गतांक से आगे -
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रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो !
जैसे भी हो रात्रि का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया ! कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग रूम के एक किनारे दरवाजे पर लगा हुआ था !
समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम
बालाजी और फिल्मी स्टाईल !
चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने
माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !
घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया ! चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !
सामने गली में कन्याकुमारी मंदिर दिखाई दे रहा है !
कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी कन्याये है या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान और तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है ! वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति २० रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !
अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
टिकट खिड़की के द्वार !
टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य
स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर
क्रमशः
मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है ! वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति २० रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !
स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !
अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
टिकट खिड़की के द्वार !
टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य
स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर
क्रमशः
कन्या कुमारी भ्रमण,विवेकानंद राक,समुद्र और स्टीमर का वर्णन अच्छा रहा। पर्यटन के इच्छुक लोगों के लिए ऐसे आपके लेख सहायक होंगे।
ReplyDeleteअच्छा , जीवंत यात्रा वृतांत ..
ReplyDeleteसुंदर चित्र ...