के पहरे -दार ,
    संसद में होने लगा यह कैसा व्यापार ,
    आंधी में उड़ने लगे नोटों के अम्बार ।
    मध्य रात पिटने लगे ,बाल वृद्ध लाचार ,
    मोहर लगी थी हाथ पर ,हाथ करे अब वार ।
    और जोर से बोल लो उनकी जय -जय कार ,
    सरे आम लुटने लगे इज्ज़त ,कौम परिवार ,
    जब से पीज़ा पाश्ता ,हुए मूल आहार ,
    इटली से चलने लगा ,सारा कारोबार ।
    वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).,डॉ .नन्द लाल मेहता .

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  26. लड़ाई को ज़ारी रखने के लिए जान बचाना ज़रूरी होता है .सलवार पहनी या पतलून इससे क्या फर्क पड़ता है .औरतें भी वक्त पड़ने पर दुश्मन को मजा चखाने को मर्दों के पैरहन में भागीं हैं .इससे क्या .कहने वाले रक्त -रंगी लेफ्टिए और और कई सत्ता खोरे तो वीरसावरकर को भी नहीं छोड़ते .कोई उन्हें पालतू शेर कहता है ,कोई अंग्रेजो से दरके माफ़ी मांगने वाला कायर ।
    जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी .
    रामदेव और अन्नाजी जनता का आहत चेहरा हैं ,
    ........................................................................

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  27. क्या रामलीला मैदान में बाबा राम्मदेव और एकत्रित जनता कोई अनैतिक काम कर रहें थे या हिंसा फैला रहें थे.क्या दूर दूर से आये निहत्थे और शान्ति प्रिय लोगो पर आधी रात में आँसू गैस के गोले और लाठी आदि चलाना उचित था.यह सब केवल यह कह कर नहीं नकारा जा सकता कि बाबा ने भी अथाह संपत्ति इक्कठ्ठी की हुई है.जब बाबा काले धन के विरुद्ध खड़े हुए तो उनको भी मालूम होगा कि वे भी आग में झुलस सकतें हैं.

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