मै और बालाजी गंगा जी में स्नान करने जाते हुए !
परिणाम - पिछले पोस्ट - " आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?" के प्रयास स्वरुप मुझे कई रोचक और सार्थक सुझाव मिले , जो टिपण्णी के साथ मौजूद है ! सभी को मेरी बधाई !उसे एक बार उधृत करना चाहूँगा !
परिणाम - पिछले पोस्ट - " आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?" के प्रयास स्वरुप मुझे कई रोचक और सार्थक सुझाव मिले , जो टिपण्णी के साथ मौजूद है ! सभी को मेरी बधाई !उसे एक बार उधृत करना चाहूँगा !
१) श्री सुरेन्द्र सिंह "झंझट "= खतरों से खेलती जिंदगी !
२) श्री राकेश कुमार जी =सर्प में रस्सी !
३) श्री विजय माथुर जी =जाको राखे साईया मार सके न कोय !
४) डॉ मोनिका शर्मा जी = चलना ही जीवन है !
५) सुश्री रेखा जी = सतर्कता हर जगह !
६) श्री सुधीर जी =खतरे में आप और सांप !
७ ) श्री संजय @मो सम कौन ? = कर्मचारी अपने जान के खुद जिम्मेदार है ! और
८) श्री दिगंबर नासवा =जीवन के अनुभव !
यहाँ नंबर एक ही सर्वश्रेष्ट है अर्थात श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " के सुझाव अत्यंत योग्य लगे ! क्योकि सर्प और लोको पायलट , दोनों की जिंदगी एक सामान है ! दोनों ही अपने क्षेत्र में खतरों से खेलते है ! यह लेख भी सर्प और लोको पायलटो के जिंदगी के इर्द - गिर्द ही सिमटी हुई थी ! बाकी सभी 7 सुधि पाठको के विचार भी योग्य है ! भविष्य में , मै इन शीर्षकों से सम्बंधित पोस्ट लिखूंगा और आप सभी के शीर्षक ही विचारणीय होंगे !
अभी मै दक्षिण सम्मलेन में व्यस्त हूँ , जो तारीख - २०-०७-२०११ को गुंतकल में ही आयोजित की गयी है ! जिसमे दक्षिण रेलवे , दक्षिण - पश्चिम रेलवे और दक्षिण - मध्य रेलवे के लोको पायलट भाग ले रहे है ! इसके संचालन , व्यवस्था और देख -भाल की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है ! अतः १० / १२ दिनों तक ब्लॉग जगत से दुरी बनी रहेगी ! ब्लॉग पोस्ट पढ़ने और टिपण्णी देने में भी असमर्थ !
अब आज के विचार-
जब हम निस्वार्थ भाव से नदी के पानी में डुबकी लगाते है , तो हमारे सिर के ऊपर हजारो टन पानी ..होने के वावजूद भी , हमें कोई बोझ मालूम नहीं होता ! किन्तु उसी नदी के पानी को स्वार्थ में वशीभूत होकर , जब घड़े में लेकर चलते है , तो बोझ महसूस होती है ! अतः स्वार्थी व्यक्ति इस दुनिया में सदैव बोझ से उलझते रहते है और निस्वार्थ लोग सदैव मस्त !
बहुत खूब.सुन्दर शीर्षक चुना आपने.झंझट भाई को बधाई.
ReplyDeleteअनुपम विचार की प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत खूब भाई जी ||
ReplyDeleteपानी बिन सब सून ||
बधाई |
आज का विचार शिक्षाप्रद है, धन्यवाद! शीर्षककारों को बधाई!
ReplyDeleteप्रेरक विचार..स्वार्थी व्यक्ति इस दुनिया में सदैव बोझ से उलझते रहते है और निस्वार्थ लोग सदैव मस्त
ReplyDeleteआज का अनुपम विचार शिक्षाप्रद है, धन्यवाद
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह जी को मुबारकवाद.आपका बोझ संबंधी निष्कर्ष ठीक है.
ReplyDeleteसुरेन्द्रजी का शीर्षक सुदर लगा .....
ReplyDeleteसार्थक विचार प्रस्तुत करने का आभार
बहुत ज्ञानवर्धक और गहन भाव लिए है आज का विचार...आभार.
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी को मेरे तरफ से भी बधाई ! बाकी सुधि जन भी इंतज़ार करें , उनके सुझाव ( शीर्षक )पर भी भविष्य में पोस्ट हाजिर होगी !
ReplyDeleteऔर एक न एक दिन स्वार्थ लोभ और लालच की त्रिवेणी का यह घड़ा फूटता ज़रूर है तब जब पानी सिर के ऊपर चला जाता है .
ReplyDeleteगोरखजी , राम राम, आज अमरिकन टेलीविजन पर भारत में हुए दो भयंकर रेल हादसों का समाचार पढ़ कर बहुत कष्ट हुआ! मेरा दिल दहल गया ,बडी चिंता हुई ! भारतीय रेलवे में आपके आलावा मेरा अन्य कोई परिचित नहीं ! आपकी बहुत याद आयी !प्रभु कृपा से आपका १० जुलाई का उपरोक्त कमेन्ट देख कर चिंता मुक्त हुआ !
ReplyDeleteआप जैसे " खतरों के खिलाडी को शत शत नमन "
लेकिन एक सलाह है , बेटा always TAKE CARE
आपका --काका
बोझ उठाने से थकान बढ़ती है।
ReplyDeleteप्रेरक विचार
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है! मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं!
ReplyDeleteहेल्लो दोस्तों आगामी..
बोझ सम्बंधी निष्कर्ष अंततः ठीक रहा...!
ReplyDeletegood choice
ReplyDeleteलौटिये और अगली पोस्ट्स की तैयारी कीजिये।
ReplyDeleteविचार बहुत खूबसूरत लगा।
सर जी, आज कल रेल दूर्घटना ज़्यादा हो गई है। इस का कारण क्या है? अधिकारियों के गफलत और ला परवाही या मानव कमज़ोरी, यदि मानव कमज़ोरी या किसमत के कारण तो मानव कुछ नहीं कर सकता परन्तु अधिकारियो और जिम्मेदारो के ला परवाही और अपने डिव्टी को सही से न करने की कारण तो फिर एसे क्रप्टचारों को सज़ा क्यों नही मिलती ? कितने मासूमों को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है, और देश की सम्पत्ती का नुकसान अलग....
ReplyDeleteआप ज्यादा स्पष्ट कर सकते हैं।
धन्यवाद
बहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक पोस्ट ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
तुम गंगा की गोद में और मैं तुम्हरी गोद
ReplyDeleteसहमत आपकी बात से .. स्वार्थी हमेशा जुगाड में लगा रहता है ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद शीर्षक पसंद आने ले लिए ......
ReplyDeleteआप सब को साधुवाद ....आभार
सुन्दर विचार..जीवनोपयोगी