Tuesday, November 29, 2011

ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

 ब्लॉग जगत एक समुद्र है ! इसमे तैरने के बाद , जो मिला वो विस्मित कर देता है ! आप भी पढ़े महेंद्र श्रीवास्तव जी का  " आधा सच "

 http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

Thursday, 14 July 2011


ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

मित्रों  

आज बात तो रेल हादसे पर करने आया था, लेकिन मुंबई ब्लास्ट का जिक्र ना करुं तो लगेगा कि मैने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। मुंबई में तीन जगह ब्लास्ट में अभी तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन कई लोग गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ब्लास्ट दुखद है, हम सभी की संवेदना उन परिवारों के साथ है, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है। लेकिन ब्लास्ट के बाद सरकार के रवैये पर बहुत गुस्सा आ रहा है।

बताइये किसी देश का  गृहमंत्री यह कह कर सरकार का बचाव करे कि 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। इसे अपनी उपलब्धि बता रहा है। इससे ज्यादा तो शर्मनाक कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का है। वो कहते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। ऐसे बयानों से तो इनके लिए गाली ही निकलती है, लेकिन ब्लाग की मर्यादा में बंधा हुआ हूं। फिर इतना जरूर ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि आगे जब भी ब्लास्ट हो, उसमें मरने वालों में मंत्री का भी एक बच्चा जरूर हो। इससे कम  से कम ये नेता संवेदनशील तो होंगे। चलिए अब मैं आता हूं अपने मूल विषय रेल दुर्घटना पर...


 बीता रविवार मनहूस बनकर आया। मेरे आफिस और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, लिहाजा घर में आमतौर पर सुबह से शुरू हो जाने वाली भागदौड़ नहीं थी। आराम से हम सब ने लगभग 11 बजे सुबह का नाश्ता किया और लंच में क्या हो, ये बातें चल रही थीं। इस बीच आफिस के एक फोन ने मन खराब कर दिया। चूंकि आफिस में मैं रेल महकमें जानकार माना जाता हूं, लिहाजा मुझे बताया गया कि यूपी में फतेहपुर के पास मालवा स्टेशन पर हावडा़ कालका मेल ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। मुझे इतना भी समय नहीं दिया गया कि मैं दुर्घटना के बारे में आगे कोई जानकारी कर सकूं और मेरा फोन सीधे एंकर के साथ जोड़ दिया गया। 

चूंकि कई साल से मैं रेल महकमें को कवर करता रहा हूं और कई तरह की दुर्घटनाओं से मेरा सामना हो चुका है, लिहाजा सामान्य ज्ञान के आधार पर मैं लगभग आधे घंटे तक दुर्घटना की बारीकियों यानि ऐसे कौन कौन सी वजहें हो सकती हैं, जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, ये जानकारी देता रहा। बहरहाल मैने आफिस को बताया कि थोड़ी देर मुझे खाली करें तो मैं इस दुर्घटना के बारे में और जानकारी करूं। आफिस में हलचल मची हुई थी, कहा गया सिर्फ पांच मिनट में पता करें, आपको दुबारा फोन लाइन पर लेना होगा।

बहरहाल मैने रेल अफसरों को फोन घुमाना शुरू किया। अब इस बात पर जरूर गौर कीजिए.. पहले तो दिल्ली और इलाहाबाद के कई अफसरों ने  फोन ही नहीं उठाया, क्योंकि छुट्टी के दिन रेल अफसर फोन नहीं उठाते  हैं। इसके अलावा सात आठ अधिकारियों को रेल एक्सीडेंट के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने उल्टे  मुझसे पूछा कि क्या यात्री ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई है या मालगाड़ी। अब आप समझ सकते हैं कि देश में रेल अफसर ट्रेन संचालन को लेकर कितने गंभीर हैं। 

खैर बाद में रेलवे के एक दूसरे अफसर से बात हुई। मोबाइल उन्होंने आंन किया, लेकिन वो रेलवे के फोन पर किसी और से बात कर रहे थे, इस दौरान मैने इतना भर सुना कि सेना को अलर्ट पर रखना चाहिए, क्योंकि उनके आने से क्षतिग्रस्त बोगी में फंसे यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने में आसानी होगी। ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए,  क्योंकि ये साफ हो गया कि एक्सीडेंट छोटा मोटा नहीं है। बहरहाल इस अधिकारी ने इतना तो जरूर कहा कि महेन्द्र जी बडा एक्सीडेंट है, लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता, कोशिश है कि पहले कानपुर और इलाहाबाद की एआरटी (एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन) जल्द घटनास्थल पर पहुंच जाए। 

अफसर का फोन काटते ही मैने आफिस को फोन घुमाया और बताया कि दुर्घटना बड़ी है, क्योंकि सेना को अलर्ट किया गया है। बस इतना सुनते ही आफिस ने फिर ब्रेकिंग न्यूज चला दी और मेरा फोन एंकर से जोड़ दिया गया। इस ब्रेकिंग को लेकर मैं काफी देर तक एंकर के साथ जुडा रहा और ये बताने की कोशिश की किन हालातों में सेना को बुलाया जाता है। चूंकि रेल मंत्रालय सेना को बुला रहा है इसका मतलब है कि कुछ बड़ी और बुरी खबर आने वाली है। खैर कुछ देर बाद ही बुरी खबर आनी शुरू हो गई और मरने वाले यात्रियों की संख्या तीन से शुरू होकर आज 69 तक पहुंच चुकी है। 

ट्रेन हादसे की वजह

ट्रेन हादसे की वजह को आप ध्यान से समझें तो आपको पत्रकारों के पागलपन को समझने में आसानी होगी। हादसे की तीन मुख्य वजह है। पहला रेलवे के ट्रैक प्वाइंट में गड़बड़ी। ट्रैक प्वाइंट उसे कहते हैं जहां दो लाइनें मिलतीं हैं। कई बार ये लाइनें ठीक से नहीं जुड़ पाती हैं और सिगनल ग्रीन हो जाता है। इस दुर्घटना में इसकी आशंका सबसे ज्यादा जताई जा रही है। दूसरा रेल फ्रैक्चर । जी हां कई बार रेल की पटरी किसी जगह से टूटनी शुरू होती है और ट्रेनों की आवाजाही से ये टूटते टूटते इस हालात में पहुंच जाती है कि इस तरह की दुर्घटना हो जाती है। इसके लिए गैंगमैन लगातार ट्रैक की पेट्रोलिंग करते हैं, पटरी टूटने पर वो इसकी जानकारी रेल अफसरों को देते हैं और जब तक पटरी ठीक नहीं होती, तब तक ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही बंद रहती है। तीसरी वजह कई बार इंजन के पहिए में  दिक्कत हो जाती है इससे भी ऐसी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। 

ट्रेन के ड्राईवर ने अफसरों को बताया है कि वो पूरे स्पीड से जा रहा था, अचानक इंजन के नीचे गडगड़ाहट हुई, और इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता ट्रेन दुर्घटना हो चुकी थी। बताया जा रहा है कि ट्रैक प्वाइंट आपस में ठीक तरह से नहीं जुड पाया और तकनीकि खामी के चलते सिग्नल ग्रीन हो गया। कालका मेल अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर बढ रही थी,  एक झटके में वो पटरी से उतर गई और उसके कई डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ गए। 
दुर्घटना सहायता ट्रेन
हां दुर्घटना के बाद राहत का काम कैसे चला इसकी बात जरूर की जानी चाहिए। मित्रों ट्रेनों का संचालन मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रुम से किया जाता है। जैसे ही कोई ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, उसके आसपास के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सायरन बजाए जाते हैं, जिससे रेल अफसर, डाक्टर और कर्मचारी बिना देरी किए एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन (एआरटी) में पहुंच जाते हैं। इस एआरटी में एक उच्च श्रेणी का मेडिकल वैन भी होता है, जिसमें घायल यात्रियों को भर्ती करने का भी इंतजाम होता है। सूचना मिलने के बाद 15 मिनट के भीतर कानपुर और इलाहाबाद से एआरटी को घटनास्थल के लिए रवाना हो जाना चाहिए था और 45 मिनट से एक घंटे के भीतर इसे मौके पर होना चाहिए था। लेकिन रेलवे के निकम्मेपन की वजह से ये ट्रेन चार घंटे देरी से घटनास्थल पर पहुंची। सच ये है कि अगर रिलीफ ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो मरने वालों की संख्या कुछ कम हो सकती थी। 
पत्रकारों का पागलपन
जी हां अब बात करते हैं पत्रकारों के पागलपन की या ये कह लें उनकी अज्ञानता की। रेलवे के अधिकारी अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए अक्सर कोई भी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी ड्राईवर पर डाल देते हैं। जैसे एक ट्रेन दूसरे से टकरा गई तो कहा जाता है कि ड्राईवर ने सिगनल की अनदेखी की, जिससे ये दुर्घटना हुई। रात में कोई ट्रेन हादसा हो गया तो कहा जाता है कि ड्राईवर सो गया था, इसलिए ये हादसा हुआ। मित्रों आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए, अगर कोई एक्सीडेंट होता है तो सबसे पहले ड्राईवर की जान को खतरा रहता है, क्योंकि सबसे आगे तो वही होता है। लेकिन निकम्मे अफसर ड्राईवर की गल्ती इसलिए बता देते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में ड्राईवर की मौत हो जाती है, उसके बाद जांच का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता। 

ऐसी ही साजिश इस दुर्घटना में भी की गई। कहा गया कि ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, इसकी वजह से दुर्घटना हुई। अब इनसे कौन पूछे कि अगर इमरजेंसी ब्रेक इतना ही खतरनाक है तो इसका प्रावीजन इंजन में क्यों किया गया है। इसे तो हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन नहीं, पागलपन की इंतहा देखिए, पत्रकारों ने घटनास्थल से चीखना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई और ये क्रम दूसरे दिन भी जारी रहा। 

हकीकत ये है दोस्तों को अफसरों को लगा कि इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है ड्राईवर की मौत हो गई होगी, लिहाजा उस पर ही जिम्मेदारी डाल दी जाए। लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन तब तक पत्रकारों ने माहौल तो खराब कर ही दिया था। 
  

25 comments:

संध्या शर्मा said...
ट्रेन हादसा तो हो ही गया और ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. जो बातें सामने आती हैं उसे पत्रकारों का पागलपन कहें या अज्ञानता या फिर रेलवे के अधिकारियों का निकम्मापन लोग तो मारे जाते हैं और सारे सफाई देते रह जाते हैं, क्या ये दुर्घटनायें रोकी नहीं जा सकती... सार्थक विचार...
अरुण चन्द्र रॉय said...
महेंद्र जी जब हम पढ़ रहे थे पत्रकार बनना एक सपना हुआ करता है... समर्पित हुआ करते थे लोग सपने के लिए.. भाषा और विषय पर पकड़ हुआ करती थी... अब तो विषय और भाषा पर पकड़ ही नहीं है... बस चीखना चिल्लाना है.. कई मेरे स्ट्रिंगर मित्र मुझ से स्क्रिप्ट लिखवाते हैं फिर फ़ोनों करते हैं.... क्या पत्रकार मित्र इसको समझेंगे कि बिना तैयारी के रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए...
mahendra srivastava said...
अरुण जी, आप तो स्ट्रिंगर की बात कर रहे हैं, मैन जो उल्लेख किया है, वो दिल्ली और लखनऊ के पत्रकारों का हाल है। विषय की जानकारी के बगैर कुछ भी आंय बांय शांय बोलते रहते हैं।
Suman said...
इस हादसे को टी वी पर देखकर बड़ा दुःख हुआ ! बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार आपका !
मनोज कुमार said...
आपकी रिपोर्टिंग ग़ज़ब की है। घटना की तह में जाकर आपने कई ऐसी जानकारी दी है जो हमारे लिए नई थी। चाहे वह आपके पत्रकार बिरादरी की ही बात क्यों न हो। ऐसी निष्पक्ष रिपोर्टिंग कम ही देखने को मिलती है।
Kailash C Sharma said...
आज कल घटना की तह में न जाकर केवल sensational reporting करना टी वी चंनेल्स में आम बात होती जा रही है. आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग का जो रूप प्रस्तुत किया है वह काबिले तारीफ़ है..आभार
रविकर said...
धीरज रखें || हमेशा ऐसा नहीं होगा || हम जरुर सुधरेंगे || हर-हर बम-बम बम-बम धम-धम | थम-थम, गम-गम, हम-हम, नम-नम| शठ-शम शठ-शम व्यर्थम - व्यर्थम | दम-ख़म, बम-बम, तम-कम, हर-दम | समदन सम-सम, समरथ सब हम | समदन = युद्ध अनरथ कर कम चट-पट भर दम | भकभक जल यम मरदन मरहम || राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
रविकर said...
पकडे गए इन दुश्मनों ने, भोज सालों है किया | मारे गए उन दुश्मनों की लाश को इज्जत दिया || लाश को ताबूत में रख पाक को भेजा किये | पर शिकायत यह नहीं कि आप कुछ बेजा किये --- राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || रेल के घायल कराहें, कर्मियों की नजर मैली | जेब कितनों की कटी, लुट गए असबाब-थैली | तृन-मूली रेलमंत्री यात्री सब घास-मूली संग में जाकर बॉस के कर रहे थे अलग रैली | राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || नक्सली हमले में उड़ते वाहनों संग पुलिसकर्मी | कूड़ा गाडी में ढोवाये, व्यवस्था है या बेशर्मी | दोस्तों संग दुश्मनी तो दुश्मनों से बड़ी नरमी || राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही ||
Rajesh Kumari said...
Mahendra ji aapka bahut bahut dhanyavaad aapne baat ki tah tak panhuch kar ye jaankari di hai.isi tarah agar sabhi apni jimmedari sahi dhang se nibhayen to ye haadse hi na ho.aur humaare desh ki security kitni majboot hai yeh to main haal me hi dekh chuki hoon.
रविकर said...
ड्राइवर को दोषी बता, बचा रहे थे जान, जान नहीं पाए उधर, जिन्दा है इंसान | जिन्दा है इंसान, थोपते जिम्मेदारी, आलोचक की देख, बड़ी भारी मक्कारी | कह रविकर समझाय, निकाले मीन-मेख सब- मुंह मोड़े चुपचाप, मिले उनको जिम्मा जब ||
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
सही कहा आपने। पत्रकार कब किस चीज को किस रूप में प्रस्‍तुत कर दें, कहा नहीं जा सकता। ------ जीवन का सूत्र... लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?
ZEAL said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा ! लोग अपनी गलतियों की जिम्मेदारी दुसरे पर आसानी डाल देते हैं ! ड्राईवर की कोई गलती न होते हुए भी इल्जाम मढ़ा जा रहा था ! पूरे प्रकरण में राहुल गांधी का बयान बेहद भद्दा , बचकाना और गैरजिम्मेदाराना है. शर्मनाक !
रेखा said...
आपने बहुत सारी जानकारी दी है जो हमें पता ही नहीं थी ......इन नेताओं के बयानों को सुनकर कभी -कभी खुद को ही शर्म आने लगाती है
Babli said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा जिसमें मासूम लोगों की जान चली गयी! बहुत दुःख हुआ देखकर! आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
inqlaab.com said...
:)
Maheshwari kaneri said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा...बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा ।नेताओं के बयानों को सुनकर शर्म आती है...
निर्मला कपिला said...
दर्दनाक हादसे का कडवा सच जान कर दुख हुया। पता नही हमारा मीडिया कब सुधरेगा। आभार।
Vivek Jain said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay said...
बहुत अच्छा लिखा है .जैसा दिखाया जाता है समाचारों में वो आधा सच ही होता है .लेकिन आपको पढ़कर बहुत कुछ साफ-साफ समझ में आता है..
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
शालिनी पाण्डेय जी - जागरण जंक्शन में बहुत कम मिलते हैं हम ...?? अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५ लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती।
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
प्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी क्षमा करियेगा ऊपर की टिपण्णी हटा दीजियेगा कुछ भूल .. अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी सादर वंदेमातरम् ! ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन आपकी ऊर्जावान लेखनी से निकले अन्य आलेखों की तरह ही प्रभावशाली है । अपराध की हद तक ग़ैरज़िम्मेवाराना हरक़तें करते टुक्कड़खोर पत्रकार जो कह-लिख-कर जाए वो कम … … … और… मुंबई ब्लास्ट की ताज़ा घटना हर सच्चे भारतीय को आहत कर रही है , वहीं इस नपुंसक-नाकारा सरकार की बेशर्मी आग में घी का काम कर रही है … - ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। - 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। उत्तरदायित्वों को निभाने में सर्वथा असफल रहने के बावजूद भी ऐसे कायरतापूर्ण और बेशर्मी भरे बयान देने वाले नेताओं को चुल्लू पानी में डूब मरना चाहिए … आतंक और आतंकियों के संबंध में मैंने लिखा है - अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ ! नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !! दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार ! फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !! मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम ! ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !! इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार ! वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !! शस्वरंपर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है … हमेशा ही आवश्यक विषयों पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आपका आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं ! -राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनीता शानू said...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
Rachana said...
mahendra ji aapne to aankhen hi hol din itni gahri baat batai ab kya kahun desh bhi apna aye yahan ke log bhi .bahut dukhta hai dil aap ka abhar rachana
वर्ज्य नारी स्वर said...
सही और सार्थक आलेख

6 comments:

  1. आपके सौजन्य से महेंद्र जी का यह लेख पढ़ा ,सभी तथ्यों का उन्होने सविस्तार वर्णन किया है और स्पष्ट किया है कि,ट्रेन ड्राईवर के निर्दोष होने पर भी उसे कैसे दोषी ठहराया जाता है। पहले रेलवे की नौकरी छोड़ कर महावीर प्रसाद दिवेदी जी ने 'सरस्वती'का संपादक बनना मात्र रु 20/- मे स्वीकार किया था जो रेलवे के वेतन से कम था। लेकिन आज काफी रकम खर्च करने वाला छात्र सैफ और सिर्फ पैसों की खातिर पत्रकार बंता है फिर तो पागलपन ही करेगा। उससे ईमानदारी की उम्मीद ही क्यों?

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  2. सच में व्यथित करता है पत्रकारों का ऐसा व्यवहार ...अच्छा आलेख पढवाया

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  3. सत्य से रूबरू करता बेबाक आलेख ..पत्रकारों के ऐसा ब्यवहार बेहद ही दुखद ..देश में पल रहे गद्दारों को समय रहते सजा ना दी तों इनकी जड़े मजबूत होंगी ओर निर्दोष सजा पाते रहेंगे....

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  4. रेल हादसे का विवरण बहुत कुछ कहता है. जो अधिकारी छुट्टी के दिन टेलिफोन नहीं उठाते विभाग को चाहिए कि उनकी फोन की सुविधा वापस ले ले.

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  5. आपसे सहमत हूँ. आधिकारियों का रवैया जगजाहिर है. निश्चित ही समुचित जानकारी के बिना रिपोर्टिंग तो अर्थ का अनर्थ ही करेगी.

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