गतांक से आगे -
केरला को दक्षिण भारत में प्राकृतिक सौन्दर्य का जैसे वरदान मिला है ! इसके हर भाग में हरियाली आप के स्वागत के लिए हमेशा तैयार रहती है ! जिधर देंखें उधर ही हरियाली ही हरियाली ! छोटे - छोटे पौधे और उनके बीच नारियल का पेड़ सिर उठाये जैसे कह रहा हो - मै आप के स्वागत और संस्कृति को सदैव बनाये रखने की लिए अबिरल तैयार खड़ा हूँ ! इजाजत दें ! जी हाँ -केरला राज्य को प्रकृति ने उपहार स्वरुर अति मनोरम सुन्दरता से सजाया है ! एक तरफ हरियाली तो दुसरे तरफ समुद्र की मंद - मंद लहरे सिने ताने समुद्र स्थल पर खेलती मिल जाती है !
केरला के सीमा में घुसते ही हमने एक अनुपम शीतलता का अनुभव किया ! सड़क के किनारे का कोई भी जगह ऐसा नहीं होगा , जहाँ झाडिया और घर न हों ! सभी गाँव सड़क के किनारे ही बसे है ! हम सोंचने पर मजबूर हो गए की यहाँ के लोग रात को कैसे रहते होने ? क्या इन्हें सांप और बिच्छु से डर नहीं लगता ? एक जगह हमने यहाँ के लालिमा सा गहरे रंग वाले केले ख़रीदे ! जो ४० रुपये किलो थे ! धुप की छटा देखने को नहीं मिल रही थी ! बदल से घिरा मौसम ! कहते है यहाँ बारिस भी सदैव होती रहती ही ! किन्तु हमें इस मौसम के लुभावने अंदाज नहीं मिले ! तीन बजने वाले थे ! पेट पूजा का समय बिता जा रहा था ! हमने ड्राईवर को किसी होटल में ले चलने के लिए कहा ! रास्ते में कोई भी होटल नजर नहीं आ रहे थे ! ड्राईवर ने एक जगह कार को पार्क किया और एक छोटी सी होटल की तरफ इशारा किया ! छोटा पर कामचलाऊ था ! नॉन - भेज और भेज दोनों की व्यवस्था ! अजब सा लगा ! भोजन के बाद संतुष्टि नहीं मिली ! हर चीज में नारियल और उसका तेल ! चावल के दाने मटर के सामान ! संतुष्टि के लिए समुद्री फराई फिश - कुछ बेहतर !
भूख लगी थी , खाने पड़े ! मजबूरी थी ! जीवन में पहली अनुभव - केरला के खाने का ! विचित्र लगा ! पिने के लिए गर्म पानी मिला ! पूछने पर मालूम हुआ की गर्म पानी नहीं पिने से इन्फेक्सन होने का डर रहता है ! हमें मलयालम नहीं आता था और होटल वाले को हिंदी ! सर्ट शब्दों में काम चलाने पड़े ! आगे बढे - कुछ और तस्वीर -
यहाँ हम बोटिंग करनी चाही ! किन्तु भूतकाल की कुछ यादें -डर पैदा कर दी और निर्णय ख़त्म !
बालाजी का प्रकृति प्रेम !
प्रकृति के प्रांगन में - एक आवास !
आगे का पड़ाव -अरबियन सागर की तरफ , जिसकी हहाकारती समुद्री लहरे जी में उमंग पैदा कर देती थी ! जैसे कह रही हो -जीवन में कभी मत हारो ! जो हार गया -समझो मर गया ! समुद्र की लहरों का जमीन के किनारे आकर टकराना और मधुर ध्वनि पैदा करना भी अजीब होता है !
कोवलम बीच और जन सैलाब !
अरबियन सागर और उसकी उछलती , चमकीली तरंगे !
मै और मेरे बालाजी
त्रिवेंद्रम का पद्मनाभम मंदिर!
पद्मनाभन मंदिर कुछ दिन पूर्व -अपने अपार सम्पदा संग्रह की वजह से समाचार की सुर्खियों में था ! इस मंदिर के कई कमरों को खोलने के बाद करोडो की सम्पदा मिली थी ! अभी भी कई कमरे है , जिनके अन्दर अपार सम्पति के होने की आशा है ! किन्तु इसे कौन खोले ?-पर संसय बनी हुयी है ! कहा जाता है की दरवाजे खोलने वाले मृत्यु के ग्रास हो जायेंगे ! इस मंदिर की कलात्मक निर्माण खास नहीं है ! लेकिन सम्पति के चलते ज्यादा प्रसिद्धी मिली है ! त्रिवेंद्रम स्टेशन के करीब ही है ! यही वजह था की हम भी इस ओर हो लिए ! मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु जी सर्प सैया पर लेटे हुए है ! जिन्हें हम एक ही दरवाजे से नहीं देख सकते ! अन्दर से एक ही कमरा , किन्तु बाहर से तीन दरवाजे है ! पहले दरवाजे से विष्णु जी के सिर , दुसरे से पेट का भाग और तीसरे से पैर को देखा जा सकता है ! ! यही वजह होगा क्यों की स्थानीय लोग इस मंदिर को ब्रह्मा , विष्णु और महेश का मंदिर भी कहते है ! रात होने को था ! हमने यहाँ वक्त के सीमा में दर्शन कर मंदिर के अन्दर भी एक नजर दौडाई ! मंदिर के अन्दर लुंगी ( पुरुष )और महिलाओ को साड़ी में प्रवेश करने होते है ! इसके लिए मंदिर के बाहर उचित व्यवस्था है ! भाड़े पर लुंगी / साड़ी मिल जाते है ! मै और बालाजी दो नए लुंगी खरीद कर पहने ! अकसर दक्षिण भारत के बहुत से मंदिरों में निजी वस्त्र के साथ प्रवेश निषेध है ! कुल मिलकर इस मंदिर का दर्शन संतोष जनक रहा !
मंदिर का प्रवेश द्वार !
क्रमशः
यात्रा में कभी कुछ मन का मिलता कभी नहीं..... पर उसका भी अपना आनन्द है ...सुंदर चित्र
ReplyDeleteयात्रा वृतांत रोचक है।
ReplyDeleteरोचक यात्रा विवरण सुंदर चित्र पोस्ट अच्छी लगी...
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है,
रोचक यात्रा-संस्मरण ......चित्र बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण. आपके इस ब्लॉग को मैंने अपनी ब्लॉग बग़िया में रख लिया है.
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरों के साथ विस्तारित रूप से आपने यात्रा का वर्णन किया है जो बहुत अच्छा लगा ! रोचक संस्मरण !
ReplyDeleteHello, I'm afraid I cannot read the narrative but your photos are lovely and this post looks very interesting. I tried to use the translation widget on the right but I cannot get it working. Perhaps it will work next time.
ReplyDeleteदेरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और जानकारीपूर्ण संस्मरण प्रस्तुत
किया है आपने.मुझे लगभग १५ वर्ष पूर्व केरल घूमने
का मौका मिला था.बहुत ही आनन्ददायक रहा केरल
दर्शन.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार आपका.
rochak yatra vrutant...
ReplyDeleteThank you for visiting my blog Mr. Shaw. I am still trying to figure out how to do the translation here at this blog. Sorry it is taking me long. Have a great week.
ReplyDeleteOh I see the translation button at last! It looks like you were on holiday on the coast. It looks very lovely there. I'm glad you had a good time.
ReplyDeleteसुंदर यात्रा वृतांत ..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है !!