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Monday, March 4, 2013

अंक की बिंदिया

कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक  था  | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल  ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में    विभिन्न  परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है | 

मन की अभिलाषाएं -असीमित  है | इस असंतोष की  भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने  अपने  जीवन में सादा  विचार और सादा  रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा  के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी  इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?

इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन  कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर  दिल की  ख्वायिस और  इच्छा के आगे  घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा  का शिकार हो जाता  है , जब उसके सामने  बहुत सी सुविधाए और अवसर के  मार्ग उपलब्ध हो  |    

मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था |  मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को  कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से  -इस जगह को खोज निकाला  था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते  है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना  |  बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी  को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और  नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की  कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और  प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती   है | 

उस दिन की काली कोल सी  , काली भयावह रातें  कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास  दर्द ही तो उत्पन्न  कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो  | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |

 उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली  ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी  | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात  के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा  | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे  लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की  तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |

अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे  | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण  औरत की ख़ुशी और उसके अंक  की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी  आँखों में आंसू भर आयें  |  दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है | 

एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी  मानवता है  , तो हमें नजदीक खीच लाती  है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही  है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर  सैलरी  और जहाँ - चाह  वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए  ?

 अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही  अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो | 

Thursday, December 13, 2012

दुरंतो

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो  में हिंसा का बहुत ही कम स्थान है । स्वाभाविक है की इस धर्म के अनुयायी भी नर्म , शांत और भाई- चारे से ओत प्रोत होंगे ही । यहाँ किसी धर्म विशेष के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूँ । प्रसंग वश कहने पड़ते है । उस दिन रविवार था अर्थात दिनाँक 9 वि दिसम्बर 2012 ।  गुंतकल से दुरंतो  ट्रेन लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । 424 किलो मीटर की दुरी तय करनी थी । वैसे ट्रेन हमेशा ही समय से चलती है । पर उस दिन देर से आई पांच बजे सुबह  , वजह था बंगलुरु मंडल में रेल  लाइन में वेल्ड फेलुर । एक बार गुंतकल से ट्रेन चली तो सिकंदराबाद के पहले कहीं नहीं रुकती है । 

अब आप सोंच सकते है की लोको पायलटो  के ऊपर क्या गुजरती होगी , जब उन्हें संडास /पेशाब की जरुरत महसूस हो । लोको के अन्दर इसकी कोई सुबिधा नहीं है । पानी पीना बंद , नास्ते    बंद । ट्रेन की गति थमने की नाम नहीं लेती । दुरंतो जो है । इस हालत में स्वास्थ्य को ठीक रख पाना   कितना मुश्किल है । यह हमारे जीवन की रोज - मर्रा  और भोगने वाली प्रक्रिया  है । यही वजह है की लोको पायलटो को  सुगर / बीपि खाए जा रही  है ।  " ये भी कोई जीवन है ।"- एक सहायक ने गंभीर हो कहा था ।

 " रेल प्रशासन को कुछ करना चाहिए । आखिर अफसर किस लिए है ?"- एक बार यात्रा के दौरान एक यात्री ने प्रश्न किया  था । आप समझते है । वो समझे तब न । बगल वाले ने प्रश्न जड़ दिया । अजीब सा लगता है , जब यात्रा के दौरान साधारण सी पब्लिक बहुत कुछ कह देती है , जो हमारे जिह्वा पर नहीं आते । आखिर क्यों सत्ताधारी /प्रशासनिक अधिकारी अपने सूझ - बुझ से कल्याणकारी योजनाओ को मूर्त रूप नहीं देतें ?

लिंगम्पल्ली  और हाफिजपेट  के बीच  महज चार किलोमीटर का फासला है । दिल धड़क उठा जब एक दो वर्ष का लड़का  पटरी के बीच में आ गया । सिटी बजाये जा रहें थे । अब कुछ करे , तब तक उसकी माँ सामने आती ट्रेन को भांप ली और तुरंत देर किये बिना बच्चे को पटरी से बाहर  खिंच ली । लोको के अन्दर चार व्यक्ति थे । सभी के मुह से चीख निकल गयी । हे भगवान ! आप की कृपा अपरमपार   है । लोको के अन्दर एक अफसर भी थे , घबडा सा गए । अभी थोड़ी आगे ही बढे थे की फिर दो लडके करीब ग्यारह के आस - पास के होंगे , अपनी साईकिल को रेल के बीच  रख कर विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेन को देखने में व्यस्त । सिटी बजती रही , हाई टेक सिटी के प्लेटफोर्म पर खड़े लोगो ने शोर मचाई और वे दोनों लडके ट्रेन के आने की आभास होते ही ,सायकिल को तुरंत रेल की मध्य से बाहर खिंच लिए । ट्रेन  तीब्र  गति से आगे निकल गयी ।फिर कुछ दुरी पर एक महिला मरने से बची । एक ब्लाक के बीच .. तीन  जीवन को जीवनदान मिली ।
सब कुछ उसके हाथ में है , हम तो वश एक आधार /कारक  है । ॐ साईं
 

Sunday, December 18, 2011

दक्षिण भारत दर्शन --कन्याकुमारी भाग -२

गतांक से आगे -
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कहने की जरुरत तो नहीं है कि कन्याकुमारी की सारी चीजे हमारी आँखों को ही नहीं , बल्कि मन को भी आनंद देती है !  प्रकृति  ने इस बालू में अपनी पूर्ण निपुणता  दिखाई है ! हजारो लोग यहाँ आते है और प्रकृति से सुन्दर दृश्य का अवलोकन कर , अनुभूति लिए लौट जाते है ! वे सभी धन्य है , जिनको कन्याकुमारी के दर्शन करने के सौभाग्य मिले है !
यह दक्षिण भारत दर्शन का आखिरी अंक है ! इसमे ज्यादा विषय को पोस्ट न कर , मै अपने कुछ गुदगुदी भरे अनुभओं को बांटने का प्रयास करूँगा ! 

                 विवेकानंद राक से लेकर गोधुली के दर्शन - यहाँ प्रस्तुत है !
             विवेकानंद राक के अन्दर - विवेकानंद  का स्मारक भवन 
                             सूर्योदय से सूर्यास्त तक का नक्शा !
                            ध्यान कक्ष के बाहर लगे सूचना पट्ट 
 राक के अन्दर बना यह कुण्ड , जो वर्षा के पानी को एकत्र करने के काम आता है ! इस पानी को इस जगह पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ! चूकी समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं होता ! 
 इस सुन्दर पत्थर  के हाथी के साथ फोटो खिंचवाते - बालाजी ! हाथी को छूना सख्त मन है !इस भव्य मेमोरियल का उदघाटन तात्कालिक राष्ट्रपति श्री वि.वि.गिरी.जी ने किया था !
                      जल बोट से ली गयी विवेकानंद राक की तश्वीर !
                                 बालाजी की फोटोग्राफी और मै !
 सूर्यास्त के पहले , संगम पर उमड़ता जन सैलाब ! सूर्य की बिदाई के लिए आतुर !सबकी नजर पश्चिम की ओर !जैसे - जैसे पल नजदीक सभी के चेहरे उदास सी दिखने लगे थे ! चिडियों का कोलाहल बंद और पर्यटक भी अपने आश्रय की ओर उन्मुख !भावबिभोर ...  
बिन औरत भला कोई समारोह सफल होता है क्या ? जी यहाँ भी देंखे --मेरी  धर्म पत्नी जी को ..जहाँ रहेंगी , वहां चुप नहीं बैठती ! वश बोलना ही है ! अगल - बगल वाले लोगों  को प्रेरित कर ही लेती है ! बालू के ऊपर बैठे और सूर्यास्त के इंतजार में बैठी , स्पेनिस युवतियों से बात - चीत करने लगीं  ! मुझे दबी जुबान से हंसी आ गयी तब , जब  स्पैनिश युवतियों ने कहा की- हम हिंदी नहीं जानतीं ! फिर क्या था मैडम ने भी उसी तर्ज पर कह दीं  - आई डोंट नो स्पेनिस एंड इंग्लिश ! फिर क्या था - दोनों तरफ से हंसी फुट पड़ी  और आस - पास बैठे / खड़े लोग  भी हंस दिए ! यह भाषा भी गजब की चीज  है !
जीवन चलने का नाम है ! हार - जीत आनी ही है ! बिना हार की जीत और बिन दुःख की  सुख की मजा ही क्या ? दिवस के बाद का अँधेरा हमेशा कुछ कहता है ! सूर्य की आखरी किरण को बिदा देते पर्यटक ! जैसे समुद्र की लहरे भी शांत होती चली गयी !देखते ही देखते अँधेरे का आलम छ गया !
                      बालाजी के हाथ में बत्ती का बाळ ! बहुत खुश -- 
 संगम के किनारे  बने गाँधी स्मारक ! १२ फरवरी सन १९४८ को गाँधी जी के चिता भस्म को कन्याकुमारी के तीर्थ में अर्पण कर दिया गया !उस समय के तिरु- कोचीन सरकार  ने यहाँ एक स्म्मारक बनवाने का वादा किया !अतः आचार्य कृपलानी ने 20 जून १९५४ को इसकी नीव डाली ! सन १९५६ को यह बन कर तैयार हुआ !इस स्मारक का निर्माण उड़ीसा के शिल्प कला पर किया गया है ! याद रखने की बात यह है को दो अक्टूबर को सूर्य की किरणे छत की छिद्र  से हो कर , अन्दर रखी मूर्ति पर पड़ती है ! दिन में इसके ऊपर चढ़ कर समुद्र के क्रिया - कलापों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है !
कहते है ह़र चीज का अंत एक याद गार होता है , चाहे ख़ुशी भरा हो या दुखी ! मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ ! पर मै इस चीज को आप के साथ नहीं बांटना चाहता ! अच्छा तो हम चलते है , फिर कभी मिलेंगे ! 

अलबिदा कन्याकुमारी ! कन्यामयी !

Sunday, December 4, 2011

दक्षिण भारत दर्शन -कन्याकुमारी !

गतांक से आगे -
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 रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने  वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता  के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर  लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो ! 

 जैसे भी हो रात्रि  का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन  पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया !  कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए  साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग   रूम के एक किनारे  दरवाजे पर लगा हुआ था !
                            समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !
 अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम  ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे  रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
                            कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम

                                बालाजी और फिल्मी स्टाईल !

                           चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने

 माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !

 घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया !  चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !

सामने  गली में कन्याकुमारी  मंदिर दिखाई दे रहा है !

 कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को  कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी  कन्याये है  या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों  के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन  काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया  ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही  - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
 मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व  , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना  है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम  में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान  और  तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
         मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है !  वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति  २०  रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !

स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !

 अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
                         टिकट खिड़की के द्वार !
                        टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
                     खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य 
                   स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
 स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
      लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर 
 क्रमशः 




Monday, November 7, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम के आगे

 रामेश्वर मंदिर तथा समुद्र के तट पर स्नान का आनंद लेने के बाद -अब वापस जाने की तयारी शुरू हो गयी ! बंगाल की खाड़ी का यह समुद्र तट बिलकुल शांत था ! पानी में कोई ज्यादा लहर नहीं ! शायद समुद्र लक्ष्मन के तीर से डरा हुआ था ! इसे देख अतीत के यादो में खो जाना वाजिब ही था ! शाम होने वाली थी ! टूरिस्ट बस वाले ने सभी को पुकारना शुरू  कर दिया  ! 
                  हम तो करीब ही पत्थर के सीट  पर बैठे हुए थे !
रात को करीब नौ बजे , मदुरै पहुंचे ! दिन भर की थकावट , लाईट डिन्नर लेने के बाद -सभी बिस्तर पकड़ लिए ! 


बालाजी को तो दक्षिण भारतीय डोसा बहुत प्रिय है ! खाने में व्यस्त , बहुत मजा है - मदुरै की दोसे में ! 

दुसरे दिन कोद्दैकैनल जाने का प्रोग्राम था ! मेरी श्रीमती जी कुछ ज्यादा ही थकावट महसूस कर रही थी ! अतः इस प्रोग्राम को बस्ते में डालना पड़ा ! दिन भर मदुरै के कुछ और मंदिर देखने चले गए ! इसमे एक प्रमुख है - बालाजी का मंदिर ! भव्य मंदिरों का शहर है - मदुरै !
मंदिर के अन्दर ही हाथी को देख बालाजी काफी खुश ! एक हाथी मीनाक्षी मंदिर के अन्दर भी है ! पैसा देते ही यह हाथी अपने सूड को ऊपर उठा आशीर्वाद देता है ! बच्चे बहुत खुश होते है !
मदुरै में किसी भाषा की प्रॉब्लम नहीं है ! यहाँ के रिक्से वाले भी टूटी - फूटी हिंदी बोल लेते है ! जो नहीं बोल सकते -वे बोलने की प्रयास करते है !भाषाई बंधन आप को फिल नहीं होगा ! मेरी यह दूसरी यात्रा था ! फिर मुझे यहाँ के लोगो ने ०२-११-२०११ को आमंत्रित किया था ! कुछ पर्सनल समयाभाव में न जा सका ! 
 हमने दिन भर मदुरै में ही  बिताये  और रात को दो बजे -कन्याकुमारी जाने के लिए तैयार हो --प्लेटफार्म पर आ गए ! दो बजे के करीब , चेन्नई-कन्याकुमारी एक्सप्रेस में रिजर्वेशन था ! ट्रेन समय से आधे घंटे लेट आई ! ट्रेन में दाखिल हुए ! सभी ने अपनी - अपनी सीट ग्रहण की ! नींद आ रही थी ! सभी सो गए ! लेकिन मुझे नीद में खलल महसूस हो रही थी ! वजह यह की बार - बार कोच झटका दे रही थी ! इसके भी टेकनिकल कारण है !  बस एक तस्वीर  देख लें -

अंततः सबेरे नींद लग गयी ! अचानक आँख खुली ! आस - पास देखा ,  कोई नजर  नहीं आया  ! घबडा गया ! लगा जैसे कन्याकुमारी आ गया था ! सभी चले गए थे और हम सो रहे थे ! जल्दी से उठा ! वातानुकूलित कोच होने की वजह से बाहर  का दृश्य मालूम न हो रहा था ! उठा और कोच  से बाहर  आया ! देखा ट्रेन नागरकोयिल स्टेशन पर खाड़ी थी !
जी में जान आया ! बालाजी भी बाहर  आ गए ! मैंने उनकी एक तस्वीर प्लेटफोर्म पर ले ली !  जो ऊपर लगा हुआ है ! नगरकोयिल से   महज  बीस मिनट दूर कन्याकुमारी है ! बिलकुल समुद्र का और भारतीय भूमि  की आखिरी जमीं ! हरियाली से ओत - प्रोत ! छोटा सा स्टेशन !  कन्याकुमारी एक दम छोटा रेलवे स्टेशन है ! ट्रेनों की रिपेयर  या जाँच नगरकोयिल जंक्शन  पर ही होता है ! कन्याकुमारी रेलवे यार्ड की एक दृश्य देंखे-जो मैंने स्टेशन बिल्डिंग के ऊपर चढ़ कर ली थी !
 खैर जैसे भी हो , कन्याकुमारी पहुँच गए ! प्रोग्राम के मुताबिक नागराजन - मेल लोको पायलट - त्रिवेंद्रम ने एक  ये..सी.रिटायरिंग  रूम बुक कर दिए थे ! हमने अपने कमरे में जा कर स्नान वगैरह और तैयारी में लग गए ! नौ बजे के करीब -बाहर निकले ! चुकी यह मेरी पहली यात्रा थी , अतः पूछ - ताछ कर बाहर जाना पड़ा ! वैसे मेरे साथियों ने कैसे रहना है और क्या देखना है - के बारे में पूरी तरह से हमें जानकारी दे दी थी ! यह एक  छोटा सा भारतीय भूमि का आखिरी छोर है  ! शहर भी बिलकुल छोटा ! सैलानियों के सिवा कुछ नहीं ! सैलानियों के लिए हर सुबिधा के अनुसार , छोटे - बड़े लोज ! रेलवे स्टेशन से ही समुद्र दिखाई दे रहा था ! सैलानियों और लोज को निकल दिया जाय , तो कन्याकुमारी एक गाँव जैसा ही लगेगा ! यहाँ पर मुस्लिम और ईसाईयों की संख्या ज्यादा है ! किन्तु इन्हें सीधे नहीं पहचाना जा सकता ! नाम से ही जानकारी मिलती है ! यहाँ पर मस्जिद या चर्च , ज्यादा नहीं दिखाई देते  !  समुद्र तट से लगे -- एक कन्यामायी देवी का पुराना  मंदिर भी  है !
 बाहर सड़क पर जाते ही यह  पालकी  वाले दिखे ! किसी प्रोग्राम के बाद वापस जाते हुए !
हमें दो दिनों तक यहाँ ठहरना था ! आज पहला दिन था ! नास्ते के बाद कही निकलना चाहिए ? यह निर्णय हमने कर लिए था ! लोकल भ्रमण दुसरे दिन किया जायेगा ! अतः हमने एक कार लेना उचित समझा ! टूरिस्ट साप में गए और समय काफी बीत जाने  के बावजूद  भी एक कार मिल गयी ! हमने पद्मनाभ मंदिर / त्रिवेंद्रम देखने की योजना बनायीं !  फिर क्या था -निकल पड़े -
मौसम में नमी थी ! वैसे तमिलनाडू में हमेशा गर्मी का कहर रहता है ! खुशनुमा , ठंढी हवा  मन को शांति ही प्रदान क़र रही थी ! कार ड्राईवर हिंदी बोल लेता था ! जगह - जगह जानकारी देते रहा ! वैसे वह मुश्लिम  था ! बड़ा ही सज्जन और शांत ! हमारे हर आज्ञा का पालन कर  रहा था ! रोड के किनारे हरी - हरी झाडिया और नारियल के बृक्ष ! रोड बहुत ही पतला था !  दो वाहनों के क्रोस के समय सावधानी बरतनी पड़ती थी ! तमिलनाडू के मंदिर, ज्यादातर  बारह बजे बंद हो जाते है और फिर तीन बजे खुलते है ! करीब पौने बारह बजे हम एक शुशिन्द्र स्वामी मंदिर के पास पहुंचे ! कार ड्राईवर ने कहा , जल्दी जाएँ और जितना हो सके अन्दर घूम लें ! मंदिर बंद होने वाला है ! मंदिर में गए और देखा की बहुत ही प्राचीन किन्तु विराट - गणेश और शिव की मुर्तिया ! ज्यादा न घूम सके ! अन्यथा दुसरे देवताओ से भी मिल लेते थे ! मंदिर के बाहर आये ! देखा की लोक नृत्य वाले दक्षिण भारतीय कला का प्रदर्शन क़र रहे थे ! एक झलक --
ये कलाकार काली माँ और राक्षस की मुद्रा में नृत्य क़र रहे है  ! स्थानीय ड्रम  और संगीत की  मधुर आवाज - मन को मुग्ध क़र देती थी  ! समय ब्यर्थ न क़र हम जल्दी आगे बढ़ गए ! धीरे - धीरे तमिलनाडू की सीमा ख़त्म होने लगी और केरला आने वाला था ! हवा की ठंढी झोके ने बालाजी को निद्रा के आगोश में ले लिया !
बालाजी कार  की अगली सीट पर सोते हुए !
क्रमश:

Friday, October 28, 2011

असुबिधा के लिए खेद है !

आदरणीय पाठक गण-
 १) मैंने कुछ तकनीक दोष की वजह से अपने ब्लोग्स के पते को बदल दिया हूँ ! अतः बहुत से पाठक   मेरे नए  पोस्ट से अनभिग्य हो गए है ! मेरा पुराना URL  बदल गया है ! इस लिए मेरे कोई भी पोस्ट उन फोल्लोवेर्स के दैसबोर्ड पर प्रकाशित नहीं हो रहे है , जो मेरे ब्लोग्स के फोल्लोवेर्स दिनांक - ११-१०-२०११ के पहले के  है !  इतना ही नहीं वे मेरे किसी भी ब्लॉग को खोल नहीं पा रहे है ! इसकी शिकायत कुछ पाठको के तरफ से मिली है ! अतः इस के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !

२) मेरा नया URL / ब्लोग्स के लिंक निम्नलिखित है ! भविष्य में इस पते पर ही मेरे ब्लोग्स को खोला जा सकता है----

बालाजी के  लिए --www.gorakhnathbalaji.blogspot.com 
OMSAI  के लिए-- www.gorakhnathomsai.blogspot.com 
रामजी के लिए --- www.gorakhnathramji.blogspot.com 
 
३) आप को अपने - दैसबोअर्ड के ऊपर मेरे  ताजे पोस्ट के प्रकाशन को प्रदर्शित  ,  हेतु कुछ मूल सुधार करने होंगे यदि आप मेरे ब्लोग्स के पुराने फोल्लोवेर्स है ! इसके लिए आप को मेरा पुराना फोल्लोवेर निलंबित कर फिर से नया फोल्लोवेर्स बनने होंगे !

४) सारी फेर - बदल मैंने अपने ब्लोग्स के सुरक्षा हेतु किया है , जो गायब होने के मूड में था ! 

असुबिधा के लिए खेद है ! आशा करता हूँ , आप का सहयोग बना रहेगा !
विनीत -गोरख नाथ साव !
 

Wednesday, October 19, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम

एक  अबोध बालक - बालू पर खेलते हुए ! रामेश्वरम शहर के सड़क के किनारे !
अब मै दक्षिण भारत- एक दर्शन के दूसरी पड़ाव की ओर चलता हूँ ! मदुरै में तीन दिन  तक रहा ! पहले दिन मंदिर के दर्शन और स्थानीय साथियों से मिलने में ही गुजर गया ! दिन भर कोई न कोई आकर मुझसे मिलते रहा ! सबसे प्रमुख रहे श्री आर.एस.पांडियन जी , जो रिटायर मेल लोको पायलट तथा भुत पूर्व महा सचिव ( दक्षिण रेलवे / ऐल्र्सा ) रह चुके है ! ये मेरे  साथ रिटायरिंग रूम में करीब डेढ़ घंटे तक साथ रहे !  बहुत बातें  हुयी ! उन्होंने मेरे अगले यात्रा के बारे में पूछा ? मैंने कहा की कल रामेश्वरम के लिए निकल रहा हूँ ! उन्होंने सुझाव दिया की सुबह ६ बजे मदुरै से रामेश्वरम के लिए ट्रेन जाती है , उसमे चले जाय! मैंने सहमति में हामी भरी , किन्तु तमिल नाडू को करीब से देखना चाहता हूँ , अतः टूरिस्ट बस बुक कर लिया हूँ ....से - उन्हें अवगत करा दिया ! उन्होंने क्या और कैसे रामेश्वरम की यात्रा करनी चाहिए , कौन सी सावधानी बरते ,  वगैरह के बारे में मुझे समझा दिए ! अब आयें यात्रा पर चलें --
 दुसरे दिन टूरिस्ट बस साढ़े सात बजे --रामेश्वरम के लिए रवाना होने वाली थी ! इसमे करीब पच्चीस यात्री सवार हो सकते है ! सुबह पूरी तरह से तैयार होकर टूरिस्ट बुकिंग कार्यालय के पास आ गए ! जो पहले से निर्धारित था ! किराया -३००/- रुपये प्रति व्यक्ति लंच के साथ ( मदुरै -रामेश्वरम -मदुरै ), वापसी शाम को साढ़े सात बजे ही ! निर्धारित समय से बस आ गयी और हम तीन अपने रिजर्व सिट पर जा बैठे ! करीब एक घंटे तक बस ड्राईवर इस लोज से उस लोज तक जा -जा कर यात्रिओ को लिफ्ट देते रहा ! करीब नौ बजे टूरिस्ट बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो चली !
                  टूरिस्ट बस के अन्दर से बाहरी दृश्य
तमिलनाडू के रोड सुन्दर ही थे ! आस - पास की हरियाली , नारियल  के पेड़ , कटीली झाडिया , लाल मिटटी मन को मोह ही लेती थी ! कही कहीं गाँव हमारे उत्तर भारत से बिलकुल अलग ! छोटे - छोटे दुकान गाँव की कलपना साकार कर रही थी ! एक जगह बस ड्राईवर ने बस रोकी ! अपने सिट से उठ कर हम लोगो के बिच आया और टूटी - फूटी हिंदी में कहने लगा की आप सभी मुझे २० रुपये पर हेड दें ! यह चार्ज सामान की देख - रेख और जगह - जगह लगाने वाले टिकट के एवज में लिया जा रहा है , जो मै सामूहिक रूप में अदा करते रहूँगा !आप लोगो को कोई परेशानी नहीं होगी ! कुछ ने इसका बिरोध किया ! प्रायः सभी उत्तर भारतीय ही थे ! अंत में एक राय बन ही गयी , तब जब  उसने कहा की अगर आप लोग चाहे तो सभी जगह अपना खर्च अपने बियर करें !
रास्ते में टिफिन के लिए बस रुकी ! हमने टिफिन कर लिया था ! नारियल के पानी पर भीड़ गएँ ! बहुत सस्ता केवल 25/-रुपये  अन्दर!
                          ये है हमारे टूरिस्ट बस की संख्या !
रास्ते भर मै सेल से ही तश्वीर खींचता रहा ! साढ़े तीन घंटे के बाद -रामेश्वरम के करीब आ गए !रामेश्वरम एक छोटा द्वीप है ! बिलकुल शंख के सामान - जैसे विष्णु जी इसे अपने हाथो में धारण किये हुए हो ! यह भारत की जमीं से कुछ अलग होकर समुद्र के बिच है ! समुद्र के बिच बनी रेलवे की पटरिया पामान और मंडप स्टेशन  को जोड़ती है ! रेलवे की पामबन ब्रिज जरुरत पड़ने पर उप्पर भी उठाई जा सकती है , जिससे की जहाज इस ओर से उस ओर जा सके !अन्नायी इंदिरा गाँधी रोड -भारतीय भूमि को समुद्र में स्थित रामेश्वरम से जोड़ता है ! यहाँ की जमी समुद्री रेत और नारियल के पेड़ो से भरी पड़ी है ! यह भी इसे खुबसूरत   बना ही देता है ! यहाँ के लोगो का जीवन यापन टूरिस्ट और नारियल से ही सम्बंधित ज्यादा है !

                            बाहर से रामेश्वर मंदिर का दृश्य 
कहते है की काशी यात्रा तभी पूरी  होती है , जब रामेश्वरम में स्नान व् पूजा की जाय ! इससे मालूम होता है की काशी और रामेश्वरम की  महिमा दोनों  सामान है !अतः यह कहा जा सकता है की रामायण जितना पुराना है उतनी ही यह रामेश्वरम ! यहाँ का विराट मंदिर अपने ज़माने का अद्वितीय  और आज का एक अद्भुत उदहारण ही है !जिसे बनाना आज के धनाढ्यो के वश की बात नहीं है ! रामेश्वरम के मंदिर में देवाधिदेव प्रभु शिव की शिवलिंग है !जिसे राम ने स्वयं स्थापित कर पूजा की थी ! कहते है --
जब रावन का बध कर  राम लक्षमण सीता सहित लौट रहे थे तब गंधानाहन पर्वत के कुछ तपस्वी राम पर ब्राहमण बध का दोष लगा कर उनसे  घृणा  करने लगे  ! राम ने उस स्थान पर शिव लिंग बना कर पूजा करके पाप धोने का निश्चय किया ! किन्तु बालू के रेत से शिव लिंग बनाना मुश्किल काम था ! इसके लिए मुहूर्त निकला गया ! राम ने हनुमान को कैलाश जा कर शिव लिंग लाने  का आदेश दिया !लेकिन बहुत देर हो गयी ! सीताजी ने रेत से शिव लिंग बनायीं और राम ने मुहूर्त अनुसार पूजा की ! जब हनुमान जी शिव लिंग लेकर आये तो सब कुछ जान गुस्से से भर गए ! रामजी ने कहा ठीक है रेत की लिंग हटा कर शिव लिंग की स्थापना कर दें ! किन्तु हनुमान जी पूरी बल लगाकर भी रेत की लिंग न हटा सके ! राम ने कहा ठीक है आप की लिंग की पूजा पहले हो ! आज भी यह प्रथा है ! हनुमान जी की लिंग की पूजा ही पहले होती है !
मंदिर के भीतर और बाहर  कई तीर्थ है ! भीतर के तीर्थ जगह - जगह जा कर शरीर के ऊपर पानी डाल कर होती है !पंडो से बच कर रहने पड़ते है ! वैसे उत्तर भारत के पंडो की चापलूसी जैसी यह स्थान नहीं है !फिर भी सतर्क रहना जरुरी है ! रामेश्वरम के बारे में अधिक जानकारी - मंदिर के वेब साईट पर की जा सकती है ,ये है -  
www.rameswaramtemple.org
 समुद्र के ऊपर बनी रेल ब्रिज और रेलवे लाइन ! जो  सुनामी की वजह से निलंबित है !
 भारतीय भूमि और रामेश्वरम के बिच समुद्र पर बनी अन्ने इंदिरा गाँधी रोड से समुद्र को निहारते हम दोनी !                                                                     फोटो ग्राफी -बालाजी 
पामबन ब्रिज को पार करने के बाद - रामेश्वरम के भूमि में कुछ दूर जाने के बाद यह एक मकबरा है , जिसे बने करीब सवासौ वर्ष हो गए है ! यह एक मुश्लिम लडके की मकबरा है , जिसकी लम्बाई सोलह फुट थी ! इस मकबरे की लम्बाई भी सोलह फुट से ज्यादा है !
   लक्ष्मन तीर्थ के अन्दर सरोवर और चंचल मछलिया मन को मोह लेती है !
 सीता  कुंड में पानी का वनवास ही दिखा ! पार यह भी पवित्र स्थल है !
सीता कुंड के बाद तैरते हुए पत्थर देखने गए ! विडिओ ग्राफी या फोटो लेना मना था ! अतः कोई तश्वीर नहीं है ! यह भी देख हम काफी ताज्जुब कर गए ! पानी में बड़े - बड़े पत्थर रखे हुए थे , जो बिलकुल तैर रहे थे ! हमने उसे पानी में जोर से दबाये , किन्तु वे डुबे नहीं ! अद्भुत -  जीवन में पहली बार तैरते हुए पत्थर देखे थे ! इसे देखने के बाद हनुमान द्वारा समुद्र के ऊपर पत्थर रख पूल बनाने की बात की विश्वसनीयता बढ जाती है !
 समुद्री चीजो और हस्थाकला से निर्मित - दुकान जो वातानुकूलित है ,हमने यहाँ से  दो शंख ख़रीदे !
              स्वाति   सी शेल क्राफ्ट  दुकान के अन्दर का दृश्य 
  बहुत दर्शन हो गए !  भूख लगी है ! टूरिस्ट बस वाले ने होटल की तरफ ले चला ! उत्तर और दक्षिण की समागम ! मजा तो नहीं आया , पर अच्छा रहा ! काम चल सकता है !
 रामेश्वरम में ---सेतु स्नान करना , रामलिंगेश्वर के दर्शन करना - हर एक हिन्दू के जीवन में मुख्य और अनिवार्य मना जाता है ! जो ऐसा नहीं कर पता उसका जीवन निष्फल मना जाता है !भारत भर में सैकड़ो पवन मंदिर है ! पवित्र तीर्थ है !लेकिन एक ही जगह पर तीर्थ और दर्शन दोनों प्रमुख हो तो इस सेतु के आलावा और कोई जगह / क्षेत्र नहीं है ! हमने भी समुद्र में स्नान किये ! इसके लिए अलग से कपडे लेकर गएँ थे ! जिनके पास अलग से कपडे नहीं थे , वे समुद्र की शांत  लहरों  को ही देखते  रह गए !
बालाजी सेतु स्नान के लिए मेरे आने  के  इंतजार में , समुद्र के निश्छल  तरंग को निहारते हुए !
             बालाजी समुद्र  की तस्वीर  लेने  में तल्लीन !
और भी बहुत से तस्वीर है ! कुछ प्रमुख प्रस्तुत किया हूँ ! रामेश्वरम  की यात्रा में एक अनुभूति और आस्था जरुर दृढ हुयी - वह यह की देवाधिदेव  शिव की महिमा ने  इस शहर को सुनामी से बचाए रखा ! जब की तमिलनाडू के सभी तटीय शहर , सुनामी के प्रकोप से तबाह हो गए ! रामेश्वरम शिव की गुण गाते रहा ! इस शहर में जान - माल की हानी बहुत ही कम हुयी ! यह कोई एक अद्भुत शक्ति ही कर सकती  है ! यह बात मुझे यहाँ के स्थानीय लोगो से मालूम हुयी ! जय शिव और शिव शक्ति !
अगली यात्रा -त्रिवेंद्रम की !